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15 परमेश्वर में मेरी भी वह आशा है जैसी इनकी कि निश्चित ही एक ऐसा दिन तय किया गया है, जिसमें धर्मियों तथा अधर्मियों दोनों ही का पुनरुत्थान होगा. 16 इसी नज़रिए से मैं भी परमेश्वर और मनुष्यों दोनों ही के सामने हमेशा एक निष्कलंक विवेक बनाए रखने की भरपूर कोशिश करता हूँ.

17 “अनेक वर्षों के बीत जाने के बाद मैं गरीबों के लिए सहायता राशि लेकर तथा बलि चढ़ाने के उद्धेश्य से येरूशालेम आया था.

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