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“मैं तुमसे कहता हूँ कि सांसारिक सम्पत्ति का उपयोग अपने मित्र बनाने के लिए करो कि जब यह सम्पत्ति न रहे तो अनन्त काल के घर में तुम्हारा स्वागत हो.

10 “वह, जो थोड़े में विश्वासयोग्य है, वह उस ज़्यादा में भी विश्वासयोग्य होता है; वह, जो थोड़े में भ्रष्ट है, ज़्यादा में भी भ्रष्ट होगा. 11 इसलिए यदि तुम सांसारिक सम्पत्ति के प्रति विश्वासयोग्य न पाए गए तो तुम्हें सच्चा धन कौन सौंपेगा?

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