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15 शत्रु काँटे और जाल डाल कर उनको पकड़ लेता है।
    अपने जाल में फँसा कर शत्रु उन्हें खींच ले जाता है
    और शत्रु अपनी इस पकड़ से बहुत प्रसन्र होता है।
16 यह फंदे और जाल उसके लिये ऐसा जीवन जीने में जो धनवान का होता है
    और उत्तम भोजन खाने में उसके सहायक बनते हैं।
इसलिये वह शत्रु अपने ही जाल और फंदों को पूजता है।
    वह उन्हें मान देने के लिये बलियाँ देता है और वह उनके लिये धूप जलाता है।
17 क्या वह अपने जाल से इसी तरह मछलियाँ बटोरता रहेगा?
    क्या वह (बाबुल की सेना) इसी तरह निर्दय लोगों का नाश करता रहेगा?

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