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14 उन सेनानायकों ने हमारे नगरों पर
    तूफान की तरह से आक्रमण किया।
उनकी इच्छा थी कि वे हमारे असहाय लोगों को
    जो गलियों के भीतर वैसे डर कर छुपे बैठे हैं
जैसे कोई भिखारी छिपा हुआ है खाना कुचल डाले।
    किन्तु तूने उनके सिर को मुगदर की मार से फोड़ दिया।
15 किन्तु तूने सागर को अपने ही घोड़ों से पार किया था
    और तूने महान जलनिधि को उलट—पलट कर रख दिया।
16 मैंने ये बातें सुनी और मेरी देह काँप उठी।
    जब मैंने महा—नाद सुनी, मेरे होंठ फड़फड़ाने लगे!
मेरी हड्डियाँ दुर्बल हुई, मेरी टाँगे काँपने लगीं।
    इसीलिये धैर्य के साथ मैं उस विनाश के दिन की बाट जोहूँगा।
ऐसे उन लोगों पर जो हम पर आक्रमण करते हैं, वह दिन उतर रहा है।

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