अय्यूब 34-36
Hindi Bible: Easy-to-Read Version
34 फिर एलीहू ने बात को जारी रखते हुये कहा:
2 “अरे ओ विवेकी पुरुषों तुम ध्यान से सुनो जो बातें मैं कहता हूँ।
अरे ओ चतुर लोगों, मुझ पर ध्यान दो।
3 कान उन सब को परखता है जिनको वह सुनता है,
ऐसे ही जीभ जिस खाने को छूती है, उसका स्वाद पता करती है।
4 सो आओ इस परिस्थिति को परखें और स्वयं निर्णय करें की उचित क्या है।
हम साथ साथ सीखेंगे की क्या खरा है।
5 अय्यूब ने कहा: ‘मैं निर्दोष हूँ,
किन्तु परमेश्वर मेरे लिये निष्पक्ष नहीं है।
6 मैं अच्छा हूँ लेकिन लोग सोचते हैं कि मैं बुरा हूँ।
वे सोचते हैं कि मैं एक झूठा हूँ और चाहे मैं निर्दोंष भी होऊँ फिर भी मेरा घाव नहीं भर सकता।’
7 “अय्यूब के जैसा कोई भी व्यक्ति नहीं है
जिसका मुख परमेश्वर की निन्दा से भरा रहता है।
8 अय्यूब बुरे लोगों का साथी है
और अय्यूब को बुरे लोगों की संगत भाती है।
9 क्योंकि अय्यूब कहता है
‘यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञा मानने का जतन करता है तो इससे उस व्यक्ति का कुछ भी भला न होगा।’
10 “अरे ओं लोगों जो समझ सकते हो, तो मेरी बात सुनो,
परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करता है।
सर्वशक्तिशाली परमेश्वर कभी भी बुरा नहीं करेगा।
11 परमेश्वर व्यक्ति को उसके किये कर्मो का फल देगा।
वह लोगों को जो मिलना चाहिये देगा।
12 यह सत्य है परमेश्वर कभी बुरा नहीं करता है।
सर्वशक्तिशाली परमेश्वर सदा निष्पक्ष रहेगा।
13 परमेश्वर सर्वशक्तिशाली है, धरती का अधिकारी, उसे किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया।
किसी भी व्यक्ति ने उसे इस समूचे जगत का उत्तरदायित्व नहीं दिया।
14 यदि परमेश्वर निश्चय कर लेता कि
लोगों से आत्मा और प्राण ले ले,
15 तो धरती के सभी व्यक्ति मर जाते,
फिर सभी लोग मिट्टी बन जाते।
16 “यदि तुम लोग विवेकी हो
तो तुम उसे सुनोगे जिसे मैं कहता हूँ।
17 कोई ऐसा व्यक्ति जो न्याय से घृणा रखता है शासक नहीं बन सकता।
अय्यूब, तू क्या सोचता है,
क्या तू उस उत्तम और सुदृढ़ परमेश्वर को दोषी ठहरा सकता है
18 केवल परमेश्वर ऐसा है जो राजाओं से कहा करता है कि ‘तुम बेकार के हो।’
परमेश्वर मुखियों से कहा करता है कि ‘तुम दुष्ट हो।’
19 परमेश्वर प्रमुखों से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक प्रेम नहीं करता,
और परमेश्वर धनिकों की अपेक्षा गरीबों से अधिक प्रेम नहीं करता है।
क्योंकि सभी परमेश्वर ने रचा है।
20 सम्भव है रात में कोई व्यक्ति मर जाये, परमेश्वर बहुत शीघ्र ही लोगों को रोगी करता है और वे प्राण त्याग देते हैं।
परमेश्वर बिना किसी जतन के शक्तिशाली लोगों को उठा ले जाता है,
और कोई भी व्यक्ति उन लोगों को मदद नहीं दे सकता है।
21 “व्यक्ति जो करता है परमेश्वर उसे देखता है।
व्यक्ति जो भी चरण उठाता है परमेश्वर उसे जानता है।
22 कोई जगह अंधेरे से भरी हुई नहीं है, और कोई जगह ऐसी नहीं है
जहाँ इतना अंधेरा हो कि कोई भी दुष्ट व्यक्ति अपने को परमेश्वर से छिपा पाये।
23 किसी व्यक्ति के लिये यह उचित नहीं है कि
वह परमेश्वर से न्यायालय में मिलने का समय निश्चित करे।
24 परमेश्वर को प्रश्नों के पूछने की आवश्यकता नहीं,
किन्तु परमेश्वर बलशालियों को नष्ट करेगा
और उनके स्थान पर किसी
और को बैठायेगा।
25 सो परमेश्वर जानता है कि लोग क्या करते हैं।
इसलिये परमेश्वर रात में दुष्टों को हरायेगा, और उन्हें नष्ट कर देगा।
26 परमेश्वर बुरे लोगों को उनके बुरे कर्मो के कारण नष्ट कर देगा
और बुरे व्यक्ति के दण्ड को वह सब को देखने देगा।
27 क्योंकि बुरे व्यक्ति ने परमेश्वर की आज्ञा मानना छोड़ दिया
और वे बुरे व्यक्ति परवाह नहीं करते हैं उन कामों को करने की जिनको परमेश्वर चाहता है।
28 उन बुरे लोगों ने गरीबों को दु:ख दिया और उनको विवश किया परमेश्वर को सहायता हेतू पुकारने को।
गरीब सहायता के लिये पुकारता है, तो परमेश्वर उसकी सुनता है।
29 किन्तु यदि परमेश्वर ने गरीब की सहायता न करने का निर्णय लिया तो
कोई व्यक्ति परमेश्वर को दोषी नहीं ठहरा सकता है।
यदि परमेश्वर उनसे मुख मोड़ता है तो कोई भी उस को नहीं पा सकता है।
परमेश्वर जातियों और समूची मानवता पर शासन करता है।
30 तो फिर एक ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर के विरुद्ध है और लोगों को छलता है,
तो परमेश्वर उसे राजा बनने नहीं दे सकता है।
31 “सम्भव है कि कोई परमेश्वर से कहे कि
मैं अपराधी हूँ और फिर मैं पाप नहीं करूँगा।
32 हे परमेश्वर, तू मुझे वे बातें सिखा जो मैं नहीं जानता हूँ।
यदि मैंने कुछ बुरा किया तो फिर, मैं उसको नहीं करूँगा।
33 किन्तु अय्यूब, जब तू बदलने को मना करता है,
तो क्या परमेश्वर तुझे वैसा प्रतिफल दे,
जैसा प्रतिफल तू चाहता है? यह तेरा निर्णय है यह मेरा नहीं है।
तू ही बता कि तू क्या सोचता है?
34 कोई भी व्यक्ति जिसमें विवेक है और जो समझता है वह मेरे साथ सहमत होगा।
कोई भी विवेकी जन जो मेरी सुनता, वह कहेगा,
35 अय्यूब, अबोध व्यक्ति के जैसी बातें करता है,
जो बाते अय्यूब करता है उनमें कोई तथ्य नहीं।
36 मेरी यह इच्छा है कि अय्यूब को परखने को और भी अधिक कष्ट दिये जाये।
क्यों? क्योंकि अय्यूब हमें ऐसा उत्तर देता है, जैसा कोई दुष्ट जन उत्तर देता हो।
37 अय्यूब पाप पर पाप किए जाता है और उस पर उसने बगावत की।
तुम्हारे ही सामने वह परमेश्वर को बहुत बहुत बोल कर कलंकित करता रहता है!”
35 एलीहू कहता चला गया। वह बोला:
2 “अय्यूब, यह तेरे लिये कहना उचित नहीं की
‘मैं अय्यूब, परमेश्वर के विरुद्ध न्याय पर है।’
3 अय्यूब, तू परमेश्वर से पूछता है कि
‘हे परमेश्वर, मेरा पाप तुझे कैसे हानि पहुँचाता है?
और यदि मैं पाप न करुँ तो कौन सी उत्तम वस्तु मुझको मिल जाती है?’
4 “अय्यूब, मैं (एलीहू) तुझको और तेरे मित्रों को जो यहाँ तेरे साथ हैं उत्तर देना चाहता हूँ।
5 अय्यूब! ऊपर देख
आकाश में दृष्टि उठा कि बादल तुझसे अधिक उँचें हैं।
6 अय्यूब, यदि तू पाप करें तो परमेश्वर का कुछ नहीं बिगड़ता,
और यदि तेरे पाप बहुत हो जायें तो उससे परमेश्वर का कुछ नहीं होता।
7 अय्यूब, यदि तू भला है तो इससे परमेश्वर का भला नहीं होता,
तुझसे परमेश्वर को कुछ नहीं मिलता।
8 अय्यूब, तेरे पाप स्वयं तुझ जैसे मनुष्य को हानि पहुँचाते हैं,
तेरे अच्छे कर्म बस तेरे जैसे मनुष्य का ही भला करते हैं।
9 “लोगों के साथ जब अन्याय होता है और बुरा व्यवहार किया जाता है,
तो वे मदद को पुकारते हैं, वे बड़े बड़ों की सहायता पाने को दुहाई देते हैं।
10 किन्तु वे परमेश्वर से सहायता नहीं माँगते।
वे नही कहते हैं कि, ‘परमेश्वर जिसने हम को रचा है वह कहाँ है? परमेश्वर जो हताश जन को आशा दिया करता है वह कहाँ है?’
11 वे ये नहीं कहा करते कि,
‘परमेश्वर जिसने पशु पक्षियों से अधिक बुद्धिमान मनुष्य को बनाया है वह कहाँ है?’
12 “किन्तु बुरे लोग अभिमानी होते है,
इसलिये यदि वे परमेश्वर की सहायता पाने को दुहाई दें तो उन्हें उत्तर नहीं मिलता है।
13 यह सच है कि परमेश्वर उनकी व्यर्थ की दुहाई को नहीं सुनेगा।
सर्वशक्तिशाली परमेश्वर उन पर ध्यान नहीं देगा।
14 अय्यूब, इसी तरह परमेश्वर तेरी नहीं सुनेगा,
जब तू यह कहता है कि वह तुझको दिखाई नहीं देता
और तू उससे मिलने के अवसर की प्रतीक्षा में है,
और यह प्रमाणित करने की तू निर्दोष है।
15 “अय्यूब, तू सोचता है कि परमेश्वर दुष्टों को दण्ड नहीं देता है
और परमेश्वर पाप पर ध्यान नहीं देता है।
16 इसलिये अय्यूब निज व्यर्थ बातें करता रहता है।
अय्यूब ऐसा व्यवहार कर रहा है कि जैसे वह महत्वपूर्ण है।
किन्तु यह देखना कितना सरल है कि अय्यूब नहीं जानता कि वह क्या कह रहा है।”
36 एलीहू ने बात जारी रखते हुए कहा:
2 “अय्यूब, मेरे साथ थोड़ी देर और धीरज रख।
मैं तुझको दिखाऊँगा की परमेश्वर के पक्ष में अभी कहने को और है।
3 मैं अपने ज्ञान को सबसे बाटूँगा।
मुझको परमेश्वर ने रचा है।
मैं जो कुछ भी जानता हूँ मैं उसका प्रयोग तुझको यह दिखाने के लिये करूँगा कि परमेश्वर निष्पक्ष है।
4 अय्यूब, तू यह निश्चय जान कि जो कुछ मैं कहता हूँ, वह सब सत्य है।
मैं बहुत विवेकी हूँ और मैं तेरे साथ हूँ।
5 “परमेश्वर शक्तिशाली है
किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है।
परमेश्वर सामर्थी है
और विवेकपूर्ण है।
6 परमेश्वर दुष्ट लोगों को जीने नहीं देगा
और परमेश्वर सदा दीन लोगों के साथ खरा व्यवहार करता है।
7 वे लोग जो उचित व्यवहार करते हैं, परमेश्वर उनका ध्यान रखता है।
वह राजाओं के साथ उन्हें सिंहासन देता है और वे सदा आदर पाते हैं।
8 किन्तु यदि लोग दण्ड पाते हों और बेड़ियों में जकड़े हों।
यदि वे पीड़ा भुगत रहे हों और संकट में हो।
9 तो परमेश्वर उनको बतायेगा कि उन्होंने कौन सा बुरा काम किया है।
परमेश्वर उनको बतायेगा कि उन्होंने पाप किये है और वे अहंकारी रहे थे।
10 परमेश्वर उनको उसकी चेतावनी सुनने को विवश करेगा।
वह उन्हें पाप करने को रोकने का आदेश देगा।
11 यदि वे लोग परमेश्वर की सुनेंगे
और उसका अनुसरण करेंगे तो परमेश्वर उनको सफल बनायेगा।
12 किन्तु यदि वे लोग परमेश्वर की आज्ञा नकारेंगे तो वे मृत्यु के जगत में चले जायेंगे,
वे अपने अज्ञान के कारण मर जायेंगे।
13 “ऐसे लोग जिनको परवाह परमेश्वर की वे सदा कड़वाहट से भरे रहे है।
यहाँ तक कि जब परमेश्वर उनको दण्ड देता हैं, वे परमेश्वर से सहारा पाने को विनती नहीं करते।
14 ऐसे लोग जब जवान होंगे तभी मर जायेंगे।
वे अभी भ्रष्ट लोगों के साथ शर्म से मरेंगे।
15 किन्तु परमेश्वर दु:ख पाते लोगों को विपत्तियों से बचायेगा।
परमेश्वर लोगों को जगाने के लिए विपदाएं भेजता है ताकि लोग उसकी सुने।
16 “अय्यूब, परमेश्वर तुझको तेरी विपत्तियों से दूर करके तुझे सहारा देना चाहता है।
परमेश्वर तुझे एक विस्तृत सुरक्षित स्थान देना चाहता है
और तेरी मेज पर भरपूर खाना रखना चाहता है।
17 किन्तु अब अय्यूब, तुझे वैसा ही दण्ड मिल रहा है, जैसा दण्ड मिला करता है दुष्टों को, तुझको परमेश्वर का निर्णय और खरा न्याय जकड़े हुए है।
18 अय्यूब, तू अपनी नकेल धन दौलत के हाथ में न दे कि वह तुझसे बुरा काम करवाये।
अधिक धन के लालच से तू मूर्ख मत बन।
19 तू ये जान ले कि अब न तो तेरा समूचा धन तेरी सहायता कर सकता है और न ही शक्तिशाली व्यक्ति तेरी सहायता कर सकते हैं।
20 तू रात के आने की इच्छा मत कर जब लोग रात में छिप जाने का प्रयास करते हैं।
वे सोचते हैं कि वे परमेश्वर से छिप सकते हैं।
21 अय्यूब, बुरा काम करने से तू सावधान रह।
तुझ पर विपत्तियाँ भेजी गई हैं ताकि तू पाप को ग्रहण न करे।
22 “देख, परमेश्वर की शक्ति उसे महान बनाती है।
परमेश्वर सभी से महानतम शिक्षक है।
23 परमेश्वर को क्या करना है, कोई भी व्यक्ति सको बता नहीं सकता।
कोई भी उससे नहीं कह सकता कि परमेश्वर तूने बुरा किया है।
24 परमेश्वर के कर्मो की प्रशंसा करना तू मत भूल।
लोगों ने गीत गाकर परमेश्वर के कामों की प्रशंसा की है।
25 परमेश्वर के कर्म को हर कोई व्यक्ति देख सकता है।
दूर देशों के लोग उन कर्मों को देख सकते हैं।
26 यह सच है कि परमेश्वर महान है। उस की महिमा को हम नहीं समझ सकते हैं।
परमेश्वर के वर्षो की संख्या को कोई गिन नहीं सकता।
27 “परमेश्वर जल को धरती से उपर उठाता है,
और उसे वर्षा के रूप में बदल देता है।
28 परमेश्वर बादलों से जल बरसाता है,
और भरपूर वर्षा लोगों पर गितरी हैं।
29 कोई भी व्यक्ति नहीं समझ सकता कि परमेश्वर कैसे बादलों को बिखराता है,
और कैसे बिजलियाँ आकाश में कड़कती हैं।
30 देख, परमेश्वर कैसे अपनी बिजली को आकाश में चारों ओर बिखेरता है
और कैसे सागर के गहरे भाग को ढक देता है।
31 परमेश्वर राष्ट्रों को नियंत्रण में रखने
और उन्हें भरपूर भोजन देने के लिये इन बादलों का उपयोग करता है।
32 परमेश्वर अपने हाथों से बिजली को पकड़ लेता है और जहाँ वह चाहता हैं,
वहाँ बिजली को गिरने का आदेश देता है।
33 गर्जन, तूफान के आने की चेतावनी देता है।
यहाँ तक की पशू भी जानते हैं कि तूफान आ रहा है।
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