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17 जिन वस्त्रों को दुष्ट जन जुटाता रहा उन वस्त्रों को सज्जन पहनेगा,
    दुष्ट की चाँदी निर्दोषों में बँटेगी।
18 दुष्ट का बनाया हुआ घर अधिक दिनों नहीं टिकता है,
    वह मकड़ी के जाले सा अथवा किसी चौकीदार के छप्पर जैसा अस्थिर होता है।
19 दुष्ट जन अपनी निज दौलत के साथ अपने बिस्तर पर सोने जाता है,
    किन्तु एक ऐसा दिन आयेगा जब वह फिर बिस्तर में वैसे ही नहीं जा पायेगा।
    जब वह आँख खोलेगा तो उसकी सम्पत्ति जा चुकेगी।

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