Add parallel Print Page Options

17 इसलिए निर्बुद्धि नहीं परन्तु प्रभु की इच्छा के ज्ञान के लिए विवेक प्राप्त करो. 18 दाखरस से मतवाले न हो क्योंकि यह लुचपन है परन्तु पवित्रात्मा से भर जाओ. 19 तब प्रभु के लिए आपस में सारे हृदय से तुम भजन, स्तुतिगान व आत्मिक गीत गाते रहो.

Read full chapter