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13 इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि तुम्हारे लिए मैं जो यातनाएँ भोग रहा हूँ, उन से आशा मत छोड़ बैठना क्योंकि इस यातना में ही तो तुम्हारी महिमा है।

मसीह का प्रेम

14 इसलिए मैं परमपिता के आगे झुकता हूँ। 15 उसी से स्वर्ग में या धरती पर के सभी वंश अपने अपने नाम ग्रहण करते हैं।

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