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28 जो कोई निज धन का भरोसा करता है, झड़ जायेगा वह निर्जीव सूखे पत्ते सा; किन्तु धर्मी जन नयी हरी कोपल सा हरा—भरा ही रहेगा।

29 जो अपने घराने पर विपत्ति लायेगा, दान में उसे वायु मिलेगा और मूर्ख, बुद्धिमान का दास बनकर रहेगा।

30 धर्मी का कर्म—फल “जीवन का वृक्ष” है, और जो जन मनों को जीत लेता है, वही बुद्धिमान है।

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