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24 दुष्ट जन से तू कभी मत होड़कर। उनकी संगत की तू चाहत मत कर। क्योंकि उनके मन हिंसा की योजनाएँ रचते और उनके होंठ दुःख देने की बातें करते हैं।

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बुद्धि से घर का निर्माण हो जाता है, और समझ—बूझ से ही वह स्थिर रहता है।

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