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19 वह सूत कातती
    और निज वस्तु बुनती है।
20 वह सदा ही दीन—दुःखी को दान देती है,
    और अभाव ग्रस्त जन की सहायता करती है।
21 जब शीत पड़ती तो वह अपने परिवार हेतु चिंतित नहीं होती है।
    क्योंकि उसने सभी को उत्तम गर्म वस्त्र दे रख है।

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