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उसका न तो काई नायक है, न ही कोई निरीक्षक न ही कोई शासक है। फिर भी वह ग्रीष्म में भोजन बटोरती है और कटनी के समय खाना जुटाती है।

अरे ओ दीर्घ सूत्री, कब तक तुम यहाँ पड़े ही रहोगे? अपनी निद्रा से तुम कब जाग उठोगे?

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