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शाऊल के सहयात्री अवाक खड़े थे. उन्हें शब्द तो अवश्य सुनाई दे रहा था किन्तु कोई दिखाई नहीं दे रहा था. तब शाऊल भूमि पर से उठा. यद्यपि उसकी आँखें तो खुली थीं, वह कुछ भी देख नहीं पा रहा था. इसलिए उसका हाथ पकड़ कर वे उसे दमिश्क नगर में ले गए. तीन दिन तक वह अंधा रहा. उसने न कुछ खाया और न कुछ पिया.

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