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26 “इस पर वह दास अपने स्वामी के सामने भूमि पर दण्डवत् हो उससे विनती करने लगा, ‘कृपया थोड़ा धीरज रखें, मैं सब कुछ चुका दूँगा.’ 27 उसके स्वामी ने दया से भरकर उसे मुक्त करके उसका सारा कर्ज़ क्षमा कर दिया.

28 “उस मुक्त हुए दास ने बाहर जाते ही उस दास को जा पकड़ा जिसने उससे सौ दीनार कर्ज़ लिए थे. उसने उसे पकड़ कर उसका गला घोंटते हुए कहा, ‘मुझसे जो कर्ज़ लिया है, उसे लौटा दे!’

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