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व्यभिचार

27 “तुम जानते हो कि यह कहा गया है, ‘व्यभिचार मत करो।’(A) 28 किन्तु मैं तुमसे कहता हूँ कि यदि कोई किसी स्त्री को वासना की आँख से देखता है, तो वह अपने मन में पहले ही उसके साथ व्यभिचार कर चुका है। 29 इसलिये यदि तेरी दाहिनी आँख तुझ से पाप करवाये तो उसे निकाल कर फेंक दे। क्योंकि तेरे लिये यह अच्छा है कि तेरे शरीर का कोई एक अंग नष्ट हो जाये बजाय इसके कि तेरा सारा शरीर ही नरक में डाल दिया जाये।

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