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37 स्वयं दाविद उन्हें प्रभु कह कर सम्बोधित कर रहे हैं इसलिए किस भाव में प्रभु दाविद के पुत्र हुए?”

भीड़ उनके इस वाद-विवाद का आनन्द ले रही थी.

शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखण्ड

(मत्ति 23:1-12; लूकॉ 20:45-47)

38 आगे शिक्षा देते हुए मसीह येशु ने कहा, “उन शास्त्रियों से सावधान रहना, जो लम्बे-ढीले-लहराते वस्त्र पहने हुए घूमा करते हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्थलों पर सम्मानपूर्ण नमस्कार की इच्छा रहती है. 39 उन्हें सभागृहों में प्रधान आसन तथा भोज के अवसरों पर मुख्य मुख्य स्थान की आशा रहती है.

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