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13 “बेकार की बलियाँ तुम मुझे मत चढ़ाते रहो। जो सुगंधित सामग्री तुम मुझे अर्पित करते हो, मुझे उससे घृणा है। नये चाँद की दावतें, विश्राम और सब्त मुझ से सहन नहीं हो पाते। अपनी पवित्र सभाओं के बीच जो बुरे कर्म तुम करते हो, मुझे उनसे घृणा है। 14 तुम्हारी मासिक बैठकों और सभाओं से मुझे अपने सम्पूर्ण मन से घृणा है। ये सभाएँ मेरे लिये एक भारी भरकम बोझ सी बन गयी है और इन बोझों को उठाते उठाते अब मैं थक चुका हूँ।

15 “तुम लोग हाथ उठाकर मेरी प्रार्थना करोगे किन्तु मैं तुम्हारी ओर देखूँगा तक नहीं। तुम तोग अधिकाधिक प्रार्थना करोगे, किन्तु मैं तुम्हारी सुनने तक को मना कर दूँगा क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से सने हैं।

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