Add parallel Print Page Options

मेरा मन दु:ख से मोआब के लिये रोता है।
    लोग कहीं शरण पाने को दौड़ रहे हैं।
वे सुदूर जोआर में जाने को भाग रहे हैं।
    लोग दूर के देश एग्लतशलीशिय्या को भाग रहे हैं।
लोग लूहीत की पहाड़ी चढ़ाई पर रोते बिलखाते हुए भाग रहे हैं।
    लोग होरोनैम के मार्ग पर और वे बहुत ऊँचे स्वर में रोते बिलखते हुए जा रहे हैं।
किन्तु निम्रीम का नाला ऐसे सूख गया जैसे रेगिस्तान सूखा होता है।
    वहाँ सभी वृक्ष सूख गये।
कुछ भी हरा नहीं हैं।
सो लोग जो कुछ उनके पास है उसे इकट्ठा करते हैं,
    और मोआब को छोड़ते हैं।
उन वस्तुओं को लेकर वे नाले (पाप्लर या अराबा) से सीमा पार कर रहे हैं।

Read full chapter