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13 मैं भोर तक अपने को शान्त करता रहा।
    वह सिंह की नाई मेरी हड्डियों को तोड़ता है।
एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालता है!
14 मैं कबूतर सा रोता रहा। मैं एक पक्षी जैसा रोता रहा।
    मेरी आँखें थक गयी तो भी मैं लगातर आकाश की तरफ निहारता रहा।
मेरे स्वामी, मैं विपत्ति में हूँ मुझको उबारने का वचन दे।”
15 मैं और क्या कह सकता हूँ मेरे स्वामी ने मुझ को बताया है जो कुछ भी घटेगा,
    और मेरा स्वामी ही उस घटना को घटित करेगा।
मैंने इन विपत्तियों को अपनी आत्मा में झेला है इसलिए मैं जीवन भर विनम्र रहूँगा।

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