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14 मैं कबूतर सा रोता रहा। मैं एक पक्षी जैसा रोता रहा।
    मेरी आँखें थक गयी तो भी मैं लगातर आकाश की तरफ निहारता रहा।
मेरे स्वामी, मैं विपत्ति में हूँ मुझको उबारने का वचन दे।”
15 मैं और क्या कह सकता हूँ मेरे स्वामी ने मुझ को बताया है जो कुछ भी घटेगा,
    और मेरा स्वामी ही उस घटना को घटित करेगा।
मैंने इन विपत्तियों को अपनी आत्मा में झेला है इसलिए मैं जीवन भर विनम्र रहूँगा।
16 हे मेरे स्वामी, इस कष्ट के समय का उपयोग फिर से मेरी चेतना को सशक्त बनाने में कर।
    मेरे मन को सशक्त और स्वस्थ होने में मेरी सहायता कर!
मुझको सहारा दे कि मैं अच्छा हो जाऊँ! मेरी सहायता कर कि मैं फिर से जी उठूँ!

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