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27 शत्रु कभी थका नहीं करता अथवा कभी नीचे नहीं गिरता। शत्रु कभी न तो ऊँघता है और न ही सोता है। उनके हथियारों के कमर बंद सदा कसे रहते हँ। उनके जूतों के तस्में कभी टूटते नहीं हैं। 28 शत्रु के बाण पैने हैं। उनके सभी धनुष बाण छोड़ने के लिये तैयार हैं। उनके घोड़ों के खुर चट्टानों जैसे कठोर हैं। उनके रथों के पीछे धूल के बादल उठा करते हैं।

29 शत्रु गरजता है, और उनका गर्जन सिंह की दहाड़ के जैसा है। वह इतना तीव्र है जितना जवान सिंह का गर्जन। शत्रु जिनके विरुद्ध युद्ध कर रहा है उनके ऊपर गुरर्ा़ता है और उन पर झपट पड़ता है। वह उन्हें वहाँ से घसीट ले जाता है और वहाँ उन्हें बचाने वाला कोई नहीं होता। किन्तु उनके बच पाने की कोई वजह नहीं।

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