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हे विद्रोहियों और झूठी सन्तानों,
    तुम मेरी हँसी उड़ाते हो।
मुझ पर अपना मुँह चिढ़ाते हो।
    तुम मुझ पर जीभ निकालते हो।
तुम सभी लोग हरे पेड़ों के तले झूठे देवताओं के कारण
    कामातुर होते हो।
हर नदी के तीर पर तुम बाल वध करते हो
    और चट्टानी जगहों पर उनकी बलि देते हो।
नदी की गोल बट्टियों को तुम पूजना चाहते हो।
    तुम उन पर दाखमधु उनकी पूजा के लिये चढ़ाते हो।
तुम उन पर बलियों को चढ़ाया करते हो किन्तु तुम उनके बदले बस पत्थर ही पाते हो।
    क्या तुम यह सोचते हो कि मैं इससे प्रसन्न होता हूँ नहीं! यह मुझको प्रसन्न नहीं करता है।
तुम हर किसी पहाड़ी और हर ऊँचे पर्वत पर अपना बिछौना बनाते हो।

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