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25 किन्तु जिसने निर्दोष व्यवस्था का गहन अध्ययन कर लिया है—जो वस्तुत: स्वतंत्रता का विधान है तथा जो उसी में स्थिर रहता है, वह व्यक्ति सुनकर भूलनेवाला नहीं परन्तु समर्थ पालन करने वाला हो जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने हर एक काम में आशीषित होगा.

26 यदि कोई व्यक्ति अपने आप को भक्त समझता है और फिर भी अपनी जीभ पर लगाम नहीं लगाता, वह अपने मन को धोखे में रखे हुए है और उसकी भक्ति बेकार है. 27 हमारे परमेश्वर और पिता की दृष्टि में बिलकुल शुद्ध और निष्कलंक भक्ति यह है: मुसीबत में पड़े अनाथों और विधवाओं की सुधि लेना तथा स्वयं को संसार के बुरे प्रभाव से निष्कलंक रखना.

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