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17 उस समय, यरूशलेम नगर ‘यहोवा का सिंहासन’ कहा जाएगा। सभी राष्ट्र एक साथ यरूशलेम नगर में यहोवा के नाम को सम्मान देने आएंगे। वे अपने हठी और बुरे हृदय के अनुसार अब कभी नहीं चलेंगे। 18 उन दिनों यहूदा का परिवार इस्राएल के परिवार के साथ मिल जायेगा। वे उत्तर में एक देश से एक साथ आएंगे। वे उस देश में आएंगे जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।”

19-20 मैंने अर्थात् यहोवा ने अपने से कहा,

“मैं तुमसे अपने बच्चों का सा व्यवहार करना चाहता हूँ,
    मैं तुम्हें एक सुहावना देश देना चाहता हूँ।
    वह देश जो किसी भी राष्ट्र से अधिक सुन्दर होगा।
मैंने सोचा था कि तुम मुझे ‘पिता’ कहोगे।
    मैंने सोचा था कि तुम मेरा सदैव अनुसरण करोगे।
किन्तु तुम उस स्त्री की तरह हुए जो पतिव्रता नहीं रही।
    इस्राएल के परिवार, तुम मेरे प्रति विश्वासघाती रहे!”
    यह सन्देश यहोवा का था।

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