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23 तब मसीह येशु ने अपने शिष्यों की ओर उन्मुख हो उनसे व्यक्तिगत रूप से कहा, “धन्य हैं वे आँख, जो वह देख रही हैं, जो तुम देख रहे हो 24 क्योंकि सच मानो, अनेक भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने यही देखने की कामना की थी, जो तुम देख रहे हो किन्तु वे इससे वंचित रहे और वे वह सब सुनने की इच्छा करते रहे, जो तुम सुन रहे हो किन्तु न सुन सके.”

सर्वोपरि आज्ञा

25 एक अवसर पर एक वकील ने मसीह येशु को परखने के उद्देश्य से उनके सामने यह प्रश्न रखा: “गुरुवर, अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मैं क्या करूँ?”

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