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16 तुम्हें याद है कि हम मिस्र में कैसे रहे और तुम्हें याद है कि हमने उन देशों से होकर कैसे यात्रा की जो यहाँ तक आने वाले हमारे रास्ते पर थे। 17 तुमने उनकी घृणित चीज़ें अर्थात् लकड़ी, पत्थर, चाँदी, और सोने की बनी देवमूर्तियाँ देखीं। 18 निश्चय कर लो कि आज यहाँ हम लोगों में कोई ऐसा पुरुष, स्त्री, परिवार या परिवार समूह नहीं है जो यहोवा, अपने परमेश्वर के विपरीत जाता हो। कोई भी व्यक्ति उन राष्ट्रों के देवताओं की सेवा करने नहीं जाना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं वे उस पौधे की तरह हैं जो कड़वा, जहरीला फसल पैदा करता है।

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