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13 तेरी भली आँखें कोई दोष नहीं देखती हैं।
    तू पाप करते हुए लोगों के नहीं देख सकता है।
सौ तू उन पापियों की विजय कैसे देख सकता है
    तू कैसे देख सकता है कि सज्जन को दुर्जन पराजित करे?”

14 तूने ही लोगों को ऐसे बनाया है जैसे सागर की अनगिनत मछलियाँ
    जो सागर के छुद्र जीव हैं बिना किसी मुखिया के।
15 शत्रु काँटे और जाल डाल कर उनको पकड़ लेता है।
    अपने जाल में फँसा कर शत्रु उन्हें खींच ले जाता है
    और शत्रु अपनी इस पकड़ से बहुत प्रसन्र होता है।

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