Add parallel Print Page Options

परमेश्वर की इच्छा के अनुसार मसीह येशु के लिए बुलाए गए प्रेरित पौलॉस तथा हमारे भाई सोस्थेनेस की ओर से.

कोरिन्थॉस नगर में स्थापित परमेश्वर की कलीसिया को—वे, जो मसीह येशु में अलग किए गए हैं तथा जिनका उन सबके समान, जो हर जगह हमारे प्रभु तथा उनके प्रभु मसीह येशु की स्तुति करते हैं, पवित्र लोगों के रूप में बुलाया गया है, तुम सबको हमारे पिता परमेश्वर तथा प्रभु मसीह येशु की ओर से अनुग्रह तथा शान्ति.

आभार व्यक्ति

मसीह येशु में तुम्हें दिए गए परमेश्वर के अनुग्रह के लिए मैं तुम्हारे लिए परमेश्वर के प्रति निरन्तर धन्यवाद करता हूँ क्योंकि तुम मसीह येशु में सब प्रकार से सम्पन्न किए गए हो, सारे ज्ञान और उसकी हर बात में; ठीक जिस प्रकार तुममें मसीह येशु के सन्देश की पुष्टि भी हुई है. परिणामस्वरूप इस समय, जब तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के प्रकट होने की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हो, तुममें पवित्रात्मा के द्वारा किसी भी आत्मिक क्षमता का अभाव नहीं है. वही मसीह येशु तुम्हें अन्त तक दृढ़ बनाए रखेंगे कि तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के दिन निर्दोष पाए जाओ. परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं, जिनके द्वारा तुम्हारा बुलावा उनके पुत्र, मसीह येशु हमारे प्रभु की संगति में किया गया है.

कोरिन्थॉस कलीसिया में दलबन्दी

10 प्रियजन, अपने प्रभु मसीह येशु के नाम में मेरी तुमसे विनती है कि तुम में आपसी मेल हो—फूट कहीं भी न हो—तुम मन तथा मत में एक हो 11 क्योंकि तुम्हारे विषय में, प्रियजन, क्लोए परिवार के कुछ सदस्यों द्वारा मुझे यह संकेत दिया गया है कि तुम्हारे मध्य झगड़ा चल रहा है. 12 मेरे कहने का मतलब यह है कि तुममें हर एक का मत अलग है: कोई कहता है, “मैं पौलॉस का शिष्य हूँ,” कोई, “मैं अपोल्लॉस का,” तो कोई, “मैं कैफ़स का,” या “मैं मसीह का शिष्य हूँ.”

13 क्या मसीह का बँटवारा कर दिया गया है? क्या तुम्हारे लिए पौलॉस को क्रूसित किया गया था? या तुम्हारा बपतिस्मा पौलॉस के नाम में किया गया था? 14 मैं परमेश्वर का आभारी हूँ कि क्रिस्पॉस तथा गायस के अतिरिक्त तुममें से किसी को भी मैंने बपतिस्मा नहीं दिया 15 कि कोई भी यह न कह पाए कि तुम्हें मेरे नाम में बपतिस्मा दिया गया. 16 (हाँ, मैंने स्तेफ़ानॉस के परिवार को भी बपतिस्मा दिया है किन्तु इसके अलावा मैंने किसी अन्य को बपतिस्मा दिया हो, इसका मुझे ध्यान नहीं.) 17 मसीह येशु ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए नहीं परन्तु ईश्वरीय सुसमाचार प्रचार के लिए चुना है—वह भी शब्दों के ज्ञान के अनुसार नहीं, ऐसा न हो कि मसीह का क्रूस उसके सामर्थ्य से व्यर्थ हो जाए.

मसीह, परमेश्वर का सामर्थ्य और ज्ञान

18 क्रूस का सन्देश उनके लिए, जो नाश होने पर हैं, मूर्खता है किन्तु हमारे लिए, जो उद्धार के मार्ग पर हैं, परमेश्वर का सामर्थ्य है, 19 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:

मैं ज्ञानियों का ज्ञान नाश कर दूँगा
    तथा समझदारों की समझ को शून्य.

20 कहाँ है ज्ञानी, कहाँ है शास्त्री और कहाँ है इस युग का विवादी? क्या परमेश्वर के सामने संसार का सारा ज्ञान मूर्खता नहीं है? 21 अपने ज्ञान के अनुसार परमेश्वर ने यह असम्भव बना दिया कि मानव अपने ज्ञान के द्वारा उन्हें जान सके, इसलिए परमेश्वर को यह अच्छा लगा कि मनुष्यों के अनुसार मूर्खता के इस सन्देश के प्रचार का उपयोग उन सबके उद्धार के लिए करें, जो विश्वास करते हैं. 22 सबूत के लिए यहूदी चमत्कार-चिह्नों की माँग करते हैं और यूनानी ज्ञान के खोजी हैं 23 किन्तु हम प्रचार करते हैं क्रूसित मसीह का, जो यहूदियों के लिए ठोकर का कारण हैं तथा अन्यजातियों के लिए मूर्खता, 24 किन्तु बुलाए हुओं—यहूदी या यूनानी दोनों ही के लिए यही मसीह परमेश्वर का सामर्थ्य तथा परमेश्वर का ज्ञान हैं 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों की बुद्धि से कहीं अधिक बुद्धिमान तथा परमेश्वर की दुर्बलता मनुष्यों के बल से कहीं अधिक बलवान है.

26 प्रियजन, याद करो कि जब तुम्हें बुलाया गया, उस समय अनेकों में न तो शरीर के अनुसार ज्ञान था, न ही बल और न ही कुलीनता 27 ज्ञानवानों को लज्जित करने के लिए परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में मूर्खता है तथा शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसको, जो संसार की दृष्टि में दुर्बलता है. 28 परमेश्वर ने उनको चुना, जो संसार की दृष्टि में नीचा है, तुच्छ है और जो है ही नहीं कि उसे व्यर्थ कर दें, जो महत्वपूर्ण समझी जाती है; 29 कि कोई भी मनुष्य परमेश्वर के सामने घमण्ड़ न करे. 30 परमेश्वर के द्वारा किए गए काम के फलस्वरूप तुम मसीह येशु में हो, जो परमेश्वर की ओर से हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता तथा छुड़ौती बन गए; 31 पवित्रशास्त्र का लेख है: जो गर्व करता है, वह परमेश्वर में गर्व करे.

प्रियजन, मैं तुम्हारे यहाँ न तो बातों की चतुराई का उपयोग करने आया और न ही उत्तम ज्ञान का प्रदर्शन करने, परन्तु मैं तुम्हारे यहाँ परमेश्वर के भेद का प्रकाशन करने आया था, क्योंकि तुम्हारे बीच मैं इस निश्चय के साथ आया था कि मैं मसीह येशु और उनकी क्रूस की मृत्यु के अलावा किसी भी अन्य विषय को न जानूँ. जब मैं तुम्हारे बीच था, मैं निर्बल था—भयभीत और थरथराता हुआ. मेरा वचन तथा मेरा प्रचार मनुष्य के ज्ञान भरे शब्दों की लुभावनी शैली में नहीं परन्तु पवित्रात्मा तथा सामर्थ्य के प्रमाण में था कि तुम्हारे विश्वास का आधार परमेश्वर का सामर्थ्य हो, न कि मनुष्य का ज्ञान.

पवित्रात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान

फिर भी मैं उन्हें, जो मजबूत हैं, ज्ञान भरा सन्देश देता हूँ परन्तु यह ज्ञान न इस युग का है और न इस युग के शासकों का, जिनका नाश होना तय है. हम परमेश्वर के ज्ञान का—उस रहस्यमय भेद का—जो गुप्त रखा गया है, प्रकट करते हैं, जिसे परमेश्वर ने युगों से पहले हमारी महिमा के लिए तय किया था. इस ज्ञान को इस युग के किसी भी राजा ने न पहचाना. यदि वे इसे पहचान लेते, वे ज्योतिर्मय प्रभु को क्रूसित न करते. किन्तु ठीक जैसा पवित्रशास्त्र का लेख है:

जो कभी आँखों से दिखाई नहीं दिया,
    जो कभी कानों से सुना नहीं गया और जो मनुष्य के हृदय में नहीं उतरा,
वह सब परमेश्वर ने उनके लिए,
    जो उनसे प्रेम करते हैं, तैयार किया है.

10 यह सब परमेश्वर ने हम पर आत्मा के माध्यम से प्रकट किया. आत्मा सबकी, यहाँ तक कि परमेश्वर की गूढ़ बातों की भी खोज करते हैं. 11 मनुष्यों में मनुष्य की अन्तरात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई भी उनके मन की बातों को नहीं जानता. 12 हमें संसार की आत्मा नहीं परन्तु वह आत्मा प्राप्त हुई है, जो परमेश्वर की ओर से हैं कि हम वह सब जान सकें, जो परमेश्वर ने हमें उदारतापूर्वक प्रदान किया है.

13 हम उनके लिए, जो आत्मिक हैं, आत्मिक बातों का वर्णन मनुष्य के ज्ञान के शब्दों के द्वारा नहीं परन्तु आत्मिक शब्दों में करते हैं. 14 बिना आत्मा का व्यक्ति परमेश्वर की आत्मा के विषय की बातों को स्वीकार नहीं करता क्योंकि इन्हें वह मूर्खता मानता है. ये सब उसकी समझ से परे हैं क्योंकि इनकी विवेचना पवित्रात्मा द्वारा की जाती है; 15 किन्तु वह, जो आत्मिक है, हरेक बात की जांच करता है किन्तु स्वयं उसकी जांच कोई नहीं करता:

16 “क्योंकि कौन है वह,
    जिसने प्रभु के मन को जान लिया है कि वह उन्हें निर्देश दे सके?”

किन्तु हम वे हैं, जिनमें मसीह का मन मौजूद है.

कलीसिया में विभाजन

प्रियजन, मैं तुमसे उस स्तर पर बात करने में असमर्थ रहा जिस स्तर पर आत्मिक व्यक्तियों से की जाती है. तुमसे मेरी बात ऐसी थी मानो सांसारिक व्यक्तियों से—मसीह में शिशुओं से. तुम्हें मैंने आहार के लिए दूध दिया न कि ठोस आहार क्योंकि तुममें इसे ग्रहण करने की क्षमता ही न थी. सच तो यह है कि तुममें यह क्षमता अब भी नहीं है क्योंकि तुम अब भी सांसारिक ही हो. जब तुम्हारे बीच जलन तथा झगड़ा है तो क्या तुम सांसारिक न हुए? क्या तुम्हारा स्वभाव केवल मानवीय नहीं? क्योंकि जब तुममें से कोई कहता है, “मैं पौलॉस का हूँ”, या, “मैं अपोल्लॉस का हूँ”, तो इस स्वभाव में क्या तुम बिलकुल मनुष्य ही न हुए?

मसीह के प्रचारक का स्थान

तो फिर क्या है अपोल्लॉस और क्या है पौलॉस? केवल सेवक, जिनके द्वारा तुमने विश्वास किया—हर एक ने प्रभु द्वारा सौंपी गई ज़िम्मेदारी को निभाया मैंने रोपा, अपोल्लॉस ने सींचा किन्तु बढ़त परमेश्वर द्वारा की गई. इसलिए श्रेय योग्य वह नहीं है, जिसने उसे रोपा या जिसने उसे सींचा परन्तु सिर्फ परमेश्वर, जिन्होंने उसको बड़ा किया है. वह, जो रोपता है तथा वह, जो सींचता है एक ही उद्धेश्य के लिए काम करते हैं किन्तु दोनों ही को अपनी-अपनी मेहनत के अनुसार प्रतिफल प्राप्त होगा. हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं, तुम परमेश्वर की भूमि हो. तुम परमेश्वर का भवन हो.

10 परमेश्वर के अनुग्रह के अनुसार मैंने एक कुशल मिस्त्री के समान नींव डाली और अब कोई और उस पर भवन निर्माण कर रहा है किन्तु हर एक व्यक्ति सावधान रहे कि वह इस नींव पर उस भवन का निर्माण कैसे करता है. 11 जो नींव डाली जा चुकी है, उसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति अन्य नींव नहीं डाल सकता—स्वयं मसीह येशु ही वह नींव हैं. 12 यदि कोई इस नींव पर सोने, चांदी, कीमती रत्न, लकड़ी, भूसी या घास से निर्माण करे तो 13 वह दिन सच्चाई को प्रकाश में ला देगा क्योंकि कामों की परख आग के द्वारा की जाएगी. यही आग हर एक के काम को साबित करेगी. 14 यदि किसी के द्वारा बनाया भवन इस नींव पर स्थिर रहता है तो उसे इसका ईनाम प्राप्त होगा. 15 यदि किसी का भवन भस्म हो जाता है तो वह ईनाम से दूर रह जाएगा. हाँ, वह स्वयं तो बच जाएगा किन्तु ऐसे मानो ज्वाला में से होते हुए.

16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो तथा तुममें परमेश्वर का आत्मा वास करता है? 17 यदि कोई परमेश्वर के मन्दिर को नाश करे तो वह भी परमेश्वर द्वारा नाश कर दिया जाएगा क्योंकि परमेश्वर का मन्दिर पवित्र है और स्वयं तुम वह मन्दिर हो.

निष्कर्ष

18 धोखे में न रहो. यदि तुममें से कोई यह सोच बैठा है कि वह सांसारिक बातों के अनुसार बुद्धिमान है, तो सही यह होगा कि वह स्वयं को मूर्ख बना ले कि वह बुद्धिमान बन जाए 19 क्योंकि सच यह है कि सांसारिक ज्ञान परमेश्वर की दृष्टि में मूर्खता है; जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: वही हैं, जो बुद्धिमानों को उनकी चतुराई में फँसा देते हैं. 20 और यह भी: परमेश्वर जानते हैं कि बुद्धिमानों के विचार व्यर्थ हैं. 21 इसलिए कोई भी मनुष्य की उपलब्धियों का गर्व न करे. सब कुछ तुम्हारा ही है: 22 चाहे पौलॉस हो या अपोल्लॉस या कैफ़स, चाहे वह संसार हो या जीवन-मृत्यु, चाहे वह वर्तमान हो या भविष्य—सब कुछ तुम्हारा ही है 23 और तुम मसीह के हो और मसीह परमेश्वर के.

मसीह के प्रेरित

सही तो यह होगा कि हमें मसीह येशु का भण्ड़ारी मात्र समझा जाए, जिन्हें परमेश्वर के भेदों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. भण्ड़ारी को विश्वासयोग्य होना ज़रूरी है. यह मेरी दृष्टि में महत्वहीन है कि मेरी परख तुम्हारे द्वारा की जाए या किसी न्यायालय द्वारा. बल्कि मैं स्वयं अपनी परख नहीं करता. मेरी अन्तरात्मा मुझ में कोई दोष नहीं पाती फिर भी इससे मैं निर्दोष साबित नहीं हो जाता. प्रभु ही हैं, जो मेरी परख करते हैं. इसलिए समय से पहले अर्थात् प्रभु के आगमन तक कोई किसी की परख न करे. प्रभु ही अन्धकार में छिपे सच प्रकाशित करेंगे तथा वही मनुष्य के हृदय के उद्धेश्य भी प्रकट करेंगे. तब परमेश्वर की ओर से हर एक व्यक्ति को प्रशंसा प्राप्त होगी.

प्रियजन, मैंने तुम्हारे ही हित में अपना तथा अपोल्लॉस का उदाहरण प्रस्तुत किया है कि इसके द्वारा तुम इस बात से सम्बन्धित शिक्षा ले सको: पवित्र अभिलेख की मर्यादा का उल्लंघन न करना कि तुम एक का पक्ष ले दूसरे का तिरस्कार न करने लगो. कौन कहता है कि तुम अन्यों से श्रेष्ठ हो? क्या है तुम्हारे पास, जो तुम्हें किसी के द्वारा दिया नहीं गया? जब यह तुम्हें किसी के द्वारा ही दिया गया है तो तुम घमण्ड़ ऐसे क्यों भरते हो मानो यह तुम्हें किसी के द्वारा नहीं दिया गया? तुम तो यह सोच कर ही सन्तुष्ट हो गए कि तुम्हारी सारी ज़रूरतों की पूर्ति हो चुकी—तुम सम्पन्न हो गए हो, हमारे सहयोग के बिना ही तुम राजा बन गए हो! उत्तम तो यही होता कि तुम वास्तव में राजा बन जाते और हम भी तुम्हारे साथ शासन करते. मुझे ऐसा लग रहा है कि परमेश्वर ने हम प्रेरितों को विजय-यात्रा में मृत्युदण्ड प्राप्त व्यक्तियों के समान सबसे अन्तिम स्थान पर रखा है. हम सारी सृष्टि, स्वर्गदूतों तथा मनुष्यों के सामने तमाशा बन गए हैं. 10 हम मसीह के लिए मूर्ख हैं, किन्तु तुम मसीह में एक होकर बुद्धिमान हो! हम दुर्बल हैं और तुम बलवान! तुम आदर पाते हो और हम तिरस्कार! 11 इस समय भी हम भूखे-प्यासे और अपर्याप्त वस्त्रों में हैं, सताए जाते तथा मारे-मारे फिरते हैं. 12 हम मेहनत करते हैं तथा अपने हाथों से काम करते हैं. जब हमारी बुराई की जाती है, हम आशीर्वाद देते हैं. हम सताए जाते हैं किन्तु धीरज से सहते हैं. 13 जब हमारी निन्दा की जाती है तो हम विनम्रता से उत्तर देते हैं. हम तो मानो इस संसार का मैल तथा सबके लिए कूड़ा-कर्कट बन गए हैं.

एक विनती

14 यह सब मैं तुम्हें लज्जित करने के उद्धेश्य से नहीं लिख रहा परन्तु अपनी प्रिय सन्तान के रूप में तुम्हें सावधान कर रहा हूँ. 15 मसीह में तुम्हारे दस हज़ार शिक्षक तो हो सकते हैं किन्तु इतने पिता नहीं. मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार के कारण मैं तुम्हारा पिता बन गया हूँ. 16 मेरी तुमसे विनती है कि तुम मेरे जैसी चाल चलो. 17 इसीलिए मैंने तिमोथियॉस को तुम्हारे पास भेजा है, जो मेरा प्रिय तथा प्रभु में विश्वासयोग्य पुत्र है. वही तुम्हें मसीह येशु में मेरी जीवनशैली की याद दिलाएगा—ठीक जैसी शिक्षा इसके विषय में मैं हर जगह, हर एक कलीसिया में देता हूँ.

18 तुममें से कुछ तो अहंकार में फूले नहीं समा रहे मानो मैं वहाँ आऊँगा ही नहीं. 19 यदि प्रभु ने चाहा तो मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास आऊँगा. तब न केवल इन अहंकारियों की शिक्षा परन्तु उनका सामर्थ्य भी मेरे सामने स्पष्ट हो जाएगा. 20 परमेश्वर का राज्य मात्र शब्दों में नहीं परन्तु सामर्थ्य में निहित है. 21 तो क्या चाहते हो तुम? मैं तुम्हारे पास छड़ी लेकर आऊँ या नम्रता के भाव में प्रेम के साथ?

परिवार में व्यभिचार

गैर-कानूनी व्यक्ति निष्कासित किया जाए

तुम्हारे बीच में हो रहा वेश्यागामी हर जगह चर्चा का विषय बन गया है. वह भी ऐसा यौनाचार, जो अन्यजातियों तक में नहीं पाया जाता—किसी ने तो अपने पिता की स्त्री को ही रख लिया है, इसके अलावा इस पर लज्जित होने के बजाय तुम्हें इसका गर्व है! ऐसे व्यक्ति को तो तुम्हारे बीच से निकाल देना चाहिए था. शारीरिक रूप से अनुपस्थित होने पर भी मैं तुम्हारे बीच आत्मा में उपस्थित हूँ और मैं उस बुरा काम करने वाले के विरुद्ध अपना निर्णय ऐसे दे चुका हूँ मानो मैं स्वयं वहाँ उपस्थित हूँ. जब तुम प्रभु मसीह येशु के नाम में इकट्ठा होते हो—और मसीह येशु के सामर्थ्य के साथ आत्मा में मैं तुम्हारे बीच, तब उस बुरा काम करने वाले को शैतान के हाथों सौंप दिया जाए कि उसका शरीर तो नाश हो जाए किन्तु प्रभु के दिन उसकी आत्मा का उद्धार हो.

तुम्हारा घमण्ड़ करना बिलकुल भी अच्छा नहीं है. क्या तुम नहीं जानते कि थोड़े से ख़मीर से ही पूरा गुंथा हुआ आटा ख़मीर हो जाता है? निकाल फेंको इस ख़मीर को कि तुम एक नया गुंथा हुआ आटा बन जाओ, जैसे कि तुम अख़मीरी हो ही, क्योंकि हमारा फ़सह वास्तव में मसीह की बलि द्वारा पूरा हुआ है. हम बुराई व दुष्टता के पुराने ख़मीर से नहीं परन्तु सीधाई व सच्चाई की अख़मीरी रोटी से उत्सव मनाएँ.

अपने पत्र में मैंने तुम्हें लिखा था कि बुरा काम करने वालों से कोई सम्बन्ध न रखना. 10 मेरा मतलब यह बिलकुल न था कि तुम संसार के उन सभी व्यक्तियों से, जो बुरा काम करने वाले, लोभी, ठग या मूर्तिपूजक हैं, कोई सम्बन्ध न रखना, अन्यथा तुम्हें तो संसार से ही बाहर हो जाना पड़ेगा. 11 वास्तव में मेरा मतलब यह था कि तुम्हारा ऐसे किसी साथी विश्वासी के साथ, जो बुरा काम करने वाले, लोभी, मूर्तिपूजक, बकवादी, पियक्कड़ या ठग हो, सम्बन्ध रखना तो दूर, भोजन करना तक ठीक न होगा.

12 कलीसिया से बाहर के व्यक्तियों का न्याय भला मैं क्यों करूँ? मुझे दूसरों से क्या काम? किन्तु निश्चित तौर पर यह तुम्हारा काम है कि तुम उनकी बारीकी से जांच करो, जो कलीसिया में हैं. 13 बाहरी व्यक्तियों का न्याय परमेश्वर करेंगे. बाहर निकाल दो अपने बीच से कुकर्मी को!

विश्वासी तथा सांसारिक न्यायालय

तुम्हारे बीच झगड़ा उठने की स्थिति में कौन अपना फैसला पवित्र लोगों के सामने न लाकर सांसारिक न्यायाधीश के सामने ले जाने का दुस्साहस करेगा? क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि संसार का न्याय पवित्र लोगों द्वारा किया जाएगा? यदि संसार का न्याय तुम्हारे द्वारा किया जाएगा तो क्या तुम इन छोटे-छोटे झगड़ों को सुलझाने में सक्षम नहीं? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि हम स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे? तो उसकी तुलना में ये सांसारिक झगड़े क्या हैं? यदि तुम्हारे बीच सांसारिक झगड़े हैं ही तो क्या तुम्हारे बीच कोई भी ऐसा बुद्धिमान नहीं, जो अपने साथी विश्वासी के झगड़े को विवेक से सुलझा सके? यह कह कर तुम्हें लज्जित करना ही मेरा उद्धेश्य है. क्या तुम्हारे मध्य एक भी ऐसा बुद्धिमान व्यक्ति नहीं, जो भाई-भाई के मध्य उठे विवाद को सुलझा सके—एक भी नहीं! यहाँ तो एक विश्वासी दूसरे को न्यायपालिका में घसीट रहा है और वह भी अन्यजातियों के सामने!

यदि तुम्हारे बीच झगड़े चल रहे हैं, तो तुम पहले ही हार चुके हो. इसकी बजाय तुम ही अन्याय क्यों नहीं सह लेते और इसकी आशा तुम ही धोखा खाते क्यों नहीं रह जाते? इसके विपरीत तुम स्वयं ही अन्याय तथा धोखा कर रहे हो और वह भी विश्वासियों के साथ!

क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि दुराचारी परमेश्वर के राज्य के अधिकारी न होंगे? इस भ्रम में न रहना: वेश्यागामी, मूर्तिपूजक, व्यभिचारी, परस्त्रीगामी, समलैंगिक, 10 चोर, लोभी, शराबी, बकवादी और ठग परमेश्वर के राज्य के अधिकारी न होंगे. 11 ऐसे ही थे तुममें से कुछ किन्तु अब तुम धोकर स्वच्छ किए गए, परमेश्वर के लिए अलग किए गए तथा प्रभु मसीह येशु तथा हमारे परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किए गए काम के परिणामस्वरूप धर्मी घोषित किए गए हो.

वेश्यागामी

12 कदाचित कोई यह कहे, “मेरे लिए सब कुछ व्यवस्था के हिसाब से सही है.” ठीक है, किन्तु मैं कहता हूँ कि तुम्हारे लिए सब कुछ लाभदायक नहीं है. मैं भी कह सकता हूँ कि मेरे लिए सब कुछ व्यवस्था के हिसाब से सही है किन्तु मैं नहीं चाहूँगा कि मैं किसी भी वस्तु का दास बनूँ. 13 तब कदाचित कोई कहे, “भोजन पेट के लिए तथा पेट भोजन के लिए है.” ठीक है, किन्तु मैं कहता हूँ कि परमेश्वर दोनों ही को समाप्त कर देंगे. सच यह भी है कि शरीर वेश्यागामी के लिए नहीं परन्तु प्रभु के लिए है तथा प्रभु शरीर के रक्षक हैं. 14 परमेश्वर ने अपने सामर्थ्य से न केवल प्रभु को जीवित किया, उसी सामर्थ्य से वह हमें भी जीवित करेंगे. 15 क्या तुम्हें मालूम नहीं कि तुम सबका शरीर मसीह के अंग हैं? तो क्या मैं मसीह के अंगों को वेश्या के अंग बना दूँ? ऐसा बिलकुल न हो! 16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि वह, जो वेश्या से जुड़ा होता है, उसके साथ एक तन हो जाता है? क्योंकि परमेश्वर ने कहा है, “वे दोनों एक तन होंगे.” 17 वह, जो प्रभु से जुड़ा होता है, उनसे एक आत्मा हो जाता है.

18 वेश्यागामी से दूर भागो! मनुष्य द्वारा किए गए अन्य पाप उसके शरीर को प्रभावित नहीं करते किन्तु वेश्यावृत्ति करनेवाला अपने ही शरीर के विरुद्ध पाप करता है. 19 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि तुम्हारा शरीर पवित्रात्मा का—जिनका तुम्हारे अंदर वास है तथा जो तुम्हें परमेश्वर से प्राप्त हुए हैं—मन्दिर है? तुम पर तुम्हारा अधिकार नहीं 20 क्योंकि तुम्हें दाम दे कर मोल लिया गया है; इसलिए अपने शरीर के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो.

विवाह और कौमार्य

अब वे विषय जिनके सम्बन्ध में तुमने मुझसे लिख कर पूछा है: पुरुष के लिए उचित तो यही है कि वह स्त्री का स्पर्श ही न करे किन्तु व्यभिचार से बचने के लिए हर एक पुरुष की अपनी पत्नी तथा हर एक स्त्री का अपना पति हो. यह आवश्यक है कि पति अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करे तथा इसी प्रकार पत्नी भी अपने पति के प्रति. पत्नी ने अपने पति को अपने शरीर पर अधिकार दिया है, वैसे ही पति ने अपनी पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार दिया है. पति पत्नी एक दूसरे को शारीरिक सम्बन्धों से दूर न रखें—सिवाय आपसी सहमति से प्रार्थना के उद्धेश्य से सीमित अवधि के लिए. इसके तुरन्त बाद वे दोबारा साथ हो जाएँ कि कहीं संयम टूटने के कारण शैतान उन्हें परीक्षा में न फँसा ले. यह मैं सुविधा-अनुमति के रूप में कह रहा हूँ—आज्ञा के रूप में नहीं. वैसे तो मेरी इच्छा तो यही है कि सभी पुरुष ऐसे होते जैसा स्वयं मैं हूँ किन्तु परमेश्वर ने तुममें से हर एक को भिन्न-भिन्न क्षमताएँ प्रदान की हैं.

अविवाहितों तथा विधवाओं से मेरा कहना है कि वे अकेले ही रहें—जैसा मैं हूँ किन्तु यदि उनके लिए संयम रखना सम्भव नहीं तो वे विवाह कर लें—कामातुर होकर जलते रहने की बजाय विवाह कर लेना ही उत्तम है.

10 विवाहितों के लिए मेरा निर्देश है—मेरा नहीं परन्तु प्रभु का: पत्नी अपने पति से सम्बन्ध न तोड़े. 11 यदि पत्नी का सम्बन्ध टूट ही जाता है तो वह दोबारा विवाह न करे या पति से मेल-मिलाप कर ले. पति अपनी पत्नी का त्याग न करे. 12 मगर बाकियों से मेरा कहना है कि यदि किसी साथी विश्वासी की पत्नी विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत हो तो पति उसका त्याग न करे. 13 यदि किसी स्त्री का पति विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए राज़ी हो तो पत्नी उसका त्याग न करे; 14 क्योंकि अविश्वासी पति अपनी विश्वासी पत्नी के कारण पवित्र ठहराया जाता है. इसी प्रकार अविश्वासी पत्नी अपने विश्वासी पति के कारण पवित्र ठहराई जाती है. यदि ऐसा न होता तो तुम्हारी सन्तान अशुद्ध रह जाती; किन्तु इस स्थिति में वह परमेश्वर के लिए अलग की गई है.

15 फिर भी यदि अविश्वासी दम्पति अलग होना चाहे तो उसे जाने दिया जाए. कोई भी विश्वासी भाई या विश्वासी बहन इस बन्धन में बँधे रहने के लिए बाध्य नहीं. परमेश्वर ने हमें शान्ति से भरे जीवन के लिए बुलाया है. 16 पत्नी यह सम्भावना कभी भुला न दे: पत्नी अपने पति के उद्धार का साधन हो सकती है, वैसे ही पति अपनी पत्नी के उद्धार का.

17 परमेश्वर ने जिसे जैसी स्थिति में रखा है तथा जिस रूप में उसे बुलाया है, वह उसी में बना रहे. सभी कलीसियाओं के लिए मेरा यही निर्देश है. 18 क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जिसका पहले से ही ख़तना हुआ था? वह अब खतनारहित न बने. क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जो ख़तनारहित है? वह अपना ख़तना न कराए. 19 न तो ख़तना कराने का कोई महत्व है और न ख़तनारहित होने का. महत्व है तो मात्र परमेश्वर की आज्ञा-पालन का. 20 हर एक उसी अवस्था में बना रहे, जिसमें उसको बुलाया गया था. 21 क्या तुम्हें उस समय बुलाया गया था, जब तुम दास थे? यह तुम्हारे लिए चिन्ता का विषय न हो किन्तु यदि दासत्व से स्वतन्त्र होने का सुअवसर आए तो इस सुअवसर का लाभ अवश्य उठाओ. 22 वह, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह दास था, अब प्रभु में स्वतन्त्र किया हुआ व्यक्ति है; इसी प्रकार, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह स्वतन्त्र था, अब वह मसीह का दास है. 23 तुम दाम देकर मोल लिए गए हो इसलिए मनुष्य के दास न बन जाओ. 24 प्रियजन, तुममें से हर एक उसी अवस्था में, जिसमें उसे बुलाया गया था, परमेश्वर के साथ जुड़ा रहे.

25 कुँवारियों के सम्बन्ध में मेरे पास परमेश्वर की ओर से कोई आज्ञा नहीं है किन्तु मैं, जो परमेश्वर की कृपा के कारण विश्वसनीय हूँ, अपनी ओर से यह कहना चाहता हूँ: 26 वर्तमान संकट के कारण मेरे विचार से पुरुष के लिए उत्तम यही होगा कि वह जिस स्थिति में है, उसी में बना रहे. 27 यदि तुम विवाहित हो तो पत्नी का त्याग न करो. यदि अविवाहित हो तो पत्नी खोजने का प्रयास न करो. 28 यदि तुम विवाह करते ही हो तो भी पाप नहीं करते. यदि कोई कुँवारी कन्या विवाह करती है तो यह पाप नहीं है. फिर भी इनके साथ सामान्य वैवाहिक जीवन सम्बन्धी झंझट लगे रहेंगे और मैं वास्तव में तुम्हें इन्हीं से बचाने का प्रयास कर रहा हूँ.

29 प्रियजन, मेरा मतलब यह है कि थोड़ा ही समय शेष रह गया है इसलिए अब से वे, जो विवाहित हैं ऐसे रहें, मानो अविवाहित हों. 30 जो शोकित हैं उनका शोक प्रकट न हो; जो आनन्दित हैं उनका आनन्द छुपा रहे और जो मोल ले रहे हैं, वे ऐसे हो जाएँ मानो उनके पास कुछ भी नहीं है. 31 जिनका लेन-देन सांसारिक वस्तुओं से है, वे उनमें लीन न हो जाएँ क्योंकि संसार के इस वर्तमान स्वरूप का नाश होता चला जा रहा है.

32 मेरी इच्छा है कि तुम सांसारिक जीवन की अभिलाषाओं से मुक्त रहो. उसके लिए, जो अविवाहित है, प्रभु सम्बन्धी विषयों का ध्यान रखना सम्भव है कि वह प्रभु को संतुष्ट कैसे कर सकता है; 33 किन्तु वह, जो विवाहित है, उसका ध्यान संसार सम्बन्धित विषयों में ही लगा रहता है कि वह अपनी पत्नी को प्रसन्न कैसे करे, 34 उसकी रुचियां बँटी रहती हैं. उसी प्रकार पतिहीन तथा कुँवारी स्त्री की रुचियां प्रभु से सम्बन्धित विषयों में सीमित रह सकती हैं—और इसके लिए वह शरीर और आत्मा में पवित्र रहने में प्रयास करती रहती है, किन्तु वह स्त्री, जो विवाहित है, संसार सम्बन्धी विषयों का ध्यान रखती है कि वह अपने पति को प्रसन्न कैसे करे. 35 मैं यह सब तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रहा हूँ—किसी प्रकार से फँसाने के लिए नहीं परन्तु इसलिए कि तुम्हारी जीवनशैली आदर्श हो तथा प्रभु के प्रति तुम्हारा समर्पण एक चित्त होकर रहे.

36 यदि किसी को यह लगे कि वह अपनी पुत्री के विवाह में देरी करने के द्वारा उसके साथ अन्याय कर रहा है, क्योंकि उसकी आयु ढल रही है, वह वही करे, जो वह सही समझता है—वह उसे विवाह करने दे. यह कोई पाप नहीं है. 37 किन्तु वह, जो बिना किसी बाधा के दृढ़संकल्प है, अपनी इच्छा अनुसार निर्णय लेने की स्थिति में है तथा जिसने अपनी पुत्री का विवाह न करने का निश्चय कर लिया है, उसका निर्णय सही है. 38 इसलिए जो अपनी पुत्री का विवाह करता है, उसका निर्णय भी सही है तथा जो उसका विवाह न कराने का निश्चय करता है, वह और भी सही है.

39 पत्नी तब तक पति से जुड़ी रहती है, जब तक पति जीवित है. यदि पति की मृत्यु हो जाए तो वह अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने के लिए स्वतन्त्र है—किन्तु ज़रूरी यह है कि वह पुरुष भी प्रभु में विश्वासी ही हो. 40 मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि वह स्त्री उसी स्थिति में बनी रहे, जिसमें वह इस समय है. वह इसी स्थिति में सुखी रहेगी. यह मैं इस विश्वास के अन्तर्गत कह रहा हूँ कि मुझ में भी परमेश्वर की आत्मा वास करती है.