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सच्चाई के विरोध में हम कुछ भी नहीं कर सकते. हम सच के पक्षधर ही रह सकते हैं. हम अपने कमज़ोर होने तथा तुम्हारे समर्थ होने पर आनन्दित होते हैं और यह प्रार्थना भी करते हैं कि तुम सिद्ध बन जाओ. 10 इस कारण दूर होते हुए भी मैं तुम्हें यह सब लिख रहा हूँ कि वहाँ उपस्थिति होने पर मुझे प्रभु द्वारा दिए गए अधिकार का प्रयोग कठोर भाव में न करना पढ़े. इस अधिकार का उद्धेश्य है उन्नत करना, न कि नाश करना.

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