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शास्त्री शापान, राजा योशिय्याह के पास आया और उसे बताया जो हुआ था। शापान ने कहा, “तुम्हारे सेवकों ने मन्दिर से मिले धन को लिया और उसे उन कारीगरों को दिया जो यहोवा के मन्दिर की देख—रेख कर रहे थे।” 10 तब शास्त्री शापान ने राजा से कहा, “याजक हिलकिय्याह ने मुझे यह पुस्तक भी दी है।” तब शापान ने राजा को पुस्तक पढ़ कर सुनाई।

11 जब राजा ने व्यवस्था की पुस्तक के शब्दों को सुना, उसने अपना दुःख और परेशानी प्रकट करने के लिये अपने वस्त्रों को फाड़ डाला।

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