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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
2 इतिहास 23:16-35:15

16 तब यहोयादा ने राजा औऱ सभी लोगों के साथ एक सन्धि की। सभी ने स्वीकार किया कि वे यहोवा के लोग रहेंगे। 17 सभी लोग बाल की मूर्ति के मन्दिर में गए और उसे उखाड़ डाला। उन्होंने बाल के मन्दिर की वेदियों और मूर्तियों को तोड़ डाला। उन्होंने बाल की वेदी के सामने बाल के याजक मत्तान को मार डाला।

18 तब यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर के लिये उत्तरदायी याजकों को चुना। वे याजक लेवीशंशी थे और दाऊद ने उन्हें यहोवा के मन्दिर के प्रति उत्तरदायी होने का कार्य सौंपा था। उन याजकों को होमबलि मूसा के आदेश के अनुसार यहोवा को चढ़ानी थी। वे अति प्रसन्नता से दाऊद के आदेश के अनुसार गाते हुए बलि चढ़ाते थे। 19 यहोयादा ने यहोवा के मन्दिर के द्वार पर द्वारपाल रखे जिससे कोई व्यक्ति जो किसी दृष्टि से शुद्ध नहीं था मन्दिर में नहीं जा सकता था।

20 यहोयादा ने सेना के नायकों, प्रमुखों, लोगों के प्रशासकों और देश के सभी लोगों को अपने साथ लिया। तब यहोयादा ने राजा को यहोवा के मन्दिर से बाहर निकाला और वे ऊपरी द्वार से राजमहल में गए। उस स्थान पर उन्होंने राजा को गद्दी पर बिठाया। 21 यहूदा के सभी लोग बहुत प्रसन्न थे और यरूशलेम नगर में शान्ति रही क्योंकि अतल्याह तलवार से मार दी गई थी।

योआश फिर मन्दिर बनाता है

24 योआश जब राजा बना सात वर्ष का था। उसने यरूशलेम में चालीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम सिब्या था। सिब्या बेर्शेबा नगर की थी। योआश यहोवा के सामने तब तक ठीक काम करता रहा जब तक याजक यहोयादा जीवित रहा। यहोयादा ने योआश के लिये दो पत्नियाँ चुनीं। यहोआश के पुत्र और पुत्रियाँ थीं।

तब कुछ समय बाद, योआश ने यहोवा का मन्दिर दुबारा बनाने का निश्चय किया। योआश ने याजकों और लेवीवंशियों को एक साथ बुलाया। उसने उनसे कहा, “यहूदा के नगरों में जाओ और उस धन को इकट्ठा करो जिसका भुगतान इस्राएल के लोग हर वर्ष करते हैं। उस धन का उपयोग परमेश्वर के मन्दिर को दुबारा बनाने में करो। शीघ्रता करो औऱ इसे पूरा कर लो।” किन्तु लेवीवंशियों ने शीघ्रता नहीं की।

इसलिये राजा योआश ने प्रमुख याजक यहोयादा को बुलाया। राजा ने कहा, “यहोयादा, तुमने लेवीवंशियों को यहूदा और यरूशलेम से कर का धन लाने को प्रेरित क्यों नहीं किया यहोवा के सेवक मूसा औऱ इस्राएल के लोगों ने पवित्र तम्बू के लिये इस कर के धन का उपयोग किया था।”

बीते काल में अतल्याह के पुत्र, परमेश्वर के मन्दिर में बलपूर्वक घुस गए थे। उन्होंने यहोवा के मन्दिर की पवित्र चीज़ों का उपयोग अपने बाल देवताओं की पूजा के लिये किया था। अतल्याह एक दुष्ट स्त्री थी।

राजा योआश ने एक सन्दूक बनाने और उसे यहोवा के मन्दिर के द्वार के बाहर रखने का आदेश दिया। तब लेवीवंशियों ने यहूदा और यरूशलेम में यह घोषणा की। उन्होंने लोगों से कर का धन यहोवा के लिये लाने को कहा। यहोवा के सेवक मूसा ने इस्राएल के लोगों से मरुभूमि में रहते समय जो कर के रुप में धन माँगा था उतना ही यह धन है। 10 सभी प्रमुख और सभी लोग प्रसन्न थे। वे धन लेकर आए और उन्होंने उसे सन्दूक में डाला। वे तब तक देते रहे जब तक सन्दूक भर नहीं गया। 11 तब लेवीवंशियों को राजा के अधिकारियों के सामने सन्दूक ले जाना पड़ा। उन्होंने देखा कि सन्दूक धन से भऱ गया है। राजा के सचिव और प्रमुख याजक के अधिकारी आए और उन्होंने धन को सन्दूक से निकाला। तब वे सन्दूक को अपनी जगह पर फिर वापस ले गए। उन्होंने यह बार—बार किया और बहुत धन बटोरा। 12 तब राजा योआश और यहोयादा ने वह धन उन लोगों को दिया जो यहोवा के मन्दिर को बनाने का कार्य कर रहे थे और यहोवा के मन्दिर को बनाने में कार्य करने वालों ने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कुशल बढ़ई और लकड़ी पर खुदाई का काम करने वालों को मजदूरी पर रखा। उन्होंने यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने के लिये कांसे और लोहे का काम करने की जानकारी रखने वालों को भी मजदूरी पर रखा।

13 काम की निगरानी रखने वाले व्यक्ति विश्वसनीय थे। यहोवा के मन्दिर को दुबारा बनाने का काम सफल हुआ। उन्होंने परमेश्वर के मन्दिर को जैसा वह पहले था, वैसा ही बनाया और पहले से अधिक मजबूत बनाया। 14 जब कारीगरों ने काम पूरा कर लिया तो वे उस धन को जो बचा था, राजा योआश और यहोयादा के पास ले आए। उसका उपयोग उन्होंने यहोवा के मन्दिर के लिये चीज़ें बनाने के लिये किया। वे चीज़ें मन्दिर के सेवाकार्य में और होमबलि चढ़ाने में काम आती थीं। उन्होंने सोने और चाँदी के कटोरे और अन्य वस्तुएँ बनाईं। याजकों ने यहोवा के मन्दिर में हर एक संध्या को होमबलि तब तक चढ़ाई जब तक यहोयादा जीवित रहा।

15 यहोयादा बूढ़ा हुआ। उसने बहुत लम्बी उम्र बिताई तब वह मरा। यहोयादा जब मरा, वह एक सौ तीस वर्ष का था। 16 लोगों ने यहोयादा को दाऊद के नगर में वहाँ दफनाया जहाँ राजा दफनाए जाते हैं। लोगों ने यहोयादा को वहाँ दफनाया क्योंकि अपने जीवन में उसने परमेश्वर और परमेश्वर के मन्दिर के लिये इस्राएल में बहुत अच्छे कार्य किये।

17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के प्रमुख आए और वे राजा योआश के सामने झुके। राजा ने इन प्रमुखों की सुनी। 18 राजा औऱ प्रमुखों ने उस यहोवा, परमेश्वर के मन्दिर को अस्वीकार कर दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। उन्होंने अशेरा—स्तम्भ और अन्य मूर्तियों की पूजा आरम्भ की। परमेश्वर यहूदा और यरूशलेम के लोगों पर क्रोधित हुआ क्योंकि राजा औऱ वे प्रमुख अपराधी थे। 19 परमेश्वर ने लोगों के पास नबियों को उन्हें यहोवा की ओर लौटाने के लिये भेजा। नबियों ने लोगों को चेतावनी दी। किन्तु लोगों ने सुनने से इन्कार कर दिया।

20 परमेश्वर की आत्मा जकर्याह पर उतरी। जकर्याह का पिता याजक यहोयादा था। जकर्याह लोगों के सामने खड़ा हुआ और उसने कहा, “जो यहोवा कहता है वह यह है: ‘तुम लोग यहोवा का आदेश पालन करने से क्यों इन्कार करते हो तुम सफल नहीं होगे। तुमने यहोवा को छोड़ा है। इसलिये यहोवा ने भी तुम्हें छोड़ दिया है!’”

21 लेकिन लोगों ने जकर्याह के विरुद्ध योजना बनाई। राजा ने जकर्याह को मार डालने का आदेश दिया, अत: उन्होंने उस पर तब तक पत्थर मारे जब तक वह मर नहीं गया। लोगों ने यह मन्दिर के आँगन में किया। 22 राजा योआश ने अपने ऊपर यहोयादा की दयालुता को भी याद नहीं रखा। यहोयादा जकर्याह का पिता था। किन्तु योआश ने यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला। मरने के पहले जकर्याह ने कहा, “यहोवा उस पर ध्यान दे जो तुम कर रहे हो और तुम्हें दण्ड दे!”

23 वर्ष के अन्त में अराम की सेना योआश के विरुद्ध आई। उन्होंने यहूदा और यरूशलेम पर आक्रमण किया और लोगों के सभी प्रमुखों को मार डाला। उन्होंने सारी कीमती चीज़ें दमिश्क के राजा के पास भेज दीं। 24 अराम की सेना बहुत कम समूहों में आई थी किन्तु यहोवा ने उसे यहूदा की बहुत बड़ी सेना को हराने दिया। यहोवा ने यह इसलिये किया कि यहूदा के लोगों ने यहोवा परमेश्वर को छोड़ दिया जिसका अनुसरण उनके पूर्वज करते थे। इस प्रकार योआश को दण्ड मिला। 25 जब अराम के लोगों ने योआश को छोड़ा, वह बुरी तरह घायल था। योआश के अपने सेवकों ने उसके विरुद्ध योजना बनाई। उन्होंने ऐसा इसलिये किया कि योआश ने याजक यहोयादा के पुत्र जकर्याह को मार डाला था। सेवकों ने योआश को उसकी अपनी शैया पर ही मार डाला। योआश के मरने के बाद लोगों ने उसे दाऊद के नगर में दफनाया। किन्तु लोगों ने उसे उस स्थान पर नहीं दफनाया जहाँ राजा दफनाये जाते हैं।

26 जिन सेवकों ने योआश के विरुद्ध योजना बनाई, वे ये हैं जाबाद और यहोजाबाद। जाबाद की माँ का नाम शिमात था। शिमात अम्मोन की थी। यहोजाबाद की माँ का नाम शिम्रित था। शिम्रित मोआब की थी। 27 योआश के पुत्रों की कथा, उसके विरुद्ध बड़ी भविष्यवाणियाँ और उसने फिर परमेश्वर का मन्दिर कैसे बनाया, राजाओं के व्याख्या नामक पुस्तक में लिखा है। उसके बाद अमस्याह नया राजा हुआ। अमस्याह योआश का पुत्र था।

यहूदा का राजा अमस्याह

25 अमस्याह राजा बनने के समय पच्चीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम में उन्त्तीस वर्ष तक शासन किया। उसकी माँ का नाम यहोअद्दान था। यहोअद्दान यरूशलेम की थी। अमस्याह ने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। किन्तु उसने उन्हें पूरे हृदय से नहीं किया। अमस्याह के हाथ में राज्यसत्ता सुदृढ़ हो गयी। तब उसने उन अधिकारियों को मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मारा था। किन्तु अमस्याह ने उन अधिकारियों के बच्चों को नहीं मारा। क्यों? क्योंकि उसने मूसा के पुस्तक में लिखे नियमों को माना। यहोवा ने आदेश दिया था, “पिताओं को अपने पुत्रों के पाप के लिये नहीं मारना चाहिए। बच्चों को अपने पिता के पापों के लिये नहीं मरना चाहिए। हर एक व्यक्ति को अपने स्वयं के पाप के लिये मरना चाहिए।”

अमस्याह ने यहूदा के लोगों को इकट्ठा किया। उसने उनके परिवारों का वर्ग बनाया और उन वर्गों के अधिकारी सेनाध्यक्ष और नायक नियुक्त किये। वे प्रमुख यहूदा और बिन्यामीन के सभी सैनिकों के अधिकारी हुए। सभी लोग जो सैनिक होने के लिये चुने गए, बीस वर्ष के या उससे अधिक के थे। वे सब तीन लाख प्रशिक्षित सैनिक भाले और ढाल के साथ लड़ने वाले थे। अमस्याह ने एक लाख सैनिकों को इस्राएल से किराये पर लिया। उसने पौने चार टन चाँदी का भुगतान उन सैनिकों को किराये पर लेने के लिये किया। किन्तु परमेश्वर का एक व्यक्ति अमस्याह के पास आया। परमेश्वर के व्यक्ति ने कहा, “राजा, अपने साथ इस्राएल की सेना को न जाने दो। परमेश्वर इस्राएल के साथ नहीं है। परमेश्वर एप्रैम के लोगों के साथ नहीं है। सम्भव है तुम अपने को शक्तिशाली बनाओ औऱ युद्ध की तैयारी करो, किन्तु परमेश्वर तुम्हें जिता या हरा सकता है।” अमस्याह ने परमेश्वर के व्यक्ति से कहा, “किन्तु हमारे धन का क्या होगा जो मैंने पहले ही इस्राएल की सेना को दे दिया है” परमेश्वर के व्यक्ति ने उत्तर दिया, “यहोवा के पास बहुत अधिक है। वह उससे भी अधिक तुमको दे सकता है!”

10 इसलिए अमस्याह ने इस्राएल की सेना को वापस घर एप्रैम को भेज दिया। वे लोग राजा और यहूदा के लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित हुए। वे बहुत अधिक क्रोधित होकर अपने घर लौटे।

11 तब अमस्याह बहुत साहसी हो गया और वह अपनी सेना को एदोम देश में नमक की घाटी में ले गया। उस स्थान पर अमस्याह की सेना ने सेईर के दस हज़ार सैनिकों को मार डाला। 12 यहूदा की सेना ने सेईर से दस हज़ार आदमी पकड़े। वे उन लोगों को सेईर से एक ऊँची चट्टान की चोटी पर ले गए। वे लोग तब तक जीवित थे। तब यहूदा की सेना ने उन व्यक्तियों को उस ऊँची चट्टान की चोटी से नीचे फेंक दिया और उनके शरीर नीचे की चट्टनों पर चूर चूर हो गए।

13 किन्तु उसी समय इस्राएली सेना यहूदा के कुछ नगरों पर आक्रमण कर रही थी। वे शोमरोन से बेथोरोन नगर तक के नगरों पर आक्रमण कर रहे थे। उन्होंने तीन हज़ार लोगों को मार डाला और वे बहुत सी कीमती चीज़ें ले गए। उस सेना के लोग इसलिये क्रोधित थे क्योंकि अमस्याह ने उन्हें युद्ध में अपने साथ सम्मिलित नहीं होने दिया।

14 अमस्याह एदोमी लोगों को हराने के बाद घर लौटा। वह सेईर के लोगों की उन देवमूर्तियों को लाया जिनकी वे पूजा करते थे। अमस्याह ने उन देवमूर्तियों को पूजना आरम्भ किया। उसने उन देवताओं को प्रणाम किया और उनको सुगन्धि भेंट की। 15 यहोवा अमस्याह पर बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा ने अमस्याह के पास एक नबी भेजा। नबी ने कहा, “अमस्याह, तुमने उन देवताओं की क्यों पूजा की जिन्हें वे लोग पूजते थे वे देवता तो अपने लोगों की भी तुमसे रक्षा न कर सके!”

16 जब नबी ने यह बोला, अमस्याह ने नबी से कहा, “हम लोगों ने तुम्हें कभी राजा का सलाहकार नहीं बनाया! चुप रहो! यदि तुम चुप नहीं रहे तो मार डाले जाओगे।” नबी चुप हो गया, किन्तु उसने तब कहा, “परमेश्वर ने सचमुच तुमको नष्ट करने का निश्चय कर लिया है। क्योंकि तुम वे बुरी बातें करते हो और मेरी सलाह नहीं सुनते।”

17 यहूदा के राजा अमस्याह ने अपने सलाहकार के साथ सलाह की। तब उसने योआश के पास सन्देश भेजा। अमस्याह ने योआश से कहा, “हम लोग आमने—सामने मिलें।” योआश यहोआहाज का पुत्र था। यहोआहाज येहू का पुत्र था। येहू इस्राएल का राजा था।

18 तब योआश ने अपना उत्तर अमस्याह को भेजा। योआश इस्राएल का राजा था औऱ अमस्याह यहूदा का राजा था। योआश ने यह कथा सुनाई: “लेबानोन की एक छोटी कटीली झाड़ी ने लबानोन के एक विशाल देवदारु के वृक्ष को सन्देश भेजा। छोटी कटीली झाड़ी ने कहा, ‘अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र के साथ कर दो,’ किन्तु एक जंगली जानवर निकला और उसने कटीली झाड़ी को कुचला और उसे नष्ट कर दिया। 19 तुम कहते हो, ‘मैंने एदोम को हराया है!’ तुम्हें उसका घमंड है औऱ उसकी डींग हाँकते हो। किन्तु तुम्हें घर में घुसे रहना चाहिए। तुम्हें खतरा मोल लेने की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम मुझसे युद्ध करोगे ते तुम औऱ यहूदा नष्ट हो जाओगे।”

20 किन्तु अमस्याह ने सुनने से इन्कार कर दिया। यह परमेश्वर की ओर से हुआ। परमेश्वर ने यहूदा को इस्राएल द्वारा हराने की योजना बनाई क्योंकि यहूदा के लोग उन देवताओं का अनुसरण कर रहे थे जिनका अनुसरण एदोम के लोग करते थे। 21 इसलिये इस्राएल का राजा योआश बेतशेमेश नगर में यहूदा के राजा अमस्याह से आमने—सामने मिला। बेतशेमेश यहूदा में है। 22 इस्राएल ने यहूदा को हराया। यहूदा का हर एक व्यक्ति अपने घरों को भाग गया। 23 योआश ने अमस्याह को बेतशेमेश में पकड़ा और उसे यरूशलेम ले गया। अमस्याह के पिता का नाम योआश था। योआश के पिता का नाम यहोआहाज था। योआश ने छ: सौ फुट लम्बी यरूशलेम की उस दीवार को जो एप्रैम फाटक से कोने के फाटक तक थी, गिरा दिया। 24 तब योआश ने परमेश्वर के मन्दिर का सोना, चाँदी तथा कई अन्य सामान ले लिये। ओबेदेदोम मन्दिर में उन चीज़ों की सुरक्षा का उत्तरदायी था। किन्तु योआश ने उन सभी चीजों को ले लिया। योआश ने राजमहल से भी कीमती चीज़ों को लिया। तब योआश ने कुछ व्यक्तियों को बन्दी बनाया और शोमरोन लौट गया।

25 अमस्याह योआश के मरने के बाद पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। अमस्याह का पिता यहूदा का राजा योआश था। 26 अमस्याह ने आरम्भ से अन्त तक अन्य जो कुछ किया वह सब इस्राएल और यहूदा के राजा के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। 27 जब अमस्याह ने यहोवा की आज्ञा का पालन करना छोड़ दिया, यरूशलेम के लोगों ने उसके विरुद्ध एक योजना बनाई। वह लाकीश नगर को भाग गया। किन्तु लोगों ने लाकीश में व्यक्तियों को भेजा और उन्होंने अमस्याह को वहाँ मार डाला। 28 तब वे अमस्याह के शव को घोड़ों पर ले गए और उसे उसके पूर्वजों के साथ यहूदा में दफनाया।

यहूदा का राजा उज्जिय्याह

26 तब यहूदा के लोगों ने अमस्याह के स्थान पर नया राजा होने के लिये उज्जिय्याह को चुना। अमस्याह उज्जिय्याह का पिता था। जब यह हुआ तो उज्जिय्याह सोलह वर्ष का था। उज्जिय्याह ने एलोत नगर को दुबारा बनाया और इसे यहूदा को लौटा दिया। उज्जिय्याह ने यह अमस्याह के मर जाने और पूर्वजों के साथ उसके दफनाए जाने के बाद किया।

उज्जिय्याह जब राजा हुआ तो वह सोलह वर्ष का था। उसने यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य किया। उसकी माँ का नाम यकील्याह था। यकील्याह यरूशलेम की थी। उज्जिय्याह ने वह किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। उसने यहोवा का अनुसरण वैसे ही किया जैसे उसके पिता अमस्याह ने किया था। उज्जिय्याह ने परमेश्वर का अनुसरण जकर्याह के जीवन—काल में किया। जकर्याह ने उज्जिय्याह को शिक्षा दी कि परमेश्वर का सम्मान और उसकी आज्ञा का पालन कैसे किया जाता है। जब उज्जिय्याह यहोवा की आज्ञा का पालन कर रहा था तब परमेश्वर ने उसे सफलता दिलाई।

उज्जिय्याह ने पलिश्ती लोगों के विरुद्ध एक युद्ध किया। उसने गत, यब्ने, और अशदोद नगर की दीवारों को गिरा दिया। उज्जिय्याह ने अशदोद नगर के पास और पलिश्ती लोगों के बीच अन्य स्थानों में नगर बसाये। परमेश्वर ने उज्जिय्याह की सहायता पलिशितयों के गूर्बाल नगर में रहने वाले अरबों और मुनियों के साथ युद्ध करने में की। अम्मोनी उज्जिय्याह को राज्य कर देते थे। उज्जिय्याह का नाम मिस्र की सीमा तक प्रसिद्ध हो गया। वह प्रसिद्ध था क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली था।

उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक, घाटी के फाटक और दीवार के मुड़ने के स्थानों पर मीनारें बनवाईं। उज्जिय्याह ने उन मीनारों को दृढ़ बनाया। 10 उज्जिय्याह ने मीनारों को मरुभूमि में बनाया। उसने बहुत से कुँए भी खुदवाए। उसके पास पहाड़ी और मैदानी प्रदेशों में बहुत से पशु थे। उज्जिय्याह के पास पर्वतों में और जहाँ अच्छी उपज होती थी, उस भूमि में किसान थे। वह ऐसे व्यक्तियों को भी रखे हुए था जो उन खेतों की रखवाली करते थे जिनमें अँगूर होते थे। उसे कृषि से प्रेम था।

11 उज्जिय्याह के पास प्रशिक्षित सैनिकों की एक सेना थी। वे सैनिक सचिव यीएल और अधिकारी मासेयाह द्वारा वर्गों में बँटे थे। हनन्याह उनका प्रमुख था। यीएल और मासेयाह ने उन सैनिकों को गिना और उन्हें वर्गों में रखा। हनन्याय राजा के अधिकारियों में से एक था। 12 सैनिकों के ऊपर दो हज़ार छ: सौ प्रमुख थे। 13 वे परिवार प्रमुख तीन लाख सात हज़ार पाँच सौ पुरुषों की उस सेना के अधिपति थे जो बड़ी शक्ति से लड़ती थी। वे सैनिक राजा को शत्रुओं के विरुद्ध सहायता करते थे। 14 उज्जिय्याह ने सेना को ढाल, भाले, टोप, कवच, धनुष और गुलेलों के लिये पत्थर दिये थे। 15 यरूशलेम में उज्जिय्याह ने जो यन्त्र बनाए वह बुद्धिमानों के अविष्कार थे। वे यन्त्र मीनारों तथा कोने की दीवारों पर रखे गए थे। ये यन्त्र बाण और बड़े पत्थर फेंकते थे। उज्जिय्याह प्रसिद्ध हो गया। लोग उसका नाम दूर—दूर के देशों में जानते थे। उसके पास बड़ी सहायता थी और वह शक्तिशाली राजा हो गया।

16 किन्तु जब उजिय्याह शक्तिशाली हो गया, उसके घमण्ड ने उसे नष्ट किया। वह यहोवा परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य नहीं रहा। वह यहोवा के मन्दिर में सुगन्धि जलाने की वेदी पर गया। 17 याजक अजर्याह और यहोवा के अस्सी साहसी याजक सेवक उजिय्याह के पीछे मन्दिर में गए। 18 उन्होंने उजिय्याह से कहा कि तुम गलती कर रहे हो। उन्होंने उससे कहा, “उजिय्याह, यहोवा के लिये सुगन्धि जलाना तुम्हारा काम नहीं है। यह करना तुम्हारे लिये ठीक नहीं है। याजक और हारून के वंशज ही केवल यहोवा के लिये सुगन्धि जलाते हैं। इन याजकों को सुगन्धि जलाने की पवित्र सेवा के लिये प्रशिक्षण दिया गया है। सर्वाधिक पवित्र स्थान से बाहर निकल जाओ। तुम विश्वासयोग्य नहीं रहे हो। यहोवा परमेश्वर तुमको इसके लिये सम्मान नहीं देगा!”

19 किन्तु उज्जिय्याह क्रोधित हुआ। उसके हाथ में सुगन्धि जलाने के लिये एक कटोरा था। जिस समय उज्जिय्याह याजकों पर बहुत क्रोधित था, उसी समय उसके माथे पर कुष्ठ हो गया। यह याजकों के सामने यहोवा के मन्दिर में सुगन्धि जलाने के वेदी के पास हुआ। 20 प्रमुख याजक अजर्याह औऱ सभी याजकों ने उज्जिय्याह को देखा। वे उसके ललाट पर कुष्ठ देख सकते थे। याजकों ने शीघ्रता से उज्जिय्याह को मन्दिर से बाहर जाने को विवश किया। उज्जिय्याह ने स्वयं शीघ्रता की, क्योंकि यहोवा ने उसे दण्ड दे दिया था। 21 राजा उज्जिय्याह मृत्यु पर्यन्त कोढ़ी था। वह यहोवा के मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता था। उज्जिय्याह के पुत्र योताम ने राजमहल को व्यवस्थित रखा औऱ लोगों का प्रशासक बना।

22 उज्जिय्याह ने आरम्भ से लेकर अन्त तक जो कुछ किया वह यशायाह नबी द्वारा लिखा गया। यशायाह का पिता आमोस था। 23 उज्जिय्याह मरा और अपने पूर्वजों के पास दफनाया गया। उज्जिय्याह को राजाओं के कब्रिस्तान के पास मैदान में दफनाया गया। क्यों? क्योंकि लोगों ने कहा, “उज्जिय्याह को कोढ़ है।” योताम उज्जिय्याह के स्थान पर नया राजा हुआ। योताम उज्जिय्याह का पुत्र था।

यहूदा का राजा योताम

27 योताम पच्चीस वर्ष का था जब वह राजा हुआ। उसने सोलह वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम यरूशा था। यरूशा सादोक की पुत्री थी। योताम ने वह किया, जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। उसने परमेश्वर की आज्ञा का पालन वैसे ही किया जैसे उसके पिता उज्जिय्याह ने किया था। किन्तु योताम यहोवा के मन्दिर में सुगन्धि जलाने के लिये उसी प्रकार नहीं घुसा जैसे उसका पिता घुसा था। किन्तु लोगों ने पाप करना जारी रखा। योताम ने यहोवा के मन्दिर के ऊपरी द्वार को दुबारा बनाया। उसने ओपेल नामक स्थान में दीवार पर बहुत से निर्माण कार्य किये। योताम ने यहूदा के पहाड़ी प्रदेश में भी नगर बनाए। योताम ने मीनार और किले जंगलों में बनाए। योताम अम्मोनी लोगों के राजा और उसके सेना के विरुद्ध लड़ा और उन्हें हराया। इसलिये हर वर्ष तीन वर्ष तक अम्मोनी लोग योताम को पौने चार टन चाँदी, बासठ हज़ार बुशल गेहूँ और बासठ बुशल जौ देते रहे।

योताम शक्तिशाली हो गया क्योंकि उसने विश्वासपूर्वक यहोवा, अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन किया। योताम ने अन्य जो कुछ भी किया तथा उसके सभी युद्ध यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे गए हैं। योताम जब राजा हुआ था, पच्चीस वर्ष का था। उसने यरूशलेम पर सोलह वर्ष शासन किया। तब योताम मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। लोगों ने उसे दाऊद के नगर में दफनाया। योताम के स्थान पर आहाज राजा हुआ। आहाज योताम का पुत्र था।

यहूदा का राजा आहाज

28 आहाज बीस वर्ष का था, जब वह राजा हुआ। उसने यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य किया। आहाज अपने पूर्वज दाऊद की तरह सच्चाई से नहीं रहा। आहाज ने वह नहीं किया जो कुछ यहोवा चाहता था कि वह करे। आहाज ने इस्राएली राजाओं के बुरे उदाहरणों का अनुसरण किया। उसने बाल—देवता की पूजा के लिये मूर्तियों को बनाने के लिये साँचे का उपयोग किया। आहाज ने हिन्नोम की घाटी में सुगन्धि जलाई। उसने अपने पुत्रों को आग में जलाकर बलि भेंट की। उसने वे सब भयंकर पाप किये जिसे उस प्रदेश में रहने वाले व्यक्तियों ने किया था। यहोवा ने उन व्यक्तियों को बाहर जाने को विवश किया था जब इस्राएल के लोग उस भूमि में आए थे। आहाज ने बलि भेंट की और सुगन्धि को उच्चस्थानों अर्थात् पहाड़ियों और हर एक हरे पेड़ के नीचे जलाया।

5-6 आहाज ने पाप किया, इसलिये यहोवा, उसके परमेश्वर ने अराम के राजा को उसे पराजित करने दिया। अराम के राजा और उसकी सेना ने आहाज को हराया और यहूदा के अनेक लोगों को बन्दी बनाया। अराम का राजा उन बन्दियों को दमिश्क नगर को ले गया। यहोवा ने इस्राएल के राजा पेकह को भी आहाज को पराजित करने दिया। पेकह के पिता का नाम रमल्याह था। पेकह और उसकी सेना ने एक दिन में यहूदा के एक लाख बीस हज़ार वीर सैनिकों को मार डाला। पेकह ने यहूदा के उन लोगों को इसलिये हराया कि उन्होंने उस यहोवा, परमेश्वर की आज्ञा मानना अस्वीकार कर दिया जिसकी आज्ञा उनके पूर्वज मानते थे। जिक्री एप्रैमी का एक वीर सैनिक था। जिक्री ने राजा आहाज के पुत्र मासेयाह और राजमहल के संरक्षक अधिकारी अज्रीकाम और एलकाना को मार डाला। एलकाना राजा के ठीक बाद दि्तीय शक्ति था।

इस्राएल की सेना ने यहूदा में रहने वाले दो लाख अपने निकट सम्बन्धियों को पकड़ा। उन्होंने स्त्री, बच्चे और यहूदा से बहुत कीमती चीज़े लीं। इस्राएली उन बन्दियों और उन चीज़ों को शोमरोन नगर को ले आए। किन्तु वहाँ यहोवा का एक नबी था। इस नबी का नाम ओदेद था। ओदेद इस्राएल की इस सेना से मिला जो शोमरोन लौट आई। ओदेद ने इस्राएल की सेना से कहा, “यहोवा, परमेश्वर ने जिसकी आज्ञा तुम्हारे पूर्वजों ने मानी, तुम्हें यहूदा के लोगों को हराने दिया क्योंकि वह उन पर क्रोधित था। तुम लोगों ने यहूदा के लोगों को बहुत नीच ढंग से मारा और दण्डित किया। अब परमेश्वर तुम पर क्रोधित है। 10 तुम यहूदा और यरूशलेम के लोगों को दास की तरह रखने की योजना बना रहे हो। तुम लोगों ने भी यहोवा, अपने परमेश्वर के विरूद्ध पाप किया है। 11 अब मेरी सुनो। अपने जिन भाई बहनों को तुम लोगों ने बन्दी बनाया है उन्हें वापस कर दो। यह करो क्योंकि यहोवा का भयंकर क्रोध तुम्हारे विरुद्ध है।”

12 तब एप्रैम के कुछ प्रमुखों ने इस्राएल के सैनिकों को युद्ध से लौटकर घर आते देखा। वे प्रमुख इस्राएल के सैनिकों से मिले और उन्हें चेतावनी दी। वे प्रमुख योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह और हदलै का पुत्र अमासा थे। 13 उन प्रमुखों ने इस्राएली सैनिकों से कहा, “यहूदा के बन्दियों को यहाँ मत लाओ। यदि तुम यह करते हो तो यह हम लोगों को यहोवा के विरुद्ध बुरा पाप करायेगा। वह हमारे पाप और अपराध को और अधिक बुरा करेगा तथा यहोवा हम लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित होगा!”

14 इसलिए सैनिकों ने बन्दियों और कीमती चीज़ों को उन प्रमुखों और इस्राएल के लोगों को दे दिया। 15 पहले गिनाए गए प्रमुख (अजर्याह, बेरेक्याह, यहिजकिय्याह और अमास) खड़े हुए और उन्होंने बन्दियों की सहायता की। इन चारों व्यक्तियों ने उन वस्त्रों को लिया जो इस्राएली सेना ने लिये थे और इसे उन लोगों को दिया जो नंगे थे। उन प्रमुखों ने उन लोगों को जूते भी दिये। उन्होंने यहूदा के बन्दियों को कुछ खाने और पीने को दिया। उन्होंने उन लोगों को तेल मला। तब एप्रैम के प्रमुखों ने कमजोर बन्दियों को खच्चरों पर चढ़ाया और उन्हें उनके घर यरीहो में उनके परिवारों के पास ले गये। यरीहो का नाम ताड़ के पेड़ का नगर था। तब वे चारों प्रमुख अपने घर शोमरोन को लौट गए।

16-17 उसी समय, एदोम के लोग फिर आए और उन्होंने यहूदा के लोगों को हराया। एदोमियों ने लोगों को बन्दी बनाया और उन्हें बन्दी के रूप में ले गए। इसलिये राजा आहाज ने अश्शूर के राजा से सहायता माँगी। 18 पलिश्ती लोगों ने भी पहाड़ी के नगरों और दक्षिण यहूदा पर आक्रमण किया। पलिश्ती लोगों ने बेतशेमेश, अय्यालोन, गदेरोत, सोको, तिम्ना और गिमजो नामक नगरों पर अधिकार कर लिया। उन्होंने उन नगरों के पास के गाँवों पर भी अधिकार कर लिया। तब उन नगरों में पलिशती रहने लगे। 19 यहोवा ने यहूदा को कष्ट दिया क्योंकि यहूदा के राजा आहाज ने यहूदा के लोगों को पाप करने के लिये प्रोत्साहित किया। वह यहोवा के प्रति बहुत अधिक अविश्वास योग्य था। 20 अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर आया और आहाज को सहायता देने के स्थान पर उसने कष्ट दिया। 21 आहाज ने कुछ कीमती चीज़े यहोवा के मन्दिर, राजमहल और राजकुमार भवन से इकट्टा कीं। आहाज ने वे चीज़ें अश्शूर के राजा को दीं। किन्तु उसने आहाज को सहायता नहीं दी।

22 आहाज की परेशानियों के समय में उसने और अधिक बुरे पाप किये और यहोवा का औऱ अधिक अविश्वास योग्य बन गया। 23 उसने दमिश्क के लोगों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं को बलिभेंट की। दमिश्क के लोगों ने आहाज को पराजित किया था। इसलिए उसने मन ही मन सोचा था, “अराम के लोगों के देवताओं की पूजा ने उन्हें सहायता दी। यदि मैं उन देवताओं को बलिभेंट करुँ तो संभव है, वे मेरी भी सहायता करें।” आहाज ने उन देवताओं की पूजा की। इस प्रकार उसने पाप किया और उसने इस्राएल के लोगों को पाप करने वाला बनाया।

24 आहाज ने यहोवा के मन्दिर से चीज़ें इकट्ठी कीं और उनके टुकड़े कर दिये। तब उसने यहोवा के मन्दिर का द्वार बन्द कर दिया। उसने वेदियाँ बनाईं और यरूशलेम में सड़क के हर मोड़ पर उन्हें रखा। 25 आहाज ने यहूदा के हर नगर में अन्य देवताओं की पूजा के लिये उच्च स्थान सुगन्धि जलाने के लिये बनाए। आहाज ने यहोवा, परमेश्वर को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी आज्ञा का पालन उसके पूर्वज करते थे।

26 आहाज ने आरम्भ से अन्त तक जो कुछ अन्य किया वह यहूदा औऱ इस्राएल के राजाओं के इतिहास नामक पुस्तक में लिखा है। 27 आहाज मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। लोगों ने आहाज को यरूशलेम नगर में दफनाया। किन्तु उन्होंने आहाज को उसी कब्रिस्तान में नहीं दफनाया जहाँ इस्राएल के राजा दफनाये गए थे। आहाज के स्थान पर हिजकिय्याह नया राजा बना। हिजकिय्याह आहाज का पुत्र था।

यहूदा का राजा हिजकिय्याह

29 हिजकिय्याह जब पच्चीस वर्ष का था, राजा हुआ। उसने उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अबिय्याह था। अबिय्याह जकर्याह की पुत्री थी। हिजकिय्याह ने वही किया जो यहोवा चाहता था कि वह करे। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह, जो उचित था, वही किया।

हिजकिय्याह ने यहोवा के मन्दिर के दरवाजों को जोड़ा और उन्हें मजबूत किया। हिजकिय्याह ने मन्दिर को फिर खोला। उसने राजा होने के बाद, वर्ष के पहले महीन में यह किया। 4-5 हिजकिय्याह ने याजकों और लेवीवंशियों को एक बैठक में एक साथ बिठाया। वह मन्दिर के पूर्व की दिशा में खुले आँगन में उनके साथ बैठक में शामिल हुआ। हिजकिय्याह ने उनसे कहा, “मेरी सुनों, लेवीवंशियों! पवित्र सेवा के लिये अपने को तैयार करो। यहोवा, परमेश्वर के मन्दिर को पवित्र सेवा के लिये तैयार करो। वह परमेश्वर है जिसकी आज्ञा का पालन तुम्हारे पूर्वजों ने किया। मन्दिर से उन चीज़ों को बाहर करो जो वहाँ के लिये नहीं हैं। वे चीज़ें मन्दिर को शुद्ध नहीं बनातीं। हमारे पूर्वजों ने यहोवा को छोड़ा और यहोवा के भवन से मुख मोड़ लिया। उन्होंने मन्दिर के स्वागत—कक्ष के दरवाजे को बन्द कर दिया और दीपकों को बुझा दिया। उन्होंने सुगन्धि का जलाना और इस्राएल के परमेश्वर को पवित्र स्थान में होमबलि भेंट करना बन्द कर दिया। इसलिये, यहोवा यहूदा और यरूशलेम के लोगों पर बहुत क्रोधित हुआ। यहोवा ने उन्हें दण्ड दिया। अन्य लोग भयभीत हुए और दु:खी हुए जब उन्होंने देखा कि यहोवा ने यहूदा और यरूशलेम के लोगों के साथ क्या किया। अन्य लोगों ने यहूदा के लोगों के लिये लज्जा और घृणा से अपने सिर झुका लिये। तुम जानते हो कि यह सब सच है। तुम अपनी आँखों से इसे देख सकते हो। यही कारण है कि हमारे पूर्वज युद्ध में मारे गये। हमारे पुत्र, पुत्रियाँ औऱ पत्नियाँ बन्दी बनाई गईं। 10 इसलिये मैं हिजकिय्याह ने यह निश्चय किया है कि मैं यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के साथ एक वाचा करुँ। तब वह हम लोगों पर आगे क्रोधित नहीं होगा। 11 इसलिए मेरे पुत्रो, तुम लोग सुस्त न हो या और अधिक समय नष्ट न करो। यहोवा ने तुम लोगों को अपनी सेवा के लिये चुना है। तुम्हें उसकी सेवा करनी चाहिए और उसके लिये सुगन्धि जलानी चाहिए।”

12-14 उन लेवीवंशियों की यह सूची है जो वहाँ थे और जिन्होंने कार्य आरम्भ किया।

कहाती परिवार के अमासै का पुत्र महत और अजर्याह का पुत्र योएल थे।

मरारीत परिवार के अब्दी का पुत्र कीश और यहल्लेलेल का पुत्र अजर्याह थे।

गेर्शोनी परिवार से जिम्मा का पुत्र योआह और योआह का पुत्र एदेन थे।

एलीसापान के वंशजों में शिम्री औऱ यूएल थे।

आसाप के वंशजों में जकर्याह और मत्तन्याह थे।

हेमान के वंशजों में से यहूएल और शिमी थे।

यदूतून के वंशजों में से शमायाह और उज्जीएल थे।

15 तब इन लेवीवंशियों ने अपने भाइयों को इकट्ठा किया और मन्दिर में पवित्र सेवा करने के लिये अपने को तैयार किया। उन्होंने राजा के उन आदेशों का पालन किया जो यहोवा के पास से आये थे। वे यहोवा के मन्दिर में उसे स्वच्छ करने गए। 16 याजक यहोवा के मन्दिर के भीतरी भाग में उसे स्वच्छ करने गए। उन्होंने सभी अशुद्ध चीज़ों को बाहर निकाला जिन्हें उन्होंने मन्दिर में पाया। वे अशुद्ध चीज़ों को यहोवा के मन्दिर के आँगन में ले आए। तब लेवीवंशी अशुद्ध चीज़ों को किद्रोन की घाटी में ले गए। 17 पहले महीने के पहले दिन लेवीवंशी अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार करने लगे। महीने के आठवें दिन लेवीवंशी यहोवा के मन्दिर के द्वार—मण्डप में आए। आठ दिन और, वे यहोवा के मन्दिर को पवित्र उपयोग के लिये स्वच्छ करते रहे। उन्होंने पहले महीन के सोलहवें दिन यह काम पूरा किया।

18 तब वे राजा हिजकिय्याह के पास गए। उन्होंने उससे कहा, “राजा हिजकिय्याह, हम लोगों ने यहोवा के पूरे मन्दिर और भेंट जलाने के लिये वेदी को स्वच्छ कर दिया। हम लोगों ने रोटी को पक्तियों में रखने की मेज और उस के लिये उपयोग में आने वाली सभी चीज़ों को स्वच्छ कर दिया। 19 उन दिनों जब आहाज राजा था उसने परमेश्वर के प्रति विरोध किया। उसने बहुत सी चीज़ें फेंक दी थीं। जो मन्दिर में थीं। किन्तु हम लोगों ने फिर उन चीज़ों को रख दिया है औऱ उन्हें पवित्र कार्य के लिये तैयार कर दिया है। वे अब यहोवा की वेदी के सामने हैं।”

20 राजा हिजकिय्याह ने नगर अधिकारियों को इकट्ठा किया और अगली सुबह वह यहोवा के मन्दिर गया। 21 वे सात बैल, सात मेढ़े, सात मेमने औऱ सात छोटे बकरे लाए। वे जानवर यहूदा के राज्य की पापबलि, पवित्र स्थान को शुद्ध करने और यहूदा के लोगों के लिये थे। राजा हिजकिय्याह ने उन याजकों को जो हारून के वंशज थे, आदेश दिया कि वे उन जानवरों को यहोवा की वेदी पर चढ़ाऐं। 22 इसलिये याजकों ने बैलों को मार डाला और उनका खून रख लिया। तब उन्होंने बैलों का खून वेदी पर छिड़का। तब याजकों ने मेढ़ों को मारा और वेदी पर मेंढ़ों का खून छिड़का। तब याजकों ने मेमनों को मारा और उनका खून वेदी पर छिड़का। 23-24 तब याजक बकरों को राजा और एक साथ इकट्ठे लोगों के सामने लाए। बकरे पापबलि थे। याजकों ने अपने हाथ बकरों पर रखे और उन्हें मारा। याजकों ने बकरों के खून से वेदी पर पापबलि चढ़ाई। उन्होंने यह इसलिये किया कि यहोवा इस्राएल के लोगों को क्षमा कर देगा। राजा ने कहा कि होमबलि और पापबलि इस्राएल के सभी लोगों के लिये होंगी।

25 राजा हिजकिय्याह ने लेवीवंशियों को यहोवा के मन्दिर में मंजीरों, तम्बूरों और वीणा के साथ रखा जैसा दाऊद, राजा का दृष्टा गाद और नातान नबी ने आदेश दिया था। यह आदेश नबियों द्वारा यहोवा के यहाँ से आया था। 26 इस प्रकार लेवीवंशी, दाऊद के गीत के वाद्यों के साथ और याजक अपनी तुरहियों के साथ खड़े हुए। 27 तब हिजकिय्याह ने होमबलि की बलि वेदी पर चढ़ाने के लिये आदेश दिया। जब होमबलि देना आरम्भ हुआ, यहोवा के लिये गायन भी आरम्भ हुआ। तुरहियाँ बजाई गईं और इस्राएल के राजा दाऊद के वाद्यायन्त्र बजे। 28 सारी सभा ने दण्डवत किया, गायकों ने गाया और तुरही वादकों ने अपनी तुरहियाँ तब तक बजाईं जब तक होमबलि का चढ़ाया जाना पूरा नहीं हुआ।

29 बलिदानों के पूरे होने के बाद राजा हिजकिय्याह और उसके साथ के सभी लोग झुके और उन्होंने उपासना की। 30 राजा हिजकिय्याह और उसके अधिकारियों ने लेवीवंशियों को यहोवा की स्तुति का आदेश दिया। उन्होंने उन गीतों को गाया जिन्हें दाऊद और दृष्टा आसाप ने लिखा था। उन्होंने यहोवा की स्तुति की और प्रसन्न हुए। वे सभी झुके और उन्होंने यहोवा की उपासना की। 31 हिजकिय्याह ने कहा, “यहूदा के लोगो, अब तुम लोग स्वयं को यहोवा को अर्पित कर चुके हो। निकट आओ, बलि और धन्यवाद की भेंट यहोवा के मन्दिर में लाओ।” तब लोग बलि और धन्यवाद की भेंट लाये। कोई व्यक्ति, जो चाहता था, वह होमबलि भी लाया। 32 सभा द्वारा मन्दिर में लाई गई होमबलि ये हैं: सत्तर बैल, सौ मेढ़े और दो सौ मेमने। ये सभी जानवर यहोवा को होमबलि के रुप में बलि किये गये। 33 यहोवा के लिये पवित्र भेटें छ: सौ बैल और तीन हज़ार भेंड़—बकरे थे। 34 किन्तु वहाँ पर्याप्त याजक नहीं थे जो होमबलि के लिये जानवारों की खाल उतार सकें और सभी जानवरों को काट सकें। इसलिये उनके सम्बन्धी लेवीवंशियों ने उनकी सहायता तब तक की जब तक काम पूरा न हुआ और जब तक दूसरे याजक अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार न कर सके। लेवीवंशी यहोवा की सेवा के लिये अपने को तैयार करने में अधिक दृढ़ थे। वे याजकों की अपेक्षा अधिक दृढ़ थे। 35 वहाँ अनेक होमबिल, मेलबलि की चर्बो और पेय भेंट चढ़ीं। इस प्रकार यहोवा के मन्दिर में सेवा फिर आरम्भ हुई। 36 हिजकिय्याह और सभी लोग उन चीज़ों के लिये प्रसन्न थे जिन्हें यहोवा ने अपने लोगों के लिये बनाया और वे प्रसन्न थे कि उन्होंने उन्हें इतनी शीघ्रता से किया!

हिजकिय्याह फसहपर्व मनाता है

30 हिजकिय्याह ने इस्राएल और यहूदा के सभी लोगों को सन्देश भेजा। उसने एप्रैम और मनश्शे के लोगों को भी पत्र लिखा। हिजकिय्याह ने उन सभी लोगों को यरूशलेम में यहोवा के मन्दिर में आने के लिये निमन्त्रित किया जिससे वे सभी फसहपर्व यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के लिये मना सकें। हिजकिय्याह ने सभी अधिकारियों और यरूशलेम की सभा से यह सलाह की कि फसह पर्व दूसरे महीने में मनाया जाये। वे फसह पर्व को नियमित समय से न मना सके। क्यों? क्योंकि याजक पर्याप्त संख्या में पवित्र सेवा के लिये अपने को तैयार न कर सके और दूसरा कारण यह था कि लोग यरूशलेम में इकट्ठे नहीं हो सके थे। इस सुझाव ने राजा हिजकिय्याह और पूरी सभा को सन्तुष्ट किया। इसलिये उन्होंने इस्राएल में बेर्शेबा नगर से लेकर लगातार दान नगर तक हर एक स्थान पर घोषणा की। उन्होंने लोगों से कहा कि वे यरूशलेम में यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के लिये फसह पर्व मनाने आऐं। इस्राएल के बहुत बड़े समूह ने बहुत समय से फसह पर्व उस प्रकार नहीं मनाया था, जिस प्रकार मूसा के नियमों ने इसे मनाने को कहा था। इसलिये दूत राजा का पत्र पूरे इस्राएल औऱ यहूदा में ले गए। उन पत्रों में यह लिखा था:

“इस्राएल की सन्तानों, इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल (याकूब), जिस यहोवा, परमेश्वर की आज्ञा मानते थे उसके पास लौटो। तब यहोवा तुम लोगों के पास वापस आयेगा जो अश्शूर के राजा से बच गए हैं और अभी तक जीवित हैं। अपने पिता और भाइयों की तरह न बनो। यहोवा उनका परमेश्वर था, किन्तु वे उसके विरुद्ध हो गए। इसलिये यहोवा ने उनके प्रति लोगों के हृदय में घृणा पैदा की और उनके बारे में बुरा कहलवाया। तुम स्वयं अपनी आँखों से देख सकते हो कि यह सत्य है। अपने पूर्वजों की तरह हठी न बनो। अपितु सच्चे हृदय से यहोवा की आज्ञा मानो। सर्वार्धिक पवित्र स्थान पर आओ। यहोवा ने सर्वाधिक पवित्र स्थान को सदैव के लिये पवित्र बनाया है। अपने यहोवा, परमेश्वर की सेवा करो। तब यहोवा का डरावना क्रोध तुम पर से हट जाएगा। यदि तुम लौटोगे और यहोवा की आज्ञा मानोगे तब तुम्हारे सम्बन्धी और बच्चे उन लोगों की कृपा पाएंगे जिन्होंने उन्हें बन्दी बनाया है और तुम्हारे सम्बन्धी और बच्चे इस देश में लौटेंगे। यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर कृपालु है। यदि तुम उसके पास लौटोगे तो वह तुमसे दूर नहीं जायेगा।”

10 दूत एप्रैम और मनश्शे के क्षेत्रों के सभी नगरों में गए। वे लगातार पूरे जबूलून देश में गए। किन्तु लोगों ने दूतों की हँसी उड़ाई औऱ उनका मजाक उड़ाया। 11 किन्तु आशेर, मनश्शे और जबूलून देश के कुछ लोग विनम्र हुए और यरूशलेम गए। 12 यहूदा में परमेश्वर की शक्ति ने लोगों को संगठित किया ताकि वे राजा हिजकिय्याह औऱ उसके अधिकारियों की आज्ञा का पालन करें। इस तरह उन्होंने यहोवा की आज्ञा का पालन किया।

13 बहुत से लोग एक साथ यरूशलेम, दूसरे महीने में अखमीरी रोटी का उत्सव मनाने आए। यह बहुत बड़ी भीड़ थी। 14 उन लोगों ने यरूशलेम में असत्य देवताओं की वेदियों को हटा दिया। उन्होंने असत्य देवताओं के लिये सुगन्धि भेंट की वेदियों को भी हटा दिया। उन्होंने उन वेदियों को किद्रोन की घाटी में फेंक दिया। 15 तब उन्होंने फसह पर्व के मेमने को दूसरे महीने के चौदहवें दिन मारा। याजक और लेवीवंशी लज्जित हुए। उन्होंने अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार किया। याजक और लेवीवंशी होमबलि यहोवा के मन्दिर में ले आए। 16 मन्दिर में अपने लिए निर्धारित स्थान पर वे वैसे ही बैठे जैसा परमेश्वर के व्यक्ति मूसा के नियम में कहा गया था। लेवीवंशियों ने याजकों को खून दिया। तब याजकों ने खून को वेदी पर छिड़का। 17 उस समूह में बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार नहीं किया था अत: वे फसह पर्व के मेमने को मारने की स्वीकृति नहीं पा सके। यही कारण था कि लेवीवंशी उन सभी लोगों के लिए फसह पर्व के मेमने को मारने के उत्तरदायी थे जो शुद्ध नहीं थे। लेवीवंशी ने हर एक मेमने को यहोवा के लिये पवित्र बनाया।

18-19 एप्रैम, मनश्शे, इस्साकार और जबूलून के बहुत से लोगों ने फसह पर्व उत्सव के लिये अपने को ठीक प्रकार से तैयार नहीं किया था। उन्होंने फसह पर्व मूसा के नियम के अनुसार ठीक ढंग से नहीं मनाया। किन्तु हिजकिय्याह ने उन लोगों के लिए प्रार्थना की। इसलिये हिजकिय्याह ने यह प्रार्थना की, “यहोवा, परमेश्वर तू अच्छा है। ये लोग तेरी उपासना ठीक ढंग से करना चाहते थे, किन्तु वे अपने को नियम के अनुसार शुद्ध न कर सके, कृपया उन लोगों को क्षमा कर। तू परमेश्वर है जिसकी आज्ञा का पालन हमारे पूर्वजों ने किया। यदि किसी ने सर्वार्धिक पवित्र स्थान के नियम के अनुसार अपने को शुद्ध न किया तो भी क्षमा कर।” 20 यहोवा ने राजा हिजकिय्याह की प्रार्थना सुनी। यहोवा ने लोगों को क्षमा कर दिया। 21 इस्राएल की सन्तानों ने यरूशलेम में अखमीरी रोटी का उत्सव सात दिन तक मनाया। वे बहुत प्रसन्न थे। लेवीवंशी और याजकों ने अपनी पूरी शक्ति से हर एक दिन यहोवा की स्तुति की। 22 राजा हिजकिय्याह ने उन सभी लेवीवंशियों को उत्साहित किया जो अच्छी तरह समझ गये थे कि यहोवा की सेवा कैसे की जाती है। लोगों ने सात दिन तक पर्व मनाया और मेलबलि चढ़ाई। उन्होंने अपने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की।

23 सभी लोग सात दिन और ठहरने को सहमत हो गए। वे फसहपर्व मनाते समय सात दिन तक बड़े प्रसन्न रहे। 24 यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने उस सभा को एक हज़ार बैल तथा सात हज़ार भेड़ें मारने और खाने के लिये दिये। प्रमुखों ने सभा को एक हज़ार बैल और दस हज़ार भेड़ें दीं। बहुत से याजकों ने पवित्र सेवा के लिये अपने को तैयार किया। 25 यहूदा की पूरी सभा, याजक, लेवीवंशी, इस्राएल से आने वाली पूरी सभा और वे यात्री जो इस्राएल से आए थे तथा यहूदा पहुँच गए थे, सभी लोग अत्यन्त प्रसन्न थे। 26 इस प्रकार यरूशलेम में बहुत आनन्द था। इस पर्व के समान कोई भी पर्व इस्राएल के राजा, दाऊद के पुत्र सुलैमान के समय के बाद से नहीं हुआ था। 27 याजक और लेवीवंशी खड़े हुए और यहोवा से लोगों को आशीर्वाद देने को कहा। परमेश्वर ने उनकी सुनी। उनकी प्रार्थना स्वर्ग में यहोवा के पवित्र निवास तक पहुँची।

राजा हिजकिय्याह सुधार करता है

31 फसह पर्व का उत्सव पूरा हुआ। इस्राएल के जो लोग फसह पर्व के लिये यरूशलेम में थे, वे यहूदा के नगरों को चले गए। तब उन्होंने पत्थर की उन मूर्तियों को ध्वस्त किया जो उन नगरों में थीं। उन पत्थर की मूर्तियों का पूजन असत्य देवताओं के रूप में होता था। उन लोगों ने अशेरा के स्तम्भों को भी काट डाला और उन्होंने उन उच्चस्थानों और वेदियों को भी तोड़ डाला जो बिन्यामीन और यहूदा के पूरे देशों में थे। लोगों ने एप्रैम और मनश्शे के क्षेत्र में भी वही किया। लोगों ने यह तब तक किया जब तक उन्होंने असत्य देवाताओं की पूजा की सभी चीज़ों को नष्ट नहीं कर दिया। तब सभी इस्राएली अपने नगरों को घर लौट गए।

राजा हिजकिय्याह ने फिर याजकों और लेवीवंशियों को समूहों में बाँटा और प्रत्येक समूह को अपना विशेष कार्य करना होता था। अत: राजा हिजकिय्याह ने उन समूहों को अपना कार्य फिर से आरम्भ करने को कहा। अत: याजकों और लेवीवंशियों का फिर से होमबलि और मेलबलि चढ़ाने का काम था। उन का काम मन्दिर में सेवा करना, गाना और यहोवा के भवन के द्वार पर परमेश्वर की स्तुति करना था। हिजकिय्याह ने अपने पशुओं में से कुछ को होमबलि के लिये दिया। ये पशु प्रतिदिन प्रात: और सन्ध्या को होमबलि के लिये प्रयोग में आते थे। ये पशु सब्त के दिनों में और नवचन्द्र के समय और अन्य विशेष उत्सवों पर दी जाती थीं। यह वैसे ही किया जाता था जैसा यहोवा की व्यवस्था में लिखा है।

हिजकिय्याह ने यरूशलेम में रहने वाले लोगों को आदेश दिया कि जो हिस्सा याजकों और लेवीवंशियों का है वह उन्हें दें। तभी याजक और लेवीवंशी पूरे समय अपने को यहोवा के नियम के अनुसार दे सकते हैं। देश के चारों ओर के लोगों ने इस आदेश के बारे में सुना। अत: इस्राएल के लोगों ने अपने अन्न, अंगूर, तेल, शहद और जो कुछ भी वे अपने खेतों में उगाते थे उन सभी फसलों का पहला भाग दिया। वे स्वेच्छा से इन सभी चीजों का दसवाँ भाग लाए। इस्राएल और यहूदा के लोग जो यहूदा के नगरों में रहते थे, अपने पशुओं और भेड़ों का दसवाँ भाग भी लाए। वे उन चीज़ों का दसवाँ भाग भी लाए जो उस विशेष स्थान में रखी जाती थी जो केवल यहोवा के लिये था। वे उन सभी चीज़ों को अपने यहोवा, परमेश्वर के लिय ले कर आए। उन्होंने उन सभी चीज़ों को ढेरों में रखा।

लोगों ने तीसरे महीने (मई/जून) में अपनी चीज़ों के संग्रह को लाना आरम्भ किया और उन्होंने संग्रह का लाना सातवें महीने (सित्मबर/अक्टूबर) में पूरा किया। जब हिजकिय्याह और प्रमुख आए तो उन्होंने संग्रह की गई चीज़ों के ढेरों को देखा। उन्होंने यहोवा की स्तुति की और इस्राएल के लोगों अर्थात् यहोवा के लोगों की प्रशंसा की।

तब हिजकिय्याह ने याजकों और लेवीवंशियों से ढेरों के सम्बन्ध में पूछा। 10 सादोक परिवार के मुख्य याजक अजर्याह ने हिजकिय्याह से कहा, “क्योंकि लोगों ने भेंटों को यहोवा के मन्दिर में लाना आरम्भ कर दिया है अत: हम लोगों के पास खाने के लिये बहुत अधिक है। हम लोगों ने पेट भर खाया और अभी तक हम लोगों के पास बहुत बचा है! यहोवा ने अपने लोगों को सच में आशीष दी है। इसलिये हम लोगों के पास यह सब बचा है।”

11 तब हिजकिय्याह ने याजकों को आदेश दिया कि वे यहोवा के मन्दिर में भण्डार गृह तैयार रखें। अत: यह किया गया। 12 तब याजक भेंटें दशमांश और अन्य वस्तुएं लाए जो केवल यहोवा को दी जानी थीं। वे सभी संग्रह की गई चीज़ें मन्दिर के भण्डारगृहों में रख दी गईं। लेवीवंशी कोनन्याह सभी संग्रह की गई चीजों का अधीक्षक था। शिमी उन चीज़ों का उपाधीक्षक था। शिमी कोनन्याह का भाई था। 13 कोनन्याह और उसका भाई इन व्यक्तियों के निरीक्षक थे: अहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमेत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह। राजा हिजकिय्याह और यहोवा के मन्दिर का अधीक्षक अधिकारी अजर्याह ने उन व्यक्तियों को चुना।

14 कोरे उन भेंटों का अधीक्षक था जिन्हें लोग स्वेच्छा से यहोवा को चढ़ाते थे। वह उन संग्रहों को देने का उत्तरदायी था जो यहोवा को चढ़ाये जाते थे और वह उन उपहारों को वितरित करने का उत्तरदायी था जो यहोवा के लिये पवित्र बनाई जाती थीं। कोरे पूर्वी द्वार का द्वारपाल था। उसके पिता का नाम यिम्ना था जो लेवीवंशी था। 15 एदेन, मिन्यामीन, येशू, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह कोरे की सहायता करते थे। वे लोग ईमानदारी से उन नगरों में सेवा करते थे जहाँ याजक रहते थे। वे संग्रह की गई चीज़ों को हर एक याजकों के समूह में उनके सम्बन्धियों को देते थे। वे वही चीज़ें, अधिक या कम महत्व के हर व्यक्ति को देते थे।

16 ये लोग संग्रह की हुई चीज़ों को तीन वर्ष के लड़के और उससे अधिक उम्र के उन लड़कों को भी देते थे जिनका नाम लेवीवंश के इतिहास में होता था। इन सभी पुरुषों को यहोवा के मन्दिर में अपनी नित्य सेवाओं को करने के लिये जाना होता था जिनको करना उनका उत्तरदायित्व था। लेवीवंशियों के हर एक समूह का अपना उत्तरदायित्व था। 17 याजकों को संग्रह का उनका हिस्सा दिया जाता था। यह परिवार के क्रम से वैसे ही किया जाता था जैसे वे अपने परिवार इतिहास में लिखे रहते थे। बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के लेवीवंशियों को संग्रह का उनका हिस्सा दिया जाता था। यह उनके उत्तरदायित्व और वर्ग के अनुसार किया जाता था। 18 लेविवंशियों के बच्चे, पत्नियाँ, पुत्र तथा पुत्रियाँ भी संग्रह का अपना हिस्सा पाते थे। यह उन सभी लेवीवंशियों के लिये किया जाता था जो परिवार के इतिहास में अंकित थे। यह इसलिये हुआ कि लेवीवंशी अपने को पवित्र और सेवा के लिये तैयार रखने में दृढ़ विश्वास रखते थे।

19 याजक हारून के कुछ वंशजों के पास कुछ कृषि योग्य खेत नगर के समीप वहाँ थे जहाँ लेवीवंशी रहते थे और हारून के वंशजों में से कुछ नगरों में भी रहते थे। उन नगरों में से हर एक में हारून के इन वंशजों को संग्रह का हिस्सा देने के लिये व्यक्ति नामांकन द्वारा चुने जाते थे। पुरुष तथा वे सभी जिनका नाम लेवीवंश के इतिहास में था सभी संग्रह का हिस्सा पाते थे।

20 इस प्रकार राजा हिजकिय्याह ने पूरे यहूदा में वे सब अच्छे कार्य किये। उसने वही किया जो यहोवा, उसके परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा, ठीक और विश्वास योग्य था। 21 उसने जो भी कार्य परमेश्वर के मन्दिर की सेवा में, नियमों व आज्ञाओं का पालन करने में और अपने परमेश्वर का अनुसरण करने में किये उसमें उसे सफलता मिली। हिजकिय्याह ने ये सभी कार्य अपने पूरे हृदय से किये।

अराम का राजा हिजकिय्याह को परेशान करने का प्रयत्न करता है

32 हिजकिय्याह ने ये सब कार्य जो विश्वासपूर्वक पूरे किये। अश्शूर का राजा सन्हेरीब यहूदा देश पर आक्रमण करने आया। सन्हेरीब और उसकी सेना ने किले के बाहर डेरा डाला। उसने यह इसलिये किया कि वह नगरों को जीतने की योजना बना सके। सन्हेरीब इन नगरों को अपने लिये जीतना चाहता था। हिजकिय्याह जानता था कि वह यरूशलेम, इस पर आक्रमण करने आया है। तब हिजकिय्याह ने अपने अधिकारियों और सेना के अधिकरियों से सलाह ली। वे एकमत हो गए कि नगर के बाहर के सोतों का पानी रोक दिया जाये। उन अधिकारियों और सेना के अधिकारियों ने हिजकिय्याह की सहायता की। बहुत से लोग एक साथ आए और उन्होंने सभी सोतों और नालों को जो देश के बीच से होकर बहते थे, रोक दिया। उन्होंने कहा, “अश्शूर के राजा को यहाँ आने पर पर्याप्त पानी नहीं मिलेगा!” हिजकिय्याह ने यरूशलेम को पहले से अधिक मजबूत बनाया। यह उसने इस प्रकार किया: उसने दीवार के टूटे भागों को फिर बनवाया। उसने दीवारों पर मीनारें बनाईं। उसने पहली दीवार के बाहर दूसरी दीवार बनाईं। उसने फिर पुराने यरूशलेम के पूर्व की ओर के स्थानों को मजबूत किया। उसने अनेकों हथियार और ढालें बनवाईं। 6-7 हिजकिय्याह ने युद्ध के अधिकारियों को लोगों का अधीक्षक होने के लिये चुना। वह इन अधिकारियों से नगर द्वार के बाहर खुले स्थान में मिला। हिजकिय्याह ने उन अधिकारियों से सलाह की और उन्हें उत्साहित किया। उसने कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। अश्शूर के राजा या उसके साथ की विशाल सेना से मत डरना, न ही उससे परेशान होना। अश्शूर के राजा के पास जो शक्ति है उससे भी बड़ी शक्ति हम लोगों के साथ है! अश्शूर के राजा के पास केवल व्यक्ति हैं। किन्तु हम लोगों के साथ यहोवा, अपना परमेश्वर है। हमारा परमेश्वर हमारी सहायता करेगा। वह हमारा युद्ध स्वयं लड़ेगा।” इस प्रकार यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने लोगों को उत्साहित किया और उन्हें पहले से अधिक शक्तिशाली होने का अनुभव कराया।

अश्शूर के राजा सन्हेरीब और उसकी सारी सेना लाकीश नगर के पास डेरा डाले पड़ी थी। ताकि वे इसे हरा सकें तब अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिय्याह के पास और यहूदा के सभी लोगों के पास अपने सेवक भेजे। सन्हेरीब के सेवक हिजकिय्याह और यरूशलेम के सभी लोगों के लिये एक सन्देश ले गए।

10 उन्होंने कहा, “अश्शूर का राजा सन्हेरीब यह कहता है: ‘तुम किसमें विश्वास करते हो जो तुम्हें यरूशलेम में युद्ध की स्थिति में ठहरना सिखाता है? 11 हिजकिय्याह तुम्हें मूर्ख बना रहा है। तुम्हें यरूशलेम में ठहरे रखने के लिये धोखा दिया जा रहा है। इस प्रकार तुम भूख—प्यास से मर जाओगे। हिजकिय्याह तुमसे कहता है, “यहोवा, हमारा परमेश्वर हमें अश्शूर के राजा से बचायेगा।” 12 हिजकिय्याह ने स्वयं यहोवा के उच्चस्थानों और वेदियों को हटाया है। उसने यहूदा और इस्राएल के तुम लोगों से कहा कि तुम लोगों को केवल एक वेदी पर उपासना करनी और सुगन्धि चढ़ानी चाहिए। 13 निश्चय ही, तुम जानते हो कि मेरे पूर्वजों और मैंने अन्य देशों के लोगों के साथ क्या किया है? अन्य देशों के देवता अपने लोगों को नहीं बचा सके। वे देवता मुझे उनके लोगों को नष्ट करने से न रोक सके। 14 मेरे पूर्वजों ने उन देशों को नष्ट किया। कोई भी ऐसा देवता नहीं जो मुझसे अपने लोगों को नष्ट होने से बचा ले। फिर भी तुम सोचते हो कि तुम्हारा देवता तुम्हें मुझसे बचा लेगा 15 हिजकिय्याह को तुम्हें मूर्ख बनाने और धोखा देने मत दो। उस पर विश्वास न करो क्योंकि किसी राष्ट्र या राज्य का कोई देवता कभी हमसे या हमारे पूर्वजों से अपने लोगों को बचाने में समर्थ नहीं हुआ है। इसलिये यह मत सोचो कि तुम्हारा देवता मुझे तुमको नष्ट करने से रोक लेगा।’”

16 अश्शूर के राजा के सेवकों ने इससे भी बुरी बातें यहोवा परमेश्वर तथा परमेश्वर के सेवक हिजकिय्याह के विरुद्ध कहीं। 17 अश्शूर के राजा ने ऐसे पत्र भी लिखे जो इस्राएल के यहोवा परमेश्वर का अपमान करते थे। अश्शूर के राजा ने उन पत्रों में जो कुछ लिखा था वह यह है: “अन्य राज्यों के देवता मुझसे नष्ट होने से अपने लोगों को न बचा सके। उसी प्रकार हिजकिय्याह का परमेश्वर अपने लोगों को मेरे द्वारा नष्ट किये जाने से नहीं रोक सकता।” 18 तब अश्शूर के राजा के सेवक यरूशलेम के उन लोगों पर जोर से चिल्लाये जो नगर की दीवार पर थे। उन सेवकों ने उस समय हिब्रू भाषा का प्रयोग किया जब वे दीवार पर के लोगों के प्रति चिल्लाये। अश्शूर के राजा के उन सेवकों ने यह सब इसलिये किया कि यरूशलेम के लोग डर जायें। उन्होंने वे बातें इसलिये कहीं कि यरूशलेम नगर पर अधिकार कर सकें। 19 उन सेवकों ने उन देवताओं के विरुद्ध बुरी बातें कहीं जिनकी पूजा संसार के लोग करते थे। वे देवता सिर्फ ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें मनुष्यों ने अपने हाथ से बनाया है। इस प्रकार उन सेवकों ने वे ही बुरी बातें यरूशलेम के परमेश्वर के विरुद्ध कहीं।

20 राजा हिजकिय्याह और आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने इस समस्या के बारे में प्रार्थना की। उन्होंने जोर से स्वर्ग को पुकारा। 21 तब यहोवा ने अश्शूर के राजा के खेमे में एक स्वर्गदूत को भेजा। उस स्वर्गदूत ने अश्शूर की सेना के सब अधिकारियों, प्रमुखों और सैनिकों को मार डाला। इसलिये अश्शूर का राजा अपने देश में अपने घर लौट गया और उसके लोग उसकी वजह से बहुत लज्जित हुए। वह अपने देवता के मन्दिर में गया और उसी के पुत्रों में से किसी ने उसे वहीं तलवार से मार डाला। 22 इस प्रकार यहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के लोगों को अश्शूर के राजा सन्हेरीब और सभी अन्य लोगों से बचाया। यहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के लोगों की देखभाल की। 23 बहुत से लोग यरूशलेम में यहोवा के लिये भेंट लाए। वे यहूदा के राजा हिजकिय्याह के पास बहुमूल्य चीज़ें ले आए। उस समय के बाद सभी राष्ट्रों ने हिजकिय्याह को सम्मान दिया।

24 उन दिनों हिजकिय्याह बहुत बीमार पड़ा और मृत्यु के निकट था। उसने यहोवा से प्रार्थना की। यहोवा हिजकिय्याह से बोला और उसे एक चिन्ह दिया।[a] 25 किन्तु हिजकिय्याह का हृदय घमण्ड से भर गया इसलिये उसने परमेश्वर की कृपा के लिये परमेश्वर को धन्यवाद नहीं किया। यही कारण था कि परमेश्वर हिजकिय्याह और यरूशलेम तथा यहूदा के लोगों पर क्रोधित हुआ। 26 किन्तु हिजकिय्याह और यरूशलेम में रहने वाले लोगों ने अपने हृदय तथा जीवन को बदल दिया। वे विनम्र हो गये और घमण्ड करना छोड़ दिया। इसलिये जब तक हिजकिय्याह जीवित रहा यहोवा का क्रोध उस पर नहीं उतरा।

27 हिजकिय्याह को बहुत धन औऱ सम्मान प्राप्त था। उसने चाँदी, सोने, कीमती रत्न, मसालें, ढालें और सभी प्रकार की चीज़ों के रखने के लिये स्थान बनाए। 28 हिजकिय्याह के पास लोगों द्वारा भेजे गये अन्न, नया दाखमधु और तेल के लिये भंडारण भवन थे। उसके पास पशुओं के लिये पशुशालायें और भेड़ों के लिये भेड़शालायें थीं। 29 हिजकिय्याह ने बहुत से नगर भी बनाये और उसे अनेक पशुओं के झुँड और भेड़ों के रेवड़ें मिलीं। परमेश्वर ने हिजकिय्याह को बहुत अधिक धन दिया। 30 यह हिजकिय्याह ही था जिसने यरूशलेम में गिहोन सोते की ऊपरी जल धाराओं के उदगर्मो को रोका और उन जल धाराओं को दाऊद नगर के ठीक पश्चिम को बहाया और हिजकिय्याह उन सबमें सफल रहा जो कुछ उसने किया।

31 किसी समय बाबुल के प्रमुखों ने हिजकिय्याह के पास दूत भेजे। उन दूतों ने एक विचित्र दृश्य के विषय में पूछा जो राष्ट्रों में प्रकट हुआ था। जब वे आए तो परमेश्वर ने हिजकिय्याह को अकेले छोड़ दिया जिससे कि वह अपनी जाँच कर सके औऱ वह सब कुछ जान सके जो हिजकिय्याह के हृदय में था।[b]

32 हिजकिय्याह का शेष इतिहास औऱ कैसे उसने यहोवा को प्रेम किया, का विवरण आमोस के पुत्र यशायाह नबी के दर्शन ग्रन्थ और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में मिलता है। 33 हिजकिय्याह मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफनाया गया। लोगों ने हिजकिय्याह को उस पहाड़ी पर दफनाया जहाँ दाऊद के पुत्रों की कब्रें हैं। जब वह मरा तो यहूदा के सभी लोगों ने तथा यरूशलेम के रहने वालों ने हिजकिय्याह को सम्मान दिया। हिजकिय्याह के स्थान पर मनश्शे नया राजा हुआ। मनश्शे हिजकिय्याह का पुत्र था।

यहूदा का राजा मनशशे

33 मनशशे जब यहूदा का राजा हुआ वह बारह वर्ष का था। वह यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राजा रहा। मनशशे ने वे सब कार्य किये जिन्हें यहोवा ने गलत कहा था। उसने अन्य राष्ट्रों के भयंकर और पापपूर्ण तरीकों का अनुसरण किया। यहोवा ने उन राष्ट्रों को इस्राएल के लोगों के सामने बाहर निकल जाने के लिये विवश किया था। मनशशे ने फिर उन उच्च स्थानों को बनाया जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने तोड़ गिराया था। मनशशे ने बाल देवताओं की वेदियाँ बनाईं और अशेरा—स्तम्भ खड़े किये। वह नक्षत्र—समूह को प्रणाम करता था तथा उन्हें पूजता था। मनश्शे ने यहोवा के मन्दिर में असत्य देवताओं के लिये वेदियाँ बनाईं। यहोवा ने मन्दिर के बारे में कहा था, “मेरा नाम यरूशलेम में सदैव रहेगा।” मनश्शे ने सभी नक्षत्र—समूहों के लिये यहोवा के मन्दिर के दोनों आँगनों में वेदियाँ बनाईं। मनश्शे ने अपने बच्चों को भी बलि के लिये हिन्नोम की घाटी में जलाया। मनश्शे ने शान्तिपाठ, दैवीकरण और भविष्य कथन के रूप में जादू का उपयोग किया। उसने ओझाओं और भूत सिद्धि करने वालों के साथ बातें कीं। मनशशे ने यहोवा की दृष्टि में बहुत पाप किया। मनशशे के पापों ने यहोवा को क्रोधित किया। उसने एक देवता की मूर्ति बनाई और उसे परमेश्वर के मन्दिर में रखा। परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से मन्दिर के बारे में कहा था, “मैं इस भवन तथा यरूशलेम में अपना नाम सदा के लिये अंकित करता हूँ। मैंने यरूशलेम को इस्राएल के सभी परिवार समूहों में से चुना। मैं फिर इस्राएलियों को उस भूमि से बाहर नहीं करुँगा जिसे मैंने उनके पूर्वजों को देने के लिये चुना। किन्तु उन्हें उन नियमों का पालन करना चाहिए जिनका आदेश मैंने दिया है। इस्राएल के लोगों को उन सभी विधियों, नियमों और आदेशों का पालन करना चाहिए जिन्हें मैंने मूसा को उन्हें देने के लिये दिया।”

मनशशे ने यहूदा के लोगों और यरूशलेम में रहने वाले लोगों को पाप करने के लिये उत्साहित किया। उसने उन राष्ट्रों से भी बड़ा पाप किया जिन्हें यहोवा ने नष्ट किया था और जो इस्राएलियों से पहले उस प्रदेश में थे!

10 यहोवा ने मनश्शे और उसके लोगों से बातचीत की। किन्तु उन्होंने सुनने से इन्कार कर दिया। 11 इसलिये यहोवा ने यहूदा पर आक्रमण करने के लिये अश्शूर के राजा के सेनापतियों को वहाँ पहुँचाया। इन सेनापतियों ने मनश्शे को पकड़ लिया और उसे बन्दी बना लिया। उन्होंने उसको बेड़ियाँ पहना दीं और उसके हाथों में पीतल की जंजीरे डालीं। उन्होंने मनश्शे को बन्दी बनाया और उसे बाबुल देश ले गए।

12 मनश्शे को कष्ट हुआ। उस समय उसने यहोवा अपने परमेश्वर से याचना की। मनश्शे ने स्वयं को अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सामने विनम्र बनाया। 13 मनश्शे ने परमेश्वर से प्रार्थना की और परमेश्वर से सहायता की याचना की। यहोवा ने मनश्शे की याचना सुनी और उसे उस पर दया आई। यहोवा ने उसे यरूशलेम अपने सिंहासन पर लौटने दिया। तब मनश्शे ने समझा कि यहोवा सच्चा परमेश्वर है।

14 जब यह सब हुआ तो मनश्शे ने दाऊद नगर के लिये बाहरी दीवार बनाई। बाहरी दीवार गिहोन सोते के पश्चिम की ओर घाटी (किद्रोन) में मछली द्वार के साथ थी। मनश्शे ने इस दीवार को ओपेल पहाड़ी के चारों ओर बना दिया। उसने दीवार को बहुत ऊँचा बनाया। तब उसने अधिकारियों को यहूदा के सभी किलों में रखा। 15 मनश्शे ने विचित्र देवमूर्तियों को हटाया। उसने यहोवा के मन्दिर से देवमूर्ति को बाहर किया। उसने उन सभी वेदियों को हटाया जिन्हें उसने मन्दिर की पहाड़ी पर और यरूशलेम में बनाया था। मनश्शे ने उन सभी वेदियों को यरूशलेम नगर से बाहर फेंका। 16 तब उसने यहोवा की वेदी स्थापित की और मेलबलि तथा धन्यवाद भेंट इस पर चढ़ाई। मनश्शे ने यहूदा के सभी लोगों को इस्राएल के यहोवा परमेश्वर की सेवा करने का आदेश दिया। 17 लोगों ने उच्च स्थानों पर बलि देना जारी रखा, किन्तु उनकी भेंटें केवल यहोवा उनके परमेश्वर के लिये थीं।

18 मनश्शे ने जो कुछ अन्य किया और उसकी परमेश्वर से प्रार्थनाऐं और उन दृष्टाओं के कथन जिन्होंने इस्राएल के यहोवा परमेश्वर के नाम पर उससे बातें की थीं, वे सभी इस्राएल के राजा नामक पुस्तक में लिखी हैं। 19 मनश्शे ने कैसे प्रार्थना की और परमेश्वर ने वह कैसे सुनी और उस पर दया की, यह दृष्टाओं की पुस्तक में लिखा है। मनश्शे के सभी पाप और बुराईयाँ जो उसने स्वयं को विनम्र करने से पूर्व कीं और वे स्थान जहाँ उसने उच्च स्थान बनाए और अशेरा—स्तम्भ खड़े किये, दृष्टाओं की पुस्तक में लिखे हैं। 20 अन्त में मनश्शे मरा और अपने पूर्वजों के साथ दफना दिया गया। लोगों ने मनश्शे को उसके अपने राजभवन में दफनाया। मनश्शे के स्थान पर आमोन नया राजा हुआ। आमोन मनश्शे का पुत्र था।

यहूदा का राजा आमोन

21 आमोन जब यहूदा का राजा हुआ, बाईस वर्ष का था। वह दो वर्ष तक यरूशलेम का राजा रहा। 22 आमोन ने यहोवा के सामने बुरे काम किये। यहोवा उससे जो कराना चाहता था उन्हें उसने ठीक अपने पिता मनश्शे की तरह नहीं किया। आमोन ने सभी खुदी हुई मूर्तियों तथा अपने पिता मनश्शे की बनाई मूर्तियों को बलि चढ़ाई। आमोन ने उन मूर्तियों की पूजा की। 23 आमोन ने स्वयं को अपने पिता मनश्शे की तरह यहोवा के सामने विनम्र नहीं बनाया। किन्तु आमोन अधिक से अधिक पाप करता गया। 24 आमोन के सेवकों ने उसके विरुद्ध योजना बनाई। उन्होंने आमोन को उसके घर में मार डाला। 25 किन्तु यहूदा के लोगों ने उन सभी सेवकों को मार डाला जिन्होंने राजा आमोन के विरुद्ध योजना बनाई थी। तब लोगों ने योशिय्याह को नया राजा चुना। योशिय्याह आमोन का पुत्र था।

यहूदा का राजा योशिय्याह

34 योशिय्याह जब राजा बना, आठ वर्ष का था। वह यरूशलेम में इकतिस वर्ष तक राजा रहा। योशिय्याह ने वही किया जो उचित था। उसने वही किया जो यहोवा उससे करवाना चाहता था। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह अच्छे काम किये। योशिय्याह उचित काम करने से नहीं हटा। जब योशिय्याह आठ वर्ष तक राजा रह चुका तो वह अपने पूर्वज दाऊद के अनुसार परमेश्वर का अनुसरण करने लगा। योशिय्याह बच्चा ही था जब उसने परमेश्वर की आज्ञा माननी आरम्भ की। जब योशिय्याह राजा के रूप में बारह वर्ष का हुआ, उसने उच्च स्थानों, अशेरा—स्तम्भों पर खुदी मूर्तियों औऱ यहूदा और यरूशलेम में ढली मूर्तियों को नष्ट करना आरम्भ कर दिया। लोगों ने बाल देवताओं की वेदियाँ तोड़ दीं। उन्होंने यह योशिय्याह के सामने किया। तब योशिय्याह ने सुगन्धि के लिये बनी उन वेदियों को नष्ट कर डाला जो लोगों से भी बहुत ऊँची उठी थीं। उसने खुदी मूर्तियों तथा ढली मूर्तियों को तोड़ डाला। उसने उन मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। तब योशिय्याह ने उस चूर्ण को उन लोगों की कब्रों पर डाला जो बाल देवताओं को बलि चढ़ाते थे। योशिय्याह ने उन याजकों की हड्डियों तक को जलाया जिन्होंने अपनी वेदियों पर बाल—देवताओं की सेवा की थी। इस प्रकार योशिय्याह ने मूर्तियों और मूर्ति पूजा को यहूदा और यरूशलेम से नष्ट किया। योशिय्याह ने यही काम मनश्शे, एप्रैम, शिमोन और नप्ताली तक के राज्यों के नगरों में किया। उसने वही उन सब नगरों के पास के खंडहरों के साथ किया। योशिय्याह ने वेदियों और अशेरा—स्तम्भों को तोड़ दिया। उसने मूर्तियों को पीटकर चूर्ण बना दिया। उसने पूरे इस्राएल देश में उन सुगन्धि—वेदियों को काट डाला जो बाल की पूजा में काम आती थीं। तब योशिय्याह यरूशलेम लौट गया।

जब योशिय्याह यहूदा के राजा के रूप में अपने अट्ठारहवें वर्ष में था, उसने शापान, मासेयाह और योआह को अपने यहोवा परमेश्वर के मन्दिर की मरम्मत करने के लिये भेजा। शापान के पिता का नाम असल्याह था। मासेयाह नगर प्रमुख था और योआह के पिता का नाम योआहाज था। योआह वह व्यक्ति था जिसने जो कुछ हुआ उसे लिखा (वह लेखक था)।

योशिय्याह ने मन्दिर को स्थापित करने का आदेश दिया जिससे वह यहूदा और मन्दिर दोनों को स्वच्छ रख सके। वे लोग महा याजक हिल्किय्याह के पास आए। उन्होंने वह धन उसे दिया जो लोगों ने परमेश्वर के मन्दिर के लिये दिया था। लेवीवंशी द्वारपालों ने यह धन मनश्शे, एप्रैम और बचे सभी इस्राएलियों से इकट्ठा किया। उन्होंने यह धन सारे यहूदा, बिन्यामीन और यरूशलेम में रहने वाले सभी लोगों से भी इकट्ठा किया। 10 तब लेवीवंशियों ने उन व्यक्तियों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर के काम की देख—रेख कर रहे थे और निरीक्षकों ने उन मज़दूरों को यह धन दिया जो यहोवा के मन्दिर को फिर बना कर स्थापित कर रहे थे। 11 उन्होंने बढ़ईयों और राजगीरों को पहले से कटी बड़ी चट्टानों को खरीदने के लिये और लकड़ी खरीदने के लिये धन दिया। लकड़ी का उपयोग भवनों को फिर से बनाने और भवन के शहतीरों के लिये किया गया। भूतकाल में यहूदा के राजा मन्दिरों की देखभाल नहीं करते थे। वे भवन पुराने और खंडहर हो गए थे। 12-13 लोगों ने विश्वासपूर्वक काम किया। उनके निरीक्षक यहत और ओबद्याह थे। यहत और ओबद्याह लेवीवंशी थे और वे मरारी के वंशज थे। अन्य निरीक्षक जकर्याह और मशुल्लाम थे। वे कहात के वंशज थे। जो लेवीवंशी संगीत—वाद्या बजाने में कुशल थे, वे भी चिज़ों को ढोने वाले तथा अन्य मज़दूरों का निरीक्षण करते थे। कुछ लेवीवंशी सचिव, अधिकारी और द्वारपाल का काम करते थे।

व्यवस्था की पुस्तक मिली

14 लेवीवंशियों ने उस धन को निकाला जो यहोवा के मन्दिर में था। उस समय याजक हिल्किय्याह ने यहोवा के व्यवस्था की वह पुस्तक प्राप्त की जो मूसा द्वारा दी गई थी। 15 हिल्किय्याह ने सचिव शापान से कहा, “मैंने यहोवा के मन्दिर में व्यवस्था की पुस्तक पाई है!” हिल्कय्याह ने शापान को पुस्तक दी। 16 शापान उस पुस्तक को राजा योशिय्याह के पास लाया। शापान ने राजा को सूचना दी, “तुम्हारे सेवक हर काम कर रहे हैं जो तुमने करने को कहा है। 17 उन्होंने यहोवा के मन्दिर से धन को निकाला और उसे निरीक्षकों एवं मज़दूरों को दे रहे हैं।” 18 तब शापान ने राजा योशिय्याह से कहा, “याजक हिल्किय्याह ने मुझे एक पुस्तक दी है।” तब शापान ने पुस्तक से पढ़ा। जब वह पढ़ रहा था, तब वह राजा के सामने था। 19 जब राजा योशिय्याह ने नियमों को पढ़े जाते हुए सुना, उसने अपने वस्त्र फाड़ लिये। 20 तब राजा ने हिल्किय्याह शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, सचिव शापान और सेवक असायाह को आदेश दिया। 21 राजा ने कहा, “जाओ, मेरे लिये तथा इस्राएल और यहूदा में जो लोग बचे हैं उनके लिये यहोवा से याचना करो। जो पुस्तक मिली है उसके कथनों के बारे में पूछो। यहोवा हम लोगों पर बहुत क्रोधित है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने यहोवा के कथनों का पालन नहीं किया। उन्होंने वे सब काम नहीं किये जो यह पुस्तक करने को कहती है!”

22 हिल्किय्याह और राजा के सेवक नबिया हुल्दा के पास गए, हुल्दा शल्लूम की पत्नी थी। शल्लूम तोखत का पुत्र था। तोखत हस्रा का पुत्र था। हस्रा राजा के वस्त्रों की देखरेख करता था। हुल्दा यरूशलेम के नये भाग में रहती थी। हिल्किय्याह और राजा के सेवकों ने हुल्दा को सब कुछ बताया जो हो चुका था। 23 हुल्दा ने उनसे कहा, “हस्राएल का परमेश्वर यहोवा जो कहता है वह यह है: राजा योशिय्याह से कहो: 24 यहोवा जो कहता है वह यह है, ‘मैं इस स्थान और यहाँ के निवासियों पर विपत्ति डालूँगा। मैं सभी भंयकर विपत्तियों को जो यहूदा के राजा के सामने पढ़ी पुस्तक में लिखी गई हैं, लाऊँगा। 25 मैं यह इसलिये करूँगा कि लोगों ने मुझे छोड़ा और अन्य देवताओं के लिये सुगन्धि जलाई। उन लोगों ने मुझे क्रोधित किया क्योंकि उन्होंने सभी बुरी बातें की हैं। इसलिये मैं अपना क्रोध इस स्थान पर उतारुँगा। मेरा क्रोध तप्त अग्निज्वाला की तरह बुझाया नहीं जा सकता!’

26 “किन्तु यहूदा के राजा योशिय्याह से कहो। उसने यहोवा से पूछने के लिये तुम्हें भेजा। इस्राएल का यहोवा परमेश्वर, ‘जिन कथनों को तुमने कुछ समय पहले सुना है, उनके विषय में कहता है: 27 योशिय्याह तुमने पश्चाताप किया और तुमने अपने को विनम्र किया और अपने वस्त्रों को फाड़ा, तथा तुम मेरे सामने चिल्लाए। अत: क्योंकि तुम्हारा हृदय कोमल है। 28 मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्वजों के पास ले जाऊँगा। तुम अपनी कब्र में शान्तिपूर्वक जाओगे। तुम्हें उन विपत्तियों में से कोई भी नहीं देखनी पड़ेंगी जिन्हें मैं इस स्थान और यहाँ रहने वाले लोगों पर लाऊँगा।’” हिल्किय्याह और राजा के सेवक योशिय्याह के पास यह सन्देश लेकर लौटे।

29 राजा योशिय्याह ने यहूदा औऱ यरूशलेम के सभी अग्रजों को अपने पास आने और मिलने के लिये बुलाया। 30 राजा, यहोवा के मन्दिर में गया। यहूदा के सभी लोग, यरूशलेम में रहने वाले लोग, याजक, लेवीवंशी और सभी साधारण व असाधारण लोग योशिय्याह के साथ थे। योशिय्याह ने उन सबके सामने साक्षी की पुस्तक के कथन पढ़े। वह पुस्तक यहोवा के मन्दिर में मिली थी। 31 तब राजा अपने स्थान पर खड़ा हुआ। उसने यहोवा के साथ वाचा की। उसने यहोवा का अनुसरण करने की और यहोवा के आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करने की वाचा की। योशिय्याह पूरे हृदय और आत्मा से आज्ञा पालन करने को सहमत हुआ। वह पुस्तक में लिखे वाचा के कथनों का पालन करने को सहमत हुआ। 32 तब योशिय्याह ने यरूशलेम और बिन्यामीन के सभी लोगों से वाचा को स्वीकार करने की प्रतिज्ञा कराई। यरूशलेम में लोगों ने परमेश्वर की वाचा का पालन किया, उस परमेश्वर की वाचा का जिसकी आज्ञा का पालन उनके पूर्वर्जों ने किया था। 33 योशिय्याह ने उन सभी स्थानों से मूर्तियों को फेंक दिया जो स्थान इस्राएल के लोगों के थे। यहोवा उन मूर्तियों से घृणा करता है। योशिय्याह ने इस्राएल के हर एक व्यक्ति को अपने यहोवा परमेश्वर की सेवा में पहुँचाया। जब तक योशिय्याह जीवित रहा, लोगों ने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बन्द नहीं किया।

योशिय्याह फसह पर्व मनाता है

35 यरूशलेम में राजा योशिय्याह ने यहोवा के लिये फसह पर्व मनाया। पहले महीने के चौदहवें दिन फसह पर्व का मेमना मारा गया। योशिय्याह ने अपना अपना कार्य पूरा करने के लिये याजकों को चुना। उसने याजकों को उत्साहित किया, जब वे यहोवा के मन्दिर में सेवा कर रहे थे। योशिय्याह ने उन लेवीवंशियों से बातें कीं जो इस्राएल के लोगों को उपदेश देते थे तथा जो यहोवा की सेवा के लिये पवित्र बनाए गए थे। उसने उन लेवीवंशियों से कहा: “पवित्र सन्दूक को उस मन्दिर में रखो जिसे सुलैमान ने बनाया। सुलैमान दाऊद का पुत्र था। दाऊद इस्राएल का राजा था। पवित्र सन्दूक को अपने कंधों पर फिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर मत ले जाओ। अब अपने यहोवा परमेश्वर की सेवा करो। परमेश्वर के लोगों अर्थात् इस्राएल के लोगों की सेवा करो। अपने को, अपने परिवार समूहों के क्रम में, मन्दिर की सेवा के लिये तैयार करो। उन कार्यों को करो जिन्हें राजा दाऊद और उसके पुत्र राजा सुलैमान ने तुम्हें करने के लिये दिया था। पवित्र स्थान में लेवीवंशियों के समूह के साथ खड़े हो। लोगों के हर एक भिन्न परिवार समूह के साथ ऐसा ही करो, इस प्रकार तुम उनकी सहायता कर सकते हो। फसह पर्व के मेमनों को मारो और यहोवा के प्रति अपने को पवित्र करो। मेमनों को अपने भाई इस्राएलियों के लिये तैयार करो। सब कुछ वैसे ही करो जैसा करने का आदेश यहोवा ने दिया है। यहोवा ने उन सभी आदेशों को हमें मूसा द्वारा दिया था।”

योशिय्याह ने इस्राएल के लोगों को तीस हज़ार भेड़—बकरियाँ फसह पर्व की बलि के लिये दीं। उसने लोगों को तीन हजार पशु भी दिये। ये सभी जानवर राजा योशिय्याह के अपने जानवरों में से थे। योशिय्याह के अधिकारियों ने भी, स्वेच्छा से लोगों को याजकों और लेवीवंशियों को फसह पर्व में उपयोग करने के लिये जानवर और चीज़ें दीं। प्रमुख याजक हिल्किय्याह, जकर्याह और यहीएल मन्दिर के उत्तरदायी अधिकारी थे। उन्होंने यजाकों को दो हजार छ: सौ मेमने और बकरे और तीन सौ बैल फसह पर्व बलि के लिये दिये। कोनन्याह ने भी शमायाह, नतनेल, तथा उसके भाईयों के साथ और हसब्याह, यीएल तथा योजाबाद ने पाँच सौ भेड़ें—बकरियाँ, पाँच सौ बैल फसह पर्व बलि के लिये लेवीवंशियों को दिये। वे लोग लेवीवंशियों के प्रमुख थे।

10 जब हर एक चीज़ फसह पर्व की सेवा आरम्भ करने के लिये तैयार हो गई, तो याजक और लेवीवंशी स्थानों पर गए। यह वही हुआ जो राजा का आदेश था। 11 फसह पर्व के मेमने मारे गए। तब लेवीवंशियों ने जानवरों के चमड़े उतारे और याजकों को खून दिया। याजकों ने खून को वेदी पर छिड़का। 12 तब उन्होंने जानवरों को विभिन्न परिवार समूहों की होमबलि में उपयोग के लिये दिया। यह इसलिये किया गया कि होमबलि उस प्रकार दी जा सके जिस प्रकार मूसा के नियमों ने सिखाया था। 13 लेवीवंशियों ने फसह पर्व फसह पर्व की बलियों को आग पर इस प्रकार भूना जैसा उन्हें आदेश दिया गया था और उन्होंने पवित्र भेंटों को हंडिया, देग और कढ़ाहियों में पकाया। तब उन्होंने लोगों को शीघ्रता से माँस दिया। 14 जब यह पूरा हुआ तब लेवीवंशियों को अपने लिये औऱ उन याजकों के लिये माँस मिला जो हारून के वंशज थे। उन याजकों को काम करते हुए अंधेरा होने तक काम में बहुत अधिक लगाए रखा गया। उन्होंने होमबलि औक बलिदानों की चर्बी को जलाते हुए कड़ा परिश्रम किया। 15 आसाप के परिवार के लेवीवंशी गायक उन स्थानों पर पहुँचे जिन्हें राजा दाऊद ने उनके खड़े होने के लिये चुना था। वे: आसाप, हेमान और राजा का नबी यदूतून थे। हर एक द्वार पर द्वारपाल अपना स्थान नहीं छोड़ सकते थे क्योंकि उनके लेवीवंशी भाईयों ने हर एक चीज़ उनके फसह पर्व के लिये तैयार कर दी थी।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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