Bible in 90 Days
बैथलहम नगर में मसीह येशु का जन्म
2 यह उस समय की घटना है जब सम्राट कयसर औगुस्तॉस की ओर से यह राजाज्ञा घोषित की गई कि सभी रोम शासित राष्ट्रों में जनगणना की जाए. 2 यह सीरिया राज्य पर राज्यपाल क्वीरिनियुस के शासनकाल में पहिली जनगणना थी. 3 सभी नागरिक अपने नाम लिखवाने के लिए अपने-अपने जन्मस्थान को जाने लगे.
4 योसेफ़, दाविद के वंशज थे, इसलिए वह गलील प्रदेश के नाज़रेथ नगर से यहूदिया प्रदेश के बैथलहम अर्थात् दाविद के नगर गए 5 कि वह भी अपनी मंगेतर मरियम के साथ, जो गर्भवती थीं, नाम लिखवाएं. 6 वहीं मरियम का प्रसवकाल पूरा हुआ 7 और उन्होंने अपने पहिलौठे पुत्र को जन्म दिया. उन्होंने उसे कपड़ों में लपेट कर चरनी में लिटा दिया क्योंकि यात्री निवास में उनके ठहरने के लिए कोई स्थान उपलब्ध न था.
चरवाहों द्वारा मसीह येशु की वन्दना
8 उसी क्षेत्र में कुछ चरवाहे रात के समय मैदानों में अपनी भेड़ों की चौकसी कर रहे थे. 9 सहसा प्रभु का एक स्वर्गदूत उनके सामने प्रकट हुआ और प्रभु का तेज उनके चारों ओर फैल गया और चरवाहे अत्यन्त डर गए. 10 इस पर स्वर्गदूत ने उन्हें धीरज देते हुए कहा, “डरो मत! क्योंकि मैं अतिशय आनन्द का एक शुभसन्देश लाया हूँ, जो सभी के लिए है: 11 तुम्हारे उद्धारकर्ता ने आज दाविद के नगर में जन्म लिया है. मसीह प्रभु वही हैं. 12 उनकी पहचान के चिह्न ये हैं: कपड़ों में लिपटा और चरनी में लेटा हुआ एक शिशु”.
13 सहसा उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का एक विशाल समूह प्रकट हुआ, जो परमेश्वर की स्तुति इस गान के द्वारा कर रहा था:
14 “सबसे ऊँचे स्वर्ग में परमेश्वर की स्तुति; तथा पृथ्वी पर उनमें, जिन पर
उनकी कृपादृष्टि है, शान्ति स्थापित हो.”
15 जब स्वर्गदूत स्वर्ग लौट गए तब चरवाहों ने आपस में विचार किया, “आओ हम बैथलहम जा कर वह सब देखें, जिसका प्रभु ने हम पर प्रकाशन किया है.”
16 इसलिए वे तुरन्त चल पड़े और बैथलहम नगर पहुँच कर मरियम, योसेफ़ तथा उस शिशु को देखा, जो चरनी में लेटा हुआ था. 17 उस शिशु का दर्शन कर वे उससे सम्बन्धित सभी बातों को, जो उन पर प्रकाशित की गयी थी, सभी जगह बताने लगे. 18 सभी सुननेवालों के लिए चरवाहों का समाचार आश्चर्य का विषय था. 19 मरियम इन बातों को अपने हृदय में सँजोकर उनके बारे में सोच विचार करती रहीं. 20 चरवाहे परमेश्वर की स्तुति तथा गुणगान करते हुए लौट गए क्योंकि जो कुछ उन्होंने देखा था, वह ठीक वैसा ही था, जैसा उन पर प्रकाशित किया गया था.
21 जन्म के आठवें दिन, ख़तना के समय, उस शिशु का नाम येशु रखा गया—वही नाम, जो उनके गर्भ में आने के पूर्व स्वर्गदूत द्वारा बताया गया था.
मसीह येशु का अर्पण किया जाना
22 जब मोशेह की व्यवस्था के अनुरूप मरियम और योसेफ़ के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए, वे शिशु को येरूशालेम लाए कि उसे प्रभु को भेंट किया जाए. 23 जैसा कि व्यवस्था का आदेश है: हर एक पहिलौठा पुत्र प्रभु को भेंट किया जाए 24 तथा प्रभु के व्यवस्था की आज्ञा के अनुसार एक जोड़ा पंडुकी या कबूतर के दो बच्चों की बलि चढ़ाई जाए.
25 येरूशालेम में शिमोन नामक एक व्यक्ति थे. वह धर्मी तथा श्रद्धालु थे. वह इस्राएल की शान्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन पर पवित्रात्मा का आच्छादन था. 26 पवित्रात्मा के द्वारा उन पर यह स्पष्ट कर दिया गया था कि प्रभु के मसीह को देखे बिना उनकी मृत्यु नहीं होगी. 27 पवित्रात्मा के सिखाने पर शिमोन मन्दिर के आँगन में आए. उसी समय मरियम और योसेफ़ ने व्यवस्था द्वारा निर्धारित विधियों को पूरा करने के उद्देश्य से शिशु येशु को ले कर वहाँ प्रवेश किया. 28 शिशु येशु को देखकर शिमोन ने उन्हें गोद में लेकर परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा.
शिमोन का विदाई गान
29 “परम प्रधान प्रभु, अब अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार
अपने सेवक को शान्ति में विदा कीजिए,
30 क्योंकि मैंने अपनी आँखों से आपके उद्धार को देख लिया है,
31 जिसे आपने सभी के लिए तैयार किया है.
32 यह आपकी प्रजा इस्राएल का गौरव तथा सब राष्ट्रों की ज्ञान की ज्योति है.”
33 मरियम और योसेफ़ अपने पुत्र के विषय में इन बातों को सुन चकित रह गए. 34 शिमोन ने मरियम को सम्बोधित करते हुए ये आशीर्वचन कहे: “यह पहिले से ठहराया हुआ है कि यह शिशु इस्राएल में अनेकों के पतन और उत्थान के लिए चुना गया है. यह एक ऐसा चिन्ह होगा लोकमत जिसके विरुद्ध ही होगा. 35 यह तलवार तुम्हारे ही प्राण को आर-पार बेध देगी—कि अनेकों के हृदयों के विचार प्रकट हो जाएँ.”
36 हन्ना नामक एक भविष्यद्वक्तिन थीं, जो आशेर वंश के फ़नुएल नामक व्यक्ति की पुत्री थीं. वह अत्यन्त वृद्ध थीं तथा विवाह के बाद पति के साथ मात्र सात वर्ष रह कर विधवा हो गई थीं. 37 इस समय उनकी आयु चौरासी वर्ष थी. उन्होंने मन्दिर कभी नहीं छोड़ा और वह दिन-रात उपवास तथा प्रार्थना करते हुए परमेश्वर की उपासना में तल्लीन रहती थीं. 38 उसी समय वह वहाँ आईं और परमेश्वर के प्रति धन्यवाद व्यक्त करने लगीं. उन्होंने उन सभी को इस शिशु के विषय में सूचित किया, जो येरूशालेम के छुटकारे की प्रतीक्षा में थे.
39 जब योसेफ़ तथा मरियम प्रभु के व्यवस्था में निर्धारित विधियाँ पूरी कर चुके, वे गलील प्रदेश में अपने नगर नाज़रेथ लौट गए. 40 बालक येशु बड़े होते हुए बलवन्त होते गए तथा उनकी बुद्धि का विकास होता गया. परमेश्वर उनसे प्रसन्न थे तथा वह उनकी कृपादृष्टि के पात्र थे.
ज्ञानियों के मध्य मसीह येशु
41 मसीह येशु के माता-पिता प्रतिवर्ष फ़सह उत्सव के उपलक्ष्य में येरूशालेम जाया करते थे. 42 जब मसीह येशु की अवस्था बारह वर्ष की हुई, तब प्रथा के अनुसार वह भी अपने माता-पिता के साथ उत्सव के लिए येरूशालेम गए. 43 उत्सव की समाप्ति पर जब उनके माता-पिता घर लौट रहे थे, बालक येशु येरूशालेम में ही ठहर गए. उनके माता-पिता इससे अनजान थे. 44 यह सोच कर कि बालक यात्री-समूह में ही कहीं होगा, वे उस दिन की यात्रा में आगे बढ़ते गए. जब उन्होंने परिजनों-मित्रों में मसीह येशु को खोजना प्रारम्भ किया, 45 मसीह येशु उन्हें उनके मध्य नहीं मिले इसलिए वे उन्हें खोजने येरूशालेम लौट गए. 46 तीन दिन बाद उन्होंने मसीह येशु को मन्दिर-परिसर में शिक्षकों के साथ बैठा हुआ पाया. वहाँ बैठे हुए वह उनकी सुन रहे थे तथा उनसे प्रश्न भी कर रहे थे. 47 जिस किसी ने भी उनको सुना, वह उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे. 48 उनके माता-पिता उन्हें वहाँ देख चकित रह गए. उनकी माता ने उनसे प्रश्न किया, “पुत्र! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हारे पिता और मैं तुम्हें कितनी बेचैनी से खोज रहे थे!”
49 “क्यों खोज रहे थे आप मुझे?” मसीह येशु ने उनसे पूछा, “क्या आपको यह मालूम न था कि मेरा मेरे पिता के घर में ही होना उचित है?” 50 मरियम और योसेफ़ को मसीह येशु की इस बात का अर्थ समझ नहीं आया.
51 मसीह येशु अपने माता-पिता के साथ नाज़रेथ लौट गए और उनके आज्ञाकारी रहे. उनकी माता ने ये सब विषय हृदय में सँजोए रखे. 52 मसीह येशु बुद्धि, ड़ीलड़ौल तथा परमेश्वर और मनुष्यों की कृपादृष्टि में बढ़ते चले गए.
बपतिस्मा देने वाले योहन का उपदेश
(मत्ति 3:1-12; मारक 1:1-8)
3 सम्राट कयसर तिबेरियॉस के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष में जब पोन्तियॉस पिलातॉस यहूदिया प्रदेश का, हेरोदेस गलील प्रदेश का, उसका भाई फ़िलिप्पॉस इतूरिया और त्रख़ोनीतिस प्रदेश का 2 तथा लिसनियस एबिलीन का राज्यपाल था तथा जब हन्ना और कायाफ़स महायाजक पद पर थे; ज़कर्याह के पुत्र योहन को, जब वह जंगल में थे, परमेश्वर की ओर से एक सन्देश प्राप्त हुआ. 3 इसलिए योहन यरदन नदी के आस-पास के सभी क्षेत्र में भ्रमण करते हुए पाप-क्षमा के लिए पश्चाताप के बपतिस्मा का प्रचार करने लगे; 4 जैसी बपतिस्मा देने वाले योहन के विषय में भविष्यद्वक्ता यशायाह की भविष्यवाणी है:
जंगल में पुकारती हुई आवाज़
प्रभु के लिए मार्ग तैयार करो.
उनके लिए रास्ते सीधे बनाओ.
5 हर एक घाटी भर दी जाएगी,
हर एक पर्वत और पहाड़ी समतल की जाएगी.
टेढ़े रास्ते सीधे हो जाएँगे तथा असमतल पथ समतल.
6 हर एक मनुष्य के सामने परमेश्वर का उद्धार स्पष्ट हो जाएगा.
7 बपतिस्मा लेने के उद्देश्य से अपने पास आई भीड़ को सम्बोधित करते हुए योहन कहते थे, “अरे ओ विषैले सर्पों की सन्तान! तुम्हें आनेवाले महाक्रोध से बच कर लौटने की चेतावनी किसने दे दी? 8 सच्चे मन फिराने का प्रमाण दो और इस भ्रम में स्वयं को धोखा न दो: ‘हम तो अब्राहाम की सन्तान हैं!’ क्योंकि यह समझ लो कि परमेश्वर में इन पत्थरों तक से अब्राहाम की सन्तान उत्पन्न करने का सामर्थ्य है. 9 पहले ही वृक्षों की जड़ पर कुल्हाड़ी रखी हुई है. हर एक ऐसा पेड़, जिसका फल अच्छा नहीं है, काटा और आग में झोंक दिया जाता है.”
10 इस पर भीड़ ने उनसे प्रश्न किया, “तब हम क्या करें?”
11 योहन ने उन्हें उत्तर दिया, “जिस व्यक्ति के पास दो कुर्ते हैं, वह एक उसे दे दे, जिसके पास एक भी नहीं है. जिसके पास भोजन है, वह भी यही करे.”
12 चुँगी लेने वाले भी बपतिस्मा के लिए उनके पास आए और उन्होंने योहन से प्रश्न किया, “गुरुवर! हमारे लिए उचित क्या है?”
13 “निर्धारित राशि से अधिक मत लो.” योहन ने उत्तर दिया. 14 कुछ सिपाहियों ने उनसे प्रश्न किया, “हमें बताइए—हम क्या करें?”
योहन ने उत्तर दिया, “न तो डरा-धमका कर लोगों से पैसा ऐंठो और न ही उन पर झूठा आरोप लगाओ परन्तु अपने वेतन में ही सन्तुष्ट रहो.”
15 बड़ी जिज्ञासा के भाव में भीड़ यह जानने का प्रयास कर रही थी और अपने-अपने हृदय में यही विचार कर रहे था कि कहीं योहन ही तो मसीह नहीं हैं. 16 भीड़ को सम्बोधित करते हुए योहन ने स्पष्ट किया, “मेरा बपतिस्मा तो मात्र जल-बपतिस्मा है किन्तु एक मुझसे अधिक शक्तिमान आ रहे हैं. मैं तो उनकी जूतियों के बन्ध खोलने योग्य भी नहीं. वही हैं, जो तुम्हें पवित्रात्मा और आग में बपतिस्मा देंगे. 17 वह गेहूं को निरुपयोगी भूसी और डण्ठल से अलग करते हैं. वह गेहूं को खलिहान में इकट्ठा करेंगे तथा भूसी को कभी न बुझनेवाली आग में स्वाहा कर देंगे.” 18 योहन अनेक प्रकार से शिक्षा देते हुए लोगों में सुसमाचार का प्रचार करते रहे.
19 जब योहन ने राज्यपाल हेरोदेस को उसके भाई की पत्नी हेरोदिअस के विषय में तथा स्वयं उसी के द्वारा किए गए अन्य कुकर्मों के कारण फटकार लगाई, 20 तब हेरोदेस ने एक और कुकर्म किया: उसने योहन ही को बन्दी बना कर कारागार में डाल दिया.
मसीह येशु का बपतिस्मा
(मत्ति 3:13-17; मारक 1:9-11)
21 जब लोग योहन से बपतिस्मा ले रहे थे, उन्होंने मसीह येशु को भी बपतिस्मा दिया. इस अवसर पर, जब मसीह येशु प्रार्थना कर रहे थे, स्वर्ग खोल दिया गया 22 और पवित्रात्मा मसीह येशु पर शारीरिक रूप में कबूतर के समान उतरे और स्वर्ग से निकला एक शब्द सुना गया: “तुम मेरे पुत्र हो—मेरे प्रिय. मैं तुममें पूरी तरह संतुष्ट हूँ.”
मसीह येशु की वंशावली
(मत्ति 1:1-17)
23 मसीह येशु ने जब अपनी सेवकाई प्रारम्भ की तब उनकी अवस्था लगभग तीस वर्ष की थी. जैसा समझा जाता है कि वह योसेफ़ के पुत्र हैं,
योसेफ़ हेली के, हेली मत्ताथा के
24 मत्ताथा लेवी के, लेवी मेल्ख़ी के,
मेल्ख़ी यन्नाई के, यन्नाई योसेफ़ के,
योसेफ़ मत्ताथियाह के,
25 मत्ताथियाह आमोस के, आमोस नहूम के,
नहूम ऍस्ली के, ऍस्ली नग्गाई के,
26 नग्गाई माहथ के, माहथ मत्ताथियाह के,
मत्ताथियाह सेमेई के, सेमेई योसेख़ के,
योसेख़ योदा के, 27 योदा योअनान के,
योअनान रेसा के, रेसा ज़ेरुब्बाबिल के,
ज़ेरुब्बाबिल सलाथिएल के, सलाथिएल नेरी के,
28 नेरी मेल्ख़ी के, मेल्ख़ी अद्दी के,
अद्दी कोसम के, कोसम एल्मोदम के,
एल्मोदम एर के, 29 एर योसेस के,
योसेस एलिएज़र के, एलिएज़र योरीम के,
योरीम मथ्थात के, मथ्थात लेवी के,
30 लेवी शमौन के, शमौन यहूदाह के,
यहूदाह योसेफ़ के, योसेफ़ योनन के,
योनन एलिआकिम के 31 एलिआकिम मेलिया के,
मेलिया महीनन के, महीनन मत्ताथा के,
मत्ताथा नाथान के, 32 नाथान दाविद के,
दाविद यिश्शै के, यिश्शै ओबेद के,
ओबेद बोअज़ के, बोअज़ सलमोन के,
सलमोन नाहश्शोन के, नाहश्शोन अम्मीनादाब के,
33 अम्मीनादाब आदमीन के, आदमीन आरनी के,
आरनी हेस्रोन के, हेस्रोन फ़ारेस के,
फ़ारेस यहूदाह के, 34 यहूदाह याक़ोब के,
याक़ोब इसहाक के, इसहाक अब्राहाम के,
अब्राहाम थेराह के, थेराह नाख़ोर के,
35 नाख़ोर सेरूख़ के, सेरूख़ रागाउ के,
रागाउ फ़ालेक के, फ़ालेक ईबर के,
ईबर शेलाह के, 36 शेलाह केनन के,
केनन अरफ़ाक्षाद के, अरफ़ाक्षाद शेम के,
शेम नोहा के, नोहा लामेख़ के,
37 लामेख़ मेथुसेलाह के, मेथुसेलाह हनोक,
हनोक यारेत के, यारेत मालेलेईल के,
मालेलेईल काईनम के, 38 काईनम ईनॉश के,
ईनॉश सेथ के, सेथ आदम के और
आदम परमेश्वर के पुत्र थे.
जंगल में शैतान द्वारा मसीह येशु की परीक्षा
(मत्ति 4:1-11; मारक 1:12, 13)
4 पवित्रात्मा से भरकर मसीह येशु यरदन नदी से लौटे और आत्मा उन्हें जंगल में ले गया, 2 जहाँ चालीस दिन तक शैतान उन्हें परीक्षा में डालने का प्रयास करता रहा. इस अवधि में वह पूरी तरह बिना भोजन के रहे, इसके बाद उन्हें भूख लगी.
3 शैतान ने उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो इस पत्थर को आज्ञा दो कि यह रोटी बन जाए.”
4 मसीह येशु ने उसे उत्तर दिया, “लिखा है: मनुष्य मात्र रोटी से ही जीवित नहीं रहेगा.”
5 इसके बाद शैतान ने उन्हें ऊँचे पहाड़ पर ले जा कर क्षण मात्र में सारे विश्व के सभी राज्यों की झलक दिखाई 6 और उनसे कहा, “इन सबका सारा अधिकार और वैभव मैं तुम्हें दूँगा क्योंकि ये सब मुझे सौंपे गए हैं इसलिए ये सब मैं अपनी इच्छा से किसी को भी दे सकता हूँ. 7 यदि तुम मात्र मेरी आराधना करो तो ये सब तुम्हारा हो जाएगा.”
8 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “लिखा है: तुम केवल प्रभु, अपने परमेश्वर की ही वन्दना करना तथा मात्र उन्हीं की सेवा करना.”
9 इसके बाद शैतान ने उन्हें येरूशालेम ले जा कर मन्दिर की चोटी पर खड़ा कर दिया और उनसे कहा, “यदि तुम परमेश्वर-पुत्र हो तो यहाँ से कूद जाओ, 10 क्योंकि लिखा है:
“‘वह अपने स्वर्गदूतों को तुम्हारी सुरक्षा के सम्बन्ध
में आज्ञा देंगे तथा;
11 वे तुम्हें हाथों-हाथ उठा लेंगे;
कि तुम्हारे पांव को पत्थर से चोट न लगे.’”
12 इसके उत्तर में मसीह येशु ने उससे कहा, “यह भी तो लिखा है: तुम प्रभु अपने परमेश्वर को न परखना.”
13 जब शैतान मसीह येशु को परीक्षा में डालने के सभी प्रयास कर चुका, वह उन्हें किसी सटीक अवसर तक के लिए छोड़ कर चला गया.
प्रचार का प्रारम्भ गलील प्रदेश से
(मत्ति 4:12-17; मारक 1:14-15; योहन 4:43-45)
14 मसीह येशु आत्मा के सामर्थ्य में गलील प्रदेश लौट गए. नज़दीकी सभी नगरों में उनके विषय में समाचार फैल गया. 15 मसीह येशु यहूदी सभागृहों में शिक्षा देते थे तथा सभी उनकी सराहना करते थे.
16 मसीह येशु नाज़रेथ नगर आए, जहाँ उनका पालन-पोषण हुआ था. शब्बाथ पर अपनी रीति के अनुसार वह यहूदी सभागृह में जा कर पवित्रशास्त्र पढ़ने के लिए खड़े हो गए. 17 उन्हें भविष्यद्वक्ता यशायाह का अभिलेख दिया गया. उन्होंने उसमें वह जगह निकाली, जहाँ लिखा है:
18 “प्रभु का आत्मा मेरे साथ हैं,
क्योंकि उन्होंने कंगालों को सुसमाचार देने के लिए मेरा अभिषेक किया है.
उन्होंने मुझे बन्दियों के छुटकारे का प्रचार, अंधों को रोशनी,
कुचले हुओं को कष्ट से छुड़ाने
19 तथा प्रभु की कृपादृष्टि के समय के प्रचार के लिए भेजा है.”
20 तब उन्होंने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथों में दे दी और स्वयं बैठ गए. सभागृह में हर एक व्यक्ति उन्हें एकटक देख रहा था. 21 मसीह येशु ने आगे कहा, “आज आपके सुनते-सुनते यह लेख पूरा हुआ.”
22 सभी मसीह येशु की सराहना कर रहे थे तथा उनके मुख से निकलने वाले सुन्दर विचारों ने सबको चकित कर रखा था. वे आपस में पूछ रहे थे, “यह योसेफ़ का ही पुत्र है न?”
23 मसीह येशु ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा, “मैं जानता हूँ कि आप मुझसे यह कहना चाहेंगे, ‘अरे चिकित्सक! पहले स्वयं को तो स्वस्थ कर! अपने गृहनगर में भी वह सब कर दिखा, जो हमने तुझे कफ़रनहूम में करते सुना है.’”
24 मसीह येशु ने आगे कहा, “वास्तव में कोई, भी भविष्यद्वक्ता अपने गृहनगर में सम्मान नहीं पाता. 25 सच तो यह है कि एलियाह के समय में जब साढ़े तीन वर्ष वर्षा न हुई, इस्राएल राष्ट्र में अनेक विधवाएँ थीं, तथा सभी राष्ट्र में भयंकर अकाल पड़ा; 26 एलियाह को उनमें से किसी के पास नहीं भेजा गया, अतिरिक्त उसके, जो त्सीदोन प्रदेश के सारेप्ता नगर में थी. 27 वैसे ही भविष्यद्वक्ता एलीशा के समय में इस्राएल राष्ट्र में अनेक कोढ़ रोगी थे किन्तु सीरियावासी नामान के अतिरिक्त कोई भी शुद्ध नहीं किया गया.”
28 यह सुनते ही यहूदी सभागृह में इकट्ठा सभी व्यक्ति अत्यन्त क्रोधित हो गए. 29 उन्होंने मसीह येशु को धक्के मारते हुए नगर के बाहर निकाल दिया और उन्हें खींचते हुए उस पर्वत शिखर पर ले गए, जिस पर वह नगर बसा हुआ था कि उन्हें चट्टान पर से नीचे धकेल दें 30 किन्तु मसीह येशु बचते हुए भीड़ के बीच से निकल गए.
मसीह येशु की अधिकारपूर्ण शिक्षा
(मारक 1:21-28)
31 वहाँ से वह गलील प्रदेश के कफ़रनहूम नामक नगर में आए और शब्बाथ पर लोगों को शिक्षा देने लगे. 32 मसीह येशु की शिक्षा उनके लिए आश्चर्य का विषय थी क्योंकि उनका सन्देश अधिकारपूर्ण होता था.
33 सभागृह में एक प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति था. वह ऊँचे शब्द में बोल उठा, 34 “ओ नाज़रेथ के येशु! हमारा और तुम्हारा एक दूसरे से क्या लेना-देना? क्या तुम हमें नाश करने आए हो? हम सब जानते हैं कि तुम कौन हो—परमेश्वर के पवित्र जन.”
35 “चुप!” मसीह येशु ने कड़े शब्द में कहा, “उसमें से बाहर निकल आ!” प्रेत ने उस व्यक्ति को उन सबके सामने भूमि पर पटक दिया और उस व्यक्ति की हानि किए बिना उसमें से निकल गया.
36 यह देख वे सभी चकित रह गए और आपस में कहने लगे, “विलक्षण है यह सन्देश! यह बड़े अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ प्रेतों को आज्ञा देता है और वे मनुष्यों में से बाहर आ जाते हैं!” 37 उनके विषय में यह वर्णन आस-पास के सभी क्षेत्रों में फैल गया.
पेतरॉस की सास को स्वास्थ्यदान
(मत्ति 8:14-17; मारक 1:29-34)
38 यहूदी सभागृह से निकल कर मसीह येशु शिमोन के निवास पर गए. वहाँ शिमोन की सास ज्वर-पीड़ित थीं. शिष्यों ने मसीह येशु से उन्हें स्वस्थ करने की विनती की 39 मसीह येशु ने उनके पास जा कर ज्वर को फटकारा और ज्वर उन्हें छोड़ चला गया. वह तुरन्त बिछौने से उठ कर उनकी सेवा टहल में जुट गईं.
40 सूर्यास्त के समय लोग विभिन्न रोगों से पीड़ितों को उनके पास ले आए. मसीह येशु ने हर एक पर हाथ रख उन्हें रोग से मुक्ति प्रदान की. 41 इसके अतिरिक्त अनेकों में से प्रेत यह चिल्लाते हुए बाहर निकल गए, “आप तो परमेश्वर-पुत्र हैं!” किन्तु मसीह येशु उन्हें डाँट कर बोलने से रोक देते थे क्योंकि प्रेत उनके मसीह होने के सत्य से परिचित थे.
42 पौ फटते ही मसीह येशु एक सुनसान स्थल पर चले गए. लोग उन्हें खोजते हुए वहाँ पहुँच गए. वे प्रयास कर रहे थे कि मसीह येशु उन्हें छोड़ कर न जाएँ. 43 मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “यह ज़रूरी है कि मैं अन्य नगरों में भी जा कर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार दूँ क्योंकि मुझे इसी उद्देश्य से भेजा गया है.” 44 इसलिए वह यहूदिया प्रदेश के यहूदी सभागृहों में सुसमाचार का प्रचार करते रहे.
पहिले चार शिष्यों का बुलाया जाना
5 एक दिन मसीह येशु गन्नेसरत झील के तट पर खड़े थे. वहाँ एक बड़ी भीड़ उनसे परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उन पर गिर पड़ रही थी. 2 मसीह येशु ने तट पर नावेँ देखीं. मछुवारे उन्हें छोड़ कर चले गए थे क्योंकि वे अपने जाल धो रहे थे. 3 मसीह येशु एक नाव पर बैठ गए, जो शिमोन की थी. उन्होंने शिमोन से नाव को तट से कुछ दूर झील में ले जाने के लिए कहा और तब उन्होंने नाव में बैठ कर इकट्ठा भीड़ को शिक्षा देनी प्रारम्भ कर दी.
4 जब वह अपना विषय समाप्त कर चुके, शिमोन को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, “नाव को गहरे जल में ले चलो और तब जाल डालो.”
5 शिमोन प्रभु से बोले, “स्वामी! हम रात भर कठिन परिश्रम कर चुके हैं किन्तु हाथ कुछ न लगा, फिर भी, इसलिए कि यह आप कह रहे हैं, मैं जाल डाल देता हूँ.”
6 यह कहते हुए उन्होंने जाल डाल दिए. जाल में इतनी बड़ी संख्या में मछलियां आ गईं कि जाल फटने लगे 7 इसलिए उन्होंने दूसरी नाव के सहमछुवारों को सहायता के लिए बुलाया. उन्होंने आ कर सहायता की और दोनों नावों में इतनी मछलियां भर गईं कि बोझ के कारण नावें डूबने लगीं.
8 सच्चाई का अहसास होते ही शिमोन मसीह येशु के चरणों पर गिर कहने लगे, “आप मुझसे दूर ही रहिए प्रभु, मैं एक पापी मनुष्य हूँ.” 9 यह इसलिए कि शिमोन तथा उनके साथी मछुवारे इतनी मछलियों के पकड़े जाने से अचम्भित थे. 10 शिमोन के अन्य साथी, ज़ेबेदियॉस के दोनों पुत्र, याक़ोब और योहन भी यह देख भौचक्के रह गए थे.
तब मसीह येशु ने शिमोन से कहा, “डरो मत! अब से तुम मछलियों को नहीं, मनुष्यों को मेरे पास लाओगे.” 11 इसलिए उन्होंने नावें तट पर लगाईं और सब कुछ त्याग कर मसीह येशु के पीछे चलने लगे.
कोढ़ रोगी की शुद्धि
(मत्ति 8:1-4; मारक 1:40-45)
12 किसी नगर में एक व्यक्ति था, जिसके सारे शरीर में कोढ़ रोग फैल चुका था. मसीह येशु को देख उसने भूमि पर गिर कर उनसे विनती की, “प्रभु! यदि आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं.”
13 मसीह येशु ने हाथ बढ़ा कर उसका स्पर्श किया और कहा, “मैं चाहता हूँ, शुद्ध हो जाओ!” तत्काल ही उसे कोढ़ रोग से चंगाई प्राप्त हो गई.
14 मसीह येशु ने उसे आज्ञा दी, “इसके विषय में किसी से कुछ न कहना परन्तु जा कर याजक को अपने शुद्ध होने का प्रमाण दो तथा मोशेह द्वारा निर्धारित शुद्धि-बलि भेंट करो कि तुम्हारा कोढ़ से छुटकारा उनके सामने गवाही हो जाए.”
15 फिर भी मसीह येशु के विषय में समाचार और भी अधिक फैलता गया. परिणामस्वरूप लोग भारी संख्या में उनके प्रवचन सुनने और बीमारियों से चँगा होने की अभिलाषा से उनके पास आने लगे. 16 मसीह येशु प्रायः भीड़ को छोड़, गुप्त रूप से, एकान्त में जा कर प्रार्थना किया करते थे.
लकवे से पीड़ित को स्वास्थ्यदान
(मत्ति 9:2-8; मारक 2:1-12)
17 एक दिन, जब मसीह येशु शिक्षा दे रहे थे, फ़रीसी तथा व्यवस्थापक, जो गलील तथा यहूदिया प्रदेशों तथा येरूशालेम नगर से वहाँ आए थे, बैठे हुए थे. रोगियों को स्वस्थ करने का परमेश्वर-प्रदत्त सामर्थ्य मसीह येशु में सक्रिय था. 18 कुछ व्यक्ति एक लकवे के रोगी को बिछौने पर लिटा कर वहाँ लाए. ये लोग रोगी को मसीह येशु के सामने लाने का प्रयास कर रहे थे. 19 जब वे भीड़ के कारण उसे भीतर ले जाने में असफल रहे तो वे छत पर चढ़ गए और छत में से उसके बिछौने सहित रोगी को मसीह येशु के ठीक सामने उतार दिया.
20 उनका यह विश्वास देख मसीह येशु ने कहा, “वत्स! तुम्हारे पाप क्षमा किए जा चुके हैं.”
21 फ़रीसी और शास्त्री अपने मन में विचार करने लगे, “कौन है यह व्यक्ति, जो परमेश्वर-निन्दा कर रहा है? भला परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य कौन पाप क्षमा कर सकता है?”
22 यह जानते हुए कि उनके मन में क्या विचार उठ रहे थे, मसीह येशु ने उनसे कहा, “आप अपने मन में इस प्रकार तर्क-वितर्क क्यों कर रहे हैं? 23 क्या कहना सरल होगा, ‘तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए’ या ‘उठो और चलो’? 24 किन्तु इसलिए कि मैं चाहता हूँ कि आपको यह मालूम हो जाए कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है, मैं लकवे के इस रोगी से कह रहा हूँ, ‘मेरी आज्ञा है, खड़े हो जाओ, अपना बिछौना उठाओ और घर जाओ!’” 25 उसी क्षण वह रोगी उन सबके सामने उठ खड़ा हुआ, अपना बिछौना उठाया, जिस पर वह लेटा हुआ था और परमेश्वर का धन्यवाद करते हुए घर चला गया. 26 सभी हैरान रह गए. सभी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. श्रद्धा से भरकर वे कह रहे थे, “हमने आज अनोखे काम होते देखे हैं.”
लेवी का बुलाया जाना
27 जब वह वहाँ से जा रहे थे, उनकी दृष्टि एक चुँगी लेने वाले पर पड़ी, जिनका नाम लेवी था. वह अपनी चौकी पर बैठे काम कर रहे थे. मसीह येशु ने उन्हें आज्ञा दी, “आओ! मेरे पीछे हो लो!” 28 लेवी उठे तथा सभी कुछ वहीं छोड़ कर मसीह येशु के पीछे हो लिए.
29 मसीह येशु के सम्मान में लेवी ने अपने घर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया. बड़ी संख्या में चुँगी लेने वालों के अतिरिक्त वहाँ अनेक अन्य व्यक्ति भी इकट्ठा थे. 30 यह देख उस सम्प्रदाय के फ़रीसी और शास्त्री मसीह येशु के शिष्यों से कहने लगे, “तुम लोग चुँगी लेने वालों तथा अपराधियों के साथ क्यों खाते-पीते हो?”
31 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “चिकित्सक की ज़रूरत स्वस्थ व्यक्ति को नहीं, रोगी को होती है; 32 मैं पृथ्वी पर धर्मियों को नहीं परन्तु पापियों को बुलाने आया हूँ कि वे पश्चाताप करें.”
उपवास के प्रश्न का उत्तर
(मत्ति 9:14-17; मारक 2:18-22)
33 फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उन्हें याद दिलाते हुए कहा, “योहन के शिष्य अक्सर उपवास और प्रार्थना करते हैं. फ़रीसियों के शिष्य भी यही करते हैं किन्तु आपके शिष्य तो खाते-पीते रहते हैं.”
34 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या वर की उपस्थिति में अतिथियों से उपवास की आशा की जा सकती है? 35 किन्तु वह समय आएगा, जब वर उनके मध्य से हटा लिया जाएगा—वे उस समय उपवास करेंगे.”
36 मसीह येशु ने उनके सामने यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया, “पुराने वस्त्र पर नये वस्त्र का जोड़ नहीं लगाया जाता. यदि कोई ऐसा करता है तब कोरा वस्त्र तो नाश होता ही है साथ ही वह जोड़ पुराने वस्त्र पर अशोभनीय भी लगता है. 37 वैसे ही नया दाखरस पुरानी मश्कों में रखा नहीं जाता. यदि कोई ऐसा करे तो नया दाखरस मश्कों को फाड़ कर बह जाएगा और मटकी भी नाश हो जाएगी. 38 नया दाखरस नई मटकियों में ही रखा जाता है. 39 पुराने दाखरस का पान करने के बाद कोई भी नए दाखरस की इच्छा नहीं करता क्योंकि वे कहते हैं, ‘पुराना दाखरस ही उत्तम है.’”
शिष्यों का शब्बाथ पर बालें तोड़ना
(मत्ति 12:1-8; मारक 2:23-28)
6 एक शब्बाथ पर मसीह येशु अन्न के खेत से हो कर जा रहे थे. उनके शिष्यों ने बालें तोड़ कर, मसल-मसल कर खाना प्रारम्भ कर दिया. 2 यह देख कुछ फ़रीसियों ने कहा, “आप शब्बाथ पर यह काम क्यों कर रहे हैं, जो विधानसम्मत नहीं?”
3 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या आपने यह कभी नहीं पढ़ा कि भूख लगने पर दाविद और उनके साथियों ने क्या किया था? 4 दाविद ने परमेश्वर के भवन में प्रवेश कर वह समर्पित रोटी खाई, जिसका खाना पुरोहितों के अतिरिक्त किसी अन्य के लिए विधानसम्मत न था? यही रोटी उन्होंने अपने साथियों को भी दी.” 5 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मनुष्य का पुत्र शब्बाथ का प्रभु है.”
6 एक अन्य शब्बाथ पर मसीह येशु यहूदी सभागृह में शिक्षा देने लगे. वहाँ एक व्यक्ति था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था. 7 फ़रीसी और शास्त्री इस अवसर की ताक में थे कि शब्बाथ पर मसीह येशु इस व्यक्ति को स्वस्थ करें और वह उन पर दोष लगा सकें. 8 मसीह येशु को उनके मनों में उठ रहे विचारों का पूरा पता था. उन्होंने उस व्यक्ति को, जिसका हाथ सूखा हुआ था, आज्ञा दी, “उठो! यहाँ सबके मध्य खड़े हो जाओ.” वह उठ कर वहाँ खड़ा हो गया.
9 तब मसीह येशु ने फ़रीसियों और शास्त्रियों को सम्बोधित कर प्रश्न किया, “यह बताइए, शब्बाथ पर क्या करना उचित है: भलाई या बुराई? जीवन रक्षा या विनाश?”
10 उन सब पर एक दृष्टि डालते हुए मसीह येशु ने उस व्यक्ति को आज्ञा दी, “अपना हाथ बढ़ाओ!” उसने ऐसा ही किया—उसका हाथ स्वस्थ हो गया था. 11 यह देख फ़रीसी और शास्त्री क्रोध से जलने लगे. वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि मसीह येशु के साथ अब क्या किया जाए.
बारह शिष्यों का चयन
(मारक 3:13-19)
12 एक दिन मसीह येशु पर्वत पर प्रार्थना करने चले गए और सारी रात वह परमेश्वर से प्रार्थना करते रहे. 13 प्रातः काल उन्होंने अपने चेलों को अपने पास बुलाया और उनमें से बारह को चुनकर उन्हें प्रेरित पद प्रदान किया. 14 शिमोन, जिन्हें वह पेतरॉस नाम से पुकारते थे. उनके भाई आन्द्रेयास, याक़ोब, योहन, फ़िलिप्पॉस, बारथोलोमेयॉस 15 मत्ति, थोमॉस, हलफ़ेयॉस के पुत्र याक़ोब, राष्ट्रवादी शिमोन, 16 याक़ोब के पुत्र यहूदाह तथा कारियोतवासी यहूदाह, जिसने उनके साथ धोखा किया.
भीड़ द्वारा मसीह येशु का अनुगमन
17 मसीह येशु उनके साथ पर्वत से उतरे और आ कर एक समतल स्थल पर खड़े हो गए. येरूशालेम तथा समुद्र के किनारे के नगर त्सोर और त्सीदोन से आए लोगों तथा सुनने वालों का एक बड़ा समूह वहाँ इकट्ठा था, 18 जो उनके प्रवचन सुनने और अपने रोगों से चंगाई के उद्धेश्य से वहाँ आया था. इस समूह में वे दुष्टात्मा से पीड़ित भी सम्मिलित थे, जिन्हें मसीह येशु प्रेतमुक्त करते जा रहे थे. 19 सभी लोग उन्हें छूने का प्रयास कर रहे थे क्योंकि उनसे निकली हुई सामर्थ्य उन सभी को स्वस्थ कर रही थी.
20 अपने शिष्यों की ओर दृष्टि करते हुए मसीह येशु ने उनसे कहा:
“धन्य हो तुम सभी जो निर्धन हो,
क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है.
21 धन्य हो तुम जो भूखे हो,
क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे.
धन्य हो तुम जो इस समय रो रहे हो,
क्योंकि तुम आनन्दित होगे.
22 धन्य हो तुम सभी जिनसे सभी मनुष्य घृणा करते हैं,
तुम्हारा बहिष्कार करते हैं, तुम्हारी निन्दा करते हैं,
तुम्हारे नाम को मनुष्य के पुत्र के
कारण बुराई करनेवाला घोषित कर देते हैं.
23 “आनन्दित हो कर हर्षोल्लास में उछलो-कूदो, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा फल होगा. उनके पूर्वजों ने भी भविष्यद्वक्ताओं को इसी प्रकार सताया था.
24 “धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो धनी हो! तुम अपने सारे सुख भोग चुके!
25 धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो अब तृप्त हो क्योंकि तुम्हारे लिए भूखा रहना निर्धारित है.
धिक्कार है तुम पर! तुम,
जो इस समय हँस रहे हो क्योंकि तुम शोक तथा विलाप करोगे.
26 धिक्कार है तुम पर! जब सब मनुष्य तुम्हारी प्रशंसा करते हैं
क्योंकि उनके पूर्वज झूठे भविष्यद्वक्ताओं के साथ यही किया करते थे.”
शत्रुओं से प्रेम करने की शिक्षा
(मत्ति 5:43-48)
27 “किन्तु तुम, जो इस समय मेरे प्रवचन सुन रहे हो, अपने शत्रुओं से प्रेम करो तथा उनके साथ भलाई, जो तुमसे घृणा करते हैं. 28 जो तुम्हें शाप देते हैं उनके लिए भलाई की कामना करो और जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करें उनके लिए प्रार्थना. 29 यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर प्रहार करे उसकी ओर दूसरा भी फेर दो. यदि कोई तुम्हारी चादर लेना चाहे तो उसे अपना कुर्ता भी देने में संकोच न करो. 30 जब भी कोई तुमसे कुछ माँगे तो उसे अवश्य दो और यदि कोई तुम्हारी कोई वस्तु ले ले तो उसे वापस न माँगो 31 अन्यों के साथ तुम्हारा व्यवहार ठीक वैसा ही हो जैसे व्यवहार की आशा तुम उनसे अपने लिए करते हो.
32 “यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 33 वैसे ही यदि तुम उन्हीं के साथ भलाई करते हो, जिन्होंने तुम्हारे साथ भलाई की है, तो इसमें तुम्हारी क्या प्रशंसा? क्योंकि दुर्जन भी तो यही करते हैं. 34 और यदि तुम उन्हीं को कर्ज़ देते हो, जिनसे राशि वापस प्राप्त करने की आशा होती है तो तुमने कौन सा प्रशंसनीय काम कर दिखाया? ऐसा तो परमेश्वर से दूर रहनेवाले लोग भी करते हैं—इस आशा में कि उनकी सारी राशि उन्हें लौटा दी जाएगी. 35 सही तो यह है कि तुम अपने शत्रुओं से प्रेम करो, उनका उपकार करो और कुछ भी वापस प्राप्त करने की आशा किए बिना उन्हें कर्ज़ दे दो. तब तुम्हारा ईनाम असाधारण होगा और तुम परमप्रधान की सन्तान ठहराए जाओगे क्योंकि वह उनके प्रति भी कृपालु हैं, जो उपकार नही मानते और बुरे हैं. 36 कृपालु बनो, ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारे पिता कृपालु हैं.
अन्यों पर दोष न लगाने की शिक्षा
(मत्ति 7:1-6)
37 “किसी का न्याय मत करो तो तुम्हारा भी न्याय नहीं किया जाएगा. किसी पर दोष मत लगाओ तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा. क्षमा करो तो तुम्हें भी क्षमा किया जाएगा. 38 उदारतापूर्वक दो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा—पूरा नाप दबा-दबा कर और हिला-हिला कर बाहर निकलता हुआ तुम्हारी झोली में उंडेल (यानी अत्यन्त उदारतापूर्वक) देंगे. देने के तुम्हारे नाप के अनुसार ही तुम प्राप्त करोगे.”
39 मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा भी शिक्षा दी.
“क्या कोई अंधा दूसरे अंधे का मार्गदर्शन कर सकता है? क्या वे दोनों ही गड्ढे में न गिरेंगे? 40 विद्यार्थी अपने शिक्षक से बढ़कर नहीं है परन्तु हर एक, जिसने शिक्षा पूरी कर ली है, वह अपने शिक्षक के समान होगा.
41 “तुम अपने भाई के आँख में उस बुरादे के तिनके को क्यों देख रहे हो जबकि अपने आँख में पड़े लट्ठे का तुम्हें ज्ञान ही नहीं? 42 तुम अपने भाई से यह कैसे कह सकते हो, ‘भाई आओ, मैं तुम्हारी आँख में से बुरादे का तिनका निकाल दूँ’ जबकि स्वयं तुमको अपनी आँख में पड़ा लट्ठा दिखाई नहीं देता? अरे पाखण्डी! पहले अपनी आँख में से लट्ठा तो निकाल! तभी तुझे अपने भाई की आँख में से बुरादे का तिनका निकालने के लिए साफ़ दृष्टि मिल सकेगी.”
फलदायी जीवन के विषय में शिक्षा
(मत्ति 7:15-20)
43 “कोई भी अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं लाता और न बुरा पेड़ अच्छा फल. 44 हर एक पेड़ उसके अपने फलों के द्वारा पहचाना जाता है. कंटीले वृक्षों में से लोग अंजीर या कंटीली झाड़ियों में से अंगूर इकट्ठा नहीं किया करते. 45 भला व्यक्ति अपने हृदय में एकत्रित भलाई में से भलाई ही प्रस्तुत करता है, वैसे ही बुरा मनुष्य अपने हृदय में एकत्रित बुरे विचारों में से बुराई ही निकालता है क्योंकि उसका मुख उसके हृदय के अंदर की वस्तुओं में से ही निकालता है.”
दो भवन-निर्माण
(मत्ति 7:21-29)
46 “तुम लोग मुझे, प्रभु-प्रभु कह कर क्यों पुकारते हो जबकि मेरी आज्ञाओं का पालन ही नहीं करते? 47 मैं तुम्हें बताऊँगा कि वह व्यक्ति किस प्रकार का है, जो मेरे पास आता है, मेरे सन्देश को सुनता तथा उसका पालन करता है: 48 वह उस घर बनानेवाले के जैसा है, जिसने गहरी खुदाई करके चट्टान पर नींव डाली. मूसलाधार बारिश के तेज बहाव ने उस घर पर ठोकरें मारी किन्तु उसे हिला न पाया क्योंकि वह घर मजबूत था. 49 वह व्यक्ति, जो मेरे सन्देश को सुनता है किन्तु उसका पालन नहीं करता, उस व्यक्ति के समान है, जिसने भूमि पर बिना नींव के घर बनाया और जिस क्षण उस पर तेज बहाव ने ठोकरें मारी, वह ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया.”
रोमी अधिकारी का विश्वास
(मत्ति 8:5-13)
7 लोगों को ऊपर लिखी शिक्षा देने के बाद मसीह येशु कफ़रनहूम नगर लौट गए. 2 वहाँ एक सेनापति का एक अत्यन्त प्रिय सेवक रोग से बिस्तर पर था. रोग के कारण वह लगभग मरने पर था. 3 मसीह येशु के विषय में मालूम होने पर सेनापति ने कुछ वरिष्ठ यहूदियों को मसीह येशु के पास इस विनती के साथ भेजा, कि वह आ कर उसके सेवक को चँगा करें. 4 उन्होंने मसीह येशु के पास आ कर उनसे विनती कर कहा, “यह सेनापति निश्चय ही आपकी इस दया का पात्र है 5 क्योंकि उसे हमारे राष्ट्र से प्रेम है तथा उसने हमारे लिए सभागृह भी बनाया है.” 6 इसलिए मसीह येशु उनके साथ चले गए.
मसीह येशु उसके घर के पास पहुँचे ही थे कि सेनापति ने अपने मित्रों के द्वारा उन्हें सन्देश भेजा, “प्रभु! आप कष्ट न कीजिए. मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर पधारें. 7 अपनी इसी अयोग्यता को ध्यान में रखते हुए मैं स्वयं आप से भेंट करने नहीं आया. आप मात्र वचन कह दीजिए और मेरा सेवक स्वस्थ हो जाएगा. 8 मैं स्वयं बड़े अधिकारियों के अधीन नियुक्त हूँ और सैनिक मेरे अधिकार में हैं. मैं किसी को आदेश देता हूँ, ‘जाओ!’ तो वह जाता है और किसी को आदेश देता हूँ, ‘इधर आओ!’ तो वह आता है. अपने सेवक से कहता हूँ, ‘यह करो!’ तो वह वही करता है.”
9 यह सुन कर मसीह येशु अत्यन्त चकित हुए और मुड़ कर पीछे आ रही भीड़ को सम्बोधित कर बोले, “मैं यह बताना सही समझता हूँ कि मुझे इस्राएलियों तक में ऐसा दृढ़ विश्वास देखने को नहीं मिला.” 10 वे, जो सेनापति द्वारा मसीह येशु के पास भेजे गए थे, जब घर लौटे तो यह पाया कि वह सेवक स्वस्थ हो चुका था.
विधवा के पुत्र का जी उठना
11 इसके कुछ ही समय बाद मसीह येशु नाइन नामक एक नगर को गए. एक बड़ी भीड़ और उनके शिष्य उनके साथ थे. 12 जब वह नगर-द्वार पर पहुँचे, एक मृत व्यक्ति अन्तिम संस्कार के लिए बाहर लाया जा रहा था—अपनी माता का एकलौता पुत्र और वह स्वयं विधवा थी; और उसके साथ नगर की एक बड़ी भीड़ थी. 13 उसे देख मसीह येशु करुणा से भर उठे. उन्होंने उससे कहा, “रोओ मत!”
14 तब उन्होंने जा कर उस अरथी को स्पर्श किया. यह देख वे, जिन्होंने उसे उठाया हुआ था, रुक गए. तब मसीह येशु ने कहा, “युवक! मैं तुमसे कहता हूँ, उठ जाओ!” 15 मृतक उठ बैठा और वार्तालाप करने लगा. मसीह येशु ने माता को उसका जीवित पुत्र सौंप दिया.
16 वे सभी श्रद्धा में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. वे कह रहे थे, “हमारे मध्य एक तेजस्वी भविष्यद्वक्ता का आगमन हुआ है. परमेश्वर ने अपनी प्रजा की सुधि ली है.” 17 मसीह येशु के विषय में यह समाचार यहूदिया प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों में फैल गया.
बपतिस्मा देने वाले योहन की शंका का समाधान
(मत्ति 11:1-19)
18 योहन के शिष्यों ने उन्हें इस विषय में सूचना दी. 19 योहन ने अपने दो शिष्यों को प्रभु के पास इस प्रश्न के साथ भेजा, “जिनके आगमन की प्रतीक्षा की जा रही है क्या वह आप ही हैं या हम किसी अन्य की प्रतीक्षा करें?”
20 जब वे दोनों मसीह येशु के पास पहुँचे उन्होंने कहा, “बपतिस्मा देने वाले योहन ने हमें आपके पास यह पूछने भेजा है, ‘जिनके आगमन की प्रतीक्षा की जा रही है, क्या वह आप ही हैं या हम किसी अन्य की प्रतीक्षा करें?’”
21 ठीक उसी समय मसीह येशु अनेकों को स्वस्थ कर रहे थे, जो रोगी, पीड़ित और दुष्टात्मा के सताए हुए थे. वह अनेक अंधों को भी दृष्टि प्रदान कर रहे थे. 22 इसलिए मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुमने जो कुछ सुना और देखा है उसकी सूचना योहन को दे दो: अंधे दृष्टि पा रहे हैं, अपंग चल रहे हैं, कोढ़ी शुद्ध होते जा रहे हैं, बहिरे सुनने लगे हैं, मृतक जीवित किए जा रहे हैं तथा कंगालों में सुसमाचार का प्रचार किया जा रहा है. 23 धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर नहीं खाता है.”
24 योहन का सन्देश लानेवालों के विदा होने के बाद मसीह येशु ने भीड़ से योहन के विषय में कहना प्रारम्भ किया, “तुम्हारी आशा जंगल में क्या देखने की थी? हवा में हिलते हुए सरकण्डे को? 25 यदि यह नहीं तो फिर? कीमती वस्त्र पहने हुए व्यक्ति को? सुनो! जो ऐसे वस्त्र पहनते हैं, उनका निवास राजमहलों में होता है. 26 तुम वास्तव में क्या देखने गए थे? एक भविष्यद्वक्ता को? हाँ! मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि यह वह हैं, जो भविष्यद्वक्ता से भी बढ़कर हैं. 27 यह वही हैं, जिनके विषय में लिखा गया है:
“‘मैं अपना दूत तुम्हारे आगे भेज रहा हूँ,
जो तुम्हारे आगे आगे चल कर तुम्हारे लिए मार्ग तैयार करेगा.’
28 सच तो यह है कि प्राकृतिक रूप से जन्मे हुओं में कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं, जो योहन से बढ़कर हो. फिर भी, परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा भी योहन से बढ़कर है.”
29 जब सभी लोगों ने, यहाँ तक कि चुँगी लेनेवालों ने, मसीह येशु के वचन, सुने तो उन्होंने योहन का बपतिस्मा लेने के द्वारा यह स्वीकार किया कि परमेश्वर की योजना सही है. 30 किन्तु फ़रीसियों और शास्त्रियों ने बपतिस्मा न ले कर उनके लिए तय परमेश्वर के उद्देश्य को अस्वीकार कर दिया.
वर्तमान पीढ़ी को मसीह येशु की झड़प
31 मसीह येशु ने आगे कहा, “इस पीढ़ी के लोगों की तुलना मैं किस से करूँ? किसके समान हैं ये? 32 ये हाट में बैठे हुए उन बालकों के समान हैं, जो एक-दूसरे से पुकार-पुकार कर कह रहे हैं:
“‘हमने तुम्हारे लिए बाँसुरी बजाई,
किन्तु तुम नहीं नाचे,
हमने तुम्हारे लिए शोक गीत भी गाया,
फिर भी तुम न रोए.’
33 बपतिस्मा देने वाले योहन रोटी नहीं खाते थे और दाखरस का सेवन भी नहीं करते थे इसलिए तुमने घोषित कर दिया, ‘उसमें प्रेत का वास है.’ 34 मनुष्य के पुत्र का आहार सामान्य है इसलिए तुमने घोषित कर दिया, ‘अरे, वह तो पेटू और पियक्कड़ है! वह तो चुँगी लेनेवालों तथा अपराधियों का मित्र है!’ 35 फिर भी ज्ञान की सच्चाई उसकी सभी सन्तानों द्वारा प्रकट की गई है.”
पापी स्त्री द्वारा मसीह येशु के चरणों का अभ्यंजन
36 एक फ़रीसी ने मसीह येशु को भोज पर आमन्त्रित किया. मसीह येशु आमन्त्रण स्वीकार कर वहाँ गए और भोजन के लिए बैठ गए. 37 नगर की एक पापिन स्त्री, यह मालूम होने पर कि मसीह येशु वहाँ आमन्त्रित हैं, संगमरमर के बर्तन में इत्र ले कर आई 38 और उनके चरणों के पास रोती हुई खड़ी हो गई. उसके आँसुओं से उनके पांव भीगने लगे. तब उसने प्रभु के पावों को अपने बालों से पोंछा, उनके पावों को चूमा तथा उस इत्र को उनके पावों पर उण्डेल दिया.
39 जब उस फ़रीसी ने, जिसने मसीह येशु को आमन्त्रित किया था, यह देखा तो मन में विचार करने लगा, “यदि यह व्यक्ति वास्तव में भविष्यद्वक्ता होता तो अवश्य जान जाता कि जो स्त्री उसे छू रही है, वह कौन है—एक पापी स्त्री!”
40 मसीह येशु ने उस फ़रीसी को कहा, “शिमोन, मुझे तुमसे कुछ कहना है.”
“कहिए, गुरुवर,” उसने कहा.
41 मसीह येशु ने कहा, “एक साहूकार के दो कर्ज़दार थे—एक पाँच सौ दीनार का तथा दूसरा पचास का. 42 दोनों ही कर्ज़ चुकाने में असमर्थ थे इसलिए उस साहूकार ने दोनों ही के कर्ज़ क्षमा कर दिए. यह बताओ, दोनों में से कौन उस साहूकार से अधिक प्रेम करेगा?”
43 शिमोन ने उत्तर दिया, “मेरे विचार से वह, जिसकी बड़ी राशि क्षमा की गई.”
“तुमने सही उत्तर दिया,” मसीह येशु ने कहा.
44 तब उस स्त्री से उन्मुख हो कर मसीह येशु ने शिमोन से कहा, “इस स्त्री की ओर देखो. मैं तुम्हारे यहाँ आया, तुमने तो मुझे पांव धोने के लिए भी जल न दिया किन्तु इसने अपने आँसुओं से मेरे पांव भिगो दिए और अपने केशों से उन्हें पोंछ दिया. 45 तुमने चुम्बन से मेरा स्वागत नहीं किया किन्तु यह स्त्री मेरे पाँवों को चूमती रही. 46 तुमने मेरे सिर पर तेल नहीं मला किन्तु इसने मेरे पाँवों पर इत्र उण्डेल दिया है. 47 मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यह मुझसे इतना अधिक प्रेम इसलिए करती है कि इसके बहुत पाप क्षमा कर दिए गए हैं; किन्तु वह, जिसके थोड़े ही पाप क्षमा किए गए हैं, प्रेम भी थोड़ा ही करता है.”
48 तब मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं.”
49 आमन्त्रित अतिथि आपस में विचार-विमर्श करने लगे, “कौन है यह, जो पाप भी क्षमा करता है?”
50 मसीह येशु ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारा विश्वास ही तुम्हारे उद्धार का कारण है. परमेश्वर की शान्ति में विदा हो जाओ.”
मसीह येशु और शिष्यों की सहयात्री स्त्रियाँ
8 इसके बाद शीघ्र ही मसीह येशु परमेश्वर के राज्य की घोषणा तथा प्रचार करते हुए नगर-नगर और गाँव-गाँव फिरने लगे. बारहों शिष्य उनके साथ-साथ थे. 2 इनके अतिरिक्त कुछ वे स्त्रियाँ भी उनके साथ यात्रा कर रही थीं, जिन्हें रोगों और प्रेतों से छुटकारा दिलाया गया था: मगदालावासी मरियम, जिस में से सात प्रेत निकाले गए थे, 3 हेरोदेस के भण्ड़ारी कूज़ा की पत्नी योहान्ना, सूज़न्ना तथा अन्य स्त्रियाँ. ये वे स्त्रियाँ थी, जो अपनी सम्पत्ति से इनकी सहायता कर रही थीं.
4 जब नगर-नगर से बड़ी भीड़ इकट्ठा हो रही थी और लोग मसीह येशु के पास आ रहे थे, मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा शिक्षा दी.
5 “एक किसान बीज बोने निकला. जब वह बीज बिखरा रहा था, कुछ बीज मार्ग के किनारे गिरे, पैरों के नीचे कुचले गए तथा आकाश के पक्षियों ने उन्हें चुग लिया. 6 कुछ पथरीली भूमि पर जा पड़े, वे अंकुरित तो हुए परन्तु नमी न होने के कारण मुरझा गए. 7 कुछ बीज कंटीली झाड़ियों में जा पड़े और झाड़ियों ने उनके साथ बड़े होते हुए उन्हें दबा दिया. 8 कुछ बीज अच्छी भूमि पर गिरे, बड़े हुए और फल लाए—जितना बोया गया था उससे सौ गुणा.”
जब मसीह येशु यह दृष्टान्त सुना चुके तो उन्होंने ऊँचे शब्द में कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले.”
9 उनके शिष्यों ने उनसे प्रश्न किया, “इस दृष्टान्त का अर्थ क्या है?” 10 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम्हें तो परमेश्वर के राज्य का भेद जानने की क्षमता प्रदान की गई है किन्तु अन्यों के लिए मुझे दृष्टान्तों का प्रयोग करना पड़ता है जिससे कि,
“‘वे देखते हुए भी न देखें;
और सुनते हुए भी न समझें.’
11 “इस दृष्टान्त का अर्थ यह है: बीज परमेश्वर का वचन है. 12 मार्ग के किनारे की भूमि वे लोग हैं, जो वचन सुनते तो हैं किन्तु शैतान आता है और उनके मन से वचन उठा ले जाता है कि वे विश्वास करके उद्धार प्राप्त न कर सकें 13 पथरीली भूमि वे लोग हैं, जो परमेश्वर के वचन को सुनने पर खुशी से स्वीकारते हैं किन्तु उनमें जड़ न होने के कारण वे विश्वास में थोड़े समय के लिए ही स्थिर रह पाते हैं. कठिन परिस्थितियों में घिरने पर वे विश्वास से दूर हो जाते हैं. 14 वह भूमि जहाँ बीज कँटीली झाड़ियों के मध्य गिरा, वे लोग हैं, जो सुनते तो हैं किन्तु जब वे जीवनपथ पर आगे बढ़ते हैं, जीवन की चिन्ताएँ, धन तथा विलासिता उनका दमन कर देती हैं और वे मजबूत हो ही नहीं पाते. 15 इसके विपरीत उत्तम भूमि वे लोग हैं, जो भले और निष्कपट हृदय से वचन सुनते हैं और उसे दृढ़तापूर्वक थामे रहते हैं तथा निरन्तर फल लाते हैं.
दीपक का दृष्टान्त
16 “कोई भी दीपक को जला कर न तो उसे बर्तन से ढांकता है और न ही उसे पलंग के नीचे रखता है परन्तु उसे दीवट पर रखता है कि कमरे में प्रवेश करने पर लोग देख सकें. 17 ऐसा कुछ भी छिपा हुआ नहीं है जिसे प्रकट न किया जाएगा तथा ऐसा कोई रहस्य नहीं जिसे उजागर कर सामने न लाया जाएगा. 18 इसलिए इसका विशेष ध्यान रखो कि तुम कैसे सुनते हो. जिस किसी के पास है, उसे और भी दिया जाएगा तथा जिस किसी के पास नहीं है, उसके पास से वह भी ले लिया जाएगा, जो उसके विचार से उसका है.”
मसीह येशु के वास्तविक परिजन
(मत्ति 12:46-50; मारक 3:31-35)
19 तब मसीह येशु की माता और उनके भाई उनसे भेंट करने वहाँ आए किन्तु लोगों की भीड़ के कारण वे उनके पास पहुँचने में असमर्थ रहे. 20 किसी ने मसीह येशु को सूचना दी, “आपकी माता और आपके भाई बाहर खड़े हैं—वे आप से भेंट करना चाह रहे हैं.”
21 मसीह येशु ने कहा, “मेरी माता और भाई वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते तथा उसका पालन करते हैं.”
बवण्डर को शांत करना
(मत्ति 8:23-27; मारक 4:35-41)
22 एक दिन मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “आओ, हम झील की दूसरी ओर चलें.” इसलिए वे सब नाव में बैठ कर चल दिए. 23 जब वे नाव खे रहे थे मसीह येशु सो गए. उसी समय झील पर प्रचण्ड बवण्डर उठा, यहाँ तक कि नाव में जल भरने लगा और उनका जीवन खतरे में पड़ गया.
24 शिष्यों ने जा कर मसीह येशु को जगाते हुए कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जा रहे हैं!” मसीह येशु उठे.
और बवण्डर और तेज लहरों को डाँटा; बवण्डर थम गया तथा तेज लहरें शान्त हो गईं. 25 “कहाँ है तुम्हारा विश्वास?” मसीह येशु ने अपने शिष्यों से प्रश्न किया.
भय और अचम्भे में वे एक-दूसरे से पूछने लगे, “कौन हैं यह, जो बवण्डर और लहरों तक को आदेश देते हैं और वे भी उनके आदेशों का पालन करती हैं!”
प्रेतों को सूअरों के झुण्ड में भेजना
(मत्ति 8:28-34; मारक 5:6-20)
26 इसके बाद वे गिरासेन प्रदेश में आए, जो गलील झील के दूसरी ओर है. 27 जब मसीह येशु तट पर उतरे, उनकी भेंट एक ऐसे व्यक्ति से हो गई, जिसमें अनेक प्रेत समाये हुए थे. प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति उनके पास आ गया. यह व्यक्ति लम्बे समय से कपड़े न पहनता था. वह मकान में नहीं परन्तु क़ब्रों की गुफ़ाओं में रहता था. 28 मसीह येशु पर दृष्टि पड़ते ही वह चिल्लाता हुआ उनके चरणों में जा गिरा और अत्यन्त ऊँचे शब्द में चिल्लाया, “येशु! परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र! मेरा और आपका एक दूसरे से क्या लेना-देना? आप से मेरी विनती है कि आप मुझे कष्ट न दें,” 29 क्योंकि मसीह येशु दुष्टात्मा को उस व्यक्ति में से निकल जाने की आज्ञा दे चुके थे. समय-समय पर प्रेत उस व्यक्ति पर प्रबल हो जाया करता था तथा लोग उसे सांकलों और बेड़ियों में बान्ध कर पहरे में रखते थे, फिर भी वह प्रेत बेड़ियाँ तोड़ उसे सुनसान स्थान में ले जाता था.
30 मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, “क्या नाम है तुम्हारा?”
“विशाल सेना,” उसने उत्तर दिया क्योंकि अनेक प्रेत उसमें समाए हुए थे. 31 प्रेतगण मसीह येशु से निरन्तर विनती कर रहे थे कि वह उन्हें अथाह गड़हे में न भेजें.
32 वहीं पहाड़ी के ढाल पर सूअरों का एक विशाल समूह चर रहा था. प्रेतों ने मसीह येशु से विनती की कि वह उन्हें सूअरों में जाने की अनुमति दे दें. मसीह येशु ने उन्हें अनुमति दे दी. 33 जब प्रेत उस व्यक्ति में से बाहर आए, उन्होंने तुरन्त जा कर सूअरों में प्रवेश किया और सूअर ढाल से झपट कर दौड़ते हुए झील में जा डूबे.
34 इन सूअरों के चरवाहे यह देख दौड़ कर गए और नगर तथा उस प्रदेश में सब जगह इस घटना के विषय में बताने लगे. 35 लोग वहाँ यह देखने आने लगे कि क्या हुआ है. तब वे मसीह येशु के पास आए. वहाँ उन्होंने देखा कि वह व्यक्ति, जो पहले प्रेतात्मा से पीड़ित था, वस्त्र धारण किए हुए, पूरी तरह स्वस्थ और सचेत मसीह येशु के चरणों में बैठा हुआ है. यह देख वे हैरान रह गए. 36 जिन्होंने यह सब देखा, उन्होंने जा कर अन्यों को सूचित किया कि यह प्रेतात्मा से पीड़ित व्यक्ति किस प्रकार प्रेत से दूर हुआ है. 37 तब गिरासेन प्रदेश तथा पास के क्षेत्रों के सभी निवासियों ने मसीह येशु को वहाँ से दूर चले जाने को कहा क्योंकि वे अत्यन्त भयभीत हो गए थे. इसलिए मसीह येशु नाव द्वारा वहाँ से चले गए.
38 वह व्यक्ति जिसमें से प्रेत निकाला गया था उसने मसीह येशु से विनती की कि वह उसे अपने साथ ले लें किन्तु मसीह येशु ने उसे यह कहते हुए विदा किया, 39 “अपने परिजनों में लौट जाओ तथा इन बड़े बड़े कामों का वर्णन करो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे लिए किए हैं.” इसलिए वह लौट कर सभी नगर में यह वर्णन करने लगा कि मसीह येशु ने उसके लिए कैसे बड़े बड़े काम किए हैं.
रोगी स्त्री की चंगाई और मरी हुई लड़की को जीवनदान
40 जब मसीह येशु झील की दूसरी ओर पहुँचे, वहाँ इंतज़ार करती भीड़ ने उनका स्वागत किया. 41 जाइरूस नामक एक व्यक्ति, जो यहूदी सभागृह का प्रधान था, उनसे भेंट करने आया. उसने मसीह येशु के चरणों पर गिर कर उनसे विनती की कि वह उसके साथ उसके घर जाएँ 42 क्योंकि उसकी एकमात्र बेटी, जो लगभग बारह वर्ष की थी, मरने पर थी. जब मसीह येशु वहाँ जा रहे थे, मार्ग में वह भीड़ में दबे जा रहे थे.
43 वहाँ एक स्त्री थी, जिसे बारह वर्षों से लहू बहने का रोग था. वह किसी भी इलाज से स्वस्थ न हो पाई थी. 44 इस स्त्री ने पीछे-पीछे आ कर मसीह येशु के वस्त्र की किनारी को छुआ और उसी क्षण उसका लहू बहना बंद हो गया.
45 “किसने मुझे छुआ है?” मसीह येशु ने पूछा.
जब सभी इससे इनकार कर रहे थे, पेतरॉस ने उनसे कहा, “स्वामी! यह बढ़ती हुई भीड़ आप पर गिरी जा रही है.”
46 किन्तु मसीह येशु ने उनसे कहा, “किसी ने तो मुझे छुआ है क्योंकि मुझे यह पता चला है कि मुझमें से सामर्थ्य निकली है.”
47 जब उस स्त्री ने यह समझ लिया कि उसका छुपा रहना असम्भव है, भय से काँपती हुई सामने आई और मसीह येशु के चरणों में गिर पड़ी. उसने सभी उपस्थित भीड़ के सामने यह स्वीकार किया कि उसने मसीह येशु को क्यों छुआ था तथा कैसे वह तत्काल रोग से चंगी हो गई. 48 इस पर मसीह येशु ने उससे कहा, “बेटी! तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें चँगा किया है. परमेश्वर की शान्ति में लौट जाओ.”
जाइरूस की पुत्री को जीवनदान
49 जब मसीह येशु यह कह ही रहे थे, यहूदी सभागृह प्रधान जाइरूस के घर से किसी व्यक्ति ने आ कर सूचना दी, “आपकी पुत्री की मृत्यु हो चुकी है, अब गुरुवर को कष्ट न दीजिए.”
50 यह सुन मसीह येशु ने जाइरूस को सम्बोधित कर कहा, “डरो मत! केवल विश्वास करो और वह स्वस्थ हो जाएगी.”
51 जब वे जाइरूस के घर पर पहुँचे, मसीह येशु ने पेतरॉस, योहन और याक़ोब तथा कन्या के माता-पिता के अतिरिक्त अन्य किसी को अपने साथ भीतर आने की अनुमति नहीं दी. 52 उस समय सभी उस बालिका के लिए रो-रो कर शोक प्रकट कर रहे थे. “बन्द करो यह रोना-चिल्लाना!” मसीह येशु ने आज्ञा दी, “उसकी मृत्यु नहीं हुई है—वह सिर्फ सो रही है.”
53 इस पर वे मसीह येशु पर हँसने लगे क्योंकि वे जानते थे कि बालिका की मृत्यु हो चुकी है. 54 मसीह येशु ने बालिका का हाथ पकड़ कर कहा, “बालिके! उठो!” 55 उसके प्राण उसमें लौट आए और वह तुरन्त खड़ी हो गई. मसीह येशु ने उनसे कहा कि बालिका को खाने के लिए कुछ दिया जाए. 56 उसके माता-पिता चकित रह गए किन्तु मसीह येशु ने उन्हें निर्देश दिया कि जो कुछ हुआ है, उसकी चर्चा किसी से न करें.
आयोग पर बारह शिष्यों का भेजा जाना
(मत्ति 10:1-15; मारक 6:7-13)
9 मसीह येशु ने बारहों शिष्यों को बुला कर उन्हें प्रेतों के निकालने तथा रोग दूर करने की सामर्थ्य और अधिकार प्रदान किया 2 तथा उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने तथा रोगियों को स्वस्थ करने के लिए भेज दिया. 3 मसीह येशु ने उन्हें निर्देश दिए, “यात्रा के लिए अपने साथ कुछ न रखना—न छड़ी, न झोला, न रोटी, न पैसा और न ही कोई बाहरी वस्त्र. 4 तुम जिस किसी घर में मेहमान हो कर रहो, नगर से विदा होने तक उसी घर के मेहमान बने रहना. 5 यदि लोग तुम्हें स्वीकार न करें तब उस नगर से बाहर जाते हुए अपने पैरों की धूलि झाड़ देना कि यह उनके विरुद्ध गवाही हो.” 6 वे चल दिए तथा सुसमाचार का प्रचार करते और रोगियों को स्वस्थ करते हुए सब जगह यात्रा करते रहे.
7 जो कुछ हो रहा था उसके विषय में हेरोदेस ने भी सुना और वह अत्यन्त घबरा गया क्योंकि कुछ लोग कह रहे थे कि बपतिस्मा देने वाले योहन मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं. 8 कुछ अन्य कह रहे थे कि एलियाह प्रकट हुए हैं[a] तथा कुछ अन्यों ने दावा किया कि प्राचीन काल के भविष्यद्वक्ताओं में से कोई दोबारा जीवित हो गया है 9 किन्तु हेरोदेस ने विरोध किया, “योहन का सिर तो स्वयं मैंने उड़वाया था, तब यह कौन है, जिसके विषय में मैं ये सब सुन रहा हूँ?” इसलिए हेरोदेस मसीह येशु से मिलने का प्रयास करने लगा.
लौट कर आए प्रेरितों का बखान
10 अपनी यात्रा से लौट कर प्रेरितों ने मसीह येशु के सामने अपने-अपने कामों का बखान किया. तब मसीह येशु उन्हें ले कर चुपचाप बैथसैदा नामक नगर चले गए. 11 किन्तु लोगों को इसके विषय में मालूम हो गया और वे वहाँ पहुँच गए. मसीह येशु ने सहर्ष उनका स्वागत किया और उन्हें परमेश्वर के राज्य के विषय में शिक्षा दी तथा उन रोगियों को चँगा किया, जिन्हें इसकी ज़रूरत थी.
पाँच हज़ार से अधिक लोगों को खिलाना
12 जब दिन ढलने पर आया तब बारहों प्रेरितों ने मसीह येशु के पास आ कर उन्हें सुझाव दिया, “भीड़ को विदा कर दीजिए कि वे पास के गाँवों में जा कर अपने ठहरने और भोजन की व्यवस्था कर सकें क्योंकि यह सुनसान जगह है.”
13 इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हीं करो इनके भोजन की व्यवस्था!”
उन्होंने इसके उत्तर में कहा, “हमारे पास तो केवल पाँच रोटियां तथा दो मछलियां ही हैं; हाँ, यदि हम जा कर इन सबके लिए भोजन मोल ले आएँ तो यह सम्भव है.” 14 इस भीड़ में पुरुष ही लगभग पाँच हज़ार थे.
मसीह येशु ने शिष्यों को आदेश दिया, “इन्हें लगभग पचास-पचास के झुण्ड़ में बैठा दो.” 15 शिष्यों ने उन सबको भोजन के लिए बैठा दिया. 16 पाँचों रोटियां तथा दोनों मछलियां अपने हाथ में ले कर मसीह येशु ने स्वर्ग की ओर दृष्टि करते हुए उनके लिए परमेश्वर को धन्यवाद किया तथा उन्हें तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गए कि वे लोगों में इनको बाँटते जाएँ. 17 सब ने भरपेट खाया. शिष्यों ने तोड़ी हुई रोटियों तथा मछलियों के टुकड़े इकट्ठा किए, जिनसे बारह टोकरे भर गए.
पेतरॉस की विश्वास-स्वीकृति
(मत्ति 16:13-20; मारक 8:27-30)
18 एक समय, जब मसीह येशु एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे तथा उनके शिष्य भी उनके साथ थे, मसीह येशु ने शिष्यों से प्रश्न किया, “लोगों की मेरे विषय में क्या धारणा है? क्या कहते हैं वे मेरे विषय में—मैं कौन हूँ?”
19 उन्होंने उत्तर दिया, “कुछ कहते हैं बपतिस्मा देने वाला योहन; कुछ एलियाह; और कुछ अन्य कहते हैं पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से एक, जो दोबारा जीवित हो गया है.”
20 “मैं कौन हूँ इस विषय में तुम्हारी धारणा क्या है?” मसीह येशु ने प्रश्न किया.
पेतरॉस ने उत्तर दिया, “परमेश्वर के मसीह.”
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की पहिली भविष्यवाणी
(मारक 8:3; 9:1)
21 मसीह येशु ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि वे यह किसी से न कहें.
22 आगे मसीह येशु ने प्रकट किया, “यह अवश्य है कि मनुष्य के पुत्र अनेक पीड़ाएं सहे, यहूदी प्रधानों, प्रधान पुरोहितों तथा व्यवस्था के शिक्षकों के द्वारा अस्वीकृत किया जाए; उसका वध किया जाए तथा तीसरे दिन उसे दोबारा जीवित किया जाए.”
23 तब मसीह येशु ने उन सब से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे होना चाहे, वह अपने अहम का त्याग कर प्रतिदिन अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे चले. 24 क्योंकि जो कोई अपने जीवन को सुरक्षित रखना चाहता है, उसे खो देगा किन्तु जो कोई मेरे हित में अपने प्राणों को त्यागने के लिए तत्पर है, वह अपने प्राणों को सुरक्षित रखेगा. 25 क्या लाभ है यदि कोई व्यक्ति सारे संसार पर अधिकार तो प्राप्त कर ले किन्तु स्वयं को खो दे या उसका जीवन ले लिया जाए? 26 क्योंकि जो कोई मुझसे और मेरी शिक्षा से लज्जित होता है, मनुष्य का पुत्र भी, जब वह अपनी, अपने पिता की तथा पवित्र दूतों की महिमा में आएगा, उससे लज्जित होगा.
27 “सच तो यह है कि यहाँ कुछ हैं, जो मृत्यु का स्वाद तब तक न चखेंगे जब तक वे परमेश्वर का राज्य देख न लें.”
मसीह येशु का रूपान्तरण
(मत्ति 17:1-13; मारक 9:2-13)
28 अपनी इस बात के लगभग आठ दिन बाद मसीह येशु पेतरॉस, योहन तथा याक़ोब को साथ ले कर एक ऊँचे पर्वत शिखर पर प्रार्थना करने गए. 29 जब मसीह येशु प्रार्थना कर रहे थे, उनके मुखमण्डल का रूप बदल गया तथा उनके वस्त्र सफ़ेद और उजले हो गए. 30 दो व्यक्ति—मोशेह तथा एलियाह—उनके साथ बातें करते दिखाई दिए. 31 वे भी स्वर्गीय तेज में थे. उनकी बातों का विषय था मसीह येशु का जाना, जो येरूशालेम नगर में शीघ्र ही होने पर था. 32 पेतरॉस तथा उनके साथी अत्यन्त नींद में थे किन्तु जब वे पूरी तरह जाग गए, उन्होंने मसीह येशु को उनके स्वर्गीय तेज में उन दो व्यक्तियों के साथ देखा. 33 जब वे पुरुष मसीह येशु के पास से जाने लगे पेतरॉस मसीह येशु से बोले, “प्रभु! हमारे लिए यहाँ होना कितना अच्छा है! हम यहाँ तीन मण्डप बनाएँ: एक आपके लिए, एक मोशेह के लिए तथा एक एलियाह के लिए.” स्वयं उन्हें अपनी इन कही हुई बातों का मतलब नहीं पता था.
34 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, एक बादल ने उन सब को ढ़ाँप लिया. बादल से घिर जाने पर वे भयभीत हो गए. 35 बादल में से एक आवाज़ सुनाई दी: “यह मेरा पुत्र है—मेरा चुना हुआ. इसके आदेश का पालन करो.” 36 आवाज़ का कहना समाप्त होने पर उन्होंने देखा कि मसीह येशु अकेले हैं. जो कुछ उन्होंने देखा था, उन्होंने उस समय उसका वर्णन किसी से भी न किया. वे इस विषय में मौन बने रहे.
विक्षिप्त प्रेतात्मा से पीड़ित की मुक्ति
(मत्ति 17:14-21; मारक 9:17-29)
37 अगले दिन जब वे पर्वत से नीचे आए, एक बड़ी भीड़ वहाँ इकट्ठा थी. 38 भीड़ में से एक व्यक्ति ने ऊँचे शब्द में पुकार कर कहा, “गुरुवर! आप से मेरी विनती है कि आप मेरे पुत्र को स्वस्थ कर दें क्योंकि वह मेरी इकलौती सन्तान है. 39 एक प्रेत अक्सर उस पर प्रबल हो जाता है और वह सहसा चीखने लगता है. प्रेत उसे भूमि पर पटक देता है और मेरे पुत्र को ऐंठन प्रारम्भ हो जाती है और उसके मुख से फेन निकलने लगता है. यह प्रेत कदाचित ही उसे छोड़ कर जाता है—वह उसे नाश करने पर उतारु है. 40 मैंने आपके शिष्यों से विनती की थी कि वे उसे मेरे पुत्र में से निकाल दें किन्तु वे असफल रहे.”
41 “अरे ओ अविश्वासी और बिगड़ी हुई पीढ़ी!” मसीह येशु ने कहा, “मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा, कब तक धीरज रखूंगा? यहाँ लाओ अपने पुत्र को!”
42 जब वह बालक पास आ ही रहा था, प्रेत ने उसे भूमि पर पटक दिया, जिससे उसके शरीर में ऐंठन प्रारम्भ हो गई किन्तु मसीह येशु ने प्रेत को डाँटा, बालक को स्वस्थ किया और उसे उसके पिता को सौंप दिया. 43 परमेश्वर का प्रताप देख सभी चकित रह गए.
दुःखभोग और क्रूस-मृत्यु की दूसरी घोषणा
(मत्ति 17:22, 23; मारक 9:30-32)
जब सब लोग इस घटना पर अचम्भित हो रहे थे मसीह येशु ने अपने शिष्यों से कहा, 44 “जो कुछ मैं कह रहा हूँ अत्यन्त ध्यानपूर्वक सुनो और याद रखो: मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथों पकड़वाया जाने पर है.” 45 किन्तु शिष्य इस बात का मतलब समझ न पाए. इस बात का मतलब उनसे छुपाकर रखा गया था. यही कारण था कि वे इसका मतलब समझ न पाए और उन्हें इसके विषय में मसीह येशु से पूछने का साहस भी न हुआ.
46 शिष्यों में इस विषय को ले कर विवाद छिड़ गया कि उनमें श्रेष्ठ कौन है. 47 यह जानते हुए कि शिष्य अपने मन में क्या सोच रहे हैं मसीह येशु ने एक छोटे बालक को अपने पास खड़ा करके कहा, 48 “जो कोई मेरे नाम में इस छोटे बालक को ग्रहण करता है, मुझे ग्रहण करता है, तथा जो कोई मुझे ग्रहण करता है, उन्हें ग्रहण करता है जिन्होंने मुझे भेजा है. वह, जो तुम्हारे मध्य छोटा है, वही है जो श्रेष्ठ है.”
49 योहन ने उन्हें सूचना दी, “प्रभु, हमने एक व्यक्ति को आपके नाम में प्रेत निकालते हुए देखा है. हमने उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न किया क्योंकि वह हममें से नहीं है.”
50 “मत रोको उसे!” मसीह येशु ने कहा, “क्योंकि जो तुम्हारा विरोधी नहीं, वह तुम्हारे पक्ष में है.”
शोमरोन प्रदेश का अशिष्टता से भरा नगर
51 जब मसीह येशु के स्वर्ग में उठा लिए जाने का निर्धारित समय पास आया, विचार दृढ़ करके मसीह येशु ने अपने पांव येरूशालेम नगर की ओर बढ़ा दिए. 52 उन्होंने अपने आगे सन्देशवाहक भेज दिए. वे शोमरोन प्रदेश के एक गाँव में पहुँचे कि मसीह येशु के आगमन की तैयारी करें 53 किन्तु वहाँ के निवासियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया क्योंकि मसीह येशु येरूशालेम नगर की ओर जा रहे थे. 54 जब उनके दो शिष्यों—याक़ोब और योहन ने यह देखा तो उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “प्रभु, यदि आप आज्ञा दें तो हम प्रार्थना करें कि आकाश से इन्हें नाश करने के लिए आग की बारिश हो जाए.” 55 पीछे मुड़ कर मसीह येशु ने उन्हें डाँटा, “तुम नहीं समझ रहे कि तुम यह किस मतलब से कह रहे हो. 56 मनुष्य का पुत्र इन्सानों के विनाश के लिए नहीं परन्तु उनके उद्धार के लिए आया है” और वे दूसरे नगर की ओर बढ़ गए.
प्रेरितों के बुलाए जाने पर पीछे चलने का कठिन कार्य
(मत्ति 8:18-22)
57 मार्ग में एक व्यक्ति ने अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए उनसे कहा, “आप जहाँ कहीं जाएँगे, मैं आपके साथ रहूँगा.”
58 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “लोमड़ियों के पास उनकी अपनी मांदें होती हैं और पक्षियों के पास उनके अपने घोंसले, किन्तु मनुष्य के पुत्र के लिए तो सिर रखने तक का स्थान नहीं है.”
59 एक अन्य व्यक्ति से मसीह येशु ने कहा, “आओ! मेरे पीछे हो लो.” उस व्यक्ति ने कहा, “प्रभु! पहले मैं अपने पिता के अंतिम संस्कार का इंतज़ाम कर लूँ.”
60 मसीह येशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को अपने मृत गाड़ने दो किन्तु तुम जा कर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करो.”
61 एक अन्य व्यक्ति ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं आपके साथ चलूँगा किन्तु पहले मैं अपने परिजनों से विदा ले लूँ.”
62 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो हल चलाने को उद्यत हो, परन्तु उसकी दृष्टि पीछे की ओर लगी हुई हो, परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं.”
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