Bible in 90 Days
19 कुछ लोगों पर मैं एक चिन्ह लगा दूँगा, मैं उनकी रक्षा करूँगा। इन रक्षा किये लोगों में से कुछ लोगों को मैं तर्शीश लिव्या और लूदी के लोगों के पास भेजूँगा। (इन देशों के लोग धनुर्धारी हुआ करते हैं।) तुबाल, यूनान और सभी दूर देशों में मैं उन्हें भेजूँगा। दूर देशों के उन लोगों ने मेरे उपदेश कभी नहीं सुने। उन लोगों ने मेरी महिमा का दर्शन भी नहीं किया है। सो वे बचाए गए लोग उन जातियों को मेरी महिमा के बारे में बतायेंगे। 20 वे तुम्हारे सभी भाइयों और बहनों को सभी देशों से यहाँ ले आयेंगे। तुम्हारे भाइयों और बहनों को वे मेरे पवित्र पर्वत पर यरूशलेम में ले आयेंगे। तुम्हारे भाई बहन यहाँ घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, रथों और पालकियों में बैठ कर आयेंगे। तुम्हारे वे भाई—बहन यहाँ उसी प्रकार से उपहार के रूप में लाये जायेंगे जैसे इस्राएल के लोग शुद्ध थालों में रख कर यहोवा के मन्दिर में अपने उपहार लाते हैं। 21 इन लोगों में से कुछ लोगों को मैं याजकों और लेवियों के रूप में चुन लूँगा। ये बातें यहोवा ने बताई थीं।
नये आकाश और नयी धरती
22 “मैं एक नये संसार की रचना करूँगा। ये नये आकाश और नयी धरती सदा—सदा टिके रहेंगे और उसी प्रकार तुम्हारे नाम और तुम्हारे वंशज भी सदा मेरे साथ रहेंगे। 23 हर सब्त के दिन और महीने के पहले दिन वे सभी लोग मेरी उपासना के लिये आया करेंगे।
24 “ये लोग मेरी पवित्र नगरी में होंगे और यदि कभी वे नगर से बाहर जायेंगे, तो उन्हें उन लोगों की लाशें दिखाई देंगी जिन्होंने मेरे विरूद्ध पाप किये हैं। उन लाशों में कीड़े पड़े हुए होंगे और वे कीड़े कभी नहीं मरेंगे। उन देहों को आग जला डालेगी और वह आग कभी समाप्त नहीं होगी।”
1 यिर्मयाह के ये सन्देश हैं। यिर्मयाह हिल्किय्याह नामक व्यक्ति का पुत्र था। यिर्मयाह उन याजकों के परिवार से था जो अनातोत नगर में रहते थे। वह नगर उस प्रदेश में है जो बिन्यामीन परिवार का था। 2 यहोवा ने यिर्मयाह से उन दिनों बातें करनी आरम्भ की। जब योशिय्याह यहूदा राष्ट्र का राजा था। योशिय्याह आमोन नामक राजा का पुत्र था। यहोवा ने यिर्मयाह से योशिय्याह के राज्यकाल के तेरहवें वर्ष में बातें करनी आरम्भ की। 3 यहोवा यिर्मयाह से उस समय बातें करता रहा जब यहोयाकीम यहूदा का राजा था। यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। यिर्मयाह को सिदकिय्याह के राज्यकाल के ग्यारह वर्ष पाँच महीने तक, यहोवा की वाणी सुनाई पड़ती रही। सिदकिय्याह भी योशिय्याह का एक पुत्र था। सिदकिय्याह के राज्यकाल के ग्यारहवें वर्ष के पाँचवें महीने में यरूशलेम के निवासियों को देश—निकाला दिया गया था।
परमेश्वर यिर्मयाह को अपने पास बुलाता है
4 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था:
5 “तुम्हारी माँ के गर्भ में रखने के पहले
मैंने तुमको जान लिया।
तुम्हारे जन्म लेने के पहले,
मैंने तुम्हें विशेष कार्य के लिये चुना था।
मैंने तुम्हें राष्ट्रों का नबी होने को चुना था।”
6 तब मैंने अर्थात् यिर्मयाह ने कहा, “किन्तु सर्वशक्तिमान यहोवा, मैं तो बोलना भी नहीं जानता। मैं तो अभी बालक ही हूँ।”
7 किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा,
“मत कहो, ‘मै बालक ही हूँ।’
तुम्हें हर उन स्थानों पर जाना है जहाँ मैं भेंजूँ।
तुम्हें वह सब कहना है जिसे मैं कहने को कहूँ।
8 किसी से मत डरो।
मैं तुम्हारे साथ हूँ, और मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।
9 तब यहोवा ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरे मुँह को छू लिया। यहोवा ने मुझसे कहा,
“यिर्मयाह, मैं अपने शब्द तेरे मुँह में दे रहा हूँ।
10 आज मैंने तुम्हें राज्यों और राष्ट्रों का अधिकारी बनाया है।
तुम इन्हें उखाड़ और उजाड़ सकते हो। तुम इन्हें नष्ट और उठा फेंक सकते हो।
तुम इन्हें और उठा फेंक सकते हो।
तुम निर्माण और रोपण कर सकते हो।”
दो अर्न्तदृश्य
11 यहोवा का सन्देश मुझे मिला। यह सन्देश यहोवा का था: “यिर्मयाह, तुम क्या देखते हो”
मैंने यहोवा को उत्तर दिया और कहा, “मैं बादाम की लकड़ी की एक छड़ी देखता हूँ।”
12 यहोवा ने मुझसे कहा, “तुमने बहुत ठीक देखा और मैं इस बात की चौकसी कर रहा हूँ कि तुमको दिया गया मेरा सन्देश ठीक उतरे।”
13 यहोवा का सन्देश मुझे फिर मिला। यहोवा के यहाँ का सन्देश यह था, “यिर्मयाह, तुम क्या देखते हो”
मैंने यहोवा को उत्तर दिया और कहा, “मैं उबलते पानी का एक बर्तन देख रहा हूँ। यह बर्तन उत्तर की ओर से टपक रहा है।”
14 यहोवा ने मुझसे कहा, “उत्तर से कुछ भयानक आएगा।
यह उन सब लोगों के लिए होगा जो इस देश में रहते हैं।
15 कुछ समय बाद मैं उत्तर के राज्यों के सभी लोगों को बुलाऊँगा।”
ये बातें यहोवा ने कहीं।
“उन देशों के राजा आएंगे।
वे यरूशलेम के द्वार के सामने अपने सिंहासन जमाएंगे।
वे यरूशलेम के सभी नगर दीवारों पर आक्रमण करेंगे।
वे यहूदा प्रदेश के सभी नगरों पर आक्रमण करेंगे।
16 और मैं अपने लोगों के विरूद्ध अपने निर्णय की घोषणा करूँगा।
मैं यह इसलिये करूँगा, क्योंकि वे बुरे लोग हैं, और वे मेरे विरुद्ध चले गए हैं।
मेरे लोगों ने मुझे छोड़ा।
उन्होंने अन्य देवताओं को बलि चढ़ाई।
उन्होंने अपने हाथों से बनाई गई मूर्तियों को पूजा की।
17 “यिर्मयाह, जहाँ तक तुम्हारी बात है, उठो।
तैयार हो जाओ! उठो और लोगों को सन्देश दो।
वह सब कुछ लोगों से कहो जो मैं कहने को कहूँ।
लोगों से मत डरो।
यदि तुम लोगों से डरे तो मैं उनसे डरने का अच्छा कारण तुम्हें दे दूँगा।
18 जहाँ तक मेरी बात है, मैं आज ही तुझे
एक दृढ़ नगर, एक लौह स्तम्भ, एक काँसे की दीवार बनाने जा रहा हूँ।
तुम देश में हर एक के विरूद्ध खड़े होने योग्य होगे,
यहूदा देश के राजाओं के विरूद्ध, यहूदा के प्रमुखों के विरूद्ध, यहूदा के याजकों के विरूद्ध और यहूदा देश के लोगों के विरूद्ध भी।
19 वे सब लोग तुम्हारे विरूद्ध लड़ेंगे,
किन्तु वे तुझे पराजित नहीं करेंगे।
क्यों क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ,
और मैं तेरी रक्षा करूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का है।
यहूदा विश्वासयोग्य नहीं रहा
2 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह को मिला। यहोवा का सन्देश यह था: 2 “यिर्मयाह, जाओ और यरूशलेम के लोगों को सन्देश दो। उनसे कहो:
“जिस समय तुम नव राष्ट्र थे, तुम मेरे विश्वासयोग्य थे।
तुमने मेरा अनुगमन नयी दुल्हन सा किया।
तुमने मेरा अनुगमन मरुभूमि में से होकर किया, उस प्रदेश में अनुगमन किया जिसे कभी कृषि भूमि न बनाया गया था।
3 इस्राएल के लोग यहोवा को एक पवित्र भेंट थे।
वे यहोवा द्वारा उतारे गये प्रथम फल थे।
इस्राएल को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करने वाले हर एक लोग अपराधी निर्णीत किये गए थे।
उन बुरे लोगों पर बुरी आपत्तियाँ आई थीं।”
यह सन्देश यहोवा का था।
4 याकूब के परिवार, यहोवा का सन्देश सुनो।
इस्राएल के तुम सभी परिवार समूहो, सन्देश सुनो।
5 जो यहोवा कहता है, वह यह है:
“क्या तुम समझते हो कि, मैं तुम्हारे पूर्वजों का हितैषी नहीं था?
तब वे क्यों मुझसे दूर हो गए तुम्हारे पूर्वजों ने निरर्थक हो गये।
6 तुम्हारे पूर्वजों ने यह नहीं कहा,
‘यहोवा ने हमें मिस्र से निकाला।
यहोवा ने मरुभूमि में हमारा नेतृत्व किया।
यहोवा हमे सूखे चट्टानी प्रदेश से लेकर आया,
यहोवा ने हमें अन्धकारपूर्ण और भयपूर्ण देशों में राह दिखाई।
कोई भी लोग वहाँ नहीं रहते कोई भी लोग उस देश से यात्रा नहीं करते।
लेकिन यहोवा ने उस प्रदेश में हमारा नेतृत्व किया।
अत: वह यहोवा अब कहाँ हैं?’
7 “यहोवा कहता है, मैं तुम्हें अनेक अच्छी चीज़ों से भरे उत्तम देश में लाया।
मैंने यह किया जिससे तुम वहाँ उगे हुये फल और पैदावार को खा सके।
किन्तु तुम आए और मेरे देश को तुमने ‘गन्दा’ किया।
मैंने वह देश तुम्हें दिया था,
किन्तु तुमने उसे बुरा स्थान बनाया।”
8 “याजकों ने नहीं पूछा, ‘यहोवा कहाँ हैं’ व्यवस्था को जाननेवाले लोगों ने मुझको जानना नहीं चाहा।
इस्राएल के लोगों के प्रमुख मेरे विरुद्ध चले गए।
नबियों ने झूठे बाल देवता के नाम भविष्यवाणी की।
उन्होंने निरर्थक देव मूर्तियों की पूजा की।”
9 यहोवा कहता है, “अत: मैं अब तुम्हें फिर दोषी करार दूँगा,
और तुम्हारे पौत्रों को भी दोषी ठहराऊँगा।
10 समुद्र पार कित्तियों के द्वीपों को जाओ
और देखो किसी को केदार प्रदेश को भेजो
और उसे ध्यान से देखने दो।
ध्यान से देखो क्या कभी किसी ने ऐसा काम किया:
11 क्या किसी राष्ट्र के लोगों ने कभी अपने पुराने देवताओं को नये देवता से बदला है नहीं!
निसन्देह उनके देवता वास्तव में देवता हैं ही नहीं।
किन्तु मेरे लोगों ने अपने यशस्वी परमेश्वर को निरर्थक देव मूर्तियों से बदला हैं।
12 “आकाश, जो हुआ है उससे अपने हृदय को आघात पहुँचने दो!
भय से काँप उठो!”
यह सन्देश यहोवा का था।
13 “मेरे लोगों ने दो पाप किये हैं।
उन्होंने मुझे छोड़ दिया (मैं ताजे पानी का सोता हूँ।)
और उन्होंने अपने पानी के निजी हौज खोदे हैं।
(वे अन्य देवताओं के भक्त बने हैं।)
किन्तु उनके हौज टूटे हैं।
उन हौजों में पानी नहीं रुकेगा।
14 “क्या इस्राएल के लोग दास हो गए हैं
ल के लोगों की सम्पत्ति अन्य लोगों ने क्यों ले ली
15 जवान सिंह (शत्रु) इस्राएल राष्ट्र पर दहाड़ते हैं, गुरते हैं।
सिंहों ने इस्राएल के लोगों का देश उजाड़ दिया हैं।
इस्राएल के नगर जला दिये गए हैं।
उनमें कोई भी नहीं रह गया है।
16 नोप और तहपन्हेस नगरों के लोगों ने तुम्हारे सिर के शीर्ष को कुचल दिया है।
17 यह परेशानी तुम्हारे अपने दोष के कारण है।
तुम अपने यहोवा परमेश्वर से विमुख हो गए, जबकि वह सही दिशा में तुम्हें ले जा रहा था।
18 यहूदा के लोगों, इसके बारे में सोचो:
क्या उसने मिस्र जाने में सहायता की क्या इसने नील नदी का पानी पीने में सहायता की नहीं!
क्या इसने अश्शूर जाने में सहायता की क्या इसने परात नदी का जल पीने में सहायता की नहीं!
19 तुमने बुरे काम किये, और वे बुरी चीजें तुम्हें केवल दण्ड दिलाएंगी।
विपत्तियाँ तुम पर टूट पड़ेंगी और ये विपत्तियाँ तुम्हें पाठ पढ़ाएंगी।
इस विषय में सोचो: तब तुम यह समझोगे कि अपने परमेश्वर से विमुख हो जाना कितना बुरा है।
मुझसे न डरना बुरा है।”
यह सन्देश मेरे स्वामी सर्वशक्तिमान यहोवा का था।
20 “यहूदा बहुत पहले तुमने अपना जुआ फेंक दिया था।
तुमने वह रस्सियाँ तोड़ फेंकी जिसे मैं तुम्हें अपने पास रखने में काम में लाता था।
तुमने मुझसे कहा, ‘मै आपकी सेवा नहीं करूँगा!’
सच्चाई यह है कि तुम वेश्या की तरह हर एक ऊँची पहाड़ी पर
और हर एक हरे पेड़ के नीचे लेटे और काम किये।
21 यहूदा, मैंने तुम्हें विशेष अंगूर की बेल की तरह रोपा।
तुम सभी अच्छे बीज के समान थे।
तुम उस भिन्न बेल में कैसे बदले
जो बुरे फल देती है
22 यदि तुम अपने को ल्ये से भी धोओ,
बहुत साबुन भी लगाओ,
तो भी मैं तुम्हारे दोष के दाग को देख सकता हूँ।”
यह सन्देश परमेश्वर यहोवा का था।
23 “यहूदा, तुम मुझसे कैसे कह सकते हो,
‘मै अपराधी नहीं हूँ, मैंने बाल की मूर्तियों की पूजा नहीं की है!’
उन कामों के बारे में सोचों
जिन्हें तुमने घाटी में किये।
उस बारे में सोचों, तुमने क्या कर डाला है।
तुम उस तेज ऊँटनी के समान हो जो एक स्थान से दूसरे स्थान को दौड़ती है।
24 तुम उस जँगली गधी की तरह हो जो मरुभूमि में रहती है
और सहभोग के मौसम में जो हवा को सूंघती है (गन्ध लेती है।)
कोई व्यक्ति उसे कामोत्तेजना के समय लौटा कर ला नहीं सकता।
सहभोग के समय हर एक गधा जो उसे चाहता है, पा सकता है।
उसे खोज निकालना सरल है।
25 यहूदा, देवमूर्तियों के पीछे दौड़ना बन्द करो।
उन अन्य देवताओं के लिये प्यास को बुझ जाने दो।
किन्तु तुम कहते हो, ‘यह व्यर्थ है! मैं छोड़ नहीं सकता!
मैं उन अन्य देवताओं से प्रेम करता हूँ।
मैं उनकी पूजा करना चाहता हूँ।’
26 “चोर लज्जित होता है जब उसे लोग पकड़ लेते हैं।
उसी प्रकार इस्राएल का परिवार लज्जित है।
राजा और प्रमुख, याजक और नबी लज्जित हैं।
27 वे लोग लकड़ी के टुकड़ो से बातें करते हैं, वे कहते हैं,
‘तुम मेरे पिता हो।’
वे लोग चट्टान से बात करते हैं, वे कहते हैं,
‘तुमने मुझे जन्म दिया है।’
वे सभी लोग लज्जित होंगे।
वे लोग मेरी ओर ध्यान नहीं देते।
उन्होंने मुझसे पीठ फेर ली है।
किन्तु जब यहूदा के लोगों पर विपत्ति आती है
तब वे मुझसे कहते हैं, ‘आ और हमें बचा!’
28 उन देवमूर्तियों को आने और तुमको बचाने दो!
वे देवमूर्तियाँ कहाँ हैं जिसे तुमने अपने लिये बनाया है हमें देखने दो,
क्या वे मूर्तियाँ आती हैं और तुम्हारी रक्षा विपत्ति से करती हैं
यहूदा के लोगों, तुम लोगों के पास उतनी मूर्तियाँ हैं जितने नगर।
29 “तुम मुझसे विवाद क्यों करते हो
तुम सभी मेरे विरुद्ध हो गए हो।”
यह सन्देश यहोवा का था।
30 “यहूदा के लोगों, मैंने तुम्हारे लोगों को दण्ड दिया,
किन्तु इसका कोई परिणाम न निकला।
तुम तब लौट कर नहीं आए जब दण्डित किये गये।
तुमने उन नबियों को तलवार के घाट उतारा जो तुम्हारे पास आए।
तुम खूंखार सिंह की तरह थे
और तुमने नबियों को मार डाला।”
31 इस पीढ़ी के लोगों, यहोवा के सन्देश पर ध्यान दो:
“क्या मैं इस्राएल के लोगों के लिये मरुभूमि सा बन गया?
क्या मैं उनके लिये अंधेरे और भयावने देश सा बन गया?
मेरे लोग कहते है, ‘हम अपनी राह जाने को स्वतन्त्र हैं,
यहोवा, हम फिर तेरे पास नहीं लौटेंगे!’
वे उन बातों को क्यों कहते हैं?
32 क्या कोई युवती अपने आभूषण भूलती है नहीं।
क्या कोई दुल्हन अपने श्रृंगार के लिए अपना टुपट्टा भूल जाती है नहीं।
किन्तु मेरे लोग मुझे अनगिनत दिनों से भूल गए हैं।
33 “यहूदा, तुम सचमुच प्रेमियों (झूठे देवताओं) के पीछे पड़ना जानते हो।
अत: तुमने पाप करना स्वयं ही सीख लिया है।
34 तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं! यह गरीब और भोले लोगों का खून है।
तुमने लोगों को मारा और वे लोग ऐसे चोर भी नहीं थे जिन्हें तुमने पकड़ा हो!
तुम वे बुरे काम करते हो!
35 किन्तु तुम फिर कहते रहते हो, ‘हम निरपराध हैं।
परमेश्वर मुझ पर क्रोधित नहीं है।’
अत: मैं तुम्हें झूठ बोलने वाला अपराधी होने का भी निर्णय दूँगा।
क्यों क्योंकि तुम कहते हो, “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है।”
36 तुम्हारे लिये इरादे को बदलना बहुत आसान हैं।
अश्शूर ने तुम्हें हताश किया! अत: तुमने अश्शूर को छोड़ा और सहायता के लिये मिस्र पहुँचे।
मिस्र तुम्हें हताश करेगा।
37 ऐसा होगा कि तुम मिस्र भी छोड़ोगे
और तुम्हारे हाथ लज्जा से तुम्हारी आँखों पर होंगे।
तुमने उन देशों पर विश्वास किया।
किन्तु तुम्हें उन देशों में कोई सफलता नहीं मिलेगी।
क्यों क्योंकि यहोवा ने उन देशों को अस्वीकार कर दिया है।
3 “यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देता है,
और वह पत्नी उसे छोड़ देती है तथा अन्य व्यक्ति से विवाह कर लेती है
तो क्या वह व्यक्ति अपनी पत्नी के पास फिर आ सकता है नहीं!
यदि वह व्यक्ति उस स्त्री के पास लौटेगा तो देश पूरी तरह गन्दा हो जाएगा।
यहूदा, तुमने वेश्या की तरह अनेक प्रेमियों (असत्य देवताओं) के साथ काम किये
और अब तुम मेरे पास लौटना चाहते हो!” यह सन्देश यहोवा का था।
2 “यहूदा, खाली पहाड़ी की चोटी को देखो।
क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ तुम्हारा अपने प्रेमियों (असत्य देवताओं) के साथ शारीरिक सम्बन्ध न चला
तुम सड़क के किनारे प्रेमियों की प्रतीक्षा करती बैठी हो।
तुम वहाँ मरुभूमि में प्रतीक्षा करते अरब की तरह बैठी।
तुमने देश को गन्दा किया है!
कैसे तुमने बहुत से बुरे काम किये
और तुम मेरी अभक्त रही।
3 तुमने पाप किये अत: वर्षा नहीं आई!
बसन्त समय की कोई वर्षा नहीं हुई।
किन्तु अभी भी तुम लज्जित होने से इन्कार करती हो।
4 किन्तु अब तुम मुझे बुलाती हो।
‘मेरे पिता, तू मेरे बचपन से मेरे प्रिय मित्र रहा है।’
5 तुमने ये भी कहा,
‘परमेश्वर सदैव मुझ पर क्रोधित नहीं रहेगा।
परमेश्वर का क्रोध सदैव बना नहीं रहेगा।’
“यहूदा, तुम यह सब कुछ कहती हो,
किन्तु तुम उतने ही पाप करती हो जितने तुम कर सकती हो।”
6 उन दिनों जब योशिय्याह यहूदा राष्ट्र पर शासन कर रहा था। यहोवा ने मुझसे बातें की। यहोवा ने कहा, “यिर्मयाह, तुमने उन बुरे कामों को देखा जो इस्राएल ने किये तुमने देखा कि उसने कैसे मेरे साथ विश्वासघात किया। उसने हर एक पहाड़ी के ऊपर और हर एक हरे पेड़ के नीच झूठी मूर्तियों की पूजा करके व्यभिचार करने का पाप किया। 7 मैंने अपने से कहा, ‘इस्राएल मेरे पास तब लौटेगी जब वह इन बुरे कामों को कर चुकेगी।’ किन्तु वह मेरे पास लौटी नहीं और इस्राएल की अविश्वासी बहन यहूदा ने देखा कि उसने क्या किया है 8 इस्राएल विश्वासघातिनी थी और यहूदा जानती थी कि मैंने उसे क्यों दूर हटाया। यहूदा जानती थी कि मैंने उसको इसलिए अस्वीकृत किया कि उसने व्यभिचार का पाप किया था। किन्तु इसने उसकी विश्वासघाती बहन को डराया नहीं। यहूदा डरी नहीं। यहूदा भी निकल गई और उसने वेश्या की तरह काम किया। 9 यहूदा ने यह ध्यान भी नहीं दिया कि वह वेश्या की तरह काम कर रही है। अत: उसने अपने देश को ‘गन्दा’ किया। उसने लकड़ी और पत्थर की बनी देवमूर्तियों की पूजा करके व्यभिचार का पाप किया। 10 इस्राएल की अविश्वासी बहन (यहूदा) अपने पूरे हृदय से मेरे पास नहीं लौटी। उसने केवल बहाना बनाया कि वह मेरे पास लौटी है।” यह सन्देश यहोवा का था।
11 यहोवा ने मुझसे कहा, “इस्राएल मेरी भक्त नहीं रही। किन्तु उसके पास कपटी यहूदा की अपेक्षा अच्छा बहाना था। 12 यिर्मयाह, उत्तर की ओर देखो और यह सन्देश बोलो:
“‘अविश्वासी इस्राएल के लोगों तुम लौटो।’
यह सन्देश यहोवा का था।
‘मैं तुम पर भौहे चढ़ाना छोड़ दूँगा, मैं दयासागर हूँ।’
यह सन्देश यहोवा का था।
‘मैं सदैव तुम पर क्रोधित नहीं रहूँगा।’
13 तुम्हें केवल इतना करना होगा कि तुम अपने पापों को पहचानो।
तुम यहोवा अपने परमेश्वर के विरुद्ध गए, यह तुम्हारा पाप है।
तुमने अन्य राष्ट्रों के लोगों की देव मूर्तियों को अपना प्रेम दिया।
तुमने देव मूर्तियों की पूजा हर एक हरे पेड़ के नीचे की।
तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया।”
यह सन्देश यहोवा का था।
14 “अभक्त लोगों, मेरे पास लौट आओ।” यह सन्देश यहोवा का था। “मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं हर एक नगर से एक व्यक्ति लूँगा और हर एक परिवार से दो व्यक्ति और तुम्हें सिय्योन पर लाऊँगा। 15 तब मैं तुम्हें नये शासक दूँगा। वे शासक मेरे भक्त होंगे। वे तुम्हारे मार्ग दर्शन ज्ञान और समझ से करेंगे। 16 उन दिनों तुम लोग बड़ी संख्या में देश में होगे।” यह सन्देश यहोवा का है।
“उस समय लोग फिर यह कभी नहीं कहेंगे, ‘मैं उन दिनों को याद करता हूँ जब हम लोगों के पास यहोवा का साक्षीपत्र का सन्दूक था।’ वे पवित्र सन्दूक के बारे में फिर कभी सोचेंगे भी नहीं। वे न तो इसे याद करेंगे और न ही उसके लिये अफसोस करेंगे। वे दूसरा पवित्र सन्दूक कभी नहीं बनाएंगे। 17 उस समय, यरूशलेम नगर ‘यहोवा का सिंहासन’ कहा जाएगा। सभी राष्ट्र एक साथ यरूशलेम नगर में यहोवा के नाम को सम्मान देने आएंगे। वे अपने हठी और बुरे हृदय के अनुसार अब कभी नहीं चलेंगे। 18 उन दिनों यहूदा का परिवार इस्राएल के परिवार के साथ मिल जायेगा। वे उत्तर में एक देश से एक साथ आएंगे। वे उस देश में आएंगे जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।”
19-20 मैंने अर्थात् यहोवा ने अपने से कहा,
“मैं तुमसे अपने बच्चों का सा व्यवहार करना चाहता हूँ,
मैं तुम्हें एक सुहावना देश देना चाहता हूँ।
वह देश जो किसी भी राष्ट्र से अधिक सुन्दर होगा।
मैंने सोचा था कि तुम मुझे ‘पिता’ कहोगे।
मैंने सोचा था कि तुम मेरा सदैव अनुसरण करोगे।
किन्तु तुम उस स्त्री की तरह हुए जो पतिव्रता नहीं रही।
इस्राएल के परिवार, तुम मेरे प्रति विश्वासघाती रहे!”
यह सन्देश यहोवा का था।
21 तुम नंगी पहाड़ियों पर रोना सुन सकते हो।
इस्राएल के लोग कृपा के लिये रो रहे और प्रार्थना कर रहे हैं।
वे बहुत बुरे हो गए थे।
वे अपने परमेश्वर यहोवा को भूल गए थे।
22 यहोवा ने यह भी कहा:
“इस्राएल के अविश्वासी लोगों, तुम मेरे पास लौट आओ।
मेरे पास लौटो, और मैं तुम्हारे अविश्वासी होने के अपराध को क्षमा करूँगा।”
लोगों को कहना चाहिये, “हाँ, हम लोग तेरे पास आएँगे
तू हमारा परमेश्वर यहोवा है।
23 पहाड़ियों पर देवमूर्तियों की पूजा मूर्खता थी।
पर्वतों के सभी गरजने वाले दल केवल थोथे निकले।
निश्चय ही इस्राएल की मुक्ति,
यहोवा अपने परमेश्वर से है।
24 हमारे पूर्वजों की हर एक अपनी चीज बलिरूप में उस घृणित ने खाई है।
यह तब हुआ जब हम लोग बच्चे थे।
उस घृणित ने हमारे पूर्वजों के पशु भेड़, पुत्र, पुत्री लिये।
25 हम अपनी लज्जा में गड़ जायँ, अपनी लज्जा को हम कम्बल की तरह अपने को लपेट लेने दें।
हमने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।
बचपन से अब तक हमने और हमारे पूर्वजों ने पाप किये हैं।
हमने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा नहीं मानी है।”
4 यह सन्देश यहोवा का है।
“इस्राएल, यदि तुम लौट आना चाहो,
तो मेरे पास आओ।
अपनी देव मूर्तियों को फेंको।
मुझसे दूर न भटको।
2 यदि तुम वे काम करोगे तो प्रतिज्ञा करने के लिये मेरे नाम का उपयोग करने योग्य बनोगे, तुम यह कहने योग्य होगे,
‘जैसा कि यहोवा शाश्वत है।’
तुम इन शब्दों का उपयोग सच्चे, ईमानदारी भरे और सही तरीके से करने योग्य बनोगे।
यदि तुम ऐसा करोगे तो राष्ट्र यहोवा द्वारा वरदान पाएगा
और वे यहोवा द्वारा किये गए कामों को गर्व से बखान करेंगे।”
3 यहूदा राष्ट्र के मनुष्यों और यरूशलेम नगर से, यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“तुम्हारे खेतों में हर नहीं चले हैं।
खेतों में हल चलाओ।
काँटो में बीज न बोओ।
4 यहोवा के लोग बनो, अपने हृदय को बदलो।
यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों, यदि तुम नहीं बदले, तो मैं बहुत क्रोधित होऊँगा।
मेरा क्रोध आग की तरह फैलेगा और मेरा क्रोध तुम्हें जला देगा
और कोई व्यक्ति उस आग को बुझा नहीं पाएगा।
यह क्यों होगा क्योंकि तुमने बुरे काम किये हैं।”
उत्तर दिशा से विध्वंस
5 यहूदा के लोगों में इस सन्देश की घोषणा करो:
यरूशलेम नगर के हर एक व्यक्ति से कहो, “सारे देश में तुरही बजाओ।”
जोर से चिल्लाओ और कहो,
“एक साथ आओ,
हम सभी रक्षा के लिये दृढ़ नगरों को भाग निकलें।”
6 सिय्योन की ओर सूचक ध्वज उठाओ, अपने जीवन के लिये भागो, प्रतीक्षा न करो।
यह इसलिये करो कि मैं उत्तर से विध्वंस ला रहा हूँ।
मैं भयंकर विनाश ला रहा हूँ।
7 एक सिंह अपनी गुफा से निकला है, राष्ट्रों का विध्वंसक तेज कदम बढ़ाना आरम्भ कर चुका है।
वह तुम्हारे देश को नष्ट करने के लिये अपना घर छोड़ चुका है।
तुम्हारे नगर ध्वस्त होंगे।
उनमें रहने वाला कोई व्यक्ति नहीं बचेगा।
8 अत: टाट के कपड़े पहनो, रोओ,
क्यों क्योंकि यहोवा हम पर बहुत क्रोधित है।
9 यह सन्देश यहोवा का है, “ऐसे समय यह होता है।
राजा और प्रमुख साहस खो बैंठेंगे,
याजक डरेंगे,
नबियों का दिल दहलेगा।”
10 तब मैंने अर्थात् यिर्मयाह ने कहा, “मेरे स्वामी यहोवा, तूने सचमुच यहूदा और यरूशलेम के लोगों को धोखे में रखा है। तूने उनसे कहा, ‘तुम शान्तिपूर्वक रहोगे।’ किन्तु अब उनके गले तर तलवार खिंची हुई है।”
11 उस समय एक सन्देश यहूदा और यरूशलेम के लोगों को दिया जाएगा:
“नंगी पहाड़ियों से गरम आँधी चल रही है।
यह मरुभूमि से मेरे लोगों की ओर आ रही है।
यह वह मन्द हवा नहीं जिसका उपयोग किसान भूसे से अन्न निकालने के लिये करते हैं।
12 यह उससे अधिक तेज हवा है और मुझसे आ रही है।
अब मैं यहूदा के लोगों के विरुद्ध अपने न्याय की घोषणा करूँगा।”
13 देखो! शत्रु मेघ की तरह उठ रहा है, उसके रथ चक्रवात के समान है।
उसके घोड़े उकाब से तेज हैं। यह हम सब के लिये बुरा होगा, हम बरबाद हो जाएंगे।
14 यरूशलेम के लोगों, अपने हृदय से बुराइयों को धो डालो।
अपने हृदयों को पवित्र करो, जिससे तुम बच सको। बुरी योजनायें मत बनाते चलो।
15 दान देश के दूत की वाणी, जो वह बोलता है, ध्यान से सुनो।
कोई एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश से बुरी खबर ला रहा है।
16 “इस राष्ट्र को इसका विवरण दो।
यरूशलेम के लोगों में इस खबर को फैलाओ।
शत्रु दूर देश से आ रहे हैं। वे शत्रु यहूदा के नगरों के विरुद्ध युद्ध—उद्घोष कर रहे हैं।
17 शत्रुओं ने यरूशलेम को ऐसे घेरा है जैसे खेत की रक्षा करने वाले लोग हो।
यहूदा, तुम मेरे विरुद्ध गए, अत: तुम्हारे विरुद्ध शत्रु आ रहे हैं!” यह सन्देश यहोवा का है!
18 “जिस प्रकार तुम रहे और तुमने पाप किया उसी से तुम पर यह विपत्ति आई।
यह तुम्हारे पाप ही हैं जिसने जीवन को इतना कठिन बनाया है।
यह तुम्हारा पाप ही है जो उस पीड़ा को लाया जो तुम्हारे हृदय को बेधती है।”
यिर्मयाह का रुंदन
19 आह, मेरा दुःख और मेरी परेशानी मेरे पेट में दर्द कर रही हैं।
मेरा हृदय धड़क रहा है।
हाय, मैं इतना भयभीत हूँ।
मेरा हृदय मेरे भीतर तड़प रहा है।
मैं चुप नहीं बैठ सकता। क्यों क्योंकि मैंने तुरही का बजना सुना है।
तुरही सेना को युद्ध के लिये बुला रही है।
20 ध्वंस के पीछे विध्वंस आता है। पूरा देश नष्ट हो गया है।
अचानक मेरे डेरे नष्ट कर दिये गये हैं, मेरे परदे फाड़ दिये गए हैं।
21 हे यहोवा, मैं कब तक युद्ध पताकायें देखुँगा युद्ध की तुरही को कितने समय सुनूँगा
22 परमेश्वर ने कहा, “मेरे लोग मूर्ख हैं। वे मुझे नहीं जानते।
वे बेवकूफ बच्चे हैं।
वे समझते नहीं। वे पाप करने में दक्ष हैं, किन्तु वे अच्छा करना नहीं जानते।”
विनाश आ रहा है
23 मैंने धरती को देखा।
धरती खाली थी, इस पर कुछ नहीं था।
मैंने गगन को देखा, और इसका प्रकाश चला गया था।
24 मैंने पर्वतों पर नजर डाली और वे काँप रहे थे। सभी पहाड़ियाँ लड़खड़ा रही थीं।
25 मैंने ध्यान से देखा, किन्तु कोई मनुष्य नहीं था, आकाश के सभी पक्षी उड़ गए थे।
26 मैंने देखा कि सुहावना प्रदेश मरुभूमि बन गया था।
उस देश के सभी नगर नष्ट कर दिये गये थे। यहोवा ने यह कराया।
यहोवा और उसके प्रचण्ड क्रोध ने यह कराया।
27 यहोवा ये बातें कहता है: “पूरा देश बरबाद हो जाएगा।
(किन्तु मैं देश को पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा।)
28 अत: इस देश के लोग मेरे लोगों के लिये रोयेंगे।
आकाश अँधकारपूर्ण होगा।
मैंने कह दिया है, और बदलूँगा नहीं।
मैंने एक निर्णय किया है, और मैं अपना विचार नहीं बदलूँगा।”
29 यहूदा के लोग घुड़सवारों और धनुर्धारियों का उद्घोष सुनेंगे, और लोग भाग जायेंगे।
कुछ लोग गुफाओं में छिपेंगे कुछ झाड़ियों में तथा कुछ चट्टानों पर चढ़ जाएंगे।
यहूदा के सभी नगर खाली हैं।
उनमें कोई नहीं रहता।
30 हे यहूदा, तुम नष्ट कर दिये गये हो, तुम क्या कर रहे हो तुम अपने सुन्दरतम लाल वस्त्र क्यों पहनते हो
तुम अपने सोने के आभूषण क्यों पहने हो तुम अपनी आँखों में अन्जन क्यों लगाते हो।
तुम अपने को सुन्दर बनाते हो, किन्तु यह सब व्यर्थ है।
तुम्हारे प्रेमी तुमसे घृणा करते हैं, वे मार डालने का प्रयत्न कर रहे हैं।
31 मैं एक चीख सुनता हूँ जो उस स्त्री की चीख की तरह है जो बच्चा जन्म रही हो।
यह चीख उस स्त्री की तरह है जो प्रथम बच्चे को जन्म रही हो।
यह सिय्योन की पुत्री की चीख है।
वह अपने हाथ प्रार्थना में यह कहते हुए उठा रही है, “आह! मैं मूर्छित होने वाली हूँ, हत्यारे मेरे चारों ओर हैं!”
यहूदा के लोगों के पाप
5 यहोवा कहता है, “यरूशलेम की सड़कों पर ऊपर नीचे जाओ। चारों ओर देखो और इन चीजों के बारे में सोचो। नगर के सार्वजनिक चौराहो को खोजो, पता करो कि क्या तुम किसी एक अच्छे व्यक्ति को पा सकते हो, ऐसे व्यक्ति को जो ईमानदारी से काम करता हो, ऐसा जो सत्य की खोज करता हो। यदि तुम एक अच्छे व्यक्ति को ढूँढ निकालोगे तो मैं यरूशलेम को क्षमा कर दूँगा! 2 लोग प्रतिज्ञा करते हैं और कहते हैं, ‘जैसा कि यहोवा शाश्वत है।’ किन्तु वे सच्चाई से यही तात्पर्य नहीं रखते।”
3 हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि तू लोगों में सच्चाई देखना चाहता है।
तूने यहूदा के लोगों को चोट पहुँचाई, किन्तु उन्होंने किसी पीड़ा का अनुभव नहीं किया।
तूने उन्हें नष्ट किया, किन्तु उन्होंने अपना सबक सीखने से इन्करा कर दिया।
वे बहुत हठी हो गए।
उन्होंने अपने पापों के लिये पछताने से इन्कार कर दिया।
4 किन्तु मैं (यिर्मयाह) ने अपने से कहा,
“वे केवल गरीब लोग ही है जो उतने मूर्ख हैं।
ये वही लोग हैं जो यहोवा के मार्ग को नहीं सीख सके!
गरीब लोग अपने परमेश्वर की शिक्षा को नहीं जानते।
5 इसलिये मैं यहूदा के लोगों के प्रमुखों के पास जाऊँगा।
मैं उनसे बातें करूँगा।
निश्चय ही प्रमुख यहोवा के मार्ग को समझते हैं।
मुझे विश्वास है कि वे अपने परमेश्वर के नियमों को जानते हैं।”
किन्तु सभी प्रमुख यहोवा की सेवा करने से इन्कार करने में एक साथ हो गए।
6 वे परमेश्वर के विरुद्ध हुए, अत: जंगल का एक सिंह उन पर आक्रमण करेगा।
मरुभूमि में एक भेड़िया उन्हें मार डालेगा।
एक तेंदुआ उनके नगरों के पास घात लगाये है।
नगरों के बाहर जाने वाले किसी को भी तेंदुआ टुकड़ों में चीर डालेगा।
यह होगा, क्यैं कि यहूदा के लोगों ने बार—बार पाप किये हैं।
वे कई बार यहोवा से दूर भटक गए हैं।
7 परमेश्वर ने कहा, “यहूदा, मुझे कारण बताओ कि मुझे तुमको क्षमा क्यों कर देना चाहिये तुम्हारी सन्तानों ने मुछे त्याग दिया है।
उन्होंने उन देवमूर्तियों से प्रतिज्ञा की है जो परमेश्वर हैं ही नहीं।
मैंने तुम्हारी सन्तानों को हर एक चीज़ दी जिसकी जरुरत उन्हें थी।
किन्तु फिर भी वे विश्वासघाती रहे!
उन्होंने वेश्यालयों में बहुत समय बिताया।
8 वे उन घोड़ों जैसे रहे जिन्हें बहुत खाने को है, और जो जोड़ा बनाने को हो।
वे उन घोड़ों जैसे रहे जो पड़ोसी कीर् पॅत्नयों पर हिन हिना रहे हैं।
9 क्या मुझे यहूदा के लोगों को ये काम करने के कारण, दण्ड देना चाहिए यह सन्देश यहोवा का है।
हाँ! तुम जानते हो कि मुझे इस प्रकार के राष्ट्र को दण्ड देना चाहिये।
मुझे उन्हें वह दण्ड देना चाहिए जिसके वे पात्र हैं।
10 यहूदा की अंगूर की बेलों की कतारों के सहारे से निकलो।
बेलों को काट डालो। (किन्तु उन्हें पूरी तरह नष्ट न करो।)
उनकी सारी शाखायें छाँट दो क्योंकि ये शाखाये यहोवा की नहीं हैं।
11 इस्राएल और यहूदा के परिवार हर प्रकार से मेरे विश्वासघाती रहे हैं।”
यह सन्देश यहोवा के यहाँ से है।
12 “उन लोगों ने यहोवा के बारे में झूठ कहा है।
उन्होंने कहा है, ‘यहोवा हमारा कुछ नहीं करेगा।
हम लोगों का कुछ भी बुरा न होगा।
हम किसी सेना का आक्रमण अपने ऊपर नहीं देखेंगे।
हम कभी भूखों नहीं मरेंगे।’
13 झूठे नबी मरे प्राण हैं।
परमेश्वर का सन्देश उनमें नहीं उतरा है।
विपत्तियाँ उन पर आयेंगी।”
14 सर्वशक्तिमान परमेश्वर यहोवा ने यह सब कहा, “उन लोगों ने कहा कि मैं उन्हें दण्ड नहीं दूँगा।
अत: यिर्मयाह, जो सन्देश मैं तुझे दे रहा हूँ, वह आग जैसा होगा और वे लोग लकड़ी जैसे होंगे।
आग सारी लकड़ी जला डालेगी।”
15 इस्राएल के परिवार, यह सन्देश यहोवा का है, “तुम पर आक्रमण के लिये मैं एक राष्ट्र को बहुत दूर से जल्दी ही लाऊँगा।
यह एक पुराना राष्ट्र है।
यह एक प्राचीन राष्ट्र है।
उस राष्ट्र के लोग वह भाषा बोलते हैं जिसे तुम नहीं समझते।
तुम नहीं समझ सकते कि वे क्या कहते हैं
16 उनके तरकश खुली कब्र हैं, उनके सभी लोग वीर सैनिक हैं।
17 वे सैनिक तुम्हारी घर लाई फसल को खा जाएंगे।
वे तुम्हारा सारा भोजन खा जाएंगे।
वे तुम्हारे पुत्र—पुत्रियों को खा जाएंगे (नष्ट कर देंगे) वे तुम्हारे रेवड़ और पशु झुण्ड को चट कर जाएंगे।
वे तुम्हारे अंगूर और अंजीर को चाट जाएंगे।
वे तुम्हारे दृढ़ नगरों को अपनी तलवारों से नष्ट कर डालेंगे।
जिन नगरों पर तुम्हारा विश्वास है उन्हें वे नष्ट कर देंगे।”
18 यह सन्देश यहोवा का है:
“किन्तु कब वे भयैंनक दिन आते हैं,
यहूदा मैं तुझे पूरी तरह नष्ट नहीं करूँगा।
19 यहूदा के लोग तुमसे पूछेंगे,
‘यिर्मयाह, हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारा ऐसा बुरा क्यों किया?’
उन्हें यह उत्तर दो,
‘यहूदा के लोगों, तुमने यहोवा को त्याग दिया है,
और तुमने अपने ही देश में विदेशी देव मूर्तियों की पूजा की है।
तुमने वे काम किये,
अत: तुम अब उस देश में जो तुम्हारा नहीं है, विदेशियों की सेवा करोगे।’”
20 यहोवा ने कहा, “याकूब के परिवार में, इस सन्देश की घोषणा करो।
इस सन्देश को यहूदा राष्ट्र में सुनाओ।
21 इस सन्देश को सुनो,
तुम मूर्ख लोगों, तुम्हें समझ नहीं हैं:
तुम लोगों की आँखें है, किन्तु तुम देखते नहीं!
तुम लोगों के कान हैं, किन्तु तुम सनते नहीं!
22 निश्चय ही तुम मुझसे भयभीत हो।”
यह सन्देश यहोवा का है।
“मेरे सामने तुम्हें भय से काँपना चाहिये।
मैं ही वह हूँ, जिसने समुद्र तटों को समुद्र की मर्यादा बनाई।
मैंने बालू की ऐसी सीमा बनाई जिसे पानी तोड़ नहीं सकती।
तरंगे तट को कुचल सकती हैं, किन्तु वे इसे नष्ट नहीं करेंगी।
चढ़ती हुई तरंगे गरज सकती हैं, किन्तु वे तट की मर्यादा तोड़ नहीं सकती।
23 किन्तु यहूदा के लोग हठी हैं।
वे हमेशा मेरे विरुद्ध जाने की योजना बनाते हैं।
वे मुझसे मुड़े हैं और मुझसे दूर चले गए हैं।
24 यहूदा के लोग कभी अपने से नहीं कहते, ‘हमें अपने परमेश्वर यहोवा से डरना
और उसका सम्मान करना चाहिए।
वह हमे ठीक समय पर पतझड़ और बसन्त की वर्षा देता है।
वे यह निश्चित करता है कि हम ठीक समय पर फसल काट सकें।’
25 यहूदा के लोगों, तुमने अपराध किया है। अत: वर्षा और पकी फसल नहीं आई।
तुम्हारे पापों ने तुम्हें यहोवा की उन अच्छी चीज़ों का भोग नहीं करने दिया है।
26 मेरे लोगों के बीच पापी लोग हैं।
वे पापी लोग पक्षियों को फँसाने के लिये जाल बनाने वालों के समान हैं।
वे लोग अपना जाल बिछाते हैं, किन्तु वे पक्षी के बदले मनुष्यों को फँसाते हैं।
27 इन व्यक्तियों के घर झूठ से वैसे भरे होते हैं, जैसे चिड़ियों से भरे पिंजरे हों।
उनके झूठ ने उन्हें धनी और शक्तिशाली बनाया है।
28 जिन पापों को उन्होंने किया है उन्ही से वे बड़े और मोटे हुए हैं।
जिन बुरे कामों को वे करते हैं उनका कोई अन्त नहीं।
वे अनाथ बच्चों के मामले के पक्ष में बहस नहीं करेंगे, वे अनाथों की सहायता नहीं करेंगे।
वे गरीब लोगों को उचित न्याय नहीं पानें देंगे।
29 क्या मुझे इन कामों के करने के कारण यहूदा को दण्ड देना चाहिये?
यह सन्देश यहोवा का है।
तुम जानते हो कि मुझे ऐसे राष्ट्र को दण्ड देना चाहिये।
मुझे उन्हें वह दण्ड देना चाहिए जो उन्हें मिलना चाहिए।”
30 यहोवा कहता है, “यहूदा देश में एक भयानक और दिल दहलाने वाली घटना घट रही है।
जो हुआ है वह यह है कि:
31 नबी झूठ बोलते हैं,
याजक अपने हाथ में शक्ति लेते हैं।
मेरे लोग इसी तरह खुश हैं।
किन्तु लोगों, तुम क्या करोगे
जब दण्ड दिया जायेगा
शत्रु द्वारा यरूशलेम का घेराव
6 “बिन्यामीन के लोगों, अपनी जान लेकर भागो,
यरूशलेम नगर से भाग चलो!
युद्ध की तुरही तकोआ नगर में बजाओ!
बेथक्केरेम नगर में खतरे का झण्डा लगाओ!
ये काम करो क्योंकि उत्तर की ओर से विपत्ति आ रही है।
तुम पर भयंकर विनाश आ रहा है।
2 सिय्योन की पुत्री,
तुम एक सुन्दर चरागाह के समान हो।
3 गडेरिये यरूशलेम आते हैं, और वे अपनी रेवड़ लाते हैं।
वे उसके चारों ओर अपने डेरे डालते हैं।
हर एक गडेरिया अपनी रेवड़ की रक्षा करता है।”
4 “यरूशलेम नगर के विरुद्ध लड़ने के लिये तैयार हो जाओ!
उठो, हम लोग दोपहर को नगर पर आक्रमण करेंगे, किन्तु पहले ही देर हो चुकी है।”
संध्या की छाया लम्बी हो रही है,
5 अत: उठो! हम नगर पर रात में आक्रमण करेंगे!
हम यरूशलेम के दृढ़ रक्षा—साधनों को नष्ट करेंगे।
6 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यही है:
“यरूशलेम के चारों ओर के पेड़ों को काट डालो
और यरूशलेम के विरुद्ध घेरा डालने का टीला बनाओ।
इस नगर को दण्ड मिलना चाहिये।
इस नगर के भीतर दमन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
7 जैसे कुँआ अपना पानी स्वच्छ रखता है उसी प्रकार यरूशलेम अपनी दुष्टता को नया बनाये रखता है।
इस नगर में हिंसा और विध्वंस सुना जाता हैं।
मैं सदैव यरूशलेम की बीमारी और चोटों को देख सकता हूँ।
8 यरूशलेम, इस चेतावनी को सुनो।
यदि तुम नहीं सुनोगे तो मैं अपनी पीठ तुम्हारी ओर कर लूँगा।
मैं तुम्हारे प्रदेश को सूनी मरुभूमि कर दूँगा।
कोई भी व्यक्ति वहाँ नहीं रह पायेगा।”
9 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“उन इस्राएल के लोगों को इकट्ठा करो जो अपने देश में बच गए थे।
उन्हें इस प्रकार इकट्ठे करो, जैसे तुम अंगूर की बेल से आखिरी अंगूर इकट्ठे करते हो।
अंगूर इकट्ठे करने वाले की तरह हर एक बेल की जाँच करो।”
10 मैं किससे बात करुँ?
मैं किसे चेतावनी दे सकता हूँ?
मेरी कौन सुनेगा?
इस्राएल के लोगों ने अपने कानो को बन्द किया है।
अत: वे मेरी चेतावनी सुन नहीं सकते।
लोग यहोवा की शिक्षा पसन्द नहीं करते।
वे यहोवा का सन्देश सुनना नहीं चाहते।
11 किन्तु मैं (यिर्मयाह) यहोवा के क्रोध से भरा हूँ।
मैं इसे रोकते—रोकते थक गया हूँ।
“सड़क पर खेलते बच्चों पर यहोवा का क्रोध उंडेलो।
एक साथ एकत्रित युवकों पर इसे उंडेलो।
पति और उसकी पत्नी दोनों पकड़े जाएंगे।
बूढ़े और अति बूढ़े लोग पकड़े जाएंगे।
12 उनके घर दूसरे लोगों को दे दिए जाएंगे।
उनके खेत और उनकी पत्नियाँ दूसरों को दे दी जाएंगी।
मैं अपने हाथ उठाऊँगा और यहूदा देश के लोगों को दण्ड दूँगा।”
यह सन्देश यहोवा का था।
13 “इस्राएल के सभी लोग धन और अधिक धन चाहते हैं।
छोटे से लेकर बड़े तक सभी लालची हैं।
यहाँ तक कि याजक और नबी झूठ पर जीते हैं।
14 मेरे लोग बहुत बुरी तरह चोट खाये हुये हैं।
नबी और याजक मेरे लोगों के घाव भरने का प्रयत्न ऐसे करते हैं, मानों वे छोटे से घाव हों।
वे कहते हैं, ‘यह बहुत ठीक है, यह बिल्कुल ठीक है।’
किन्तु यह सचमुच ठीक नहीं हुआ है।
15 नबियों और याजकों को उस पर लज्जित होना चाहिये, जो बुरा वे करते हैं।
किन्तु वे तनिक भी लज्जित नहीं।
वे तो अपने पाप पर संकोच करना तक भी नहीं जानते।
अत: वे अन्य हर एक के साथ दण्डित होंगे।
जब मैं दण्ड दूँगा, वे जमीन पर फेंक दिये जायेंगे।”
यह सन्देश यहोवा का है।
16 यहोवा यह सब कहता है:
“चौराहों पर खड़े होओ और देखो।
पता करो कि पुरानी सड़क कहाँ थी।
पता करो कि अच्छी सड़क कहाँ है, और उस सड़क पर चलो।
यदि तुम ऐसा करोगे, तुम्हें आराम मिलेगा! किन्तु तुम लोगों ने कहा है,
‘हम अच्छी सड़क पर नहीं चलेंगे!’
17 मैंने तुम्हारी चौकसी के लिये चौकीदार चुने!
मैंने उनसे कहा, ‘युद्ध—तुरही की आवाज पर कान रखो।’
किन्तु उन्होंने कहा, ‘हम नहीं सुनेंगे!’
18 अत: तुम सभी राष्ट्रों, उन देशों के तुम सभी लोगों, सुनो ध्यान दो!
वह सब सुनो जो मैं यहूदा के लोगों के साथ करूँगा।
19 पृथ्वी के लोगों, यह सुनो:
मैं यहूदा के लोगों पर विपत्ति ढाने जा रहा हूँ।
क्यों क्योंकि उन लोगों ने सभी बुरे कामों की योजनायें बनाई।
यह होगा क्योंकि उन्होंने मेरे सन्देशों की ओर ध्यान नहीं दिया है।
उन लोगों ने मेरे नियमों का पालन करने से इन्कार किया है।”
20 यहोवा कहता है, “तुम शबा देश से मुझे सुगन्धि की भेंट क्यों लाते हो
तुम भेंट के रूप में दूर देशों से सुगन्धि क्यों लाते हो
तुम्हारी होमबलि मुझे प्रसन्न नहीं करती।
तुम्हारी बलि मुझे खुश नहीं करती।”
21 अत: यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“मैं यहूदा के लोगों के सामने समस्यायें रखूँगा।
वे लोगों को गिराने वाले पत्थर से होंगे।
पिता और पुत्र उन पर ठोकर खाकर गिरेंगे।
मित्र और पड़ोसी मरेंगे।”
22 यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“उत्तर के देश से एक सेना आ रही है,
पृथ्वी के दूर स्थानों से एक शक्तिशाली राष्ट्र आ रहा है।
23 सैनिकों के हाथ में धनुष और भाले हैं, वे क्रूर हैं।
वे कृपा करना नहीं जानते।
वे बहुत शक्तिशाली हैं।
वे सागर की तरह गरजते हैं, जब वे अपने घोड़ों पर सवार होते हैं।
वह सेना युद्ध के लिये तैयार होकर आ रही है।
हे सिय्योन की पुत्री, सेना तुम पर आक्रमण करने आ रही हैं।”
24 हमने उस सेना के बारे में सूचना पाई है।
हम भय से असहाय हैं।
हम स्वयं को विपत्तियों के जाल में पड़ा अनुभव करते हैं।
हम वैसे ही कष्ट में हैं जैसे एक स्त्री को प्रसव—वेदना होती है।
25 खेतों में मत जाओ, सड़कों पर मत निकलो।
क्यों क्योंकि शत्रु के हाथों में तलवार है,
क्योंकि खतरा चारों ओर है।
26 हे मेरे लोगों, टाट के वस्त्र पहन लो।
राख में लोट लगा लो।
मरे लोगों के लिए फूट—फूट कर रोओ।
तुम एकमात्र पुत्र के खोने पर रोने सा रोओ।
ये सब करो क्योंकि विनाशक अति शीघ्रता से हमारे विरुद्ध आएंगे।
27 “यिर्मयाह, मैंने (यहोवा ने)
तुम्हें प्रजा की कच्ची धातु का पारखी बनाया है।
तुम हमारे लोगों की जाँच करोगे
और उनके व्यवहार की चौकसी रखोगे।
28 मेरे लोग मेरे विरुद्ध हो गए हैं,
और वे बहुत हठी हैं।
वे लोगों के बारे में बुरी बातें कहते घूमते हैं।
वे उस काँसे और लोहे की तरह हैं जो चकमहीन
और जंग खाये हैं।
29 वे उस श्रमिक की तरह हैं जिसने चाँदी को शुद्ध करने की कोशिश की।
उसकी धोकनी तेज चली, आग भी तेज जली,
किन्तु आग से केवल रांगा निकला।
यह समय की बरबादी थी जो शुद्ध चाँदी बनाने का प्रयत्न किया गया।
ठीक इसी प्रकार मेरे लोगों से बुराई दूर नहीं की जा सकी।
30 मेरे लोग ‘खोटी चाँदी’ कहे जायेंगे।
उनको यह नाम मिलेगा क्योंकि यहोवा ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।”
यिर्मयाह का मन्दिर उपदेश
7 यह यहोवा का सन्देश यिर्मयाह के लिये है: 2 यिर्मयाह, यहोवा के मन्दिर के द्वार के सामने खड़े हो। द्वार पर यह सन्देश घोषित करो:
“‘यहूदा राष्ट्र के सभी लोगों, यहोवा के यहाँ का सन्देश सुनो। यहोवा की उपासना करने के लिये तुम सभी लोग जो इन द्वारों से होकर आए हो इस सन्देश को सुनो। 3 इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा है। सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है, अपना जीवन बदलो और अच्छे काम करो। यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। 4 इस झूठ पर विश्वास न करो जो कुछ लोग बोलते हैं। वे कहते हैं, “यह यहोवा का मन्दिर है। यहोवा का मन्दिर है! यहोवा का मन्दिर है!” 5 यदि तुम अपना जीवन बदलोगे और अच्छा काम करोगे, तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। तुम्हें एक दूसरे के प्रति निष्ठावान होना चाहिए। 6 तुम्हें अजनबियों के साथ भी निष्ठावान होना चाहिये। तुम्हें विधवा और अनाथ बच्चों के लिये उचित काम करना चाहिये। निरपराध लोगों को न मारो। अन्य देवताओं का अनुसरण न करो। क्यों क्योंकि वे तुम्हारे जीवन को नष्ट कर देंगे। 7 यदि तुम मेरी आज्ञा का पालन करोगे तो मैं तुम्हें इस स्थान पर रहने दूँगा। मैंने यह प्रदेश तुम्हारे पूर्वजों को अपने पास सदैव रखने के लिये दिया।
8 “‘किन्तु तुम झूठ में विश्वास कर रहे हो और वह झूठ व्यर्थ है। 9 क्या तुम चोरी और हत्या करोगे क्या तुम व्यभिचार का पाप करोगे क्या तुम लोगों पर झूठा आरोप लगाओगे क्या तुम असत्य देवता बाल की पूजा करोगे और अन्य देवताओं का अनुसरण करोगे जिन्हें तुम नहीं जानते 10 यदि तुम ये पाप करते हो तो क्या तुम समझते हो कि तुम उस मन्दिर में मेरे सामने खड़े हो सकते हो जिसे मेरे नाम से पुकारा जाता हो क्या तुम सोचते हो कि तुम मेरे सामने खड़े हो सकते हो और कह सकते हो, “हम सुरक्षित हैं” सुरक्षित इसलिये कि जिससे तुम ये घृणित कार्य कर सको। 11 यह मन्दिर मेरे नाम से पुकारा जाता है। क्या यह मन्दिर तुम्हारे लिये डकैतों के छिपने के स्थान के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है मैं तुम्हारी चौकसी रख रहा हूँ।’” यह सन्देश यहोवा का है।
12 “‘यहूदा के लोगों, तुम अब शीलो नगर को जाओ। उस स्थान पर जाओ जहाँ मैंने प्रथम बार अपने नाम का मन्दिर बनाया। इस्राएल के लोगों ने भी पाप कर्म किये। जाओ और देखो कि उस स्थान का मैंने उन पाप कर्मों के लिये क्या किया जो उन्होंने किये। 13 इस्राएल के लोगों, तुम लोग ये सब पाप कर्म करते रहे। यह सन्देश यहोवा का था! मैंने तुमसे बार—बार बातें कीं, किन्तु तुमने मेरी अनसुनी कर दी। मैंने तुम लोगों को पुकारा पर तुमने उत्तर नहीं दिया। 14 इसलिये मैं अपने नाम से पुकारे जाने वाले यरूशलेम के इस मन्दिर को नष्ट करूँगा। मैं उस मन्दिर को वैसे ही नष्ट करूँगा जैसे मैंने शीलो को नष्ट किया और यरूशलेम में वह मन्दिर जो मेरे नाम पर हैं, वही मन्दिर है जिसमें तुम विश्वास करते हो। मैंने उस स्थान को तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया। 15 मैं तुम्हें अपने पास से वैसे ही दूर फेंक दूँगा जैसे मैंने तुम्हारे सभी भाईयों को एप्रैम से फेंका।’
16 “यिर्मयाह, जहाँ तक तुम्हारी बात है, तुम यहूदा के इन लोगों के लिये प्रार्थना मत करो। न उनके लिये याचना करो और न ही उनके लिये प्रार्थना। उनकी सहायता के लिये मुझसे प्रार्थना मत करो। उनके लिये तुम्हारी प्रार्थना को मैं नहीं सुनूँगा। 17 मैं जानता हूँ कि तुम देख रहे हो कि वे यहूदा के नगर में क्या कर रहे हैं तुम देख सकते हो कि वे यरूशलेम नगर की सड़कों पर क्या कर रहे हैं 18 यहूदा के लोग जो कर रहे हैं वह यह है: बच्चे लकड़ियाँ इकट्ठी करते हैं। पिता लोग उस लकड़ी का उपयोग आग जलाने में करते हैं। स्त्रियाँ आटा गूँधती हैं और स्वर्ग की रानी की भेंट के लिये रोटियाँ बनाती हैं। यहूदा के वे लोग अन्य देवताओं की पूजा के लिये पेय भेंट चढ़ाते हैं। वे मुझे क्रोधित करने के लिये यह करते हैं। 19 किन्तु मैं वह नहीं हूँ जिसे यहूदा के लोग सचमुच चोट पहुँचा रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है। “वे केवल अपने को ही चोट पहुँचा रहे हैं। वे अपने को लज्जा का पात्र बना रहे हैं।”
20 अत: यहोवा यह कहता है: “मैं अपना क्रोध इस स्थान के विरुद्ध प्रकट करुँगा। मैं लोगों तथा जानवरों को दण्ड दूँगा। मैं खेत में पेड़ों और उस भूमि में उगनेवाली फसलों को दण्ड दूँगा। मेरा क्रोध प्रचण्ड अग्नि सा होगा और कोई व्यक्ति उसे रोक नहीं सकेगा।”
यहोवा बलि की अपेक्षा, अपनी आज्ञा का पालन अधिक चाहता है
21 इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है, “जाओ और जितनी भी होमबलि और बलि चाहो, भेंट करो। उन बलियों के माँस स्वयं खाओ। 22 मैं तुम्हारे पूर्वजों को मिस्र से बाहर लाया। मैंने उनसे बातें कीं, किन्तु उन्हें कोई आदेश होमबलि और बलि के विषय में नहीं दिया। 23 मैंने उन्हें केवल यह आदेश दिया, ‘मेरी आज्ञा का पालन करो और मैं तुम्हारा परमेश्वर रहूँगा तथा तुम मेरे लोग होगे। जो मैं आदेश देता हूँ वह करो, और तुम्हारे लिए सब अच्छा होगा।’
24 “किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी एक न सुनी। उन्होंने मुझ पर ध्यान नहीं दिया। वे हठी रहे और उन्होंने उन कामों को किया जो वे करना चाहते थे। वे अच्छे न बने। वे पहले से भी अधिक बुरे बने, वे पीछे को गए, आगे नहीं बढ़े। 25 उस दिन से जिस दिन तुम्हारे पूर्वजों ने मिस्र छोड़ा आज तक मैंने अपने सेवकों को तुम्हारे पास भेजा है। मेरे सेवक नबी हैं। मैंने उन्हें तुम्हारे पास बारबार भेजा। 26 किन्तु तुम्हारे पूर्वजों ने मेरी अनसुनी की। उन्होंने मुझ पर ध्यान नहीं दिया। वे बहुत हठी रहे, और उन्होंने अपने पूर्वजों से भी बढ़कर बुराईयाँ कीं।
27 “यिर्मयाह, तुम यहूदा के लोगों से ये बातें कहोगे। किन्तु वे तुम्हारी एक न सुनेंगे। तुम उनसे बातें करोगे किन्तु वे तुम्हें जवाब भी नहीं देंगे। 28 इसलिये तुम्हें उनसे ये बातें कहनी चाहियें: यह वह राष्ट्र है जिसने यहोवा अपने परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं किया। इन लोगों ने परमेश्वर की शिक्षाओं को अनसुनी किया। ये लोग सच्ची शिक्षा नहीं जानते।
हत्या—घाटी
29 “यिर्मयाह, अपने बालों को काट डालो और इसे फेंक दो। पहाड़ी की नंगी चोटी पर चढ़ो और रोओ चिल्लाओ। क्यों क्योंकि यहोवा ने इस पीढ़ी के लोगों को दुत्कार दिया है। यहोवा ने इन लोगों से अपनी पीठ मोड़ ली है और वह क्रोध में इन्हें दण्ड देगा। 30 ये करो क्योंकि मैंने यहूदा के लोगों को पाप करते देखा है।” यह सन्देश यहोवा का है। “उन्होंने अपनी देवमूर्तियाँ स्थापित की हैं और मैं उन देवमूर्तियों से घृणा करता हूँ। उन्होंने देवमूर्तियों को उस मन्दिर में स्थापित किया है जो मेरे नाम से है। उन्होंने मेरे मन्दिर को ‘गन्दा’ कर दिया है। 31 यहूदा के उन लोगों ने बेन—हिन्नोम घाटी में तोपेत के उच्च स्थान बनाए हैं। उन स्थानों पर लोग अपने पुत्र—पुत्रियों को मार डालते थे, वे उन्हें बलि के रूप में जला देते थे। यह ऐसा है जिसके लिये मैंने कभी आदेश नहीं दिया। इस प्रकार की बात कभी मेरे मन में आई ही नहीं! 32 अत: मैं तुम्हें चेतावनी देता हूँ। वे दिन आ रहे हैं।” यह सन्देश यहोवा का है, “जब लोग इस स्थान को तोपेत या बेन—हिन्नोम की घाटी फिर नहीं कहेंगे। नहीं, वे इसे हत्याघाटी कहेंगे। वे इसे यह नाम इसलिये देंगे कि वे तोपेत में इतने व्यक्तियों को दफनायेंगे कि उनके लिये किसी अन्य को दफनाने की जगह नहीं बचेगी। 33 तब लोगों के शव जमीन के ऊपर पड़े रहेंगे और आकाश के पक्षियों के भोजन होंगे। उन लोगों के शरीर को जंगली जानवर खायेंगे। वहाँ उन पक्षियों और जानवरों को भगाने के लिये कोई व्यक्ति जीवित नहीं बचेगा। 34 मैं आनन्द और प्रसन्नता के कहकहों को यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों पर समाप्त कर दूँगा। यहूदा और यरूशलेम में दुल्हन और दुल्हे की हँसी—ठिठोली अब से आगे नहीं सुनाई पड़ेगी। पूरा प्रदेश सूनी मरुभूमि बन जाएगा।”
8 यह सन्देश यहोवा का है: “उस समय लोग यहूदा के राजाओं और प्रमुख शासकों की हड्डियों को उनके कब्रों से निकाल लेंगे। वे याजकों और नबियों की हड्डियों को उनके कब्रों से ले लेंगे। वे यरूशलेम के सभी लोगों के कब्रों से हड्डियाँ निकाल लेंगे। 2 वे लोग उन हड्डियों को सूर्य, चन्द्र और तारों की पूजा के लिये नीचे जमीन पर फैलायेंगे। यरूशलेम के लोग सूर्य, चन्द्र और तारों की पूजा से प्रेम करते हैं। कोई भी व्यक्ति उन हड्डियाँ को इकट्ठा नहीं करेगा और न ही उन्हें फिर दफनायेगा। अत: उन लोगों की हड्डियाँ गोबर की तरह जमीन पर पड़ी रहेंगी।
3 “मैं यहूदा के लोगों को अपना घर और प्रदेश छोड़ने पर विवश करूँगा। लोग विदेशों में ले जाए जाएंगे। यहूदा के वे कुछ लोग जो युद्ध में नहीं मारे जा सके, चाहेंगे कि वे मार डाले गए होते।” यह सन्देश यहोवा का है।
पाप और दण्ड
4 यिर्मयाह, यहूदा के लोगों से यह कहो कि यहोवा यह सब कहता है,
“‘तुम यह जानते हो कि जो व्यक्ति गिरता है
वह फिर उठता है।
और यदि कोई व्यक्ति गलत राह पर चलता है
तो वह चारों ओर से घूम कर लौट आता है।
5 यहूदा के लोग गलत राह चले गए हैं।
किन्तु यरूशलेम के वे लोग गलत राह चलते ही क्यों जा रहे हैं
वे अपने झूठ में विश्वास रखते हैं।
वे मुड़ने तथा लौटने से इन्कार करते हैं।
6 मैंने उनको ध्यान से सुना है,
किन्तु वे वह नहीं कहते जो सत्य है।
लोग अपने पाप के लिये पछताते नहीं।
लोग उन बुरे कामों पर विचार नहीं करते जिन्हें उन्होंने किये हैं।
परत्येक अपने मार्ग पर वैसे ही चला जा रहा है।
वे युद्ध में दौड़ते हुए घोड़ों के समान हैं।
7 आकाश के पक्षी भी काम करने का ठीक समय जानते हैं।
सारस, कबूतर, खन्जन और मैना भी जानते हैं
कि कब उनको अपने नये घर में उड़ कर जाना है।
किन्तु मेरे लोग नहीं जानते कि
यहोवा उनसे क्या कराना चाहता है।
8 “‘तुम कहते रहते हो, “हमे यहोवा की शिक्षा मिली है।
अत: हम बुद्धिमान हैं!”
किन्तु यह सत्य नहीं! क्योंकि शास्त्रियों ने अपनी लेखनी से झूठ उगला है।
9 उन “चतुर लोगों” ने यहोवा की शिक्षा अनसुनी की है अत:
सचमुच वे वास्तव में बुद्धिमान लोग नहीं हैं।
वे “चतुर लोग” जाल में फँसाये गए।
वे काँप उठे और लज्जित हुए।
10 अत: मैं उनकी पत्नियों को अन्य लोगों को दूँगा।
मैं उनके खेत को नये मालिकों को दे दूँगा।
इस्राएल के सभी लोग अधिक से अधिक धन चाहते हैं।
छोटे से लेकर बड़े से बड़े सभी लोग उसी तरह के हैं।
सभी लोग नबी से लेकर याजक तक सब झूठ बोलते हैं।
11 नबी और याजक हमारे लोगों के घावों को भरने का प्रयत्न ऐसे करते हैं
मानों वे छोटे से घाव हों।
वे कहते हैं, “यह बिल्कुल ठीक है, यह बिल्कुल ठीक है।”
किन्तु यह बिल्कुल ठीक नहीं।
12 उन लोगों को अपने किये बुरे कामों के लिये लज्जित होना चाहिये।
किन्तु वे बिल्कुल लज्जित नहीं।
उन्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि उन्हें अपने पापों के लिये ग्लानि हो सके अत:
वे अन्य सभी के साथ दण्ड पायेंगे।
मैं उन्हें दण्ड दूँगा और जमीन पर फेंक दूँगा।’”
ये बातें यहोवा ने कहीं।
13 “‘मैं उनके फल और फसलें ले लूँगा जिससे उनके यहाँ कोई पकी फसल नहीं होगी।
अंगूर की बेलों में कोई अंगूर नहीं होंगे।
अंजीर के पेड़ों पर कोई अंजीर नहीं होगा।
यहाँ तक कि पत्तियाँ सूखेंगी और मर जाएंगी।
मैं उन चीज़ों को ले लूँगा जिन्हें मैंने उन्हें दे दी थी।’”
14 “‘हम यहाँ खाली क्यों बैठे हैं आओ, दृढ़ नगरों को भाग निकलो।
यदि हमारा परमेश्वर यहोवा हमें मारने ही जा रहा है, तो हम वहीं मरें।
हमने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है अत: परमेश्वर ने हमें पीने को जहरीला पानी दिया है।
15 हम शान्ति की आशा करते थे, किन्तु कुछ भी अच्छा न हो सका।
हम ऐसे समय की आशा करते हैं, जब वह क्षमा कर देगा किन्तु केवल विपत्ति ही आ पड़ी है।
16 दान के परिवार समूह के प्रदेश से
हम शत्रु के घोड़ों के नथनों के फड़फड़ाने की आवाज सुनते हैं,
उनकी टापों से पृथ्वी काँप उठी है,
वे प्रदेश और इसमें की सारी चीज़ों को नष्ट करने आए है।
वे नगर और इसके निवासी सभी लोगों को जो वहाँ रहते हैं,
नष्ट करने आए हैं।’”
17 “यहूदा के लोगों, मैं तुम्हें डसने को विषैले साँप भेज रहा हूँ।
उन साँपों को सम्मोहित नहीं किया जा सकता।
वे ही साँप तुम्हें डसेंगे।”
यह सन्देश यहोवा का है।
18 परमेश्वर, मैं बहुत दु:खी और भयभीत हूँ।
19 मेरे लोगों की सुन।
इस देश में वे चारों ओर सहायता के लिए पुकार रहे हैं।
वे कहते हैं, “क्या यहोवा अब भी सिय्योन में है?
क्या सिय्योन के राजा अब भी वहाँ है?”
किन्तु परमेश्वर कहता है,
“यहूदा के लोग, अपनी देव मूर्तियों की पूजा करके
मुझे क्रोधित क्यों करते हैं,
उन्होंने अपने व्यर्थ विदेशी देव मूर्तियों की पूजा की है।”
20 लोग कहते हैं,
“फसल काटने का समय गया।
बसन्त गया
और हम बचाये न जा सके।”
21 मेरे लोग बीमार है, अत: मैं बीमार हूँ।
मैं इन बीमार लोगों की चिन्ता में दुःखी और निराश हूँ।
22 निश्चय ही, गिलाद प्रदेश में कुछ दवा है।
निश्चय ही गिलाद प्रदेश में वैद्य है।
तो भी मेरे लोगों के घाव क्यों अच्छे नहीं होते?
9 यदि मेरा सिर पानी से भरा होता,
और मेरी आँखें आँसू का झरना होतीं तो मैं अपने नष्ट किये गए
लोगों के लिए दिन रात रोता रहता।
2 यदि मुझे मरुभूमि में रहने का स्थान मिल गया होता
जहाँ किसी घर में यात्री रात बिताते, तो मैं अपने लोगों को छोड़ सकता था।
मैं उन लोगों से दूर चला जा सकता था।
क्यों क्योंकि वे सभी परमेश्वर के विश्वासघाती व व्यभिचारी हो गए हैं, वे सभी उसके विरुद्ध हो रहे हैं।
3 “वे लोग अपनी जीभ का उपयोग धनुष जैसा करते हैं,
उनके मुख से झूठ बाण के समान छूटते हैं।
पूरे देश में सत्य नहीं। झूठ प्रबल हो गया है, वे लोग एक पाप से दूसरे पाप करते जाते हैं।
वे मुझे नहीं जानते।” यहोवा ने ये बातें कहीं।
4 “अपने पड़ोसियों से सतर्क रहो, अपने निज भाइयों पर भी विश्वास न करो।
क्यों क्योंकि हर एक भाई ठग हो गया है।
हर पड़ोसी तुम्हारे पीठ पीछे बात करता है।
5 हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से झूठ बोलता है।
कोई व्यक्ति सत्य नहीं बोलता।
यहूदा के लोगों ने अपनी जीभ को झूठ बोलने की शिक्षा दी है।
उन्होंने तब तक पाप किये जब तक कि वे इतने थके कि लौट न सकें।
6 एक बुराई के बाद दूसरी बुराई आई।
झूठ के बाद झूठ आया।
लोगों ने मुझको जानने से इन्कार कर दिया।”
यहोवा ने ये बातें कहीं।
7 अत: सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है,
“मैं यहूदा के लोगों की परीक्षा वैसे ही करूँगा
जैसे कोई व्यक्ति आग में तपाकर किसी धातु की परीक्षा करता है।
मेरे पास अन्य विकल्प नहीं है।
मेरे लोगों ने पाप किये हैं।
8 यहूदा के लोगों की जीभ तेज बाणों की तरह हैं।
उनके मुँह से झूठ बरसता है।
हर एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से अच्छा बोलता है।
किन्तु वह छिपे अपने पड़ोसी पर आक्रमण करने की योजना बनाता है।
9 क्या मुझे यहूदा के लोगों को इन कामों के करने के लिये दण्ड नहीं देना चाहिए”
यह सन्देश यहोवा का है।
“तुम जानते हो कि मुझे इस प्रकार के लोगों को दण्ड देना चाहिए।
मैं उनको वह दण्ड दूँगा जिसके वे पात्र हैं।”
10 मैं (यिर्मयाह) पर्वतों के लिये फूट फूट कर रोऊँगा।
मैं खाली खेतों के लिये शोकगीत गाऊँगा।
क्यों क्योंकि जीवित वस्तुएँ छीन ली गई।
कोई व्यक्ति वहाँ यात्रा नहीं करता।
उन स्थान पर पशु ध्वनि नहीं सुनाई पड़ सकती।
पक्षी उड़ गए हैं और जानवर चले गए हैं।
11 “मैं (यहोवा) यरूशलेम नगर को कूड़े का ढेर बना दूँगा।
यह गीदड़ों की माँदे बनेगा।
मैं यहूदा देश के नगरों को नष्ट करूँगा अत: वहाँ कोई भी नहीं रहेगा।”
12 क्या कोई व्यक्ति ऐसा बुद्धिमान है जो इन बातों को समझ सके क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे यहोवा से शिक्षा मिली है क्या कोई यहोवा के सन्देश की व्य़ाख्य़ा कर सकता है देश क्यों नष्ट हुआ यह एक सूनी मरुभूमि की तरह क्यों कर दिया गया जहाँ कोई भी नहीं जाता 13 यहोवा ने इन प्रश्नों का उत्तर दिया। उसने कहा, “यह इसलिये हुआ कि यहूदा के लोगों ने मेरी शिक्षा पर चलना छोड़ दिया। मैंने उन्हें अपनी शिक्षा दी, किन्तु उन्होंने मेरी सुनने से इन्कार किया। उन्होंने मेरे उपदेशों का अनुसरण नहीं किया। 14 यहूदा के लोग अपनी राह चले, वे हठी रहे। उन्होंने असत्य देवता बाल का अनुसरण किया। उनके पूर्वजों ने उन्हें असत्य देवताओं के अनुसरण करने की शिक्षा दी।”
15 अत: इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, “मैं शीघ्र ही यहूदा के लोगों को कड़वा फल चखाऊँगा। मैं उन्हें जहरीला पानी पिलाऊँगा। 16 मैं यहूदा के लोगों को अन्य राष्ट्रों में बिखेर दूँगा। वे अजनबी राष्ट्रों में रहेंगे। उन्होंने और उनके पूर्वजों ने उन देशों को कभी नहीं जाना। मैं तलवार लिये व्यक्तियों को भेंजूँगा। वे लोग यहूदा के लोगों को मार डालेंगे। वे लोगों को तब तक मारते जाएंगे जब तक वे समाप्त नहीं हो जाएंगे।”
17 सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है:
“अब इन सबके बारे में सोचो।
अन्त्येष्टि के समय भाड़े पर रोने वाली स्त्रियों को बुलाओ।
उन स्त्रियों को बुलाओ जो विलाप करने में चतुर हों।”
18 लोग कहते हैं,
“उन स्त्रियों को जल्दी से आने और हमारे लिये रोने दो,
तब हमारी आँखे आँसू से भरेंगी
और पानी की धारा हमारी आँखों से फूट पड़ेगी।”
19 “जोर से रोने की आवाजें सिय्योन से सुनी जा रही हैं।
‘हम सचमुच बरबाद हो गए। हम सचमुच लज्जित हैं।
हमें अपने देश को छोड़ देना चाहिये,
क्योंकि हमारे घर नष्ट और बरबाद हो गये हैं।
हमारे घर अब केवल पत्थरों के ढेर हो गये हैं।’”
20 यहूदा की स्त्रियों, अब यहोवा का सन्देश सुनो।
यहोवा के मुख से निकले शब्दों को सुनने के लिये अपने कान खोल लो।
यहोवा कहता है अपनी पुत्रियों को जोर से रोना सिखाओ।
हर एक स्त्री को इस शोक गीत को सीख लेना चाहिये:
21 “मृत्यु हमारी खिड़कियों से चढ़कर आ गई है।
मृत्यु हमारे महलों में घुस गई है।
सड़क पर खेलने वाले हमारे बच्चों की मृत्यु आ गई है।
सामाजिक स्थानों में मिलने वाले युवकों की मृत्यु हो गई है।”
22 यिर्मयाह कहो, “जो यहोवा कहता है, ‘वह यह है:
मनुष्यों के शव खेतों में गोबर से पड़े रहेंगे।
उनके शव जमीन पर उस फसल से पड़े रहेंगे जिन्हें किसान ने काट डाला है।
किन्तु उनको इकट्ठा करने वाला कोई नहीं होगा।’”
23 यहोवा कहता है,
“बुद्धिमान को अपनी बुद्धिमानी की डींग नहीं मारनी चाहिए।
शक्तिशाली को अपने बल का बखान नहीं करना चाहिए।
सम्पत्तिशाली को अपनी सम्पत्ति की हवा नहीं बांधनी चाहिए।
24 किन्तु यदि कोई डींग मारना ही चाहता है तो उसे इन चीज़ों की डींग मारने दो:
उसे इस बैंत की डींग मारने दो कि वह मुझे समझता और जानता है।
उसे इस बात की डींग हाँकने दो कि वह यह समझता है कि मैं यहोवा हूँ।
उसे इस बात की हवा बांधने दो कि मैं कृपालु और न्यायी हूँ।
उसे इस बात का ढींढोरा पीटने दो कि मैं पृथ्वी पर अच्छे काम करता हूँ।
मुझे इन कामों को करने से प्रेम है।”
यह सन्देश यहोवा का है।
25 वह समय आ रहा है, यह सन्देश यहोवा का है, “जब मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो केवल शरीर से खतना कराये हैं। 26 मैं मिस्र, यहूदा, एदोम, अम्मोन तथा मोआब के राष्ट्रों और उन सभी लोगों के बारे में बातें कर रहा हूँ जो मरुभूमि में रहते हैं जो दाढ़ी के किनारों के बालों को काटते हैं। उन सभी देशों के लोगों ने अपने शरीर का खतना नहीं करवाया है। किन्तु इस्राएल के परिवार के लोगों ने हृदय से खतना को नहीं ग्रहण किया है, जैसे कि परमेश्वर के लोगों को करना चाहिए।”
यहोवा और देवमूर्तियाँ
10 इस्राएल के परिवार, यहोवा की सुनो। 2 जो यहोवा कहता है, वह यह है:
“अन्य राष्ट्रों के लोगों की तरह न रहो।
आकाश के विशेष संकेतों से न डरो।
अन्य राष्ट्र उन संकेतों से डरते हैं जिन्हें वे आकाश में देखते हैं।
किन्तु तुम्हें उन चीज़ों से नहीं डरना चाहिये।
3 अन्य लोगों के रीति रिवाज व्यर्थ हैं।
उनकी देव मूर्तियाँ जंगल की लकड़ी के अतिरिक्त कुछ नहीं।
उनकी देव मूर्तियाँ कारीगर की छैनी से बनी हैं।
4 वे अपनी देव मूर्तियों को सोने चाँदी से सुन्दर बनाते हैं।
वे अपनी देव मूर्तियों को हथौड़े और कील से लटकाते हैं
जिससे वे लटके रहें, गिर न पड़े।
5 अन्य देशों की देव मूर्तियों,
ककड़ी के खेत में खड़े फूस के पुतले के समान हैं।
वे न बोल सकती हैं, और न चल सकती हैं।
उन्हें उठा कर ले जाना पड़ता है क्योंकि वे चल नहीं सकते।
उनसे मत डरो। वे न तो तुमको चोट पहुँचा सकती हैं
और न ही कोई लाभ!”
6 यहोवा तुझ जैसा कोई अन्य नहीं है!
तू महान है! तेरा नाम महान और शक्तिपूर्ण है।
7 परमेश्वर, हर एक व्यक्ति को तेरा सम्मान करना चाहिए।
तू सभी राष्ट्रों का राजा है।
तू उनके सम्मान का पात्र है।
राष्ट्रों में अनेक बुद्धिमान व्यक्ति हैं।
किन्तु कोई व्यक्ति तेरे समान बुद्धिमान नहीं है।
8 अन्य राष्ट्रों के सभी लोग शरारती और मूर्ख हैं।
उनकी शिक्षा निरर्थक लकड़ी की मूर्तियों से मिली है।
9 वे अपनी मूर्तियों को तर्शीश नगर की चाँदी
और उफाज नगर के सोने का उपयोग करके बनाते हैं।
वे देवमूर्तियाँ वढइयों और सुनारो द्वारा बनाई जाती हैं।
वे उन देवमूर्तियों को नीले और बैंगनी वस्त्र पहनाते हैं।
निपुण लोग उन्हें “देवता” बनाते हैं।
10 किन्तु केवल यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है।
वह एकमात्र परमेश्वर है जो चेतन है।
वह शाश्वत शासक है।
जब परमेश्वर क्रोध करता है तो धरती काँप जाती है।
राष्ट्रों के लोग उसके क्रोध को रोक नहीं सकते।
11 यहोवा कहता है, “उन लोगों को यह सन्देश दो:
‘उन असत्य देवताओं ने पृथ्वी और स्वर्ग नहीं बनाए
और वे असत्य देवता नष्ट कर दिए जाएंगे,
और पृथ्वी और स्वर्ग से लुप्त हो जाएंगे।’”
12 वह परमेश्वर एक ही है जिसने अपनी शक्ति से पृथ्वी बनाई।
परमेश्वर ने अपने बुद्धि का उपयोग किया
और संसार की रचना कर डाली।
अपनी समझ के अनुसार परमेश्वर ने पृथ्वी के ऊपर आकाश को फैलाया।
13 परमेश्वर कड़कती बिजली बनाता है
और वह आकाश से बड़े जल की बाढ़ को गिराता है।
वह पृथ्वी के हर एक स्थान पर,
आकाश में मेघों को उठाता है।
वह बिजली को वर्षा के साथ भेजता है।
वह अपने गोदामों से पवन को निकालता है।
© 1995, 2010 Bible League International