Bible in 90 Days
एक समय है
3 हर बात का एक उचित समय होता है। और इस धरती पर हर बात एक उचित समय पर ही घटित होगी।
2 जन्म लेने का एक उचित समय निश्चित है,
और मृत्यु का भी।
एक समय होता है पेड़ों के रोपने का,
और उनको उखाड़ने का।
3 घात करने का होता है एक समय,
और एक समय होता है उसके उपचार का।
एक समय होता है जब ढहा दिया जाता,
और एक समय होता है करने का निर्माण।
4 एक समय होता है रोने—विलाप करने का,
और एक समय होता है करने का अट्टाहस।
एक समय होता है होने का दुःख मग्न,
और एक समय होता है उल्लास भरे नाचका।
5 एक समय होता है जब हटाए जाते हैं पत्थर,
और एक समय होता है उनके एकत्र करने का।
एक समय होता है बाध आलिंगन में किसी के स्वागत का,
और एक समय होता है, जब स्वागत उन्हीं का किया नहीं जाता है।
6 एक समय होता है जब होती है किसी की खोज,
और आता है एक समय जब खोज रूक जाती है।
एक समय होता है वस्तुओं के रखने का,
और एक समय होता है दूर फेंकने का चीज़ों को।
7 होता है एक समय वस्त्रों को फाड़ने का,
फिर एक समय होता जब उन्हें सिया जाता है।
एक समय होता है साधने का चुप्पी,
और होता है एक समय फिर बोल उठने का।
8 एक समय होता है प्यार को करने का,
और एक समय होता जब घृणा करी जाती है।
एक समय होता है करने का लड़ाई,
और होता है एक समय मेल का मिलाप का।
परमेश्वर अपने संसार का नियन्त्रण करता है
9 क्या किसी व्यक्ति को अपने कठिन परिश्रम से वास्तव में कुछ मिल पाता है? नहीं। क्योंकि जो होना है वह तो होगा ही। 10 मैंने वह कठिन परिश्रम देखा है जिसे परमेश्वर ने हमें करने के लिये दिया है। 11 अपने संसार के बारे में सोचने के लिये परमेश्वर ने हमें क्षमता प्रदान की है। परन्तु परमेश्वर जो करता है, उन बातों को पूरी तरह से हम कभी नहीं समझ सकते। फिर भी परमेश्वर हर बात, उचित और उपयुक्त समय पर करता है।
12 मैंने देखा है कि लोगों के लिये सबसे उत्तम बात यह है कि वे प्रयत्न करते रहें और जब तक जीवित रहें आनन्द करते रहें। 13 परमेश्वर चाहता है कि हर व्यक्ति खाये पीये और अपने कर्म का आनन्द लेता रहे। ये बातें परमेश्वर की ओर से प्राप्त उपहार हैं।
14 मैं जानता हूँ कि परमेश्वर जो कुछ भी घटित करता है वह सदा घटेगा ही। लोग परमेश्वर के काम में से कुछ घटी भी वृद्धि नहीं कर सकते और इसी तरह लोग परमेस्शवर के काम में से कुछ घटी भी नहीं कर सकते हैं। परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया कि लोग उसका आदर करें। 15 जो अब हो रहा है पहले भी हो चुका हैं। जो कुछ भविष्य में होगा वह पहले भी हुआ था। परमेश्वर घटनाओं को बार—बार घटित करता है।
16 इस जीवन में मैंने ये बातें भी देखी हैं। मैंने देखा है कि न्यायालय जहाँ न्याय और अच्छाई होनी चाहिये, वहाँ आज बुराई भर गई है। 17 इसलिये मैंने अपने मन से कहा, “हर बात के लिये परमेश्वर ने एक समय निश्चित किया है। मनुष्य जो कुछ करते हैं उसका न्याय करने के लिये भी परमेश्वर ने एक समय निश्चित किया है। परमेश्वर अच्छे लोगों और बुरे लोगों का न्याय करेगा।”
क्या मनुष्य पशुओं जैसे ही हैं?
18 लोग एक दूसरे के प्रति जो कुछ करते हैं उनके बारे में मैंने सोचा और अपने आप से कहा, “परमेश्वर चाहता है कि लोग अपने आपको उस रूप में देखें जिस रूप में वे पशुओं को देखते हैं।” 19 क्या एक व्यक्ति एक पशु से उत्तम हैं? नहीं। क्यों? क्योंकि हर वस्तु नाकारा है। मृत्यु जैसे पशुओं को आती है उसी प्रकार मनुष्यों को भी। मनुष्य और पशु एक ही श्वास लेते हैं। क्या एक मरा हुआ पशु एक मरे हुए मनुष्य से भिन्न होता है? 20 मनुष्यों और पशुओं की देहों का अंत एक ही प्रकार से होता है। वे मिट्टी से पैदा होते हैं और अंत में वे मिट्टी में ही जाते हैं। 21 कौन जानता है कि मनुष्य की आत्मा का क्या होता है? क्या कोइ जानता है कि एक मनुष्य की आत्मा परमेश्वर के पास जाती है जबकि एक पशु की आत्मा नीचे उतरकर धरती में जा समाती है?
22 सो मैंने यह देखा कि मनुष्य जो सबसे अच्छी बात कर सकता है वह यह है कि वह अपने कर्म में आनन्द लेता रहे। बस उसके पास यही है। किसी व्यक्ति को भविष्य की चिन्ता भी नहीं करनी चाहिये। क्योंकि भविष्य में क्या होगा उसे देखने में कोई भी उसकी सहायता नहीं कर सकता।
क्या मर जाना श्रेष्ठ है?
4 मैंने फिर यह भी देखा है कि कुछ लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। मैंने उनके आँसू देखे हैं और फिर यह भी देखा है कि उन दुःखी लोगों को ढाढ़स बँधाने वाला भी कोई नहीं है। मैंने देखा है कि कठोर लोगों के पास समूची शक्ति है और ये लोग जिन लोगों को क्षति पहुँचाते हैं उन्हें ढाढ़स बँधाने वाला भी कोई नहीं है। 2 मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि ये बातें उन व्यक्तियों के लिये ज्यादा अच्छी हैं जो मर चुके हैं बजाये उनके लिये जो अभी तक जी रहे हैं। 3 उन लोगों के लिये तो ये बातें और भी अच्छी हैं जो जन्म लेते ही मर गए! क्यों? क्योकि, उन्होंने इस संसार में जो बुराइयाँ हो रही हैं, उन्हें देखा ही नहीं।
इतना कठिन परिश्रम क्यों?
4 फिर मैंने सोचा, “लोग इतनी कड़ी मेहनत क्यों करते हैं?” मैंने देखा है कि लोग सफल होने और दूसरे लोगों से और अधिक ऊँचा होने के प्रयत्न में लगे रहते हैं। ऐसा इसलिये होता है कि लोग ईष्यालु हैं। वे नहीं चाहते कि जितना उनके पास है, दूसरे के पास उससे अधिक हो। यह सब अर्थहीन है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ना।
5 कुछ लोग कहा करते हैं कि हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहना और कुछ नहीं करना मूर्खता है। यदि तुम काम नहीं करोगे तो भूखे मर जाओगे। 6 जो कुछ मुठ्ठी भर तुम्हारे पास है उसमें संतुष्ट रहना अच्छा है बजाय इसके कि अधिकाधिक पाने की ललक में जूझते हुए वायु के पीछे दौड़ा जाता रहे।
7 फिर मैंने एक और बात देखी, जिसका कोई अर्थ नहीं है: 8 एक व्यक्ति परिवार विहीन हो सकता है। हो सकता है उसके कोई पुत्र और यहाँ तक कि कोई भाई भी न हो किन्तु वह व्यक्ति कठिन से कठिन परिश्रम करने में लगा रहता है और जो कुछ उसके पास होता है, उससे कभी संतुष्ट नहीं होता। सो मैं भी इतनी कड़ी मेहनत क्यों करता हूँ? मैं स्वयं अपने जीवन का आनन्द क्यों नहीं लेता हूँ? अब देखो यह भी एक दुःख भरी और व्यर्थ की बात है।
मित्रों और परिवार से शक्ति मिलती है
9 एक व्यक्ति से दो व्यक्ति उत्तम होते हैं। जब दो व्यक्ति मिलकर साथ—साथ काम करते हैं तो जिस काम को वे करते हैं, उस काम से उन्हें अधिक लाभ मिलता है।
10 यदि एक व्यक्ति गिर जाये तो दूसरा व्यक्ति उसकी मदद कर सकता है। किन्तु किसी व्यक्ति के लिये अकेला रहना अच्छा नहीं है क्योंकि जब वह गिरता है तो उसकी सहायता के लिये वहाँ कोई और नहीं होता।
11 यदि दो व्यक्ति एक साथ सोते हैं तो उनमें गरमाहट रहती है किन्तु अकेला सोता हुआ कभी गर्म नहीं हो सकता।
12 अकेले व्यक्ति को शत्रु हरा सकता है किन्तु वही शत्रु दो व्यक्तियों को नहीं हरा सकता है और तीन व्यक्तियों की शक्ति तो और भी अधिक होती है। वे एक ऐसे रस्से के समान होते हैं, जिसकी तीन लटें आपस में गुंथी हुई होती है, जिसे तोड़ पाना बहुत कठिन है।
लोग, राजनीति और प्रसिद्धि
13 एक गरीब किन्तु बुद्धिमान युवा नेता, एक वृद्ध किन्तु मूर्ख राजा से अच्छा है। वह वृद्ध राजा चेतावनियों पर ध्यान नहीं देता। 14 हो सकता है वह युवा शासक उस राज्य में गरीबी में पैदा हुआ हो और हो सकता है वह कारागर से छूटकर देश पर शासन करने के लिये आया हो। 15 किन्तु इस जीवन में मैंने लोगों को देखा है और मैं यह जानता हूँ कि लोग उस दूसरे युवानेता का ही अनुसरण करते हैं और वही नया राजा बन जाता हैं। 16 बहुत से लोग इस युवक के पीछे हो लेते हैं। किन्तु आगे चलकर वे लोग भी उसे पसन्द नहीं करते इसलिये यह सब भी व्यर्थ हैं। यह वैसे ही है जैसा कि वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
मनौती मनाने में सावधानी
5 जब परमेश्वर की उपासना के लिये जाओ तो बहुत अधिक सावधान रहो। अज्ञानियों के समान बलियाँ चढ़ाने की अपेसा परमेश्वर की आज्ञा मानना अधिक उत्तम है। अज्ञानी लोग प्राय: बुरे काम किया करते हैं और उसे जानते तक नहीं हैं। 2 परमेश्वर से मनन्त मानते समय सावधान रहो। परमेश्वर से जो कुछ कहो उन बातों के लिये सावधान रहो। भावना के आवेश में, जल्दी में कुछ मत कहो। परमेश्वर स्वर्ग में है और तुम धरती पर हो। इसलिये तुम्हें परमेश्वर से बहुत थोड़ा बोलने की आवश्यकता है। यह कहावत सच्ची है:
3 अति चिंता से बुरे स्वपन आया करते हैं।
और अधिक बोलने से मूर्खता उपजती है।
4 यदि तुम परमेश्वर से कोई मनौती माँगते हो तो उसे पूरा करो। जिस बात की तुमने मनौती मानी है उसे पूरा करने में देरी मत करो। परमेश्वर मूर्ख व्यक्तियों से प्रसन्न नहीं रहता। तूमने परमेश्वर को जो कुछ अर्पित करने का वचन दिया है उसे अर्पित करो। 5 यह अच्छा है कि तुम कोई मनौती मानो ही नहीं बजाय इसके कि कोई मनौती मानो और उसे पूरा न कर पाओ। 6 इसलिये अपने शब्दों को तुम स्वयं को पाप में मत ढकेलने दो। याजक से ऐसा मत बोलो कि, “जो कुछ मैंने कहा था उसका यह अर्थ नहीं है!” यदि तुम ऐसा करोगे तो परमेश्वर तुम्हारे शब्दों से रूष्ट होकर जिन वस्तुओं के लिये तुमने कर्म किया है, उन सबको नष्ट कर देगा। 7 अपने बेकार के सपनों और डींग मारने से विपत्तियों में मत पड़ों। तुम्हें परमेश्वर का सम्मान करना चाहिये।
प्रत्येक अधिकारी के ऊपर एक अधिकारी है
8 कुछ देशों में तुम ऐसे दीन—हीन लोगों को देखोगे जिन्हें कड़ी मेहनत करने को विवश किया जाता है। तुम देख सकते हो कि निर्धन लोगों के साथ यह व्यवहार उचित नहीं है। यह गरीब लोगों के अधिकारों के विरूद्ध है। किन्तु आश्चर्य मत करो। जो अधिकारी उन व्यक्तियों को कार्य करने के लिये विवश करता है, और वे दोनों अधिकारी किसी अन्य अधिकारी द्वारा विवश किये जाते हैं। 9 इतना होने पर भी किसी खेती योग्य भूमि पर एक राजा का होना देश के लिये लाभदायक है।
धन से प्रसन्नता खरीदी नहीं जा सकती
10 वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है वह उस धन से जो उसके पास है कभी संतुष्ट नहीं होता। वह व्यक्ति जो धन को प्रेम करता है, जब अधिक से अधिक धन प्राप्त कर लेता है तब भी उसका मन नहीं भरता। सो यह भी व्यर्थ है।
11 किसी व्यक्ति के पास जितना अधिक धन होगा उसे खर्च करने के लिये उसके पास उतने ही अधिक मित्र होंगे। सो उस धनी मनुष्य को वास्तव में प्राप्त कुछ नहीं होता है। वह अपने धन को बस देखता भर रह सकता है।
12 एक ऐसा व्यक्ति जो सारे दिन कड़ी मेहनत करता है, अपने घर लौटने पर चैन के साथ सोता है। यह महत्व नहीं रखता है कि उसके पास खाने कों कम हैं या अधिक है। एक धनी व्यक्ति अपने धन की चिंताओं में डूबा रहता है और सो तक नहीं पाता।
13 बहुत बड़े दुःख की बात है एक जिसे मैंने इस जीवन में घटते देखा है। देखो एक व्यक्ति भविष्य के लिये धन बचा कर रखता है। 14 और फिर कोई बुरी बात घट जाती है और उसका सब कुछ जाता रहता है और व्यक्ति के पास अपने पुत्र को देने के लिये कुछ भी नहीं रहता।
15 एक व्यक्ति संसार में अपनी माँ के गर्भ से खाली हाथ आता है और जब उस व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वह बिना कुछ अपने साथ लिये सब यहीं छोड़ चला जाता है। वस्तुओं को प्राप्त करने के लिये वह कठिन परिश्रम करता है। किन्तु जब वह मरता है तो अपने साथ कुछ नहीं ले जा पाता। 16 यह बड़े दुःख की बात है। यह संसार उसे उसी प्रकार छोड़ना होता है जिस प्रकार वह आया था। इसलिये “हवा को पकड़ने की कोशिश” करने से किसी व्यक्ति के हाथ क्या लगता है? 17 उसे यदि कुछ मिलता है तो वह है दुःख और शोक से भरे हुए दिन। सो आखिरकार वह हताश, रोगी और चिड़चिड़ा हो जाता है!
अपने जीवन के कर्म का रस लो
18 मैंने तो यह देखा है कि मनुष्य जो कर सकता है उसमें सबसे उत्तम यह है—एक व्यक्ति को चाहिये कि वह खाए—पीए और जिस काम को वह इस धरती पर अपने छोटे से जीवन के दौरान करता है उसका आनन्द ले। परमेश्वर ने ये थोड़े से दिन दिये हैं और बस यही तो उसके पास है।
19 यदि परमेश्वर किसी को धन, सम्पत्ति, और उन वस्तुओं का आनन्द लेने की शक्ति देता है तो उस व्यक्ति को उनका आनन्द लेना चाहिये। उस व्यक्ति को जो कुछ उसके पास है उसे स्वीकार करना चाहिये और अपने काम के जो परमेश्वर की ओर से एक उपहार है उसका रस लेना चाहिये। 20 सो ऐसा व्यक्ति कभी यह सोचता ही नहीं कि जीवन कितना छोटा सा है। क्योंकि परमेश्वर उस व्यक्ति को उन कामों में ही लगाये रखता है, जिन कामों के कारने में उस व्यक्ति की रूचि होती है।
धन से प्रसन्नता नहीं मिलती
6 मैंने जीवन में एक और बात देखी जो ठीक नहीं है। यह समझना बहुत कठिन है कि 2 परमेश्वर किसी व्यक्ति को बहुत सा धन देता है, सम्पत्तियाँ देता है और आदर देता है। उस व्यक्ति के पास उसकी आवश्यकता की वस्तु होती है और जो कुछ भी वह चाह सकता है वह भी होता है। किन्तु परमेश्वर उस व्यक्ति को उन वस्तुओं का भोग नहीं करने देता। तभी कोई अजनबी आता है और उन सभी वस्तुओं को छीन लेता है। यह एक बहुत बुरी और व्यर्थ बात है।
3 कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक जीता है और हो सकता है उसके सौ बच्चे हो जाये। किन्तु यदि वह व्यक्ति उन अच्छी वस्तुओं से संतुष्ट नहीं होता और यदि उसकी मृत्यु के बाद कोई उसे याद नहीं करता है मैं कहता हूँ कि 4 उस व्यक्ति से तो वह बच्चा ही अच्छा है जो जन्म लेते ही मर जाता है। 5 उस बच्चे ने कभी सूरज तो देखा ही नहीं। उस बच्चे ने कभी कुछ नहीं जाना किन्तु उस व्यक्ति की किस्मत जिसने परमेश्वर की दी हुई वस्तुओं का कभी आनन्द नहीं लिया, उस बच्चे को अधिक चैन मिलता है। 6 वह व्यक्ति चाहे दो हजार वर्ष जिए किन्तु वह जीवन का आनन्द नहीं उठाता तो वह बच्चा जो मरा ही पैदा हुआ हो, उस एक जैसे अंत अर्थात् मृत्यु को आसानी से पाता है।
7 एक व्यक्ति निरन्तर काम करता ही रहता है क्यों? क्योंकि उसे अपनी इच्छाएँ पूरी करनी है। किन्तु वह सन्तुष्ट तो कभी नहीं होता। 8 इस प्रकार से एक बुद्धिमान व्यक्ति भी एक मूर्ख मनुष्य से किसी प्रकार उत्तम नहीं है। ऐसे दीन—हीन मनुष्य होने का भी क्या फायदा हो सकता। 9 वे वस्तुएँ जो तुम्हारे पास है, उनमें सन्तोष करना अच्छा है बजाय इसके कि और लगन लगी रहे। सदा अधिक की कामना करते रहना निरर्थक है। यह वैसा ही है जैसे वायु को पकड़ने का प्रयत्न करना।
10-11 जो कुछ घट रहा है उसकी योजना बहुत पहले बन चुकी होती है। एक व्यक्ति बस वैसा ही होता है कि जैसा होने के लिए उसे बनाया गया है। हर कोई जानता है लोग कैसे होते हैं। सो इस विषय में परमेश्वर से तर्क करना बेकार है क्योंकि परमेश्वर किसी भी व्यक्ति से अधिक शक्तिशाली है।
12 कौन जानता है कि इस धरती पर मनुष्य के छोटे से जीवन में उसके लिये सबसे अच्छा क्या है? उसका जीवन तो छाया के समान ढल जाता है। बाद में क्या होगा कोई नहीं बता सकता।
सूक्ति संग्रह
7 सुयश, अच्छी सुगन्ध से उत्तम है।
वह दिन जन्म के दिन से सदा उत्तम है जब व्यक्ति मरता है। उत्तम है वह दिन व्यक्ति जब मरता है।
2 उत्सव में जाने से जाना गर्मी में, सदा उत्तम हुआ करता है।
क्योंकि सभी लोगों की मृत्यु तो निश्चित है।
हर जीवित व्यक्ति को सोचना चाहिये इसे।
3 हंसी के ठहाके से शोक उत्तम है।
क्योंकि जब हमारे मुख पर उदासी का वास होता है, तो हमारे हृदय शुद्ध होते है।
4 विवेकी मनुष्य तो सोचता है मृत्यु की
किन्तु मूर्ख जन तो बस सोचते रहते हैं कि गुजरे समय अच्छा।
5 विवेकी से निन्दित होना उत्तम होता है,
अपेक्षाकृत इसके कि मूर्ख से प्रशंसित हो।
6 मूर्ख का ठहाका तो बेकार होता है।
यह वैसे ही होता है जैसे कोई काँटों को नीचे जलाकर पात्र तपाये।
7 लोगों को सताकर लिया हुआ धन
विवेकी को भी मूर्ख बना देता है,
और घूस में मिला धन उसकी मति को हर लेता है।
8 बात को शुरू करने से अच्छा
उसका अन्त करना है।
उत्तम है नम्रता और धैर्य
धीरज के खोने और अंहकार से।
9 क्रोध में जल्दी से मत आओ
क्योंकि क्रोध में आना मूर्खता है।
10 मत कहो, “बीते दिनों में जीवन अच्छा क्यों था?”
विवेकी हमें यह प्रश्न पूछने को प्रेरित नहीं करता है।
विवेकी हमें प्रेरित नहीं करता है पूछने यह प्रश्न।
11 जैसे उत्तराधिकार में सम्पत्ति का प्राप्त करना अच्छा है वैसे ही बुद्धि को पाना भी उत्तम है। जीवन के लिये यह लाभदायक है। 12 धन के समान बुद्धि भी रक्षा करती है। बुद्धि के ज्ञान का लाभ यह है कि यह विवेकी जन को जीवित रखता है।
13 परमेश्वर की रचना को देखो। देखो तुम एक बात भी बदल नहीं सकते। चाहे तुम यही क्यों न सोचो कि वह गलत है। 14 जब जीवन उत्तम है तो उसका रस लो किन्तु जब जीवन कठिन है तो याद रखो कि परमेश्वर हमें कठिन समय देता है और अच्छा समय भी देता है और कल क्या होगा यह तो कोई भी नहीं जानता।
लोग सचमुच अच्छे नहीं हो सकते
15 अपने छोटे से जीवन में मैंने सब कुछ देखा है। मैंने देखा है अच्छे लोग जवानी में ही मर जाते हैं। मैंने देखा है कि बुरे लोग लम्बी आयु तक जीते रहते हैं। 16-17 सो अपने को हलकान क्यों करते हो? न तो बहुत अधिक धर्मी बनो और न ही बुद्धिमान अन्यथा तुम्हें एसी बातें देखने को मिलेगी जो तुम्हें आघात पहुँचाएगी न तो बहुत अधिक दुष्ट बनो और न ही मूर्ख अन्यथा समय से पहले ही तुम मर जाओगे।
18 थोड़ा यह बनों और थोड़ा वह। यहाँ तक कि परमेश्वर के अनुयायी भी कुछ अच्छा करेंगे तो बुरा भी। 19-20 निश्चय ही इस धरती पर कोई ऐसा अच्छा व्यक्ति नहीं है जो सदा अच्छा ही अच्छा करता है और बुरा कभी नहीं करता। बुद्धि व्यक्ति को शक्ति देती है। किसी नगर के दस मूर्ख मुखियाओं से एक साधारण बुद्धिमान पुरुष अधिक शक्तिशाली होता है।
21 लोग जो बातें कहते हैं उन सब पर कान मत दो। हो सकता है तुम अपने सेवक को ही तुम्हारे विषय में बुरी बातें कहते सुनो। 22 और तुम जानते हो कि तुमने भी अनेक अवसरों पर दूसरों के बारे में बुरी बातें कही हैं।
23 इन सब बातों के बारे में मैंने अपनी बुद्धि और विचारों का प्रयोग किया है। मैंने सच्चे अर्थ में बुद्धिमान बनना चाहा है। किन्तु यह तो असम्भव था। 24 मैं समझ नहीं पाता कि बातें वैसी क्यों है जैसी वे हैं। किसी के लिये भी यह समझना बहुत मुश्किल है। 25 मैंने अध्ययन किया और सच्ची बुद्धि को पाने के लिये बहुत कठिन प्रयत्न किया। मैंने हर वस्तु का कोई हेतु ढूँढने का प्रयास किया किन्तु मैंने जाना क्या?
मैंने जाना कि बुरा होना बेवकूफी है और मूर्ख व्यक्ति का सा आचरण करना पागलपन है। 26 मैंने यह भी पाया कि कुछ स्त्रियाँ एक फन्दे के समान खतरनाक होती हैं। उनके हृदय जाल के जैसे होते हैं और उनकी बाहें जंजीरों की तरह होती हैं। इन स्त्रियों की पकड़ में आना मौत की पकड़ में आने से भी बुरा है। वे लोग जो परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, ऐसी स्त्रियों से बच निकलते हैं किन्तु वे लोग जो परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं उनके द्वरा फाँस लिये जाते हैं।
27-28 गुरू का कहना है, “इन सभी बातों को एक साथ इकट्ठी करके मैंने सामने रखा, यह देखने के लिये कि मैं क्या उत्तर पा सकता हुँ? उत्तरों की खोज में तो मैं आज तक हूँ। किन्तु मैंने इतना तो पा ही लिया है कि हजारों में कोई एक अच्छा पुरूष तो मुझे मिला भी किन्तु अच्छी स्त्री तो कोई एक भी नहीं मिली।
29 “एक बात और जो मुझे पता चली है। परमेश्वर ने तो लोगों को नेक ही बनाया था किन्तु लोगों ने बुराई के अनेकों रास्ते ढूँढ लिये।”
बुद्धि और शक्ति
8 वस्तुओं को जिस प्रकार एक बुद्धिमान व्यक्ति समझ सकता है और उनकी व्याख्या कर सकता है, वैसे कोई भी नहीं कर सकता। उसकी बुद्धि उसे प्रसन्न रखती है। बुद्धि एक दुःखी मुख को प्रसन्न मुख में बदल देती है।
2 मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम्हें सदा ही राजा की आज्ञा माननी चाहिये। ऐसा इसलिये करो क्योंकि तुमने परमेश्वर को वचन दिया था। 3 राजा के आगे जल्दी मत करो। उसके सामने से हट जाओ। यदि हालात प्रतिकूल हो तो उसके इर्द—गिर्द मत रहो क्योंकि वह तो वही करेगा जो उसे अच्छा लगेगा। 4 आज्ञाएँ देने का राजा को अधिकार है, कोई नहीं पूछ सकता कि वह क्या कर रहा है। 5 यदि राजा आज्ञा का पालन करता है तो वह सुरक्षित रहेगा। किन्तु एक बुद्धिमान व्यक्ति ऐसा करने का उचित समय जानता है और वह यह भी जानता है कि समुचित बात कब करनी चाहिये।
6 उचित कार्य करने का किसी व्यक्ति के लिये एक ठीक समय होता है और एक ठीक प्रकार। प्रत्येक व्यक्ति को एक अवसर लेना चाहिये उसे निश्चित करना चाहिये कि उसे क्या करना है? और फिर अनेक विपत्तियों के होने पर भी उसे वह करना चाहिये। 7 आगे चलकर क्या होगा, यह निश्चित नहीं होने पर भी उसे वह करना चाहिये। क्योंकि भविष्य में क्या होगा यह तो उसे कोई बता ही नहीं सकता।
8 आत्मा को इस देह को छोड़कर जाने से कोई नहीं रोके रख सकता है। अपनी मृत्यु को रोक दें, ऐसी शक्ति तो किसी भी व्यक्ति में नहीं है। जब युद्ध चल रहा हो तो किसी भी सैनिक को यह स्वतंत्रता नहीं है कि वह जहाँ चाहे वहाँ चला जाये। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति पाप करता है तो वह पाप उस व्यक्ति को स्वतंत्रत नहीं रहने देता।
9 मैंने ये सब बातें देखी हैं। इस जगत में कुछ घटता है उन बातों के बारे में मैंने बड़ी तीव्रता से सोचा है और मैंने देखा है कि लोग दूसरे व्यक्तियों पर शासन करने की शक्ति पाने के लिये सदा संघर्ष करते रहते हैं और लोगों को कष्ट पहुँचाते रहते हैं।
10 मैंने उन बुरे व्यक्तियों के बहुत सजे धजे और विशाल शव—यात्रायें देखी हैं जो पवित्र स्थानों में आया जाया करते थे। शव—यात्राओं की क्रियाओं के बाद लोग जब घर लौटते हैं तो वे जो बुरा व्यक्ति मर चुका है उसके बारे में अच्छी अच्छी बातें कहा करते हैं और ऐसा उसी नगर में हुआ करता है जहाँ उसे बुरे व्यक्ति ने बहुत—बहुत बुरे काम किये हैं। यह अर्थहीन है।
न्याय प्रतिदान और दण्ड
11 कभी कभी लोगों ने जो बुरे काम किये हैं, उनके लिये उन्हें तुरंत दण्ड नहीं मिलता। उन पर दण्ड धीरे धीरे पड़ता है और इसके कारण दूसरे लोग भी बुरे कर्म करना चाहने लगते हैं।
12 कोई पापी चाहे सैकड़ों पाप करे और चाहे उसकी आयु कितनी ही लम्बी हो किन्तु मैं यह जानता हूँ कि तो भी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना और उसका सम्मान करना उत्तम है। 13 बुरे लोग परमेश्वर का सम्मान नहीं करते। सो ऐसे लोग वास्तव में अच्छी वस्तुओं को प्राप्त नहीं करते। वे बुरे लोग अधिक समय तक जीवित नहीं रहेंगे। उनके जीवन डूबते सूरज में लम्बी से लम्बी होती जाती छायाओं के सामान बड़े नहीं होंगे।
14 इस धरती पर एक बात और होती है जो मुझे न्याय संगत नहीं लगती। बुरे लोगों के साथ बुरे बातें घटनी चाहियें और अच्छे लोगों के साथ अच्छी बातें। किन्तु कभी—कभी अच्छे लोगों के साथ बुरी बातें घटती है और बुरे लोगों के साथ अच्छी बातें। यह तो न्याय नहीं है। 15 सो मैंने निश्चय किया कि जीवन का आनन्द लेना अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस जीवन में एक व्यक्ति जो सबसे अच्छी बात कर सकता है वह है खाना, पीना और जीवन का रस लेना। इससे कम से कम व्यक्ति को इस धरती पर उसके जीवन के दौरान परमेश्वर ने करने के लिये जो कठिन काम दिया है उसका आनन्द लेने मे सहायता मिलेगी।
16 इस जीवन में लोग जो कुछ करते हैं उसका मैंने बड़े ध्यान के साथ अध्ययन किया है। मैंने देखा है कि लोग कितने व्यस्त है। वे प्राय: बिना सोए रात दिन काम में लगे रहते हैं। 17 परमेश्वर जो करता है उन बहुत सी बातों को भी मैंने देखा है कि इस धरती पर परमेश्वर जो कुछ करता है, लोग उसे समझ नहीं सकते। उसे समझने के लिये मनुष्य बार बार प्रयत्न करता है। किन्तु फिर भी समझ नहीं पाता। यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति भी यह कहे कि वह परमेश्वर के कामों को समझता है तो यह भी सत्य नहीं है। उन सब बातों को तो कोई भी व्यक्ति समझ ही नहीं सकता।
क्या मृत्यु उचित है?
9 मैंने इन सभी बातों के बारे में बड़े ध्यान से सोचा है और देखा है कि अच्छे और बुद्धिमान लोगों के साथ जो घटित होता है और वे जो काम करते हैं उनका नियन्त्रण परमेश्वर करता है। लोग नहीं जानते कि उन्हें प्रेम मिलेगा या घृणा और लोग नहीं जानते हैं कि कल क्या होने वाला है।
2 किन्तु, एक बात ऐसी है जो हम सब के साथ घटती है—हम सभी मरते हैं! मृत्यु अच्छे लोगों को भी आती है और बुरे लोगों को भी। पवित्र लोगों को भी मृत्यु आती है और जो पवित्र नहीं हैं, वे भी मरते हैं। लोग जो बलियाँ चढ़ाते हैं, वे भी मरते हैं, और वे भी जो बलियाँ नहीं चढ़ाते हैं, धर्मी जन भी वैसे ही मरता है, जैसे एक पापी। वह व्यक्ति जो परमेश्वर को विशेष वचन देता है, वह भी वैसे ही मरता है जैसे वह व्यक्ति जो उन वचनों को देने से घबराता है।
3 इस जीवन में जो भी कुछ घटित होता है उसमें सबसे बुरी बात यह है कि सभी लोगों का अन्त एक ही तरह से होता है। साथ ही यह भी बहुत बुरी बात है कि लोग जीवन भर सदा ही बुरे और मूर्खतापूर्ण विचारों में पड़े रहते हैं और अन्त में मर जाते हैं। 4 हर उस व्यक्ति के लिये जो अभी जीवित है, एक आशा बची है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह कौन है? यह कहावत सच्ची है:
“किसी मरे हुए सिंह से एक जीवित कुत्ता अच्छा है।”
5 जीवित लोग जानते हैं कि उन्हें मरना है। किन्तु मरे हुए तो कुछ भी नहीं जानते। मरे हुओं को कोई और प्रतिदान नहीं मिलता। लोग उन्हें जल्दी ही भूल जाते हैं। 6 किसी व्यक्ति के मर जाने के बाद उसका प्रेम, घृणा और ईर्ष्या सब समाप्त हो जाते हैं। मरा हुआ व्यक्ति संसार में जो कुछ हो रहा है, उसमें कभी हिस्सा नहीं बँटाता।
जीवन का आनन्द लो जबकि तुम ले सकते हो
7 सो अब तुम जाओ और अपना खाना खाओ और उसका आनन्द लो। अपना दाखमधु पिओ और खुश रहो। यदि तुम ये बातें करते हो तो ये बातें परमेश्वर से समर्थित है। 8 उत्तम वस्त्र पहनो और सुन्दर दिखो। 9 जिस पत्नी को तुम प्रम करते हो उसके साथ जीवन का भोग करो। अपने छोटे से जीवन के प्रत्येक दिन का आनन्द लो। 10 हर समय करने के लिये तुम्हारे पास काम है। इसे तुम जितनी उत्तमता से कर सकते हो करो। कब्र में तो कोई काम होगा ही नहीं। वहाँ न तो चिन्तन होगा, न ज्ञान और न विवेक और मृत्यु के उस स्थान को हम सभी तो जा रहे हैं।
सौभाग्य? दुर्भाग्य? हम कर क्या सकते हैं?
11 मैंने इस जीवन में कुछ और बातें भी देखी हैं जो न्याय संगत नहीं हैं। सबसे अधिक तेज दौड़ने वाला सदा ही दौड़ में नहीं जीतता, शक्तिशाली सेना ही युद्ध में सदा नहीं जीतती। सबसे अधिक बुद्धिमान व्यक्ति ही सदा अर्जित किये को नहीं खाता। सबसे अधिक चुस्त व्यक्ति ही सदा धन दौलत हासिल नहीं करता है और एक पढ़ा लिखा व्यक्ति ही सदा वैसी प्रशंसा प्राप्त नहीं करता जैसी प्रशंसा के वह योग्य है। जब समय आता है तो हर किसी के साथ बुरी बातें घट जाती हैं!
12 कोई भी व्यक्ति यह नहीं जानता है कि इसके बाद उसके साथ क्या होने वाला है। वह जाल में फँसी उस मछली के समान होता है जो यह नहीं जानती कि आगे क्या होगा। वह उस जाल मैं फँसी चिड़िया के समान होता है जो यह नहीं जानती कि क्या होने वाला है? इसी प्रकार एक व्यक्ति उन बुरी बातों में फाँस लिया जाता है जो उसके साथ घटती हैं।
विवेक की शक्ति
13 इस जीवन में मैंने एक व्यक्ति को एक विवेकपूर्ण कार्य करते देखा है और मुझे यह बहत महत्वपूर्ण लगा है। 14 एक छोटा सा नगर हुआ करता था। उसमें थोड़े से लोग रहा करते थे। एक बहुत बड़े राजा ने उसके विरूद्ध युद्ध किया और नगर के चारों ओर अपनी सेना लगा दी। 15 उसी नगर में एक बुद्धिमान पुरुष रहता था। वह बहुत निर्धन था। किन्तु उसने उस नगर को बचाने के लिये अपनी बुद्धि का उपयोग किया। जब नगर की विपत्ती टल गयी और सब कुछ समाप्त हो गया तो लोगों ने उस गरीब व्यक्ति को भुला दिया। 16 किन्तु मेरा कहना है कि बल से बुद्धि श्रेष्ठ है। यद्यापि लोग उस गरीब व्यक्ति की बुद्धि के बारे में भूल गये और जो कुछ उसने कहा था, उस पर भी उन लोगों ने कान देना बन्द कर दिया। किन्तु मेरा तो अभी भी यही विश्वास है कि बुद्धि ही श्रेष्ठ होती है।
17 धीरे से बोले गये, विवेकी के थोड़े से शब्द अधिक उत्तम होते हैं,
अपेक्षाकृत उन ऐसे शब्दों को जिन्हें मूर्ख शासक ऊँची आवाज में बोलता है।
18 बुद्धि, उन भोलों से और ऐसी तलवारों से उत्तम है जो युद्ध में काम आते हैं।
बुद्धिहीन व्यक्ति, बहुत सी उत्तम बातें नष्ट कर सकता है।
10 कुछ मरी हुई मक्खियाँ सर्वोत्तम सुगंध तक को दुर्गधिंत कर सकती हैं। इसी प्रकार छोटी सी मूर्खता से समूची बुद्धि और प्रतिष्ठा नष्ट हो सकती है।
2 बुद्धिमान के विचार उसे उचित मार्ग पर ले चलाते हैं। किन्तु मूर्ख के विचार उसे बुरे रास्ते पर ले जाते हैं। 3 मूर्ख जब रास्ते में चलता हुआ होता है तो उसके चलने मात्र से उसकी मूर्खता व्यक्त होती है। जिससे हर व्यक्ति देख लेता है कि वह मूर्ख है।
4 तुम्हारा अधिकारी तुमसे रूष्ट है, बस इसी कारण से अपना काम कभी मत छोड़ो। यदि तुम शांत और सहायक बने रहो तो तुम बड़ी से बड़ी गलातियों को सुधार सकते हो।
5 और देखो यह बात कुछ अलग ही है जिसे मैंने इस जीवन में देखा है। यह बात न्यायोचित भी नहीं है। यह वैसी भूल है जैसी शासक किया करते हैं। 6 मूर्ख व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पद दे दिये जाते हैं और सम्पन्न व्यक्ति ऐसे कामों को प्राप्त करते हैं जिनका कोई महत्व नहीं होता। 7 मैंने ऐसे व्यक्ति देखे हैं जिन्हें दास होना चाहिये था। किन्तु वह घोड़ों पर चढ़े रहते हैं। जबकि वे व्यक्ति जिन्हें शासक होना चाहिये था, दासों के समान उनके आगे पीछे घूमते रहते हैं।
हर काम के अपने खतरे हैं
8 वह व्यक्ति जो कोई गढ़ा खोदता है उसमें गिर भी सकता है। वह व्यक्ति जो किसी दीवार को गिराता है, उसे साँप डस भी सकता है। 9 एक व्यक्ति जो बड़े—बड़े पत्थरों को धकेलता है, उनसे चोट भी खा सकता है और वह व्यक्ति जो पेड़ो को काटता है, उसके लिये यह खतरा भी बना रहता है कि पेड़ उसके ऊपर ही न गिर जाये।
10 किन्तु बुद्धि के कारण हर काम आसान हो जाता है। भोंटे, बेधार चाकू से काटना बहुत कठिन होता है किन्तु यदि वह अपना चाकू पैना कर ले तो काम आसान हो जाता है। बुद्धि इसी प्रकार की है।
11 कोई व्यक्ति यह जानता है कि साँपों को वश में कैसे किया जाता है किन्तु जब वह व्यक्ति आस पास नहीं है और साँप किसी को काट लेता है तो वह बुद्धि बेकार हो जाती है। बुद्धि इसी प्रकार की है।
12 बुद्धिमान के शब्द प्रशंसा दिलाते हैं।
किन्तु मूर्ख के शब्दों से विनाश होता है।
13 एक मूर्ख व्यक्ति मूर्खतापूर्ण बातें कहकर ही शुरूआत करता है। और अंत में वह पागलपन से भरी हुई स्वयं को ही हानि पहुँचाने वाली बातें कहता है। 14 एक मूर्ख व्यक्ति हर समय जो उसे करना होता है, उसी की बातें करता रहता है। किन्तु भविष्य में क्या होगा यह तो कोई नहीं जानता। भविष्य में क्या होने जा रहा है, यह तो कोई बता नहीं सकता।
15 मूर्ख इतना चतुर नहीं कि अपने घर का मार्ग पा जाये।
इसलिये उसको तो जीवन भर कठोर काम करना है।
कर्म का मूल्य
16 किसी देश के लिये बहुत बुरा है कि उसका राजा किसी बच्छे जैसा हो और किसी देश के लिये यह बहुत बुरा है कि उसके अधिकारी अपना सारा समय खाने में ही गुजारते हों। 17 किन्तु किसी देश के लिये यह बहुत अच्छा है कि उसका राजा किसी उत्तम वंश का हो। किसी देश के लिये यह बहुत उत्तम है कि उसके अधिकारी अपने खाने और पीने पर नियन्त्रण रखते हैं। वे अधिकारी बलशाली होने के लिये खाते पीते हैं न कि मतवाले हो जाने के लिये।
18 यदि कोई व्यक्ति काम करने में बहुत सुस्त है,
तो उसका घर टपकना शुरू कर देगा और उसके घर की छत गिरने लगेगी।
19 लोग भोजन का आनन्द लेते हैं और दाखमधु जीवन को और अधिक खुशियों से भर देती हैं। किन्तु धन के चक्कर में सभी पड़े रहते हैं।
निन्दा पूर्ण बातें
20 राजा के विषय में बुरी बातें मत करो। उसके बारे में बुरी बातें सोचो तक मत। सम्पन्न व्यक्तियों के विषय में भी बुरी बातें मत करो। चाहे तुम अपने घर में अकेले ही क्यों न हो। क्योंकि हो सकता है कि कोई एक छोटी सी चिड़ियाँ उड़कर तुमने जो कुछ कहा है, वह हर बात उन्हें बता दे।
निर्भीक होकर भविष्य का सामना करो
11 तुम जहाँ भी जाओ, वहाँ उत्तम कार्य करो। थोड़े समय बाद तुम्हारे उत्तम कार्य वापस लौट कर तुम्हारे पास आएंगे।
2 जो कुछ तुम्हारे पास है उसका कुछ भाग सात आठ लोगों को दे दो। तुम जान ही नहीं सकते कि इस धरती पर कब क्या बुरा घट जाए?
3 कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में तुम निश्चित हो सकते हो। जैसे बादल वर्षा से भरे हैं तो वे धरती पर पानी बरसाएंगे ही। यदि कोई पेड़ गिरता है चाहे दाहिनी तरफ गिरे, या बायीं तरफगिरता है। वह वहीं पड़ा रहेगा जहाँ वह गिरा है।
4 किन्तु कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनके बारे में तुम निश्चित नहीं हो सकते। फिर भी तुम्हें एक अवसर तो लेना ही चाहिये। जैसे यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह से उत्तम मौसम का इंतजार करता रहता है तो वह अपने बीज बो ही नहीं सकता है और इसी तरह कोई व्यक्ति इस बात से डरता रहता है कि हर बादल बरसेगा ही तो वह अपनी फसल कभी नहीं काट सकेगा।
5 हवा का रूख कहाँ होगा तुम नहीं जान सकते। तुम नहीं जानते कि माँ के गर्भ में बच्चा प्राण कैसे पाता है? इसी प्रकार तुम यह भी नहीं जान सकते कि परमेश्वर क्या करेगा? सब कुछ को घटित करने वाला तो वही है।
6 इसलिये सुबह होते ही रूपाई शुरू कर दो और दिन ढले तक काम मत रोको। क्योंकि तुम नहीं जानते कि कौन सी बात तुम्हें धनवान बना देगी। हो सकता है तुम जो कुछ करो सब में सफल हो।
7 जीवित रहना उत्तम है। सूर्य का प्रकाश देखना अच्छा है। 8 तुम्हें अपने जीवन के हर दिन का आनन्द उठाना चाहिये! तुम चाहे कितनी ही लम्बी आयु पाओ। पर याद रखना कि तुम्हें मरना है और तुम जितने समय तक जिए हो उससे कहीं अधिक समय तक तुम्हें मृत रहना है और मर जाने के बाद तो तुम कुछ कर नहीं सकते।
युवावस्था में ही परमेश्वर की सेवा करो
9 सो हे युवकों! जब तक तुम जवान हो, आनन्द मनाओ। प्रसन्न रहो! और जो तुम्हारा मन चाहे, वही करो। जो तुम्हारी इच्छा हो वह करो। किन्तु याद रखो तुम्हारे प्रत्येक कार्य के लिये परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेगा। 10 क्रोध को स्वयं पर काबू मत पाने दो और अपने शरीर को भी कष्ट मत दो। तुम अधिक समय तक जवान नहीं बने रहोगे।
बुढ़ापे की समस्याएँ
12 बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण करो। इससे पहले कि बुढ़ापे के बुरे दिन तुम्हें आ घेरें। पहले इसके कि तुम्हें यह कहना पड़े कि “हाय, में जीवन का रस नहीं ले सका।”
2 बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण कर। जब तुम बुढ़े होगे तो सूर्य चन्द्रमा और सितारों की रोशनी तुम्हें अंधेरी लगेगीं। तुम्हारा जीवन विपत्तयों से भर जाएगा। ये विपत्तियाँ उन बादलों की तरह ही होंगीं जो आकाश में वर्षा करते हैं और फिर कभी नहीं छँटते।
3 उस समय तुम्हारी बलशाली भुजाएँ निर्बल हो जायेंगी। तुम्हारे सुदृढ़ पैर कमजोर हो जाएँगे और तुम अपना खाना तक चबा नहीं सकोगे। आँखों से साफ दिखाई तक नहीं देगा। 4 तुम बहरे हो जाओगे। बाजार का शोर भी तुम सुन नहीं पाओगे। चलती चक्की भी तुम्हें बहुत शांत दिखाई देगी। तुम बड़ी मुश्किल से लोगों को गाते सुन पाओगे। तुम्हें अच्छी नींद तो आएगी ही नहीं। जिससे चिड़ियाँ की चहचहाहट भोर के तड़के तुम्हें जगा देगी।
5 चढ़ाई वाले स्थानों से तुम डरने लगोगे। रास्ते की हर छोटी से छोटी वस्तु से तुम डरने लगोगे कि तुम कहीं उस पर लड़खड़ा न जाओ। तुम्हारे बाल बादाम के फूलों के जैसे सफेद हो जायेंगे। तुम जब चलोगे तो उस प्रकार घिसटते चलोगे जैसे कोई टिड्डा हो। तुम इतने बूढ़े हो जाओगे कि तुम्हारी भूख जाती रहेगी। फिर तुम्हें अपने नए घर यानि कब्र में नित्य निवास के लिये जाना होगा और तुम्हारी मुर्दनी में शामिल लोगों की भीड़ से गलियाँ भर जायेंगी।
मृत्यु
6 अभी जब तू युवा है, अपने बनानेवाले को याद रख।
इसके पहले कि चाँदी की जीवन डोर टूट जाये और सोने का पात्र टूटकर बिखर जाये।
इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये जैसे किसी कुएँ पर पात्र टूट पड़ा हो।
इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये ऐसे, जैसे टूटा पत्थर जो किसी को ढकता है और उसी में टूटकर गिर जाता है।
7 तेरी देह मिट्टी से उपजी है और,
जब मृत्यु होगे तो तेरी वह देह वापस मिट्टी हो जायेगी।
किन्तु यह प्राण तेरे प्राण परमेश्वर से आया है
और जब तू मरेगा, तेरा यह प्राण तेरा वापस परमेश्वर के पास जायेगा।
8 सब कुछ बेकार है, उपदेशक कहता है कि सब कुछ व्यर्थ है!
निष्कर्ष
9 उपदेशक बहुत बुद्धिमान था। वह लोगों को शिक्षा देने में अपनी बुद्धि का प्रयोग किया करता था। उपदेशक ने बड़ी सावधानी के साथ अध्ययन किया और अनेक सूक्तियों को व्यवस्थित किया। 10 उपदेशक ने उचित शब्दों के वचन के लिये कठिन परिश्रम किया और उसने उन शिक्षाओं को लिखा जो सच्ची है और जिन पर भरोसा किया जा सकता है।
11 विवेकी पुरुषों के वचन उन नुकीली छड़ियों के जैसे होते हैं जिनका उपयोग पशुओं को उचित मार्ग पर चलाने के लिये किया जाता है। ये उपदेशक उन मज़बूत खूँटों के समान होते हैं जो कभी टूटते नहीं। जीवन का उचित मार्ग दिखाने के लिये तुम इन उपदेशकों पर विश्वास कर सकते हो। वे सभी विवेक पूर्ण शिक्षायें उसी गड़रिये (परमेश्वर) से आतीं है। 12 सो पुत्र! एक चेतावनी और लोग तो सदा पुस्तकें लिखते ही रहते हैं। बहुत ज्यादा अध्ययन तुझे बहुत थका देगा।
13-14 इस सब कुछ को सुन लेने के बाद अब एक अन्तिम बात यह बतानी है कि परमेश्वर का आदर करो और उसके आदेशों पर चलो क्योंकि यह नियम हर व्यक्ति पर लागू होता है। क्योंकि लोग जो करते हैं, उसे यहाँ तक कि उनकी छिपी से छिपी बातों को भी परमेश्वर जानता है। वह उनकी सभी अच्छी बातों और बुरी बातों के विषय में जानता है। मनुष्य जो कुछ भी करते हैं उस प्रत्येक कर्म का वह न्याय करेगा।
1 सुलैमान का श्रेष्ठगीत।
प्रेमिका का अपने प्रेमी के प्रति
2 तू मुझ को अपने मुख के चुम्बनों से ढक ले।
क्योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से भी उत्तम है।
3 तेरा नाम मूल्यवान इत्र से उत्तम है,
और तेरी गंध अद्भुत है।
इसलिए कुमारियाँ तुझ से प्रेम करती हैं।
4 हे मेरे राजा तू मुझे अपने संग ले ले!
और हम कहीं दूर भाग चलें!
राजा मुझे अपने कमरे में ले गया।
पुरुष के प्रति यरूशलेम की स्त्रियाँ
हम तुझ में आनन्दित और मगन रहेंगे। हम तेरी बड़ाई करते हैं।
क्योंकि तेरा प्रेम दाखमधु से उत्तम है।
इसलिए कुमारियाँ तुझ से प्रेम करती हैं।
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
5 हे यरूशलेम की पुत्रियों,
मैं काली हूँ किन्तु सुन्दर हूँ।
मैं तैमान और सलमा के तम्बूओं के जैसे काली हूँ।
6 मुझे मत घूर कि मैं कितनी साँवली हूँ।
सूरज ने मुझे कितना काला कर दिया है।
मेरे भाई मुझ से क्रोधित थे।
इसलिए दाख के बगीचों की रखवाली करायी।
इसलिए मैं अपना ध्यान नहीं रख सकी।
स्त्री का वचन पुरुष के प्रति
7 मैं तुझे अपनी पूरी आत्मा से प्रेम करती हूँ!
मेरे प्रिये मुझे बता; तू अपनी भेड़ों को कहाँ चराता है?
दोपहर में उन्हें कहाँ बिठाया करता है?
मुझे ऐसी एक लड़की के पास नहीं होना
जो घूंघट काढ़ती है,
जब वह तेरे मित्रों की भेड़ों के पास होती है!
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
8 तू निश्चय ही जानती है कि स्त्रियों में तू ही सुन्दर है!
जा, पीछे पीछे चली जा, जहाँ भेड़ें
और बकरी के बच्चे जाते है।
निज गड़रियों के तम्बूओं के पास चरा।
9 मेरी प्रिये, मेरे लिए तू उस घोड़ी से भी बहुत अधिक उत्तेजक है
जो उन घोड़ों के बीच फ़िरौन के रथ को खींचा करते हैं।
10 वे घोड़े मुख के किनारे से
गर्दन तक सुन्दर सुसज्जित हैं।
तेरे लिये हम ने सोने के आभूषण बनाए हैं।
जिनमें चाँदी के दाने लगें हैं।
11 तेरे सुन्दर कपोल कितने अलंकृत हैं।
तेरी सुन्दर गर्दन मनकों से सजी हैं।
स्त्री का वचन
12 मेरे इत्र की सुगन्ध,
गद्दी पर बैठे राजा तक फैलती है।
13 मेरा प्रियतम रस गन्ध के कुप्पे सा है।
वह मेरे वक्षों के बीच सारी राद सोयेगा।
14 मेरा प्रिय मेरे लिये मेंहदी के फूलों के गुच्छों जैसा है
जो एनगदी के अंगूर के बगीचे में फलता है।
पुरुष का वचन
15 मेरी प्रिये, तुम रमणीय हो!
ओह, तुम कितनी सुन्दर हो!
तेरी आँखे कपोतों की सी सुन्दर हैं।
स्त्री का वचन
16 हे मेरे प्रियतम, तू कितना सुन्दर है!
हाँ, तू मनमोहक है!
हमारी सेज कितनी रमणीय है!
17 कड़ियाँ जो हमारे घर को थामें हुए हैं वह देवदारु की हैं।
कड़ियाँ जो हमारी छत को थामी हुई है, सनोवर की लकड़ी की है।
2 मैं शारोन के केसर के पाटल सी हूँ।
मैं घाटियों की कुमुदिनी हूँ।
पुरुष का वचन
2 हे मेरी प्रिये, अन्य युवतियों के बीच
तुम वैसी ही हो मानों काँटों के बीच कुमुदिनी हो!
स्त्री का वचन
3 मेरे प्रिय, अन्य युवकों के बीच
तुम ऐसे लगते हो जैसे जंगल के पेड़ों में कोई सेब का पेड़!
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
मुझे अपने प्रियतम की छाया में बैठना अच्छा लगता है;
उसका फल मुझे खाने में अति मीठा लगता है।
4 मेरा प्रिय मुझको मधुशाला में ले आया;
मेरा प्रेम उसका संकल्प था।
5 मैं प्रेम की रोगी हूँ
अत: मुनक्का मुझे खिलाओ और सेबों से मुझे ताजा करो।
6 मेरे सिर के नीचे प्रियतम का बाँया हाथ है,
और उसका दाँया हाथ मेरा आलिंगन करता है।
7 यरूशलेम की कुमारियों, कुंरगों और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझ को वचन दो,
प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।
स्त्री ने फिर कहा
8 मैं अपने प्रियतम की आवाज़ सुनती हूँ।
यह पहाड़ों से उछलती हुई
और पहाड़ियों से कूदती हुई आती है।
9 मेरा प्रियतम सुन्दर कुरंग
अथवा हरिण जैसा है।
देखो वह हमारी दीवार के उस पार खड़ा है,
वह झंझरी से देखते हुए
खिड़कियों को ताक रहा है।
10 मेरा प्रियतम बोला और उसने मुझसे कहा,
“उठो, मेरी प्रिये, हे मेरी सुन्दरी,
आओ कहीं दूर चलें!
11 देखो, शीत ऋतु बीत गई है,
वर्षा समाप्त हो गई और चली गई है।
12 धरती पर फूल खिलें हुए हैं।
चिड़ियों के गाने का समय आ गया है!
धरती पर कपोत की ध्वनि गुंजित है।
13 अंजीर के पेड़ों पर अंजीर पकने लगे हैं।
अंगूर की बेलें फूल रही हैं, और उनकी भीनी गन्ध फैल रही है।
मेरे प्रिय उठ, हे मेरे सुन्दर,
आओ कहीं दूर चलें!”
14 हे मेरे कपोत,
जो ऊँचे चट्टानों के गुफाओं में
और पहाड़ों में छिपे हो,
मुझे अपना मुख दिखा, मुझे अपनी ध्वनि सुना
क्योंकि तेरी ध्वनि मधुर
और तेरा मुख सुन्दर है!
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
15 जो छोटी लोमड़ियाँ दाख के बगीचों को बिगाड़ती हैं,
हमारे लिये उनको पकड़ो!
हमारे अंगूर के बगीचे अब फूल रहे हैं।
16 मेरा प्रिय मेरा है
और मैं उसकी हूँ!
मेरा प्रिय अपनी भेड़ बकरियों को कुमुदिनियों के बीच चराता है,
17 जब तक दिन नहीं ढलता है
और छाया लम्बी नहीं हो जाती है।
लौट आ, मेरे प्रिय,
कुरंग सा बन अथवा हरिण सा बेतेर के पहाड़ों पर!
स्त्री का वचन
3 हर रात अपनी सेज पर
मैं अपने मन में उसे ढूँढती हूँ।
जो पुरुष मेरा प्रिय है, मैंने उसे ढूँढा है,
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया!
2 अब मैं उठूँगी!
मैं नगर के चारों गलियों,
बाज़ारों में जाऊँगी।
मैं उसे ढूढूँगी जिसको मैं प्रेम करती हूँ।
मैंने वह पुरुष ढूँढा
पर वह मुझे नहीं मिला!
3 मुझे नगर के पहरेदार मिले।
मैंने उनसे पूछा, “क्या तूने उस पुरुष को देखा जिसे मैं प्यार करती हूँ?”
4 पहरेदारों से मैं अभी थोड़ी ही दूर गई
कि मुझको मेरा प्रियतम मिल गया!
मैंने उसे पकड़ लिया और तब तक जाने नहीं दिया
जब तक मैं उसे अपनी माता के घर में न ले आई
अर्थात् उस स्त्री के कक्ष में जिसने मुझे गर्भ में धरा था।
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
5 यरूशलेम की कुमारियों, कुरंगों
और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझको वचन दो,
प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।
वह और उसकी दुल्हिन
6 यह कुमारी कौन है
जो मरुभूमि से लोगों की इस बड़ी भीड़ के साथ आ रही है?
धूल उनके पीछे से यूँ उठ रही है मानों
कोई धुएँ का बादल हो।
जो धूआँ जलते हुए गन्ध रस, धूप और अन्य गंध मसाले से निकल रही हो।
7 सुलैमान की पालकी को देखो!
उसकी यात्रा की पालकी को साठ सैनिक घेरे हुए हैं।
इस्राएल के शक्तिशाली सैनिक!
8 वे सभी सैनिक तलवारों से सुसज्जित हैं
जो युद्ध में निपुण हैं; हर व्यक्ति की बगल में तलवार लटकती है,
जो रात के भयानक खतरों के लिये तत्पर हैं!
9 राजा सुलैमान ने यात्रा हेतु अपने लिये एक पालकी बनवाई है,
जिसे लबानोन की लकड़ी से बनाया गया है।
10 उसने यात्रा की पालकी के बल्लों को चाँदी से बनाया
और उसकी टेक सोने से बनायी गई।
पालकी की गद्दी को उसने बैंगनी वस्त्र से ढँका
और यह यरूशलेम की पुत्रियों के द्वारा प्रेम से बुना गया था।
11 सिय्योन के पुत्रियों, बाहर आ कर
राजा सुलैमान को उसके मुकुट के साथ देखो
जो उसको उसकी माता ने
उस दिन पहनाया था जब वह ब्याहा गया था,
उस दिन वह बहुत प्रसन्न था!
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
4 मेरी प्रिये, तुम अति सुन्दर हो!
तुम सुन्दर हो!
घूँघट की ओट में
तेरी आँखें कपोत की आँखों जैसी सरल हैं।
तेरे केश लम्बे और लहराते हुए हैं
जैसे बकरी के बच्चे गिलाद के पहाड़ के ऊपर से नाचते उतरते हों।
2 तेरे दाँत उन भेड़ों जैसे सफेद हैं
जो अभी अभी नहाकर के निकली हों।
वे सभी जुड़वा बच्चों को जन्म दिया करती हैं,
और उनके बच्चे नहीं मरे हैं।
3 तेरा अधर लाल रेशम के धागे सा है।
तेरा मुख सुन्दर हैं।
अनार के दो फाँको की जैसी
तेरे घूंघट के नीचे तेरी कनपटियाँ हैं।
4 तेरी गर्दन लम्बी और पतली है
जो खास सजावट के लिये
दाऊद की मीनार जैसी की गई।
उसकी दीवारों पर हज़ारों छोटी छोटी ढाल लटकती हैं।
हर एक ढाल किसी वीर योद्धा की है।
5 तेरे दो स्तन
जुड़वा बाल मृग जैसे हैं,
जैसे जुड़वा कुरंग कुमुदों के बीच चरता हो।
6 मैं गंधरस के पहाड़ पर जाऊँगा
और उस पहाड़ी पर जो लोबान की है
जब दिन अपनी अन्तिम साँस लेता है और उसकी छाया बहुत लम्बी हो कर छिप जाती है।
7 मेरी प्रिये, तू पूरी की पूरी सुन्दर हो।
तुझ पर कहीं कोई धब्बा नहीं है!
8 ओ मेरी दुल्हिन, लबानोन से आ, मेरे साथ आजा।
लबानोन से मेरे साथ आजा,
अमाना की चोटी से,
शनीर की ऊँचाई से,
सिंह की गुफाओं से
और चीतों के पहाड़ों से आ!
9 हे मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन,
तुम मुझे उत्तेजित करती हो।
आँखों की चितवन मात्र से
और अपने कंठहार के बस एक ही रत्न से
तुमने मेरा मन मोह लिया है।
10 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम कितना सुन्दर है!
तेरा प्रेम दाखमधु से अधिक उत्तम है;
तेरी इत्र की सुगन्ध
किसी भी सुगन्ध से उत्तम है!
11 मेरी दुल्हिन, तेरे अधरों से मधु टपकता है।
तेरी वाणी में शहद और दूध की खुशबू है।
तेरे वस्त्रों की गंध इत्र जैसी मोहक है।
12 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तुम ऐसी हो
जैसे किसी उपवन पर ताला लगा हो।
तुम ऐसी हो
जैसे कोई रोका हुआ सोता हो या बन्द किया झरना हो।
13 तेरे अंग उस उपवन जैसे हैं
जो अनार और मोहक फलों से भरा हो,
जिसमें मेंहदी
और जटामासी के फूल भरे हों; 14 जिसमें जटामासी का, केसर, अगर और दालचीनी का इत्र भरा हो।
जिसमें देवदार के गंधरस
और अगर व उत्तम सुगन्धित द्रव्य साथ में भरे हों।
15 तू उपवन का सोता है
जिसका स्वच्छ जल
नीचे लबानोन की पहाड़ी से बहता है।
स्त्री का वचन
16 जागो, हे उत्तर की हवा!
आ, तू दक्षिण पवन!
मेरे उपवन पर बह।
जिससे इस की मीठी, गन्ध चारों ओर फैल जाये।
मेरा प्रिय मेरे उपवन में प्रवेश करे
और वह इसका मधुर फल खाये।
पुरुष का वचन
5 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, मैंने अपने उपवन में
अपनी सुगध सामग्री के साथ प्रवेश किया। मैंने अपना रसगंध एकत्र किया है।
मैं अपना मधु छत्ता समेत खा चुका।
मैं अपना दाखमधु और अपना दूध पी चुका।
स्त्रियों का वचन प्रेमियों के प्रति
हे मित्रों, खाओ, हाँ प्रेमियों, पियो!
प्रेम के दाखमधु से मस्त हो जाओ!
स्त्री का वचन
2 मैं सोती हूँ
किन्तु मेरा हृदय जागता है।
मैं अपने हृदय—धन को द्वार पर दस्तक देते हुए सुनती हूँ।
“मेरे लिये द्वार खोलो मेरी संगिनी, ओ मेरी प्रिये! मेरी कबूतरी, ओ मेरी निर्मल!
मेरे सिर पर ओस पड़ी है
मेरे केश रात की नमी से भीगें हैं।”
3 “मैंने निज वस्त्र उतार दिया है।
मैं इसे फिर से नहीं पहनना चाहती हूँ।
मैं अपने पाँव धो चुकी हूँ,
फिर से मैं इसे मैला नहीं करना चाहती हूँ।”
4 मेरे प्रियतम ने कपाट की झिरी में हाथ डाल दिया,
मुझे उसके लिये खेद हैं।
5 मैं अपने प्रियतम के लिये द्वार खोलने को उठ जाती हूँ।
रसगंध मेरे हाथों से
और सुगंधित रसगंध मेरी उंगलियों से ताले के हत्थे पर टपकता है।
6 अपने प्रियतम के लिये मैंने द्वार खोल दिया,
किन्तु मेरा प्रियतम तब तक जा चुका था!
जब वह चला गया
तो जैसे मेरा प्राण निकल गया।
मैं उसे ढूँढती फिरी
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया;
मैं उसे पुकारती फिरी
किन्तु उसने मुझे उत्तर नहीं दिया!
7 नगर के पहरुओं ने मुझे पाया।
उन्होंने मुझे मारा
और मुझे क्षति पहुँचायी।
नगर के परकोटे के पहरुओं ने
मुझसे मेरा दुपट्टा छीन लिया।
8 यरूशलेम की पुत्रियों, मेरी तुमसे विनती है
कि यदि तुम मेरे प्रियतम को पा जाओ तो उसको बता देना कि मैं उसके प्रेम की भूखी हूँ।
यरूशलेम की पुत्रियों का उसको उत्तर
9 क्या तेरा प्रिय, औरों के प्रियों से उत्तम है स्त्रियों में तू सुन्दरतम स्त्री है।
क्या तेरा प्रिय, औरों से उत्तम है
क्या इसलिये तू हम से ऐसा वचन चाहती है
यरूशलेम की पुत्रियों को उसको उत्तर
10 मेरा प्रियतम गौरवर्ण और तेजस्वी है।
वह दसियों हजार पुरुषों में सर्वोत्तम है।
11 उसका माथा शुद्ध सोने सा,
उसके घुँघराले केश कौवे से काले अति सुन्दर हैं।
12 ऐसी उसकी आँखे है जैसे जल धार के किनारे कबूतर बैठे हों।
उसकी आँखें दूध में नहाये कबूतर जैसी हैं।
उसकी आँखें ऐसी हैं जैसे रत्न जड़े हों।
13 गाल उसके मसालों की क्यारी जैसे लगते हैं,
जैसे कोई फूलों की क्यारी जिससे सुगंध फैल रही हो।
उसके होंठ कुमुद से हैं
जिनसे रसगंध टपका करता है।
14 उसकी भुजायें सोने की छड़ जैसी है
जिनमें रत्न जड़े हों।
उसकी देह ऐसी हैं
जिसमें नीलम जड़े हों।
15 उसकी जाँघे संगमरमर के खम्बों जैसी है
जिनको उत्तम स्वर्ण पर बैठाया गया हो।
उसका ऊँचा कद लबानोन के देवदार जैसा है
जो देवदार वृक्षों में उत्तम हैं!
16 हाँ, यरूशलेम की पुत्रियों, मेरा प्रियतम बहुत ही अधिक कामनीय है,
सबसे मधुरतम उसका मुख है।
ऐसा है मेरा प्रियतम,
मेरा मित्र।
यरूशलेम की पुत्रियों का उससे कथन
6 स्त्रियों में सुन्दरतम स्त्री,
बता तेरा प्रियतम कहाँ चला गया
किस राह से तेरा प्रियतम चला गया है
हमें बता ताकि हम तेरे साथ उसको ढूँढ सके।
यरूशलेम की पुत्रियों को उसका उत्तर
2 मेरा प्रिय अपने उपवन में चला गया,
सुगंधित क्यारियों में,
उपवन में अपनी भेड़ चराने को
और कुमुदिनियाँ एकत्र करने को।
3 मैं हूँ अपने प्रियतम की
और वह मेरा प्रियतम है।
वह कुमुदिनियों के बीच चराया करता है।
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
4 मेरी प्रिय, तू तिर्सा सी सुन्दर है,
तू यरूशलेम सी मनोहर है, तू इतनी अद्भुत है
जैसे कोई दिवारों से घिरा नगर हो।
5 मेरे ऊपर से तू आँखें हटा ले!
तेरे नयन मुझको उत्तेजित करते हैं!
तेरे केश लम्बे हैं और वे ऐसे लहराते है
जैसे गिलाद की पहाड़ी से बकरियों का झुण्ड उछलता हुआ उतरता आता हो।
6 तेरे दाँत ऐसे सफेद है
जैसे मेंढ़े जो अभी—अभी नहा कर निकली हों।
वे सभी जुड़वा बच्चों को जन्म दिया करती हैं
और उनमें से किसी का भी बच्चा नहीं मरा है।
7 घूँघट के नीचे तेरी कनपटियाँ
ऐसी हैं जैसे अनार की दो फाँके हों।
8 वहाँ साठ रानियाँ,
अस्सी सेविकायें
और नयी असंख्य कुमारियाँ हैं।
9 किन्तु मेरी कबूतरी, मेरी निर्मल,
उनमें एक मात्र है।
जिस मां ने उसे जन्म दिया
वह उस माँ की प्रिय है।
कुमारियों ने उसे देखा और उसे सराहा।
हाँ, रानियों और सेविकाओं ने भी उसको देखकर उसकी प्रशंसा की थी।
स्त्रियों द्वारा उसकी प्रशंसा
10 वह कुमारियाँ कौन है
वह भोर सी चमकती है।
वह चाँद सी सुन्दर है,
वह इतनी भव्य है जितना सूर्य,
वह ऐसी अद्भुत है जैसे आकाश में सेना।
स्त्री का वचन
11 मैं गिरीदार पेड़ों के बगीचे में घाटी की बहार को
देखने को उतर गयी,
यह देखने कि अंगूर की बेले कितनी बड़ी हैं
और अनार की कलियाँ खिली हैं कि नहीं।
12 इससे पहले कि मैं यह जान पाती, मेरे मन ने मुझको राजा के व्यक्तियों के रथ में पहुँचा दिया।
यरूशलेम की पुत्रियों को उसको बुलावा
13 वापस आ, वापस आ, ओ शुलेम्मिन!
वापस आ, वापस आ, ताकि हम तुझे देख सके।
क्यों ऐसे शुलेम्मिन को घूरती हो
जैसे वह महनैम के नृत्य की नर्तकी हो
पुरुष द्वारा स्त्री सौन्दर्य का वर्णन
7 हे राजपुत्र की पुत्री, सचमुच तेरे पैर इन जूतियों के भीतर सुन्दर हैं।
तेरी जंघाएँ ऐसी गोल हैं जैसे किसी कलाकार के ढाले हुए आभूषण हों।
2 तेरी नाभि ऐसी गोल है जैसे कोई कटोरा,
इसमें तू दाखमधु भर जाने दे।
तेरा पेट ऐसा है जैसे गेहूँ की ढेरी
जिसकी सीमाएं घिरी हों कुमुदिनी की पंक्तियों से।
3 तेरे उरोज ऐसे हैं जैसे किसी जवान कुरंगी के
दो जुड़वा हिरण हो।
4 तेरी गर्दन ऐसी है जैसे किसी हाथी दाँत की मीनार हो।
तेरे नयन ऐसे है जैसे हेशबोन के वे कुण्ड
जो बत्रब्बीम के फाटक के पास है।
तेरी नाक ऐसी लम्बी है जैसे लबानोन की मीनार
जो दमिश्क की ओर मुख किये है।
5 तेरा सिर ऐसा है जैसे कर्मेल का पर्वत
और तेरे सिर के बाल रेशम के जैसे हैं।
तेरे लम्बे सुन्दर केश
किसी राजा तक को वशीभूत कर लेते हैं!
6 तू कितनी सुन्दर और मनमोहक है,
ओ मेरी प्रिय! तू मुझे कितना आनन्द देती है!
7 तू खजूर के पेड़
सी लम्बी है।
तेरे उरोज ऐसे हैं
जैसे खजूर के गुच्छे।
8 मैं खजूर के पेड़ पर चढ़ूँगा,
मैं इसकी शाखाओं को पकड़ूँगा,
तू अपने उरोजों को अंगूर के गुच्छों सा बनने दे।
तेरी श्वास की गंध सेब की सुवास सी है।
9 तेरा मुख उत्तम दाखमधु सा हो,
जो धीरे से मेरे प्रणय के लिये नीचे उतरती हो,
जो धीरे से निद्रा में अलसित लोगों के होंठो तक बहती हो।
स्त्री के वचन पुरुष के प्रति
10 मैं अपने प्रियतम की हूँ
और वह मुझे चाहता है।
11 आ, मेरे प्रियतम, आ!
हम खेतों में निकल चलें
हम गावों में रात बिताये।
12 हम बहुत शीघ्र उठें और अंगूर के बागों में निकल जायें।
आ, हम वहाँ देखें क्या अंगूर की बेलों पर कलियाँ खिल रही हैं।
आ, हम देखें क्या बहारें खिल गयी हैं
और क्या अनार की कलियाँ चटक रही हैं।
वहीं पर मैं अपना प्रेम तुझे अर्पण करूँगी।
13 प्रणय के वृक्ष निज मधुर सुगंध दिया करते हैं,
और हमारे द्वारों पर
सभी सुन्दर फूल, वर्तमान, नये और पुराने—मैंने तेरे हेतु,
सब बचा रखें हैं, मेरी प्रिय!
8 काश, तुम मेरे शिशु भाई होते, मेरी माता की छाती का दूध पीते हुए!
यदि मैं तुझसे वहीं बाहर मिल जाती
तो तुम्हारा चुम्बन मैं ले लेती,
और कोई व्यक्ति मेरी निन्दा नहीं कर पाता!
2 मैं तुम्हारी अगुवाई करती और तुम्हें मैं अपनी माँ के भवन में ले आती,
उस माता के कक्ष में जिसने मुझे शिक्षा दी।
मैं तुम्हें अपने अनार की सुगंधित दाखमधु देती,
उसका रस तुम्हें पीने को देती।
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति
3 मेरे सिर के नीचे मेरे प्रियतम का बाँया हाथ है
और उसका दाँया हाथ मेरा आलिंगन करता है।
4 यरूशलेम की कुमारियों, मुझको वचन दो,
प्रेम को मत जगाओ,
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ।
यरूशलेम की पुत्रियों का वचन
5 कौन है यह स्त्री
अपने प्रियतम पर झुकी हुई जो मरुभूमि से आ रही है
स्त्री का वचन पुरुष के प्रति
मैंने तुम्हें सेब के पेड़ तले जगाया था,
जहाँ तेरी माता ने तुझे गर्भ में धरा
और यही वह स्थान था जहाँ तेरा जन्म हुआ।
6 अपने हृदय पर तू मुद्रा सा धर।
जैसी मुद्रा तेरी बाँह पर है।
क्योंकि प्रेम भी उतना ही सबल है जितनी मृत्यु सबल है।
भावना इतनी तीव्र है जितनी कब्र होती है।
इसकी धदक
धधकती हुई लपटों सी होती है!
7 प्रेम की आग को जल नहीं बुझा सकता।
प्रेम को बाढ़ बहा नहीं सकती।
यदि कोई व्यक्ति प्रेम को घर का सब दे डाले
तो भी उसकी कोई नहीं निन्दा करेगा!
उसके भाईयों का वचन
8 हमारी एक छोटी बहन है,
जिसके उरोज अभी फूटे नहीं।
हमको क्या करना चाहिए
जिस दिन उसकी सगाई हो
9 यदि वह नगर का परकोटा हो
तो हम उसको चाँदी की सजावट से मढ़ देंगे।
यदि वह नगर हो
तो हम उसको मूल्यवान देवदारु काठ से जड़ देंगे।
उसका अपने भाईयों को उत्तर
10 मैं परकोट हूँ,
और मेरे उरोज गुम्बद जैसे हैं।
सो मैं उसके लिये शांति का दाता हूँ!
पुरुष का वचन
11 बाल्हामोन में सुलैमान का अगूंर का उपवनथा।
उसने अपने बाग को रखवाली के लिए दे दिया।
हर रखवाला उसके फलों के बदले में चाँदी के एक हजार शेकेल लाता था।
12 किन्तु सुलैसान, मेरा अपना अंगूर का बाग मेरे लिये है।
हे सुलैमान, मेरे चाँदी के एक हजार शेकेल सब तू ही रख ले,
और ये दो सौ शेकेल उन लोगों के लिये हैं
जो खेतों में फलों की रखवाली करते हैं!
पुरुष का वचन स्त्री के प्रति
13 तू जो बागों में रहती है,
तेरी ध्वनि मित्र जन सुन रहे हैं।
तू मुझे भी उसको सुनने दे!
स्त्री का वचन पुरुष के प्रति
14 ओ मेरे प्रियतम, तू अब जल्दी कर!
सुगंधित द्रव्यों के पहाड़ों पर तू अब चिकारे या युवा मृग सा बन जा!
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