Bible in 90 Days
1 थिस्सलुनीकियों के परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में स्थित कलीसिया को पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से:
परमेश्वर का अनुग्रह और शांति तुम्हारे साथ रहे।
थिस्सलुनीकियों का जीवन और विश्वास
2 हम तुम सब के लिए सदा परमेश्वर को धन्यवाद देते रहते हैं और अपनी प्रार्थनाओं में हमें तुम्हारी याद बनी रहती है। 3 प्रार्थना करते हुए हम सदा तुम्हारे उस काम की याद करते हैं जो फल है, विश्वास का, प्रेम से पैदा हुए तुम्हारे कठिन परिश्रम का, और हमारे प्रभु यीशु मसीह में आशा से उत्पन्न तुम्हारी धैर्यपूर्ण सहनशीलता का हमें सदा ध्यान बना रहता है।
4 परमेश्वर के प्रिय हमारे भाईयों, हम जानते हैं कि तुम उसके चुने हुए हो। 5 क्योंकि हमारे सुसमाचार का विवरण तुम्हारे पास मात्र शब्दों में ही नहीं पहुँचा है बल्कि पवित्र आत्मा सामर्थ्य और गहन श्रद्धा के साथ पहुँचा है। तुम जानते हो कि हम जब तुम्हारे साथ थे, तुम्हारे लाभ के लिए कैसा जीवन जीते थे। 6 कठोर यातनाओं के बीच तुमने पवित्र आत्मा से मिलने वाली प्रसन्नता के साथ सुसंदेश को ग्रहण किया और हमारा तथा प्रभु का अनुकरण करने लगे।
7 इसलिए मकिदुनिया और अखाया के सभी विश्वासियों के लिये तुम एक आदर्श बन गये 8 योंकि तुमसे प्रभु के संदेश की जो गूँज उठी, वह न केवल मकिदुनिया और अखाया में सुनी गयी बल्कि परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास सब कहीं जाना माना गया। सो हमें कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है। 9-10 क्योंकि वे स्वयं ही हमारे विषय में बताते हैं कि तुमने हमारा कैसा स्वागत किया था और सजीव तथा सच्चे परमेश्वर की सेवा करने के लिए और स्वर्ग से उसके पुत्र के आगमन की प्रतीक्षा करने के लिए तुम मूर्तियों की ओर से सजीव परमेश्वर की ओर कैसे मुड़े थे। पुत्र अर्थात् यीशु को उसने मरे हुओं में से फिर से जिला उठाया था और वही परमेश्वर के आने वाले कोप से हमारी रक्षा करता है।
थिस्सलुनीका में पौलुस का कार्य
2 हे भाइयों, तुम्हारे पास हमारे आने के सम्बन्ध में तुम स्वयं ही जानते हो कि वह निरर्थक नहीं था। 2 तुम जानते हो कि फिलिप्पी में यातनाएँ झेलने और दुर्व्यवहार सहने के बाद भी परमेश्वर की सहायता से हमें कड़े विरोध के रहते हुए भी परमेश्वर के सुसमाचार को सुनाने का साहस प्राप्त हुआ। 3 निश्चय ही हम जब लोगों का ध्यान अपने उपदेशों की ओर खींचना चाहते हैं तो वह इसलिए नहीं कि हम कोई भटके हुए हैं। और न ही इसलिए कि हमारे उद्देश्य दूषित हैं और इसलिए भी नहीं कि हम लोगों को छलने का जतन करते हैं। 4 हम लोगों को खुश करने की कोशिश नहीं करते बल्कि हम तो उस परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं जो हमारे मन का भेद जानता है।
5 निश्चय ही हम कभी भी चापलूसी की बातों के साथ तुम्हारे सामने नहीं आये। जैसा कि तुम जानते ही हो, हमारा उपदेश किसी लोभ का बहाना नहीं है। परमेश्वर साक्षी है 6 हमने लोगों से कोई मान सम्मान भी नहीं चाहा। न तुमसे और न ही किसी और से।
7 यद्यपि हम मसीह के प्रेरितों के रूप में अपना अधिकार जता सकते थे किन्तु हम तुम्हारे बीच वैसे ही नम्रता के साथ रहे[a] जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिला कर उसका पालन-पोषण करती है। 8 हमने तुम्हारे प्रति वैसी ही नम्रता का अनुभव किया है, इसलिए परमेश्वर से मिले सुसमाचार को ही नहीं, बल्कि स्वयं अपने आपको भी हम तुम्हारे साथ बाँट लेना चाहते हैं क्योंकि तुम हमारे प्रिय हो गये हो। 9 हे भाइयों, तुमहमारे कठोर परिश्रम और कठिनाई को याद रखो जो हम ने दिन-रात इसलिए किया है ताकि हम परमेश्वर के सुसमाचार को सुनाते हुए तुम पर बोझ न बनें।
10 तुम साक्षी हो और परमेश्वर भी साक्षी है कि तुम विश्वासियों के प्रति हमने कितनी आस्था, धार्मिकता और दोष रहितता के साथ व्यवहार किया है। 11 तुम जानते ही हो कि जैसे एक पिता अपने बच्चों के साथ व्यवहार करता है 12 वैसे ही हमने तुम में से हर एक को आग्रह के साथ सुख चैन दिया है। और उस रीति से जीने को कहा है जिससे परमेश्वर, जिसने तुम्हें अपने राज्य और महिमा में बुला भेजा है, प्रसन्न होता है।
13 और इसलिए हम परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर करते रहते हैं क्योंकि हमसे तुमने जब परमेश्वर का वचन ग्रहण किया तो उसे मानवीय सन्देश के रूप में नहीं बल्कि परमेश्वर के सन्देश के रूप में ग्रहण किया, जैसा कि वह वास्तव में है। और तुम विश्वासियों पर जिसका प्रभाव भी है। 14 हे भाईयों, तुम यहूदियों में स्थित मसीह यीशु में परमेश्वर की कलीसियाओं का अनुसरण करते रहे हो। तुमने अपने साथी देश-भाईयों से वैसी ही यातनाएँ झेली हैं जैसी उन्होंने उन यहूदियों के हाथों झेली थीं। 15 जिन्होंने प्रभु यीशु को मार डाला और नबियों को बाहर खदेड़ दिया। वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं करते वे तो समूची मानवता के विरोधी हैं। 16 वे विधर्मियों को सुसमाचार का उपदेश देने में बाधा खड़ी करते हैं कि कहीं उन लोगों का उद्धार न हो जाये। इन बातों में वे सदा अपने पापों का घड़ा भरते रहते हैं और अन्ततः अब तो परमेश्वर का प्रकोप उन पर पूरी तरह से आ पड़ा है।
फिर मिलने की इच्छा
17 हे भाईयों, जहाँ तक हमारी बात है, हम थोड़े समय के लिये तुमसे बिछड़ गये थे। विचारों से नहीं, केवल शरीर से। सो हम तुमसे मिलने को बहुत उतावले हो उठे। हमारी इच्छा तीव्र हो उठी थी। 18 हाँ! हम तुमसे मिलने के लिए बहुत जतन कर रहे थे। मुझ पौलुस ने अनेक बार प्रयत्न किया किन्तु शैतान ने उसमें बाधा डाली। 19 भला बताओ तो हमारी आशा, हमारा उल्लास या हमारा वह मुकुट जिस पर हमें इतना गर्व है, क्या है? क्या वह तुम्हीं नहीं हो। हमारे प्रभु यीशु के दुबारा आने पर जब हम उसके सामने उपस्थित होंगे 20 तो वहाँ तुम हमारी महिमा और हमारा आनन्द होगे।
3 क्योंकि हम और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकते थे इसलिए हमने एथेंस में अकेले ही ठहर जाने का निश्चय कर लिया। 2 और हमने हमारे बन्धु तथा परमेश्वर के लिए मसीह के सुसमाचार के प्रचार में अपने सहकर्मी तिमुथियुस को तुम्हें सुदृढ़ बनाने और विश्वास में उत्साहित करने को तुम्हारे पास भेज दिया 3 ताकि इन वर्तमान यातनाओं से कोई विचलित न हो उठे। क्योंकि तुम तो जानते ही हो कि हम तो यातना के लिए ही निश्चित किए गये हैं। 4 वास्तव में जब हम तुम्हारे पास थे, तुम्हें पहले से ही कहा करते थे कि हम पर कष्ट आने वाले हैं, और यह ठीक वैसे ही हुआ भी है। तुम तो यह जानते ही हो। 5 इसलिए क्योंकि मैं और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने तुम्हारे विश्वास के विषय में जानने तिमुथियुस को भेज दिया। क्योंकि मुझे डर था कि लुभाने वाले ने कहीं तुम्हें प्रलोभित करके हमारे कठिन परिश्रम को व्यर्थ तो नहीं कर दिया है।
6 तुम्हारे पास से तिमुथियुस अभी-अभी हमारे पास वापस लौटा है और उसने हमें तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे प्रेम का शुभ समाचार दिया है। उसने हमें बताया है कि तुम्हें हमारी मधुर याद आती है और तुम हमसे मिलने को बहुत अधीर हो। वैसे ही जैसे हम तुमसे मिलने को। 7 इसलिए हे भाईयों, हमारी सभी पीड़ाओं और यातनाओं में तुम्हारे विश्वास के कारण हमारा उत्साह बहुत बढ़ा है। 8 हाँ! अब हम फिर साँस ले पा रहे हैं क्योंकि हम जान गए हैं कि प्रभु में तुम अटल खड़े हो। 9 तुम्हारे विषय में तुम्हारे कारण जो आनन्द हमें मिला है, उसके लिए हम परमेश्वर का धन्यवाद कैसे करें। अपने परमेश्वर के सामने 10 रात-दिन यथासम्भव लगन से हम प्रार्थना करते रहते हैं कि किसी प्रकार तुम्हारा मुँह फिर देख पायें और तुम्हारे विश्वास में जो कुछ कमी रह गयी है, उसे पूरा करें।
11 हमारा परम पिता परमेश्वर और हमारा प्रभु यीशु तुम्हारे पास आने को हमें मार्ग दिखाये। 12 और प्रभु एक दूसरे के प्रति तथा सभी के लिए तुममें जो प्रेम है, उसकी बढ़ोतरी करे। वैसे ही जैसे तुम्हारे लिए हमारा प्रेम उमड़ पड़ता है। 13 इस प्रकार वह तुम्हारे हृदयों को सुदृढ़ करे और उन्हें हमारे परम पिता परमेश्वर के सामने हमारे प्रभु यीशु के आगमन पर अपने सभी पवित्र स्वर्गदूतों के साथ पवित्र एवं दोष-रहित बना दे।
परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन
4 हे भाईयों, अब मुझे तुम्हें कुछ और बातें बतानी हैं। यीशु मसीह के नाम पर हम तुमसे प्रार्थना एवं निवेदन करते हैं कि तुमने हमसे जिस प्रकार उपदेश ग्रहण किया है, तुम्हें परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए उसी के अनुसार चलना चाहिए। निश्चय ही तुम उसी प्रकार चल भी रहे हो। किन्तु तुम वैसे ही और अधिक से अधिक करते चलो। 2 क्योंकि तुम यह जानते हो कि प्रभु यीशु के अधिकार से हमने तुम्हें क्या निर्देश दिए हैं। 3 और परमेश्वर की यही इच्छा है कि तुम उससे पवित्र हो जाओ, व्यभिचारों से दूर रहो, 4 अपने शरीर की वासनाओं[b] पर नियन्त्रण रखना सीखो-ऐसे ढंग से जो पवित्र है और आदरणीय भी। 5 न कि उस वासना पूर्ण भावना से जो परमेश्वर को नहीं जानने वाले अधर्मियों की जैसी है। 6 यह भी परमेश्वर की इच्छा है कि इस विषय में कोई अपने भाई के प्रति कोई अपराध न करे या कोई अनुचित लाभ न उठाये, क्योंकि ऐसे सभी पापों के लिए प्रभु दण्ड देगा जैसा कि हम तुम्हें बता ही चुके हैं और तुम्हें सावधान भी कर चुके हैं। 7 परमेश्वर ने हमें अपवित्र बनने के लिए नहीं बुलाया है बल्कि पवित्र बनने के लिए बुलाया है। 8 इसलिए जो इस शिक्षा को नकारता है वह किसी मनुष्य को नहीं नकार रहा है बल्कि परमेश्वर को ही नकार रहा है। उस परमेश्वर को जो तुम्हें अपनी पवित्र आत्मा भी प्रदान करता है।
9 अब तुम्हें तुम्हारे भाई बहनों के प्रेम के विषय में भी लिखा जाये, इसकी तुम्हें आवश्यकता नहीं है क्योंकि परमेश्वर ने स्वयं तुमको एक दूसरे के प्रति प्रेम करने की शिक्षा दी है। 10 और वास्तव में तुम अपने सभी भाईयों के साथ समूचे मकिदुनिया में ऐसा ही कर भी रहे हो। किन्तु भाइयों! हम तुमसे ऐसा ही अधिक से अधिक करने को कहते हैं।
11 शांतिपूर्वक जीने को आदर की वस्तु समझो। अपने काम से काम रखो। स्वयं अपने हाथों से काम करो। जैसा कि हम तुम्हें बता ही चुके हैं। 12 इससे कलीसिया से बाहर के लोग तुम्हारे जीने के ढंग का आदर करेंगे। इससे तुम्हें किसी भी दूसरे पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
प्रभु का लौटना
13 हे भाईयों, हम चाहते हैं कोई जो चिर-निद्रा में सो गए हैं, तुम उनके विषय में भी जानो ताकि तुम्हें उन औरों के समान, जिनके पास आशा नहीं है, शोक न करना पड़े। 14 क्योंकि यदि हम यह विश्वास करते हैं कि यीशु की मृत्यु हो गयी और वह फिर से जी उठा, तो उसी प्रकार जिन्होंने उसमें विश्वास करते हुए प्राण त्याग दिए हैं, उनके साथ भी परमेश्वर वैसा ही करेगा। और यीशु के साथ वापस ले जायेगा।
15 जब प्रभु का फिर से आगमन होगा तो हम जो जीवित हैं और अभी यहीं हैं उनसे आगे नहीं निकल पाएँगे जो मर चुके हैं। 16 क्योंकि स्वर्गदूतों का मुखिया जब अपने ऊँचे स्वर से आदेश देगा तथा जब परमेश्वर का बिगुल बजेगा तो प्रभु स्वयं स्वर्ग से उतरेगा। उस समय जिन्होंने मसीह में प्राण त्यागे हैं, वे पहले उठेंगे। 17 उसके बाद हमें जो जीवित हैं, और अभी भी यहीं हैं उनके साथ ही हवा में प्रभु से मिलने के लिए बादलों के बीच ऊपर उठा लिए जायेंगे और इस प्रकार हम सदा के लिए प्रभु के साथ हो जायेंगे। 18 अतः इन शब्दों के साथ एक दूसरे को उत्साहित करते रहो।
प्रभु के स्वागत को तैयार रहो
5 हे भाईयों, समयों और तिथियों के विषय में तुम्हें लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है 2 क्योंकि तुम स्वयं बहुत अच्छी तरह जानते हो कि जैसे चोर रात में चुपके से चला आता है, वैसे ही प्रभु के फिर से लौटने का दिन भी आ जायेगा। 3 जब लोग कह रहे होंगे कि “सब कुछ शांत और सुरक्षित है” तभी जैसे एक गर्भवती स्त्री को अचानक प्रसव वेदना आ घेरती है वैसे ही उन पर विनाश उतर आयेगा और वे कहीं बच कर भाग नहीं पायेंगे।
4 किन्तु हे भाईयों, तुम अन्धकार के वासी नहीं हो कि तुम पर वह दिन चुपके से चोर की तरह आ जाये। 5 तुम सब तो प्रकाश के पुत्र हो और दिन की संतान हो। हम न तो रात्रि से सम्बन्धित हैं और न ही अन्धेरे से। 6 इसलिए हमें औरों की तरह सोते नहीं रहना चाहिए, बल्कि सावधानी के साथ हमें तो अपने पर नियन्त्रण रखना चाहिए। 7 क्योंकि जो सोते हैं, रात में सोते हैं और जो नशा करते हैं, वे भी रात में ही मदमस्त होते हैं। 8 किन्तु हम तो दिन से सम्बन्धित हैं इसलिए हमें अपने पर काबू रखना चाहिए। आओ विश्वास और प्रेम की झिलम धारण कर लें और उद्धार पाने की आशा को शिरस्त्राण की तरह ओढ़ लें।
9 क्योंकि परमेश्वर ने हमें उसके प्रकोप के लिए नहीं, बल्कि हमारे प्रभु यीशु द्वारा मुक्तिप्राप्त करने के लिए बनाया है। 10 यीशु मसीह ने हमारे लिए प्राण त्याग दिए ताकि चाहे हम सजीव हैं चाहे मृत, जब वह पुनः आए उसके साथ जीवित रहें। 11 इसलिए एक दूसरे को सुख पहुँचाओ और एक दूसरे को आध्यात्मिकरूप से सुदृढ़ बनाते रहो। जैसा कि तुम कर भी रहे हो।
अंतिम निर्देश और अभिवादन
12 हे भाइयों, हमारा तुमसे निवेदन है कि जो लोग तुम्हारे बीच परिश्रम कर रहे हैं और प्रभु में जो तुम्हें राह दिखाते हैं, उनका आदर करते रहो। 13 हमारा तुमसे निवेदन है कि उनके काम के कारण प्रेम के साथ उन्हें पूरा आदर देते रहो।
परस्पर शांति से रहो। 14 हे भाईयों, हमारा तुमसे निवेदन है आलसियों को चेताओ, डरपोकों को प्रोत्साहित करो, दोनों की सहायता में रुचि लो, सब के साथ धीरज रखो। 15 देखते रहो कोई बुराई का बदला बुराई से न दे, बल्कि सब लोग सदा एक दूसरे के साथ भलाई करने का ही जतन करें।
16 सदा प्रसन्न रहो। 17 प्रार्थना करना कभी न छोड़ो। 18 हर परिस्थिति में परमेश्वर का धन्यवाद करो।
19 पवित्र आत्मा के कार्य का दमन मत करते रहो। 20 नबियों के संदेशों को कभी छोटा मत जानो। 21 हर बात की असलियत को परखो, जो उत्तम है, उसे ग्रहण किए रहो 22 और हर प्रकार की बुराई से बचे रहो।
23 शांति का स्रोत परमेश्वर स्वयं तुम्हें पूरी तरह पवित्र करे। पूरी तरह उसको समर्पित हो जाओ और तुम अपने सम्पूर्ण अस्तित्व अर्थात् आत्मा, प्राण और देह को हमारे प्रभु यीशु मसीह के आने तक पूर्णतः दोष रहित बनाए रखो। 24 वह परमेश्वर जिसने तुम्हें बुलाया है, विश्वास के योग्य है। निश्चयपूर्वक वह ऐसा ही करेगा।
25 हे भाईयों! हमारे लिए भी प्रार्थना करो। 26 सब भाईयों का पवित्र चुम्बन से सत्कार करो। 27 तुम्हें प्रभु की शपथ देकर मैं यह आग्रह करता हूँ कि इस पत्र को सब भाइयों को पढ़ कर सुनाया जाए। 28 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम्हारे साथ रहे।
1 पौलुस, सिलवानुस और तीमुथियुस की ओर से हमारे परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह में स्थित थिस्सलुनीकियों की कलीसिया के नाम:
2 तुम्हें परम पिता परमेश्वर और यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह तथा शांति प्राप्त हो।
3 हे भाईयों, तुम्हारे लिए हमें सदा परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, ऐसा करना उचित भी है। क्योंकि तुम्हारे विश्वास का आश्चर्यजनक रूप से विकास हो रहा है तथा तुममें आपसी प्रेम भी बढ़ रहा है। 4 इसलिए परमेश्वर की कलीसियाओं में हम स्वयं तुम पर गर्व करते हैं। तुम्हारी यातनाओं के बीच तथा कष्टों को सहते हुए धैर्यपूर्वक सहन करना तुम्हारे विश्वास को प्रकट करता है।
पौलुस का धन्यवाद तथा परमेश्वर के न्याय की चर्चा
5 यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि परमेश्वर का न्याय सच्चा है। उसका उद्देश्य यही है कि तुम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने योग्य ठहरो। तुम अब उसी के लिए तो कष्ट उठा रहे हो। 6 निश्चय ही परमेश्वर की दृष्टि में यह न्यायोचित है कि तुम्हें जो दुख दे रहे हैं, उन्हें बदले में दुख ही दिया जाए। 7 और तुम जो कष्ट उठा रहे हो, उन्हें हमारे साथ उस समय विश्राम दिया जाए जब प्रभु यीशु अपने सामर्थ्यवान दूतों के साथ स्वर्ग से 8 धधकती आग में प्रकट हो। और जो परमेश्वर को नहीं जानते तथा हमारे प्रभु यीशु मसीह के सुसमाचार पर नहीं चलते, उन्हें दण्ड दिया जाएगा। 9 उन्हें अनन्त विनाश का दण्ड दिया जाएगा। तथा उन्हें प्रभु और उसकी महिमापूर्ण शक्ति के सामने से हटा दिया जाएगा। 10 ऐसा तब होगा जब वह अपने पवित्र जनों के बीच महिमा मण्डित तथा सभी विश्वासियों के लिए आश्चर्य का हेतु बनने के लिए आएगा उसमें तुम लोग भी शामिल होगे क्योंकि हमने उसके विषय में जो साक्षी दी थी, उस पर तुमने विश्वास किया था।
11 इसलिए हम तुम्हारे हेतु परमेश्वर से सदा प्रार्थना करते हैं कि हमारा परमेश्वर तुम्हें उस जीवन के योग्य समझे जिसे जीने के लिए तुम्हें बुलाया गया है। और वह तुम्हारी हर उत्तम इच्छा को प्रबल रूप से परिपूर्ण करे और हर उस काम को वह सफल बनाए जो तुम्हारे विश्वास का परिणाम है। 12 इस प्रकार हमारे प्रभु यीशु मसीह का नाम तुम्हारे द्वारा आदर पाएगा। और तुम उसके द्वारा आदर पाओगे। यह सब कुछ हमारे परमेश्वर के और यीशु मसीह के अनुग्रह से होगा।
प्रभु के आने से पूर्व दुर्घटनाएँ घटेंगी
2 हे भाईयों, अब हम अपने प्रभु यीशु मसीह के फिर से आने और उसके साथ परस्पर एकत्र होने के विषय में निवेदन करते हैं 2 कि तुम अचानक अपने विवेक को किसी भविष्यवाणी किसी उपदेश अथवा किसी ऐसे पत्र से मत खोना जिसे हमारे द्वारा लिखा गया समझा जाता हो और तथाकथित रूप से जिसमें बताया गया हो कि प्रभु का दिन आ चुका है, तुम अपने मन में डावाँडोल मत होना। 3 तुम अपने आपको किसी के भी द्वारा किसी भी प्रकार छला मत जाने दो। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि वह दिन उस समय तक नहीं आएगा जब तक कि परमेश्वर से मुँह मोड़ लेने का समय नहीं आ जाता और व्यवस्थाहीनता का व्यक्ति प्रकट नहीं हो जाता। उस व्यक्ति की नियति तो विनाश है। 4 वह अपने को हर वस्तु के ऊपर कहेगा और उनका विरोध करेगा। ऐसी वस्तुओं का जो परमेश्वर की हैं या जो पूजनीय हैं। यहाँ तक कि वह परमेश्वर के मन्दिर में जा कर सिंहासन पर बैठ यह दावा करेगा कि वही परमेश्वर है।
5 क्या तुम्हें याद नहीं है कि जब मैं तुम्हारे साथ ही था तो तुम्हें यह सब बताया गया था। 6 और तुम तो अब यह जानते ही हो कि उसे क्या रोके हुए है ताकि वह उचित अवसर आने पर ही प्रकट हो। 7 मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि व्यवस्थाहीनता की रहस्यमयी शक्ति अभी भी अपना काम कर रही है। अब कोई इसे रोक रहा है और वह तब तक इसे रोकता रहेगा, जब तक, उसे रोके रखने वाले को रास्ते से हटा नहीं दिया जाएगा। 8 तब ही वह व्यवस्थाहीन प्रकट होगा। जब प्रभु यीशु अपनी महिमा में फिर प्रकट होगा वह इसे मार डालेगा तथा अपने पुनः आगमन के अवसर पर अपनी उपस्थिति से उसे नष्ट कर देगा।
9 उस व्यवस्थाहीन का आना शैतान की शक्ति से होगा तथा वह बहुत बड़ी शक्ति, झूठे चिन्हों और आश्चर्यकर्मों 10 तथा हर प्रकार के पापपूर्ण छल-प्रपंच से भरा होगा। वह इनका उपयोग उन व्यक्तियों के विरुद्ध करेगा जो सर्वनाश के मार्ग में खोए हुए हैं। वे भटक गए हैं क्योंकि उन्होंने सत्य से प्रेम नहीं किया है; कहीं उनका उद्धार न हो जाए। 11 इसलिए परमेश्वर उनमें एक छली शक्ति को कार्यरत कर देगा जिससे वे झूठ में विश्वास करने लगे थे। इससे उनका विश्वास जो झूठा है, उस पर होगा। 12 इससे वे सभी जिन्होंने सत्य पर विश्वास नहीं किया और झूठ में आनन्द लेते रहे, दण्ड पायेंगे।
तुम्हें छुटकारे के लिए चुना गया है
13 प्रभु में प्रिय भाईयों, तुम्हारे लिए हमें सदा परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने आत्मा के द्वारा तुम्हें पवित्र करके और सत्य में तुम्हारे विश्वास के कारण उद्धार पाने के लिए तुम्हें चुना है। जिन व्यक्तियों का उद्धार होना है, तुम उस पहली फसल के एक हिस्से हो।[c] 14 और इसी उद्धार के लिए जिस सुसमाचार का हमने तुम्हें उपदेश दिया है उसके द्वारा परमेश्वर ने तुम्हें बुलाया ताकि तुम भी हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा को धारण कर सको। 15 इसलिए भाईयों, अटल बने रहो तथा जो उपदेश तुम्हें मौखिक रूप से या हमारे पत्रों के द्वारा दिया गया है, उसे थामे रखो।
16 अब हमारा प्रभु स्वयं यीशु मसीह और हमारा परम पिता परमेश्वर जिसने हम पर अपना प्रेम दर्शाया है और हमें परम आनन्द प्रदान किया है तथा जिसने हमें अपने अनुग्रह में सुदृढ़ आशा प्रदान की है। 17 तुम्हारे हृदयों को आनन्द दे और हर अच्छी बात में जिसे तुम कहते हो या करते हो, तुम्हें सुदृढ़ बनाये।
हमारे लिए प्रार्थना करो
3 हे भाईयों, तुम्हें कुछ और बातें हमें बतानी हैं। हमारे लिए प्रार्थना करो कि प्रभु का संदेश तीव्रता से फैले और महिमा पाए। जैसा कि तुम लोगों के बीच हुआ है। 2 प्रार्थना करो कि हम भटके हुओं और दुष्ट मनुष्यों से दूर रहें। (क्योंकि सभी लोगों का तो प्रभु में विश्वास नहीं होता।)
3 किन्तु प्रभु तो विश्वासपूर्ण है। वह तुम्हारी शक्ति बढ़ाएगा और तुम्हें उस दुष्ट से बचाए रखेगा। 4 हमें प्रभु में तुम्हारी स्थिति के विषय में विश्वास है। और हमें पूरा निश्चय है कि हमने तुम्हें जो कुछ करने को कहा है, तुम वैसे ही कर रहे हो और करते रहोगे। 5 प्रभु तुम्हारे हृदयों को परमेश्वर के प्रेम और मसीह की धैर्यपूर्ण दृढ़ता की ओर अग्रसर करे।
कर्म की अनिवार्यता
6 भाईयों! अब तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम में यह आदेश है कि तुम हर उस भाई से दूर रहो जो ऐसा जीवन जीता है जो उसके लिए उचित नहीं है। 7 मैं यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि तुम तो स्वयं ही जानते हो कि तुम्हें हमारा अनुकरण कैसे करना चाहिए क्योंकि तुम्हारे बीच रहते हुए हम कभी आलसी नहीं रहे। 8 हमने बिना मूल्य चुकाए किसी से भोजन ग्रहण नहीं किया, बल्कि जतन और परिश्रम करते हुए हम दिन रात काम में जुटे रहे ताकि तुममें से किसी पर भी बोझ न पड़े। 9 ऐसा नहीं कि हमें तुमसे सहायता लेने का कोई अधिकार नहीं है, बल्कि हम इसलिए कड़ी मेहनत करते रहे ताकि तुम उसका अनुसरण कर सको। 10 इसलिए हम जब तुम्हारे साथ थे, हमने तुम्हें यह आदेश दिया था: “यदि कोई काम न करना चाहे तो वह खाना भी न खाए।”
11 हमें ऐसा बताया गया है कि तुम्हारे बीच कुछ ऐसे भी हैं जो ऐसा जीवन जीते हैं जो उनके अनुकूल नहीं है। वे कोई काम नहीं करते, दूसरों की बातों में टाँग अड़ाते हुए इधर-उधर घूमते फिरते हैं। 12 ऐसे लोगों को हम यीशु मसीह के नाम पर समझाते हुए आदेश देते हैं कि वे शांति के साथ अपना काम करें और अपनी कमाई का ही खाना खायें। 13 किन्तु हे भाईयों, जहाँ तक तुम्हारी बात है, भलाई करते हुए कभी थको मत।
14 इस पत्र के माध्यम से दिए गए हमारे आदेशों पर यदि कोई न चले तो उस व्यक्ति पर नजर रखो और उसकी संगत से दूर रहो ताकि उसे लज्जा आए। 15 किन्तु उसके साथ शत्रु जैसा व्यवहार मत करो बल्कि भाई के समान उसे चेताओ।
पत्र का समापन
16 अब शांति का प्रभु स्वयं तुम्हें हर समय, हर प्रकार से शांति दे। प्रभु तुम सब के साथ रहे।
17 मैं पौलुस स्वयं अपनी लिखावट में यह नमस्कार लिख रहा हूँ। मैं इसी प्रकार हर पत्र पर हस्ताक्षर करता हूँ। मेरे लिखने की शैली यही है। 18 हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह तुम सब पर बना रहे।
1 पौलुस की ओर से, जो हमारे उद्धार करने वाले परमेश्वर और हमारी आशा मसीह यीशु के आदेश से मसीह यीशु का प्रेरित बना है,
2 तीमुथियुस को जो विश्वास में मेरा सच्चा पुत्र है,
परम पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, दया और शांति प्राप्त हो।
झूठे उपदेशों के विरोध में चेतावनी
3 मकिदुनिया जाते समय मैंने तुझसे जो इफिसुस में ठहरे रहने को कहा था, मैं अब भी उसी आग्रह को दोहरा रहा हूँ। ताकि तू वहाँ कुछ लोगों को झूठी शिक्षाएँ देते रहने, 4 काल्पनिक कहानियों और अनन्त वंशावलियों पर जो लड़ाई-झगड़ों को बढ़ावा देती हैं और परमेश्वर के उस प्रयोजन को सिद्ध नहीं होने देती, जो विश्वास पर टिका है, ध्यान देने से रोक सके। 5 इस आग्रह का प्रयोजन है वह प्रेम जो पवित्र हृदय, उत्तम चेतना और छल रहित विश्वास से उत्पन्न होता है। 6 कुछ लोग तो इन बातों से छिटक कर भटक गये हैं और बेकार के वाद-विवादों में जा फँसे हैं। 7 वे व्यवस्था के विधान के उपदेशक तो बनना चाहते हैं, पर जो कुछ वे कह रहे हैं या जिन बातों पर वे बहुत बल दे रहे हैं, उन तक को वे नहीं समझते।
8 हम अब यह जानते हैं कि यदि कोई व्यवस्था के विधान का ठीक ठीक प्रकार से प्रयोग करे, तो व्यवस्था उत्तम है। 9 अर्थात् यह जानते हुए कि व्यवस्था का विधान धर्मियों के लिये नहीं बल्कि उद्दण्डों, विद्रोहियों, अश्रद्धालुओं, पापियों, अपवित्रों, अधार्मिकों, माता-पिता के मार डालने वाले हत्यारों, 10 व्यभिचारियों, समलिंग कामुको, शोषण कर्ताओं, मिथ्या वादियों, कसम तोड़ने वालों या ऐसे ही अन्य कामों के लिए हैं, जो उत्तम शिक्षा के विरोध में हैं। 11 वह शिक्षा परमेश्वर के महिमामय सुसमाचार के अनुकूल है। वह सुधन्य परमेश्वर से प्राप्त होती है। और उसे मुझे सौंपा गया है।
परमेश्वर के अनुग्रह का धन्यवाद
12 मैं हमारे प्रभु यीशु मसीह का धन्यवाद करता हूँ। मुझे उसी ने शक्ति दी है। उसने मुझे विश्वसनीय समझ कर अपनी सेवा में नियुक्त किया है। 13 यद्यपि पहले मैं उसका अपमान करने वाला, सताने वाला तथा एक अविनीत व्यक्ति था किन्तु मुझ पर दया की गयी क्योंकि एक अविश्वासी के रूप में यह नहीं जानते हुए कि मैं क्या कुछ कर रहा हूँ, मैंने सब कुछ किया 14 और प्रभु का अनुग्रह मुझे बहुतायत से मिला और साथ ही वह विश्वास और प्रेम भी जो मसीह यीशु में है।
15 यह कथन सत्य है और हर किसी के स्वीकार करने योग्य है कि यीशु मसीह इस संसार में पापियों का उद्धार करने के लिए आया है। फिर मैं तो सब से बड़ा पापी हूँ। 16 और इसलिए तो मुझ पर दया की गयी। कि मसीह यीशु एक बड़े पापी के रूप में मेरा उपयोग करते हुए आगे चल कर जो लोग उसमें विश्वास ग्रहण करेंगे, उनके लिए अनन्त जीवन प्राप्ति के हेतु एक उदाहरण के रूप में मुझे स्थापित कर अपनी असीम सहनशीलता प्रदर्शित कर सके। 17 अब उस अनन्त सम्राट अविनाशी अदृश्य एक मात्र परमेश्वर का युग युगान्तर तक सम्मान और महिमा होती रहे। आमीन!
18 मेरे पुत्र तीमुथियुस, भविष्यवक्ताओं के वचनों के अनुसार बहुत पहले से ही तेरे सम्बन्ध में जो भविष्यवाणीयाँ कर दी गयी थीं, मैं तुझे ये आदेश दे रहा हूँ, ताकि तू उनके अनुसार 19 विश्वास और उत्तम चेतना से युक्त हो कर नेकी की लड़ाई लड़ सके। कुछ ऐसे हैं जिनकी उत्तम चेतना और विश्वास नष्ट हो गये हैं। 20 हुमिनयुस और सिकंदर ऐसे ही हैं। मैंने उन्हें शैतान को सौंप दिया है ताकि उन्हें परमेश्वर के विरोध में परमेश्वर की निन्दा करने से रोकने का पाठ पढ़ाया जा सके।
स्त्री-पुरुषों के लिये कुछ नियम
2 सबसे पहले मेरा विशेष रूप से यह निवेदन है कि सबके लिये आवेदन, प्रार्थनाएँ, अनुरोध और सब व्यक्तियों की ओर से धन्यवाद दिए जाएँ। 2 शासकों और सभी अधिकारियों को धन्यवाद दिये जाएँ। ताकि हम चैन के साथ शांतिपूर्वक सम्पूर्ण श्रद्धा और परमेश्वर के प्रति सम्मान से पूर्ण जीवन जी सकें। 3 यह हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला है। यह उत्तम है।
4 वह सभी व्यक्तियों का उद्धार चाहता है और चाहता है कि वे सत्य को पहचाने 5 क्योंकि परमेश्वर एक ही है और मनुष्य तथा परमेश्वर के बीच में मध्यस्थ भी एक ही है। वह स्वयं एक मनुष्य है, मसीह यीशु। 6 उसने सब लोगों के लिये स्वयं को फिरौती के रूप में दे डाला है। इस प्रकार उसने उचित समय परइसकी साक्षी दी। 7 तथा इसी साक्षी का प्रचार करने के लिये मुझे एक प्रचारक और प्रेरित नियुक्त किया गया। (यह मैं सत्य कह रहा हूँ, झूठ नहीं) मुझे विधर्मियों के लियेविश्वास तथा सत्य के उपदेशक के रूप में भी ठहराया गया।
पुरुष एवं महिला के बारे में विशेष निर्देश
8 इसलिए मेरी इच्छा है कि हर कहीं सब पुरुष पवित्र हाथों को उपर उठाकर परमेश्वर के प्रति समर्पित हो बिना किसी क्रोध अथवा मन-मुटाव के प्रार्थना करें।
9 इसी प्रकार स्त्रियों से भी मैं यह चाहता हूँ कि वे सीधी-साधी वेश-भूषा में शालीनता और आत्म-नियन्त्रण के साथ रहें। अपने आप को सजाने सँवारने के लिए वे केशों की वेणियाँ न सजायें तथा सोने, मोतियों और बहुमूल्य वस्त्रों से श्रृंगार न करें 10 बल्कि ऐसी स्त्रियों को जो अपने आप को परमेश्वर की उपासिका मानती है, उनके लिए उचित यह है कि वे स्वयं को उत्तम कार्यों से सजायें।
11 एक स्त्री को चाहिए कि वह शांत भाव से समग्र समर्पण के साथ शिक्षा ग्रहण करे। 12 मैं यह नहीं चाहता कि कोई स्त्री किसी पुरुष को सिखाए पढ़ाये अथवा उस पर शासन करे। बल्कि उसे तो चुपचाप ही रहना चाहिए। 13 क्योंकि आदम को पहले बनाया गया था और तब पीछे हव्वा को। 14 आदम को बहकाया नहीं जा सका था किन्तु स्त्री को बहका लिया गया और वह पाप में पतित हो गयी। 15 किन्तु यदि वे माता के कर्तव्यों को निभाते हुए विश्वास, प्रेम, पवित्रता और परमेश्वर के प्रति समर्पण में बनी रहें तो उद्धार को अवश्य प्राप्त करेंगी।
कलीसिया के निरीक्षक
3 यह एक विश्वास करने योग्य कथन है कि यदि कोई निरीक्षक बनना चाहता है तो वह एक अच्छे काम की इच्छा रखता है। 2 अब देखो उसे एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जिसकी लोग न्यायसंगत आलोचना न कर पायें। उसके एक ही पत्नी होनी चाहिए। उसे शालीन होना चाहिए, आत्मसंयमी, सुशील तथा अतिथिसत्कार करने वाला एवं शिक्षा देने में निपूण होना चाहिए। 3 वह पियक्कड़ नहीं होना चाहिए, न ही उसे झगड़ालू होना चाहिए। उसे तो सज्जन तथा शांतिप्रिय होना चाहिए। उसे पैसे का प्रेमी नहीं होना चाहिए। 4 अपने परिवार का वह अच्छा प्रबन्धक हो तथा उसके बच्चे उसके नियन्त्रण में रहते हों। उसका पूरा सम्मान करते रहो। 5 यदि कोई अपने परिवार का ही प्रबन्ध करना नहीं जानता तो वह परमेश्वर की कलीसिया का प्रबन्ध कैसे कर पायेगा?
6 वह एक नया शिष्य नहीं होना चाहिए ताकि वह अहंकार से फूल न जाये। और उसे शैतान जैसा ही दण्ड पाना पड़े। 7 इसके अतिरिक्त बाहर के लोगों में भी उसका अच्छा नाम हो ताकि वह किसी आलोचना में फँस कर शैतान के फंदे में न पड़ जाये।
कलीसिया के सेवक
8 इसी प्रकार कलीसिया के सेवकों को भी सम्मानीय होना चाहिए जिसके शब्दों पर विश्वास किया जाता हो। मदिरा पान में उसकी रूचि नहीं होनी चाहिए। बुरे रास्तों से उन्हें धन कमाने का इच्छुक नहीं होना चाहिए। 9 उन्हें तो पवित्र मन से हमारे विश्वास के गहन सत्यों को थामे रखना चाहिए। 10 इनको भी पहले निरीक्षकों के समान परखा जाना चाहिए। फिर यदि उनके विरोध में कुछ न हो तभी इन्हें कलीसिया के सेवक के रूप में सेवाकार्य करने देना चाहिए।
11 इसी प्रकार स्त्रियों को भी सम्मान के योग्य होना चाहिए। वे निंदक नहीं होनी चाहिए बल्कि शालीन और हर बात में विश्वसनीय होनी चाहिए। 12 कलीसिया के सेवक के केवल एक ही पत्नी होनी चाहिए तथा उसे अपने बाल-बच्चों तथा अपने घरानों का अच्छा प्रबन्धक होना चाहिए। 13 क्योंकि यदि वे कलीसिया के ऐसे सेवक के रूप में होंगे जो उत्तम सेवा प्रदान करते है, तो वे अपने लिये सम्मानपूर्वक स्थान अर्जित करेंगे। यीशु मसीह के प्रति विश्वास में निश्चय ही उनकी आस्था होगी।
हमारे जीवन का रहस्य
14 मैं इस आशा के साथ तुम्हें ये बातें लिख रहा हूँ कि जल्दी ही तुम्हारे पास आऊँगा। 15 यदि मुझे आने में समय लग जाये तो तुम्हें पता रहे कि परमेश्वर के परिवार में, जो सजीव परमेश्वर की कलीसिया है, किसी को अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए। कलीसिया ही सत्य की नींव और आधार स्तम्भ है। 16 हमारे धर्म के सत्य का रहस्य निस्सन्देह महान है:
मसीह नर देह धर प्रकट हुआ,
आत्मा ने उसे नेक साधा,
स्वर्गदूतों ने उसे देखा,
वह राष्ट्रों में प्रचारित हुआ।
जग ने उस पर विश्वास किया,
और उसे महिमा में ऊपर उठाया गया।[d]
झूठे उपदेशकों से सचेत रहो
4 आत्मा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आगे चल कर कुछ लोग भटकाने वाले झूठे भविष्यवक्ताओं के उपदेशों और दुष्टात्माओं की शिक्षा पर ध्यान देने लगेंगे और विश्वास से भटक जायेंगे। 2 उन झूठे पाखण्डी लोगों के कारण ऐसा होगा जिनका मन मानो तपते लोहे से दाग दिया गया हो। 3 वे विवाह का निषेध करेंगे। कुछ वस्तुएँ खाने को मना करेंगे जिन्हें परमेश्वर के विश्वासियों तथा जो सत्य को पहचानते हैं, उनके लिए धन्यवाद देकर ग्रहण कर लेने को बनाया गया है। 4 क्योंकि परमेश्वर की रची हर वस्तु उत्तम है तथा कोई भी वस्तु त्यागने योग्य नहीं है बशर्ते उसे धन्यवाद के साथ ग्रहण किया जाए। 5 क्योंकि वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना से पवित्र हो जाती है।
मसीह के उत्तम सेवक बनो
6 यदि तुम भाइयों को इन बातों का ध्यान दिलाते रहोगे तो मसीह यीशु के ऐसे उत्तम सेवक ठहरोगे जिसका पालन-पोषण, विश्वास के द्वारा और उसी सच्ची शिक्षा के द्वारा होता है जिसे तूने ग्रहण किया है। 7 बुढ़ियाओं की परमेश्वर विहीन कल्पित कथाओं से दूर रहो तथा परमेश्वर की सेवा के लिए अपने को साधने में लगे रहो। 8 क्योंकि शारीरिक साधना से तो थोड़ा सा ही लाभ होता है जबकि परमेश्वर की सेवा हर प्रकार से मूल्यवान है क्योंकि इसमें आज के समय और आने वाले जीवन के लिए दिया गया आशीर्वाद समाया हुआ है। 9 इस बात पर पूरी तरह निर्भर किया जा सकता है और यह पूरी तरह ग्रहण करने योग्य है। 10 और हम लोग इसलिए कठिन परिश्रम करते हुए जूझते रहते हैं। हमने अपनी आशाएँ सबके, विशेष कर विश्वासियों के, उद्धारकर्त्ता सजीव परमेश्वर पर टिका दी हैं।
11 इन्हीं बातों का आदेश और उपदेश दो। 12 तू अभी युवक है। इसी से कोई तुझे तुच्छ न समझे। बल्कि तू अपनी बात-चीत, चाल-चलन, प्रेम-प्रकाशन, अपने विश्वास और पवित्र जीवन से विश्वासियों के लिए एक उदाहरण बन जा।
13 जब तक मैं आऊँ तू शास्त्रों के सार्वजनिक पाठ करने, उपदेश और शिक्षा देने में अपने आप को लगाए रख। 14 तुझे जो वरदान प्राप्त है, तू उसका उपयोग कर यह तुझे नबियों की भविष्यवाणी के परिणामस्वरूप बुज़ुर्गों के द्वारा तुझ पर हाथ रख कर दिया गया है। 15 इन बातों पर पूरा ध्यान लगाए रख। इन ही में स्थित रह ताकि तेरी प्रगति सब लोगों के सामने प्रकट हो। 16 अपने जीवन और उपदेशों का विशेष ध्यान रख। उन ही पर टिका रह क्योंकि ऐसा आचरण करते रहने से तू स्वयं अपने आपका और अपने सुनने वालों का उद्धार करेगा।
5 किसी बड़ी आयु के व्यक्ति के साथ कठोरता से मत बोलो, बल्कि उन्हें पिता के रूप में देखते हुए उनके प्रति विनम्र रहो। अपने से छोटों के साथ भाइयों जैसा बर्ताव करो। 2 बड़ी महिलाओं को माँ समझो तथा युवा स्त्रियों को अपनी बहन समझ कर पूर्ण पवित्रता के साथ बर्ताव करो।
बिधवाओं की देखभाल करना
3 उन विधवाओं का विशेष ध्यान रखो जो वास्तव में विधवा हैं। 4 किन्तु यदि किसी विधवा के पुत्र-पुत्री अथवा नाती-पोते हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने धर्म पर चलते हुए अपने परिवार की देखभाल करना सीखना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिताओं के पालन-पोषण का बदला चुकायें क्योंकि इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है। 5 वह स्त्री जो वास्तव में विधवा है और जिसका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है, तथा परमेश्वर ही जिसकी आशाओं का सहारा है वह दिन रात विनती तथा प्रार्थना में लगी रहती है। 6 किन्तु विषय भोग की दास विधवा जीते जी मरे हुए के समान है। 7 इसलिए विश्वासी लोगों को इन बातों का (उनकी सहायता का) आदेश दो ताकि कोई भी उनकी आलोचना न कर पाए। 8 किन्तु यदि कोई अपने रिश्तेदारों, विशेषकर अपने परिवार के सदस्यों की सहायता नहीं करता, तो वह विश्वास से फिर गया है तथा किसी अविश्वासी से भी अधिक बुरा है।
9 उन विधवाओं की विशेष सूची में जो आर्थिक सहायता ले रही हैं उसी विधवा का नाम लिखा जाए जो कम से कम साठ साल की हो चुकी हो तथा जो पतिव्रता रही हो 10 तथा जो बाल बच्चों को पालते हुए, अतिथि सत्कार करते हुए, पवित्र लोगों के पांव धोते हुए दुखियों की सहायता करते हुए, अच्छे कामों के प्रति समर्पित होकर सब तरह के उत्तम कार्यों के लिए जानी-मानी जाती हो।
11 किन्तु युवती-विधवाओं को इस सूची में सम्मिलित मत करो क्योंकि मसीह के प्रती उनके समर्पण पर जब उनकी विषय वासना पूर्ण इच्छाएँ हावी होती हैं तो वे फिर विवाह करना चाहती हैं। 12 वे अपराधिनी हैं क्योंकि उन्होंने अपनी मूलभूत प्रतिज्ञा को तोड़ा है। 13 इसके अतिरिक्त उन्हें आलस की आदत पड़ जाती है। वे एक घर से दूसरे घर घूमती फिरती हैं तथा वे न केवल आलसी हो जाती हैं, बल्कि वे बातूनी बन कर लोगों के कामों में टाँग अड़ाने लगाती हैं और ऐसी बातें बोलने लगती हैं जो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए। 14 इसलिए मैं चाहता हूँ कि युवती-विधवाएँ विवाह कर लें और संतान का पालन-पोषण करते हुए अपने घर बार की देखभाल करें ताकि हमारे शत्रुओं को हम पर कटाक्ष करने का कोई अवसर न मिल पाए। 15 मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि कुछ विधवाएँ भटक कर शैतान के पीछे चलने लगी हैं।
16 यदि किसी विश्वासी महिला के घर में विधवाएँ हैं तो उसे उनकी सहायता स्वयं करनी चाहिए और कलीसिया पर कोई भार नहीं डालना चाहिए ताकि कलीसिया सच्ची विधवाओं की सहायता कर सके।[e]
बुज़ुर्ग एवं अन्य बातों के बारे में
17 जो बुज़ुर्ग कलीसिया की उत्तम अगुआई करते हैं, वे दुगुने सम्मान के पात्र होने चाहिए। विशेष कर वे जिनका काम उपदेश देना और पढ़ाना है। 18 क्योंकि शास्त्र में कहा गया है, “बैल जब खलिहान में हो तो उसका मुँह मत बाँधो।”(A) तथा, “मज़दूर को अपनी मज़दूरी पाने का अधिकार है।”(B)
19 किसी बुज़ुर्ग पर लगाए गए किसी लांछन को तब तक स्वीकार मत करो जब तक दो या तीन गवाहियाँ न हों। 20 जो सदा पाप में लगे रहते हैं उन्हें सब के सामने डाँटो-फटकारो ताकि बाकी के लोग भी डरें।
21 परमेश्वर, यीशु मसीह और चुने हुए स्वर्गदूतों के सामने मैं सच्चाई के साथ आदेश देता हूँ कि तू बिना किसी पूर्वाग्रह के इन बातों का पालन कर। पक्षपात के साथ कोई काम मत कर।
22 बिना विचारे किसी को कलीसिया का मुखिया बनाने के लिए उस पर जल्दी में हाथ मत रख। किसी के पापों में भागीदार मत बन। अपने को सदा पवित्र रख।
23 केवल पानी ही मत पीता रह। बल्कि अपने हाज़में और बार-बार बीमार पड़ने से बचने के लिए थोड़ा सा दाखरस भी ले लिया कर।
24 कुछ लोगों के पाप स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं और न्याय के लिए प्रस्तुत कर दिए जाते हैं किन्तु दूसरे लोगों के पाप बाद में प्रकट होते हैं। 25 इसी प्रकार भले कार्य भी स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं किन्तु जो प्रकट नहीं होते वे भी छिपे नहीं रह सकते।
दासों के बारे में विशेष निर्देश
6 लोग जो अंध विश्वासियों के जूए के नीचे दास बने हैं, उन्हें अपने स्वामियों को सम्मान के योग्य समझना चाहिए ताकि परमेश्वर के नाम और हमारे उपदेशों की निन्दा न हो। 2 और ऐसे दासों को भी जिनके स्वामी विश्वासी हैं, बस इसलिए कि वे उनके धर्म भाई हैं, उनके प्रति कम सम्मान नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उन्हें तो अपने स्वामियों की और अधिक सेवा करनी चाहिए क्योंकि जिन्हें इसका लाभ मिल रहा है, वे विश्वासी हैं, जिन्हें वे प्रेम करते हैं।
इन बातों को सिखाते रहो तथा इनका प्रचार करते रहो।
मिथ्या उपदेश और सच्चा धन
3 यदि कोई इनसे भिन्न बातें सिखाता है तथा हमारे प्रभु यीशु मसीह के उन सद्वचनों को नहीं मानता है तथा भक्ति से परिपूर्ण शिक्षा से सहमत नहीं है 4 तो वह अहंकार में फूला है तथा कुछ भी नहीं जानता है। वह तो कुतर्क करने और शब्दों को लेकर झगड़ने के रोग से घिरा है। इन बातों से तो ईर्ष्या, बैर, निन्दा-भाव तथा गाली-गलौज 5 एवम् उन लोगों के बीच जिनकी बुद्धि बिगड़ गयी है, निरन्तर बने रहने वाले मतभेद पैदा होते हैं, वे सत्य से वंचित हैं। ऐसे लोगों का विचार है कि परमेश्वर की सेवा धन कमाने का ही एक साधन है।
6 निश्चय ही परमेश्वर की सेवा-भक्ति से ही व्यक्ति सम्पन्न बनता है। इसी से संतोष मिलता है। 7 क्योंकि हम संसार में न तो कुछ लेकर आए थे और न ही यहाँ से कुछ लेकर जा पाएँगे। 8 सो यदि हमारे पास रोटी और कपड़ा है तो हम उसी में सन्तुष्ट हैं। 9 किन्तु वे जो धनवान बनना चाहते हैं, प्रलोभनों में पड़कर जाल में फँस जाते हैं तथा उन्हें ऐसी अनेक मूर्खतापूर्ण और विनाशकारी इच्छाएँ घेर लेती हैं जो लोगों को पतन और विनाश की खाई में ढकेल देती हैं। 10 क्योंकि धन का प्रेम हर प्रकार की बुराई को जन्म देता है। कुछ लोग अपनी इच्छाओं के कारण ही विश्वास से भटक गए हैं और उन्होंने अपने लिए महान दुख की सृष्टि कर ली है।
याद रखने वाली बातें
11 किन्तु हे परमेश्वर के जन, तू इन बातों से दूर रह तथा धार्मिकता, भक्तिपूर्ण सेवा, विश्वास, प्रेम, धैर्य और सज्जनता में लगा रह। 12 हमारा विश्वास जिस उत्तम स्पर्द्धा की अपेक्षा करता है, तू उसी के लिए संघर्ष करता रह और अपने लिए अनन्त जीवन को अर्जित कर ले। तुझे उसी के लिए बुलाया गया है। तूने बहुत से साक्षियों के सामने उसे बहुत अच्छी तरह स्वीकारा है। 13 परमेश्वर के सामने, जो सबको जीवन देता है तथा यीशु मसीह के सम्मुख जिसने पुन्तियुस पिलातुस के सामने बहुस अच्छी साक्षी दी थी, मैं तुझे यह आदेश देता हूँ कि 14 जब तक हमारा प्रभु यीशु मसीह प्रकट होता है, तब तक तुझे जो आदेश दिया गया है, तू उसी पर बिना कोई कमी छोड़े हुए निर्दोष भाव से चलता रह। 15 वह उस परम धन्य, एक छत्र, राजाओं के राजा और सम्राटों के प्रभु को उचित समय आने पर प्रकट कर देगा। 16 वह अगम्य प्रकाश का निवासी है। उसे न किसी ने देखा है, न कोई देख सकता है। उसका सम्मान और उसकी अनन्त शक्ति का विस्तार होता रहे। आमीन।
17 वर्तमान युग की वस्तुओं के कारण जो धनवान बने हुए हैं, उन्हें आज्ञा दे कि वे अभिमान न करें। अथवा उस धन से जो शीघ्र चला जाएगा कोई आशा न रखें। परमेश्वर पर ही अपनी आशा टिकाए जो हमें हमारे आनन्द के लिए सब कुछ भरपूर देता है। 18 उन्हें आज्ञा दे कि वे अच्छे-अच्छे काम करें। उत्तम कामों से ही धनी बनें। उदार रहें और दूसरों के साथ अपनी वस्तुएँ बाँटें। 19 ऐसा करने से ही वे एक स्वर्गीय कोष का संचय करेंगे जो भविष्य के लिए सुदृढ़ नींव सिद्ध होगा। इसी से वे सच्चे जीवन को थामे रहेंगे।
20 तीमुथियुस, तुझे जो सौंपा गया है, तू उसकी रक्षा कर। व्यर्थ की सांसारिक बातों से बचा रह। तथा जो “मिथ्या ज्ञान” से सम्बन्धित व्यर्थ के विरोधी विश्वास हैं, उनसे दूर रह क्योंकि 21 कुछ लोग उन्हें स्वीकार करते हुए विश्वास से डिग गए हैं।
परमेश्वर का अनुग्रह तुम्हारे साथ रहे।
तीमुथियुस के नाम
1 पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है और जिसे यीशु मसीह में जीवन पाने की प्रतिज्ञा का प्रचार करने के लिए भेजा गया है:
2 प्रिय पुत्र तीमुथियुस के नाम।
परम पिता परमेश्वर और हमारे प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुझे करुणा, अनुग्रह और शांति प्राप्त हो।
धन्यवाद तथा प्रोत्साहन
3 रात दिन अपनी प्रार्थनाओं में निरन्तर तुम्हारी याद करते हुए, मैं उस परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, और उसकी सेवा अपने पूर्वजों की रीति के अनुसार शुद्ध मन से करता हूँ। 4 मेरे लिए तुमने जो आँसू बहाये हैं, उनकी याद करके मैं तुमसे मिलने को आतुर हूँ, ताकि आनन्द से भर उठूँ। 5 मुझे तेरा वह सच्चा विश्वास भी याद है जो पहले तेरी नानी लोईस और तेरी माँ यूनीके में था। मुझे भरोसा है कि वही विश्वास तुझमें भी है। 6 इसलिए मैं तुझे याद दिला रहा हूँ कि परमेश्वर के वरदान की उस ज्वाला को जलाये रख जो तुझे तब प्राप्त हुई थी जब तुझ पर मैंने अपना हाथ रखा था। 7 क्योंकि परमेश्वर ने हमें जो आत्मा दी है, वह हमें कायर नहीं बनाती बल्कि हमें प्रेम, संयम और शक्ति से भर देती है।
8 इसलिए तू हमारे प्रभु या मेरी जो उसके लिए बंदी बना हुआ है, साक्षी देने से लजा मत। बल्कि तुझे परमेश्वर ने जो शक्ति दी है, उससे सुसमाचार के लिए यातनाएँ झेलने में मेरा साथ दे।
9 उसी ने हमारी रक्षा की है और पवित्र जीवन के लिए हमें बुलाया है—हमारे अपने किये कर्मो के आधार पर नहीं, बल्कि उसके अपने उस प्रयोजन और अनुग्रह के अनुसार जो परमेश्वर द्वारा यीशु मसीह में हमें पहले ही अनादि काल से सौंप दिया गया है। 10 किन्तु अब हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के प्रकट होने के साथ-साथ हमारे लिये प्रकाशित किया गया है। उसने मृत्यु का अंत कर दिया तथा जीवन और अमरता को सुसमाचार के द्वारा प्रकाशित किया है।
11 इसी सुसमाचार को फैलाने के लिये मुझे एक प्रचारक, प्रेरित और शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है। 12 और यही कारण है जिससे मैं इन बातों का दुःख उठा रहा हूँ। और फिर भी लज्जित नहीं हूँ क्योंकि जिस पर मैंने विश्वास किया है, मैं उसे जानता हूँ और मैं यह मानता हूँ कि उसने मुझे जो सौंपा है, वह उसकी रक्षा करने में समर्थ है जब तक वह दिन[f] आये,
13 उस उत्तम शिक्षा को जिसे तूने मुझसे यीशु मसीह में प्राप्त होने वाले विश्वास और प्रेम के साथ सुना है तू जो सिखाता है उसका आदर्श वही उत्तम शिक्षा है। 14 हमारे भीतर निवास करने वाली पवित्र आत्मा के द्वारा तू उस बहुमूल्य धरोहर की रखवाली कर जिसे तुझे सौंपा गया है।
15 जैसा कि तू जानता है कि वे सभी जो एशिया में रहते हैं, मुझे छोड़ गये हैं। फुगिलुस और हिरमुगिनेस उन्हीं में से हैं। 16 उनेसिफिरुस के परिवार पर प्रभु अनुग्रह करे। क्योंकि उसने अनेक अवसरों पर मुझे सुख पहुँचाया है। तथा वह मेरे जेल में रहने से लज्जित नहीं हुआ है। 17 बल्कि वह तो जब रोम आया था, जब तक मुझसे मिल नहीं लिया, यत्नपूर्वक मुझे ढूँढता रहा। 18 प्रभु करे उसे, उस दिन प्रभु की ओर से दया प्राप्त हो, उसने इफिसुस में मेरी तरह-तरह से जो सेवाएँ की है तू उन्हें बहुत अच्छी तरह जानता है।
मसीह यीशु का सच्चा सिपाही
2 जहाँ तक तुम्हारी बात है, मेरे पुत्र, यीशु मसीह में प्राप्त होने वाले अनुग्रह से सुदृढ़ हो जा। 2 बहुत से लोगों की साक्षी में मुझसे तूने जो कुछ सुना है, उसे उन विश्वास करने योग्य व्यक्तियों को सौंप दे जो दूसरों को भी शिक्षा देने में समर्थ हों। 3 यातनाएँ झेलने में मसीह यीशु के एक उत्तम सैनिक के समान मेरे साथ आ मिल। 4 ऐसा कोई भी, जो सैनिक के समान सेवा कर रहा है, अपने आपको साधारण जीवन के जंजाल में नहीं फँसाता क्योंकि वह अपने शासक अधिकारी को प्रसन्न करने के लिए यत्नशील रहता है। 5 और ऐसे ही यदि कोई किसी दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेता है, तो उसे विजय का मुकुट उस समय तक नहीं मिलता, जब तक कि वह नियमों का पालन करते हुए प्रतियोगिता में भाग नहीं लेता। 6 परिश्रमी कामगार किसान ही उपज का सबसे पहला भाग पाने का अधिकारी है। 7 मैं जो बताता हूँ, उस पर विचार कर। प्रभु तुझे सब कुछ समझने की क्षमता प्रदान करेगा।
8 यीशु मसीह का स्मरण करते रहो जो मरे हुओं में से पुरर्जीवित हो उठा है और जो दाऊद का वंशज है। यही उस सुसमाचार का सार है जिसका मैं उपदेश देता हूँ 9 इसी के लिए मैं यातनाएँ झेलता हूँ। यहाँ तक कि एक अपराधी के समान मुझे जंजीरों से जकड़ दिया गया है। किन्तु परमेश्वर का वचन तो बंधन रहित है। 10 इसी कारण परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिये मैं हर दुःख उठाता रहता हूँ ताकि वे भी मसीह यीशु में प्राप्त होने वाले उद्धार को अनन्त महिमा के साथ प्राप्त कर सकें।
11 यह वचन विश्वास के योग्य है कि:
यदि हम उसके साथ मरे हैं, तो उसी के साथ जीयेंगे,
12 यदि दुःख उठाये हैं तो उसके साथ शासन भी करेंगे।
यदि हम उसको छोड़ेंगे, तो वह भी हमको छोड़ देगा,
13 हम चाहे विश्वास हीन हों पर वह सदा सर्वदा विश्वसनीय रहेगा
क्योंकि वह अपना इन्कार नहीं कर सकता।
स्वीकृत कार्यकर्ता
14 लोगों को इन बातों का ध्यान दिलाते रहो और परमेश्वर को साक्षी करके उन्हें सावधान करते रहो कि वे शब्दों को लेकर लड़ाई झगड़ा न करें। ऐसे लड़ाई झगड़ों से कोई लाभ नहीं होता, बल्कि इन्हें जो सुनते हैं, वे भी नष्ट हो जाते हैं। 15 अपने आप को परमेश्वर द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाकर एक ऐसे सेवक के रूप में प्रस्तुत करने का यत्न करते रहो जिससे किसी बात के लिए लज्जित होने की आवश्यकता न हो। और जो परमेश्वर के सत्य वचन का सही ढंग से उपयोग करता हो,
16 और सांसारिक वाद विवादों तथा व्यर्थ की बातों से बचा रहता है। क्योंकि ये बातें लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाती हैं। 17 ऐसे लोगों की शिक्षाएँ नासूर की तरह फैलेंगी। हुमिनयुस और फिलेतुस ऐसे ही हैं। 18 जो सच्चाई के बिन्दु से भटक गये हैं। उनका कहना है कि पुनरुत्थान तो अब तक हो भी चुका है। ये कुछ लोगों के विश्वास को नष्ट कर रहे हैं।
19 कुछ भी हो परमेश्वर ने जिस सुदृढ़ नींव को डाला है, वह दृढ़ता के साथ खड़ी है। उस पर अंकित है, “प्रभु अपने भक्तों को जानता है।”(C) और “वह हर एक, जो कहता है कि वह प्रभु का है, उसे बुराइयों से बचे रहना चाहिए।”
20 एक बड़े घर में बस सोने-चाँदी के ही पात्र तो नहीं होते हैं, उसमें लकड़ी और मिट्टी के बरतन भी होते हैं। कुछ विशेष उपयोग के लिए होते हैं और कुछ साधारण उपयोग के लिए। 21 इसलिए यदि व्यक्ति अपने आपको बुराइयों से शुद्ध कर लेता है तो वह विशेष उपयोग का बनेगा और फिर पवित्र बन कर अपने स्वामी के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। और किसी भी उत्तम कार्य के लिए तत्पर रहेगा।
22 जवानी की बुरी इच्छाओं से दूर रहो धार्मिक जीवन, विश्वास, प्रेम और शांति के लिये उन सब के साथ जो शुद्ध मन से प्रभु का नाम पुकारते हैं, प्रयत्नशील रहो। 23 मूर्खतापूर्ण, बेकार के तर्क वितर्कों से सदा बचे रहो। क्योंकि तुम जानते ही हो कि इनसे लड़ाई-झगड़े पैदा होते हैं। 24 और प्रभु के सेवक को तो झगड़ना ही नहीं चाहिए। उसे तो सब पर दया करनी चाहिए। उसे शिक्षा देने में योग्य होना चाहिए। उसे सहनशील होना चाहिए। 25 उसे अपने विरोधियों को भी इस आशा के साथ कि परमेश्वर उन्हें भी मन फिराव करने की शक्ति देगा, विनम्रता के साथ समझाना चाहिए। ताकि उन्हें भी सत्य का ज्ञान हो जाये 26 और वे सचेत होकर शैतान के उस फन्दे से बच निकलें जिसमें शैतान ने उन्हें जकड़ रखा है ताकि वे परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण कर सकें।
अंतिम दिनों में
3 याद रखो अंतिम दिनों में हम पर बहुत बुरा समय आयेगा। 2 लोग स्वार्थी, लालची, अभिमानी, उद्दण्ड, परमेश्वर के निन्दक, माता-पिता की अवहेलना करने वाले, निर्दय, अपवित्र 3 प्रेम रहित, क्षमा-हीन, निन्दक, असंयमी, बर्बर, जो कुछ अच्छा है उसके विरोधी, 4 विश्वासघाती, अविवेकी, अहंकारी और परमेश्वर-प्रेमी होने की अपेक्षा सुखवादी हो जायेंगे। 5 वे धर्म के दिखावटी रूप का पालन तो करेंगे किन्तु उसकी भीतरी शक्ति को नकार देंगे। उनसे सदा दूर रहो।
6 क्योंकि इनमें से कुछ ऐसे हैं जो घरों में घुस पैठ करके पापी, दुर्बल इच्छा शक्ति की पापपूर्ण हर प्रकार की इच्छाओं से चलायमान स्त्रियों को वश में कर लेते हैं। 7 ये स्त्रियाँ सीखने का जतन तो सदा करती रहती हैं, किन्तु सत्य के सम्पूर्ण ज्ञान तक वे कभी नहीं पहुँच पाती। 8 यन्नेस और यम्ब्रेस ने जैसे मूसा का विरोध किया था, वैसे ही ये लोग सत्य के विरोधी हैं। इन लोगों की बुद्धि भ्रष्ट है और विश्वास का अनुसरण करने में ये असफल हैं। 9 किन्तु ये और अधिक आगे नहीं बढ़ पायेंगे क्योंकि जैसे यन्नेस और यम्ब्रेस की मूर्खता प्रकट हो गयी थी, वैसे ही इनकी मूर्खता भी सबके सामने उजागर हो जायेगी।
अंतिम आदेश
10 कुछ भी हो, तूने मेरी शिक्षा का पालन किया है। मेरी जीवन पद्धति, मेरे जीवन के उद्देश्य, मेरे विश्वास, मेरी सहनशीलता, मेरे प्रेम, मेरे धैर्य 11 मेरी उन यातनाओं और पीड़ाओं में मेरा साथ दिया है तुम तो जानते ही हो कि अंताकिया, इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझे कितनी भयानक यातनाएँ दी गयी थीं जिन्हें मैंने सहा था। किन्तु प्रभु ने उन सबसे मेरी रक्षा की। 12 वास्तव में परमेश्वर की सेवा में जो नेकी के साथ जीना चाहते हैं, सताये ही जायेंगे। 13 किन्तु पापी और ठग दूसरों को छलते हुए तथा स्वयं छले जाते हुए बुरे से बुरे होते चले जायेंगे।
14 किन्तु तुमने जिन बातों को सीखा और माना है, उन्हें करते जाओ। तुम जानते हो कि उन बातों को तुमने किनसे सीखा है। 15 और तुझे पता है कि तू बचपन से ही पवित्र शास्त्रों को भी जानता है। वे तुझे उस विवेक को दे सकते हैं जिससे मसीह यीशु में विश्वास के द्वारा छुटकारा मिल सकता है। 16 सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है। यह लोगों को सत्य की शिक्षा देने, उनको सुधारने, उन्हें उनकी बुराइयाँ दर्शाने और धार्मिक जीवन के प्रशिक्षण में उपयोगी है। 17 जिससे परमेश्वर का प्रत्येक सेवक शास्त्रों का प्रयोग करते हुए हर प्रकार के उत्तम कार्यों को करने के लिये समर्थ और साधन सम्पन्न होगा।
4 परमेश्वर को साक्षी करके और मसीह यीशु को अपनी साक्षी बना कर जो सभी जीवितों और जो मर चुके हैं, उनका न्याय करने वाला है, और क्योंकि उसका पुनःआगमन तथा उसका राज्य निकट है, मैं तुझे शपथ पूर्वक आदेश देता हूँ: 2 सुसमाचार का प्रचार कर। चाहे तुझे सुविधा हो चाहे असुविधा, अपना कर्तव्य करने को तैयार रह। लोगों को क्या करना चाहिए, उन्हें समझा। जब वे कोई बुरा काम करें, उन्हें चेतावनी दे। लोगों को धैर्य के साथ समझाते हुए प्रोत्साहित कर।
3 मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि एक समय ऐसा आयेगा जब लोग उत्तम उपदेश को सुनना तक नहीं चाहेंगे। वे अपनी इच्छाओं के अनुकूल अपने लिए बहुत से गुरु इकट्ठे कर लेंगे, जो वही सुनाएँगे जो वे सुनना चाहते हैं। 4 वे अपने कानों को सत्य से फेर लेंगे और कल्पित कथाओं पर ध्यान देने लगेंगे। 5 किन्तु तू निश्चयपूर्वक हर परिस्थिति में अपने पर नियन्त्रण रख, यातनाएँ झेल और सुसमाचार के प्रचार का काम कर। जो सेवा तुझे सौंपी गयी है, उसे पूरा कर।
6 जहाँ तक मेरी बात है, मैं तो अब अर्घ के समान उँडेला जाने पर हूँ। और मेरा तो इस जीवन से विदा लेने का समय भी आ पहुँचा है। 7 मैं उत्तम प्रतिस्पर्द्धा में लगा रहा हूँ। मैं अपनी दौड़, दौड़ चुका हूँ। मैंने विश्वास के पन्थ की रक्षा की है। 8 अब विजय मुकुट मेरी प्रतीक्षा में है। जो धार्मिक जीवन के लिये मिलना है। उस दिन न्यायकर्ता प्रभु मुझे विजय मुकुट पहनायेगा। न केवल मुझे, बल्कि उन सब को जो प्रेम के साथ उसके प्रकट होने की बाट जोहते रहे हैं।
निजी संदेश
9 मुझसे जितना शीघ्र हो सके, मिलने आने का पूरा प्रयत्न करना। 10 क्योंकि इस जगत के मोह में पड़ कर देमास ने मुझे त्याग दिया है और वह थिस्सलुनीके को चला गया है। क्रेस कैंस गलातिया को तथा तीतुस दलमतिया को चला गया है। 11 केवल लूका ही मेरे पास है। मरकुस के पास जाना और जब तू आये, उसे अपने साथ ले आना क्योंकि मेरे काम में वह मेरा सहायक हो सकता है। 12 तिखिकुस को मैं इफिसुस भेज रहा हूँ।
13 जब तू आये, तो उस कोट को, जिसे मैं त्रोआस में करपुस के घर छोड़ आया था, ले आना। मेरी पुस्तकों, विशेष कर चर्म-पत्रों को भी ले आना।
14 ताम्रकार सिकन्दर ने मुझे बहुत हानि पहुँचाई है। उसने जैसा किया है, प्रभु उसे वैसा ही फल देगा। 15 तू भी उस से सचेत रहना क्योंकि वह हमारे उपदेश का घोर विरोध करता रहा है।
16 प्रारम्भ में जब मैं अपना बचाव प्रस्तुत करने लगा तो मेरे पक्ष में कोई सामने नहीं आया। बल्कि उन्होंने तो मुझे अकेला छोड़ दिया था। परमेश्वर करे उन्हें इसका हिसाब न देना पड़े। 17 मेरे पक्ष में तो प्रभु ने खड़े होकर मुझे शक्ति दी। ताकि मेरे द्वारा सुसमाचार का भरपूर प्रचार हो सके, जिसे सभी ग़ैर यहूदी सुन पायें। सिंह के मुँह से मुझे बचा लिया गया है। 18 किसी भी पापपूर्ण हमले से प्रभु मुझे बचायेगा और अपने स्वर्गीय राज्य में सुरक्षा पूर्वक ले जायेगा। उसकी महिमा सदा-सदा होती रहे। आमीन!
पत्र का समापन
19 प्रिसकिल्ला, अक्विला और उनेसिफुरुस के परिवार को नमस्कार कहना। 20 इरास्तुस कुरिन्थुस में ठहर गया है। मैंने त्रुफिमुस को उसकी बीमारी के कारण मिलेतुस में छोड़ दिया है। 21 जाड़ों से पहले आने का जतन करना।
यूबुलुस, पूदेंस, लिनुस तथा क्लौदिया तथा और सभी भाईयों का तुझे नमस्कार पहुँचे।
22 प्रभु तेरे साथ रहे। तुम सब पर प्रभु का अनुग्रह हो।
1 पौलुस की ओर से जिसे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनके विश्वास में सहायता देने के लिये और हमारे धर्म की सच्चाई के सम्पूर्ण ज्ञान की रहनुमाई के लिए भेजा गया है; 2 वह मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूँ कि परमेश्वर के चुने हुओं को अनन्त जीवन की आस बँधे। परमेश्वर ने, जो कभी झूठ नहीं बोलता, अनादि काल से अनन्त जीवन का वचन दिया है। 3 उचित समय पर परमेश्वर ने अपने सुसमाचार को उपदेशों के द्वारा प्रकट किया। वही सुसन्देश हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की आज्ञा से मुझे सौंपा गया है।
4 हमारे समान विश्वास में मेरे सच्चे पुत्र तीतुस को:
हमारे परमपिता परमेश्वर और उद्धारकर्ता मसीह यीशु की ओर से अनुग्रह और शांति प्राप्त हो।
क्रेते में तीतुस का कार्य
5 मैंने तुझे क्रेते में इसलिए छोड़ा था कि वहाँ जो कुछ अधूरा रह गया है, तू उसे ठीक-ठाक कर दे और मेरे आदेश के अनुसार हर नगर में बुजुर्गों को नियुक्त करे। 6 उसे नियुक्त तभी किया जाये जब वह निर्दोष हो। एक पत्नी व्रती हो। उसके बच्चे विश्वासी हों और अनुशासनहीनता का दोष उन पर न लगाया जा सके। तथा वे निरकुश भी न हों। 7 निरीक्षक को निर्दोष तथा किसी भी बुराई से अछूता होना चाहिए। क्योंकि जिसे परमेश्वर का काम सौंपा गया है, उसे अड़ियल, चिड़चिड़ा और दाखमधु पीने में उसकी रूचि नहीं होनी चाहिए। उसे झगड़ालू, नीच कमाई का लोलुप नहीं होना चाहिए 8 बल्कि उसे तो अतिथियों की आवभगत करने वाला, नेकी को चाहने वाला, विवेकपूर्ण, धर्मी, भक्त तथा अपने पर नियन्त्रण रखने वाला होना चाहिए। 9 उसे उस विश्वास करने योग्य संदेश को दृढ़ता से धारण किये रहना चाहिए जिसकी उसे शिक्षा दी गयी है, ताकि वह लोगों को सद्शिक्षा देकर उन्हें प्रबोधित कर सके। तथा जो इसके विरोधी हों, उनका खण्डन कर सके।
10 यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत से लोग विद्रोही होकर व्यर्थ की बातें बनाते हुए दूसरों को भटकाते हैं। मैं विशेष रूप से यहूदी पृष्ठभूमि के लोगों का उल्लेख कर रहा हूँ। 11 उनका तो मुँह बन्द किया ही जाना चाहिए। क्योंकि वे जो बातें नहीं सिखाने की हैं, उन्हें सिखाते हुए घर के घर बिगाड़ रहे हैं। बुरे रास्तों से धन कमाने के लिये ही वे ऐसा करते हैं। 12 एक क्रेते के निवासी ने अपने लोगों के बारे में स्वयं कहा है, “क्रेते के निवासी सदा झूठ बोलते हैं, वे जंगली पशु हैं, वे आलसी हैं, पेटू हैं।” 13 यह कथन सत्य है, इसलिए उन्हें बलपूर्वक डाँटो-फटकारो ताकि उनका विश्वास पक्का हो सके। 14 यहूदियों के पुराने वृत्तान्तों पर और उन लोगों के आदेशों पर, जो सत्य से भटक गये हैं, कोई ध्यान मत दो।
15 पवित्र लोगों के लिये सब कुछ पवित्र है, किन्तु अशुद्ध और जिनमें विश्वास नहीं है, उनके लिये कुछ भी पवित्र नहीं है। 16 वे परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं। किन्तु उनके कर्म दर्शाते हैं कि वे उसे जानते ही नहीं। वे घृणित और आज्ञा का उल्लंघन करने वाले हैं। तथा किसी भी अच्छे काम को करने में वे असमर्थ हैं।
सच्ची शिक्षा का अनुसरण
2 किन्तु तुम सदा ऐसी बातें बोला करो जो सदशिक्षा के अनुकूल हो। 2 वृद्ध पुरुषों को शिक्षा दो कि वे शालीन और अपने पर नियन्त्रण रखने वाले बनें। वे गंभीर, विवेकी, प्रेम और विश्वास में दृढ़ और धैर्यपूर्वक सहनशील हों।
3 इसी प्रकार वृद्ध महिलाओं को सिखाओ कि वे पवित्र जनों के योग्य उत्तम व्यवहार वाली बनें। निन्दक न बनें तथा बहुत अधिक दाखमधु पान की लत उन्हें न हो। वे अच्छी-अच्छी बातें सिखाने वाली बनें 4 ताकि युवतियों को अपने-अपने बच्चों और पतियों से प्रेम करने की सीख दे सकें। 5 जिससे वे संयमी, पवित्र, अपने-अपने घरों की देखभाल करने वाली, दयालु अपने पतियों की आज्ञा मानने वाली बनें जिससे परमेश्वर के वचन की निन्दा न हो।
6 इसी तरह युवकों को सिखाते रहो कि वे संयमी बनें। 7 तुम अपने आपको हर बात में आदर्श बनाकर दिखाओ। तेरा उपदेश शुद्ध और गम्भीर होना चाहिए। 8 ऐसी सद्वाणी का प्रयोग करो, जिसकी आलोचना न की जा सके ताकि तेरे विरोधी लज्जित हों क्योंकि उनके पास तेरे विरोध में बुरा कहने को कुछ नहीं होगा।
9 दासों को सिखाओ कि वे हर बात में अपने स्वामियों की आज्ञा का पालन करें। उन्हें प्रसन्न करते रहें। उलट कर बात न बोलें। 10 चोरी चालाकी न करें। बल्कि सम्पूर्ण विश्वसनीयता का प्रदर्शन करें। ताकि हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर के उपदेश की हर प्रकार से शोभा बढ़े।
11 क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह सब मनुष्यों के उद्धार के लिए प्रकट हुआ है। 12 इससे हमें सीख मिलती है कि हम परमेश्वर विहीनता को नकारें और सांसारिक इच्छाओं का निषेध करते हुए ऐसा जीवन जीयें जो विवेकपूर्ण नेक, भक्ति से भरपूर और पवित्र हो। आज के इस संसार में 13 आशा के उस धन्य दिन की प्रतीक्षा करते रहें जब हमारे परम परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा प्रकट होगी। 14 उसने हमारे लिये अपने आपको दे डाला। ताकि वह सभी प्रकार की दुष्टताओं से हमें बचा सके और अपने चुने हुए लोगों के रूप में अपने लिये हमें शुद्ध कर ले—हमें, जो उत्तम कर्म करने को लालायित है।
15 इन बातों को पूरे अधिकार के साथ कह और समझाता रह, उत्साहित करता रह और विरोधियों को झिड़कता रह। ताकि कोई तेरी अनसुनी न कर सके।
जीवन की उत्तम रीति
3 लोगों को याद दिलाता रह कि वे राजाओं और अधिकारियों के अधीन रहें। उनकी आज्ञा का पालन करें। हर प्रकार के उत्तम कार्यों को करने के लिए तैयार रहें। 2 किसी की निन्दा न करें। शांति-प्रिय और सज्जन बनें। सब लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें।
3 यह मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि एक समय था, जब हम भी मूर्ख थे। आज्ञा का उल्लंघन करते थे। भ्रम में पड़े थे। तथा वासनाओं एवं हर प्रकार के सुख-भोग के दास बने थे। हम दुष्टता और ईर्ष्या में अपना जीवन जीते थे। हम से लोग घृणा करते थे तथा हम भी परस्पर एक दूसरे को घृणा करते थे। 4 किन्तु जब हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर की मानवता के प्रति करुणा और प्रेम प्रकट हुए 5 उसने हमारा उद्धार किया। यह हमारे निर्दोष ठहराये जाने के लिये हमारे किसी धर्म के कामों के कारण नहीं हुआ बल्कि उसकी करुणा द्वारा हुआ। उसने हमारी रक्षा उस स्नान के द्वारा की जिसमें हम फिर पैदा होते हैं और पवित्र आत्मा के द्वारा नये बनाए जाते है। 6 उसने हम पर पवित्र आत्मा को हमारे उद्धारकर्ता यीशु मसीह के द्वारा भरपूर उँडेला है। 7 अब परमेश्वर ने हमें अपनी अनुग्रह के द्वारा निर्दोष ठहराया है ताकि जिसकी हम आशा कर रहे थे उस अनन्त जीवन के उत्तराधिकार को पा सकें।
8 यह कथन विश्वास करने योग्य है और मैं चाहता हूँ कि तुम इन बातों पर डटे रहो ताकि वे जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, अच्छे कर्मों में ही लगे रहें। ये बातें लोगों के लिए उत्तम और हितकारी हैं।
9 वंषावली सम्बन्धी विवादों, व्यवस्था सम्बन्धी झगड़ों झमेलों और मूर्खतापूर्ण मतभेदों से बचा रह क्योंकि उनसे कोई लाभ नहीं, वे व्यर्थ हैं। 10 जो व्यक्ति फूट डालता हो, उससे एक या दो बार चेतावनी देकर अलग हो जाओ। 11 क्योंकि तुम जानते हो कि ऐसा व्यक्ति मार्ग से भटक गया है और पाप कर रहा है। उसने तो स्वयं अपने को दोषी ठहराया है।
याद रखने की कुछ बातें
12 मैं तुम्हारे पास जब अरतिमास या तुखिकुस को भेजूँ तो मेरे पास निकुपुलिस आने का भरपूर जतन करना क्योंकि मैंने वहीं सर्दियाँ बिताने का निश्चय कर रखा है। 13 वकील जेनास और अप्पुलोस को उनकी यात्रा के लिए जो कुछ आवश्यक हो, उसके लिए तुम भरपूर सहायता जुटा देना ताकि उन्हें किसी बात की कोई कमी न रहे। 14 हमारे लोगों को भी सतकर्मों में लगे रहना सीखना चाहिए। उनमें से भी जिनको अत्यधिक आवश्यकता हो, उसको पूरी करना ताकि वे विफल न हों।
15 जो मेरे साथ हैं, उन सबका तुम्हें नमस्कार। हमारे विश्वास के कारण जो लोग हम से प्रेम करते हैं, उन्हें भी नमस्कार।
परमेश्वर का अनुग्रह तुम सबके साथ रहे।
1 यीशु मसीह के लिए बंदी बने पौलुस तथा हमारे भाई तीमुथियुस की ओर से:
हमारे प्रिय मित्र और सहकर्मी फिलेमोन, 2 हमारी बहन अफफिया, हमारे साथी सैनिक अरखिप्पुस तथा तुम्हारे घर पर एकत्रित होने वाली कलीसिया को:
3 हमारे परम पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शांति प्राप्त हो।
फिलेमोन का प्रेम और विश्वास
4 अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हारा उल्लेख करते हुए मैं सदा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ। 5 क्योंकि मैं संत जनों के प्रति तुम्हारे प्रेम और यीशु मसीह में तुम्हारे विश्वास के विषय में सुनता रहता हूँ। 6 मेरी प्रार्थना है कि तुम्हारे विश्वास से उत्पन्न उदार सहभागिता लोगों का मार्ग दर्शन करे। जिससे उन्हें उन सभी उत्तम वस्तुओं का ज्ञान हो जाये जो मसीह के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में हमारे बीच घटित हो रही हैं। 7 हे भाई, तेरे प्रयत्नों से संत जनों के हृदय हरे-भरे हो गये हैं, इसलिए तेरे प्रेम से मुझे बहुत आनन्द मिला है।
उनेसिमुस को भाई स्वीकारो
8 इसलिए कि मसीह में मुझे तुम्हारे कर्त्तव्यों के लिए आदेश देने का अधिकार है 9 किन्तु प्रेम के आधार पर मैं तुमसे निवेदन करना ही ठीक समझता हूँ। मैं पौलुस जो अब बूढ़ा हो चला है और मसीह यीशु के लिए अब बंदी भी बना हुआ है, 10 उस उनेसिमुस के बारे में निवेदन कर रहा हूँ जो तब मेरा धर्मपुत्र बना था, जब मैं बन्दीगृह में था। 11 एक समय था जब वह तेरे किसी काम का नहीं था, किन्तु अब न केवल तेरे लिए बल्कि मेरे लिए भी वह बहुत काम का है।
12 मैं उसे फिर तेरे पास भेज रहा हूँ (बल्कि मुझे तो कहना चाहिए अपने हृदय को ही तेरे पास भेज रहा हूँ।) 13 मैं उसे यहाँ अपने पास ही रखना चाहता था, ताकि सुसमाचार के लिए मुझ बंदी की वह तेरी ओर से सेवा कर सके। 14 किन्तु तेरी अनुमति के बिना मैं कुछ भी करना नहीं चाहता ताकि तेरा कोई उत्तम कर्म किसी विवशता से नहीं बल्कि स्वयं अपनी इच्छा से ही हो।
15 हो सकता है कि उसे थोड़े समय के लिए तुझसे दूर करने का कारण यही हो कि तू उसे फिर सदा के लिए पा ले। 16 दास के रूप में नहीं, बल्कि दास से अधिक एक प्रिय बन्धु के रूप में। मैं उससे बहुत प्रेम करता हूँ किन्तु तू उसे और अधिक प्रेम करेगा। केवल एक मनुष्य के रूप में ही नहीं बल्कि प्रभु में स्थित एक बन्धु के रूप में भी।
17 सो यदि तू मुझे अपने साझीदार के रूप में समझता है तो उसे भी मेरी तरह ही समझ। 18 और यदि उसने तेरा कुछ बुरा किया है या उसे तेरा कुछ देना है तो उसे मेरे खाते में डाल दे। 19 मैं पौलुस स्वयं अपने हस्ताक्षरों से यह लिख रहा हूँ। उसकी भरपाई तुझे मैं करूँगा। (मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि तू तो अपने जीवन तक के लिए मेरा ऋणी है।) 20 हाँ भाई, मुझे तुझसे यीशु मसीह में यह लाभ प्राप्त हो कि मेरे हृदय को चैन मिले। 21 तुझ पर विश्वास रखते हुए यह पत्र मैं तुझे लिख रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि तुझसे मैं जितना कह रहा हूँ, तू उससे कहीं अधिक करेगा।
22 मेरे लिए निवास का प्रबन्ध करते रहना क्योंकि मेरा विश्वास है कि तुम्हारी प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप मुझे सुरक्षित रूप से तुम्हें सौंप दिया जायेगा।
पत्र का समापन
23 यीशु मसीह में स्थित मेरे साथी बंदी इपफ्रास का तुम्हें नमस्कार। 24 मेरे साथी कार्यकर्ता, मरकुस, अरिस्तर्खुस, देमास और लूका का तुम्हें नमस्कार पहुँचे।
25 तुम सब पर प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह बना रहे।
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