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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 20:20 - योहन 5:47

कर का प्रश्न

(मत्ति 22:15-22; मारक 12:13-17)

20 वे मसीह येशु की गतिविधियों पर दृष्टि रखे हुए थे. उन्होंने मसीह येशु के पास अपने गुप्तचर भेजे कि वे धर्म का ढोंग कर मसीह येशु को उनकी ही किसी बात में फँसा कर उन्हें राज्यपाल को सौंप दें.

21 गुप्तचरों ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “गुरुवर, यह तो हम जानते हैं कि आपकी बातें तथा शिक्षाएं सही हैं और आप किसी के प्रति पक्षपाती भी नहीं हैं. आप पूरी सच्चाई में परमेश्वर के विषय में शिक्षा दिया करते हैं. 22 इसलिए यह बताइए कि कयसर को कर देना विधानसम्मत है या नहीं?”

23 मसीह येशु ने उनकी चतुराई भाँपते हुए उनसे कहा.

24 “मुझे एक दीनार दिखाओ. इस पर आकृति तथा मुद्रण किसका है?”

उन्होंने उत्तर दिया, “कयसर का.”

25 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तो जो कयसर का है. वह कयसर को और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो.”

26 भीड़ की उपस्थिति में वे मसीह येशु को उनकी बातों के कारण पकड़ने में असफल रहे. मसीह येशु के इस उत्तर से वे चकित थे और आगे कुछ भी न कह पाए.

मरे हुओं के जी उठने का प्रश्न

(मत्ति 22:23-33; मारक 12:18-27)

27 तब सदूकी समुदाय के कुछ लोग, जो पुनरुत्थान में विश्वास नहीं करते, मसीह येशु के पास आए. 28 उन्होंने उनसे प्रश्न किया, “गुरुवर,” हमारे लिए “मोशेह के निर्देश हैं यदि किसी निःसन्तान पुरुष का पत्नी के रहते हुए निधन हो जाए तो उसका भाई उस स्त्री से विवाह कर अपने भाई के लिए सन्तान उत्पन्न करे. 29 सात भाई थे. पहिले ने विवाह किया और निःसन्तान ही उसकी मृत्यु हो गई. 30 तब दूसरे ने 31 और फिर तीसरे ने उससे विवाह किया और इस प्रकार सातों ही निःसन्तान चल बसे. 32 अन्ततः: उस स्त्री की भी मृत्यु हो गई. 33 इसलिए मरे हुओं के जी उठने पर वह स्त्री किसकी पत्नी कहलाएगी—क्योंकि वह सातों ही की पत्नी रह चुकी थी?”

34 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “विवाह केवल इसी लोक में होते हैं. 35 वे, जो आनेवाले लोक में प्रवेश तथा मरे हुओं में से जी उठने के योग्य गिने जाते हैं, वैवाहिक अवस्था में प्रवेश नहीं करते. 36 जी उठने पर लोग न तो वैवाहिक अवस्था में होंगे और न ही कभी उनकी मृत्यु होगी क्योंकि वहाँ वे स्वर्गदूतों जैसे होते हैं. जी उठने के परिणामस्वरूप वे परमेश्वर की सन्तान होंगे. 37 मरे हुओं का जी उठना एक सच्चाई है, इसकी पुष्टि स्वयं मोशेह ने जलती हुई झाड़ी के विवरण में की है, जहाँ वह प्रभु को अब्राहाम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर तथा याक़ोब का परमेश्वर कहते हैं. 38 इसलिए वह मरे हुओं के नहीं, जीवितों के परमेश्वर हैं क्योंकि उनके सामने ये सभी जीवित हैं.”

39 कुछ शास्त्रियों ने इसके उत्तर में कहा, “गुरुवर, अति उत्तम उत्तर दिया आपने!” 40 उनमें से किसी को भी अब उनसे किसी भी विषय में प्रश्न करने का साहस न रहा.

फ़रीसियों के लिए असम्भव प्रश्न

(मत्ति 21:41-46; मारक 12:35-37)

41 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “लोग यह क्यों कहते हैं कि मसीह दाविद की सन्तान हैं, 42 क्योंकि स्वयं दाविद भजन संहिता में कहते हैं:

“‘याहवेह ने मेरे प्रभु से कहा,
“मेरे दायें पक्ष में बैठे रहो,
43 मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे अधीन करूँगा.” ’

44 “जब दाविद उन्हें प्रभु कह कर सम्बोधित करते हैं तब वह दाविद के पुत्र कैसे हुए?”

शास्त्रियों और फ़रीसियों का पाखण्ड

(मत्ति 23:1-12; मारक 12:38-40)

45 सारी भीड़ के सुनते हुए मसीह येशु ने शिष्यों को सम्बोधित करते हुए कहा, 46 “उन शास्त्रियों से सावधान रहना, जो ढीले-ढाले, लम्बे-लहराते वस्त्र धारण किए हुए घूमते रहते हैं, जिन्हें सार्वजनिक स्थलों पर सम्मान भरे नमस्कार की इच्छा रहती है. उन्हें यहूदी सभागृहों में प्रधान आसन तथा भोज के अवसरों पर सम्मान के स्थान की आशा रहती है. 47 वे विधवाओं के घर हड़प लेते हैं तथा मात्र दिखावे के उद्देश्य से लम्बी-लम्बी प्रार्थनाएँ करते हैं. कठोर होगा इनका दण्ड!”

कंगाल विधवा का दान

(मारक 12:41-44)

21 मसीह येशु ने देखा कि धनी व्यक्ति दानकोष में अपना-अपना दान डाल रहे हैं. उन्होंने यह भी देखा कि एक निर्धन विधवा ने दो छोटे सिक्के डाले हैं. इस पर मसीह येशु ने कहा, “सच यह है कि इस निर्धन विधवा ने उन सभी से बढ़कर दिया है. इन सबने तो अपने धन की बढ़ती में से दिया है किन्तु इस विधवा ने अपनी कंगाली में से अपनी सारी जीविका ही दे दी है.”

अन्त काल की घटनाओं का प्रकाशन

(मत्ति 24:1-25; मारक 13:1-23)

जब कुछ शिष्य मन्दिर के विषय में चर्चा कर रहे थे कि यह भवन कितने सुन्दर पत्थरों तथा मन्नत की भेंटों से सजाया है; मसीह येशु ने उनसे कहा, “जिन वस्तुओं को तुम इस समय सराह रहे हो, एक दिन आएगा कि इन भवनों का एक भी पत्थर दूसरे पर स्थापित न दिखेगा—हर एक पत्थर भूमि पर पड़ा होगा.”

उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “गुरुवर, यह कब घटित होगा तथा इनके पूरा होने के समय का चिन्ह क्या होगा?”

मसीह येशु ने उत्तर दिया, “सावधान रहना कि तुम भटका न दिए जाओ, क्योंकि मेरे नाम में अनेक आएंगे और दावा करेंगे, ‘मैं मसीह हूँ’ तथा ‘वह समय पास आ गया है’, किन्तु उनकी न सुनना. जब तुम युद्धों तथा बलवों के समाचार सुनो तो भयभीत न होना. इनका पहले घटना ज़रूरी है फिर भी इनके तुरन्त बाद अन्त नहीं होगा.”

10 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “राष्ट्र राष्ट्र के तथा राज्य राज्य के विरुद्ध उठ खड़ा होगा. 11 भीषण भूकम्प आएंगे. विभिन्न स्थानों पर महामारियां होंगी तथा अकाल पड़ेंगे. भयावह घटनाएँ होंगी तथा आकाश में अचम्भित दृश्य दिखाई देंगे.

12 “इन सबके पहले वे तुम्हें पकड़ लेंगे और तुम्हें यातनाएँ देंगे. मेरे नाम के कारण वे तुम्हें सभागृहों में ले जाएँगे, बन्दीगृह में डाल देंगे तथा तुम्हें राजाओं और राज्यपालों के हाथों में सौंप देंगे. 13 इसके परिणामस्वरूप तुम्हें गवाही देने का सुअवसर प्राप्त हो जाएगा. 14 इसलिए यह सुनिश्चित करो कि तुम पहले ही अपने बचाव की तैयारी नहीं करोगे, 15 क्योंकि तुम्हें अपने बचाव में कहने के विचार तथा बुद्धि मैं दूँगा, जिसका तुम्हारे विरोधी न तो सामना कर सकेंगे और न ही खण्डन. 16 तुम्हारे माता-पिता, भाई-बहन तथा परिजन और मित्र ही तुम्हारे साथ धोखा करेंगे—वे तुम में से कुछ की तो हत्या भी कर देंगे. 17 मेरे नाम के कारण सभी तुमसे घृणा करेंगे. 18 फिर भी तुम्हारे एक बाल तक की हानि न होगी. 19 तुम्हारे धीरज में छिपी होगी तुम्हारे जीवन की सुरक्षा.

20 “जिस समय येरूशालेम नगर सेनाओं द्वारा घिरा हुआ दिखे, तब यह समझ लेना कि विनाश पास है. 21 तब वे, जो यहूदिया प्रदेश में हैं, भाग कर पर्वतों की शरण लें; वे, जो नगर में हैं, नगर छोड़ कर चले जाएँ; जो नगर के बाहर हैं, वे नगर में प्रवेश न करें 22 क्योंकि यह बदला लेने का समय होगा कि वह सब, जो लेखों में पहले से लिखा है, पूरा हो जाए. 23 दयनीय होगी गर्भवती और दूध पिलाती स्त्रियों की स्थिति! क्योंकि यह मनुष्यों पर क्रोध तथा पृथ्वी पर घोर संकट का समय होगा.

24 “वे तलवार से घात किए जाएँगे, अन्य राष्ट्र उन्हें बन्दी बना कर ले जाएँगे. येरूशालेम नगर अन्यजातियों द्वारा उस समय तक रौंदा जाएगा जब तक अन्यजातियों का समय पूरा न हो जाए.

25 “सूर्य, चन्द्रमा और तारों में अद्भुत चिह्न दिखाई देंगे. पृथ्वी पर राष्ट्रों में आतंक छा जाएगा. उफ़नते सागर की लहरों के कारण लोग घबरा जाएँगे. 26 लोग भय और इस आशंका से मूर्च्छित हो जाएँगे कि अब संसार का क्या होगा क्योंकि आकाश की शक्तियाँ हिला दी जाएँगी. 27 तब वे मनुष्य के पुत्र को बादल में सामर्थ्य और प्रताप में नीचे आता हुआ देखेंगे. 28 जब ये घटनाएँ घटित होने लगें, साहस के साथ स्थिर खड़े हो कर आनेवाली घटना की प्रतीक्षा करो क्योंकि समीप होगा तुम्हारा छुटकारा.”

29 तब मसीह येशु ने उन्हें इस दृष्टान्त के द्वारा शिक्षा दी: “अंजीर के पेड़ तथा अन्य वृक्षों पर ध्यान दो. 30 जब उनमें कोंपलें निकलने लगती हैं तो तुम स्वयं जान जाते हो कि गर्मी का समय पास है. 31 इसी प्रकार, जब तुम इन घटनाओं को घटित होते हुए देखो तो तुम यह जान जाओगे कि परमेश्वर का राज्य अब पास है.

32 “वस्तुत: यह पीढ़ी उस समय तक समाप्त नहीं होगी जब तक ये सभी घटनाएँ घटित न हो जाएँ. 33 आकाश और पृथ्वी का लुप्त हो जाना सम्भव है किन्तु मेरे शब्दों का बिलकुल नहीं.

34 “सावधान रहना कि तुम्हारा हृदय जीवन सम्बन्धी चिन्ताओं, दुर्व्यसनों तथा मतवालेपन में पड़ कर सुस्त न हो जाए और वह दिन तुम पर अचानक से फन्दे जैसा आ पड़े. 35 उस दिन का प्रभाव पृथ्वी के हर एक मनुष्य पर पड़ेगा. 36 हमेशा सावधान रहना, प्रार्थना करते रहना कि तुम्हें इन आनेवाली घटनाओं से निकलने के लिए बल प्राप्त हो और तुम मनुष्य के पुत्र की उपस्थिति में खड़े हो सको.”

37 दिन के समय मसीह येशु मन्दिर में शिक्षा दिया करते तथा सन्ध्याकाल में वह ज़ैतून पर्वत पर जा कर प्रार्थना करते हुए रात बिताया करते थे. 38 लोग भोर में उनका प्रवचन सुनने मन्दिर आ जाया करते थे.

मसीह येशु की हत्या का षड्यन्त्र

(मत्ति 26:1-5; मारक 14:1, 2)

22 अख़मीरी रोटी का उत्सव, जो फ़सह पर्व कहलाता है, पास आ रहा था. प्रधान याजक तथा शास्त्री इस खोज में थे कि मसीह येशु को किस प्रकार मार डाला जाए, किन्तु उन्हें लोगों का भय था.

शैतान ने कारियोतवासी यहूदाह में, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रवेश किया. उसने प्रधान पुरोहितों तथा अधिकारियों से मिल कर निश्चित किया कि वह किस प्रकार मसीह येशु को पकड़वा सकता है. इस पर प्रसन्न हो वे उसे इसका दाम देने पर सहमत हो गए. यहूदाह मसीह येशु को उनके हाथ पकड़वा देने के ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगा, जब आसपास भीड़ न हो.

फ़सह भोज की तैयारी

(मत्ति 26:17-19; मारक 14:12-16)

तब अख़मीरी रोटी का उत्सव आ गया, जब फ़सह का मेमना बलि किया जाता था. मसीह येशु ने पेतरॉस और योहन को इस आज्ञा के साथ भेजा, “जाओ और हमारे लिए फ़सह की तैयारी करो.”

उन्होंने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, हम किस स्थान पर इसकी तैयारी करें, आप क्या चाहते हैं?”

10 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “नगर में प्रवेश करते ही तुम्हें एक व्यक्ति पानी का घड़ा ले जाता हुआ मिलेगा. उसका पीछा करते हुए तुम उस घर में चले जाना, 11 जिस घर में वह प्रवेश करेगा. उस घर के स्वामी से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “वह अतिथि कक्ष कहाँ है जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह खाऊँगा?” ’ 12 वह तुमको एक विशाल, सुसज्जित ऊपरी कक्ष दिखाएगा; तुम वहीं सारी तैयारी करना.”

13 यह सुन वे दोनों वहाँ से चले गए और सब कुछ ठीक वैसा ही पाया जैसा मसीह येशु ने कहा था. उन्होंने वहाँ फ़सह तैयार किया.

14 नियत समय पर मसीह येशु अपने प्रेरितों के साथ भोज पर बैठे. 15 उन्होंने प्रेरितों से कहा, “मेरी बड़ी लालसा थी कि मैं अपने दुःख-भोग के पहले यह फ़सह तुम्हारे साथ खाऊँ. 16 क्योंकि सच यह है कि मैं इसे दोबारा तब तक नहीं खाऊँगा जब तक यह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो.”

17 तब उन्होंने प्याला उठाया, परमेश्वर के प्रति धन्यवाद दिया और कहा, “इसे लो, आपस में बांट लो 18 क्योंकि यह निर्धारित है कि जब तक परमेश्वर के राज्य का आगमन न हो जाए, मैं दाखरस दोबारा नहीं पिऊँगा.”

प्रभु-भोज का प्रतिष्ठापन

19 तब उन्होंने रोटी ली, धन्यवाद देते हुए उसे तोड़ा और शिष्यों को यह कहते हुए दे दी, “यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है. मेरी याद में तुम ऐसा ही किया करना.”

20 इसी प्रकार इसके बाद मसीह येशु ने प्याला उठाया और कहा, “यह प्याला मेरे लहू में, जो तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है, नई वाचा है.

21 “वह, जो मुझे पकड़वाएगा हमारे साथ इस भोज में शामिल है. 22 मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ कि मनुष्य का पुत्र, जैसा उसके लिए तय किया गया है, ठीक उसी के अनुसार आगे बढ़ रहा है किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा रहा है!” 23 यह सुन वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि वह कौन हो सकता है, जो यह करने पर है.

24 उनके बीच यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ कि उनमें से सबसे बड़ा कौन है. 25 यह जान मसीह येशु ने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर शासन करते हैं और वे, जिन्हें उन पर अधिकार है, उनके हितैषी कहलाते हैं. 26 किन्तु तुम वह नहीं हो—तुममें जो बड़ा है, वह सबसे छोटे के समान हो जाए और राजा सेवक समान. 27 बड़ा कौन है—क्या वह, जो भोजन पर बैठा है या वह, जो खड़ा हुआ सेवा कर रहा है? तुम्हारे मध्य मैं सेवक के समान हूँ.

28 “तुम्हीं हो, जो मेरे विषम समयों में मेरा साथ देते रहे हो. 29 इसलिए जैसा मेरे पिता ने मुझे एक राज्य प्रदान किया है, 30 वैसा ही मैं भी तुम्हें यह अधिकार देता हूँ कि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ संगति करो, और सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय.

31 “शिमोन, शिमोन, सुनो! शैतान ने तुम सबको गेहूं के समान अलग करने की आज्ञा प्राप्त कर ली है. 32 किन्तु शिमोन, तुम्हारे लिए मैंने प्रार्थना की है कि तुम्हारे विश्वास का पतन न हो. जब तुम पहले जैसी स्थिति पर लौट आओ तो अपने भाइयों को भी विश्वास में मजबूत करना.”

33 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं तो आपके साथ दोनों ही को स्वीकारने के लिए तत्पर हूँ—बन्दीगृह तथा मृत्यु!”

34 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सुनो, पेतरॉस, आज रात, मुर्ग तब तक बाँग न देगा, जब तक तुम तीन बार इस सच को कि तुम मुझे जानते हो, नकार न चुके होगे.”

35 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, जब मैंने तुम्हें बिना बटुए, बिना झोले और बिना जूती के बाहर भेजा था, क्या तुम्हें कोई अभाव हुआ था?”

“बिल्कुल नहीं,” उन्होंने उत्तर दिया.

36 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “किन्तु अब जिस किसी के पास बटुआ है, वह उसे साथ ले ले. इसी प्रकार झोला भी और जिसके पास तलवार नहीं है, वह अपना वस्त्र बेच कर तलवार मोल ले. 37 मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यह जो लेख लिखा है—उसकी गिनती अपराधियों में हुई—का मुझमें पूरा होना ज़रूरी है क्योंकि मुझसे सम्बन्धित सभी लेखों का पूरा होना अवश्य है.”

38 शिष्यों ने कहा, “प्रभु, देखिए, ये दो तलवारें हैं.” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “पर्याप्त हैं.”

गेतसेमनी उद्यान में मसीह येशु की अवर्णनीय वेदना

(मत्ति 26:36-46)

39 तब मसीह येशु बाहर निकल कर ज़ैतून पर्वत पर चले गए, जहाँ वह प्रायः जाया करते थे. उनके शिष्य भी उनके साथ थे. 40 उस स्थान पर पहुँच कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न फँसो.”

41 तब मसीह येशु शिष्यों से कुछ ही दूरी पर गए और उन्होंने घुटने टेक कर यह प्रार्थना की: 42 “पिताजी, यदि सम्भव हो तो यातना का यह प्याला मुझसे दूर कर दीजिए फिर भी मेरी नहीं, आपकी इच्छा पूरी हो.” 43 उसी समय स्वर्ग से एक स्वर्गदूत ने आ कर उनमें बल का संचार किया. 44 प्राण निकलने के समान दर्द में वह और भी अधिक कातर भाव में प्रार्थना करने लगे. उनका पसीना लहू के समान भूमि पर टपक रहा था.

45 जब वह प्रार्थना से उठे और शिष्यों के पास आए तो उन्हें सोता हुआ पाया. उदासी के मारे शिष्य सो चुके थे. 46 मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “सो क्यों रहे हो? उठो! प्रार्थना करो कि तुम किसी परीक्षा में न फँसो.”

मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना

(मत्ति 26:47-56; मारक 14:43-52; योहन 18:1-11)

47 मसीह येशु जब यह कह ही रहे थे, तभी एक भीड़ वहाँ आ पहुंची. उनमें यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, सबसे आगे था. वह मसीह येशु को चूमने के लिए आगे बढ़ा 48 किन्तु मसीह येशु ने उससे कहा, “यहूदाह! क्या मनुष्य के पुत्र को तुम इस चुम्बन के द्वारा पकड़वा रहे हो?”

49 यह पता चलने पर कि क्या होने पर है शिष्यों ने मसीह येशु से पूछा, “प्रभु, क्या हम तलवार चलाएं?” 50 उनमें से एक ने तो महायाजक के दास पर वार कर उस दास का दाहिना कान ही उड़ा दिया.

51 मसीह येशु इस पर बोले, “बस! बहुत हुआ” और उन्होंने उस दास के कान का स्पर्श कर उसे पहले जैसा कर दिया.

52 तब मसीह येशु ने प्रधान पुरोहितों, मन्दिर के पहरुओं तथा वहाँ उपस्थित पुरनियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “तलवारें और लाठियाँ ले कर क्या आप किसी राजद्रोही को पकड़ने आए हैं? 53 आपने मुझे तब तो नहीं पकड़ा जब मैं मन्दिर आँगन में प्रतिदिन आपके साथ हुआ करता था! यह इसलिए कि यह क्षण आपका है—अन्धकार के हाकिम का.”

पेतरॉस का नकारना

(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; योहन 18:25-27)

54 वे मसीह येशु को पकड़ कर महायाजक के घर पर ले गए. पेतरॉस दूर ही दूर से उनके पीछे-पीछे चलते रहे. 55 जब लोग आँगन में आग जलाए हुए बैठे थे, पेतरॉस भी उनके साथ बैठ गए. 56 एक सेविका ने पेतरॉस को आग की रोशनी में देखा और उनको एकटक देखते हुए कहा, “यह व्यक्ति भी उसके साथ था!”

57 पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “नहीं! हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!”

58 कुछ समय बाद किसी अन्य ने उन्हें देख कर कहा.

“तुम भी तो उनमें से एक हो!”

“नहीं भाई, नहीं!” पेतरॉस ने उत्तर दिया.

59 लगभग एक घण्टे बाद एक अन्य व्यक्ति ने बल देते हुए कहा, “निस्सन्देह यह व्यक्ति भी उसके साथ था क्योंकि यह भी गलीलवासी है.”

60 पेतरॉस ने उत्तर दिया, “महोदय, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आप क्या कह रहे हैं!” जब वह यह कह ही रहे थे कि एक मुर्ग ने बाँग दी. 61 उसी समय प्रभु ने मुड़ कर पेतरॉस की ओर दृष्टि की और पेतरॉस को प्रभु की पहले कही हुई बात याद आ गई: “इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम आज तीन बार मुझे नकार चुके होगे.” 62 पेतरॉस बाहर चले गए और फूट-फूट कर रोने लगे.

सिपाहियों द्वारा मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया जाना

63 जिन्होंने मसीह येशु को पकड़ा था, वे उनको ठठ्ठों में उड़ाते हुए उन पर वार करते जा रहे थे. 64 उन्होंने मसीह येशु की आँखों पर पट्टी बांधी और उनसे पूछने लगे, “अपनी भविष्यवाणी से बता, किसने वार किया है तुझ पर?” 65 इसके अतिरिक्त वे उनकी निन्दा करते हुए उनके लिए अनेक अपमानजनक शब्द भी कहे जा रहे थे.

मसीह येशु पिलातॉस के न्यायालय में

(मत्ति 27:1, 2; मारक 15:1)

66 पौ फटने पर पुरनिये लोगों ने प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों की एक सभा बुलाई और मसीह येशु को महासभा में ले गए. 67 उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “यदि तुम ही मसीह हो तो हमें बता दो.” 68 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आपको यह बताऊँगा तो भी आप इसका विश्वास नहीं करेंगे और यदि मैं आप से कोई प्रश्न करूँ तो आप उसका उत्तर ही न देंगे; 69 किन्तु अब इसके बाद मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दायीं ओर बैठाया जाएगा.”

70 उन्होंने प्रश्न किया, “तो क्या तुम परमेश्वर के पुत्र हो?” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैं हूँ.”

71 यह सुन वे कहने लगे, “अब हमें गवाहों की ज़रूरत ही न रही—स्वयं हमने यह इसके मुख से सुन लिया है.” इस पर सारी सभा उठ खड़ी हुई और वे मसीह येशु को राज्यपाल पिलातॉस के पास ले गए.

मसीह येशु पिलातॉस के सामने

(मत्ति 27:11-14; मारक 15:2-5; योहन 18:28-37)

23 पिलातॉस के सामने वे यह कहते हुए मसीह येशु पर दोष लगाने लगे, “हमने यह पाया है कि यह व्यक्ति हमारे राष्ट्र को भरमा रहा है. यह कयसर को कर देने का विरोध करता तथा यह दावा करता है कि वह स्वयं ही मसीह, राजा है.”

इसलिए पिलातॉस ने मसीह येशु से प्रश्न किया, “क्या तुम यहूदियों के राजा हो?”

“सच वही है, जो आपने कहा है.” मसीह येशु ने उत्तर दिया.

इस पर पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों और भीड़ को सम्बोधित करते हुए घोषणा की, “मुझे इस व्यक्ति में ऐसा कोई दोष नहीं मिला कि इस पर मुकद्दमा चलाया जाए.”

किन्तु वे दृढ़तापूर्वक कहते रहे, “यह सारे यहूदिया प्रदेश में लोगों को अपनी शिक्षाओं द्वारा भड़का रहा है. यह सब इसने गलील प्रदेश में प्रारम्भ किया और अब यहाँ भी आ पहुँचा है.”

यह सुनते ही पिलातॉस ने प्रश्न किया, “क्या यह व्यक्ति गलीलवासी है?” यह मालूम होने पर कि मसीह येशु हेरोदेस के अधिकार क्षेत्र के हैं, उसने उन्हें हेरोदेस के पास भेज दिया, जो इस समय येरूशालेम नगर में ही था.

हेरोदेस के सामने मसीह येशु

मसीह येशु को देख कर हेरोदेस अत्यन्त प्रसन्न हुआ क्योंकि बहुत दिनों से उसे मसीह येशु को देखने की इच्छा थी. उसने मसीह येशु के विषय में बहुत कुछ सुन रखा था. उसे आशा थी कि वह मसीह येशु द्वारा किया गया कोई चमत्कार देख सकेगा. उसने मसीह येशु से अनेक प्रश्न किए किन्तु मसीह येशु ने कोई भी उत्तर न दिया. 10 प्रधान याजक और शास्त्री वहीं खड़े हुए थे और पूरे ज़ोर शोर से मसीह येशु पर दोष लगा रहे थे. 11 हेरोदेस और उसके सैनिकों ने अपमान करके मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया और उन पर भड़कीला वस्त्र डाल कर वापस पिलातॉस के पास भेज दिया. 12 उसी दिन से हेरोदेस और पिलातॉस में मित्रता हो गई—इसके पहले वे एक-दूसरे के शत्रु थे.

13 पिलातॉस ने प्रधान पुरोहितों, नायकों और लोगों को पास बुलाया 14 और उनसे कहा, “तुम इस व्यक्ति को यह कहते हुए मेरे पास लाए हो कि यह लोगों को विद्रोह के लिए उकसा रहा है. तुम्हारी ही उपस्थिति में मैंने उससे पूछताछ की और मुझे उसमें तुम्हारे द्वारा लगाए आरोप के लिए कोई भी आधार नहीं मिला—न ही हेरोदेस को उसमें कोई दोष मिला है. 15 उसने उसे हमारे पास ही भेज दिया है. तुम देख ही रहे हो कि उसने मृत्युदण्ड के योग्य कोई अपराध नहीं किया है. 16 इसलिए मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.” 17 उत्सव के अवसर पर एक बन्दी को मुक्त कर देने की प्रथा थी.

18 भीड़ एक शब्द में चिल्ला उठी, “उसे मृत्युदण्ड दीजिए और हमारे लिए बार-अब्बा को मुक्त कर दीजिए!” 19 बार-अब्बा को नगर में विद्रोह भड़काने और हत्या के आरोप में बन्दी बनाया गया था.

20 मसीह येशु को मुक्त करने की इच्छा से पिलातॉस ने उनसे एक बार फिर विनती की 21 किन्तु वे चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ! क्रूस पर चढ़ाओ!”

22 पिलातॉस ने तीसरी बार उनसे प्रश्न किया, “क्यों? क्या है उसका अपराध? मुझे तो उसमें मृत्युदण्ड देने योग्य कोई दोष नहीं मिला. मैं उसे कोड़े लगवा कर छोड़ देता हूँ.”

23 किन्तु वे हठ करते हुए ऊँचे शब्द में चिल्लाते रहे, “क्रूस पर चढ़ाओ उसे!” तब हार कर उसे उनके आगे झुकना ही पड़ा. 24 पिलातॉस ने अनुमति दे दी कि उनकी माँग पूरी की जाए 25 और उसने उस व्यक्ति को मुक्त कर दिया, जिसे विद्रोह तथा हत्या के अपराधों में बन्दी बनाया गया था, जिसे छोड़ देने की उन्होंने माँग की थी और उसने मसीह येशु को भीड़ की इच्छानुसार उन्हें ही सौंप दिया.

क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु

(मत्ति 27:32-34; मारक 15:21-24; योहन 19:17)

26 जब सैनिक मसीह येशु को ले कर जा रहे थे, उन्होंने सायरीनवासी शिमोन को पकड़ा, जो अपने गाँव से आ रहा था. उन्होंने मसीह येशु के लिए निर्धारित क्रूस उस पर लाद दिया कि वह उसे ले कर मसीह येशु के पीछे-पीछे जाए. 27 बड़ी संख्या में लोग उनके पीछे चल रहे थे. उनमें अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के लिए विलाप कर रही थीं. 28 मुड़ कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “येरूशालेम की पुत्रियो! मेरे लिए रोना छोड़ कर स्वयं अपने लिए तथा अपनी सन्तान के लिए रोओ. 29 क्योंकि वे दिन आ रहे हैं जब लोग कहेंगे, ‘धन्य हैं वे स्त्रियाँ, जो बाँझ हैं, वे गर्भ, जिन्होंने सन्तान उत्पन्न नहीं किए और वे स्तन, जिन्होंने दूध नहीं पिलाया!’ 30 तब

“‘वे पर्वतों को सम्बोधित करके कहेंगे, “हम पर आ गिरो!”
    और पहाड़ियों से, “हमको ढाँप लो!” ’

31 क्योंकि जब वे एक हरे पेड़ के साथ इस प्रकार का व्यवहार कर रहे हैं तब क्या होगी सूखे पेड़ की दशा?”

32 अन्य दो भी, जो राजद्रोह के अपराधी थे, मसीह येशु के साथ मृत्युदण्ड के लिए ले जाए जा रहे थे. 33 जब वे कपाल नामक स्थल पर पहुँचे उन्होंने मसीह येशु तथा उन दोनों राजद्रोहियों को भी क्रूसित कर दिया—एक को मसीह येशु की दायीं ओर दूसरे को उनकी बायीं ओर. 34 मसीह येशु ने प्रार्थना की, “पिता, इनको क्षमा कर दीजिए क्योंकि इन्हें यह पता ही नहीं कि ये क्या कर रहे हैं.” उन्होंने पासा फेंक कर मसीह येशु के वस्त्र आपस में बांट लिए.

35 भीड़ खड़ी हुई यह सब देख रही थी. यहूदी राजा यह कहते हुए मसीह येशु का ठठ्ठा कर रहे थे, “इसने अन्य लोगों की रक्षा की है. यदि यह परमेश्वर का मसीह, उनका चुना हुआ है, तो अब अपनी रक्षा स्वयं कर ले.”

36 सैनिक भी उनका ठठ्ठा कर रहे थे. वे मसीह येशु के पास आ कर उन्हें घटिया दाखरस प्रस्तुत करके कह रहे थे, 37 “यदि यहूदियों के राजा हो तो स्वयं को बचा लो.”

38 क्रूस पर उनके सिर के ऊपर सूचना पत्र के रूप में यह लिखा था: यही वह यहूदियों का राजा है.

39 वहाँ लटकाए गए राजद्रोहियों में से एक ने मसीह येशु पर अपशब्दों की बौछार करते हुए कहा: “अरे! क्या तुम मसीह नहीं हो? स्वयं अपने आपको बचाओ और हमको भी!”

40 किन्तु दूसरे राजद्रोही ने डपटते हुए उससे कहा, “क्या तुझे परमेश्वर का थोड़ा भी भय नहीं है? तुझे भी तो वही दण्ड दिया जा रहा है! 41 हमारे लिए तो यह दण्ड सही ही है क्योंकि हमें वही मिल रहा है, जो हमारे बुरे कामों के लिए सही है किन्तु इन्होंने तो कुछ भी गलत नहीं किया.”

42 तब मसीह येशु की ओर देखकर उसने उनसे विनती की, “आदरणीय येशु! अपने राज्य में मुझ पर दया कीजिएगा.”

43 मसीह येशु ने उसे आश्वासन दिया, “मैं तुम पर यह सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: आज ही तुम मेरे साथ स्वर्गलोक में होगे.”

मसीह येशु की मृत्यु

(मत्ति 27:45-56; मारक 15:33-41; योहन 19:28-37)

44 यह दिन का छठा घण्टा था. सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया और यह नवें घण्टे तक छाया रहा. 45 सूर्य अंधियारा हो गया, मन्दिर का परदा फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 46 मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “पिता! मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में सौंपता हूँ.” यह कहते हुए उन्होंने प्राण त्याग दिए.

47 वह सेनापति, जो यह सब देख रहा था, यह कहते हुए परमेश्वर की वन्दना करने लगा, “सचमुच यह व्यक्ति निर्दोष था.” 48 इस घटना को देखने के लिए इकट्ठा भीड़ यह सब देख विलाप करती हुई घर लौट गयी. 49 मसीह येशु के परिचित और गलील प्रदेश से मसीह येशु के साथ आई स्त्रियाँ कुछ दूर खड़ी हुई ये सब देख रही थीं.

मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना

(मत्ति 27:57-61; मारक 15:42-47; योहन 19:28-42)

50 योसेफ़ नामक एक व्यक्ति थे. वह महासभा के सदस्य, सज्जन तथा धर्मी थे. 51 वह न तो यहूदी अगुवों की योजना से और न ही उसके कामों से सहमत थे. योसेफ़ यहूदियों के एक नगर अरिमथिया के निवासी थे और वह परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे. 52 योसेफ़ ने पिलातॉस के पास जा कर विनती की कि मसीह येशु का शव उन्हें दे दिया जाए. 53 उन्होंने शव को क्रूस से उतार कर मलमल के वस्त्र में लपेटा और चट्टान में खोद कर बनाई गई एक क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया. इस क़ब्र में अब तक कोई भी शव रखा नहीं गया था. 54 यह शब्बाथ की तैयारी का दिन था. शब्बाथ प्रारम्भ होने पर ही था.

55 गलील प्रदेश से आई हुई स्त्रियाँ भी उनके साथ वहाँ गईं. उन्होंने उस क़ब्र को देखा तथा यह भी कि शव को वहाँ कैसे रखा गया था. 56 तब वे सब घर लौट गए और उन्होंने अंत्येष्टि के लिए उबटन-लेप तैयार किए. व्यवस्था के अनुसार उन्होंने शब्बाथ पर विश्राम किया; किन्तु सप्ताह के पहिले दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर क़ब्र की गुफ़ा पर आईं.

मसीह येशु का मरे हुओं में से जी उठना

(मत्ति 28:1-7; मारक 16:1-8; योहन 20:1-10)

24 सप्ताह के प्रथम दिन पौ फटते ही वे तैयार किए गए उबटन-लेपों को ले कर कन्दरा-क़ब्र पर आईं. उन्होंने क़ब्र के द्वार का पत्थर क़ब्र से लुढ़का हुआ पाया किन्तु जब उन्होंने क़ब्र की गुफ़ा में प्रवेश किया, वहाँ प्रभु मसीह येशु का शव नहीं था. जब वे इस स्थिति का निरीक्षण कर ही रही थीं, एकाएक उजले वस्त्रों में दो व्यक्ति उनके पास आ खड़े हुए. भय में डरी हुई स्त्रियों की दृष्टि भूमि की ओर ही थी कि उन्होंने स्त्रियों से प्रश्न किया, “आप लोग एक जीवित को मरे हुओं के मध्य क्यों खोज रही हैं? वह यहाँ नहीं हैं—वह दोबारा जीवित हो गए हैं. याद कीजिए जब वह आपके साथ गलील प्रदेश में थे, उन्होंने आप से क्या कहा था: ‘यह अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र कुकर्मियों के हाथों में सौंपा जाए, क्रूस पर चढ़ाया जाए और तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाए’.” अब उन्हें मसीह येशु की बातों की याद आई.

वे सभी स्त्रियाँ क़ब्र की गुफ़ा से लौट गईं और सारा हाल ग्यारह शिष्यों तथा बाकियों को सुनाया. 10 जिन स्त्रियों ने प्रेरितों को यह हाल सुनाया, वे थीं: मगदालावासी मरियम, योहान्ना तथा याक़ोब की माता मरियम तथा उनके अलावा अन्य स्त्रियाँ. 11 प्रेरितों को यह समाचार बेमतलब लगा. उन्होंने इसका विश्वास नहीं किया.

12 किन्तु पेतरॉस उठे और क़ब्र की गुफ़ा की ओर दौड़ पड़े. उन्होंने झुक कर भीतर देखा और वहाँ उन्हें वे पट्टियां, जो शव पर लपेटी गई थीं, अलग रखी हुई दिखीं. इस घटना पर अचम्भित पेतरॉस घर लौट गए.

मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना

(मारक 16:12-13)

13 उसी दिन दो शिष्य इम्माउस नामक गाँव की ओर जा रहे थे, जो येरूशालेम नगर से लगभग ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर था. 14 सारा घटनाक्रम ही उनकी आपस की बातों का विषय था. 15 जब वे विचार-विमर्श और बातचीत में मग्न ही थे, स्वयं मसीह येशु उनके पास पहुँच कर उनके साथ-साथ चलने लगे.

16 किन्तु उनकी आँखें ऐसी बंद कर दी गई थीं कि वे मसीह येशु को पहचानने न पाएँ.

17 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “आप लोग किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?” वे रुक गए. उनके मुख पर उदासी छायी हुई थी.

18 उनमें से एक ने, जिसका नाम क्लोपस था, इसके उत्तर में उनसे यह प्रश्न किया, “आप येरूशालेम में आए अकेले ऐसे परदेसी हैं कि आपको यह मालूम नहीं कि यहाँ इन दिनों में क्या-क्या हुआ है!”

19 “क्या-क्या हुआ है?” मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया.

उन्होंने उत्तर दिया, “नाज़रेथवासी मसीह येशु से सम्बन्धित घटनाएँ—मसीह येशु, जो वास्तव में परमेश्वर और सभी जनसाधारण की नज़र में और काम में सामर्थी भविष्यद्वक्ता थे. 20 उन्हें प्रधान पुरोहितों और हमारे सरदारों ने मृत्युदण्ड दिया और क्रूस पर चढ़ा दिया. 21 हमारी आशा यह थी कि मसीह येशु इस्राएल राष्ट्र को स्वतन्त्र करवा देंगे. यह आज से तीन दिन पूर्व की घटना है. 22 किन्तु हमारे समुदाय की कुछ स्त्रियों ने हमें आश्चर्य में डाल दिया है. पौ फटते ही वे क़ब्र पर गई थीं 23 किन्तु उन्हें वहाँ मसीह येशु का शव नहीं मिला. उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने वहाँ स्वर्गदूतों को देखा है; जिन्होंने उन्हें सूचना दी कि मसीह येशु जीवित हैं. 24 हमारे कुछ साथी भी क़ब्र पर गए थे और उन्होंने ठीक वैसा ही पाया जैसा स्त्रियों ने बताया था किन्तु मसीह येशु को उन्होंने नहीं देखा.”

25 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “ओ मूर्खो! भविष्यद्वक्ताओं की सब बातों पर विश्वास करने में मन्दबुद्धियो! 26 क्या मसीह के लिए यह ज़रूरी न था कि वह सभी यन्त्रणाएँ सह कर अपनी महिमा में प्रवेश करे?” 27 तब मसीह येशु ने पवित्रशास्त्र में स्वयं से सम्बन्धित उन सभी लिखी बातों का अर्थ उन्हें समझा दिया—मोशेह से प्रारम्भ कर सभी भविष्यद्वक्ताओं तक.

28 तब वे उस गाँव के पास पहुँचे, जहाँ उनको जाना था. मसीह येशु के व्यवहार से ऐसा भास हुआ मानो वह आगे बढ़ना चाह रहे हों 29 किन्तु उन शिष्यों ने विनती की, “हमारे साथ ही ठहर जाइए क्योंकि दिन ढल चला है और शाम होने को है.” इसलिए मसीह येशु उनके साथ भीतर चले गए.

30 जब वे सब भोजन के लिए बैठे, मसीह येशु ने रोटी ले कर आशीर्वाद के साथ उसे तोड़ा और उन्हें दे दिया. 31 तब उनकी आँखों को देखने लायक बना दिया गया और वे मसीह येशु को पहचान गए किन्तु उसी क्षण मसीह येशु उनकी आँखों से ओझल हो गए. 32 वे आपस में विचार करने लगे, “मार्ग में जब वह हमसे बातचीत कर रहे थे और पवित्रशास्त्र की व्याख्या कर रहे थे तो हमारे मन में उत्तेजना हुई थी न!”

33 तत्काल ही वे उठे और येरूशालेम को लौट गए. वहाँ उन्होंने ग्यारह शिष्यों और अन्यों को, जो वहाँ इकट्ठा थे, यह कहते पाया, 34 “हाँ, यह सच है! प्रभु मरे हुओं में से दोबारा जीवित हो गए हैं और शिमोन को दिखाई भी दिए हैं.” 35 तब इन दो शिष्यों ने भी मार्ग में हुई घटना का ब्यौरा सुनाया कि किस प्रकार भोजन करते समय वे मसीह येशु को पहचानने में समर्थ हो गए थे.

प्रेरितों पर मसीह येशु का स्वयं को प्रकट करना

(योहन 20:19-23)

36 जब वे इस बारे में बातें कर ही रहे थे, स्वयं मसीह येशु उनके बीच आ खड़े हुएहुए और उनसे बोला, “तुम्हें शान्ति मिले.”

37 वे अचम्भित और भयभीत हो गए और उन्हें लगा कि वे किसी प्रेत को देख रहे हैं. 38 मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम घबरा क्यों हो रहे हो? क्यों उठ रहे हैं तुम्हारे मन में ये सन्देह? 39 देखो, ये मेरे हाथ और पांव. यह मैं ही हूँ. मुझे स्पर्श करके देख लो क्योंकि प्रेत के हाड़-मांस नहीं होता, जैसा तुम देख रहे हो कि मेरे हैं.”

40 यह कह कर उन्होंने उन्हें अपने हाथ और पांव दिखाए 41 और जब वे आश्चर्य और आनन्द की स्थिति में विश्वास नहीं कर पा रहे थे, मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यहाँ कुछ भोजन है?” 42 उन्होंने मसीह येशु को भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया 43 और मसीह येशु ने उसे ले कर उनके सामने खाया.

44 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने तुम लोगों से यही कहा था: वह सब पूरा होना ज़रूरी है, जो मेरे विषय में मोशेह की व्यवस्था, भविष्यद्वक्ताओं के लेख तथा भजन की पुस्तकों में लिखा गया है.”

45 तब मसीह येशु ने उनकी समझ खोल दी कि वे पवित्रशास्त्र को समझ सकें 46 और उनसे कहा, “यह लिखा है कि मसीह यातनाएँ सहे और तीसरे दिन मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया जाए, 47 और येरूशालेम से प्रारम्भ कर सभी राष्ट्रों में उसके नाम में पाप-क्षमा के लिए पश्चाताप की घोषणा की जाए. 48 तुम सभी इन घटनाओं के गवाह हो. 49 जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, उसे मैं तुम्हारे लिए भेजूँगा किन्तु आवश्यक यह है कि तुम येरूशालेम में उस समय तक ठहरे रहो, जब तक स्वर्ग से भेजी गई सामर्थ्य से परिपूर्ण न हो जाओ.”

स्वर्ग में उठा लिया जाना

(मारक 16:19, 20)

50 तब मसीह येशु उन्हें बैथनियाह नामक गाँव तक ले गए और अपने हाथ उठा कर उन्हें आशीष दी. 51 जब वह उन्हें आशीष दे ही रहे थे वह उनसे विदा हो गए. 52 तब उन्होंने येशु की आराधना की और बहुत ही आनन्द में येरूशालेम लौट गए. 53 वे मन्दिर में नियमित रूप से परमेश्वर की स्तुति करते रहते थे.

परमेश्वर-शब्द का शरीर धारण करना

आदि में शब्द था, शब्द परमेश्वर के साथ था और शब्द परमेश्वर था. यही शब्द आदि में परमेश्वर के साथ था.

सारी सृष्टि उनके द्वारा उत्पन्न हुई. सारी सृष्टि में कुछ भी उनके बिना उत्पन्न नहीं हुआ. जीवन उन्हीं में था और वह जीवन मानवजाति की ज्योति था. वह ज्योति अन्धकार में चमकती रही. अन्धकार उस पर प्रबल न हो सका.

बपतिस्मा देने वाले योहन की गवाही.

परमेश्वर ने योहन नामक एक व्यक्ति को भेजा कि वह ज्योति को देखें और उसके गवाह बनें कि लोग उनके माध्यम से ज्योति में विश्वास करें. वह स्वयं ज्योति नहीं थे किन्तु ज्योति की गवाही देने आए थे. वह सच्ची ज्योति, जो हर एक व्यक्ति को प्रकाशित करती है, संसार में आने पर थी.

10 वह संसार में थे और संसार उन्हीं के द्वारा बनाया गया फिर भी संसार ने उन्हें न जाना. 11 वह अपनी सृष्टि में आए किन्तु उनके अपनों ने ही उन्हें ग्रहण नहीं किया 12 परन्तु जितनों ने उन्हें ग्रहण किया अर्थात् उनके नाम में विश्वास किया, उन सबको उन्होंने परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया.

13 जो न तो लहू से, न शारीरिक इच्छा से और न मानवीय इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं.

14 शब्द ने शरीर धारण कर हमारे मध्य तम्बू के समान वास किया और हमने उनकी महिमा को अपना लिया—ऐसी महिमा को, जो पिता के कारण एकलौते पुत्र की होती है—अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण.

15 उन्हें देख कर योहन ने घोषणा की, “यह वही हैं जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘वह, जो मेरे बाद आ रहे हैं, वास्तव में मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले थे.’” 16 उनकी परिपूर्णता के कारण हम सबने अनुग्रह पर अनुग्रह प्राप्त किया. 17 व्यवस्था मोशेह के द्वारा दी गयी थी, किन्तु अनुग्रह और सच्चाई मसीह येशु द्वारा आए. 18 परमेश्वर को कभी किसी ने नहीं देखा, केवल परमेश्वर-पुत्र के अलावा; जो पिता से हैं; उन्हीं ने हमें परमेश्वर से अवगत कराया.

पहला फ़सह पर्व—बपतिस्मा देने वाले योहन का जीवन-लक्ष्य

19 जब यहूदियों ने येरूशालेम से पुरोहितों और लेवियों को योहन से यह पूछने भेजा, “तुम कौन हो?” तो योहन की गवाही थी: 20 “मैं मसीह नहीं हूँ.”

21 तब उन्होंने योहन से दोबारा पूछा.

“तो क्या तुम एलियाह हो?”

योहन ने उत्तर दिया, “नहीं.”

तब उन्होंने पूछा, “क्या तुम वह भविष्यद्वक्ता हो?” योहन ने उत्तर दिया, “नहीं.”

22 इस पर उन्होंने पूछा, “तो हमें बताओ कि तुम कौन हो, तुम अपने विषय में क्या कहते हो कि हम अपने भेजने वालों को उत्तर दे सकें?” 23 इस पर योहन का उत्तर था, “भविष्यद्वक्ता यशायाह के लेख के अनुसार: मैं जंगल में वह शब्द हूँ, जो पुकार-पुकार कर कह रहा है, ‘प्रभु के लिए मार्ग बराबर करो’.”

24 ये लोग फ़रीसियों की ओर से भेजे गए थे. 25 इसके बाद उन्होंने योहन से प्रश्न किया, “जब तुम न तो मसीह हो, न भविष्यद्वक्ता एलियाह और न वह भविष्यद्वक्ता, तो तुम बपतिस्मा क्यों देते हो?”

26 योहन ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं तो जल में बपतिस्मा देता हूँ परन्तु तुम्हारे मध्य एक ऐसे हैं, जिन्हें तुम नहीं जानते. 27 यह वही हैं, जो मेरे बाद आ रहे हैं, मैं जिनकी जूती का बन्ध खोलने के योग्य भी नहीं हूँ.”

28 ये सब बैथनियाह गाँव में हुआ, जो यरदन नदी के पार था जिसमें योहन बपतिस्मा दिया करते थे.

बपतिस्मा देने वाले योहन द्वारा येशु के मसीह होने की पुष्टि

29 अगले दिन योहन ने मसीह येशु को अपनी ओर आते हुए देख कर भीड़ से कहा, “वह देखो! परमेश्वर का मेमना, जो संसार के पाप का उठानेवाला है! 30 यह वही हैं, जिनके विषय में मैंने कहा था, ‘मेरे बाद वह आ रहे हैं, जो मुझसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि वह मुझसे पहले से मौजूद हैं.’ 31 मैं भी उन्हें नहीं जानता था. मैं जल में बपतिस्मा देता हुआ इसलिए आया कि वह इस्राएल पर प्रकट हो जाएँ.” 32 इसके अतिरिक्त योहन ने यह गवाही भी दी, “मैंने स्वर्ग से आत्मा को कबूतर के समान उतरते और मसीह येशु पर ठहरते हुए देखा. 33 मैं उन्हें नहीं जानता था किन्तु परमेश्वर, जिन्होंने मुझे जल में बपतिस्मा देने के लिए भेजा, उन्हीं ने मुझे बताया, ‘जिस पर तुम आत्मा को उतरते और ठहरते हुए देखो, वही पवित्रात्मा में बपतिस्मा देंगे.’ 34 स्वयं मैंने यह देखा और मैं इसका गवाह हूँ कि यही परमेश्वर-पुत्र हैं.”

पहिले शिष्य

35 अगले दिन जब योहन अपने दो शिष्यों के साथ खड़े हुए थे, 36 उन्होंने मसीह येशु को जाते हुए देख कर कहा, “वह देखो! परमेश्वर का मेमना!”

37 यह सुनकर दोनों शिष्य मसीह येशु की ओर बढ़ने लगे. 38 मसीह येशु ने उन्हें अपने पीछे आते देख उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” उन्होंने कहा, “गुरुवर, आप कहाँ रहते हैं?”

39 मसीह येशु ने उनसे कहा, “आओ और देख लो.”

इसलिए उन्होंने जा कर मसीह येशु का घर देखा और उस दिन उन्हीं के साथ रहे. यह दिन का लगभग दसवां घण्टा था. 40 योहन की गवाही सुन कर मसीह येशु के पीछे आ रहे दो शिष्यों में एक शिमोन पेतरॉस के भाई आन्द्रेयास थे. 41 उन्होंने सबसे पहले अपने भाई शिमोन को खोजा और उन्हें सूचित किया, “हमें मसीह—परमेश्वर के अभिषिक्त—मिल गए हैं.” 42 तब आन्द्रेयास उन्हें मसीह येशु के पास लाए.

मसीह येशु ने शिमोन की ओर देख कर कहा, “तुम योहन के पुत्र शिमोन हो, तुम कैफ़स अर्थात् पेतरॉस कहलाओगे.”

43 अगले दिन गलील जाते हुए मसीह येशु की भेंट फ़िलिप्पॉस से हुई. उन्होंने उनसे कहा, “मेरे पीछे हो ले.” 44 आन्द्रेयास और शिमोन के समान फ़िलिप्पॉस भी बैथसैदा नगर के निवासी थे. 45 फ़िलिप्पॉस ने नाथानाएल को खोज कर उनसे कहा, “जिनका वर्णन व्यवस्था में मोशेह और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमें मिल गए हैं—नाज़रेथ निवासी योसेफ़ के पुत्र येशु.”

46 यह सुन नाथानाएल ने तुरन्त उनसे पूछा, “क्या नाज़रेथ से कुछ भी उत्तम निकल सकता है?”

“आकर स्वयं देख लो,” फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया.

47 मसीह येशु ने नाथानाएल को अपनी ओर आते देख उनके विषय में कहा, “देखो! एक सच्चा इस्राएली है, जिसमें कोई कपट नहीं है.”

48 नाथानाएल ने मसीह येशु से पूछा, “आप मुझे कैसे जानते हैं?” मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इससे पूर्व कि फ़िलिप्पॉस ने तुम्हें बुलाया, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा था.”

49 नाथानाएल कह उठे, “रब्बी, आप परमेश्वर-पुत्र हैं! आप इस्राएल के राजा हैं!”

50 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “क्या तुम विश्वास इसलिए करते हो कि मैंने तुम से यह कहा कि मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा? तुम इससे भी अधिक बड़े-बड़े काम देखोगे.” 51 तब उन्होंने यह भी कहा, “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: तुम स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को मनुष्य के पुत्र के लिए नीचे आते और ऊपर जाते हुए देखोगे.”

तीसरे दिन गलील प्रदेश के काना नगर में एक विवाह उत्सव था. मसीह येशु की माता वहाँ उपस्थित थीं. मसीह येशु और उनके शिष्य भी वहाँ आमन्त्रित थे. जब उत्सव में दाखरस कम पड़ने लगा तो मसीह येशु की माता ने उनसे कहा, “उनका दाखरस समाप्त हो गया है.”

इस पर मसीह येशु ने उनसे कहा, “हे स्त्री, इससे आपका और मेरा क्या सम्बन्ध? मेरा समय अभी नहीं आया है.”

उनकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुमसे कहें, वही करो.”

वहाँ यहूदी परम्परा के अनुसार शुद्ध करने के लिए जल के छः पत्थर के बर्तन रखे हुए थे. हर एक में लगभग सौ-सवा-सौ लीटर जल समाता था.

मसीह येशु ने सेवकों से कहा, “बर्तनों को जल से भर दो.” उन्होंने उन्हें मुँह तक भर दिया.

इसके बाद मसीह येशु ने उनसे कहा, “अब इसमें से थोड़ा निकाल कर समारोह-संचालक के पास ले जाओ.” उन्होंने वैसा ही किया. जब समारोह के प्रधान ने उस जल को चखा—जो वास्तव में दाखरस में बदल गया था और उसे मालूम नहीं था कि वह कहाँ से आया था, किन्तु जिन्होंने उसे निकाला था, वे जानते थे—तब समारोह के प्रधान ने वर को बुलवाया 10 और उससे कहा, “हर एक व्यक्ति पहले उत्तम दाखरस परोसता है और जब लोग पीकर तृप्त हो जाते हैं, तब मध्यम परन्तु तुमने तो उत्तम दाखरस अब तक रख छोड़ा है!”

11 यह मसीह येशु के अद्भुत चिह्नों के करने की शुरुआत थी, जो गलील प्रदेश के काना नगर में हुआ, जिसके द्वारा उन्होंने अपना प्रताप प्रकट किया तथा उनके शिष्यों ने उनमें विश्वास किया.

12 इसके बाद मसीह येशु, उनकी माता, उनके भाई तथा उनके शिष्य कुछ दिनों के लिए कफ़रनहूम नगर चले गए.

येरूशालेम मन्दिर की शुद्धि

13 जब यहूदियों का फ़सह उत्सव पास आया तो मसीह येशु अपने शिष्यों के साथ येरूशालेम गए. 14 उन्होंने मन्दिर में बैल, भेड़ और कबूतर बेचने वालों तथा साहूकारों को व्यापार करते हुए पाया. 15 इसलिए उन्होंने रस्सियों का एक कोड़ा बनाया और उन सबको बैलों और भेड़ों सहित मन्दिर से बाहर निकाल दिया और साहूकारों के सिक्के बिखेर दिए, उनकी चौकियों को उलट दिया 16 और कबूतर बेचने वालों से कहा, “इन्हें यहाँ से ले जाओ. मेरे पिता के भवन को व्यापारिक केन्द्र मत बनाओ.”

17 यह सुन शिष्यों को पवित्रशास्त्र का यह लेख याद आया: “आपके भवन की धुन में जलते जलते मैं भस्म हुआ”.[a]

18 तब यहूदियों ने मसीह येशु से कहा, “इन कामों पर अपना अधिकार प्रमाणित करने के लिए तुम हमें क्या चिह्न दिखा सकते हो?”

19 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढाह दो, इसे मैं तीन दिन में दोबारा खड़ा कर दूँगा.”

20 इस पर यहूदियों ने कहा, “इस मन्दिर के निर्माण में छियालीस वर्ष लगे हैं, क्या तुम इसे तीन दिन में खड़ा कर सकते हो?” 21 परन्तु मसीह येशु यहाँ अपने शरीर रूपी मन्दिर का वर्णन कर रहे थे. 22 इसलिए मरे हुओं में से जी उठने के बाद शिष्यों को उनका यह कथन याद आया और उन्होंने पवित्रशास्त्र और मसीह येशु द्वारा कहे गए वचन में विश्वास किया.

23 फ़सह उत्सव के समय जब मसीह येशु येरूशालेम में थे, तो उनके द्वारा किए गए अद्भुत चिह्नों को देखकर अनेक लोगों ने उनमें विश्वास किया, 24 किन्तु मसीह येशु उनके प्रति आश्वस्त नहीं थे क्योंकि वह मनुष्य के स्वभाव से परिचित थे. 25 उन्हें मनुष्य के विषय में मनुष्य की गवाही की ज़रूरत नहीं थी. वह जानते थे कि मनुष्य क्या है.

निकोदेमॉस और नया जन्म

निकोदेमॉस नामक एक फ़रीसी, जो यहूदियों के प्रधानों में से एक थे, रात के समय मसीह येशु के पास आए और उनसे कहा, “रब्बी, हम जानते हैं कि आप परमेश्वर की ओर से भेजे गए गुरु हैं क्योंकि कोई भी ये अद्भुत काम, जो आप करते हैं, नहीं कर सकता यदि परमेश्वर उसके साथ न हों.”

इस पर मसीह येशु ने कहा, “मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: बिना नया जन्म प्राप्त किए परमेश्वर के राज्य का अनुभव असम्भव है.”

निकोदेमॉस ने उनसे पूछा, “वृद्ध मनुष्य का दोबारा जन्म लेना कैसे सम्भव है, क्या वह नया जन्म लेने के लिए पुनः अपनी माता के गर्भ में प्रवेश करे?”

मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जब तक किसी का जन्म जल और आत्मा से नहीं होता, परमेश्वर के राज्य में उसका प्रवेश असम्भव है, क्योंकि मानव शरीर में जन्म मात्र शारीरिक जन्म है, जबकि आत्मा से जन्म नया जन्म है. चकित न हों कि मैंने आप से यह कहा कि मनुष्य का नया जन्म होना ज़रूरी है. जिस प्रकार वायु जिस ओर चाहती है, उस ओर बहती है. आप उसकी ध्वनि तो सुनते हैं किन्तु यह नहीं बता सकते कि वह किस ओर से आती और किस ओर जाती है. आत्मा से उत्पन्न व्यक्ति भी ऐसा ही है.”

निकोदेमॉस ने पूछा, “यह सब कैसे सम्भव है?”

10 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “इस्राएल के शिक्षक,” होकर भी आप इन बातों को नहीं समझते! 11 मैं आप पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: हम वही कहते हैं, जो हम जानते हैं और हम उसी की गवाही देते हैं, जिसे हमने देखा है, किन्तु आप हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते. 12 जब मैं आप से सांसारिक विषयों की बातें करता हूँ, आप मेरा विश्वास नहीं करते तो यदि मैं स्वर्गीय विषयों की बातें करूँ तो विश्वास कैसे करेंगे?

13 मनुष्य के पुत्र के अलावा और कोई स्वर्ग नहीं गया क्योंकि वही पहले स्वर्ग से उतरा है. 14 जिस प्रकार मोशेह ने जंगल में साँप को ऊँचा उठाया, उसी प्रकार ज़रूरी है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचा उठाया जाए. 15 कि हर एक मनुष्य उसमें विश्वास करे और अनन्त जीवन प्राप्त करे.

16 परमेश्वर ने संसार से अपने अपार प्रेम के कारण अपना एकलौता पुत्र बलिदान कर दिया कि हर एक ऐसे व्यक्ति का, जो पुत्र में विश्वास करता है, उसका विनाश न हो परन्तु वह अनन्त जीवन प्राप्त करे. 17 क्योंकि परमेश्वर ने अपने पुत्र को संसार पर दोष लगाने के लिए नहीं परन्तु संसार के उद्धार के लिए भेजा. 18 हर एक उस व्यक्ति पर, जो उनमें विश्वास करता है, उस पर कभी दोष नहीं लगाया जाता; जो विश्वास नहीं करता वह दोषी घोषित किया जा चुका है क्योंकि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र में विश्वास नहीं किया. 19 अन्तिम निर्णय का आधार यह है: ज्योति के संसार में आ जाने पर भी मनुष्यों ने ज्योति की तुलना में अन्धकार को प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे. 20 कुकर्मों में लीन व्यक्ति ज्योति से घृणा करता और ज्योति में आने से कतराता है कि कहीं उसके काम प्रकट न हो जाएँ; 21 किन्तु सच्चा व्यक्ति ज्योति के पास आता है, जिससे यह प्रकट हो जाए कि उसके काम परमेश्वर की ओर से किए गए काम हैं.

बपतिस्मा देने वाले योहन द्वारा मसीह येशु की महिमा

22 इसके बाद मसीह येशु और उनके शिष्य यहूदिया प्रदेश में आए, जहाँ वे उनके साथ रहकर बपतिस्मा देते रहे. 23 योहन भी यरदन नदी में शालीम नगर के पास एनोन नामक स्थान में बपतिस्मा देते थे क्योंकि वहाँ जल बहुत मात्रा में था. 24 इस समय तक योहन बन्दीगृह में नहीं डाले गए थे. 25 एक यहूदी ने योहन के शिष्यों से जल द्वारा शुद्धिकरण की विधि के विषय में स्पष्टीकरण चाहा. 26 शिष्यों ने योहन के पास जाकर उनसे कहा, “रब्बी, देखिए, यरदन पार वह व्यक्ति, जो आपके साथ थे और आप जिनकी गवाही देते रहे हैं, सब लोग उन्हीं के पास जा रहे हैं और वह उन्हें बपतिस्मा भी दे रहे हैं.”

27 इस पर योहन ने कहा, “कोई भी तब तक कुछ प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक उसे स्वर्ग से न दिया जाए. 28 तुम स्वयं मेरे गवाह हो कि मैंने कहा था, ‘मैं मसीह नहीं किन्तु उनके लिए पहले भेजा गया दूत हूँ’ 29 वर वही है जिसके साथ वधू है किन्तु वर के साथ उसका मित्र उसका शब्द सुन आनन्द से अत्यन्त प्रफुल्लित होता है. यही है मेरा आनन्द, जो अब पूरा हुआ है. 30 यह निश्चित है कि वह बढ़ते जाएँ और मैं घटता जाऊँ.”

31 जिनका आगमन स्वर्ग से हुआ है वही सबसे बड़ा हैं, जो पृथ्वी से है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी ही से सम्बन्धित विषयों की बातें करता है. वह, जो परमेश्वर से आए हैं, वह सबसे ऊपर हैं. 32 जो उन्होंने देखा और सुना है वह उसी की गवाही देते हैं, फिर भी कोई उनकी गवाही ग्रहण नहीं करता. 33 जिन्होंने उनकी गवाही ग्रहण की है, उन्होंने यह साबित किया है कि परमेश्वर सच्चा है. 34 वह, जिन्हें परमेश्वर ने भेजा है परमेश्वर के वचनों का प्रचार करते हैं, क्योंकि परमेश्वर उन्हें बिना किसी माप के आत्मा देते हैं. 35 पिता को पुत्र से प्रेम है और उन्होंने सब कुछ उसके हाथ में सौंप दिया है. 36 वह, जो पुत्र में विश्वास करता है, अनन्त काल के जीवन में प्रवेश कर चुका है किन्तु जो पुत्र को नहीं मानता है, वह अनन्त काल का जीवन प्राप्त नहीं करेगा परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहेगा.

शोमरोनी स्त्री और मसीह येशु

जब मसीह येशु को यह मालूम हुआ कि फ़रीसियों के मध्य उनके विषय में चर्चा हो रही है कि वह योहन से अधिक शिष्य बनाते और बपतिस्मा देते हैं; यद्यपि स्वयं मसीह येशु नहीं परन्तु उनके शिष्य बपतिस्मा देते थे, तब वह यहूदिया प्रदेश छोड़ कर पुनः गलील प्रदेश को लौटे और उन्हें शोमरोन प्रदेश में से हो कर जाना पड़ा. वह शोमरोन प्रदेश के सूख़ार नामक नगर पहुँचे. यह नगर उस भूमि के पास है, जो याक़ोब ने अपने पुत्र योसेफ़ को दी थी. याक़ोब का कुआँ भी वहीं था. यात्रा से थके मसीह येशु कुएँ के पास बैठ गए. यह लगभग छठे घण्टे का समय था.

उसी समय शोमरोनवासी एक स्त्री उस कुएँ से जल भरने आई. मसीह येशु ने उससे कहा, “मुझे पीने के लिए जल दो.” उस समय मसीह येशु के शिष्य नगर में भोजन लेने गए हुए थे.

इस पर आश्चर्य करते हुए उस शोमरोनी स्त्री ने मसीह येशु से पूछा, “आप यहूदी हो कर मुझ शोमरोनी से जल कैसे माँग रहे हैं!”—यहूदी शोमरोनवासियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखते थे.

10 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि तुम परमेश्वर के वरदान को जानतीं और यह पहचानतीं कि वह कौन है, जो तुमसे कह रहा है, ‘मुझे पीने के लिए जल दो’, तो तुम उससे मांगतीं और वह तुम्हें जीवन का जल देता.”

11 स्त्री ने कहा, “किन्तु श्रीमन, आपके पास तो जल निकालने के लिए कुछ भी नहीं है और कुआँ बहुत गहरा है; जीवन का जल आपके पास कहाँ से आया! 12 आप हमारे कुलपिता याक़ोब से बढ़कर तो हैं नहीं, जिन्होंने हमें यह कुआँ दिया, जिसमें से स्वयं उन्होंने, उनकी सन्तान ने और उनके पशुओं ने भी पिया.” 13 मसीह येशु ने कहा, “कुएँ का जल पी कर हर एक व्यक्ति फिर प्यासा होगा किन्तु जो व्यक्ति मेरा दिया हुआ जल पिएगा वह आजीवन किसी भी प्रकार से प्यासा न होगा. 14 और वह जल जो मैं उसे दूँगा, उसमें से अनन्त काल के जीवन का सोता बन कर फूट निकलेगा.”

15 यह सुनकर स्त्री ने उनसे कहा, “श्रीमन, आप मुझे भी वह जल दीजिए कि मुझे न प्यास लगे और न ही मुझे यहाँ तक जल भरने आते रहना पड़े.”

16 मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, अपने पति को यहाँ ले कर आओ.”

17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मेरे पति नहीं है.” मसीह येशु ने उससे कहा, “तुमने सच कहा कि तुम्हारा पति नहीं है. 18 सच यह है कि पाँच पति पहले ही तुम्हारे साथ रह चुके हैं और अब भी जो तुम्हारे साथ रह रहा है, तुम्हारा पति नहीं है.”

19 यह सुन स्त्री ने उनसे कहा, “श्रीमन, ऐसा लगता है कि आप भविष्यद्वक्ता हैं. 20 हमारे पूर्वज इस पर्वत पर आराधना करते थे किन्तु आप यहूदी लोग कहते हैं कि येरूशालेम ही वह स्थान है, जहाँ आराधना करना सही है.”

21 मसीह येशु ने उससे कहा, “मेरा विश्वास करो कि वह समय आ रहा है जब तुम न तो इस पर्वत पर पिता की आराधना करोगे और न येरूशालेम में. 22 तुम लोग तो उसकी आराधना करते हो जिसे तुम जानते नहीं. हम उनकी आराधना करते हैं जिन्हें हम जानते हैं 23 क्योंकि अन्ततः: उद्धार यहूदियों में से ही है. वह समय आ रहा है बल्कि आ ही गया है जब सच्चे भक्त पिता की आराधना अपनी अन्तरात्मा और सच्चाई में करेंगे क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही भक्तों की खोज में हैं. 24 परमेश्वर आत्मा हैं इसलिए आवश्यक है कि उनके भक्त अपनी आत्मा और सच्चाई में उनकी आराधना करें.”

25 स्त्री ने उनसे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह, जिन्हें ख्रिस्त कहा जाता है, आ रहे हैं. जब वह आएंगे तो सब कुछ साफ़ कर देंगे.”

26 मसीह येशु ने उससे कहा, “मैं, जो तुमसे बातें कर रहा हूँ, वही हूँ.”

आत्मिक उपज के विषय में प्रकाशन

27 तभी उनके शिष्य आ गए और मसीह येशु को एक स्त्री से बातें करते देख दंग रह गए, फिर भी किसी ने उनसे यह पूछने का साहस नहीं किया कि वह एक स्त्री से बातें क्यों कर रहे थे या उससे क्या जानना चाहते थे.

28 अपना घड़ा वहीं छोड़ वह स्त्री नगर में जा कर लोगों को बताने लगी, 29 “आओ, एक व्यक्ति को देखो, जिन्होंने मेरे जीवन की सारी बातें सुना दी हैं. कहीं यही तो मसीह नहीं!” 30 तब नगरवासी मसीह येशु को देखने वहाँ आने लगे.

31 इसी बीच शिष्यों ने मसीह येशु से विनती की, “रब्बी, कुछ खा लीजिए.”

32 मसीह येशु ने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिए ऐसा भोजन है, जिसके विषय में तुम कुछ नहीं जानते.”

33 इस पर शिष्य आपस में पूछताछ करने लगे, “कहीं कोई गुरु के लिए भोजन तो नहीं लाया?” 34 मसीह येशु ने उनसे कहा, “अपने भेजनेवाले,” “की इच्छा पूरी करना तथा उनका काम समाप्त करना ही मेरा भोजन है. 35 क्या तुम यह नहीं कहते कि कटनी में चार महिने बचे हैं? किन्तु मैं तुम से कहता हूँ कि खेतों पर दृष्टि डालो. वे कब से कटनी के लिए पक चुके हैं. 36 इकट्ठा करने वाला अपनी मज़दूरी प्राप्त कर अनन्त काल के जीवन के लिए फसल इकट्ठी कर रहा है कि किसान और इकट्ठा करनेवाला दोनों मिल कर आनन्द मनाएँ. 37 यहाँ यह कहावत ठीक बैठती है: ‘एक बोए दूसरा काटे’. 38 जिस उपज के लिए तुमने कोई परिश्रम नहीं किया, उसी को काटने मैंने तुम्हें भेजा है. परिश्रम अन्य लोगों ने किया और तुम उनके प्रतिफल में शामिल हो गए.”

शोमरोनवासियों का मसीह येशु में विश्वास करना

39 अनेक नगरवासियों ने उस स्त्री की इस गवाही के कारण मसीह येशु में विश्वास किया: “आओ, एक व्यक्ति को देखो, जिन्होंने मेरे जीवन की सारी बातें सुना दी हैं.” 40 तब शोमरोनवासियों की विनती पर मसीह येशु दो दिन तक उनके मध्य रहे 41 और उनका प्रवचन सुन कर अनेकों ने उनमें विश्वास किया.

42 उन्होंने उस स्त्री से कहा, “अब हम मात्र तुम्हारे कहने से ही इनमें विश्वास नहीं करते, हमने अब इन्हें स्वयं सुना है और जान गए हैं कि यही वास्तव में संसार के उद्धारकर्ता हैं.”

प्रचार का प्रारम्भ गलील प्रदेश से

(मत्ति 4:12-17; मारक 1:14-15; लूकॉ 4:14, 15)

43 दो दिन बाद मसीह येशु ने गलील प्रदेश की ओर प्रस्थान किया. 44 यद्यपि मसीह येशु स्वयं स्पष्ट कर चुके थे कि भविष्यद्वक्ता को अपने ही देश में सम्मान नहीं मिलता, 45 गलील प्रदेश पहुँचने पर गलीलवासियों ने उनका स्वागत किया क्योंकि वे फ़सह उत्सव के समय येरूशालेम में मसीह येशु द्वारा किए गए काम देख चुके थे.

46 मसीह येशु दोबारा गलील प्रदेश के काना नगर में आए, जहाँ उन्होंने जल को दाखरस में बदला था. कफ़रनहूम नगर में एक राजकर्मचारी था, जिसका पुत्र अस्वस्थ था. 47 यह सुन कर कि मसीह येशु यहूदिया प्रदेश से गलील में आए हुए हैं, उसने आ कर मसीह येशु से विनती की कि वह चल कर उसके पुत्र को स्वस्थ कर दें, जो मृत्यु-शय्या पर है.

48 इस पर मसीह येशु ने उसे झिड़की देते हुए कहा, “तुम लोग तो चिह्न और चमत्कार देखे बिना विश्वास ही नहीं करते!”

49 राजकर्मचारी ने उनसे दोबारा विनती की, “श्रीमन, इससे पूर्व कि मेरे बालक की मृत्यु हो, कृपया मेरे साथ चलें.”

50 मसीह येशु ने उससे कहा, “जाओ, तुम्हारा पुत्र जीवित रहेगा.” उस व्यक्ति ने मसीह येशु के वचन पर विश्वास किया और घर लौट गया. 51 जब वह मार्ग में ही था, उसके दास उसे मिल गए और उन्होंने उसे सूचना दी, “स्वामी, आपका पुत्र स्वस्थ हो गया है.” 52 “वह किस समय से स्वस्थ होने लगा था?” उसने उनसे पूछा. उन्होंने कहा, “कल लगभग सातवें घण्टे उसका ज्वर उतर गया.”

53 पिता समझ गया कि यह ठीक उसी समय हुआ जब मसीह येशु ने कहा था, “तुम्हारा पुत्र जीवित रहेगा.” इस पर उसने और उसके सारे परिवार ने मसीह येशु में विश्वास किया.

54 यह दूसरा अद्भुत चिह्न था, जो मसीह येशु ने यहूदिया प्रदेश से लौट कर गलील प्रदेश में किया.

बैथज़ादा जलाशय पर अपंग को स्वास्थ्यदान

इन बातों के पश्चात मसीह येशु यहूदियों के एक पर्व में येरूशालेम गए. येरूशालेम में भेड़-फाटक के पास एक जलाशय है, जो इब्री भाषा में बैथज़ादा कहलाता है और जिसके पाँच ओसारे हैं, उसके किनारे अंधे, अपंग और लकवे के अनेक रोगी पड़े रहते थे, जो जल के हिलने की प्रतीक्षा किया करते थे क्योंकि उनकी मान्यता थी कि परमेश्वर का स्वर्गदूत यदा-कदा वहाँ आ कर जल हिलाया करता था. जल हिलते ही, जो व्यक्ति उसमें सबसे पहिले उतरता था, स्वस्थ हो जाता था. इनमें एक व्यक्ति ऐसा था, जो अड़तीस वर्ष से रोगी था. मसीह येशु ने उसे वहाँ पड़े हुए देख और यह मालूम होने पर कि वह वहाँ बहुत समय से पड़ा हुआ है, उसके पास जा कर पूछा, “क्या तुम स्वस्थ होना चाहते हो?”

रोगी ने उत्तर दिया, “श्रीमन, ऐसा कोई नहीं, जो जल के हिलने पर मुझे जलाशय में उतारे—मेरे प्रयास के पूर्व ही कोई अन्य व्यक्ति उसमें उतर जाता है.”

मसीह येशु ने उससे कहा, “उठो, अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.” तुरन्त वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया और अपना बिछौना उठा कर चला गया.

वह शब्बाथ था. 10 अतः यहूदियों ने स्वस्थ हुए व्यक्ति से कहा, “आज शब्बाथ है. अतः तुम्हारा बिछौना उठाना उचित नहीं है.”

11 उसने कहा, “जिन्होंने मुझे स्वस्थ किया है, उन्हीं ने मुझे आज्ञा दी, ‘अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो.’”

12 उन्होंने उससे पूछा, “कौन है वह, जिसने तुमसे कहा है कि अपना बिछौना उठाओ और चलने-फिरने लगो?”

13 स्वस्थ हुआ व्यक्ति नहीं जानता था कि उसका स्वस्थ करनेवाला कौन था क्योंकि उस समय मसीह येशु भीड़ में गुम हो गए थे.

14 कुछ समय बाद मसीह येशु ने उस व्यक्ति को मन्दिर में देख उससे कहा, “देखो, तुम स्वस्थ हो गए हो, अब पाप न करना. ऐसा न हो कि तुम्हारा हाल इससे ज़्यादा बुरा हो जाए.”

मसीह येशु का परमेश्वर-पुत्र होने का दावा

15 तब उस व्यक्ति ने आ कर यहूदियों को सूचित किया कि जिन्होंने उसे स्वस्थ किया है, वह येशु हैं. 16 शब्बाथ पर मसीह येशु द्वारा यह काम किए जाने के कारण यहूदी उनको सताने लगे. 17 मसीह येशु ने स्पष्ट किया, “मेरे पिता अब तक कार्य कर रहे हैं इसलिए मैं भी काम कर रहा हूँ.” 18 परिणामस्वरूप यहूदी मसीह येशु की हत्या के लिए और भी अधिक ठन गए क्योंकि उनके अनुसार मसीह येशु शब्बाथ की विधि को तोड़ ही नहीं रहे थे बल्कि परमेश्वर को अपना पिता कह कर स्वयं को परमेश्वर के तुल्य भी दर्शा रहे थे.

19 मसीह येशु ने कहा: “मैं तुम पर एक अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ; पुत्र स्वयं कुछ नहीं कर सकता. वह वही कर सकता है, जो वह पिता को करते हुए देखता है क्योंकि जो कुछ पिता करते हैं, पुत्र भी वही करता है. 20 पिता पुत्र से प्रेम करते हैं और वह पुत्र को अपनी हर एक योजना से परिचित रखते हैं. वह इनसे भी बड़े-बड़े काम दिखाएंगे, जिन्हें देख तुम चकित हो जाओगे. 21 जिस प्रकार पिता मरे हुओं को जीवित करके जीवन प्रदान करते हैं, उसी प्रकार पुत्र भी जिसे चाहता है, जीवन प्रदान करता है. 22 पिता किसी का न्याय नहीं करते, न्याय करने का सारा अधिकार उन्होंने पुत्र को सौंप दिया है. 23 जिससे सब लोग पुत्र का वैसा ही आदर करें जैसा पिता का करते हैं. वह व्यक्ति, जो पुत्र का आदर नहीं करता, पिता का आदर भी नहीं करता, जिन्होंने पुत्र को भेजा है.

24 “मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: जो मेरा वचन सुनता और मेरे भेजनेवाले में विश्वास करता है, अनन्त काल का जीवन उसी का है; उसे दोषी नहीं ठहराया जाता, परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है. 25 मैं तुम पर यह अटल सच्चाई प्रकट कर रहा हूँ: वह समय आ रहा है परन्तु आ ही गया है, जब सारे मृतक परमेश्वर के पुत्र की आवाज़ सुनेंगे और हर एक सुननेवाला जीवन प्राप्त करेगा. 26 जिस प्रकार पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी प्रकार पुत्र में बसा हुआ जीवन पिता के द्वारा दिया गया जीवन है. 27 मनुष्य का पुत्र होने के कारण उसे न्याय करने का अधिकार भी दिया गया है.

28 “यह सब सुनकर चकित न हो क्योंकि वह समय आ रहा है, जब सभी मरे हुए लोग पुत्र की आवाज़ को सुनेंगे और वे जीवित हो जाएँगे. 29 सुकर्मी जीवन के पुनरुत्थान के लिए और कुकर्मी दण्ड के पुनरुत्थान के लिए. 30 मैं स्वयं अपनी ओर से कुछ नहीं कर सकता. मैं उनसे जैसे निर्देश प्राप्त करता हूँ, वैसा ही निर्णय देता हूँ. मेरा निर्णय सच्चा होता है क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा पूरी करने के लिए समर्पित हूँ.

मसीह येशु के गवाह

31 “यदि मैं स्वयं अपने ही विषय में गवाही दूँ तो मेरी गवाही मान्य नहीं होगी. 32 एक और हैं, जो मेरे गवाह हैं और मैं जानता हूँ कि मेरे विषय में उनकी गवाही अटल है.

33 “तुमने योहन के पास अपने लोग भेजे और योहन ने भी सच की ही गवाही दी. 34 परन्तु मुझे तो अपने विषय में किसी मनुष्य की गवाही की ज़रूरत है ही नहीं—यह सब मैं तुम्हारे उद्धार के लिए कह रहा हूँ. 35 योहन वह जलता हुआ और चमकता हुआ दीपक थे, जिनके उजाले में तुम्हें कुछ समय तक आनन्द मनाना सुखकर लगा.

36 “मेरी गवाही योहन की गवाही से अधिक बड़ी है क्योंकि पिता द्वारा मुझे सौंपे गए काम को पूरा करना ही इस सच्चाई का सबूत है कि पिता ने मुझे भेजा है. 37 इसके अतिरिक्त पिता अर्थात् स्वयं मेरे भेजने वाले ने भी मेरे विषय में गवाही दी है. तुमने न तो कभी उनकी आवाज़ सुनी है, न उनका रूप देखा है 38 और न ही उनका वचन तुम्हारे हृदय में स्थिर रह सका है क्योंकि जिसे उन्होंने भेजा है, तुम उसमें विश्वास नहीं करते. 39 तुम शास्त्रों का मनन इस विश्वास में करते हो कि उनमें अनन्त काल का जीवन बसा है. ये सभी शास्त्र मेरे ही विषय में गवाही देते हैं. 40 यह सब होने पर भी जीवन पाने के लिए तुम मेरे पास आना नहीं चाहते.

41 “मनुष्य की प्रशंसा मुझे स्वीकार नहीं 42 क्योंकि मैं तुम्हें जानता हूँ और मुझे यह भी मालूम है कि परमेश्वर का प्रेम तुम्हारे मन में है ही नहीं. 43 तुम मुझे ग्रहण नहीं करते जबकि मैं अपने पिता के नाम में आया हूँ किन्तु यदि कोई अपने ही नाम में आए तो तुम उसे ग्रहण कर लोगे. 44 तुम मुझमें विश्वास कैसे कर सकते हो यदि तुम एक दूसरे से प्रशंसा की आशा करते हो और उस प्रशंसा के लिए कोई प्रयास नहीं करते, जो एकमात्र परमेश्वर से प्राप्त होती है?

45 “यह विचार अपने मन से निकाल दो कि पिता के सामने मैं तुम पर आरोप लगाऊँगा; तुम पर दोषारोपण तो मोशेह करेंगे—मोशेह, जिन पर तुमने आशा लगा रखी है. 46 यदि तुम वास्तव में मोशेह में विश्वास करते तो मुझ में भी करते क्योंकि उन्होंने मेरे ही विषय में लिखा है. 47 जब तुम उनके लेखों का ही विश्वास नहीं करते तो मेरी बातों का विश्वास कैसे करोगे?”

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