Bible in 90 Days
पुत्र में परमेश्वर का सारा सम्वाद
1 पूर्व में परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से हमारे पूर्वजों से अनेक समय खण्डों में विभिन्न प्रकार से बातें कीं 2 किन्तु अब इस अन्तिम समय में उन्होंने हमसे अपने पुत्र के द्वारा बातें की हैं, जिन्हें परमेश्वर ने सारी सृष्टि का वारिस चुना और जिनके द्वारा उन्होंने युगों की सृष्टि की. 3 पुत्र ही परमेश्वर की महिमा का प्रकाश तथा उनके तत्व का प्रतिबिंब है. वह अपने सामर्थ्य के वचन से सारी सृष्टि को स्थिर बनाये रखता है. जब वह हमें हमारे पापों से धो चुके, वह महिमामय ऊँचे पर विराजमान परमेश्वर की दायीं ओर में बैठ गए. 4 वह स्वर्गदूतों से उतने ही उत्तम हो गए जितनी स्वर्गदूतों से उत्तम उन्हें प्रदान की गई महिमा थी.
पुत्र स्वर्गदूतों से उत्तम हैं
5 भला किस स्वर्गदूत से परमेश्वर ने कभी यह कहा:
“तुम मेरे पुत्र हो,
आज मैं तुम्हारा पिता हो गया हूँ?”
तथा यह:
“उसके लिए मैं पिता हो जाऊँगा और वह मेरा पुत्र?”
6 और तब, वह अपने पहिलौठे पुत्र को संसार के सामने प्रस्तुत करते हुए कहते हैं:
“परमेश्वर के सभी स्वर्गदूत उनके पुत्र की वन्दना करें”.
7 स्वर्गदूतों के विषय में उनका कहना है:
“वह अपने स्वर्गदूतों को हवा में और अपने सेवकों को
आग की लपटों में बदल देते हैं”.
8 किन्तु पुत्र के विषय में उनका कथन है:
“परमेश्वर! तुम्हारा सिंहासन युगानुयुग का है,
तथा तुम अपने राज्य का शासन न्याय के साथ करोगे.
9 तुमने धार्मिकता का पक्ष लिया और अधर्म से घृणा की है.
तुम्हारे साथियों में से तुम्हें चुनकर मैंने आनन्द के तेल से तुम्हारा अभिषेक किया है”.
10 और,
“प्रभु! तुमने प्रारम्भ में ही पृथ्वी की नींव रखी तथा आकाशमण्डल
तुम्हारे ही हाथों की कारीगरी है.
11 वे तो मिट जाएँगे किन्तु तुम्हारा अस्तित्व सनातन है.
वे सभी वस्त्रों जैसे पुराने हो जाएँगे.
12 तुम उन्हें चादर के समान लपेट दोगे;
उन्हें वस्त्र के समान बदल दिया जाएगा—किन्तु तुम वैसे ही रहोगे.
तुम्हारे जीवनकाल का अन्त कभी न होगा”.
13 भला किस स्वर्गदूत से परमेश्वर ने यह कहा:
मेरी दायीं ओर में बैठ जाओ,
जब तक मैं तुम्हारे शत्रुओं को तुम्हारे चरणों की चौकी न बना दूँ?
14 क्या सभी स्वर्गदूत सेवा के लिए चुनी आत्माएँ नहीं हैं कि वे उनकी सेवा करें, जो उद्धार पाने वाले हैं?
उत्तम उद्धार के प्रति चेतावनी
2 इसीलिए ज़रूरी है कि हमने जो सुना है, उस पर विशेष ध्यान दें. ऐसा न हो कि हम उससे दूर चले जाएँ. 2 क्योंकि यदि स्वर्गदूतों द्वारा दिया गया सन्देश स्थिर साबित हुआ तथा हर एक अपराध तथा अनाज्ञाकारिता ने सही न्याय-दण्ड पाया, 3 तब भला हम इतने उत्तम उद्धार की उपेक्षा करके आनेवाले दण्ड से कैसे बच सकेंगे, जिसका वर्णन सबसे पहिले स्वयं प्रभु द्वारा किया गया, इसके बाद जिसकी पुष्टि हमारे लिए उनके द्वारा की गई, जिन्होंने इसे सुना? 4 उनके अलावा परमेश्वर ने चिह्नों, चमत्कारों और विभिन्न अद्भुत कामों के द्वारा तथा अपनी इच्छानुसार दी गई पवित्रात्मा की क्षमताओं द्वारा भी इसकी पुष्टि की है.
उद्धार स्वर्गदूतों द्वारा नहीं, मसीह द्वारा लाया गया
5 परमेश्वर ने उस भावी सृष्टि को, जिसका हम वर्णन कर रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधिकार में नहीं सौंपा. 6 किसी ने इसे इस प्रकार स्पष्ट किया है:
मनुष्य है ही क्या कि आप उसको याद करें या मनुष्य की सन्तान,
जिसका आप ध्यान रखें?
7 आपने उसे सिर्फ थोड़े समय के लिए स्वर्गदूतों से थोड़ा ही नीचे रखा,
आपने उसे प्रताप और सम्मान से सुशोभित किया.
8 आपने सभी वस्तुएं उसके अधीन कर दीं.
सारी सृष्टि को उनके अधीन करते हुए परमेश्वर ने ऐसा कुछ भी न छोड़ा, जो उनके अधीन न किया गया हो; किन्तु सच्चाई यह है कि अब तक हम सभी वस्तुओं को उनके अधीन नहीं देख पा रहे.
थोड़े समय के लिए मसीह येशु को नीचे लाना
9 हाँ, हम उन्हें अवश्य देख रहे हैं, जिन्हें थोड़े समय के लिए स्वर्गदूतों से थोड़ा ही नीचे रखा गया अर्थात् मसीह येशु को, क्योंकि मृत्यु के दुःख के कारण वह महिमा तथा सम्मान से सुशोभित हुए कि परमेश्वर के अनुग्रह से वह सभी के लिए मृत्यु का स्वाद चखें.
10 यह सही ही था कि परमेश्वर, जिनके लिए तथा जिनके द्वारा हर एक वस्तु का अस्तित्व है, अनेक सन्तानों को महिमा में प्रवेश कराने के द्वारा उनके उद्धारकर्ता को दुःख उठाने के द्वारा सिद्ध बनाएँ. 11 जो पवित्र करते हैं तथा वे सभी, जो पवित्र किए जा रहे हैं, दोनों एक ही पिता की सन्तान हैं. यही कारण है कि वह उन्हें भाई कहते हुए लज्जित नहीं होते. 12 वह कहते हैं:
“मैं अपने भाइयों के सामने आपके नाम की घोषणा करूँगा,
सभा के सामने मैं आपकी वन्दना गाऊँगा.”
13 और दोबारा
“मैं उनमें भरोसा करूँगा और दोबारा
मैं और वे, जिन्हें सन्तान के रूप में परमेश्वर ने मुझे सौंपा है, यहाँ हैं.”
14 इसलिए कि सन्तान लहू और माँस की होती है, मसीह येशु भी लहू और माँस के हो गए कि मृत्यु के द्वारा वह उसे अर्थात् शैतान को, जिसमें मृत्यु का सामर्थ्य था, बलहीन कर दें 15 और वह उन सभी को स्वतन्त्र कर दें, जो मृत्यु-भय के कारण जीवन भर दासत्व के अधीन होकर रह गए थे. 16 यह तो सुनिश्चित है कि वह स्वर्गदूतों की नहीं परन्तु अब्राहाम के वंशजों की सहायता करते हैं. 17 इसलिए हर एक पक्ष में मसीह येशु का मनुष्य के समान बन जाना ज़रूरी था कि सबके पापों के लिए वह प्रायश्चित-बलि[a] होने के लिए परमेश्वर के सामने कृपालु और विश्वासयोग्य महापुरोहित बन जाएँ. 18 स्वयं उन्होंने अपनी परख के अवसर पर दुःख उठाया, इसलिए वह अब उन्हें सहायता प्रदान करने में सक्षम हैं, जिन्हें परीक्षा में डाल कर परखा जा रहा है.
मसीह येशु विश्वासयोग्य तथा करुणामय याजक
3 इसलिए स्वर्गीय बुलाहट में भागीदार पवित्र प्रियजन, मसीह येशु पर ध्यान दो, जो हमारे लिए परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार के दूत तथा महापुरोहित हैं. 2 वह अपने चुननेवाले के प्रति उसी प्रकार विश्वासयोग्य बने रहे, जिस प्रकार परमेश्वर के सारे परिवार में मोशेह. 3 मसीह येशु मोशेह की तुलना में ऊँची महिमा के योग्य पाए गए, जिस प्रकार भवन की तुलना में भवन-निर्माता. 4 हर एक भवन का निर्माण किसी न किसी के द्वारा ही किया जाता है किन्तु हर एक वस्तु के बनानेवाले परमेश्वर हैं. 5 जिन विषयों का वर्णन भविष्य में होने पर था, उनकी घोषणा करने में परमेश्वर के सारे परिवार में मोशेह एक सेवक के रूप में विश्वास-योग्य थे, 6 किन्तु मसीह एक पुत्र के रूप में अपने परिवार में विश्वासयोग्य हैं और वह परिवार हम स्वयं हैं—यदि हम दृढ़ विश्वास तथा अपने आशा के गौरव को अन्त तक दृढ़तापूर्वक थामे रहते हैं.
अविश्वास के प्रति चेतावनी
7 इसलिए ठीक जिस प्रकार पवित्रात्मा का कहना है:
“यदि आज, तुम उनकी आवाज़ सुनो,
8 तो अपने हृदय कठोर न कर लेना,
जैसा तुमने मुझे उकसाते हुए जंगल,
में परीक्षा के समय किया था.
9 वहाँ तुम्हारे पूर्वजों ने चालीस वर्षों तक,
मेरे महान कामों को देखने के बाद भी चुनौती देते हुए मुझे परखा था.
10 इसलिए मैं उस पीढ़ी से क्रोधित रहा.
मैंने उनसे कहा, ‘हमेशा ही उनका हृदय मुझ से दूर हो जाता है.
उन्हें मेरे आदेशों का कोई अहसास नहीं है.’
11 इसलिए मैंने अपने क्रोध में शपथ ली,
‘मेरे विश्राम में उनका प्रवेश कभी न होगा.’”
12 प्रियजन, सावधान रहो कि तुम्हारे समाज में किसी भी व्यक्ति का ऐसा बुरा तथा अविश्वासी हृदय न हो, जो जीवित परमेश्वर से दूर हो जाता है. 13 परन्तु जब तक वह दिन, जिसे आज कहा जाता है, हमारे सामने है, हर दिन एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, ऐसा न हो कि तुममें से कोई भी पाप के छलावे के द्वारा कठोर बन जाए. 14 यदि हम अपने पहले भरोसे को अन्त तक सुरक्षित बनाए रखते हैं, हम मसीह के सहभागी बने रहते हैं. 15 जैसा कि वर्णन किया गया है:
यदि आज तुम उनकी आवाज़ सुनो
तो अपने हृदय कठोर न कर लेना,
जैसा तुमने उस समय मुझे उकसाते हुए किया था.
16 कौन थे वे, जिन्होंने उनकी आवाज़ सुनने के बाद उन्हें उकसाया था? क्या वे सभी नहीं, जिन्हें मोशेह मिस्र देश से बाहर निकाल लाए थे? 17 और कौन थे वे, जिनसे वह चालीस वर्ष तक क्रोधित रहे? क्या वे ही नहीं, जिन्होंने पाप किया और जिनके शव जंगल में पड़े रहे? 18 और फिर कौन थे वे, जिनके सम्बन्ध में उन्होंने शपथ खाई थी कि वे लोग उनके विश्राम में प्रवेश नहीं पाएँगे? क्या ये सब वे ही नहीं थे, जिन्होंने आज्ञा नहीं मानी थी? 19 इसलिए यह स्पष्ट है कि अविश्वास के कारण वे प्रवेश नहीं पा सके.
परमेश्वर की प्रजा के लिए शब्बाथ-विश्राम
4 इसलिए हम इस विषय में विशेष सावधान रहें कि जब तक उनके विश्राम में प्रवेश की प्रतिज्ञा मान्य है, आप में से कोई भी उसमें प्रवेश से चूक न जाए. 2 हमें भी ईश्वरीय सुसमाचार उसी प्रकार सुनाया गया था जैसे उन्हें, किन्तु सुना हुआ वह ईश्वरीय सुसमाचार उनके लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने इसे विश्वास से ग्रहण नहीं किया था. 3 हमने, जिन्होंने विश्वास किया, उस विश्राम में प्रवेश पाया, ठीक जैसा उनका कहना था:
जैसे मैंने अपने क्रोध में शपथ खाई,
वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न पाएँगे,
यद्यपि उनके काम सृष्टि के प्रारम्भ से ही पूरे हो चुके थे. 4 उन्होंने सातवें दिन के सम्बन्ध में किसी स्थान पर इस प्रकार वर्णन किया था: तब सातवें दिन परमेश्वर ने अपने सभी कामों से विश्राम किया. 5 एक बार फिर इसी भाग में, वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न करेंगे.
6 इसलिए कि कुछ के लिए यह प्रवेश अब भी खुला आमन्त्रण है तथा उनके लिए भी, जिन्हें इसके पूर्व ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया तो गया किन्तु वे अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण प्रवेश न कर पाए, 7 परमेश्वर ने एक दिन दोबारा तय किया: आज. इसी दिन के विषय में एक लम्बे समय के बाद उन्होंने दाविद के मुख से यह कहा था—ठीक जैसा कि पहले भी कहा था:
यदि आज तुम उनकी आवाज़ सुनो
तो अपने हृदय कठोर न कर लेना.
8 यदि उन्हें यहोशू द्वारा विश्राम प्रदान किया गया होता तो परमेश्वर इसके बाद एक अन्य दिन का वर्णन न करते. 9 इसलिए परमेश्वर की प्रजा के लिए अब भी एक शब्बाथ का विश्राम तय है. 10 क्योंकि वह, जो परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करता है, अपने कामों से भी विश्राम करता है, जिस प्रकार स्वयं परमेश्वर ने विश्राम किया था. 11 इसलिए हम उस विश्राम में प्रवेश का पूरे साहस से प्रयास करें, कि किसी को भी उसी प्रकार अनाज्ञाकारिता का दण्ड भोगना न पड़े.
परमेश्वर का वचन तथा याजक मसीह
12 परमेश्वर का वचन जीवित, सक्रिय तथा किसी भी दोधारी तलवार से कहीं अधिक धारदार है, जो हमारे भीतर में प्रवेश कर हमारी आत्मा, प्राण, जोड़ों तथा मज्जा को भेद देता है. यह हमारे हृदय के उद्धेश्यों तथा विचारों को पहचानने में सक्षम है. 13 जिन्हें हमें हिसाब देना है, उनकी दृष्टि से कोई भी प्राणी छिपा नहीं है—सभी वस्तुएं उनके सामने साफ़ और खुली हुई हैं.
14 इसलिए कि वह, जो आकाशमण्डल में से होकर पहुँच गए, जब वह महायाजक—परमेश्वर-पुत्र, मसीह येशु—हमारी ओर हैं; हम अपने विश्वास में स्थिर बने रहें. 15 वह ऐसे महायाजक नहीं हैं, जो हमारी दुर्बलताओं में सहानुभूति न रख सकें परन्तु वह ऐसे महायाजक हैं, जो हरेक पक्ष में हमारे समान ही परखे गए फिर भी निष्पाप ही रहे; 16 इसलिए हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने निड़र होकर जाएँ कि हमें ज़रूरत के अवसर पर कृपा तथा अनुग्रह प्राप्त हो.
सबसे अच्छा महायाजक
5 हर एक महापुरोहित मनुष्यों में से चुना जाता है और मनुष्यों के ही लिए परमेश्वर से सम्बन्धित संस्कारों के लिए चुना जाता है कि पापों के लिए भेंट तथा बलि दोनों चढ़ाया करे. 2 उसमें अज्ञानों तथा भूले-भटकों के साथ नम्र व्यवहार करने की क्षमता होती है क्योंकि वह स्वयं भी निर्बलताओं के अधीन है. 3 इसीलिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह पापों के लिए बलि चढ़ाया करे—लोगों के लिए तथा स्वयं अपने लिए. 4 किसी भी व्यक्ति को यह सम्मान अपनी कोशिश से नहीं परन्तु परमेश्वर की बुलाहट द्वारा प्राप्त होती है, जैसे हारोन को.
5 इसी प्रकार मसीह ने भी महापुरोहित के पद पर बैठने के लिए स्वयं को ऊँचा नहीं किया परन्तु उन्होंने, जिन्होंने उनसे यह कहा:
“तुम मेरे पुत्र हो,
आज मैं तुम्हारा पिता हुआ हूँ”;
6 जैसा उन्होंने दूसरी जगह भी कहा है,
तुम मेलख़ीत्सेदेक की शृंखला में
एक अनन्त काल के याजक हो.
7 अपने देह में रहने के समय में उन्होंने ऊँचे शब्द में रोते हुए, आँसुओं के साथ उनके सामने प्रार्थनाएँ और विनती कीं, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकते थे. उनकी परमेश्वर में भक्ति के कारण उनकी प्रार्थनाएँ स्वीकार की गईं. 8 पुत्र होने पर भी उन्होंने अपने दुःख उठाने से आज्ञा मानने की शिक्षा ली. 9 फिर सिद्ध घोषित किए जाने के बाद वह स्वयं उन सबके लिए, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, अनन्त काल उद्धार का कारण बन गए; 10 क्योंकि वह परमेश्वर द्वारा मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला के महापुरोहित चुने गए थे.
शिक्षा में अपेक्षित प्रगति
11 हमारे पास इस विषय में कहने के लिए बहुत कुछ है तथा इसका वर्णन करना भी कठिन काम है क्योंकि तुम अपनी सुनने की क्षमता खो बैठे हो. 12 समय के अनुसार तो तुम्हें अब तक शिक्षक बन जाना चाहिए था किन्तु अब आवश्यक यह हो गया है कि कोई तुम्हें दोबारा परमेश्वर के ईश्वरीय वचनों के शुरु के सिद्धान्तों की शिक्षा दे. तुम्हें ठोस आहार नहीं, दूध की ज़रूरत हो गई है. 13 वह, जो मात्र दूध का सेवन करता है, धार्मिकता की शिक्षा से अपरिचित है, क्योंकि वह शिशु है. 14 ठोस आहार सयानों के लिए होता है, जिन्होंने लगातार अभ्यास के द्वारा अपनी ज्ञानेन्द्रियों को इसके प्रति निपुण बना लिया है कि क्या सही है और क्या गलत.
विश्वास में गिरने का जोखिम
6 इसलिए हम सिद्धता को अपना लक्ष्य बना लें, मसीह सम्बन्धित प्रारम्भिक शिक्षाओं से ऊपर उठकर परिपक्वता की ओर बढ़ें. नींव दोबारा न रखें, जो व्यर्थ की प्रथाओं से मन फिराना और परमेश्वर के प्रति विश्वास, 2 बपतिस्माओं के विषय, सिर पर हाथ रखने, मरे हुओं के जी उठने तथा अनन्त दण्ड के विषय है. 3 यदि परमेश्वर हमें आज्ञा दें तो हम ऐसा ही करेंगे.
4 जिन्होंने किसी समय सच के ज्ञान की ज्योति प्राप्त कर ली थी, जिन्होंने स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख लिया था, जो पवित्रात्मा के सहभागी हो गए थे, 5 तथा जो परमेश्वर के उत्तम वचन के, और आने वाले युग की सामर्थ का स्वाद चख लेने के बाद भी 6 परमेश्वर से दूर हो गए, उन्हें दोबारा पश्चाताप की ओर ले आना असम्भव है क्योंकि वे परमेश्वर-पुत्र को अपने लिए दोबारा क्रूस पर चढ़ाने तथा सार्वजनिक रूप से उनका ठठ्ठा करने में शामिल हो जाते हैं.
7 वह भूमि, जो वृष्टि के जल को सोख कर किसान के लिए उपयोगी उपज उत्पन्न करती है, परमेश्वर की ओर से आशीष पाती है. 8 किन्तु वही भूमि यदि कांटा और ऊंटकटारे उत्पन्न करती है तो वह किसी काम की नहीं है तथा शापित होने पर है—आग में जलाया जाना ही उसका अन्त है.
9 प्रियो, हालांकि हमने तुम्हारे सामने इस विषय को इस रीति से स्पष्ट किया है; फिर भी हम तुम्हारे लिए इससे अच्छी वस्तुओं तथा उद्धार से सम्बंधित आशीषों के प्रति आश्वस्त हैं. 10 परमेश्वर अन्यायी नहीं हैं कि उनके सम्मान के लिए तुम्हारे द्वारा पवित्र लोगों के भले के लिए किए गए—तथा अब भी किए जा रहे—भले कामों और तुम्हारे द्वारा उनके लिए अभिव्यक्त प्रेम की उपेक्षा करें. 11 हमारी यही इच्छा है कि तुममें से हर एक में ऐसा उत्साह प्रदर्शित हो कि अन्त तक तुम में आशा का पूरा निश्चय स्पष्ट दिखाई दे. 12 तुम आलसी न बनो परन्तु उन लोगों के पद-चिह्नों पर चलो, जो विश्वास तथा धीरज द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस हैं.
परमेश्वर की अटल प्रतिज्ञा
13 परमेश्वर ने जब अब्राहाम से प्रतिज्ञा की तो शपथ लेने के लिए उनके सामने स्वयं से बड़ा और कोई न था, इसलिए उन्होंने अपने ही नाम से यह शपथ ली: 14 “निश्चयत: मैं तुम्हें आशीष दूँगा तथा तुम्हारे वंश को बढ़ाता जाऊँगा!” 15 इसलिए अब्राहाम धीरज रखकर प्रतीक्षा करते रहे तथा उन्हें वह प्राप्त हुआ, जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी.
16 मनुष्य तो स्वयं से बड़े व्यक्ति की शपथ लेता है; तब दोनों पक्षों के लिए पुष्टि के रूप में ली गई शपथ सभी झगड़ों का अन्त कर देती है. 17 इसी प्रकार परमेश्वर ने इस उद्धेश्य से शपथ ली कि वह प्रतिज्ञा के वारिसों को अपने न बदलने वाले उद्धेश्य के विषय में पूरी तरह संतुष्ट करें 18 कि दो न बदलने वाली वस्तुओं द्वारा, जिनके विषय में परमेश्वर झूठे साबित हो ही नहीं सकते; हमें, जिन्होंने उनकी शरण ली है, उस आशा को सुरक्षित रखने का दृढ़ता से ढांढ़स प्राप्त हो, जो हमारे सामने प्रस्तुत की गई है. 19 यही आशा हमारे प्राण का लंगर है—स्थिर तथा दृढ़—जो उस पर्दे के भीतर पहुंचता भी है, 20 जहाँ मसीह येशु ने अगुवा होकर हमारे लिए मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में होकर एक अनन्त काल का महापुरोहित बन कर प्रवेश किया.
याजक मेलख़ीत्सेदेक
7 परमप्रधान परमेश्वर के पुरोहित शालेम नगर के राजा मेलख़ीत्सेदेक ने अब्राहाम से उस समय भेंट की और उन्हें आशीष दी, जब अब्राहाम राजाओं को हरा कर के लौट रहे थे. 2 उन्हें अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्त हुई सामग्री का दसवां अंश भेंट किया. मेलख़ीत्सेदेक नाम का प्राथमिक अर्थ है धार्मिकता के राजा तथा दूसरा अर्थ होगा शान्ति के राजा क्योंकि वह शालेम नगर के राजा थे. 3 किसी को भी मेलख़ीत्सेदेक की वंशावली के विषय में कुछ भी मालूम नहीं है जिसका न पिता न माता न वंशावली है, जिसके न दिनों का आदि है और न जीवन का अंत है, परमेश्वर के पुत्र के समान वह अनन्त काल के पुरोहित हैं.
4 अब विचार करो कि कैसे महान थे यह व्यक्ति, जिन्हें हमारे कुलपिता अब्राहाम ने युद्ध में प्राप्त हुई वस्तुओं का सबसे अच्छा दसवां अंश भेंट किया! 5 मोशेह के द्वारा प्रस्तुत व्यवस्था में लेवी के वंशजों के लिए, जो याजक के पद पर चुने गए हैं, यह आज्ञा है कि वे सब लोगों से दसवां अंश इकट्ठा करें अर्थात् उनसे, जो उनके भाई हैं—अब्राहाम की सन्तान. 6 किन्तु उन्होंने, जिनकी वंशावली किसी को मालूम नहीं, अब्राहाम से दसवां अंश प्राप्त किया तथा उनको आशीष दी, जिनसे प्रतिज्ञाएँ की गईं थीं. 7 यह एक विवाद रहित सच है कि छोटा बड़े से आशीर्वाद प्राप्त करता है. 8 इस विशेष स्थिति में नाशमान मनुष्य दसवां अंश प्राप्त करते हैं किन्तु यहाँ इसको पानेवाले मेलख़ीत्सेदेक के विषय में यह कहा गया है कि वह जीवित हैं. 9 इसलिए यह कहा जा सकता है कि लेवी ने भी, जो दसवां अंश प्राप्त करता है, उस समय दसवां अंश दिया, जब अब्राहाम ने मेलख़ीत्सेदेक को दसवां अंश भेंट किया. 10 जब मेलख़ीत्सेदेक ने अब्राहाम से भेंट की, उस समय तो लेवी का जन्म भी नहीं हुआ था—वह अपने पूर्वज के शरीर में ही थे.
नई याजकता पहिली याजकता से उत्तम
11 अब यदि सिद्धि लैव्य याजकता के माध्यम से प्राप्त हुई—क्योंकि इसी के आधार पर लोगों ने व्यवस्था प्राप्त की थी—तब एक ऐसे याजक की क्या ज़रूरत थी, जिसका आगमन मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में हो, न कि हारोन की श्रृंखला में? 12 क्योंकि जब कभी याजक पद बदला जाता है, व्यवस्था में बदलाव भी आवश्यक हो जाता है. 13 यह सब हम उनके विषय में कह रहे हैं, जो एक दूसरे गोत्र के थे. उस गोत्र के किसी भी व्यक्ति ने वेदी पर याजक के रूप में सेवा नहीं की. 14 यह तो प्रकट है कि हमारे प्रभु यहूदाह गोत्र से थे. मोशेह ने इस कुल से याजकों के होने का कहीं कोई वर्णन नहीं किया.
15 मेलख़ीत्सेदेक के समान एक अन्य याजक के आगमन से यह और भी अधिक साफ़ हो जाता है. 16 मेलख़ीत्सेदेक शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की व्यवस्था के आधार पर नहीं परन्तु एक अविनाशी जीवन की सामर्थ के आधार पर पुरोहित बने थे 17 क्योंकि इस विषय में मसीह येशु से सम्बन्धित यह पुष्टि की गई:
“तुम मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला में,
एक अनन्त काल के याजक हो.”
18 एक ओर पहिली आज्ञा का बहिष्कार उसकी दुर्बलता तथा निष्फलता के कारण कर दिया गया. 19 क्योंकि व्यवस्था सिद्धता की स्थिति लाने में असफल रहीं—दूसरी ओर अब एक उत्तम आशा का उदय हो रहा है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की उपस्थिति में पहुँचते हैं.
मसीह का याजक पद न बदलनेवाला और त्रुटिहीन
20 यह सब शपथ लिए बिना नहीं हुआ. वास्तव में पुरोहितों की नियुक्ति बिना किसी शपथ के होती थी 21 किन्तु मसीह की नियुक्ति उनकी शपथ के द्वारा हुई, जिन्होंने उनके विषय में कहा:
“प्रभु ने शपथ ली है और
वह अपना विचार परिवर्तित नहीं करेंगे:
‘तुम अनन्त काल के याजक हो.’”
22 इसका मतलब यह हुआ कि मसीह येशु एक उत्तम वाचा के जामिन बन गए हैं.
23 एक पूर्व में पुरोहितों की संख्या ज़्यादा होती थी क्योंकि हर एक याजक की मृत्यु के साथ उसकी सेवा समाप्त हो जाती थी 24 किन्तु दूसरी ओर मसीह येशु, इसलिए कि वह अनन्त काल के हैं, अपने पद पर स्थायी हैं. 25 इसलिए वह उनके उद्धार के लिए सामर्थी हैं, जो उनके माध्यम से परमेश्वर के पास आते हैं क्योंकि वह अपने विनती करने वालों के पक्ष में पिता के सामने निवेदन प्रस्तुत करने के लिए सदा-सर्वदा जीवित हैं.
26 हमारे पक्ष में सही यह था कि हमारे महायाजक पवित्र, निर्दोष, त्रुटिहीन, पापियों से अलग किए हुए तथा स्वर्ग से भी अधिक ऊँचे हों. 27 इन्हें प्रतिदिन, पहिले तो स्वयं के पापों के लिए, इसके बाद लोगों के पापों के लिए बलि भेंट करने की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि इसकी पूर्ति उन्होंने एक ही बार अपने आप को बलि के रूप में भेंटकर हमेशा के लिए कर दी. 28 व्यवस्था, महायाजकों के रूप में मनुष्यों को चुनता है, जो मानवीय दुर्बलताओं में सीमित होते हैं किन्तु शपथ के वचन ने, जो व्यवस्था के बाद प्रभावी हुई, एक पुत्र को चुना, जिन्हें अनन्त काल के लिए सिद्ध बना दिया गया.
याजक मसीह द्वारा आराधना
8 बड़ी सच्चाई यह है: हमारे महायाजक वह हैं, जो स्वर्ग में महामहिम के दायें पक्ष में बैठे हैं, 2 जो वास्तविक मन्दिर में सेवारत हैं, जिसका निर्माण किसी मानव ने नहीं, स्वयं प्रभु ने किया है.
3 हर एक महायाजक का चुनाव भेंट तथा बलि-अर्पण के लिए किया जाता है. इसलिए आवश्यक हो गया कि इस महायाजक के पास भी अर्पण के लिए कुछ हो. 4 यदि मसीह येशु पृथ्वी पर होते, वह याजक हो ही नहीं सकते थे क्योंकि यहाँ व्यवस्था के अनुसार भेंट चढ़ाने के लिए याजक हैं. 5 ये वे याजक हैं, जो स्वर्गीय वस्तुओं के प्रतिरूप तथा प्रतिबिम्ब मात्र की आराधना करते हैं, क्योंकि मोशेह को, जब वह तम्बू का निर्माण करने पर थे, परमेश्वर के द्वारा यह चेतावनी दी गई थी: यह ध्यान रखना कि तुम तम्बू का निर्माण ठीक-ठीक वैसा ही करो, जैसा तुम्हें पर्वत पर दिखाया गया था, 6 किन्तु अब मसीह येशु ने अन्य याजकों की तुलना में कहीं अधिक अच्छी सेवकाई प्राप्त कर ली है: अब वह एक उत्तम वाचा के मध्यस्थ भी हैं, जिसका आदेश उत्तम प्रतिज्ञाओं पर हुआ है.
7 यदि वह पहिली वाचा निर्दोष होती तो दूसरी की ज़रूरत ही न होती. 8 स्वयं परमेश्वर ने उस पीढ़ी को दोषी पाकर यह कहा:
“वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल
और यहूदाह के गोत्रों के साथ
एक नई वाचा बांधूंगा;
यह प्रभु का कथन है.
9 वैसी नहीं, जैसी मैंने उनके पूर्वजों से उस समय की थी,
जब मैंने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें मिस्र देश से बाहर निकाला था,
क्योंकि वे मेरी वाचा में स्थिर नहीं रहे,
इसलिए मैं उनसे दूर हो गया,
यह प्रभु का कहना है.
10 उन दिनों के बाद, इस्राएल के वंश के साथ
जो वाचा मैं स्थापित करूँगा, वह यह है,
यह प्रभु का कहना है.
मैं उनके मस्तिष्क में अपनी व्यवस्था भर दूँगा,
इसे मैं उनके हृदय पर लिख दूँगा.
मैं उनका परमेश्वर होऊँगा और वे सब मेरी प्रजा.
11 वे अपने नागरिकों को शिक्षा नहीं देंगे
और न अपने भाइयों से कहेंगे,
‘प्रभु को जानो,’ क्योंकि छोटे से लेकर बड़े
तक सभी मुझे जानेंगे.
12 उनके अपराधों के प्रति मैं दया से भरा रहूँगा तथा
मैं उनके पाप कभी भी याद न करूँगा.”
13 जब परमेश्वर एक नई वाचा का वर्णन कर रहे थे, तब उन्होंने पहिले को अनुपयोगी घोषित कर दिया. जो कुछ अनुपयोगी तथा जीर्ण हो रहा है, वह नष्ट होने पर है.
पूर्वकालिक और वर्तमान
9 पहिली वाचा में भी परमेश्वर की आराधना तथा सांसारिक मन्दिर के विषय में नियम थे, 2 क्योंकि एक तम्बू बनाया गया था, जिसके बाहरी कमरे में दीपस्तम्भ, चौकी तथा पवित्र रोटी रखी जाती थी. यह तम्बू पवित्र स्थान कहलाता था. 3 दूसरे पर्दे से आगे जो तम्बू था, वह अति पवित्र स्थान कहलाता था. 4 वहाँ धूप के लिए सोने की वेदी, सोने की पत्रियों से मढ़ी हुई वाचा का सन्दूक, जिसमें मन्ना से भरा सोने का बर्तन, हमेशा कोमल पत्ते लगते रहने वाली हारोन की लाठी तथा वाचा की पटियां रखे हुए थे. 5 इसके अलावा संदूक के ऊपर तेजोमय करूब करुणा आसन को ढांपे हुए थे. परन्तु अब इन सब का विस्तार से वर्णन सम्भव नहीं.
6 इन सब के ऐसे प्रबन्ध के बाद परमेश्वर की आराधना के लिए याजक हर समय बाहरी तम्बू में प्रवेश किया करते थे. 7 किन्तु दूसरे कमरे में मात्र महायाजक ही लहू लेकर प्रवेश करता था और वह भी वर्ष में सिर्फ एक ही अवसर पर—स्वयं अपने लिए तथा लोगों द्वारा अनजाने में किए गए पापों के लिए—बलि-अर्पण के लिए. 8 पवित्रात्मा यह बात स्पष्ट कर रहे हैं कि जब तक बाहरी कमरा है, अति पवित्र स्थान में प्रवेश-मार्ग खुला नहीं है. 9 यह बाहरी तम्बू वर्तमान काल का प्रतीक है. सच यह है कि भेंटें तथा बलि, जो याजक के द्वारा चढ़ाई जाती हैं, आराधना करनेवालों के विवेक को निर्दोष नहीं बना देतीं. 10 ये सुधार के समय तक ही असरदार रहेंगी क्योंकि इनका सम्बन्ध सिर्फ खान-पान तथा भिन्न-भिन्न शुद्ध करने की विधियों से है—उन विधियों से, जो शरीर से सम्बन्धित हैं.
मसीह का लहू
11 किन्तु जब मसीह आने वाली अच्छी वस्तुओं के महायाजक के रूप में प्रकट हुए, उन्होंने उत्तम और सिद्ध तम्बू में से, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना अर्थात् इस सृष्टि का नहीं था, 12 बकरों और बछड़ों के नहीं परन्तु स्वयं अपने लहू के द्वारा अति पवित्र स्थान में सिर्फ एक ही प्रवेश में अनन्त छुटकारा प्राप्त किया, 13 क्योंकि यदि बकरों और बैलों का लहू तथा कलोर की राख का छिड़काव सांस्कारिक रूप से अशुद्ध हुए मनुष्यों के शरीर को शुद्ध कर सकता था 14 तो मसीह का लहू, जिन्होंने अनन्त आत्मा के माध्यम से स्वयं को परमेश्वर के सामने निर्दोष बलि के रूप में भेंट कर दिया, जीवित परमेश्वर की सेवा के लिए तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से शुद्ध कैसे न करेगा?
15 इसलिए वह एक नई वाचा के मध्यस्थ हैं कि वे सब, जिनको बुलाया गया है, प्रतिज्ञा किया हुआ अनन्त उत्तराधिकार प्राप्त कर सकें क्योंकि इस मृत्यु के द्वारा उन अपराधों का छुटकारा पूरा हो चुका है, जो उस समय किए गए थे, जब पहिली वाचा प्रभावी थी.
16 जहाँ वाचा है, वहाँ ज़रूरी है कि वाचा बाँधनेवाले की मृत्यु हो 17 क्योंकि वाचा उसके बांधनेवाले की मृत्यु के साबित होने पर ही जायज़ होती है. जब तक वह जीवित रहता है, वाचा प्रभावी हो ही नहीं सकती. 18 यही कारण है कि पहिली वाचा भी बिना लहू के प्रभावी नहीं हुई थी. 19 जब मोशेह अपने मुख से व्यवस्था के अनुसार इस्राएल को सारी आज्ञा दे चुके, उन्होंने बछड़ों और बकरों का लहू लेकर जल, लाल ऊन तथा जूफ़ा झाड़ी की छड़ी के द्वारा व्यवस्था की पुस्तक तथा इस्राएली प्रजा दोनों ही पर यह कहते हुए छिड़क दिया: 20 परमेश्वर ने तुम्हें जिस वाचा के पालन की आज्ञा दी है, यह उसी का लहू है. 21 इसी प्रकार उन्होंने तम्बू और सेवा के लिए इस्तेमाल किए सभी पात्रों पर भी लहू छिड़क दिया. 22 वस्तुत: व्यवस्था के अन्तर्गत प्रायः हर एक वस्तु लहू के छिड़काव द्वारा पवित्र की गई. बलि-लहू के बिना पाप-क्षमा सम्भव नहीं.
23 इसलिए यह ज़रूरी था कि स्वर्गीय वस्तुओं का प्रतिरूप इन्हीं के द्वारा शुद्ध किया जाए किन्तु स्वयं स्वर्गीय वस्तुएं इनकी तुलना में उत्तम बलियों द्वारा. 24 मसीह ने जिस पवित्र स्थान में प्रवेश किया, वह मनुष्य के हाथों से बना नहीं था, जो वास्तविक का प्रतिरूप मात्र हो, परन्तु स्वर्ग ही में, कि अब हमारे लिए परमेश्वर की उपस्थिति में प्रकट हों. 25 स्थिति ऐसी भी नहीं कि वह स्वयं को बलि स्वरूप बार-बार भेंट करेंगे, जैसे महापुरोहित अति पवित्र स्थान में वर्ष-प्रतिवर्ष उस बलि-लहू को लेकर प्रवेश किया करता था, जो उसका अपना लहू नहीं होता था, 26 अन्यथा मसीह को सृष्टि के प्रारम्भ से दुःख सहना आवश्यक हो जाता किन्तु अब युगों की समाप्ति पर वह मात्र एक ही बार स्वयं अपनी ही बलि के द्वारा पाप को मिटा देने के लिए प्रकट हो गए. 27 जिस प्रकार हर एक मनुष्य के लिए यह निर्धारित है कि एक बार उसकी मृत्यु हो इसके बाद न्याय, 28 उसी प्रकार मसीह येशु अनेकों के पापों के उठाने के लिए एक ही बार स्वयं को भेंट करने के बाद अब दोबारा प्रकट होंगे—पाप के उठाने के लिए नहीं परन्तु उनकी छुड़ौती के लिए जो उनके इंतज़ार में हैं.
मसीह की बलि—एक पर्याप्त बलि
10 व्यवस्था में आनेवाली उत्तम वस्तुओं की छाया मात्र है न कि उनका असली रूप; इसलिए वर्ष-प्रतिवर्ष, निरन्तर रूप से बलिदान के द्वारा यह आराधकों को सिद्ध कभी नहीं बना 2 सकता—नहीं तो बलियों का भेंट किया जाना समाप्त न हो जाता? क्योंकि एक बार शुद्ध हो जाने के बाद आराधकों में पाप का अहसास ही न रह जाता 3 वस्तुत: इन बलियों के द्वारा वर्ष-प्रतिवर्ष पाप को याद किया जाता है, 4 क्योंकि यह असम्भव है कि बैलों और बकरों का बलि-लहू पापों को हर ले. 5 इसलिए जब वह संसार में आए, उन्होंने कहा:
“बलि और भेंट की आपने इच्छा नहीं की,
परन्तु एक शरीर की, जो आपने मेरे लिए तैयार की है.
6 आप हवन बलि और पाप के लिए भेंट की गई बलियों से
संतुष्ट नहीं हुए.
7 तब मैंने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ.
पवित्रशास्त्र में यह मेरा ही वर्णन है.’”
8 उपरोक्त कथन के बाद उन्होंने पहले कहा: बलि तथा भेंटें, हवन-बलियों तथा पापबलियों की आपने इच्छा नहीं की और न आप उनसे संतुष्ट हुए. ये व्यवस्था के अनुसार ही भेंट किए जाते हैं. 9 तब उन्होंने कहा: लीजिए, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ. इस प्रकार वह पहिले को अस्वीकार कर द्वितीय को नियुक्त करते हैं. 10 इसी इच्छा के प्रभाव से हम मसीह येशु की देह-बलि के द्वारा उनके लिए अनन्त काल के लिए पाप से अलग कर दिए गए.
मसीह की बलि की क्षमता
11 हर एक याजक एक ही प्रकार की बलि दिन-प्रतिदिन भेंट किया करता है, जो पाप को हर ही नहीं सकती 12 किन्तु जब मसीह येशु पापों के लिए एक ही बार सदा-सर्वदा के लिए मात्र एक बलि भेंट कर चुके, वह परमेश्वर के दायें पक्ष में बैठ गए. 13 तब वहाँ वह उस समय की प्रतीक्षा करने लगे कि कब उनके शत्रु उनके अधीन बना दिए जाएँगे 14 क्योंकि एक ही बलि के द्वारा उन्होंने उन्हें सर्वदा के लिए सिद्ध बना दिया, जो उनके लिए अलग किए गए हैं.
15 पवित्रात्मा भी, जब वह यह कह चुके, यह गवाही देते हैं:
16 मैं उनके साथ यह वाचा बांधूंगा—यह प्रभु का कथन है—उन दिनों के बाद
मैं अपना नियम उनके हृदय में लिखूँगा
और उनके मस्तिष्क पर अंकित कर दूँगा.
17 वह आगे कहते हैं:
उनके पाप और उनके अधर्म के कामों को
मैं इसके बाद याद न रखूंगा.
18 जहाँ इन विषयों के लिए पाप की क्षमा है, वहाँ पाप के लिए किसी भी बलि की ज़रूरत नहीं रह जाती.
निरन्तर प्रयास की बुलाहट
19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.
विश्वास की शिक्षा को त्यागने के दुष्परिणाम
26 यदि सत्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी हम जानबूझकर पाप करते जाएँ तो पाप के लिए कोई भी बलि बाकी नहीं रह जाती; 27 सिवाय न्याय-दण्ड की भयावह प्रतीक्षा तथा आग के क्रोध के, जो सभी विरोधियों को चट कर जाएगा.
28 जो कोई मोशेह की व्यवस्था की अवहेलना करता है, उसे दो या तीन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के आधार पर, बिना किसी कृपा के, मृत्युदण्ड दे दिया जाता है. 29 उस व्यक्ति के दण्ड की कठोरता के विषय में विचार करो, जिसने परमेश्वर के पुत्र को अपने पैरों से रौंदा तथा वाचा के लहू को अशुद्ध किया, जिसके द्वारा वह स्वयं अलग किया गया था तथा जिसने अनुग्रह के आत्मा का अपमान किया. 30 हम तो उन्हें जानते हैं, जिन्होंने यह धीरज दिया: बदला मैं लूँगा, यह ज़िम्मेदारी मेरी ही है तब यह भी: प्रभु ही अपनी प्रजा का न्याय करेंगे. 31 भयानक होती है जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ने की स्थिति!
लगातार प्रयास करने के उद्देश्य
32 उन प्रारम्भिक दिनों की स्थिति को याद न करो जब ज्ञानप्राप्त करने के बाद तुम कष्टों की स्थिति में संघर्ष करते रहे 33 कुछ तो सार्वजनिक रूप से उपहास पात्र बनाए जाकर निन्दा तथा कष्टों के द्वारा और कुछ इसी प्रकार के व्यवहार को सह रहे अन्य विश्वासियों का साथ देने के कारण. 34 तुमने उन पर सहानुभूति व्यक्त की, जो बन्दी बनाए गए थे तथा तुमने सम्पत्ति के छिन जाने को भी इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया कि तुम्हें यह मालूम था कि निश्चित ही उत्तम और स्थायी है तुम्हारी सम्पदा.
35 इसलिए अपने दृढ़ विश्वास से दूर न हो जाओ जिसका प्रतिफल बड़ा है. 36 इस समय ज़रूरत है धीरज की कि जब तुम परमेश्वर की इच्छा पूरी कर चुको, तुम्हें वह प्राप्त हो जाए जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी: 37 क्योंकि जल्द ही वह,
जो आनेवाला है, आ जाएगा. वह देर नहीं करेगा;
38 किन्तु जीवित वही रहेगा,
जिसने अपने विश्वास के द्वारा धार्मिकता प्राप्त की है
किन्तु यदि वह भयभीत हो पीछे हट जाए
तो उसमें मेरी प्रसन्नता न रह जाएगी.
39 हम उनमें से नहीं हैं, जो पीछे हट कर नाश हो जाते हैं परन्तु हम उनमें से हैं, जिनमें वह आत्मा का रक्षक विश्वास छिपा है.
11 और विश्वास उन तत्वों का निश्चय है, हमने जिनकी आशा की है, तथा उन तत्वों का प्रमाण है, जिन्हें हमने देखा नहीं है. 2 इसी के द्वारा प्राचीनों ने परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त की.
3 यह विश्वास ही है, जिसके द्वारा हमने यह जाना है कि परमेश्वर की आज्ञा मात्र से सारी सृष्टि अस्तित्व में आ गई. वह सब, जो दिखता है उसकी उत्पत्ति देखी हुई वस्तुओं से नहीं हुई.
प्राचीनों का अनुसरण करने योग्य विश्वास
4 यह विश्वास ही था, जिसके द्वारा हाबिल ने परमेश्वर को काइन की तुलना में बेहतर बलि भेंट की, जिसके कारण स्वयं परमेश्वर ने प्रशंसा के साथ हाबिल को धर्मी घोषित किया. परमेश्वर ने हाबिल की भेंट की प्रशंसा की. यद्यपि उनकी मृत्यु हो चुकी है, उनका यही विश्वास आज भी हमारे लिए गवाही है.
5 यह विश्वास ही था कि हनोक उठा लिए गए कि वह मृत्यु का अनुभव न करें. उन्हें फिर देखा न गया—स्वयं परमेश्वर ने ही उन्हें अपने साथ ले लिया था. उन्हें उठाए जाने के पहले उनकी प्रशंसा की गई थी कि उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न किया था.
6 विश्वास की कमी में परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि वह यह विश्वास करे कि परमेश्वर हैं और यह भी कि वह उन्हें प्रतिफल देते हैं, जो उनकी खोज करते हैं.
7 यह विश्वास ही था कि अब तक अनदेखी वस्तुओं के विषय में नोहा को परमेश्वर से चेतावनी प्राप्त हुई और नोहा ने अत्यन्त भक्ति में अपने परिवार की सुरक्षा के लिए एक विशाल जलयान का निर्माण किया तथा विश्वास के द्वारा संसार को धिक्कारा और मीरास में उस धार्मिकता को प्राप्त किया, जो विश्वास से प्राप्त होता है.
8 यह विश्वास ही था, जिसके द्वारा अब्राहाम ने परमेश्वर के बुलाने पर घर-परिवार का त्याग कर एक अन्य देश को चले जाने के लिए उनकी आज्ञा का पालन किया—वह देश, जो परमेश्वर उन्हें मीरास में देने पर थे. वह यह जाने बिना ही चल पड़े कि वह कहाँ जा रहे थे. 9 वह विश्वास के द्वारा ही उस प्रतिज्ञा किए हुए देश में परदेशी बन कर रहे, मानो विदेश में. उन्होंने इसहाक और याक़ोब के साथ तम्बुओं में निवास किया, जो उसी प्रतिज्ञा के साथ वारिस थे. 10 उनकी दृष्टि उस स्थायी नगर की ओर थी, जिसके रचने वाले और बनाने वाले परमेश्वर हैं.
11 यह विश्वास ही था कि साराह ने भी गर्भधारण की सामर्थ प्राप्त की हालांकि उनकी अवस्था इस योग्य नहीं रह गई थी. उन्होंने विश्वास किया कि परमेश्वर, जिन्होंने इसकी प्रतिज्ञा की थी, विश्वासयोग्य हैं. 12 इस कारण उस व्यक्ति के द्वारा, जो मरे हुए से थे, इतने वंशज उत्पन्न हुए, जितने आकाश में तारे तथा समुद्र के किनारे पर रेत के कण हैं.
13 विश्वास की स्थिति में ही इन सब की मृत्यु हुई, यद्यपि उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त नहीं हुई थीं, परन्तु उन्होंने उन तत्वों को दूर से पहचान कर इस अहसास के साथ उनका स्वागत किया कि वे स्वयं पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं. 14 इस प्रकार के भावों को प्रकट करने के द्वारा वे यह साफ़ कर देते हैं कि वे अपने ही देश की खोज में हैं. 15 वस्तुत:, यदि वे उस देश को याद कर रहे थे, जिससे वे निकल आए थे, तब उनके सामने वहाँ लौट जाने का सुअवसर भी होता 16 किन्तु सच्चाई यह है कि उन्हें एक बेहतर देश की इच्छा थी, जो स्वर्गीय है. इसलिए उन लोगों द्वारा परमेश्वर कहलाए जाने में परमेश्वर को किसी प्रकार की लज्जा नहीं है क्योंकि परमेश्वर ही ने उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है.
17 यह विश्वास ही था कि अब्राहाम ने, जब उन्हें परखा गया, इसहाक को बलि के लिए भेंट कर दिया. वह, जिन्होंने प्रतिज्ञाओं को प्राप्त किया था वह अपने एकलौते पुत्र को भेंट कर रहे थे. 18 यह वही थे, जिनसे कहा गया था: तुम्हारे वंश की मान्यता इसहाक द्वारा ही होगी. 19 अब्राहाम यह समझ चुके थे कि परमेश्वर में मरे हुओं को जीवित करने की सामर्थ है. एक प्रकार से उन्होंने भी इसहाक को मरे हुओं में से जीवित प्राप्त किया.
20 यह विश्वास ही था कि इसहाक ने याक़ोब तथा एसाव को उनके आनेवाले जीवन के लिए आशीर्वाद दिया.
21 यह विश्वास ही था कि याक़ोब ने अपने मरते समय योसेफ़ के दोनों पुत्रों को अपनी लाठी का सहारा ले आशीर्वाद दिया और आराधना की.
22 यह विश्वास ही था कि योसेफ़ ने अपनी मृत्यु के समय इस्राएलियों के निर्गमन जाने का वर्णन किया तथा अपनी अस्थियों के विषय में आज्ञा दीं.
23 यह विश्वास ही था कि जब मोशेह का जन्म हुआ, उनके माता-पिता ने उन्हें तीन माह तक छिपाए रखा. उन्होंने देखा कि शिशु सुन्दर है इसलिए वे राज-आज्ञा से भयभीत न हुए.
24 यह विश्वास ही था कि मोशेह ने बड़े होने पर फ़रोह की पुत्री की सन्तान कहलाना अस्वीकार कर दिया 25 और पाप के क्षण भर के सुखों के आनन्द की बजाय परमेश्वर की प्रजा के साथ दुःख सहना सही समझा. 26 उनकी दृष्टि में मसीह के लिए सही गई निन्दा मिस्र देश के भण्ड़ारों से कहीं अधिक कीमती थी क्योंकि उनकी आँखें उस ईनाम पर स्थिर थी. 27 यह विश्वास ही था कि मोशेह मिस्र देश को छोड़ कर चले गए. उन्हें फ़रोह के क्रोध का कोई भय न था. वह आगे ही बढ़ते चले गए मानो वह उन्हें देख रहे थे, जो अनदेखे हैं. 28 यह विश्वास ही था कि मोशेह ने इस्राएलियों को फ़सह-उत्सव मनाने तथा बलि लहू छिड़कने की आज्ञा दी कि वह, जो पहिलौठे पुत्रों का नाश कर रहा था, उनमें से किसी को स्पर्श न करे.
29 यह विश्वास ही था कि उन्होंने लाल सागर ऐसे पार कर लिया, मानो वे सूखी भूमि पर चल रहे हों किन्तु जब मिस्रवासियों ने वही करना चाहा तो डूब मरे.
30 यह विश्वास ही था जिसके द्वारा येरीख़ो नगर की दीवार उनके सात दिन तक परिक्रमा करने पर गिर पड़ी.
31 यह विश्वास ही था कि नगरवधू राख़ाब ने गुप्तचरों का स्वागत मैत्रीभाव में किया तथा आज्ञा न मानने वालों के साथ नाश नहीं हुई.
32 मैं और क्या कहूँ? समय की कमी मुझे आज्ञा नहीं देती कि मैं गिदौन, बाराक, शिमशोन, येफ़्ताह, दाविद, शमुएल तथा भविष्यद्वक्ताओं का वर्णन करूँ, 33 जो विश्वास से राज्यों पर विजयी हुए, जिन्होंने धार्मिकता में राज्य किया, जिन्हें प्रतिज्ञाओं का फल प्राप्त हुआ, जिन्होंने सिंहों के मुँह बान्ध दिए; 34 आग की लपटों को ठण्डा कर दिया, तलवार की धार से बच निकले; जिन्हें निर्बल से बलवन्त बना दिया गया; युद्ध में वीर साबित हुए; जिन्होंने विदेशी सेनाओं को खदेड़ दिया; 35 दोबारा जी उठने के द्वारा स्त्रियों को उनके मृतक दोबारा जीवित प्राप्त हो गए. कुछ अन्य थे, जिन्हें ताड़नाएं दी गईं और उन्होंने छुटकारा अस्वीकार कर दिया कि वे बेहतर पुनरुत्थान प्राप्त कर सकें. 36 कुछ अन्य थे, जिनकी परख उपहास, कोड़ों, बेड़ियों में जकड़े जाने और बन्दीगृह में डाले जाने के द्वारा हुई. 37 उनका पथराव किया गया, उन्हें चीर डाला गया, लालच दिया गया, तलवार से उनका वध किया गया, भेड़ों व बकरियों की खाल में मढ़ दिया गया, वे अभाव की स्थिति में थे, उन्हें यातनाएँ दी गईं तथा उनसे दुर्व्यवहार किया गया. 38 उनके लिए संसार सही स्थान साबित न हुआ. वे जंगल में, पर्वतों पर, गुफाओं में तथा भूमि के गड्ढों में भटकते-छिपते रहे.
39 ये सभी वे थे, जिन्होंने अपने विश्वास के द्वारा परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त किया किन्तु इन्होंने वह प्राप्त नहीं किया, जिसकी इनसे प्रतिज्ञा की गई थी 40 क्योंकि उनके लिए परमेश्वर के द्वारा कुछ बेहतर ही निर्धारित था कि हमारे साथ जुड़े बिना उन्हें सिद्धता प्राप्त न हो.
अनुसरण करने योग्य मसीह येशु
12 इसलिए जब हमारे चारों ओर गवाहों का ऐसा विशाल बादल छाया हुआ है, हम भी हर एक रुकावट तथा पाप से, जो हमें अपने फन्दे में उलझा लेता है, छूट कर अपने लिए निर्धारित दौड़ में धीरज के साथ आगे बढ़ते जाएँ, 2 हम अपनी दृष्टि मसीह येशु—हमारे विश्वास के कर्ता तथा सिद्ध करने वाले पर लगाए रहें, जिन्होंने उस आनन्द के लिए, जो उनके लिए निर्धारित किया गया था, लज्जा की चिन्ता न करते हुए क्रूस की मृत्यु सह ली और परमेश्वर के सिंहासन की दाईं ओर बैठ गए. 3 उन पर विचार करो, जिन्होंने पापियों द्वारा दिए गए घोर कष्ट इसलिए सह लिए कि तुम निराश होकर साहस न छोड़ दो.
पिता का अनुशासन
4 पाप के विरुद्ध अपने संघर्ष में तुमने अब तक उस सीमा तक प्रतिरोध नहीं किया है कि तुम्हें लहू बहाना पड़े. 5 क्या तुम उस उपदेश को भी भुला चुके हो जो तुम्हें पुत्र मान कर किया गया था:
मेरे पुत्र, प्रभु के अनुशासन को व्यर्थ न समझना
और उनकी ताड़ना से साहस न छोड़ देना
6 क्योंकि प्रभु अनुशासित उन्हें करते हैं,
जिनसे उन्हें प्रेम है तथा हर एक को,
जिसे उन्होंने पुत्र के रूप में स्वीकार किया है, ताड़ना भी देते हैं?
7 सताहट को अनुशासन समझ कर सहो. परमेश्वर का तुमसे वैसा ही व्यवहार है, जैसा पिता का अपनी सन्तान से होता है. भला कोई सन्तान ऐसी भी होती है, जिसे पिता अनुशासित न करता हो? 8 अनुशासित तो सभी किए जाते हैं किन्तु यदि तुम अनुशासित नहीं किए गए हो, तुम उनकी अपनी नहीं परन्तु अवैध सन्तान हो. 9 इसके अतिरिक्त हमें अनुशासित करने के लिए हमारे शारीरिक पिता हैं, जिनका हम सम्मान करते हैं. परन्तु क्या यह अधिक सही नहीं कि हम आत्माओं के पिता के अधीन रहकर जीवित रहें? 10 हमारे पिता, जैसा उन्हें सबसे अच्छा लगा, हमें थोड़े समय के लिए अनुशासित करते रहे किन्तु परमेश्वर हमारी भलाई के लिए हमें अनुशासित करते हैं कि हम उनकी पवित्रता में भागीदार हो जाएँ. 11 किसी भी प्रकार का अनुशासन उस समय तो आनन्दकर नहीं परन्तु दुःखकर ही प्रतीत होता है, किन्तु जो इसके द्वारा शिक्षा प्राप्त करते हैं, बाद में उनमें इससे धार्मिकता की शान्ति भरा प्रतिफल इकट्ठा किया जाता है.
12 इसलिए शिथिल होते जा रहे हाथों तथा निर्बल घुटनों को मजबूत बनाओ 13 तथा अपना मार्ग सीधा बनाओ जिससे अपंग अंग नष्ट न हों परन्तु स्वस्थ बने रहें.
परमेश्वर को अस्वीकार करने के प्रति चेतावनी
14 सभी के साथ शान्ति बनाए रखो तथा उस पवित्रता के खोजी रहो, जिसके बिना कोई भी प्रभु को देख न पाएगा. 15 ध्यान रखो कि कोई भी परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित न रह जाए. कड़वी जड़ फूटकर तुम पर कष्ट तथा अनेकों के अशुद्ध होने का कारण न बने. 16 सावधान रहो कि तुम्हारे बीच न तो कोई व्यभिचारी व्यक्ति हो और न ही एसाव के जैसा परमेश्वर का विरोधी, जिसने पहिलौठा पुत्र होने के अपने अधिकार को मात्र एक भोजन के लिए बेच दिया. 17 तुम्हें मालूम ही है कि उसके बाद जब उसने वह आशीष दोबारा प्राप्त करनी चाही, उसे अयोग्य समझा गया—आँसू बहाने पर भी वह उस आशीष को अपने पक्ष में न कर सका.
सीनय पर्वत तथा त्सियोन पर्वत
18 तुम उस पर्वत के पास नहीं आ पहुँचे, जिसे स्पर्श किया जा सके और न ही दहकती ज्वाला, अन्धकार, काली घटा और बवण्डर 19 तुरही की आवाज़ और शब्द की ऐसी ध्वनि के समीप, जिसके शब्द ऐसे थे कि जिन्होंने उसे सुना, विनती की कि अब वह उनसे और अधिक कुछ न कहे. 20 उनके लिए यह आज्ञा सहने योग्य न थी: यदि पशु भी पर्वत का स्पर्श करे तो वह पथराव द्वारा मार डाला जाए. 21 वह दृश्य ऐसा डरावना था कि मोशेह कह उठे: मैं भय से थरथरा रहा हूँ.
22 किन्तु तुम त्सियोन पर्वत के, जीवित परमेश्वर के नगर स्वर्गीय येरूशालेम के, असंख्य स्वर्गदूतों के, 23 स्वर्ग में लिखे पहलौठों की कलीसिया के, परमेश्वर के, जो सब के न्यायी हैं, सिद्ध बना दिए गए धर्मियों की आत्माओं के, 24 मसीह येशु के, जो नई वाचा के मध्यस्थ हैं तथा छिड़काव के लहू के, जो हाबिल के लहू से कहीं अधिक साफ़ बातें करता है, पास आ पहुँचे हो.
25 इसका ध्यान रहे कि तुम उनकी आज्ञा न टालो, जो तुमसे बातें कर रहे हैं. जब वे दण्ड से न बच सके, जिन्होंने उनकी आज्ञा न मानी, जिन्होंने उन्हें पृथ्वी पर चेतावनी दी थी, तब हम दण्ड से कैसे बच सकेंगे यदि हम उनकी न सुनें, जो स्वर्ग से हमें चेतावनी देते हैं? 26 उस समय तो उनकी आवाज़ ने पृथ्वी को हिला दिया था किन्तु अब उन्होंने यह कहते हुए प्रतिज्ञा की है: एक बार फिर मैं न केवल पृथ्वी परन्तु स्वर्ग को भी हिला दूँगा. 27 ये शब्द एक बार फिर उन वस्तुओं के हटाए जाने की ओर संकेत हैं, जो अस्थिर हैं अर्थात् सृष्ट वस्तुएं, कि वे वस्तुएं, जो अचल हैं, स्थायी रह सकें.
28 इसलिए जब हमने अविनाशी राज्य प्राप्त किया है, हम परमेश्वर के आभारी हों कि इस आभार के द्वारा हम परमेश्वर को सम्मान और श्रद्धा के साथ स्वीकार-योग्य आराधना भेंट कर सकें 29 इसलिए कि निस्सन्देह हमारे परमेश्वर भस्म कर देने वाली आग हैं.
आपसी प्रेम, सौहार्द व आज्ञाकारिता सम्बन्धी निर्देश
13 भाईचारे का प्रेम लगातार बना रहे. 2 अपरिचितों का अतिथि-सत्कार करना न भूलो. ऐसा करने के द्वारा कुछ ने अनजाने ही स्वर्गदूतों का अतिथि-सत्कार किया था. 3 बन्दियों के प्रति तुम्हारा व्यवहार ऐसा हो मानो तुम स्वयं उनके साथ बन्दीगृह में हो. सताए जाने वालों को न भूलना क्योंकि तुम सभी एक शरीर के अंग हो.
4 विवाह की बात सम्मानित रहे तथा विवाह का बिछौना कभी अशुद्ध न होने पाए क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों तथा परस्त्रीगामियों को दण्डित करेंगे. 5 यह ध्यान रहे कि तुम्हारा चरित्र धन के लोभ से मुक्त हो. जो कुछ तुम्हारे पास है, उसी में सन्तुष्ट रहो क्योंकि स्वयं उन्होंने कहा है:
मैं न तो तुम्हारा त्याग करूँगा
और न ही कभी तुम्हें छोड़ूँगा.
6 इसलिए हम निश्चयपूर्वक यह कहते हैं:
प्रभु मेरे सहायक हैं, मैं डरूंगा नहीं.
मनुष्य मेरा क्या कर लेगा?
7 उनको याद रखो, जो तुम्हारे अगुवे थे, जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा दी और उनके स्वभाव के परिणाम को याद करते हुए उनके विश्वास का अनुसरण करो. 8 मसीह येशु एक से हैं—कल, आज तथा युगानुयुग.
9 बदली हुई विचित्र प्रकार की शिक्षाओं के बहाव में न बह जाना. हृदय के लिए सही है कि वह अनुग्रह द्वारा दृढ़ किया जाए न कि खाने की वस्तुओं द्वारा. खान-पान सम्बन्धी प्रथाओं द्वारा किसी का भला नहीं हुआ है. 10 हमारी एक वेदी है, जिस पर से उन्हें, जो मन्दिर में सेवा करते हैं, खाने का कोई अधिकार नहीं है.
11 क्योंकि उन पशुओं का शरीर, जिनका लहू महायाजक द्वारा पापबलि के लिए पवित्र स्थान में लाया जाता है, छावनी के बाहर ही जला दिए जाते हैं. 12 मसीह येशु ने भी नगर के बाहर दुःख सहे कि वह स्वयं अपने लहू से लोगों को शुद्ध करें. 13 इसलिए हम भी उनसे भेंट करने छावनी के बाहर वैसी ही निन्दा उठाने चलें, जैसी उन्होंने उठाई 14 क्योंकि यहाँ हमारा घर स्थाई नगर में नहीं है—हम उस नगर की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो अनन्त काल का है.
15 इसलिए हम उनके द्वारा परमेश्वर को लगातार आराधना की बलि भेंट करें अर्थात् उन होठों का फल, जो उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं. 16 भलाई करना और वस्तुओं का आपस में मिलकर बाँटना समाप्त न करो क्योंकि ये ऐसी बलि हैं, जो परमेश्वर को प्रसन्न करती हैं. 17 अपने अगुवों का आज्ञापालन करो, उनके अधीन रहो. वे तुम्हारी आत्माओं के पहरेदार हैं. उन्हें तुम्हारे विषय में हिसाब देना है. उनके लिए यह काम आनन्द का विषय बना रहे न कि एक कष्टदायी बोझ. यह तुम्हारे लिए भी लाभदायक होगा.
18 हमारे लिए निरन्तर प्रार्थना करते रहो क्योंकि हमें हमारे निर्मल विवेक का निश्चय है. हमारा लगातार प्रयास यही है कि हमारा जीवन हर एक बात में आदर-योग्य हो. 19 तुमसे मेरी विशेष विनती है कि प्रार्थना करो कि मैं तुमसे भेंट करने शीघ्र आ सकूँ.
आशीर्वचन तथा नमस्कार
20 शान्ति के परमेश्वर, जिन्होंने भेड़ों के महान चरवाहे अर्थात् मसीह येशु, हमारे प्रभु को अनन्त वाचा के लहू के द्वारा मरे हुओं में से जीवित किया, 21 तुम्हें हर एक भले काम में अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए सुसज्जित करें तथा हमें मसीह येशु के द्वारा वह करने के लिए प्रेरित करें, जो उनकी दृष्टि में सुखद है. उन्हीं की महिमा हमेशा-हमेशा हो. आमेन.
22 प्रियजन, मेरी विनती है कि इस उपदेश-पत्र को धीरज से सहन करना क्योंकि यह मैंने संक्षेप में लिखा है.
23 याद रहे कि हमारे भाई तिमोथियॉस को छोड़ दिया गया है. यदि वह यहाँ शीघ्र आएँ तो उनके साथ आकर मैं तुमसे भेंट कर सकूँगा.
24 अपने सभी अगुवों तथा सभी पवित्र लोगों को मेरा नमस्कार. इतालिया वासियों का तुम्हें नमस्कार.
25 तुम सब पर अनुग्रह बना रहे.
1 परमेश्वर तथा प्रभु मसीह येशु के दास याक़ोब की,
ओर से तितर-बितर हो रहे बारह कुलों को:
नमस्कार.
कसौटी—हर्ष का विषय
2 प्रियजन, जब तुम विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं का सामना करते हो तो इसे निरे हर्ष का विषय समझो 3 क्योंकि तुम जानते ही हो कि तुम्हारे विश्वास की परीक्षा से धीरज उत्पन्न होता है. 4 धीरज को अपना काम पूरा कर लेने दो कि तुम निर्दोष और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी भी प्रकार की कमी न रह जाए.
5 यदि तुममें से किसी में भी ज्ञान का अभाव है, वह परमेश्वर से विनती करे, जो तिरस्कार किए बिना सभी को उदारतापूर्वक प्रदान करते हैं और वह उसे दी जाएगी, 6 किन्तु वह बिना शंका के विश्वास से माँगे क्योंकि जो संदेह करता है, वह समुद्र की उस चंचल लहर के समान है, जो हवा के चलने से उछाली और फेंकी जाती है. 7 ऐसा व्यक्ति यह आशा बिलकुल न करे कि उसे प्रभु की ओर से कुछ प्राप्त होगा. 8 ऐसा व्यक्ति का मन तो दुविधा से ग्रस्त है—अपने सारे स्वभाव में स्थिर नहीं है.
9 दीन व्यक्ति अपने ऊँचे पद में गर्व करे 10 और धनी दीनता में. जंगली फूल के समान उसका जीवन समाप्त हो जाएगा. 11 सूर्य की तेज़ गर्मी से घास मुरझा जाती है और उसमें खिला फूल झड़ जाता है. उसकी सुन्दरता नाश हो जाती है. इसी प्रकार धनी व्यक्ति अपनी उपलब्धियों के साथ-साथ धूल में मिट जाएगा.
12 धन्य है वह व्यक्ति, जो परख-परीक्षाओं में स्थिर रहता है क्योंकि परीक्षा में खरा साबित होने पर उसे वह जीवन-मुकुट प्रदान किया जाएगा, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनके लिए की है, जो उनसे प्रेम करते हैं.
13 परीक्षा में पड़ने पर कोई भी यह न कहे: “परमेश्वर मुझे परीक्षा में डाल रहे हैं”, क्योंकि न तो परमेश्वर को किसी परीक्षा में डाला जा सकता है और न ही वह स्वयं किसी को परीक्षा में डालते हैं. 14 हर एक व्यक्ति स्वयं अपनी ही अभिलाषा में पड़कर तथा फँसकर परीक्षा में जा पड़ता है. 15 तब अभिलाषा गर्भधारण करती है और पाप को जन्म देती है और फिर पाप बढ़ जाता है और मृत्यु उत्पन्न करता है.
16 प्रियजन, धोखे में न रहना. 17 हर एक अच्छा वरदान और निर्दोष दान ऊपर से अर्थात् ज्योतियों के पिता की ओर से आता है, जिनमें न तो कोई परिवर्तन है और न अदल-बदल. 18 उन्होंने अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कार्यान्वयन में हमें सत्य के वचन के द्वारा नया जीवन दिया है कि हम उनके द्वारा बनाए गए प्राणियों में पहिले फल के समान हों.
वास्तविक कर्तव्यनिष्ठा
19 प्रियजन, यह ध्यान रहे कि तुम सुनने में तत्पर, बोलने में धीर तथा क्रोध में धीमे हो, 20 क्योंकि मनुष्य के क्रोध के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता नहीं मिल सकती. 21 इसलिए सारी मलिनता तथा बैर-भाव का त्याग कर नम्रतापूर्वक उस वचन को ग्रहण करो, जिसे तुम्हारे हृदय में बोया गया है, जो तुम्हारे उद्धार में सामर्थी है. 22 वचन की शिक्षा पर चलने वाले बनो, न कि सिर्फ सुननेवाले, जो स्वयं को धोखे में रखते हैं 23 क्योंकि यदि कोई वचन की शिक्षा का सिर्फ सुननेवाले है किन्तु पालन नहीं करता, वह उस व्यक्ति के समान है, जो अपना मुख दर्पण में देखता है. 24 उसमें उसने स्वयं को देखा और चला गया और तुरन्त ही भूल गया कि कैसा था उसका रूप. 25 किन्तु जिसने निर्दोष व्यवस्था का गहन अध्ययन कर लिया है—जो वस्तुत: स्वतंत्रता का विधान है तथा जो उसी में स्थिर रहता है, वह व्यक्ति सुनकर भूलनेवाला नहीं परन्तु समर्थ पालन करने वाला हो जाता है. ऐसा व्यक्ति अपने हर एक काम में आशीषित होगा.
26 यदि कोई व्यक्ति अपने आप को भक्त समझता है और फिर भी अपनी जीभ पर लगाम नहीं लगाता, वह अपने मन को धोखे में रखे हुए है और उसकी भक्ति बेकार है. 27 हमारे परमेश्वर और पिता की दृष्टि में बिलकुल शुद्ध और निष्कलंक भक्ति यह है: मुसीबत में पड़े अनाथों और विधवाओं की सुधि लेना तथा स्वयं को संसार के बुरे प्रभाव से निष्कलंक रखना.
पक्षपात वर्जन
2 प्रियजन, तुम हमारे महिमामय प्रभु मसीह येशु के शिष्य हो इसलिए तुम में पक्षपात का भाव न हो. 2 तुम्हारी सभा में यदि कोई व्यक्ति सोने के छल्ले तथा ऊँचे स्तर के कपड़े पहने हुए प्रवेश करे और वहीं एक निर्धन व्यक्ति भी मैले कपड़ों में आए, 3 तुम ऊँचे स्तर के वस्त्र धारण किए हुए व्यक्ति का तो विशेष आदर करते हुए उससे कहो, “आप इस आसन पर विराजिए” तथा उस निर्धन से कहो, “तू जा कर वहाँ खड़ा रह” या “यहाँ मेरे पैरों के पास नीचे बैठ जा,” 4 क्या तुमने यहाँ भेदभाव प्रकट नहीं किया? क्या तुम बुरे विचार से न्याय करने वाले न हुए?
5 सुनो! मेरे प्रियों, क्या परमेश्वर ने संसार के निर्धनों को विश्वास में सम्पन्न होने तथा उस राज्य के वारिस होने के लिए नहीं चुन लिया, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की है, जो उनसे प्रेम करते हैं? 6 किन्तु तुमने उस निर्धन व्यक्ति का अपमान किया है. क्या धनी ही वे नहीं, जो तुम्हारा शोषण कर रहे हैं? क्या ये ही वे नहीं, जो तुम्हें न्यायालय में घसीट ले जाते हैं? 7 क्या ये ही उस सम्मान योग्य नाम की निन्दा नहीं कर रहे, जो नाम तुम्हारी पहचान है?
8 यदि तुम पवित्रशास्त्र के अनुसार इस राजसी व्यवस्था को पूरा कर रहे हो: अपने पड़ोसी से तुम इस प्रकार प्रेम करो, जिस प्रकार तुम स्वयं से करते हो, तो तुम उचित कर रहे हो. 9 किन्तु यदि तुम्हारा व्यवहार भेद-भाव से भरा है, तुम पाप कर रहे हो और व्यवस्था द्वारा दोषी ठहरते हो.
10 कारण यह है कि यदि कोई पूरी व्यवस्था का पालन करे किन्तु एक ही सूत्र में चूक जाए तो वह पूरी व्यवस्था का दोषी बन गया है 11 क्योंकि जिन्होंने यह आज्ञा दी: व्यभिचार मत करो, उन्हीं ने यह आज्ञा भी दी है: हत्या मत करो. यदि तुम व्यभिचार नहीं करते किन्तु किसी की हत्या कर देते हो, तो तुम व्यवस्था के दोषी हो गए.
12 इसलिए तुम्हारी कथनी और करनी उनके समान हो, जिनका न्याय स्वतंत्रता की व्यवस्था के अनुसार किया जाएगा. 13 जिसमें दयाभाव नहीं, उसका न्याय भी दयारहित ही होगा. दया न्याय पर जय पाती है.
विश्वास तथा अच्छे काम
14 प्रियजन, क्या लाभ है यदि कोई यह दावा करे कि उसे विश्वास है किन्तु उसका स्वभाव इसके अनुसार नहीं? क्या ऐसा विश्वास उसे उद्धार प्रदान करेगा? 15 यदि किसी के पास पर्याप्त वस्त्र न हों, उसे दैनिक भोजन की भी ज़रूरत हो 16 और तुममें से कोई उससे यह कहे, “कुशलतापूर्वक जाओ, ठण्ड़ से बचना और खा-पीकर सन्तुष्ट रहना!” जब तुम उसे उसकी ज़रूरत के अनुसार कुछ भी नहीं दे रहे तो यह कह कर तुमने उसका कौनसा भला कर दिया? 17 इसी प्रकार यदि वह विश्वास, जिसकी पुष्टि कामों के द्वारा नहीं होती, मरा हुआ है.
18 कदाचित कोई यह कहे, “चलो, विश्वास तुम्हारा और काम मेरा.”
तुम अपना विश्वास बिना काम के प्रदर्शित करो, और मैं अपना विश्वास अपने काम के द्वारा. 19 यदि तुम्हारा यह विश्वास है कि परमेश्वर एक हैं, अति उत्तम! दुष्टात्माएं भी यही विश्वास करती है और भयभीत हो काँपती हैं. 20 अरे निपट अज्ञानी! क्या अब यह भी साबित करना होगा कि काम बिना विश्वास व्यर्थ है?
अब्राहाम का आदर्श
21 क्या हमारे पूर्वज अब्राहाम को, जब वह वेदी पर इसहाक की बलि भेंट करने को थे, उनके काम के आधार पर धर्मी घोषित नहीं किया गया? 22 तुम्हीं देख लो कि उनके काम के साथ उनका विश्वास भी सक्रिय था. इसलिए उनके काम के फलस्वरूप उनका विश्वास सबसे उत्तम ठहराया गया था 23 और पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो गया: अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और उनका यह काम उनकी धार्मिकता मानी गई और वह परमेश्वर के मित्र कहलाए. 24 तुम्हीं देख लो कि व्यक्ति को उसके काम के द्वारा धर्मी माना जाता है, मात्र विश्वास के आधार पर नहीं.
25 इसी प्रकार क्या राख़ाब वेश्या को भी धर्मी न माना गया, जब उसने उन गुप्तचरों को अपने घर में शरण दी और उन्हें एक भिन्न मार्ग से वापस भेजा? 26 ठीक जैसे आत्मा के बिना शरीर मरा हुआ है, वैसे ही काम बिना विश्वास भी मरा हुआ है.
जीभ की शक्ति
3 प्रियजन, तुम में से अनेकों शिक्षक बनने को उत्सुक न हों. याद रहे कि हम शिक्षकों का न्याय कठोरता पूर्वक होगा. 2 हम सभी अनेक क्षेत्रों में चूक जाते हैं. सिद्ध है वह, जिसके वचन में कोई भूल-चूक नहीं होती. वह अपने सारे शरीर पर भी लगाम लगाने में सक्षम है.
3 घोड़े हमारे संकेतों का पालन करें, इसके लिए हम उनके मुँह में लगाम डाल देते हैं और उसी के द्वारा उनके सारे शरीर को नियन्त्रित करते हैं. 4 जलयानों को ही देख लो, हालांकि वे विशालकाय होते हैं और तेज़ हवा बहने से चलते हैं, तौभी एक छोटी-सी पतवार द्वारा चालक की इच्छा से हर दिशा में मोड़े जा सकते हैं. 5 इसी प्रकार जीभ भी शरीर का एक छोटा अंग है, फिर भी ऊंचे-ऊंचे विषयों का घमण्ड़ भरती है. कल्पना करो: एक छोटी सी चिंगारी कैसे एक विशाल वन को स्वाहा कर देती है. 6 जीभ भी आग है—सारे शरीर में अधर्म का भण्डार—एक ऐसी आग, जो हमारे सारे शरीर को अशुद्ध कर देती है. जीभ जीवन की गति को नाश करनेवाली ज्वाला में बदल सकती है तथा स्वयं नरक की आग से जलकर दहकती रहती है.
7 पशु-पक्षी, रेंगते जन्तु तथा समुद्री प्राणियों की हर एक प्रजाति वश में की जा सकती है और मानव द्वारा वश में की भी जा चुकी है 8 किन्तु जीभ को कोई भी वश में नहीं कर सकता. यह एक विद्रोही और हानिकारक है, जो प्राणनाशक विष से छलक रही है.
9 इसी जीभ से हम प्रभु और पिता परमेश्वर की वन्दना करते हैं और इसी से हम मनुष्यों को, जो परमेश्वर के स्वरूप में रचे गए हैं, शाप भी देते हैं. 10 प्रियजन, एक ही मुख से आशीर्वाद और शाप का निकलना! गलत है यह! 11 क्या जल के एक ही सोते से कड़वे और मीठे दोनों प्रकार का जल निकलना सम्भव है? 12 प्रियजन, क्या अंजीर का पेड़ ज़ैतून या दाखलता अंजीर उत्पन्न कर सकती है? वैसे ही खारे जल का सोता मीठा जल नहीं दे सकता.
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