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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
1 कोरिन्थॉस 15:1 - गलातिया 3:25

पुनरुत्थान सम्बन्धी सच्चाई

15 प्रियजन, अब मैं तुम्हें उसी ईश्वरीय सुसमाचार की दोबारा याद दिलाना चाहता हूँ, जिसका मैंने तुम्हारे बीच प्रचार किया है, जिसे तुमने ग्रहण किया, जिसमें तुम स्थिर हो और जिसके द्वारा तुम्हें उद्धार प्राप्त हुआ है—यदि तुम उस शिक्षा में, जिसका मैंने तुम्हारे बीच प्रचार किया है, स्थिर हो—नहीं तो व्यर्थ ही हुआ है तुम्हारा विश्वास करना.

मैंने तुम तक वही सच्चाई भेजी, जो सबसे महत्वपूर्ण है तथा जिसे स्वयं मैंने प्राप्त किया: पवित्रशास्त्र के अनुसार हमारे पापों के लिए मसीह ने प्राणों का त्याग किया; वह भूमि में गाड़े गए; पवित्रशास्त्र के अनुसार तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जीवित किए गए और तब कैफ़स पर, इसके बाद बारह शिष्यों पर, इसके बाद पाँच सौ से अधिक विश्वासियों पर, जिनमें से अधिकांश अभी जीवित हैं तथा कुछ लंबी नींद में सो गए हैं, प्रकट हुए. इसके बाद वह याक़ोब पर प्रकट हुए, इसके बाद सभी प्रेरितों पर और सब से अन्त में मुझ पर भी—मैं, जिसका जन्म अविकसित अवस्था में हुआ—प्रकट हुए.

मैं प्रेरितों में सबसे छोटा हूँ—प्रेरित कहलाने योग्य भी नहीं—क्योंकि मैंने परमेश्वर की कलीसिया को सताया था. 10 किन्तु आज मैं जो कुछ भी हूँ परमेश्वर के अनुग्रह से हूँ. मेरे प्रति उनका अनुग्रह व्यर्थ साबित नहीं हुआ. मैं बाकी सभी प्रेरितों की तुलना में अधिक परिश्रम करता गया, फिर भी मैं नहीं, परमेश्वर का अनुग्रह मुझ में कार्य कर रहा था. 11 प्रचार चाहे मैं करूँ या वे, सन्देश वही है, जिसमें तुमने विश्वास किया है.

मरे हुओं का पुनरुत्थान

12 अब यदि मरे हुओं में से जीवित किए गए मसीह हमारे प्रचार का विषय हैं तो क्या कारण है कि तुम में से कुछ की मान्यता यह है कि मरे हुओं का पुनरुत्थान जैसा कुछ नहीं होता? 13 यदि मरे हुओं के पुनरुत्थान जैसा कुछ न होता तो मसीह भी जीवित नहीं किए गए. 14 यदि मसीह जीवित नहीं किए गए, तो व्यर्थ है हमारा प्रचार तथा व्यर्थ है तुम्हारा विश्वास भी. 15 इससे भी बढ़कर यह कि हम परमेश्वर के झूठे गवाह प्रमाणित हो रहे हैं क्योंकि हमने उनके विषय में यह गवाही दी है कि उन्होंने मसीह को मरे हुओं में से जीवित किया; किन्तु यदि मरे हुए वास्तव में जीवित नहीं किए जाते तो परमेश्वर ने मसीह को भी जीवित नहीं किया. 16 क्योंकि यदि मरे हुए जीवित नहीं किए जाते तो मसीह भी जीवित नहीं किए गए. 17 और यदि मसीह जीवित नहीं किए गए तो तुम्हारा विश्वास व्यर्थ है और तुम अब भी अपनी पाप की अवस्था में ही हो. 18 तब तो वे, जो मसीह में सो गए हैं, नाश हो चुके. 19 यदि हमने मात्र इस शारीरिक जीवन में ही मसीह में आशा रखी है तो हम अन्य सभी मनुष्यों में सबसे अधिक दयनीय हैं.

20 किन्तु सच यही है कि मसीह मरे हुओं में से जीवित किए गए हैं—उनके पहिले फल, जो सो गए हैं. 21 जिस प्रकार एक मनुष्य के द्वारा मृत्यु का प्रवेश हुआ, उसी प्रकार एक मनुष्य के द्वारा मरे हुओं के पुनरुत्थान का प्रवेश भी हुआ. 22 जिस प्रकार आदम में सब की मृत्यु होती है, उसी प्रकार मसीह में सब जीवित भी किए जाएँगे. 23 किन्तु हर एक अपनी बारी से: पहिले फल मसीह, इसके बाद वे सब, जो मसीह के आगमन तक उनमें स्थिर बने रहेंगे. 24 तब, जब वह सारी प्रभुता, अधिकार और सामर्थ्य को नाश कर राज्य पिता परमेश्वर को सौंप देंगे, युगान्त हो जाएगा. 25 यह ज़रूरी है कि वह उस समय तक शासन करें जब तक वह अपने सभी शत्रुओं को अपने अधीन न कर दें. 26 जिस शत्रु को सबके अन्त में नष्ट किया जाएगा, वह है मृत्यु 27 क्योंकि उन्होंने सब कुछ उनके अधीन कर दिया है. किन्तु जब वह कहते हैं, “सब कुछ उनके अधीन कर दिया गया है”, यह साफ़ ही है कि परमेश्वर इसमें शामिल नहीं, जिन्होंने सब कुछ उनके अधीन कर दिया है. 28 जब सब कुछ मसीह के अधीन कर दिया गया है, तब स्वयं पुत्र भी परमेश्वर के अधीन हो जाएँगे, जिन्होंने सब कुछ पुत्र के अधीन कर दिया कि परमेश्वर ही स्वामी हों.

29 यदि पुनरुत्थान जैसा कुछ नहीं होता तो उनका क्या होगा, जो मरे हुओं के स्थान पर बपतिस्मित हो रहे हैं? यदि मृतक जीवित नहीं किए जाते तो लोग उनके लिए बपतिस्मित क्यों किए जा रहे हैं? 30 तो फिर हम क्यों हर घड़ी अपने जीवन को जोखिम में डाले फिर रहे हैं? 31 मैं हर दिन मृत्यु का सामना करता हूँ. यह मैं उस गौरव की शपथ खाकर कह रहा हूँ, जो मसीह येशु में मुझे तुम पर है. 32 इफ़ेसॉस नगर में यदि मैं जंगली पशुओं से सिर्फ मनुष्य की रीति से लड़ता तो मुझे क्या लाभ होता? यदि मरे हुए जीवित नहीं किए जाते तो, जैसी कि उक्ति है:

“आओ, हम खाएं-पिएं,
    क्योंकि कल तो हमें मरना ही है.”

33 धोखे में मत रहना: बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है. 34 सावधान हो जाओ, पाप करना छोड़ दो. यह मैं तुम्हें लज्जित करने के लिए ही कह रहा हूँ क्योंकि तुममें से कुछ तो परमेश्वर को जानते ही नहीं.

कैसा होगा पुनरुत्थान, कैसा होगा जी उठा शरीर?

35 सम्भवत: कोई यह पूछे: कैसे जीवित हो जाते हैं मुर्दे? कैसा होता है उनका शरीर? 36 मूर्खताभरा प्रश्न! तुम जो कुछ बोते हो तब तक पोषित नहीं होता, जब तक वह पहले मर न जाए. 37 तुम उस शरीर को, जो पोषित होने को है, नहीं रोपते—तुम तो सिर्फ बीज रोपते हो—चाहे गेहूं या कोई और 38 मगर परमेश्वर अपनी इच्छा के अनुसार उसे देह प्रदान करते हैं—हर एक बीज को उसकी अपनी विशेष देह. 39 सभी प्राणियों की देह अलग होती है—मनुष्य की देह एक प्रकार की, पशु की देह एक प्रकार की, पक्षी की देह तथा मछली की देह एक प्रकार की. 40 देह स्वर्गीय भी होती है और शारीरिक भी. स्वर्गीय देह का तेज अलग होता है और शारीरिक देह का अलग. 41 सूर्य का तेज एक प्रकार का होता है, चन्द्रमा का अन्य प्रकार का और तारों का अन्य प्रकार का और हर एक तारे का तेज अन्य तारे के तेज से अलग होता है.

42 मरे हुओं का जीवित होना भी ऐसा ही होता है. रोपित की जाती नाशमान देह, जीवित होती है अविनाशी देह. 43 यह रोपित की जाती है अनादर के साथ, जीवित होती है तेज में; रोपित की जाती है निर्बल देह, जीवित होती है सामर्थ्य से भरी देह. 44 रोपित की जाती है शारीरिक देह, जीवित होती है आत्मिक देह.

यदि शारीरिक देह है तो आत्मिक देह भी है. 45 जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख भी है: पहिला मानव आदम जीवित प्राणी हुआ किन्तु अन्तिम आदम जीवनदायी आत्मा हुआ. 46 फिर भी पहिला वह नहीं, जो आत्मिक है परन्तु वह, जो शारीरिक है. उसके बाद ही आत्मिक का स्थान है. 47 पहिला मानव शारीरिक था—मिट्टी का बना हुआ—दूसरा मानव स्वर्गीय. 48 शारीरिक वैसे ही हैं जैसा मिट्टी से बना मानव था तथा स्वर्गीय वैसे ही हैं जैसा वह, जो स्वर्गीय है. 49 ठीक जैसे हमें उस शारीरिक का रूप प्राप्त हुआ है, हमें उस स्वर्गीय का रूप भी प्राप्त होगा.

50 प्रियजन, शारीरिक लहू और माँस का मनुष्य परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता और न ही नाशमान अविनाशी में. 51 सुनो! मैं तुम पर एक भेद प्रकट करता हूँ: हम सभी सो नहीं जाएँगे परन्तु हम सभी का रूप बदल 52 जाएगा—क्षण भर में, पलक झपकते ही, आखिरी तुरही के स्वर पर. ज्यों ही आखिरी तुरही का स्वर होगा, मरे हुए अविनाशी दशा में जीवित किए जाएँगे और हमारा रूप बदल जाएगा. 53 यह ज़रूरी है कि नाशमान अविनाशी को धारण करे तथा मरणहार अमरता को.

विजयघोष गान. समापन

54 किन्तु जब यह नाशमान अविनाशी को तथा मरणहार अमरता को धारण कर लेगा तब पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो जाएगा:

मृत्यु विजय का निवाला बन गई.
55 मृत्यु! कहाँ है तेरी विजय?
    मृत्यु! कहाँ है तेरा ड़ंक?

56 मृत्यु का ड़ंक है पाप और पाप का बल है व्यवस्था. 57 किन्तु हम धन्यवाद करते हैं परमेश्वर का, जो हमें हमारे प्रभु मसीह येशु द्वारा विजय प्रदान करते हैं.

58 इसलिए मेरे प्रियजन, इस सच्चाई के प्रकाश में कि प्रभु में तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं है, तुम प्रभु के काम में उन्नत होते हुए हमेशा दृढ़ तथा स्थिर रहो.

सहायता के लिए धनराशि सम्बन्धी निर्देश

16 अब पवित्र लोगों की सहायता के लिए धनराशि के सम्बन्ध में: इस विषय में मैंने, जो आज्ञा गलातिया प्रदेश की कलीसियाओं को दी थी, उन्हीं आज्ञाओं का पालन तुम भी करो. सप्ताह के पहिले दिन तुममें से हर एक अपनी आय के अनुसार कुछ धनराशि अलग रख छोड़े कि मेरे वहाँ आने पर तुम्हें धन इकट्ठा न करना पड़े. जब मैं वहाँ आऊँगा तुम्हारे द्वारा चुने गए व्यक्तियों को पत्रों के साथ भेज दूँगा कि वे इकट्ठा राशि को येरूशालेम पहुँचा दें. यदि मेरा जाना भी सही हुआ तो वे मेरे साथ जा सकेंगे.

व्यक्तिगत विनती

में मकेदोनिया यात्रा के बाद तुम्हारे पास आऊँगा क्योंकि मैं मकेदोनिया यात्रा की योजना बना रहा हूँ. सम्भवत: मैं आकर तुम्हारे साथ कुछ समय व्यतीत करूँ या पूरी शीत ऋतु ही कि तुम मुझे मेरे आगे के सफर की ओर, मैं जहाँ कहीं जाऊँ, विदा कर सको. मैं नहीं चाहता कि तुमसे केवल चलते-चलते मिलूँ परन्तु मेरी आशा है कि यदि परमेश्वर चाहें तो मैं तुम्हारे साथ कुछ समय व्यतीत करूँ. मैं पेन्तेकॉस्त पर्व तक इफ़ेसॉस नगर में ही रहूँगा क्योंकि मेरे लिए वहाँ उपयोगी सेवा का द्वार खुला है. इसके अतिरिक्त वहाँ मेरे अनेक विरोधी भी हैं.

10 जब तिमोथियॉस वहाँ आए तो यह सुनिश्चित करना कि वह तुम्हारे साथ निश्चिन्त रहे क्योंकि मेरे समान वह भी प्रभु के काम में जुड़ा है. 11 ध्यान रहे कि कोई उसे तुच्छ न समझे. उसे सकुशल विदा करना कि वह मेरे पास लौट आए. मैं अन्य भाइयों के साथ उसकी प्रतीक्षा में हूँ.

12 अब हमारे भाई अपोल्लॉस के सम्बन्ध में: मैंने उनसे बार-बार विनती की कि वह अन्य भाइयों के साथ तुम्हारे पास आएँ किन्तु वह इस समय यात्रा के लिए तैयार नहीं किन्तु सही अवसर प्राप्त होते ही वह वहाँ आएंगे.

13 जागते रहो, विश्वास में स्थिर रहो, निड़र बनो, निश्चय करो 14 तथा हर एक काम प्रेमभाव में ही करो.

15 स्तेफ़ानॉस के कुटुम्बियों के विषय में तो तुम्हें मालूम ही है कि वे आख़ेया प्रदेश के पहिले फल हैं. उन्होंने स्वयं को पवित्र लोगों की सेवा के लिए समर्पित किया हुआ है. इसलिए प्रियजन, मेरी तुमसे विनती है 16 कि तुम उनका तथा ऐसे व्यक्तियों का नेतृत्व स्वीकार करो, जो मेरे काम में सहायक तथा परिश्रम करते हैं. 17 स्तेफ़ानॉस, फ़ॉरतुनातॉस तथा अखियाकॉस का यहाँ आना मेरे लिए आनन्द का विषय है. उनके कारण तुम्हारी ओर से जो कमी थी, वह पूरी हो गई. 18 उनके कारण मेरे और तुम्हारे मन में नई ताज़गी का संचार हुआ है. ऐसे व्यक्तियों को मान्यता अवश्य दी जाए.

अभिनन्दन व आशीर्वचन

19 आसिया प्रदेश की कलीसियाओं का तुम्हें नमस्कार, अकुलॉस और प्रिस्का तथा उस कलीसिया की ओर से, जो उनके घर पर आराधना के लिए इकट्ठा होती है, प्रभु में तुम्हें बहुत-बहुत नमस्कार. 20 यहाँ सभी प्रियों की ओर से तुम्हें नमस्कार. पवित्र चुम्बन के साथ एक दूसरे का नमस्कार करो.

21 मैं, पौलॉस तुम्हें अपने हाथ से यह नमस्कार लिख रहा हूँ.

22 जो कोई प्रभु से प्रेम नहीं करता, वह शापित हो. हे हमारे प्रभु आ!

23 तुम पर प्रभु मसीह येशु का अनुग्रह हो.

24 मसीह येशु में मेरा प्रेम तुम पर हमेशा रहे, आमेन.

सम्बोधन, नमस्कार तथा आभार व्यक्ति

परमेश्वर की इच्छा के द्वारा मसीह येशु के प्रेरित पौलॉस तथा हमारे भाई तिमोथियॉस.

की ओर से कोरिन्थॉस नगर में परमेश्वर की कलीसिया तथा आख़ेया प्रदेश के सभी पवित्र लोगों को:

परमेश्वर हमारे पिता तथा प्रभु मसीह येशु की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो.

सारे धीरज के परमेश्वर

स्तुति के योग्य हैं परमेश्वर हमारे प्रभु मसीह येशु के पिता—करुणा के पिता तथा सब प्रकार के धीरज के स्त्रोत परमेश्वर, जो हमारी सारी पीड़ाओं में धीरज प्रदान करते हैं कि हम पीड़ितों को उसी प्रकार धीरज प्रदान कर सकें, जिस प्रकार परमेश्वर हमें धीरज प्रदान करते हैं. ठीक जिस प्रकार हम में मसीह के दुःखों की बहुतायत है, उसी प्रकार बहुत है मसीह के द्वारा हमारा धीरज. यदि हम यातनाएँ सहते हैं तो यह तुम्हारे धीरज और उद्धार के लिए है; यदि हमें धीरज प्राप्त हुआ है तो यह तुम्हारे प्रोत्साहन के लिए है कि तुम भी उन्हीं यातनाओं को धीरज के साथ सह सको, जो हम सह रहे हैं. इस अहसास के प्रकाश में तुम्हारे विषय में हमारी आशा अटल है कि जिस प्रकार तुम हमारी सताहटों में सहभागी हो, उसी प्रकार तुम हमारे धीरज में भी सहभागी होगे.

प्रियजन, हम नहीं चाहते कि तुम उन सब क्लेश के विषय में अनजान रहो, जो आसिया प्रदेश में हम पर आए. हम ऐसे बोझ से दब गए थे, जो हमारी सहनशक्ति से परे था. यहाँ तक कि हम जीवन की आशा तक खो चुके थे. हमें ऐसा लग रहा था, मानो हम पर दण्ड की आज्ञा ही प्रसारित हो चुकी है. यह इसलिए हुआ कि हम स्वयं पर नहीं परन्तु परमेश्वर में विश्वास स्थिर रखें, जो मरे हुओं को जीवित करते हैं. 10 हमने परमेश्वर पर, जिन्होंने हमें घोर संकट से उबारा और उबारते ही रहेंगे, आशा रखी है, वह हमें भविष्य में भी उबारते ही रहेंगे 11 क्योंकि तुम अपनी प्रार्थनाओं के द्वारा हमारी सहायता करते हो कि हमारी ओर से अनेकों द्वारा उस अनुग्रह के लिए धन्यवाद प्रकट किया जा सके, जो अनेकों की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप हमें प्राप्त हुआ है.

पौलॉस की योजना बदलने का कारण

12 इसलिए हमारे गर्व करने का कारण यह है: हमारी अन्तरात्मा की पुष्टि कि हमारे शारीरिक जीवन में, विशेष रूप से तुम्हारे सम्बन्ध में हमारा व्यवहार परमेश्वर द्वारा दी गई पवित्रता तथा सच्चाई सहित रहा है. यह सांसारिक ज्ञान का नहीं परन्तु मात्र परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम था. 13 हमारे पत्रों में ऐसा कुछ नहीं होता, जो तुम पढ़ या समझ न सको और मेरी आशा यह है कि तुम अन्त में सब कुछ समझ लोगे. 14 ठीक जिस प्रकार तुम हमें बहुत थोड़ा ही समझ पाए हो कि तुम हमारे गर्व का विषय हो, प्रभु के दिन तुम भी हम पर गर्व करोगे.

15 इस निश्चय के द्वारा सबसे पहिले, मैं इस उद्धेश्य से तुम्हारे पास आना चाहता था कि तुम्हें दुगनी कृपा का अनुभव हो. 16 मेरी योजना थी कि मैं मकेदोनिया जाते हुए तुम्हारे पास आऊँ तथा वहाँ से लौटते हुए भी. इसके बाद तुम मुझे यहूदिया प्रदेश की यात्रा पर भेज देते. 17 क्या मेरी यह योजना मेरी अस्थिर मानसिकता थी? या मेरे उद्धेश्य मनुष्य के ज्ञान प्रेरित होते हैं कि मेरा बोलना एक ही समय में हाँ-हाँ भी होता है और न-न भी?

18 जिस प्रकार निस्सन्देह परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं, उसी प्रकार हमारी बातों में भी “हाँ” का मतलब हाँ और “न” का मतलब न ही होता है. 19 परमेश्वर-पुत्र मसीह येशु, जिनका प्रचार सिलवानॉस, तिमोथियॉस तथा मैंने तुम्हारे मध्य किया, वह प्रचार कभी “हाँ” या कभी “न” नहीं परन्तु परमेश्वर में हमेशा हाँ ही रहा है. 20 परमेश्वर की सारी प्रतिज्ञाएँ उनमें “हाँ” ही हैं. इसीलिए हम परमेश्वर की महिमा के लिए मसीह येशु के द्वारा “आमेन” कहते हैं. 21-22 परमेश्वर ही हैं, जो तुम्हारे साथ हमें मसीह में मजबूत करते हैं. परमेश्वर ने हम पर अपनी मोहर लगा कर बयाने के रूप में अपना आत्मा हमारे हृदय में रख कर हमारा अभिषेक किया है.

23 परमेश्वर मेरी इस सच्चाई के गवाह हैं कि मैं दोबारा कोरिन्थॉस इसलिए नहीं आया कि मैं तुम्हें कष्ट देना नहीं चाहता था. 24 इसका मतलब यह नहीं कि हम तुम्हारे विश्वास पर अपना अधिकार जताएं क्योंकि तुम अपने विश्वास में स्थिर खड़े हो. हम तो तुम्हारे ही आनन्द के लिए तुम्हारे सहकर्मी हैं.

अपनी ओर से मैं यह निश्चय कर चुका था कि मैं एक बार फिर वहाँ आकर तुम्हें दुःख न दूँ, क्योंकि वहाँ आकर यदि मैं ही तुम्हें दुःखी करूँ तो मुझे वहाँ आनन्द किनसे प्राप्त होगा, केवल उनसे, जिन्हें मेरे द्वारा दुःख पहुँचा है? मैंने तुम्हें इसी उद्धेश्य से पत्र लिखा था कि जब मैं वहाँ आऊँ तो वे ही लोग मेरे दुःख का कारण न हो जाएँ, जिनसे मुझे आनन्द की आशा है. मुझे निश्चय है कि मेरा आनन्द तुम सभी का आनन्द है. हृदय के कष्ट और क्लेश के कारण आँसू बहा-बहा कर मैंने तुम्हें यह पत्र लिखा है, इसलिए नहीं कि तुम्हें दुःखी करूँ परन्तु इसलिए कि तुम तुम्हारे प्रति मेरे अत्याधिक प्रेम को समझ सको.

पापी को क्षमा दी जाए

यदि कोई दुःख का कारण है तो वह मात्र मेरे लिए नहीं परन्तु किसी सीमा तक तुम सभी के लिए दुःख का कारण बना है. मैं इसके विषय में इससे अधिक कुछ और नहीं कहना चाहता. काफी है ऐसे व्यक्ति के लिए बहुमत द्वारा तय किया गया दण्ड. इसकी बजाय भला यह होगा कि तुम उसे क्षमा कर धीरज दो. कहीं ऐसा न हो कि कष्ट की अधिकाई उसे निराशा में डुबो दे. इसलिए तुमसे मेरी विनती है कि तुम दोबारा उसके प्रति अपने प्रेम की पुष्टि करो. यह पत्र मैंने यह जानने के उद्धेश्य से भी लिखा है कि तुम सब विषयों में आज्ञाकारी हो या नहीं. 10 जिसे तुम किसी विषय में क्षमा करते हो, उसे मैं भी क्षमा करता हूँ. जिस विषय में मैंने क्षमा किया है—यदि वह वास्तव में क्षमा-योग्य था—उसे मैंने मसीह को उपस्थित जानकर तुम्हारे लिए क्षमा किया है 11 कि शैतान हमारी स्थिति का कोई भी लाभ न उठाने पाए—हम उसकी चालों से अनजान नहीं हैं.

नए नियम के देनेवाले

12 मैं मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार के लिए त्रोआस आया और वहाँ प्रभु के द्वारा मेरे लिए द्वार खोला गया. 13 वहाँ अपने भाई तीतॉस को न पाकर मेरा मन व्याकुल हो उठा. इसलिए उनसे विदा लेकर मैं मकेदोनिया प्रदेश चला गया.

14 धन्यवाद हो परमेश्वर का! जो मसीह के जय के उत्सव की शोभायात्रा में हमारे आगे चलते हैं और हमारे द्वारा अपने ज्ञान की सुमधुर सुगंध हर जगह फैलाते जाते हैं. 15 हम ही परमेश्वर के लिए मसीह की सुगंध हैं—उन सब के लिए, जो उद्धार प्राप्त करते जा रहे हैं तथा उन सब के लिए भी, जो नाश होते जा रहे हैं. 16 जो नाश हो रहे हैं, उनके लिए हम मृत्यु की घातक गन्ध तथा उद्धार प्राप्त करते जा रहे व्यक्तियों के लिए जीवन की प्राणदायी सुगंध. किसमें है इस प्रकार के काम करने की योग्यता? 17 हम उनके समान नहीं, जिनके लिए परमेश्वर का वचन खरीदने-बेचने द्वारा लाभ कमाने की वस्तु है. इसके विपरीत हम सच्चाई में परमेश्वर की ओर से, परमेश्वर के सामने मसीह में ईश्वरीय सुसमाचार को दूसरों तक पहुंचाते हैं.

क्या हमने दोबारा अपनी बड़ाई करनी शुरु कर दी? या कुछ अन्य व्यक्तियों के समान हमें भी तुमसे या तुम्हारे लिए सिफारिश के पत्रों की ज़रूरत है? हमारे पत्र तो तुम स्वयं हो—हमारे हृदयों पर लिखे हुए—जो सबके द्वारा पहचाने तथा पढ़े जा सकते हो. यह साफ़ ही है कि मसीह का पत्र तुम हो—हमारी सेवकाई का परिणाम—जिसे स्याही से नहीं परन्तु जीवित परमेश्वर की आत्मा से पत्थर की पटिया पर नहीं परन्तु मनुष्य के हृदय की पटिया पर लिखा गया है. हमें मसीह के द्वारा परमेश्वर में ऐसा ही विश्वास है. स्थिति यह नहीं कि हम यह दावा करें कि हम अपने आप में कुछ कर सकने के योग्य हैं—परमेश्वर हमारी योग्यता का स्त्रोत हैं, जिन्होंने हमें नई वाचा का काम करने योग्य सेवक बनाया. यह वाचा लिखी हुई व्यवस्था की नहीं परन्तु आत्मा की है. लिखी हुई व्यवस्था मृत्यु को जन्म देती है मगर आत्मा जीवन देती है.

नई वाचा का वैभव

यदि पत्थर की पटिया पर खोदे गए अक्षरों में अंकित मृत्यु की वाचा इतनी तेजोमय थी कि इस्राएल के वंशज मोशेह के मुख पर अपनी दृष्टि स्थिर रख पाने में असमर्थ थे—यद्यपि यह तेज धीरे-धीरे कम होता जा रहा था. तो फिर आत्मा की वाचा और कितनी अधिक तेजोमय न होगी? यदि दण्ड-आज्ञा की वाचा का प्रताप ऐसा है तो धार्मिकता की वाचा का प्रताप और कितना अधिक बढ़कर न होगा? 10 सच तो यह है कि इस वर्तमान प्रताप के सामने वह पहले का प्रताप, प्रताप रह ही नहीं गया. 11 यदि उसका तेज ऐसा था, जो लगातार कम हो रहा था, तो उसका तेज, जो हमेशा स्थिर है, और कितना अधिक बढ़कर न होगा!

12 इसी आशा के कारण हमारी बातें बिना डर की है. 13 हम मोशेह के समान भी नहीं, जो अपना मुख इसलिए ढ़का रखते थे कि इस्राएल के लोग उस धीरे-धीरे कम होते हुए तेज को न देख पाएँ. 14 वास्तव में इस्राएल के लोगों के मन मन्द हो गए थे. पुराना नियम देने के अवसर पर आज भी वही पर्दा पड़ा रहता है क्योंकि यह पर्दा सिर्फ मसीह में हटाया जाता है. 15 हाँ, आज भी जब कभी मोशेह का ग्रन्थ पढ़ा जाता है, उनके हृदय पर पर्दा पड़ा रहता है. 16 यह पर्दा उस समय हटता है, जब कोई व्यक्ति प्रभु की ओर मन फिराता है. 17 यही प्रभु वह आत्मा हैं तथा जहाँ कहीं प्रभु का आत्मा मौजूद हैं, वहाँ स्वतंत्रता है 18 और हम, जो खुले मुख से प्रभु की महिमा निहारते हैं, उनके स्वरूप में धीरे-धीरे बढ़ती हुई महिमा के साथ बदलते जा रहे हैं. यह महिमा प्रभु से, जो आत्मा हैं, बाहर निकलती है.

मिट्टी के पात्रों में रखी हुई निधि

इसलिए कि यह सेवकाई हमें परमेश्वर की कृपा से प्राप्त हुई है, हम निराश नहीं होते. हमने लज्जा के गुप्त कामों को त्याग दिया है. न तो हमारे स्वभाव में किसी प्रकार की चतुराई है और न ही हम परमेश्वर के वचन को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं. किन्तु सच्चाई को प्रकट करके हम परमेश्वर के सामने स्वयं को हर एक के विवेक के लिए प्रस्तुत करते हैं. यदि हमारा ईश्वरीय सुसमाचार ढ़का हुआ है, तो यह उन्हीं के लिए ढ़का हुआ है, जो विनाश की ओर जा रहे हैं. इस संसार के ईश्वर ने उन अविश्वासियों की बुद्धि को अंधा कर दिया है कि वे परमेश्वर के प्रतिरूप, मसीह के तेजोमय ईश्वरीय सुसमाचार के प्रकाश को न देख सकें. हम स्वयं को ऊँचा नहीं करते—हम मसीह येशु को प्रभु तथा स्वयं को मसीह येशु के लिए तुम्हारे दास घोषित करते हैं. परमेश्वर, जिन्होंने कहा, “अंधकार में से ज्योति चमके,” वही परमेश्वर हैं, जिन्होंने हमारा हृदय चमका दिया कि हमें मसीह के मुख में चमकते हुए परमेश्वर के प्रताप के ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें.

यह बेशकीमती खजाना मिट्टी के पात्रों में इसलिए रखा हुआ है कि यह साफ़ हो जाए कि यह असीम सामर्थ हमारा नहीं परन्तु परमेश्वर का है. हम चारों ओर से कष्टों से घिरे रहते हैं किन्तु कुचले नहीं जाते; घबराते तो हैं किन्तु निराश नहीं जाते; सताए तो जाते हैं किन्तु त्यागे नहीं जाते; बहुत चोटिल किए जाते हैं किन्तु नष्ट नहीं किए जाते. 10 हम हरदम मसीह येशु की मृत्यु को अपने शरीर में लिए फिरते हैं कि मसीह येशु का जीवन हमारे शरीर में प्रकट हो जाए. 11 इसलिए हम, जो जीवित हैं, हरदम मसीह येशु के लिए मृत्यु को सौंपे जाते हैं कि हमारी शारीरिक देह में मसीह येशु का जीवन प्रकट हो जाए. 12 इस स्थिति में मृत्यु हममें सक्रिय है और जीवन तुममें.

13 विश्वास के उसी भाव में, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है: मैंने विश्वास किया, इसलिए मैं चुप न रहा. हम भी यह सब इसीलिए कहते हैं कि हमने भी विश्वास किया है 14 यह जानते हुए कि जिन्होंने प्रभु येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, वही हमें भी मसीह येशु के साथ जीवित करेंगे तथा तुम्हारे साथ हमें भी अपनी उपस्थिति में ले जाएँगे. 15 यह सब तुम्हारे हित में है कि अनुग्रह, जो अधिक से अधिक मनुष्यों में व्याप्त होता जा रहा है, परमेश्वर की महिमा के लिए अधिक से अधिक धन्यवाद का कारण बने.

16 इसलिए हम हतोत्साहित नहीं होते. हमारा बाहरी मनुष्यत्व तो कमज़ोर होता जा रहा है किन्तु भीतरी मनुष्यत्व दिन-प्रतिदिन नया होता जा रहा है. 17 हमारा यह छोटा सा क्षण भर का कष्ट हमारे लिए ऐसी अनन्त और अत्याधिक महिमा को उत्पन्न कर रहा है, जिसकी तुलना नहीं कर सकते 18 क्योंकि हमने अपना ध्यान उस पर केन्द्रित नहीं किया, जो दिखाई देता है परन्तु उस पर, जो दिखाई नहीं देता है. जो कुछ दिखाई देता है, वह क्षण भर का है किन्तु जो दिखाई नहीं देता वह अनन्त काल का.

हमारा स्वर्गीय घर

हमें यह मालूम है कि जब हमारे घर—हमारी शारीरिक देह—को गिरा दिया जाएगा तो हमारे लिए परमेश्वर की ओर से एक ऐसा घर तय किया गया है, जो मनुष्य के हाथ का बनाया हुआ नहीं परन्तु स्वर्गीय और अनन्त काल का है. यह एक सच्चाई है कि हम कराहते हुए वर्तमान घर में उस स्वर्गीय घर को धारण करने की लालसा करते रहते हैं क्योंकि उसे धारण करने के बाद हम नंगे न रह जाएँगे. सच यह है कि इस घर में रहते हुए हम बोझ में दबे हुए कराहते रहते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि हम नंगे न रहें परन्तु वस्त्र धारण करें कि जो कुछ शारीरिक है, वह जीवन का निवाला बन जाए. जिन्होंने हमें इस उद्धेश्य के लिए तैयार किया है, वह परमेश्वर हैं, जिन्होंने अपना आत्मा हमें बयाने के रूप में दे दिया.

यही अहसास हमें हमेशा प्रोत्साहित करता रहता है कि जब तक हम अपनी शारीरिक देह के इस घर में हैं, हम प्रभु—अपने घर—से दूर हैं क्योंकि हम रूप को देखकर नहीं, विश्वास से जीवित हैं. हम पूरी तरह आश्वस्त हैं तथा हमारी इच्छा है कि हम शरीर से अलग हो प्रभु के साथ अपने घर में निवास करें. हमारी बड़ी इच्छा भी यही है कि चाहे हम घर में हों या उससे दूर, हम प्रभु को भाते रहें 10 क्योंकि यह अवश्य है कि हम सब मसीह के न्यायासन के सामने उपस्थित हों कि हर एक को शारीरिक देह में किए गए उचित या अनुचित के अनुसार फल प्राप्त हो.

मेल-मिलाप-सेवकाई

11 हमें यह अहसास है कि परमेश्वर का भय क्या है, इसलिए हम सभी को समझाने का प्रयत्न करते हैं. परमेश्वर के सामने यह स्पष्ट है कि हम क्या हैं और मैं आशा करता हूँ कि तुम्हारे विवेक ने भी इसे पहचान लिया है. 12 यह तुम्हारे सामने अपनी बड़ाई नहीं परन्तु यह तुम्हारे लिए एक ऐसा सुअवसर है कि तुम हम पर गर्व करो कि तुम उन्हें इसका उत्तर दे सको, जो अपने मन की बजाय बाहरी रूप का घमण्ड़ करते हैं. 13 यदि हम बेसुध प्रतीत होते हैं, तो यह परमेश्वर के लिए है और यदि कोमल, तो तुम्हारे लिए. 14 अपने लिए मसीह के प्रेम का यह अहसास हमें परिपूर्ण कर देता है कि सबके लिए एक की मृत्यु हुई इसलिए सभी की मृत्यु हो गई; 15 और वह, जिनकी मृत्यु सभी के लिए हुई कि वे, जो जीवित हैं, मात्र अपने लिए नहीं परन्तु उनके लिए जिएँ, जिन्होंने प्राणों का त्याग कर दिया तथा मरे हुओं में से सभी के लिए जीवित किए गए.

16 इसलिए हमने मनुष्य की दृष्टि से किसी को भी समझना छोड़ दिया है. हाँ, एक समय था, जब हमने मसीह का अनुमान मनुष्य की दृष्टि से लगाया था—अब नहीं. अब हम उन्हें जान गए हैं. 17 यदि कोई मसीह में है, तो वह नई सृष्टि है. पुराना बीत गया. देख लो: सब बातें नई हो गई हैं! 18 यह सब परमेश्वर की ओर से है, जिन्होंने मसीह के द्वारा स्वयं से हमारा मेल-मिलाप किया और हमें मेल-मिलाप की सेवकाई सौंपी है. 19 दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने संसार के खुद से मेल-मिलाप की स्थापना की प्रक्रिया में मसीह में मनुष्य के अपराधों का हिसाब न रखा. अब उन्होंने हमें मेल-मिलाप की सेवकाई सौंप दी है. 20 इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं. परमेश्वर हमारे द्वारा तुमसे विनती कर रहे हैं. मसीह की ओर से तुमसे हमारी विनती है: परमेश्वर से मेल-मिलाप कर लो. 21 वह, जो निष्पाप थे, उन्हें परमेश्वर ने हमारे लिए पाप बना दिया कि हम उनमें परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ.

परमेश्वर के सहकर्मी होने के कारण हमारी तुमसे विनती है कि तुम उनसे प्राप्त उनके अनुग्रह को व्यर्थ न जाने दो क्योंकि परमेश्वर का कहना है:

“अनुकूल अवसर पर मैंने तुम्हारी पुकार सुनी,
    उद्धार के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की.”

सुनो! यही है वह अनुकूल अवसर; यही है वह उद्धार का दिन!

पौलॉस के कष्ट

हमारा स्वभाव किसी के लिए किसी भी क्षेत्र में बाधा नहीं बनता कि हमारी सेवकाई पर दोष न हो. इसलिए हम हर एक परिस्थिति में स्वयं को परमेश्वर के सुयोग्य सेवक के समान प्रस्तुत करते हैं: धीरज से पीड़ा सहने में, दरिद्रता में, कष्ट में, सताहट में, जेल में, उपद्रव में, अधिक परिश्रम में, अपर्याप्त नींद में, उपवास में, शुद्धता में, ज्ञान में, धीरज में, सहृदयता में, पवित्रता के भाव में, निश्छल प्रेम में, सच के सन्देश में, परमेश्वर के सामर्थ्य में, वार तथा बचाव दोनों ही पक्षों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता के शस्त्रों से सुसज्जित, आदर-निरादर में और निन्दा-प्रशंसा में; हमें भरमानेवाला समझा जाता है, जबकि हम सत्यवादी हैं; हम तुच्छ समझे जाते हैं फिर भी प्रसिद्ध हैं; हम मरे हुए समझे जाते हैं किन्तु देखो! हम जीवित हैं! हमें दण्ड तो दिया जाता है किन्तु हमारे प्राण नहीं लिए जा सके. 10 हम कष्ट में भी आनन्दित रहते हैं. हालांकि हम स्वयं तो कंगाल हैं किन्तु बाकियों को धनवान बना देते हैं. हमारी निर्धनता में हम धनवान हैं.

11 कोरिन्थवासियो! हमने पूरी सच्चाई में तुम पर सच प्रकट किया है—हमने तुम्हारे सामने अपना हृदय खोल कर रख दिया है. 12 हमने तुम पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई; रोक-टोक स्वयं तुमने ही अपने मनों पर लगाई है. 13 तुम्हें अपने बालक समझते हुए मैं तुमसे कह रहा हूँ: तुम भी अपने हृदय हमारे सामने खोल कर रख दो.

विश्वासियों और अविश्वासियों में मेल-जोल असम्भव

14 अविश्वासियों के साथ असमान सम्बन्ध में न जुड़ो. धार्मिकता तथा अधार्मिकता में कैसा मेलजोल या ज्योति और अंधकार में कैसा सम्बन्ध? 15 मसीह और शैतान में कैसा मेल या विश्वासी और अविश्वासी में क्या सहभागिता? 16 या परमेश्वर के मन्दिर तथा मूर्तियों में कैसी सहमति? हम जीवित परमेश्वर के मन्दिर हैं. जैसा कि परमेश्वर का कहना है:

मैं उनमें वास करूँगा,
    उनके बीच चला फिरा करूँगा,
मैं उनका परमेश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा.

17 इसलिए

उनके बीच से निकल आओ
    और अलग हो जाओ.
            यह प्रभु की आज्ञा है
उसका स्पर्श न करो, जो अशुद्ध है तो मैं तुम्हें स्वीकार करूँगा.
18 मैं तुम्हारा पिता होऊँगा
    और तुम मेरी सन्तान.
            यही है सर्वशक्तिमान प्रभु का कहना.

इसलिए प्रियजन, जब हमसे ये प्रतिज्ञाएँ की गई हैं तो हम परमेश्वर के प्रति श्रद्धा के कारण, स्वयं को शरीर और आत्मा की हर एक मलिनता से शुद्ध करते हुए पवित्रता को सिद्ध करें.

पौलॉस के आनन्द का विषय

हमें अपने हृदयों में स्थान दो. हमने किसी के साथ अन्याय नहीं किया, किसी को आहत नहीं किया, किसी का अनुचित लाभ नहीं उठाया. यह कहने के द्वारा हम तुम पर दोष नहीं लगा रहे हैं. मैं पहले भी कह चुका हूँ कि तुम हमारे हृदय में बसे हो और हमारा-तुम्हारा जीवन-मरण का साथ है. मुझे तुम पर अटूट विश्वास है. मुझे तुम पर गर्व है, मैं अत्यन्त प्रोत्साहित हुआ हूँ. सारे कष्टों में भी मैं आनन्द से भरपूर रहता हूँ.

हमारे मकेदोनिया में रहने के दौरान हमें शारीरिक रूप से विश्राम नहीं परन्तु चारों ओर से कष्ट ही कष्ट मिलता रहा—बाहर तो लड़ाइयाँ और अन्दर भय की बातें. मगर परमेश्वर ने, जो हताशों को धीरज देते हैं, तीतॉस को यहाँ उपस्थित कर हमें धीरज दिया. न केवल उसकी उपस्थिति के द्वारा ही परन्तु उस प्रोत्साहन के द्वारा भी, जो तीतॉस को तुमसे प्राप्त हुआ. उसने मुझे मेरे प्रति तुम्हारी लालसा, वेदना तथा उत्साह के विषय में बताया. इससे मेरा आनन्द और अधिक बढ़ गया.

यद्यपि तुम मेरे पत्र से शोकित हुए हो, मुझे इसका खेद नहीं—पहले खेद ज़रूर हुआ था मगर अब मैं देखता हूँ कि तुम उस पत्र से शोकित तो हुए किन्तु थोड़े समय के लिए. अब मैं आनन्दित हूँ, इसलिए नहीं कि तुम शोकित हुए परन्तु इसलिए कि यही तुम्हारे पश्चाताप का कारण बन गया. यह सब परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ही हुआ कि तुम्हें हमारे कारण किसी प्रकार की हानि न हो. 10 वह दुःख, जो परमेश्वर की ओर से आता है, उद्धार देने वाले पश्चाताप का कारण बन जाता है, जहाँ खेद के लिए कोई स्थान ही नहीं रहता, जबकि सांसारिक दुःख मृत्यु उत्पन्न करता है. 11 ध्यान दो कि परमेश्वर की ओर से आए दुःख ने तुममें क्या-क्या परिवर्तन किए हैं: ऐसी उत्सुकता भरी तत्परता, अपना पक्ष स्पष्ट करने की ऐसी बड़ी इच्छा, अन्याय के प्रति ऐसा क्रोध, संकट के प्रति ऐसी सावधानी, मुझसे भेंट करने की ऐसी तेज़ लालसा, सेवा के प्रति ऐसा उत्साह तथा दुराचारी को दण्ड देने के लिए ऐसी तेज़ी के द्वारा तुमने यह साबित कर दिया कि सब कुछ ठीक-ठाक करने में तुमने कोई भी कमी नहीं छोड़ी है. 12 हालांकि यह पत्र मैंने न तो तुम्हें इसलिए लिखा कि मुझे उसकी चिन्ता थी, जो अत्याचार करता है और न ही उसके लिए, जो अत्याचार सहता है परन्तु इसलिए कि परमेश्वर के सामने स्वयं तुम्हीं यह देख लो कि तुम हमारे प्रति कितने सच्चे हो. 13 यही हमारे धीरज का कारण है.

अपने धीरज से कहीं अधिक हम तीतॉस के आनन्द में हर्षित हैं क्योंकि तुम सबने उसमें नई ताज़गी का संचार किया है. 14 यदि तीतॉस के सामने मैंने तुम पर गर्व प्रकट किया है तो मुझे उसके लिए लज्जित नहीं होना पड़ा. जिस प्रकार, जो कुछ मैंने तुमसे कहा वह सच था, उसी प्रकार तीतॉस के सामने मेरा गर्व प्रकट करना भी सच साबित हुआ. 15 जब तीतॉस को तुम्हारी आज्ञाकारिता याद आती है तथा यह भी कि तुमने कितने श्रद्धाभाव से उसका सत्कार किया तो वह स्नेह से तुम्हारे प्रति और अधिक भर उठता है. 16 तुम्हारे प्रति मैं पूरी तरह आश्वस्त हूँ. यह मेरे लिए आनन्द का विषय है.

उदारता के लिए प्रोत्साहन

हम तुम्हें मकेदोनिया की कलीसियाओं को परमेश्वर द्वारा दिए गए अनुग्रह के विषय में बताना चाहते हैं. बड़े भीषण संकटों में भी उनका बड़ा आनन्द तथा भारी कंगाली में एक होकर उनकी बड़ी उदारता के रूप में छलक पड़ी है. मैं इस सच्चाई की पुष्टि कर सकता हूँ कि उन्होंने न केवल उतना ही दिया, जो उनके लिए सम्भव था परन्तु उससे कहीं अधिक! यह उन्होंने अपनी इच्छा से दिया है. उन्होंने तो हमसे विनती पर विनती करते हुए अनुमति चाही कि उन्हें पवित्र लोगों की सहायता की धन्यता में शामिल होने का सुअवसर प्रदान किया जाए. यह सब हमारी आशा के विपरीत था. इससे भी बढ़कर उन्होंने परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सबसे पहिले स्वयं को प्रभु के लिए और फिर हमारे लिए समर्पित कर दिया. इसलिए हमने तीतॉस से विनती की कि जिस प्रकार इसके पहले उसने तुममें यह प्रक्रिया शुरु की थी, वैसे ही वह इस सराहनीय काम को पूरा भी करे. ठीक जिस प्रकार तुम विश्वास, वचन, ज्ञान, उत्साह तथा हमारे प्रति प्रेम में बढ़ते जाते हो, उसी प्रकार अब तुम्हारा प्रयास यह हो कि तुम इस सराहनीय सेवा में भी बढ़ते जाओ.

मैं तुम्हें कोई आज्ञा नहीं दे रहा. मैं सिर्फ बाकियों के उत्साह से तुम्हारे प्रेम की तुलना कर इसकी सच्चाई को परख रहा हूँ. हमारे प्रभु मसीह येशु की कृपा से तुम भली-भांति परिचित हो: यद्यपि वह बहुत धनी थे, तुम्हारे लिए उन्होंने निर्धनता अपना ली कि उनकी निर्धनता के द्वारा तुम धनी हो जाओ.

10 यहाँ मैं अपना मत प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमें तुम्हारा भला है: पिछले वर्ष तुमने दान दिया भी और दान देने की इच्छा में तुम आगे थे, 11 इसलिए जो काम तुमने शुरू किया था, उसे पूरा भी करो—इस काम की समाप्ति के लिए भी वैसे ही उत्साही बने रहो, जैसे इसकी योजना तैयार करते समय थे. इसकी समाप्ति अपने उन्हीं पूँजी और क्षमताओं से करो, जो इस समय तुम्हारे पास हैं. 12 यदि किसी में दान देने की इच्छा है तो जो कुछ उसके पास है, उसी के आधार पर उसका दान ग्रहण होगा—उसके आधार पर नहीं, जो उसके पास नहीं है.

13 हमारा मतलब यह नहीं है कि दूसरों की भलाई करने के कारण स्वयं तुम कष्ट सहो. हमारा उद्धेश्य सिर्फ न्याय करना है. 14 इस समय तो तुम्हारी बढ़ोतरी उनकी ज़रूरत पूरी करने के लिए काफी है. कभी यह भी सम्भव है कि तुम स्वयं को ज़रूरत में पाओ और वे अपनी बढ़ोतरी में से तुम्हारी सहायता करें. तब दोनों पक्ष समान हो जाएंगे. 15 पवित्रशास्त्र का उदाहरण है: जिस ने अधिक मात्रा में इकट्ठा कर लिया, उसने कुछ भी ज़्यादा नहीं पाया और जिसने कम इकट्ठा किया, उसने किसी कमी का अनुभव न किया.

कोरिन्थॉस में तीतॉस का भेजा जाना

16 तीतॉस के मन में तुम्हारे प्रति ऐसा ही उत्साह जगाने के लिए मैं परमेश्वर का आभारी हूँ. 17 उसने न केवल हमारी विनती ही सहर्ष स्वीकार की बल्कि वह उत्साह में अपनी इच्छा से तुम्हारे पास चला गया है. 18 हम उसके साथ एक ऐसे व्यक्ति को भेज रहे हैं, जो सारी कलीसियाओं में ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार के लिए सराहा जा रहा है. 19 इतना ही नहीं, स्वयं प्रभु की महिमा तथा लोगों पर इस सहायता के लिए हमारी तत्परता प्रकट करने के उद्धेश्य से कलीसियाओं ने इस व्यक्ति को हमारे साथ यात्रा करने के लिए चुना है. 20 हम सावधान हैं कि किसी को भी इस सहायता की राशि के प्रबन्ध करने में हम पर उँगली उठाने का अवसर न मिले. 21 हमारा उद्धेश्य न केवल वह है, जो प्रभु की दृष्टि में सुशोभनीय और भला है परन्तु मनुष्यों की दृष्टि में भी.

22 इनके साथ हम एक और व्यक्ति को भेज रहे हैं. अनेक अवसरों पर हमने उसे परखा है और उसे सच्चा ही पाया है. अब तो तुम्हारे लिए उसके भरोसे ने उसमें और अधिक उत्साह तथा सहायता के लिए तेज़ी का संचार किया है. 23 तीतॉस तुम्हारे बीच मेरा साथी तथा सहकर्मी है. उसके साथी यात्री कलीसियाओं के भेजे हुए तथा मसीह का गौरव हैं. 24 इसलिए कलीसियाओं के सामने खुले दिल से उन पर अपने प्रेम तथा तुम्हारे प्रति हमारे घमण्ड़ के कारणों का प्रमाण दो.

वास्तव में यह आवश्यक ही नहीं कि मैं पवित्र लोगों में अपनी सेवकाई के विषय में तुम्हें कुछ लिखूँ क्योंकि सहायता के लिए तुम्हारी तैयारी से मैं भली-भांति परिचित हूँ. मकेदोनियावासियों के सामने मैं इसका घमण्ड़ भी करता रहा हूँ कि अखाया प्रदेश की कलीसिया पिछले एक वर्ष से इसके लिए तैयार है और उनमें से अधिकांश को तुम्हारे उत्साह से प्रेरणा प्राप्त हुई. मैंने कुछ साथी विश्वासियों को तुम्हारे पास इसलिए भेजा है कि तुम्हारे विषय में मेरा घमण्ड़ करना खोखला न ठहरे, परन्तु वे स्वयं तुम्हें सेवा के लिए तैयार पाएँ—ठीक जैसा मैं उनसे कहता रहा हूँ. ऐसा न हो कि जब कोई मकेदोनियावासी मेरे साथ आए और तुम्हें दान देने के लिए तैयार न पाए तो हमें तुम्हारे प्रति ऐसे आश्वस्त होने के कारण लज्जित होना पड़े—तुम्हारी अपनी लज्जा तो एक अलग विषय होगा. इसलिए मैंने यह आवश्यक समझा कि मैं साथी विश्वासियों से यह विनती करूँ कि वे पहले ही तुम्हारे पास चले जाएँ तथा उस प्रतिज्ञा की गई भेंट का प्रबन्ध कर लें, जो तुमने उदारता के भाव में दी है, न कि कंजूसी के भाव में.

उदार रोपण

याद रहे: वह, जो थोड़ा बोता है, थोड़ा ही काटेगा तथा वह, जो बहुत बोता है, बहुत काटेगा. इसलिए जिसने अपने मन में जितना भी देने का निश्चय किया है, उतना ही दे—बिना इच्छा के या विवशता में नहीं क्योंकि परमेश्वर को प्रिय वह है, जो आनन्द से देता है. परमेश्वर समर्थ हैं कि वह तुम्हें बहुत अधिक अनुग्रह प्रदान करें कि तुम्हें सब कुछ पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता रहे और हर भले काम के लिए तुम्हारे पास अधिकता में हो, जैसा कि पवित्रशास्त्र का लेख है:

उन्होंने कंगालों को उदारतापूर्वक दिया;
    उनकी कृपा युगानुयुग बनी रहती है.

10 वह परमेश्वर, जो किसान के लिए बीज का तथा भोजन के लिए आहार का इन्तज़ाम करते हैं, वही बोने के लिए तुम्हारे लिए बीज का इन्तज़ाम तथा विकास करेंगे तथा तुम्हारी धार्मिकता की उपज में उन्नति करेंगे. 11 अपनी अपूर्व उदारता के लिए तुम हरेक पक्ष में धनी किए जाओगे. हमारे माध्यम से तुम्हारी यह उदारता परमेश्वर के प्रति धन्यवाद का विषय हो रही है.

12 यह सेवकाई न केवल पवित्र लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने का ही साधन है परन्तु परमेश्वर के प्रति उमड़ता हुआ धन्यवाद का भाव भी है. 13 तुम्हारी इस सेवकाई को प्रमाण मानते हुए वे परमेश्वर की महिमा करेंगे क्योंकि तुमने मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार को आज्ञा मानते हुए ग्रहण किया और तुम सभी के प्रति उदार मन के हो. 14 तुम पर परमेश्वर के अत्याधिक अनुग्रह को देख वे तुम्हारे लिए बड़ी लगन से प्रार्थना करेंगे. 15 परमेश्वर को उनके अवर्णनीय वरदान के लिए आभार!

पौलॉस की विनती

10 मैं पौलॉस, जो तुम्हारे बीच उपस्थित होने पर तो दीन किन्तु तुमसे दूर होने पर निड़र हो जाता हूँ, स्वयं मसीह की उदारता तथा कोमलता में तुमसे व्यक्तिगत विनती कर रहा हूँ. मेरी विनती यह है: जब मैं वहाँ आऊँ तो मुझे उनके प्रति, जो यह सोचते हैं कि हमारी जीवनशैली सांसारिक है, वह कठोरता दिखानी न पड़े जिसकी मुझसे आशा की जाती है. हालांकि हम संसार में रहते हैं मगर हम युद्ध वैसे नहीं करते जैसे यह संसार करता है. हमारे युद्ध के अस्त्र-शस्त्र सांसारिक नहीं हैं—ये परमेश्वर के सामर्थ्य में गढ़ों को ढ़ा देते हैं. इसके द्वारा हम उस हर एक विरोध को, उस हर एक घमण्ड़ करने वाले को, जो परमेश्वर के ज्ञान के विरुद्ध सिर उठाता है, गिरा देते हैं और हर एक धारणा को मसीह का आज्ञाकारी बन्दी बना देते हैं. तुम्हारी आज्ञाकारिता और सच्चाई की भरपूरी साबित हो जाने पर हम सभी आज्ञा न मानने वालों को दण्ड देने के लिए तैयार हैं.

तुम सिर्फ जो सामने है, उसके बाहरी रूप को देखते हो. यदि किसी को अपने विषय में यह निश्चय है कि वह मसीह का है तो वह इस पर दोबारा विचार करे कि जैसे वह मसीह का है, वैसे ही हम भी मसीह के हैं. यदि मैं उस अधिकार का कुछ अधिक ही गर्व करता हूँ, जो प्रभु ने मुझे तुम्हारे निर्माण के लिए सौंपा है, न कि तुम्हारे विनाश के लिए, तो उसमें मुझे कोई लज्जा नहीं. मैं नहीं चाहता कि तुम्हें यह अहसास हो कि मैं तुम्हें डराने के उद्धेश्य से यह पत्र लिख रहा हूँ. 10 मेरे विषय में कुछ का कहना है, “उसके पत्र महत्वपूर्ण और प्रभावशाली तो होते हैं किन्तु उसका व्यक्तित्व कमज़ोर है तथा बातें करना प्रभावित नहीं करता.” 11 ये लोग याद रखें कि तुम्हारे साथ न होने की स्थिति में हम अपने पत्रों की अभिव्यक्ति में जो कुछ होते हैं, वही हम तुम्हारे साथ होने पर अपने स्वभाव में भी होते हैं.

12 हम उनके साथ अपनी गिनती या तुलना करने का साहस नहीं करते, जो अपनी ही प्रशंसा करने में लीन हैं. वे अपने ही मापदण्डों के अनुसार अपने आप को मापते हैं तथा अपनी तुलना वे स्वयं से ही करते हैं. एकदम मूर्ख हैं वे! 13 हम अपनी मर्यादा के बाहर घमण्ड़ नहीं करेंगे. हम परमेश्वर द्वारा निर्धारित मर्यादा में ही सीमित रहेंगे. तुम भी इसी सीमा में सीमित हो. 14 हम सीमा पार नहीं कर रहे मानो हम वहाँ तक पहुँचे ही नहीं, जहाँ इस समय तुम हो क्योंकि हमने ही सबसे पहिले तुम्हारे बीच मसीह का ईश्वरीय सुसमाचार प्रचार किया था. 15 अन्यों द्वारा किए परिश्रम का श्रेय लेकर भी हम इस आशा में सीमा पार नहीं करते कि जैसे-जैसे तुम्हारा विश्वास गहरा होता जाता है, तुम्हारे बीच अपनी ही सीमा में हमारा कार्य-क्षेत्र और गतिविधियां फैलती जाएँ 16 और हम तुम्हारी सीमाओं से परे दूर-दूर क्षेत्रों में भी ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करें. हम नहीं चाहते कि हम किसी अन्य क्षेत्र में अन्य व्यक्ति द्वारा पहले ही किए जा चुके काम का घमण्ड़ करें. 17 जो कोई घमण्ड़ करे, वह प्रभु में घमण्ड़ करे. 18 ग्रहण वह नहीं किया जाता, जो अपनी तारीफ़ स्वयं करता है परन्तु वह है, जिसकी तारीफ़ प्रभु करते हैं.

पौलॉस तथा झूठे प्रेरित

11 मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी छोटी-सी मूर्खता को सह लो—जैसे वास्तव में तुम इस समय सह भी रहे हो. तुम्हारे लिए मेरी प्रेम की धुन ठीक वैसी ही है जैसी परमेश्वर की. तुम उस पवित्र कुँवारी जैसे हो, जिसकी मंगनी मैंने एकमात्र वर—मसीह येशु—को सौंपने के उद्धेश्य से की है. मुझे हमेशा यह भय लगा रहता है कि कहीं शैतान तुम्हारे मन को मसीह के प्रति तुम्हारी निष्कपट, पवित्रता से दूर न कर दे, जैसे साँप ने हव्वा को अपनी चालाकी से छल लिया था. क्योंकि जब कोई व्यक्ति आकर किसी अन्य येशु का प्रचार करता है, जिसका प्रचार हमने नहीं किया या तुम्हें कोई भिन्न आत्मा मिलती है, जो तुम्हें पहले नहीं मिली थी या तुम कोई भिन्न ईश्वरीय सुसमाचार को अपनाते हो, जिसे तुमने पहले ग्रहण नहीं किया था, तो तुम इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हो! मैं यह नहीं मानता कि मैं तथाकथित बड़े से बड़े प्रेरितों से तुच्छ हूँ. माना कि मैं बोलने में निपुण नहीं हूँ किन्तु निश्चित ही ज्ञान में मैं कम नहीं. वस्तुत: हमने हरेक प्रकार से हरेक क्षेत्र में तुम्हारे लिए इसे स्पष्ट कर दिया है.

इसलिए कि मैंने तुम्हारे लिए परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मुफ्त में किया, क्या तुम्हें ऊँचा करने के उद्धेश्य से मेरा स्वयं को विनम्र बना लेना अपराध था? तुम्हारे बीच सेवा करते हुए मेरा भरण-पोषण अन्य कलीसियाओं द्वारा किया जा रहा था. यह एक प्रकार से उन्हें लूटना ही हुआ. तुम्हारे साथ रहते हुए आर्थिक ज़रूरत में भी मैं तुममें से किसी पर भी बोझ न बना. मकेदोनिया प्रदेश से आए साथी विश्वासियों ने मेरी सभी ज़रूरतों की पूर्ति की. हर क्षेत्र में मेरा यही प्रयास रहा है कि मैं तुम पर बोझ न बनूँ. भविष्य में भी मेरा प्रयास यही रहेगा. 10 मुझमें मसीह का सच मौजूद है, इसलिए पूरे आखाया प्रदेश के क्षेत्रों में कोई भी मुझे मेरे इस गौरव से दूर न कर सकेगा. 11 क्यों? क्या इसलिए कि मुझे तुमसे प्रेम नहीं? परमेश्वर गवाह हैं कि मैं तुमसे प्रेम करता हूँ. 12 मैं जो कुछ कर रहा हूँ, वही करता जाऊँगा कि उन व्यक्तियों की इस विषय में घमण्ड़ करने की सारी सम्भावनाएँ समाप्त हो जाएँ कि वे भी वही काम कर रहे हैं, जो हम कर रहे हैं. 13 ऐसे व्यक्ति झूठे प्रेरित तथा छल से काम करने वाले हैं, जो मसीह के प्रेरित होने का ढोंग करते हैं. 14 यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं कि शैतान भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत होने का नकल करता है, 15 इसलिए इसमें यह भी बड़ी बात नहीं कि उसके सेवक भी, जिनका अन्त उनके कामों के अनुसार ही होगा, धार्मिकता के सेवक होने का नाटक करते हैं.

पौलॉस द्वारा अपने कष्टों का गुणगान

16 मैं दोबारा याद दिला रहा हूँ: कोई मुझे मूर्ख न समझे किन्तु यदि तुमने मुझे ऐसा मान ही लिया है तो मुझे मूर्ख के रूप में ही स्वीकार कर लो. इससे मुझे भी गर्व करने का अवसर मिल जाएगा. 17 बेधड़क कहा गया मेरा वचन प्रभु द्वारा दिया गया नहीं है—यह सब तो एक मूर्ख की घमण्ड़ में कही गई बात है. 18 कितने तो अपनी मानवीय उपलब्धियों का घमण्ड़ कर रहे हैं, तो मैं भी घमण्ड़ क्यों न करूँ? 19 तुम तो ऐसे बुद्धिमान हो कि मूर्खों की खुशी से सह लेते हो. 20 वस्तुत: तुम तो उसकी तक सह लेते हो, जो तुम्हें दास बना लेता है, जो तुम्हारा शोषण करता है, तुम्हारा अनुचित लाभ उठाता है, स्वयं को उन्नत करता है, यहाँ तक कि वह तुम्हारे मुख पर थप्पड़ तक मार देता है! 21 मुझे स्वयं लज्जित हो कहना पड़ रहा है कि हम इन सब की तुलना में बहुत दुर्बल थे.

कोई किसी भी विषय का अभिमान करने का साहस करे—मैं यह मूर्खतापूर्वक कह रहा हूँ—मैं भी उसी प्रकार अभिमान करने का साहस कर रहा हूँ. 22 क्या वे इब्री हैं? इब्री मैं भी हूँ, क्या वे इस्राएली हैं? इस्राएली मैं भी हूँ, क्या वे अब्राहाम के वंशज हैं? अब्राहाम का वंशज मैं भी हूँ. 23 क्या वे मसीह के सेवक हैं? मैं पागल व्यक्ति की तरह कहता हूँ, मैं उनसे कहीं बढ़कर हूँ: मैंने उनसे कहीं अधिक परिश्रम किया है, उनसे कहीं अधिक बन्दी बनाया गया हूँ, अनगिनत बार पीटा गया हूँ, अक्सर ही मेरे प्राण संकट में पड़े हैं. 24 यहूदियों ने मुझे पाँच बार एक कम चालीस कोड़े लगाए. 25 तीन बार मैं बेंत से पीटा गया, एक बार मेरा पथराव किया गया और तीन बार मेरा जलयान ध्वस्त हुआ, एक रात तथा एक दिन मुझे समुद्र में व्यतीत करना पड़ा. 26 बार-बार मुझे यात्राएँ करनी पड़ीं. कभी नदियों के, कभी डाकुओं के, कभी अपने देशवासियों के, कभी अन्यजातियों के, कभी नगरों में, कभी जंगल में, कभी समुद्र में जोखिम का और कभी झूठे विश्वासियों के जोखिम का सामना करना पड़ा है. 27 मैंने अनेक रातें जाग कर, भूखे-प्यासे रह कर, अक्सर भूखे रह कर, सर्दी और थोड़े वस्त्रों में रहते हुए कठिन परिश्रम किया तथा अनेक कठिनाइयाँ झेली हैं. 28 इन सब बाहरी कठिनाइयों के अलावा प्रतिदिन मुझ पर सभी कलीसियाओं की भलाई-चिन्ता का बोझ बना रहता है. 29 कौन कमज़ोर है, जिसकी कमज़ोरी का अहसास मुझे नहीं होता? किसके पाप में पड़ने से मैं चिन्तित नहीं होता?

30 यदि मुझे घमण्ड़ करना ही है तो मैं अपनी कमज़ोरी का घमण्ड़ करूँगा. 31 प्रभु मसीह येशु के परमेश्वर तथा पिता, जो युगानुयुग धन्य हैं, गवाह हैं कि मैं झूठ नहीं बोल रहा: 32 जब मैं दमिश्क में था तो राजा अरेतॉस के राज्यपाल ने मुझे बन्दी बनाने के उद्धेश्य से नगर में पहरा बैठा दिया था 33 किन्तु मुझे शहरपनाह के एक झरोखे से एक टोकरे में बैठा कर नीचे उतार दिया गया और इस प्रकार मैं उसके हाथों से बच निकला.

पौलॉस का ईश्वरीय दर्शन तथा उनका काँटा

12 अपनी बड़ाई करना मेरे लिए ज़रूरी हो गया है—हालांकि इसमें कोई भी लाभ नहीं है—इसलिए मैं प्रभु के द्वारा दिए गए दर्शनों तथा दिव्य प्रकाशनों के वर्णन की ओर बढ़ रहा हूँ. मैं एक ऐसे व्यक्ति को, जो मसीह का विश्वासी है, जानता हूँ. चौदह वर्ष पहले यह व्यक्ति तीसरे स्वर्ग तक उठा लिया गया—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं. मैं जानता हूँ कैसे यही व्यक्ति—शरीर के साथ या बिना शरीर के, मुझे मालूम नहीं—यह परमेश्वर ही जानते हैं; स्वर्ग में उठा लिया गया. वहाँ उसने वे अवर्णनीय वचन सुने, जिनका वर्णन करना किसी भी मनुष्य के लिए संभव नहीं है. इसी व्यक्ति की ओर से मैं घमण्ड़ करूँगा—स्वयं अपने विषय में नहीं—सिवाय अपनी कमज़ोरियों के. वैसे भी यदि मैं अपनी बड़ाई करने ही लगूँ तो इसे मेरी मूर्खता नहीं माना जा सकेगा क्योंकि वह सत्य वर्णन होगा. किन्तु मैं यह भी नहीं करूँगा कि कोई भी मेरे स्वभाव, मेरे वर्णन से प्रभावित हो मुझे मेरे कथन अथवा करनी से अधिक श्रेय देने लगे.

मेरे अद्भुत प्रकाशनों की श्रेष्ठता के कारण मुझे अपनी बड़ाई करने से रोकने के उद्धेश्य से मेरे शरीर में एक काँटा लगाया गया है—मुझे कष्ट देते रहने के लिए शैतान का एक अपदूत—कि मैं अपनी बड़ाई न करूँ. इसके उपाय के लिए मैंने तीन बार प्रभु से गिड़गिड़ाकर विनती की. प्रभु का उत्तर था: “कमज़ोरी में मेरा सामर्थ्य सिद्ध हो जाता है इसलिए तुम्हारे लिए मेरा अनुग्रह ही काफी है.” इसके प्रकाश में मैं बड़े हर्ष के साथ अपनी कमज़ोरियों के विषय में घमण्ड़ करूँगा कि मेरे द्वारा प्रभु का सामर्थ्य सक्रिय हो जाए. 10 मसीह के लिए मैं कमज़ोरियों, अपमानों, कष्टों, सताहटों तथा कठिनाइयों में पूरी तरह सन्तुष्ट हूँ क्योंकि जब कभी मैं दुर्बल होता हूँ, तभी मैं बलवन्त होता हूँ.

कोरिन्थॉस के विश्वासियों के लिए पौलॉस की हितचिन्ता

11 यह करते हुए मैंने स्वयं को मूर्ख बना लिया है. तुमने ही मुझे इसके लिए मजबूर किया है. होना तो यह था कि तुम मेरी प्रशंसा करते. यद्यपि मैं तुच्छ हूँ फिर भी मैं उन बड़े-बड़े प्रेरितों की तुलना में कम नहीं हूँ. 12 मैंने तुम्हारे बीच रहते हुए प्रेरिताई प्रमाणस्वरूप धीरज, चमत्कार चिह्न, अद्भुत काम तथा सामर्थ्य भरे काम दिखाए. 13 भला तुम किस क्षेत्र में अन्य कलीसियाओं की तुलना में कम रहे, सिवाय इसके कि मैं कभी भी तुम्हारे लिए बोझ नहीं बना? क्षमा कर दो. मुझसे भूल हो गई.

14 मैं तीसरी बार वहाँ आने के लिए तैयार हूँ. मैं तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनूँगा. मेरी रुचि तुम्हारी सम्पत्ति में नहीं, स्वयं तुममें है. सन्तान से यह आशा नहीं की जाती कि वे माता-पिता के लिए कमाएं—सन्तान के लिए माता-पिता कमाते हैं. 15 तुम्हारी आत्माओं के भले के लिए मैं निश्चित ही अपना सब कुछ तथा खुद को खर्च करने के लिए तैयार हूँ. क्या तुम्हें बढ़कर प्रेम करने का बदला तुम मुझे कम प्रेम करने के द्वारा दोगे? 16 कुछ भी हो, मैं तुम पर बोझ नहीं बना. फिर भी कोई न कोई मुझ पर यह दोष ज़रूर लगा सकता है, “बड़ा धूर्त है वह! छल कर गया है तुमसे!” 17 तुम्हीं बताओ, क्या वास्तव में इन व्यक्तियों को तुम्हारे पास भेजकर मैंने तुम्हारा गलत फायदा उठाया है? 18 तीतॉस को तुम्हारे पास भेजने की विनती मैंने की थी. उसके साथ अपने इस भाई को भी मैंने ही भेजा था. क्या तीतॉस ने तुम्हारा गलत फायदा उठाया? क्या हमारा स्वभाव एक ही भाव से प्रेरित न था? क्या हम उन्हीं पदचिह्नों पर न चले?

19 यह सम्भव है तुम अपने मन में यह विचार कर रहे हो कि हम यह सब अपने बचाव में कह रहे हैं. प्रिय मित्रो, हम यह सब परमेश्वर के सामने मसीह येशु में तुम्हें उन्नत करने के उद्धेश्य से कह रहे हैं. 20 मुझे यह डर है कि मेरे वहाँ आने पर मैं तुम्हें अपनी उम्मीद के अनुसार न पाऊँ और तुम भी मुझे अपनी उम्मीद के अनुसार न पाओ. मुझे डर है कि वहाँ झगड़ा, जलन, क्रोध, उदासी, बदनामी, बकवाद, अहंकार तथा व्यवस्था ठीक से न हो. 21 मुझे डर है कि मेरे वहाँ दोबारा आने पर कहीं मेरे परमेश्वर तुम्हारे सामने मेरी प्रतिष्ठा भंग न कर दें और मुझे तुममें से अनेक के अतीत में किए गए पापों तथा उनके अशुद्धता, गैर-कानूनी तथा कामुकता भरे स्वभाव के लिए पश्चाताप न करने के कारण शोक करना पड़े.

अन्तिम चेतावनियाँ

13 तुम्हारे पास मैं तीसरी बार आ रहा हूँ. हर एक सच की पुष्टि के लिए दो या तीन गवाहों की ज़रूरत होती है. वहाँ अपने दूसरी बार ठहरने के अवसर पर मैंने तुमसे कहा था और अब वहाँ अनुपस्थित होने पर भी वहाँ आने से पहले मैं उन सब से यह कह रहा हूँ: जिन्होंने अतीत में पाप किया है तथा बाकी लोगों से भी, यदि मैं फिर आऊँगा तो किसी पर दया न करूँगा क्योंकि तुम यह सबूत चाहते हो कि जो मेरे द्वारा बातें करते हैं, वह मसीह हैं और वह तुम्हारे प्रति निर्बल नहीं परन्तु तुम्हारे मध्य सामर्थी हैं. वास्तव में वह दुर्बलता की अवस्था में ही क्रूसित किए गए, फिर भी वह परमेश्वर के सामर्थ्य में जीवित हैं. निस्सन्देह हम उनमें कमज़ोर हैं, फिर भी हम तुम्हारे लिए परमेश्वर के सक्रिय सामर्थ्य के कारण उनके साथ जीवित रहेंगे.

स्वयं को परखो कि तुम विश्वास में हो या नहीं. अपने आप को जाँचो! क्या तुम्हें यह अहसास नहीं होता कि मसीह येशु तुममें हैं. यदि नहीं तो तुम कसौटी पर खरे नहीं उतरे. मुझे भरोसा है कि तुम यह जान जाओगे कि हम कसौटी पर खोटे नहीं उतरे. हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि तुमसे कोई गलती न हो. इसलिए नहीं कि हम भले दिखाई दें परन्तु इसलिए कि तुम वही करो, जो उचित है, फिर हम भले ही खोटे दिखाई दें. सच्चाई के विरोध में हम कुछ भी नहीं कर सकते. हम सच के पक्षधर ही रह सकते हैं. हम अपने कमज़ोर होने तथा तुम्हारे समर्थ होने पर आनन्दित होते हैं और यह प्रार्थना भी करते हैं कि तुम सिद्ध बन जाओ. 10 इस कारण दूर होते हुए भी मैं तुम्हें यह सब लिख रहा हूँ कि वहाँ उपस्थिति होने पर मुझे प्रभु द्वारा दिए गए अधिकार का प्रयोग कठोर भाव में न करना पढ़े. इस अधिकार का उद्धेश्य है उन्नत करना, न कि नाश करना.

आशीर्वचन

11 अन्त में, प्रियजन, आनन्दित रहो, अपना स्वभाव साफ़ रखो, एक दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, एकमत रहो, शान्ति बनाए रखो और प्रेम और शान्ति के परमेश्वर तुम्हारे साथ होंगे.

12 पवित्र चुम्बन से एक दूसरे का नमस्कार करो. 13 सभी पवित्र लोगों की ओर से नमस्कार.

14 प्रभु मसीह येशु का अनुग्रह और परमेश्वर का प्रेम और पवित्रात्मा की सहभागिता तुम सभी के साथ बनी रहे.

यह पत्र पौलॉस की ओर से है, जिसे न तो मनुष्यों की ओर से और न ही किसी मनुष्य की प्रक्रिया द्वारा परन्तु मसीह येशु और पिता परमेश्वर द्वारा, जिन्होंने मसीह येशु को मरे हुओं में से जीवित किया, प्रेरित चुना गया तथा उन विश्वासियों की ओर से, जो इस समय मेरे साथ हैं,

गलातिया प्रदेश की कलीसियाओं के नाम में:

हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु मसीह येशु की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो. मसीह येशु, जिन्होंने हमारे पापों के कारण स्वयं को इसलिए बलिदान कर दिया कि हमारे परमेश्वर और पिता की इच्छानुसार वह हमें वर्तमान बुरे संसार से छुड़ायें, उन्हीं की महिमा हमेशा हमेशा होती रहे. आमेन.

एक चेतावनी

मैं यह जान कर चकित हूँ कि तुम परमेश्वर से, जिन्होंने मसीह के अनुग्रह के द्वारा तुम्हें बुलाया, इतनी जल्दी भटक कर एक अन्य ईश्वरीय सुसमाचार की ओर फिर गये हो पर वह दूसरा सुसमाचार जो वास्तव में ईश्वरीय सुसमाचार है ही नहीं! साफ़ तौर पर कुछ लोग हैं, जो मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार को बिगाड़ कर तुम्हें घबरा देना चाहते हैं किन्तु यदि हम या कोई स्वर्गदूत तक उस ईश्वरीय सुसमाचार के अलावा, जो हमने तुम्हें सुनाया है, किसी भिन्न ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करे तो वह शापित है. जैसा हमने पहले भी कहा, मैं अब दोबारा कहता हूँ कि उस ईश्वरीय सुसमाचार के अलावा, जो हमने तुम्हें सुनाया, यदि कोई व्यक्ति तुम्हें अलग ईश्वरीय सुसमाचार सुनाए तो वह शापित है.

10 किसका कृपापात्र बनने की कोशिश कर रहा हूँ मैं—मनुष्यों का या परमेश्वर का? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करने के लिए प्रयास कर रहा हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्न कर रहा होता तो मसीह का दास न होता.

पौलॉस द्वारा अपनी सेवा का बचाव और परमेश्वर द्वारा बुलाया जाना

11 प्रियजन, मैं तुम पर यह स्पष्ट कर रहा हूँ कि जो ईश्वरीय सुसमाचार मैंने तुम्हें सुनाया, वह किसी मनुष्य के दिमाग की उपज नहीं है. 12 यह मुझे न तो किसी मनुष्य से और न ही किसी शिक्षा से, परन्तु स्वयं मसीह येशु के प्रकाशन के द्वारा प्राप्त हुआ है.

13 यहूदी मत के शिष्य के रूप में मेरी जीवनशैली कैसी थी, इसके विषय में तुम सुन चुके हो. मैं किस रीति से परमेश्वर की कलीसिया पर घोर अत्याचार किया करता था तथा उसे नाश करने के लिए प्रयास करता रहता था. 14 यहूदी मत में अपने पूर्वजों की परम्पराओं के प्रति अत्यन्त उत्साही, मैं अपनी आयु के यहूदियों से अधिक उन्नत होता जा रहा था. 15 किन्तु परमेश्वर को, जिन्होंने माता के गर्भ से ही मुझे चुन लिया तथा अपने अनुग्रह के द्वारा मुझे बुलाया, यह सही लगा 16 कि वह मुझ में अपने पुत्र को प्रकट करें कि मैं अन्यजातियों में उनका प्रचार करूँ. इसके विषय में मैंने तुरन्त न तो किसी व्यक्ति से सलाह ली 17 और न ही मैं येरूशालेम में उनके पास गया, जो मुझसे पहले प्रेरित चुने जा चुके थे, परन्तु मैं अराबिया क्षेत्र में चला गया और वहाँ से दोबारा दमिश्क नगर लौट गया.

18 तीन वर्ष बाद मैं कैफ़स से भेंट करने येरूशालेम गया और उनके साथ पन्द्रह दिन रहा 19 किन्तु प्रभु के भाई याक़ोब के अलावा अन्य किसी प्रेरित से मेरी भेंट नहीं हुई. 20 परमेश्वर के सामने मैं तुम्हें धीरज देता हूँ कि अपने इस विवरण में मैं कुछ भी झूठ नहीं कह रहा. 21 तब मैं सीरिया और किलिकिया प्रदेश के क्षेत्रों में गया. 22 यहूदिया प्रदेश की कलीसियाओं से, जो अब मसीह में हैं, मैं अब तक व्यक्तिगत रूप से अपरिचित था. 23 मेरे विषय में उन्होंने केवल यही सुना था: “एक समय जो हमारा सताने वाला था, अब वही उस विश्वास का प्रचार कर रहा है, जिसे नष्ट करने के लिए वह दृढ़-संकल्प था.” 24 उनके लिए मैं परमेश्वर की महिमा का विषय हो गया.

येरूशालेम में सम्मेलन

तब चौदह वर्ष बाद मैं बारनबास के साथ दोबारा येरूशालेम गया. इस समय मैं तीतॉस को भी अपने साथ ले गया. मैं एक ईश्वरीय प्रकाशन के उत्तर में वहाँ गया था और मैंने उनको वही ईश्वरीय सुसमाचार दिया, जिसका प्रचार मैं अन्यजातियों के बीच कर रहा हूँ किन्तु गुप्त रूप से, केवल नामी व्यक्तियों के बीच ही—इस भय से कि कहीं मेरी पिछली दौड़-धूप व्यर्थ न हो जाए. किसी ने भी मेरे साथी तीतॉस को ख़तना के लिए बाध्य नहीं किया, यद्यपि वह यूनानी है. यह प्रश्न उन पाखण्डियों के कारण उठा था, जो हमारे बीच चुपके से घुस आए थे कि मसीह येशु में हमारी स्वतंत्रता का भेद लें और हमें दासत्व में डाल दें. हम एक क्षण के लिए भी उनके आगे न झुके कि तुममें विद्यमान ईश्वरीय सुसमाचार की सच्चाई सुरक्षित रहे.

इसका मेरे लिए कोई महत्व नहीं कि वे, जो नामी थे, पहले क्या थे. परमेश्वर भेद-भाव करनेवाला नहीं हैं. मेरे सन्देश में उन नामी व्यक्तियों का कोई योगदान नहीं था. इसके विपरीत जब उन्होंने यह देखा कि अख़तनितों के लिए ईश्वरीय सुसमाचार मुझे उसी प्रकार सौंपा गया जिस प्रकार ख़तनितों के लिए पेतरॉस को; क्योंकि जिन्होंने ख़तनितों के बीच पेतरॉस की प्रेरिताई की सेवा में प्रभावशाली रीति से काम किया, उन्होंने अख़तनितों के बीच प्रेरिताई की सेवा में मुझ में भी प्रभावशाली रीति से काम किया; मुझे मिले अनुग्रह को पहचानकर याक़ोब, कैफ़स तथा योहन ने, जो कलीसिया के स्तम्भ के रूप में जाने जाते थे, बारनबास और मेरी ओर सहभागिता का दायाँ हाथ बढ़ाया कि हम अन्यजातियों में और वे ख़तनितों में जाएँ. 10 उन्होंने हमसे सिर्फ यही विनती की कि हम निर्धनों की अनदेखी न करें—ठीक यही तो मैं भी चाहता था!

पेतरॉस के प्रति पौलॉस का विरोध

11 जब कैफ़स अन्तियोख़ नगर आए, मैंने उनके मुख पर उनका विरोध किया क्योंकि उनकी गलती साफ़-साफ़ थी. 12 याक़ोब की ओर से कुछ लोगों के आने से पहले तो वह अन्यजातियों के साथ खान-पान में सम्मिलित होते थे किन्तु याक़ोब के लोगों के यहाँ आने पर वह ख़तनितों के समूह के भय से अलग हो कर अन्यजातियों से दूरी रखने लगे. 13 बाकी यहूदी भी उनके साथ इस कपट में शामिल हो गए—यहाँ तक कि बारनबास भी!

14 जब मैंने यह देखा कि उनका स्वभाव ईश्वरीय सुसमाचार के भेद के अनुसार नहीं है, मैंने सबके सामने कैफ़स से कहा, “यदि स्वयं यहूदी, होकर आपका स्वभाव यहूदियों के समान नहीं परन्तु अन्यजातियों के समान है, तो आप अन्यजातियों को यहूदियों जैसे स्वभाव के लिए बाध्य कैसे कर सकते हो?

पौलॉस द्वारा प्रचारित ईश्वरीय सुसमाचार

15 “आप और मैं जन्म से यहूदी हैं—अन्यजातियों के पापी वंशज नहीं. 16 फिर भी हम यह जानते हैं कि परमेश्वर की दृष्टि में मनुष्य मात्र मसीह येशु में विश्वास करने के द्वारा ही धर्मी ठहरता है, न कि व्यवस्था का पालन करने के द्वारा, इसलिए हमने भी मसीह येशु में विश्वास किया कि हम मसीह में विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहराए जाएँ, न कि व्यवस्था का पालन करने के द्वारा—क्योंकि व्यवस्था का पालन करने से कोई भी मनुष्य धर्मी ठहराया नहीं जाता.

17 “किन्तु, यदि हम मसीह में धर्मी ठहराए जाने के लिए प्रयास करने पर भी पापी ही पाए जाते हैं, तो क्या मसीह पाप के पालन-पोषण करने वाले हैं? बिलकुल नहीं! 18 यदि मैं उसी को दोबारा बनाता हूँ, जिसे मैंने गिरा दिया था, तो मैं स्वयं को ही अपराधी साबित करता हूँ.

19 “क्योंकि व्यवस्था के द्वारा मैं व्यवस्था के लिए मर गया कि मैं परमेश्वर के लिए जिऊँ. 20 मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका हूँ. अब से वह, जो जीवित है, मैं नहीं परन्तु मसीह हैं, जो मुझमें जीवित हैं. अब वह जीवन, जो मैं शरीर में जी रहा हूँ, परमेश्वर के पुत्र में विश्वास करते हुए जी रहा हूँ, जिन्होंने मुझसे प्रेम किया और स्वयं को मेरे लिए बलिदान कर दिया. 21 मैं परमेश्वर के अनुग्रह को व्यर्थ नहीं कर रहा, क्योंकि यदि व्यवस्था धार्मिकता का कारण होता, तब मसीह का प्राण त्यागना व्यर्थ हो जाता!”

विश्वास जनित धार्मिकता

निर्बुद्धि गलातियो! किसने तुम्हें सम्मोहित कर दिया? तुम्हारे सामने तो मसीह येशु को साफ़-साफ़ क्रूस पर दिखाया गया था! मैं तुमसे सिर्फ यह जानना चाहता हूँ: पवित्रात्मा तुमने व्यवस्था के नियम-पालन द्वारा प्राप्त किया या ईश्वरीय सुसमाचार को सुनने और उसमें विश्वास करने के द्वारा? क्या तुम इतने निर्बुद्धि हो? जो पवित्रात्मा द्वारा शुरू किया गया था क्या वह मनुष्य के कार्यों से सिद्ध बनाया जा रहा है? तुमने इतने दुःख उठाए तो क्या वे वास्तव में व्यर्थ थे? परमेश्वर, जो तुम्हें अपना आत्मा प्रदान करते तथा तुम्हारे बीच चमत्कार करते हैं, क्या यह वह व्यवस्था का पालन करने के द्वारा करते हैं या विश्वास के साथ सुनने के द्वारा; जैसे अब्राहाम ने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उनके लिए धार्मिकता माना गया? इसलिए अब यह भली-भांति समझ लो कि जिन्होंने विश्वास किया है वे ही अब्राहाम की सन्तान हैं. पवित्रशास्त्र ने पहले से जानकर कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएंगे, पहले ही अब्राहाम को यह शुभसन्देश देते हुए कहा था: “सभी राष्ट्र तुम में आशीषित होंगे.” इसलिए वे सभी, जो विश्वास करते हैं, अब्राहाम—विश्वास-पुरुष—के साथ, जो स्वयं विश्वासी थे, आशीषित किए जाते हैं.

व्यवस्था द्वारा लाया गया शाप

10 वे, जो व्यवस्था के कार्यों पर निर्भर हैं, शापित हैं क्योंकि पवित्रशास्त्र का वर्णन है: शापित है वह, जो व्यवस्था के हर एक नियम का पालन नहीं करता. 11 यह स्पष्ट है कि व्यवस्था के द्वारा परमेश्वर के सामने कोई भी धर्मी नहीं ठहरता; क्योंकि लिखा है: वह, जो धर्मी है, विश्वास से जीवित रहेगा. 12 फिर भी, व्यवस्था विश्वास पर आधारित नहीं है, इसके विपरीत जो उसका पालन करता है, उसी के द्वारा जिएगा. 13 मसीह ने स्वयं शाप बन कर हमें व्यवस्था के शाप से मुक्त कर दिया—जैसा कि लिखा है: शापित है हर एक, जो काठ पर लटकाया जाता है. 14 यह सब इसलिए कि मसीह येशु में अब्राहाम की आशीषें अन्यजातियों तक आएँ और हम विश्वास द्वारा प्रतिज्ञा की हुई पवित्रात्मा प्राप्त करें.

व्यवस्था द्वारा प्रतिज्ञा अस्वीकार नहीं की गई

15 प्रियजन, मैं सामान्य जीवन से उदाहरण दे रहा हूँ: एक मानवीय वाचा की पुष्टि के बाद उसे न तो कोई अलग करता है और न ही उसमें कुछ जोड़ता है. 16 प्रतिज्ञाएँ अब्राहाम और उनके वंशज से की गई थीं. वहाँ यह नहीं कहा गया, वंशजों से, मानो अनेकों से परन्तु एक ही से अर्थात् वंशज से, अर्थात् मसीह से. 17 मेरे कहने का मतलब यह है: परमेश्वर ने अब्राहाम से एक वाचा स्थापित की तथा उसे पूरा करने की प्रतिज्ञा भी की. चार सौ तीस वर्ष बाद दी गई व्यवस्था न तो परमेश्वर की वाचा को मिटा सकती है और न परमेश्वर की प्रतिज्ञा को. 18 यदि मीरास का आधार व्यवस्था है तो मीरास प्रतिज्ञा पर आधारित हो ही नहीं सकती, किन्तु परमेश्वर ने अब्राहाम को यह मीरास प्रतिज्ञा द्वारा ही प्रदान की.

19 तब क्या उद्धेश्य है व्यवस्था का? अपराध का अहसास. उसे स्वर्गदूतों द्वारा एक मध्यस्थ के माध्यम से आधिकारिक रूप से उस वंशज के आने तक बनाये रखा गया जिसके विषय में प्रतिज्ञा की गई थी. 20 सिर्फ एक पक्ष के लिए मध्यस्थ आवश्यक नहीं होता, जबकि परमेश्वर सिर्फ एक हैं. 21 तो क्या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विपरीत है? बिलकुल नहीं! यदि कोई ऐसी व्यवस्था दी गई होती, जो जीवन प्रदान कर सकता थी, तब निश्चयत: उस व्यवस्था के पालन करने पर धार्मिकता प्राप्त हो जाती. 22 किन्तु पवित्रशास्त्र ने यह स्पष्ट किया कि पूरा विश्व पाप की अधीनता में है कि मसीह येशु में विश्वास करने के द्वारा प्रतिज्ञा उन्हें दी जा सके, जो विश्वास करते हैं.

विश्वास का पदार्पण

23 मसीह येशु में विश्वास के प्रकाशन से पहले हम व्यवस्था के संरक्षण में रखे गए—उस विश्वास से अनजान, जो प्रकट होने पर था. 24 इसलिए व्यवस्था हमें मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारा संरक्षक हुआ कि हम विश्वास द्वारा धर्मी ठहराए जाएँ 25 परन्तु अब, जब विश्वास आ चुका है, हम संरक्षक के अधीन नहीं रहे.

Saral Hindi Bible (SHB)

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