Bible in 90 Days
1 मसीह येशु के दास और याक़ोब के भाई यहूदाह की ओर से,
तुम सबको, जो परमेश्वर पिता के द्वारा बुलाए गए हैं और प्रेमपात्र हो और मसीह येशु के लिए सुरक्षित रखे गए हो:
2 कृपा, शान्ति और प्रेम अधिकता में मिलते जाएँ.
पत्र लिखने का उद्देश्य
3 प्रियों, हालांकि मैं बहुत ही उत्सुक था कि तुमसे हम सभी को मिले समान उद्धार का वर्णन करूँ किन्तु अब मुझे यह ज़रूरी लग रहा है कि मैं तुम्हें उस विश्वास की रक्षा के प्रयास के लिए प्रेरित करूँ, जो पवित्र लोगों को सदा के लिए एक ही बार में सौंप दिया गया है. 4 तुम्हारे बीच कुछ ऐसे व्यक्ति चुपचाप घुस आए हैं, जिनके लिए यह दण्ड बहुत पहले ही तय कर दिया गया था. ये वे भक्तिहीन हैं, जो हमारे एकमात्र स्वामी व प्रभु मसीह येशु को अस्वीकार करते हुए परमेश्वर के अनुग्रह को बिगाड़ कर कामुकता में बदल देते हैं.
5 हालांकि तुम इस सच्चाई से पहले से ही परिचित हो, तौभी यहाँ मेरा उद्धेश्य तुम्हें यह याद दिलाना है कि प्रभु ने अपनी प्रजा को मिस्र से छुड़ाने के बाद अन्ततः: उन्हीं में से उन लोगों का विनाश कर दिया, जो विश्वास से दूर हो गए थे. 6 जिस प्रकार परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को भीषण न्याय के दिन तक के लिए सदाकाल के लिए अन्धकार में रख छोड़ा है, जिन्होंने अपने आचार नियमों का उल्लंघन करके अपने राजपद तथा घर को त्याग दिया, 7 उसी प्रकार सोदोम और अमोराह और आस-पास के नगरों को, जो इनके समान व्यभिचारी हो गये और अप्राकृतिक वासना का अनुसरण करने लगे और अग्नि के दण्ड के भोगी होकर अन्यों के लिये उदाहरण ठहरें.
उनका दुराचारी स्वभाव
8 फिर भी ये स्वप्नदर्शी, शरीर को उसी प्रकार अशुद्ध करते हैं, प्रभुत्व को अस्वीकार करते हैं और महिमामय स्वर्गीय प्राणियों की निन्दा करते हैं. 9 प्रधान स्वर्गदूत मीख़ाएल तक ने, जब वह मोशेह के शव के विषय में शैतान से वाद-विवाद कर रहा था, उसे लांछित कर अपमानित नहीं किया, परन्तु सिर्फ इतना ही कहा, “परमेश्वर ही तुझे फटकारें.” 10 ये लोग जिन विषयों को नहीं समझते, उन्हीं की बुराई करते और जिन विषयों को मूल रूप से अचेतन पशुओं की तरह समझते हैं, उन्हीं के द्वारा नाश हो जाते हैं.
11 धिक्कार है इन पर! जिन्होंने काइन का मार्ग अपना लिया; धन के लालच के कारण उन्होंने वही गलती की, जो बिलाम ने की थी और उसी प्रकार नाश हुए जिस प्रकार विद्रोही कोरह.
12 ये लोग समुद्र में छिपी हुई विनाशकारी चट्टानें हैं, जो तुम्हारे प्रेम-भोजों में प्रेम जताते हुए सिर्फ अपनी सन्तुष्टि के लिए बेशर्म हो भाग लेते हैं. ये निर्जल बादल हैं जिन्हें हवा उड़ा ले जाती है. यह शरद ऋतु के फलहीन और जड़ से गिरे हुए पेड़ हैं, जिनकी दोहरी मृत्यु हुई है. 13 ये समुद्र की प्रचण्ड लहरों के समान हैं, जो अपनी लज्जा फेन के रूप में उछालते हैं. ये मार्ग से भटके हुए तारागण हैं, जिनके लिए अनन्तकाल के लिए घोर अन्धकार तय किया गया है.
14 हनोक ने भी, जो आदम की सातवीं पीढ़ी में थे, इनके विषय में भविष्यवाणी की थी: “देखो, प्रभु अपने हज़ारों पवित्र लोगों के साथ आए 15 कि सबका न्याय करें और दुष्टों को उनके सभी बुरे कामों के लिए, जो उन्होंने बुराई से किए हैं और दुष्ट पापियों को, जिन्होंने परमेश्वर के विरोध में कड़वे वचन इस्तेमाल किए हैं, दोषी ठहराएं.” 16 ये वे हैं, जो कुड़कुड़ाते रहते हैं, सदा खोट निकालते रहते हैं तथा जो वासना-लिप्त, घमण्ड़ी और अपने लाभ के लिए चापलूसी करने वाले हैं.
एक चेतावनी
17 इसलिए प्रियो, यह आवश्यक है कि तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के प्रेरितों की पहले से की गई घोषणाओं को याद रखो. 18 वे तुमसे कहते थे, “अन्तिम दिनों में ऐसे लोग होंगे, जिनका स्वभाव उनकी अभक्ति की अभिलाषाओं के अनुसार होगा.” 19 ये लोग फूट ड़ालनेवाले, संसारी और आत्मा से रहित हैं.
20 किन्तु प्रियो, तुम स्वयं को अपने अति पवित्र विश्वास में बढ़ाते जाओ. पवित्रात्मा में प्रार्थना करते हुए 21 अनन्त काल के जीवन के लिए हमारे प्रभु मसीह येशु की दया की बड़ी आशा से प्रतीक्षा करते हुए स्वयं को परमेश्वर के प्रेम में स्थिर बनाए रखो.
22 जो विश्वास में अस्थिर हैं, उनके लिए दया दिखाओ, 23 बाकियों को आग में से झपट कर निकाल लो, दया करते हुए सावधान रहो, यहाँ तक कि शरीर के द्वारा कलंकित वस्त्रों से भी घृणा करो.
स्तुति
24 अब वह जो ठोकर खाने से तुम्हारी रक्षा करने और अपनी महिमामय उपस्थिति में आनन्दपूर्वक तुम्हें निर्दोष प्रस्तुत करने में समर्थ हैं, 25 उन अतुल्य परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता की महिमा, वैभव, पराक्रम और राज्य मसीह येशु, हमारे प्रभु के द्वारा जैसी सनातन काल से थी, अब है, युगानुयुग बनी रहे, आमेन.
प्राक्कथन
1 मसीह येशु का प्रकाशन, जिसे परमेश्वर ने उन पर इसलिए प्रकट किया कि वह अपने दासों पर उन घटनाओं का प्रकाशन करें जिनका जल्द ही घटित होना तय है. 2 इसे परमेश्वर ने अपने स्वर्गदूत के माध्यम से अपने दास योहन को पहुँचाया. योहन प्रमाणित करते हैं कि वह सब, जो उन्होंने देखा है, परमेश्वर की ओर से दिया गया सन्देश तथा मसीह येशु के साक्षी है. 3 धन्य है वह, जो इस भविष्यवाणी को पढ़ता है तथा वे सब, जो इस भविष्यवाणी को सुनते हैं तथा इसमें लिखी हुई बातों का पालन करते हैं क्योंकि इसके पूरा होने का समय निकट है.
सम्बोधन, नमस्कार तथा स्तुति
4 योहन की ओर से उन सात कलीसियाओं को, जो आसिया प्रदेश में हैं.
तुम्हें उनकी ओर से अनुग्रह और शान्ति मिले, जो हैं, जो सर्वदा थे और जो आनेवाले हैं और सात आत्माओं की ओर से, जो उनके सिंहासन के सामने हैं 5 तथा मसीह येशु की ओर से, जो विश्वासयोग्य गवाह, मरे हुओं से जी उठनेवालों में पहिलौठे तथा पृथ्वी के राजाओं के हाकिम हैं.
गौरव तथा अधिकार हमेशा-हमेशा उन्हीं का हो, जो हम से प्रेम करते हैं तथा जिन्होंने अपने लहू द्वारा हमें हमारे पापों से छुड़ाया 6 और हमें अपनी प्रजा, अपने परमेश्वर और पिता के सामने याजक होने के लिए चुना. आमेन.
7 याद रहे:
वह बादलों में आ रहे हैं.
हर एक आँख उन्हें देखेगी—यहाँ तक कि वे भी,
जिन्होंने उन्हें बेधा था.
पृथ्वी के सभी मनुष्य उनके लिए विलाप करेंगे.
सच यही है! आमेन.
8 “सर्वशक्तिमान, जो है, जो हमेशा से था तथा जो आनेवाला है,” प्रभु परमेश्वर का वचन है, “अल्फ़ा और ओमेगा मैं ही हूँ.”
ईश्वरीय दर्शन का प्रारम्भ
मनुष्य के पुत्र समान व्यक्ति
9 मैं योहन, मसीह में तुम्हारा भाई तथा मसीह येशु के लिए दुःख सहने, परमेश्वर के राज्य की नागरिकता तथा लगातार कोशिश करने में तुम्हारा सहभागी हूँ, परमेश्वर के सन्देश के प्रचार के कारण मसीह येशु के गवाह के रूप में मैं पतमॉस नामक द्वीप में भेज दिया गया था. 10 प्रभु के दिन आत्मा में ध्यानमग्न की अवस्था में मुझे अपने पीछे तुरही के ऊँचे शब्द के समान यह कहता सुनाई दिया, 11 “जो कुछ तुम देख रहे हो, उसे लिखकर इन सात कलीसियाओं को भेज दो: इफ़ेसॉस, स्मुरना, पेरगामॉस, थुआतेइरा, सारदेइस, फ़िलादेलफ़ेइया और लाओदीकेइया.”
12 यह देखने के लिए कि कौन मुझसे बातें कर रहा है, मैं पीछे मुड़ा. पीछे मुड़ने पर मुझे सात सोने के दीपदान दिखाई दिए 13 और मैंने दीपदानों के बीच एक “मनुष्य के पुत्र,” के समान एक पुरुष को पैरों तक लम्बा वस्त्र तथा छाती पर सोने का पटुका बांधे हुए देखा. 14 उनका सिर और बाल ऊन के समान सफ़ेद हिम जैसे उजले, आँख आग की ज्वाला से, 15 पैर भट्टी में तपा कर चमकाए हुए काँसे की तरह तथा उनका शब्द प्रचण्ड लहरों की गर्जन-सा था. 16 वह अपने दायें हाथ में सात तारे लिए हुए थे. उनके मुँह से तेज़ दोधारी तलवार निकली हुई थी. उनका चेहरा दोपहर के सूर्य जैसे दमक रहा था.
17 उन्हें देख मैं उनके चरणों पर मरा हुआ सा गिर पड़ा. उन्होंने अपना दायाँ हाथ मुझ पर रखकर कहा: “डरो मत. पहिला और अन्तिम मैं ही हूँ. 18 और जीवित मैं ही हूँ; मैं मृत था किन्तु देखो, अब मैं हमेशा के लिए जीवित हूँ. मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ मेरे अधिकार में हैं.
19 “इसलिए तुमने जो देखा है, जो इस समय घट रहा है और जो इसके बाद घटने पर है, उसे लिख लेना. 20 इन सात तारों का, जो तुम मेरे दायें हाथ में देख रहे हो तथा सात सोने के दीपदानों का गहरा अर्थ यह है: ये सात तारे सात कलीसियाओं को भेजे हुए दूत तथा सात दीपदान सात कलीसियाएँ हैं.”
इफ़ेसॉस की कलीसिया को
2 “इफ़ेसॉस नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
जो अपने दायें हाथ में साथ तारे लिए हुए है तथा जो सात सोने के दीपदानों के बीच चल रहा है, उसका कहना यह है 2 ‘मैं तुम्हारे कामों, तुम्हारे परिश्रम तथा तुम्हारे धीरज से भली-भांति परिचित हूँ और यह भी जानता हूँ कि बुराई तुम्हारे लिए असहनीय हैं. तुमने उनके दावों को, जो स्वयं को प्रेरित कहते तो हैं, किन्तु हैं नहीं, परखा और झूठा पाया 3 और यह भी कि तुम धीरज धरे रहे. तुम मेरे नाम के लिए दुःख सहते रहे, किन्तु तुमने हार स्वीकार नहीं की.’
4 परन्तु तुम्हारे विरुद्ध मुझे यह कहना है कि तुम में वह प्रेम नहीं रहा, जो पहले था. 5 याद करो कि तुम कहाँ से कहाँ आ गिरे हो. इसलिए पश्चाताप करो और वही करो जो तुम पहले किया करते थे; नहीं तो, अगर तुम पश्चाताप न करोगे तो मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हारा दीपदान उसके नियत स्थान से हटा दूँगा. 6 हाँ, तुम्हारे विषय में प्रशंसा के योग्य सच्चाई ये है कि तुम भी निकोलॉस के शिष्यों के स्वभाव से घृणा करते हो, जिससे मैं भी घृणा करता हूँ.
7 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का संबोधन क्या है. जो जयवन्त होगा, उसे मैं जीवन के पेड़ में से, जो परमेश्वर के परादीस (स्वर्गलोक) में है, खाने के लिए दूँगा.”
स्मुरना की कलीसिया को
8 “स्मुरना नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
जो पहिला और अन्तिम है, जिसकी मृत्यु ज़रूर हुई किन्तु अब वह जीवित है, उसका कहना यह है 9 मैं तुम्हारी पीड़ा और कंगाली से परिचित हूँ—किन्तु वास्तव में तुम धनी हो! मैं उनके द्वारा तुम्हारे लिए इस्तेमाल अपशब्दों से भी परिचित हूँ, जो स्वयं को यहूदी कहते तो हैं किन्तु हैं नहीं. वे शैतान का सभागृह हैं. 10 तुम पर जो कष्ट आने को हैं उनसे भयभीत न होना. सावधान रहो: शैतान तुम में से कुछ को कारागार में डालने पर है कि तुम परखे जाओ. तुम्हें दस दिन तक ताड़ना दी जाएगी. अन्तिम साँस तक सच्चे बने रहना और मैं तुम्हें जीवन का मुकुट प्रदान करूँगा.
11 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का कहना क्या है. जो जयवन्त होगा, उस पर दूसरी मृत्यु का कोई प्रहार न होगा.”
पेरगामॉस की कलीसिया को
12 “पेरगामॉस नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
जिसके पास तेज दोधारी तलवार है, उसका कहना यह है 13 मैं जानता हूँ कि तुम्हारा घर कहाँ है—जहाँ शैतान का सिंहासन है—फिर भी मेरे नाम के प्रति तुम्हारी सच्चाई बनी रही और तुमने मेरे प्रति अपने विश्वास का त्याग नहीं किया—उस समय भी, जब मेरे गवाह, मेरे विश्वासयोग्य अन्तिपास की तुम्हारे नगर में, जहाँ शैतान का घर है, हत्या कर दी गई.
14 किन्तु मुझे तुम्हारे विरुद्ध कुछ कहना है तुम्हारे यहाँ कुछ व्यक्ति हैं, जो बिलआम की शिक्षा पर अटल हैं, जिसने राजा बालाक को इस्राएलियों को भरमाने के लिए, मूर्तियों को भेंट वस्तुएं खाने तथा वेश्यागामी के लिए उकसाया. 15 तुम्हारे यहाँ भी कुछ ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिनकी जीवनशैली निकोलस शिष्यों के समान है. 16 इसलिए पश्चाताप करो. नहीं तो मैं जल्द ही तुम्हारे पास आकर उस तलवार से, जो मेरे मुख में है, उससे युद्ध करूँगा.
17 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का कहना क्या है. जो जयवन्त होगा, मैं उसे गुप्त रखे गए मन्ना में से दूँगा तथा एक सफेद पत्थर भी, जिस पर एक नया नाम उकेरा हुआ होगा, जिसे उसके अलावा, जिसने उसे प्राप्त किया है, अन्य कोई नहीं जानता.”
थुआतेइरा की कलीसिया को
18 “थुआतेइरा नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
परमेश्वर के पुत्र का, जिसकी आँखें अग्नि की ज्वाला समान तथा पैर भट्टी तपा कर चमकाए गए काँसे के समान हैं, कहना यह है 19 मैं तुम्हारे कामों, तुम्हारे प्रेम, विश्वास सेवकाई तथा धीरज को जानता हूँ तथा इसे भी कि तुम अब पहले की तुलना में अधिक काम कर रहे हो.
20 किन्तु मुझे तुम्हारे विरुद्ध यह कहना है तुम उस स्त्री ईज़ेबेल को अपने बीच रहने दे रहे हो, जो स्वयं को भविष्यद्वक्ता कहते हुए मेरे दासों को गलत शिक्षा देती तथा उन्हें मूर्तियों को भेंट वस्तुएं खाने तथा वेश्यागामी के लिए उकसाती है. 21 मैंने उसे पश्चाताप करने का समय दिया किन्तु वह अपने व्यभिचारी कामों का पश्चाताप करना नहीं चाहती. 22 इसलिए देखना, मैं उसे बीमारी के बिस्तर पर डाल दूँगा और उन्हें, जो उसके साथ व्यभिचार में लीन हैं, घोर कष्ट में डाल दूँगा—यदि वे उसके साथ के दुष्कर्मों से मन नहीं फिराते. 23 इसके अलावा मैं महामारी से उसकी सन्तान को नाश कर दूँगा, तब सभी कलीसियाओं को यह मालूम हो जाएगा कि जो मन और हृदय की थाह लेता है, मैं वही हूँ तथा मैं ही तुम में हर एक को उसके कामों के अनुसार प्रतिफल दूँगा. 24 किन्तु थुआतेइरा के शेष लोगों के लिए, जो इस शिक्षा से सहमत नहीं हैं तथा जो शैतान के कहे हुए गहरे भेदों से अनजान हैं, मेरा सन्देश यह है मैं तुम पर कोई और बोझ न डालूँगा. 25 फिर भी मेरे आने तक उसे, जो इस समय तुम्हारे पास है, सुरक्षित रखो.
26 जो जयवन्त होगा तथा अन्त तक मेरी इच्छा पूरी करेगा, मैं उसे राष्ट्रों पर अधिकार प्रदान करूँगा. 27 वह उन पर लोहे के राजदण्ड से शासन करेगा और वे मिट्टी के पात्रों के समान चकनाचूर हो जाएँगे ठीक जैसे मुझे यह अधिकार अपने पिता से मिला है. 28 मैं उसे भोर के तारे से सुशोभित करूँगा. 29 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का कहना क्या है.”
सारदेइस की कलीसिया को
3 “सारदेइस नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
जो परमेश्वर की सात आत्माओं का, जो उनकी सेवा में है, हाकिम है तथा जो सात तारे लिए हुए है, उसका कहना यह है: मैं तुम्हारे कामों से परिचित हूँ. तुम कहलाते तो हो जीवित, किन्तु वास्तव में हो मरे हुए! 2 इसलिए सावधान हो जाओ! तुम में जो कुछ बाकी है, वह भी मृतक समान है, उसमें नए जीवन का संचार करो क्योंकि मैंने अपने परमेश्वर की दृष्टि में तुम्हारे अन्य कामों को अधूरा पाया है. 3 इसलिए याद करो कि तुमने क्या शिक्षा प्राप्त की तथा तुमने क्या सुना था. उसका पालन करते हुए पश्चाताप करो; किन्तु यदि तुम न जागे तो मैं चोर के समान आऊँगा—तुम जान भी न पाओगे कि मैं कब तुम्हारे पास आ पहुंचूंगा.
4 सारदेइस नगर की कलीसिया में अभी भी कुछ ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने वस्त्र अधर्म से अशुद्ध नहीं किए. वे सफ़ेद वस्त्रों में मेरे साथ चलने योग्य हैं. 5 जो जयवन्त होगा, उसे मैं सफ़ेद वस्त्रों में सुसज्जित करूँगा. मैं उसका नाम जीवन-पुस्तक में से न मिटाऊँगा. मैं उसका नाम अपने पिता के सामने तथा उनके स्वर्गदूतों के सामने संबोधित करूँगा. 6 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का कहना क्या है.”
फ़िलादेलफ़ेइया की कलीसिया को
7 “फ़िलादेलफ़ेइया नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
वह, जो पवित्र है, जो सच है, जिसके पास दाविद की कुंजी है, जो वह खोलता है, उसे कोई बन्द नहीं कर सकता, जो वह बन्द करता है, उसे कोई खोल नहीं सकता, उसका कहना यह है 8 मैं तुम्हारे कामों से परिचित हूँ. ध्यान दो कि मैंने तुम्हारे सामने एक द्वार खोल रखा है, जिसे कोई बन्द नहीं कर सकता. मैं जानता हूँ कि तुम्हारी शक्ति सीमित है फिर भी तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है और मेरे नाम को अस्वीकार नहीं किया. 9 सुनो! जो शैतान की सभा के हैं और स्वयं को यहूदी कहते हैं, किन्तु हैं नहीं, वे झूठे हैं. मैं उन्हें मजबूर करूँगा कि वे आएँ तथा तुम्हारे पावों में अपने सिर झुकाएं और यह जान लें कि मैंने तुम से प्रेम किया है. 10 इसलिए कि तुमने मेरी धीरज रूपी आज्ञा का पालन किया है, मैं भी उस विपत्ति के समय, जो पृथ्वी के सभी निवासियों पर उन्हें परखने के लिए आने पर है, तुम्हारी रक्षा करूँगा.
11 मैं शीघ्र आ रहा हूँ. जो कुछ तुम्हारे पास है, उस पर अटल रहो कि कोई तुम्हारा मुकुट छीनने ना पाए. 12 जो जयवन्त होगा, उसे मैं अपने परमेश्वर के मन्दिर का खम्भा बनाऊँगा. वह वहाँ से कभी बाहर ना जाएगा. मैं उस पर अपने परमेश्वर का नाम, अपने परमेश्वर के नगर, नए येरूशालेम का नाम, जो मेरे परमेश्वर की ओर से स्वर्ग से उतरने वाला है तथा अपना नया नाम अंकित करूँगा. 13 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का कहना क्या है.”
लाओदीकेइया की कलीसिया को
14 “लाओदीकेइया नगर की कलीसिया के लिए चुने हुए दूत को लिखो:
जो आमेन, विश्वासयोग्य, सच्चा गवाह और परमेश्वर की सृष्टि का आधार है, उसका कहना यह है: 15 मैं तुम्हारे कामों से परिचित हूँ—तुम न तो ठण्ड़े हो और न गर्म—उत्तम तो यह होता कि तुम ठण्ड़े ही होते या गर्म ही. 16 इसलिए कि तुम कुनकुने हो; न गर्म, न ठण्ड़े, मैं तुम्हें अपने मुख से उगलने पर हूँ. 17 तुम्हारा तो यह दावा है, ‘मैं धनी हूँ, मैं समृद्ध हो गया हूँ तथा मुझे कोई कमी नहीं है,’ किन्तु तुम नहीं जानते कि वास्तव में तुम तुच्छ, अभागे, अंधे तथा नंगे हो. 18 तुम्हारे लिए मेरी सलाह है कि तुम मुझसे आग में शुद्ध किया हुआ सोना मोल लो कि तुम धनवान हो जाओ; मुझसे सफ़ेद वस्त्र लेकर पहन लो कि तुम अपने नंगेपन की लज्जा को ढ़ाँप सको. मुझसे सुर्मा लेकर अपनी आँखों में लगाओ कि तुम्हें दिखाई देने लगे.
19 अपने सभी प्रेम करनेवालों को मैं ताड़ना देता तथा अनुशासित करता हूँ. इसलिए बहुत उत्साहित होकर पश्चाताप करो. 20 सुनो! मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता रहा हूँ. यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, मैं उसके घर में प्रवेश करूँगा तथा मैं उसके साथ और वह मेरे साथ भोजन करेगा.
21 जो जयवन्त होगा, उसे मैं अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठने का अधिकार दूँगा—ठीक जैसे स्वयं मैंने विजय प्राप्त की तथा अपने पिता के साथ उनके सिंहासन पर आसीन हुआ. 22 जिसके कान हों, वह सुन ले कि कलीसियाओं से पवित्रात्मा का क्या कहना है.”
स्वर्गीय सिंहासन
4 इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में एक द्वार खुला हुआ है. तब तुरही की आवाज़ के समान वह शब्द, जो मैंने पहले सुना था, मुझे संबोधित कर रहा था, “मेरे पास यहाँ ऊपर आओ कि मैं तुम्हें वह सब दिखाऊँ, जिसका इन सबके बाद घटित होना तय है.” 2 उसी क्षण ही मैं आत्मा में ध्यानमग्न की अवस्था में आ गया. मैंने स्वर्ग में एक सिंहासन पर किसी को बैठे देखा. 3 वह, जो सिंहासन पर बैठा था, उसकी चमक सूर्यकान्त मणि तथा माणिक्य के समान थी तथा सिंहासन के चारों ओर मेघ-धनुष के समान पन्ना की चमक थी. 4 उस सिंहासन के चारों ओर गोलाई में चौबीस सिंहासन थे. उन सिंहासनों पर सफ़ेद वस्त्रों में, सोने का मुकुट धारण किए हुए चौबीस प्राचीन बैठे थे. 5 उस सिंहासन से बिजली की कौन्ध, गड़गड़ाहट तथा बादलों के गर्जन की आवाज़ निकल रही थी. सिंहासन के सामने सात दीपक जल रहे थे, जो परमेश्वर की सात आत्मा हैं. 6 सिंहासन के सामने बिल्लौर के समान पारदर्शी काँच का समुद्र था.
बीच के सिंहासन के चारों ओर चार प्राणी थे, जिनके आगे की ओर तथा पीछे की ओर में आँखें ही आँखें थीं. 7 पहिला प्राणी सिंह के समान, दूसरा प्राणी बैल के समान, तीसरे प्राणी का मुँह मनुष्य के समान तथा चौथा प्राणी उड़ते हुए गरुड़ के समान था. 8 इन चारों प्राणियों में हरेक के छः, छः पंख थे. उनके अन्दर की ओर तथा बाहर की ओर आँखें ही आँखें थीं. दिन-रात उनकी बिना रुके स्तुति-प्रशंसा यह थी:
“पवित्र, पवित्र, पवित्र,
याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
जो हैं, जो थे और जो आनेवाले हैं.”
9 जब-जब ये प्राणी उनका, जो सिंहासन पर आसीन हैं, जो सदा-सर्वदा जीवित हैं, स्तुति करते, सम्मान करते तथा उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हैं, 10 वे चौबीस प्राचीन भूमि पर गिर कर उनका, जो सिंहासन पर बैठे हैं, साष्टांग प्रणाम करते तथा उनकी आराधना करते हैं, जो सदा-सर्वदा जीवित हैं. वे यह कहते हुए अपने मुकुट उन्हें समर्पित कर देते हैं:
11 “हमारे प्रभु और हमारे परमेश्वर,
आप ही स्तुति, सम्मान तथा सामर्थ के योग्य हैं,
क्योंकि आपने ही सबकुछ बनाया तथा आपकी ही इच्छा में इन्हें बनाया गया
तथा इन्हें अस्तित्व प्राप्त हुआ.”
पुस्तक तथा मेमना
5 जो सिंहासन पर बैठे थे, उनके दायें हाथ में मैंने एक पुस्तक देखी, जिसके पृष्ठों पर दोनों ओर लिखा हुआ था, तथा जो सात मोहरों द्वारा बन्द की हुई थी. 2 तब मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत को देखा, जो ऊँचे शब्द में यह घोषणा कर रहा था, “कौन है वह, जिसमें यह योग्यता है कि वह इन मोहरों को तोड़ सके तथा इस पुस्तक को खोल सके?” 3 न तो स्वर्ग में, न पृथ्वी पर और न ही पृथ्वी के नीचे कोई इस योग्य था कि इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. 4 मेरी आँखों से आँसू बहने लगे क्योंकि कोई भी ऐसा योग्य न निकला, जो इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. 5 तब उन पुरनियों में से एक ने मुझसे कहा, “बन्द करो यह रोना! देखो, यहूदा कुल का वह सिंह, दाविद वंश का मूल जयवन्त हुआ है कि वही इन सात मोहरों को तोड़े. वही इस पुस्तक को खोलने में सामर्थी है.”
6 तब मैंने एक मेमने को, मानो जिसका वध बलि के लिए कर दिया गया हो, सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के बीच खड़े हुए देखा, जिसके सात सींग तथा सात आँखें थीं, जो सारी पृथ्वी पर भेजे गए परमेश्वर की सात आत्मा हैं. 7 मेम्ने ने आगे बढ़कर, उनके दायें हाथ से, जो सिंहासन पर विराजमान थे, इस पुस्तक को ले लिया. 8 जब उसने पुस्तक ली तो चारों प्राणी तथा चौबीसों प्राचीन उस मेमने के सामने नतमस्तक हो गए. उनमें से हरेक के हाथ में वीणा तथा धूप—पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं—से भरे सोने के बर्तन थे. 9 वे यह नया गीत गा रहे थे:
“आप ही पुस्तक लेकर इसकी मोहरें खोलने के योग्य हैं.
आपका वध बलि के लिए किया गया तथा आपने अपने लहू द्वारा हर एक गोत्र,
भाषा, जन, राष्ट्र तथा मनुष्यों को परमेश्वर के लिए मोल लिया है.
10 आपने उन्हें परमेश्वर की प्रजा बनाया तथा परमेश्वर की सेवा के लिए
पुरोहित ठहराया गया है. वे इस पृथ्वी पर राज्य करेंगे.”
11 तब मैंने अनेकों स्वर्गदूतों का शब्द सुना, ये स्वर्गदूत अनगिनत थे—हज़ारों और हज़ारों. ये स्वर्गदूत सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के चारों ओर खड़े हुए थे. 12 वे स्वर्गदूत ऊँचे शब्द में यह गा रहे थे:
“वह मेमना, जिसका वध किया गया,
सामर्थ्य, वैभव, ज्ञान, शक्ति, आदर,
महिमा और स्तुति का अधिकारी है.”
13 इसी प्रकार मैंने सारी सृष्टि—स्वर्ग में, इस पृथ्वी पर तथा इस पृथ्वी के नीचे, समुद्र तथा उसमें बसी हुई हर एक वस्तु को यह कहते सुना:
“मेमने का तथा उनका,
जो सिंहासन पर बैठे हैं,
स्तुति, आदर, महिमा तथा प्रभुता,
सदा-सर्वदा रहे.”
14 चारों प्राणियों ने कहा, “आमेन” तथा पुरनियों ने दण्डवत् हो आराधना की.
पहली मोहर
6 तब मैंने मेमने को सात मोहरों में से एक को तोड़ते देखा तथा उन चार प्राणियों में से एक को गर्जन-से शब्द में यह कहते सुना: “आओ!” 2 तभी वहाँ मुझे एक घोड़ा दिखाई दिया, जो सफ़ेद रंग का था. उसके हाथ में, जो घोड़े पर बैठा हुआ था, एक धनुष था. उसे एक मुकुट पहनाया गया और वह एक विजेता के समान विजय प्राप्त करने निकल पड़ा.
3 जब उसने दूसरी मोहर तोड़ी तो मैंने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना: “यहाँ आओ!” 4 तब मैंने वहाँ एक अन्य घोड़े को निकलते हुए देखा, जो आग के समान लाल रंग का था. उसे, जो उस पर बैठा हुआ था, एक बड़ी तलवार दी गई थी तथा उसे पृथ्वी पर से शान्ति उठा लेने की आज्ञा दी गई कि लोग एक दूसरे का वध करें.
5 जब उसने तीसरी मोहर तोड़ी तो मैंने तीसरे प्राणी को यह कहते हुए सुना: “यहाँ आओ!” तब मुझे वहाँ एक घोड़ा दिखाई दिया, जो काले रंग का था. उसके हाथ में, जो उस पर बैठा हुआ था, एक तराज़ू था. 6 तब मैंने मानो उन चारों प्राणियों के बीच से यह शब्द सुना, “एक दिन की मज़दूरी का एक किलो गेहूं, एक दिन की मज़दूरी का तीन किलो जौ किन्तु तेल और दाखरस की हानि न होने देना.”
7 जब उसने चौथी मोहर खोली, तब मैंने चौथे प्राणी को यह कहते हुए सुना “यहाँ आओ!” 8 तब मुझे वहाँ एक घोड़ा दिखाई दिया, जो गन्दले हरे-से रंग का था. जो उस पर बैठा था, उसका नाम था मृत्यु. अधोलोक उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था. उसे पृथ्वी के एक चौथाई भाग को तलवार, अकाल, महामारी तथा जंगली पशुओं द्वारा नाश करने का अधिकार दिया गया.
9 जब उसने पाँचवीं मोहर तोड़ी तो मैंने वेदी के नीचे उनकी आत्माओं को देखा, जिनका परमेश्वर के वचन के कारण तथा स्वयं उनमें दी गई गवाही के कारण वध कर दिया गया था. 10 वे आत्माएँ ऊँचे शब्द में पुकार उठीं, “कब तक, सबसे महान प्रभु! सच पर चलनेवाले और पवित्र! आप न्याय शुरु करने के लिए कब तक ठहरे रहेंगे और पृथ्वी पर रहने वालों से हमारे लहू का बदला कब तक न लेंगे?” 11 उनमें से हरेक को सफ़ेद वस्त्र देकर उनसे कहा गया कि वे कुछ और प्रतीक्षा करें, जब तक उनके उन सहकर्मियों और भाइयों की तय की गई संख्या पूरी न हो जाए, जिनकी हत्या उन्हीं की तरह की जाएगी.
12 मैंने उसे छठी मोहर तोड़ते हुए देखा. तभी एक भीषण भूकम्प आया. सूर्य ऐसा काला पड़ गया, जैसे बालों से बनाया हुआ कम्बल और पूरा चन्द्रमा ऐसा लाल हो गया जैसे लहू. 13 तारे पृथ्वी पर ऐसे आ गिरे जैसे आँधी आने पर कच्चे अंजीर भूमि पर आ गिरते हैं. 14 आकाश फट कर ऐसा हो गया जैसे चमड़े का पत्र लिपट जाता है. हर एक पहाड़ और द्वीप अपने स्थान से हटा दिये गये.
15 तब पृथ्वी के राजा, महापुरुष, सेनानायक, सम्पन्न तथा बलवन्त, सभी दास तथा स्वतन्त्र व्यक्ति गुफ़ाओं तथा पहाड़ों के पत्थरों में जा छिपे, 16 वे पहाड़ों तथा पत्थरों से कहने लगे, “हम पर आ गिरो और हमें मेमने के क्रोध से बचा लो तथा उनकी उपस्थिति से छिपा लो, जो सिंहासन पर बैठे हैं, 17 क्योंकि उनके क्रोध का भयानक दिन आ पहुँचा है और कौन इसे सह सकेगा?”
1,44,000 पर मोहर
7 इसके बाद मैंने देखा कि चार स्वर्गदूत पृथ्वी के चारों कोनों पर खड़े हुए पृथ्वी की चारों दिशाओं का वायु प्रवाह रोके हुए हैं कि न तो पृथ्वी पर वायु प्रवाहित हो, न ही समुद्र पर और न ही किसी पेड़ पर. 2 मैंने एक अन्य स्वर्गदूत को पूर्वी दिशा में ऊपर की ओर आते हुए देखा, जिसके अधिकार में जीवित परमेश्वर की मोहर थी, उसने उन चार स्वर्गदूतों से, जिन्हें पृथ्वी तथा समुद्र को नाश करने का अधिकार दिया गया था, 3 ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “न तो पृथ्वी को, न समुद्र को और न ही किसी पेड़ को तब तक नाश करना, जब तक हम हमारे परमेश्वर के दासों के माथे पर मुहर न लगा दें.” 4 तब मैंने, जो चिह्नित किए गए थे, उनकी संख्या का योग सुना: 1,44,000. ये इस्राएल के हर एक कुल में से थे.
5-8 यहूदाह के कुल से 12,000,
रूबेन के कुल से 12,000,
गाद के कुल से 12,000,
आशेर के कुल से 12,000,
नफ़ताली के कुल से 12,000,
मनश्शेह के कुल से 12,000,
शिमोन के कुल से 12,000,
लेवी के कुल से 12,000,
इस्साखार के कुल से 12,000,
ज़ेबुलून के कुल से 12,000,
योसेफ़ के कुल से 12,000 तथा
बेन्यामीन के कुल से 12,000 चिह्नित किए गए.
सफ़ेद वस्त्रों में विशाल भीड़
9 इसके बाद मुझे इतनी बड़ी भीड़ दिखाई दी, जिसकी गिनती कोई नहीं कर सकता था. इस समूह में हर एक राष्ट्र, कुल, प्रजाति और भाषा के लोग थे, जो सफ़ेद वस्त्र धारण किए तथा हाथ में खजूर की शाखाएँ लिए सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े हुए थे. 10 वे ऊँचे शब्द में पुकार रहे थे:
“उद्धार के स्त्रोत हैं,
सिंहासन पर बैठे
हमारे परमेश्वर और मेमना!”
11 सिंहासन, पुरनियों तथा चारों प्राणियों के चारों ओर सभी स्वर्गदूत खड़े हुए थे. उन्होंने सिंहासन की ओर मुख करके दण्डवत् होकर परमेश्वर की वन्दना की. 12 वे कह रहे थे:
“आमेन!
स्तुति, महिमा, ज्ञान,
आभार व्यक्ति, आदर, सामर्थ्य
तथा शक्ति हमेशा-हमेशा
हमारे परमेश्वर की है.
आमेन!”
13 तब पुरनियों में से एक ने मुझसे प्रश्न किया, “ये, जो सफ़ेद वस्त्र धारण किए हुए हैं, कौन हैं और कहाँ से आए हैं?”
14 मैंने उत्तर दिया, “श्रीमान, यह तो आपको ही मालूम है.”
इस पर उन्होंने कहा, “ये ही हैं वे, जो उस महाक्लेश में से सुरक्षित निकल कर आए हैं. इन्होंने अपने वस्त्र मेमने के लहू में धोकर सफ़ेद किए हैं. 15 इसीलिए,
“वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने उपस्थित हैं
और उनके मन्दिर में दिन-रात उनकी आराधना करते रहते हैं;
और वह, जो सिंहासन पर बैठे हैं,
उन्हें सुरक्षा प्रदान करेंगे.
16 ‘वे अब न तो कभी भूखे होंगे, न प्यासे.
न तो सूर्य की गर्मी उन्हें झुलसाएगी,’
और न कोई अन्य गर्मी
17 क्योंकि बीच के सिंहासन पर बैठा मेमना उनका चरवाहा होगा;
‘वह उन्हें जीवन के जल के सोतों तक ले जाएगा’.
‘परमेश्वर उनकी आँखों से हर एक आँसू पोंछ डालेंगे.’”
सातवीं मोहर
8 जब मेमने ने सातवीं मोहर तोड़ी, स्वर्ग में एक समय के लिए सन्नाटा छा गया.
2 तब मैंने उन सात स्वर्गदूतों को देखा, जो परमेश्वर की उपस्थिति में खड़े रहते हैं. उन्हें सात तुरहियाँ दी गईं.
3 सोने के धूपदान लिए हुए एक अन्य स्वर्गदूत आकर वेदी के पास खड़ा हो गया. उसे बड़ी मात्रा में धूप दी गई कि वह उसे सभी पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ उस सोने की वेदी पर भेंट करे, जो सिंहासन के सामने है. 4 स्वर्गदूत के हाथ के धूपदान में से धुआँ उठता हुआ पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं के साथ परमेश्वर के पास ऊपर पहुँच रहा था. 5 तब स्वर्गदूत ने धूपदान लिया, उसे वेदी की आग से भरकर पृथ्वी पर फेंक दिया, जिससे बादलों की गर्जन, गड़गड़ाहट तथा बिजलियाँ कौंध उठीं और भूकम्प आ गया.
पहिली चार तुरहियाँ
6 तब वे सातों स्वर्गदूत, जिनके पास तुरहियाँ थीं, उन्हें फूँकने के लिए तैयार हुए.
7 जब पहिले स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो आग और ओले उत्पन्न हुए, जिनमें लहू मिला हुआ था. उन्हें पृथ्वी पर फेंक दिया गया. परिणामस्वरूप एक तिहाई पृथ्वी जल उठी, एक तिहाई पेड़ स्वाहा हो गए तथा सारी हरी घास भी.
8 जब दूसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो विशाल पर्वत जैसी कोई जलती हुई वस्तु समुद्र में फेंक दी गई जिससे एक तिहाई समुद्र लहू में बदल गया. 9 इससे एक तिहाई जलजन्तु नाश हो गए तथा जलयानों में से एक तिहाई जलयान भी.
10 जब तीसरे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो आकाश से एक विशालकाय तारा मशाल के समान जलता हुआ एक तिहाई नदियों तथा जल स्रोतों पर जा गिरा. 11 यह तारा अपसन्तिनॉस कहलाता है—इससे एक तिहाई जल कड़वा हो गया. जल के कड़वे हो जाने के कारण अनेक मनुष्यों की मृत्यु हो गई.
12 जब चौथे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो एक तिहाई सूर्य, एक तिहाई चन्द्रमा तथा एक तिहाई तारों पर ऐसा प्रहार हुआ कि उनका एक तिहाई भाग अन्धकारमय हो गया. इनमें से एक तिहाई दिन अन्धकारमय हो गया, वैसे ही एक तिहाई रात भी.
13 जब मैं यह सब देख ही रहा था, मैंने ठीक अपने ऊपर उड़ते हुए एक गरुड़ को ऊँचे शब्द में यह कहते हुए सुना, “उस तुरही नाद के कारण, जो शेष तीन स्वर्गदूतों द्वारा किया जाएगा, पृथ्वी पर रहनेवालों पर धिक्कार, धिक्कार, धिक्कार!”
पाँचवीं तुरही
9 जब पाँचवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो मैंने आकाश से पृथ्वी पर गिरा हुआ एक तारा देखा. उस तारे को अथाह गड्ढे की कुंजी दी गई. 2 उसने अथाह गड्ढे का द्वार खोला तो उसमें से धुआँ निकला, जो विशाल भट्टी के धुएँ के समान था. अथाह गड्ढे के इस धुएँ से सूर्य और आकाश निस्तेज और वायुमण्डल काला हो गया. 3 इस धुएँ में से टिड्डियाँ निकल कर पृथ्वी पर फैल गईं. उन्हें वही शक्ति दी गई, जो पृथ्वी पर बिच्छुओं की होती है. 4 उनसे कहा गया कि वे पृथ्वी पर न तो घास को हानि पहुंचाएं, न हरी वनस्पति को और न ही किसी पेड़ को परन्तु सिर्फ़ उन्हीं को, जिनके माथे पर परमेश्वर की मोहर नहीं है. 5 उन्हें किसी के प्राण लेने की नहीं परन्तु सिर्फ़ पाँच माह तक घोर पीड़ा देने की ही आज्ञा दी गई थी. यह पीड़ा वैसी ही थी, जैसी बिच्छू के ड़ंक से होती है. 6 उन दिनों में मनुष्य अपनी मृत्यु को खोजेंगे किन्तु उसे पाएँगे नहीं, वे मृत्यु की कामना तो करेंगे किन्तु मृत्यु उनसे दूर भागेगी.
7 ये टिड्डियाँ देखने में युद्ध के लिए सुसज्जित घोड़ों जैसी थीं. उनके सिर पर सोने के मुकुट-सा कुछ था. उनका मुखमण्डल मनुष्य के मुखमण्डल जैसा था. 8 उनके बाल स्त्री बाल जैसे तथा उनके दाँत सिंह के दाँत जैसे थे. 9 उनका शरीर मानो लोहे के कवच से ढँका हुआ था. उनके पंखों की आवाज़ ऐसी थी, जैसी युद्ध में अनेक घोड़े जुते हुए दौड़ते रथों की होती है. 10 उनकी पूँछ बिच्छू के डंक के समान थी और उनकी पूँछ में ही मनुष्यों को पाँच माह तक पीड़ा देने की क्षमता थी. 11 अथाह गड्ढे का अपदूत उनके लिए राजा के रूप में था. इब्री भाषा में उसे अबादोन तथा यूनानी में अपोलियॉन कहा जाता है.
12 पहिली विपत्ति समाप्त हुई किन्तु इसके बाद दो अन्य विपत्तियां अभी बाकी हैं.
छठी तुरही
13 जब छठे स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो मैंने परमेश्वर के सामने स्थापित सोने की वेदी के चारों सींगों से आता हुआ एक शब्द सुना, 14 जो छठे स्वर्गदूत के लिए, जिसने तुरही फूँकी थी, यह आज्ञा थी, “महानद यूफ़्रातेस में जो चार स्वर्गदूत बन्दी हैं, उन्हें आज़ाद कर दो,” 15 इसलिए वे चारों स्वर्गदूत, जो इसी क्षण, दिन, माह और वर्ष के लिए तैयार रखे गए थे, एक तिहाई मनुष्यों का संहार करने के लिए आज़ाद कर दिए गए. 16 मुझे बताया गया कि घुड़सवारों की सेना की संख्या बीस करोड़ है.
17 मैंने दर्शन में घोड़े और उन्हें देखा, जो उन पर बैठे थे. उनके कवच आग के समान लाल, धूम्रकान्त तथा गन्धक जैसे पीले रंग के थे. घोड़ों के सिर सिंहों के सिर जैसे थे तथा उनके मुँह से आग, गन्धक तथा धुआँ निकल रहा था. 18 उनके मुँह से निकल रही तीन महामारियों—आग, गन्धक तथा धुएँ से एक तिहाई मनुष्य नाश हो गए, 19 उन घोड़ों की क्षमता उनके मुँह तथा पूँछ में मौजूद थी क्योंकि उनकी पूँछें सिर वाले साँपों के समान थीं, जिनके द्वारा वे पीड़ा देते थे.
20 शेष मनुष्यों ने, जो इन महामारियों से नाश नहीं हुए थे, अपने हाथों के कामों से मन न फिराया—उन्होंने प्रेतों तथा सोने, चांदी, काँसे, पत्थर और लकड़ी की मूर्तियों की, जो न तो देख सकती हैं, न सुन सकती हैं और न ही चल सकती हैं, उपासना करना न छोड़ा 21 और न ही उन्होंने हत्या, जादू-टोना, लैंगिक व्यभिचार तथा चोरी करना छोड़ा.
निकट आता अन्तिम दण्ड
10 तब मुझे स्वर्ग से उतरता हुआ एक दूसरा शक्तिशाली स्वर्गदूत दिखाई दिया, जिसने बादल को कपड़ों के समान धारण किया हुआ था, उसके सिर के ऊपर सात रंगों का मेघ-धनुष था, उसका चेहरा सूर्य-सा तथा पैर आग के खम्भे के समान थे. 2 उसके हाथ में एक छोटी पुस्तिका खुली हुई थी. उसने अपना दायाँ पांव समुद्र पर तथा बायाँ भूमि पर रखा. 3 वह ऊँचे शब्द में सिंह गर्जन जैसे पुकार उठा. उसके पुकारने पर सात बादलों के गर्जन भी पुकार उठे. 4 जब सात बादलों के गर्जन बोल चुके, मैं लिखने के लिए तैयार हुआ ही था; पर मैंने स्वर्ग से यह आवाज़ सुनी, “जो कुछ सात बादलों के गर्जन ने कहा है, उसे लिखो मत परन्तु मुहरबन्द कर दो.”
5 तब उस स्वर्गदूत ने, जिसे मैंने समुद्र तथा भूमि पर खड़े हुए देखा था, अपना दायाँ हाथ स्वर्ग की ओर उठाया 6 और उसने उनकी, जो हमेशा-हमेशा के लिए जीवित हैं, जिन्होंने स्वर्ग और उसमें बसी सब वस्तुओं को, पृथ्वी तथा उसमें बसी सब वस्तुओं को तथा समुद्र तथा उसमें बसी सब वस्तुओं को बनाया है, शपथ खाते हुए यह कहा: “अब और देर न होगी. 7 उस समय, जब सातवां स्वर्गदूत तुरही फूंकेगा, परमेश्वर अपनी गुप्त योजनाएँ पूरी करेंगे, जिनकी घोषणा उन्होंने अपने दासों—अपने भविष्यद्वक्ताओं से की थी.”
स्वर्गदूत तथा पुस्तिका
8 जो शब्द मैंने स्वर्ग से सुना था, उसने दोबारा मुझे सम्बोधित करते हुए कहा, “जाओ! उस स्वर्गदूत के हाथ से, जो समुद्र तथा भूमि पर खड़ा है, वह खुली हुई पुस्तिका ले लो.”
9 मैंने स्वर्गदूत के पास जाकर उससे वह पुस्तिका माँगी. उसने मुझे वह पुस्तिका देते हुए कहा, “लो, इसे खा लो. यह तुम्हारे उदर को तो खट्टा कर देगी किन्तु तुम्हारे मुँह में यह शहद के समान मीठी लगेगी.” 10 मैंने स्वर्गदूत से वह पुस्तिका लेकर खा ली. मुझे वह मुँह में तो शहद के समान मीठी लगी किन्तु खा लेने पर मेरा उदर खट्टा हो गया. 11 तब मुझसे कहा गया, “यह ज़रूरी है कि तुम दोबारा अनेक प्रजातियों, राष्ट्रों, भाषाओं तथा राजाओं के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करो.”
दो गवाह
11 तब मुझे एक सरकण्डा दिया गया, जो मापने के यन्त्र जैसा था तथा मुझसे कहा गया, “जाओ, परमेश्वर के मन्दिर तथा वेदी का माप लो तथा वहाँ उपस्थित उपासकों की गिनती करो, 2 किन्तु मन्दिर के बाहरी आँगन को छोड़ देना, उसे न मापना क्योंकि वह अन्य राष्ट्रों को सौंप दिया गया है. वे पवित्र नगर को बयालीस माह तक रौन्देंगे. 3 मैं अपने दो गवाहों को, जिनका वस्त्र टाट का है, 1,260 दिन तक भविष्यवाणी करने की प्रदान करूँगा.” 4 ये दोनों गवाह ज़ैतून के दो पेड़ तथा दो दीपदान हैं, जो पृथ्वी के प्रभु के सामने खड़े हैं. 5 यदि कोई उन्हें हानि पहुंचाना चाहे तो उनके मुँह से आग निकल कर उनके शत्रुओं को चट कर जाती है. यदि कोई उन्हें हानि पहुंचाना चाहे तो उसका इसी रीति से विनाश होना तय है. 6 इनमें आकाश को बन्द कर देने की सामर्थ्य है कि उनके भविष्यवाणी के दिनों में वर्षा न हो. उनमें जल को लहू में बदल देने की तथा जब-जब वे चाहें, पृथ्वी पर महामारी का प्रहार करने की क्षमता है.
7 जब वे अपनी गवाही दे चुकें होंगे तो वह हिंसक पशु, जो उस अथाह गड्ढे में से निकलेगा, उनसे युद्ध करेगा और उन्हें हरा कर उनका विनाश कर डालेगा. 8 उनके शव उस महानगर के चौक में पड़े रहेंगे, जिसका सांकेतिक नाम है सोदोम तथा मिस्र, जहाँ उनके प्रभु को क्रूस पर भी चढ़ाया गया था. 9 प्रजातियों, कुलों, भाषाओं तथा राष्ट्रों के लोग साढ़े तीन दिन तक उनके शवों को देखने के लिए आते रहेंगे और वे उन शवों को दफ़नाने की अनुमति न देंगे. 10 पृथ्वी के निवासी उनकी मृत्यु पर आनन्दित हो खुशी का उत्सव मनाएंगे—यहाँ तक कि वे एक दूसरे को उपहार भी देंगे क्योंकि इन दोनों भविष्यद्वक्ताओं ने पृथ्वी के निवासियों को अत्याधिक ताड़नाएं दी थी.
11 साढ़े तीन दिन पूरे होने पर परमेश्वर की ओर से उनमें जीवन की साँस का प्रवेश हुआ और वे खड़े हो गए. यह देख उनके दर्शकों में भय समा गया. 12 तब स्वर्ग से उन्हें संबोधित करता हुआ एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, “यहाँ ऊपर आओ!” और वे शत्रुओं के देखते-देखते बादलों में से स्वर्ग में उठा लिए गए.
13 उसी समय एक भीषण भूकम्प आया, जिससे नगर का एक दसवां भाग नाश हो गया. इस भूकम्प में सात हज़ार व्यक्ति मर गए. शेष जीवित व्यक्तियों में भय समा गया और वे स्वर्ग के परमेश्वर का धन्यवाद-महिमा करने लगे.
14 दूसरी विपदा समाप्त हुई, तीसरी विपदा शीघ्र आ रही है.
सातवीं तुरही
15 जब सातवें स्वर्गदूत ने तुरही फूँकी तो स्वर्ग से ये तरह-तरह की आवाज़ें सुनाई देने लगीं:
“संसार का राज्य अब हमारे प्रभु तथा उनके मसीह का राज्य हो गया है.
वही युगानुयुग राज्य करेंगे.”
16 तब उन चौबीसों पुरनियों ने, जो अपने-अपने सिंहासन पर बैठे थे, परमेश्वर के सामने दण्डवत् हो यह कहते हुए उनका धन्यवाद किया:
17 “सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर!
हम आपका, जो हैं और जो थे,
आभार मानते हैं कि आपने अपने अवर्णनीय अधिकारों को स्वीकार कर अपने राज्य का आरम्भ किया है.
18 राष्ट्र क्रोधित हुए.
उन पर आपका क्रोध आ पड़ा.
अब समय आ गया है कि मरे हुओं का न्याय किया जाए.
आपके दासों—भविष्यद्वक्ताओं, पवित्र लोगों तथा आपके सभी श्रद्धालुओं को,
चाहे वे साधारण हों या विशेष, और
उनका बदला दिया जाए तथा आपके द्वारा उन्हें नाश किया जाए,
जिन्होंने पृथ्वी को गंदा कर रखा है.”
19 तब परमेश्वर का मन्दिर, जो स्वर्ग में है, खोल दिया गया और उस मन्दिर में उनकी वाचा का संदूक दिखाई दिया. उसी समय बिजली कौन्धी, गड़गड़ाहट तथा बादलों का गरजना हुआ, एक भीषण भूकम्प आया और बड़े-बड़े ओले पड़े.
स्त्री तथा परों वाला साँप
12 तब स्वर्ग में एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया: एक स्त्री, सूर्य जिसका वस्त्र, चन्द्रमा जिसके चरणों के नीचे तथा जिसके सिर पर बारह तारों का एक मुकुट था, 2 गर्भवती थी तथा पीड़ा में चिल्ला रही थी क्योंकि उसका प्रसव प्रारम्भ हो गया था. 3 उसी समय स्वर्ग में एक और दृश्य दिखाई दिया: लाल रंग का एक विशालकाय परों वाला साँप, जिसके सात सिर तथा दस सींग थे. हर एक सिर पर एक-एक मुकुट था. 4 उसने आकाश के एक तिहाई तारों को अपनी पूँछ से समेट कर पृथ्वी पर फेंक दिया और तब वह परों वाला साँप उस स्त्री के सामने, जो शिशु को जन्म देने को थी, खड़ा हो गया कि शिशु के जन्म लेते ही वह उसे निगल जाए. 5 उस स्त्री ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका सभी राष्ट्रों पर लोहे के राजदण्ड से राज्य करना तय था. इस शिशु को तुरन्त ही परमेश्वर तथा उनके सिंहासन के पास पहुँचा दिया गया 6 किन्तु वह स्त्री जंगल की ओर भाग गई, जहाँ परमेश्वर द्वारा उसके लिए एक स्थान तैयार किया गया था कि वहाँ 1,260 दिन तक उसकी देखभाल और भरण-पोषण किया जा सके.
7 तब स्वर्ग में दोबारा युद्ध छिड़ गया: स्वर्गदूत मीख़ाएल और उसके अनुचरों ने परों वाले साँप पर आक्रमण किया. परों वाले साँप और उसके दूतों ने उनसे बदला लिया 8 किन्तु वे टिक न सके इसलिए अब स्वर्ग में उनका कोई स्थान न रहा. 9 तब उस परों वाले साँप को—उस आदि साँप को, जो दियाबोलॉस तथा शैतान कहलाता है और जो पृथ्वी के सभी वासियों को भरमाया करता है, पृथ्वी पर फेंक दिया गया—उसे तथा उसके दूतों को भी.
10 तब मुझे स्वर्ग में एक ऊँचा शब्द यह घोषणा करता हुआ सुनाई दिया:
“अब उद्धार, प्रताप, हमारे परमेश्वर का राज्य तथा उनके मसीह का राज्य करने का अधिकार प्रकट हो गया है.
हमारे भाइयों पर दोष लगानेवाले को,
जो दिन-रात परमेश्वर के सामने उन पर दोष लगाता रहता है,
निकाल दिया गया है.
11 उन्होंने मेमने के लहू तथा अपने गवाही के वचन के द्वारा उसे हरा दिया है.
अन्तिम साँस तक उन्होंने अपने जीवन का मोह नहीं किया.
12 इसलिए सारे स्वर्ग तथा उसके वासियों, आनन्दित हो!
धिक्कार है तुम पर भूमि और समुद्र!
क्योंकि शैतान तुम तक पहुँच चुका है.
वह बड़े क्रोध में भर गया है
क्योंकि उसे मालूम हो चुका है
कि उसका समय बहुत कम है.”
13 जब परों वाले साँप को यह अहसास हुआ कि उसे पृथ्वी पर फेंक दिया गया है, तो वह उस स्त्री को, जिसने उस पुत्र को जन्म दिया था, ताड़ना देने लगा. 14 उस स्त्री को एक विशालकाय गरुड़ के दो पंख दिए गए कि वह उड़ कर उस साँप से दूर, जंगल में अपने निर्धारित स्थान को चली जाए, जहाँ समय, समयों तथा आधे समय तक उसकी देखभाल तथा भरण-पोषण किया जाना तय हुआ था. 15 इस पर उस साँप ने अपने मुँह से नदी के समान जल इस रीति से बहाया कि वह स्त्री उस बहाव में बह जाए. 16 किन्तु उस स्त्री की सहायता के लिए भूमि ने अपना मुँह खोलकर परों वाले साँप द्वारा बहाए पानी के बहाव को अपने में समा लिया. 17 इस पर परों वाला साँप उस स्त्री पर बहुत ही क्रोधित हो गया. वह स्त्री की बाकी सन्तानों से, जो परमेश्वर के आदेशों का पालन करती है तथा जो मसीह येशु के गवाह हैं, युद्ध करने निकल पड़ा. (परों वाले साँप द्वारा अधिकार सौंपना) 18 परों वाला साँप समुद्रतट पर जा खड़ा हुआ.
13 और मैंने समुद्र में से एक हिंसक पशु को ऊपर आते देखा. उसके दस सींग तथा सात सिर थे. दसों सींगों पर एक-एक मुकुट था तथा उसके सिरों पर परमेश्वर की निन्दा के शब्द लिखे थे. 2 इस पशु का शरीर चीते जैसा, पांव भालू जैसे और मुँह सिंह जैसा था. उस परों वाले साँप ने अपनी शक्ति, अपना सिंहासन तथा राज्य का सारा अधिकार उसे सौंप दिया. 3 उसके एक सिर को देखकर मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो उस पर जानलेवा हमला किया गया हो और वह घाव अब भर चुके है. अचम्भा करते हुए सारी पृथ्वी के लोग इस पशु के पीछे-पीछे चलने लगे 4 और उन्होंने उस परों वाले साँप की पूजा-अर्चना की क्योंकि उसने शासन का अधिकार उस पशु को सौंप दिया था. वे यह कहते हुए उस पशु की भी पूजा-अर्चना करने लगे, “कौन है इस पशु के समान? किसमें है इससे लड़ने की क्षमता?”
5 उसे डींग मारने तथा परमेश्वर की निन्दा करने का अधिकार तथा बयालीस माह तक शासन करने की अनुमति दी गई. 6 पशु ने परमेश्वर, उनके नाम तथा उनके निवास अर्थात् स्वर्ग और उन सबकी, जो स्वर्ग में रहते हैं, निन्दा करना शुरु कर दिया. 7 उसे पवित्र लोगों पर आक्रमण करने तथा उन्हें हराने और सभी कुलों, प्रजातियों, भाषाओं तथा राष्ट्रों पर अधिकार दिया गया. 8 पृथ्वी पर रहने वाले उसकी पूजा-अर्चना करेंगे—वे सभी जिनके नाम सृष्टि की शुरुआत ही से उस मेमने की जीवन-पुस्तक में, जो बलि किया गया था, लिखे नहीं गए.
9 जिसके कान हों वह सुन ले:
10 जो कैद के लिए लिखा गया है,
वह बन्दीगृह में जाएगा; जो तलवार से मारता है,
उसे तलवार ही से मारा जाएगा.
इसके लिए आवश्यक है पवित्र लोगों का धीरज और विश्वास.
झूठा भविष्यद्वक्ता—हिंसक पशु का दास
11 तब मैंने एक अन्य हिंसक पशु को पृथ्वी में से ऊपर आते हुए देखा, जिसके मेंढ़े के समान दो सींग थे. वह परों वाले साँप के शब्द में बोला करता था. 12 वह पहले से लिखे हिंसक पशु के प्रतिनिधि के रूप में उसके राज्य के अधिकार का उपयोग कर रहा था. वह पृथ्वी तथा पृथ्वी पर रहने वालों को उस पहले से लिखे हिंसक पशु की, जिसका घाव भर चुका था, पूजा-अर्चना करने के लिए मजबूर कर रहा था. 13 वह चमत्कार भरे चिह्न दिखाता था. यहाँ तक कि वह लोगों के देखते ही देखते आकाश से पृथ्वी पर आग बरसा देता था. 14 इन चमत्कार भरे चिह्नों द्वारा, जो वह उस पशु के प्रतिनिधि के रूप में दिखा रहा था, वह पृथ्वी पर रहने वालों को छल रहा था. उसने पृथ्वी पर रहने वालों से उस पशु की मूर्ति बनाने के लिए कहा, जो तलवार के जानलेवा हमले के बाद भी जीवित रहा. 15 उसे उस पशु की मूर्ति को ज़िन्दा करने की क्षमता दी गई कि वह मूर्ति बातचीत कर सके तथा उनका नाश करवा सके, जिन्हें उस मूर्ति की पूजा-अर्चना करना स्वीकार न था. 16 उसने साधारण और विशेष, धनी-निर्धन; स्वतन्त्र या दास, सभी को दायें हाथ या माथे पर एक चिह्न अंकित करवाने के लिए मजबूर किया 17 कि उसके अलावा कोई भी, जिस पर उस पशु का नाम या उसके नाम का अंक अंकित है, लेन-देन न कर सके.
18 इसके लिए आवश्यक है बुद्धिमानी. वह, जिसमें समझ है, उस पशु के अंकों का जोड़ कर ले. यह अंक मनुष्य के नाम का है, जिसकी संख्या का जोड़ है 666.
मेमना तथा 1,44,000
14 तब मैंने देखा कि वह मेमना त्सियोन पर्वत पर खड़ा है और उसके साथ 1,44,000 व्यक्ति भी हैं, जिनके मस्तक पर उसका तथा उसके पिता का नाम लिखा हुआ है. 2 तब मुझे स्वर्ग से एक शब्द सुनाई दिया, जो प्रचण्ड लहरों की आवाज़ के समान तथा जो बड़ी गर्जन-सी आवाज़ के समान था. यह शब्द, जो मैंने सुना, ऐसा था मानो अनेक वीणा बजानेवाले वीणा बजा रहे हों. 3 वे सिंहासन के सामने, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के सामने एक नया गीत गा रहे थे. उन 1,44,000 व्यक्तियों के अलावा, जो सारी मानवजाति में से छुड़ाए गए थे, किसी भी अन्य में यह गीत सीखने की योग्यता ही न थी. 4 ये वे हैं, जो स्त्री-संगति से अशुद्ध नहीं हुए हैं क्योंकि इन्होंने स्वयं को स्त्री-संगति से अछूता रखा है. ये ही हैं वे, जो हमेशा मेमने के पीछे चलते हैं—चाहे मेमना कहीं भी जाए. इन्हें परमेश्वर तथा मेमने के लिए उपज के पहिले फल के समान मनुष्यों में से छुड़ाया गया है. 5 झूठ इनके मुख से कभी न निकला—ये निष्कलंक हैं.
तीन स्वर्गदूत
6 तब मैंने बीच आकाश में एक स्वर्गदूत को उड़ते हुए देखा, जिसके पास सभी पृथ्वी पर रहने वालों—हर एक राष्ट्र, कुल, भाषा तथा प्रजाति में प्रचार के लिए अनन्त काल का ईश्वरीय सुसमाचार था. 7 उसने ऊँचे शब्द में कहा, “परमेश्वर से डरो. उनकी महिमा करो क्योंकि न्याय का समय आ पहुँचा है. आराधना उनकी करो, जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र तथा जल के सोतों को बनाया है.”
8 पहिले स्वर्गदूत के बाद दूसरा स्वर्गदूत यह कहते हुए आया, “सर्वनाश हो गया! बड़े बाबेल का सर्वनाश हो गया! बाबेल, जिसने सारे राष्ट्रों को अपने व्यभिचार की मदहोशी का दाख़रस पिलाया है.”
9 इन दोनों के बाद एक तीसरा स्वर्गदूत ऊँचे शब्द में यह कहता हुआ आया, “यदि कोई उस पशु तथा उसकी मूर्ति की पूजा-अर्चना करेगा तथा अपने मस्तक या हाथ पर वह चिह्न अंकित करवाएगा, 10 वह भी परमेश्वर के क्रोध का दाख़रस पिएगा, जो परमेश्वर के क्रोध के प्याले में ही उण्डेली गई है. उसे पवित्र स्वर्गदूतों तथा मेमने की उपस्थिति में आग व गन्धक की घोर पीड़ा दी जाएगी. 11 वे, जो उस पशु तथा उसकी मूर्ति की पूजा-अर्चना करते हैं तथा जिन पर उसके नाम का चिह्न अंकित है, उनकी पीड़ा का धुआँ निरन्तर उठता रहेगा तथा उन्हें न तो दिन में चैन मिलेगा और न रात में.” 12 इसके लिए आवश्यक है पवित्र लोगों का धीरज, जो परमेश्वर के आज्ञाकारी हैं तथा जिनका विश्वास मसीह येशु में है.
13 तब मुझे स्वर्ग से एक शब्द यह आज्ञा देता हुआ सुनाई दिया, “लिखो: धन्य होंगे वे मृत, अब से जिनकी मृत्यु प्रभु में होगी.”
“सच है!” आत्मा ने पुष्टि की. “वे अपने सारे परिश्रम से विश्राम पाएँगे क्योंकि उनके भले काम उनके साथ हैं.”
पृथ्वी पर उपज तथा दाख इकट्ठा करना
14 इसके बाद मैंने एक उज्ज्वल बादल देखा. उस पर मनुष्य के पुत्र समान कोई बैठा था, जिसके सिर पर सोने का मुकुट तथा हाथ में पैनी हसिया थी. 15 एक दूसरा स्वर्गदूत मन्दिर से बाहर निकला और उससे, जो बादल पर बैठा था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर फसल काटिए, कटनी का समय आ पहुँचा है क्योंकि पृथ्वी की फसल पक चुकी है.” 16 तब उसने, जो बादल पर बैठा था, अपना हसिया पृथ्वी के ऊपर घुमाया तो पृथ्वी की फसल की कटनी पूरी हो गई.
17 तब एक और स्वर्गदूत उस मन्दिर से, जो स्वर्ग में है, बाहर निकला. उसके हाथ में भी पैना हँसिया था. 18 तब एक अन्य स्वर्गदूत, जिसे आग पर अधिकार था, वेदी से बाहर निकला तथा उस स्वर्गदूत से, जिसके हाथ में पैना हसिया था, ऊँचे शब्द में कहने लगा. “अपना हसिया चला कर पृथ्वी की पूरी दाख की फसल के गुच्छे इकट्ठा करो क्योंकि दाख पक चुकी है.” 19 तब उस स्वर्गदूत ने अपना हसिया पृथ्वी की ओर घुमाया और पृथ्वी की सारी दाख इकट्ठा कर परमेश्वर के क्रोध के विशाल दाख के कुण्ड में फेंक दी. 20 तब नगर के बाहर दाख रसकुण्ड में दाख को रौंदा गया. उस रसकुण्ड में से जो लहू बहा, उसकी लम्बाई 300 किलोमीटर तथा ऊँचाई घोड़े की लगाम जितनी थी.
मोशेह तथा मेमने का गीत
15 तब मैंने स्वर्ग में एक अद्भुत और आश्चर्यजनक दृश्य देखा: सात स्वर्गदूत सात अन्तिम विपत्तियाँ लिए हुए थे—अन्तिम इसलिए कि इनके साथ परमेश्वर के क्रोध का अन्त हो जाता है. 2 तब मुझे ऐसा अहसास हुआ मानो मैं एक काँच की झील को देख रहा हूँ, जिसमें आग मिला दी गई हो. मैंने इस झील के तट पर उन्हें खड़े हुए देखा, जिन्होंने उस हिंसक पशु, उसकी मूर्ति तथा उसके नाम की संख्या पर विजय प्राप्त की थी. इनके हाथों में परमेश्वर द्वारा दी हुई वीणा थीं. 3 वे परमेश्वर के दास मोशेह तथा मेमने का गीत गा रहे थे:
“अद्भुत और असाधारण काम हैं आपके,
याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
धर्मी और सच्चे हैं उद्धेश्य आपके,
राष्ट्रों के राजन!
4 कौन है,
प्रभु, जिसमें आपके प्रति श्रद्धा न होगी,
कौन है, जो आपकी महिमा न करेगा?
मात्र आप ही हैं पवित्र.
सभी राष्ट्र आकर आपका धन्यवाद करेंगे क्योंकि आपके न्याय के कार्य प्रकट हो चुके हैं.”
सात विपत्तियां लिए हुए सात स्वर्गदूत.
5 इसके बाद मैंने देखा कि स्वर्ग में मन्दिर, जो साक्ष्यों का तम्बू है, खोल दिया गया. 6 मन्दिर में से वे सातों स्वर्गदूत, जो सात विपत्तियाँ लिए हुए थे, बाहर निकले. वे मलमल के स्वच्छ-उज्ज्वल वस्त्र धारण किए हुए थे तथा उनकी छाती पर सोने की कमरबन्द थी. 7 तब चार जीवित प्राणियों में से एक ने उन सात स्वर्गदूतों को सनातन परमेश्वर के क्रोध से भरे सात सोने के कटोरे दे दिए. 8 मन्दिर परमेश्वर की आभा तथा सामर्थ्य के धुएँ से भर गया और उस समय तक मन्दिर में कोई भी प्रवेश न कर सका, जब तक उन सातों स्वर्गदूतों द्वारा उण्डेली गई सातों विपत्तियाँ समाप्त न हो गईं.
परमेश्वर के क्रोध के सात कटोरे
16 तब मुझे मन्दिर में से एक ऊँचा शब्द उन सात स्वर्गदूतों को सम्बोधित करते हुए सुनाई दिया: “जाओ! परमेश्वर के क्रोध के सातों कटोरों को पृथ्वी पर उण्डेल दो.” 2 इसलिए पहले स्वर्गदूत ने जाकर अपना कटोरा पृथ्वी पर उण्डेल दिया. परिणामस्वरूप उन व्यक्तियों को, जिन पर उस हिंसक पशु की मुहर थी तथा जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे, कष्टदायी और घातक फोड़े निकल आए.
3 दूसरे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा समुद्र पर उण्डेला तो समुद्र मरे हुए व्यक्ति के लहू जैसा हो गया और समुद्र के हर एक प्राणी की मृत्यु हो गई.
4 तीसरे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा नदियों और पानी के सोतों पर उण्डेला तो वे लहू बन गए. 5 तब मैंने सारे जल के अधिकारी स्वर्गदूत को यह कहते हुए सुना:
“आप, जो हैं, जो थे, धर्मी हैं, परम पवित्र!
उचित हैं आपके निर्णय!
6 इसलिए कि उन्होंने पवित्र लोगों और भविष्यद्वक्ताओं का लहू बहाया,
पीने के लिए उन्हें आपने लहू ही दे दिया.
वे इसी योग्य हैं.”
7 तब मैंने समर्थन में वेदी को यह कहते हुए सुना:
“सच है, याहवेह सर्वशक्तिमान परमेश्वर!
उचित और धर्मी हैं आपके निर्णय!”
8 चौथे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा सूर्य पर उण्डेला तो सूर्य को यह अधिकार प्राप्त हो गया कि वह मनुष्यों को अपनी गर्मी से झुलसा दे. 9 इसलिए मनुष्य उस बहुत गर्म ताप से झुलस गए और वे परमेश्वर के नाम की, जिन्हें इन सब विपत्तियों पर अधिकार है, शाप देने लगे. उन्होंने पश्चाताप कर परमेश्वर की महिमा करने से इनकार किया.
10 पाँचवें स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा उस हिंसक पशु के सिंहासन पर उण्डेला तो उसके साम्राज्य पर अन्धकार छा गया. पीड़ा के कारण मनुष्य अपनी जीभ चबाने लगे. 11 पीड़ा और फोड़ों के कारण वे स्वर्ग के परमेश्वर को शाप देने लगे. उन्होंने अपने कुकर्मों से पश्चाताप करने से इनकार किया.
12 छठे स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा महानद यूफ़्रातेस पर उण्डेला तो उसका जल सूख गया कि पूर्व दिशा के राजाओं के लिए मार्ग तैयार हो जाए. 13 तब मैंने तीन अशुद्ध आत्माओं को जो मेंढक के समान थीं; उस परों वाले साँप के मुख से, उस हिंसक पशु के मुख से तथा झूठे भविष्यद्वक्ता के मुख से निकलते हुए देखा. 14 ये वे दुष्टात्मायें है, जो चमत्कार चिह्न दिखाते हुए पृथ्वी के सभी राजाओं को सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस न्याय दिवस पर युद्ध करने के लिए इकट्ठा करती हैं.
15 “याद रहे: मैं चोर के समान आऊँगा! धन्य वह है, जो जागता है और अपने वस्त्रों की रक्षा करता है कि उसे लोगों के सामने नग्न होकर लज्जित न होना पड़े.”
16 उन आत्माओं ने राजाओं को उस स्थान पर इकट्ठा किया, जो इब्री भाषा में हरमागेद्दौन कहलाता है.
17 सातवें स्वर्गदूत ने जब अपना कटोरा वायु पर उण्डेला, और मन्दिर के सिंहासन से एक ऊँचा शब्द सुनाई दिया, “पूरा हो गया!” 18 तुरन्त ही बिजली की कौन्ध, गड़गड़ाहट तथा बादलों की गर्जन होने लगी और एक भयन्कर भूकम्प आया. यह भूकम्प इतना शक्तिशाली था कि पृथ्वी पर ऐसा भयन्कर भूकम्प मनुष्य की उत्पत्ति से लेकर अब तक नहीं आया था—इतना शक्तिशाली था यह भूकम्प 19 कि महानगर फट कर तीन भागों में बंट गया. सभी राष्ट्रों के नगर धराशायी हो गए. परमेश्वर ने बड़े नगर बाबेल को याद किया कि उसे अपने क्रोध की जलजलाहट का दाखरस का प्याला पिलाएं. 20 हर एक द्वीप विलीन हो गया और सभी पर्वत लुप्त हो गए. 21 आकाश से मनुष्यों पर विशालकाय ओले बरसने लगे और एक-एक ओला लगभग 45 किलो का था. ओलों की इस विपत्ति के कारण लोग परमेश्वर को शाप देने लगे क्योंकि यह विपत्ति बहुत असहनीय थी.
कुख्यात व्यभिचारिणी तथा हिंसक पशु
17 तब कटोरे लिए हुए सात स्वर्गदूतों में से एक ने आकर मुझसे कहा, “यहाँ आओ, मैं तुम्हें उस कुख्यात व्यभिचारिणी के लिए तय किए गए दण्ड दिखाउँ. यह व्यभिचारिणी बहुत से पानी पर बैठी हुई है. 2 इसके साथ पृथ्वी के राजा वेश्यागामी में लीन थे तथा जिसके वेश्यागामी का दाखरस से पृथ्वी पर रहने वाले मतवाले थे.”
3 वह स्वर्गदूत मुझे मेरी आत्मा में ध्यानमग्न कर एक जंगल में ले गया. वहाँ मैंने एक स्त्री को लाल रंग के एक हिंसक जानवर पर बैठे देखा, जो परमेश्वर की निन्दा के शब्द से ढ़का सा था और इसके सात सिर तथा दस सींग थे. 4 वह स्त्री बैंगनी और लाल रंग के वस्त्र तथा सोने, रत्नों तथा मोतियों के आभूषण धारण किए हुए थी. उसके हाथ में सोने का प्याला था, जो अश्लीलता तथा स्वयं उसकी वेश्यागामी की गंदगी से भरा हुआ था. 5 उसके माथे पर एक नाम, एक रहस्य लिखा था:
भव्य महानगरी बाबेल
पृथ्वी पर व्यभिचारिणियों की माता
और सारी अश्लीलताओं की जननी.
6 मैंने देखा कि वह स्त्री पवित्र लोगों तथा मसीह येशु के साक्ष्यों का लहू पीकर मतवाली थी.
उसे देख मैं बहुत ही हैरान रह गया. 7 किन्तु स्वर्गदूत ने मुझसे कहा: “क्यों हो रहे हो हैरान? मैं तुम्हें इस स्त्री तथा इस हिंसक जानवर का रहस्य बताऊँगा, जिसके सात सिर और दस सींग हैं, जिस पर यह स्त्री बैठी हुई है. 8 वह हिंसक जानवर, जिसे तुमने देखा था, पहले जीवित था किन्तु अब नहीं. अब वह अथाह गड्ढे से निकल कर आने पर है—किन्तु स्वयं अपने विनाश के लिए. पृथ्वी के वे सभी वासी, जिनके नाम सृष्टि के प्रारम्भ से जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं हैं, जब यह देखेंगे कि यह हिंसक पशु पहले था, अब नहीं है किन्तु दोबारा आएगा, आश्चर्यचकित हो जाएँगे.
9 “इसे समझने के लिए आवश्यक है सूक्ष्म ज्ञान: वे सात सिर सात पर्वत हैं, जिन पर वह स्त्री बैठी है. वे सात राजा भी हैं. 10 इनमें से पाँच का पतन हो चुका है, एक जीवित है और एक अब तक नहीं आया. जब वह आएगा, वह थोड़े समय के लिए ही आएगा. 11 वह हिंसक पशु, जो था और जो नहीं है स्वयं आठवाँ राजा है किन्तु वह है इन सातों में से ही एक, जिसका विनाश तय है.
12 “वे दस सींग, जो तुमने देखे हैं, दस राजा हैं, जिन्हें अब तक राज्य प्राप्त नहीं हुआ किन्तु उन्हें एक घण्टे के लिए उस हिंसक पशु के साथ राजसत्ता दी जाएगी. 13 ये राजा अपना अधिकार व सत्ता उस पशु को सौंपने के लिए एकमत हैं; 14 ये मेमने के विरुद्ध युद्ध छेड़ेंगे किन्तु मेमना उन्हें हराएगा क्योंकि सर्वप्रधान प्रभु और सर्वप्रधान राजा वही है. मेमने के साथ उसके बुलाए हुए, चुने हुए तथा विश्वासपात्र होंगे.”
15 तब स्वर्गदूत ने आगे कहा, “वह जलराशि, जो तुमने देखी, जिस पर वह व्यभिचारिणी बैठी है, प्रजातियाँ, लोग, राष्ट्र तथा भाषाएँ हैं 16 और जो पशु तथा दस सींग तुमने देखे हैं, वे उस व्यभिचारिणी से घृणा करेंगे, उसे निर्वस्त्र कर अकेला छोड़ देंगे, उसका माँस खाएँगे और उसका बचा हुआ भाग जला देंगे. 17 परमेश्वर ने अपने उद्धेश्य की पूर्ति के लिए उन राजाओं के मनों को एक कर दिया है कि वे उस पशु को अपना राज्य तब तक के लिए सौंप दें, जब तक परमेश्वर के वचन की पूर्ति न हो जाए. 18 जिस स्त्री को तुमने देखा, वह महानगरी है, जिसकी प्रभुता पृथ्वी के राजाओं पर है.”
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