Bible in 90 Days
स्तेफ़ानॉस का बन्दी बनाया जाना
8 अनुग्रह और सामर्थ्य से भरकर स्तेफ़ानॉस लोगों के बीच में असाधारण अद्भुत चिह्न दिखा रहे थे. 9 इसी समय लिबर्तीन सभागृह से सम्बद्ध कुछ सदस्य, जो मूलरूप से कुरैने, अलेक्सान्द्रिया, किलिकिया और आसिया प्रदेशों के निवासी थे, आकर स्तेफ़ानॉस से वाद-विवाद करने लगे. 10 वे स्तेफ़ानॉस की बुद्धिमत्ता तथा पवित्रात्मा से प्रेरित बातों का सामना करने में विफल रहे.
11 इसलिए उन्होंने गुप्त रूप से कुछ लोगों को यह कहने के लिए फुसलाया, “हमने इसे मोशेह तथा परमेश्वर के विरुद्ध निन्दनीय शब्दों का प्रयोग करते हुए सुना है.”
12 उन्होंने स्तेफ़ानॉस के विरुद्ध जनता, पुरनियों, तथा शास्त्रियों को उकसाया और उन्होंने आकर स्तेफ़ानॉस को बन्दी बनाया और उन्हें महासभा के सामने ले गए. 13 वहाँ उन्होंने झूठे गवाह प्रस्तुत किए जिन्होंने स्तेफ़ानॉस पर यह आरोप लगाया, “यह व्यक्ति निरन्तर इस पवित्र स्थान और व्यवस्था के विरुद्ध बोलता रहता है. 14 हमने इसे यह कहते भी सुना है कि नाज़रेथवासी येशु इस स्थान को नाश कर देगा तथा उन सभी प्रथाओं को बदल देगा, जो हमें मोशेह द्वारा सौंपी गई हैं.”
15 महासभा के सब सदस्य स्तेफ़ानॉस को एकटक देख रहे थे. उन्हें उनका मुखमण्डल स्वर्गदूत के समान दिखाई दिया.
महासभा को स्तेफ़ानॉस का सम्बोधन
7 महायाजक ने उनसे प्रश्न किया, “क्या यह आरोप सच है?”
2 स्तेफ़ानॉस ने उसे उत्तर दिया, “आदरणीय गुरुवर और बन्धुओं,” कृपया सुनिए: महामहिम परमेश्वर ने हमारे पूर्वज अब्राहाम को उनके हारान प्रदेश में आकर बसने के पूर्व, जब वह मेसोपोतामिया में थे, दिव्य दर्शन देते हुए आज्ञा दी: 3 अपनी मातृभूमि और परिजनों का त्याग कर उस देश में चले जाओ, जो मैं तुम्हें दिखाऊँगा.
4 “इसलिए वह कसदियों के देश को छोड़कर हारान नगर में बस गए. इसके बाद उनके पिता की मृत्यु के बाद, परमेश्वर उन्हें इस भूमि पर ले आए जिस पर आप निवास कर रहे हैं. परमेश्वर ने उन्हें इस भूभाग का कोई उत्तराधिकार नहीं दिया; 5 यहाँ तक कि पैर रखने का भी स्थान नहीं. किन्तु परमेश्वर ने उनके उस समय निःसन्तान होने पर भी उनसे यह प्रतिज्ञा की कि उनके बाद वह उनके वंशजों को यह भूमि उनकी सम्पत्ति के रूप में प्रदान करेंगे. 6 आगे परमेश्वर ने यह भी कहा: ‘तुम्हारे वंशज विदेश में प्रवासी और दास बनाए जाएँगे तथा उन पर चार सौ वर्ष तक अत्याचार किया जाता रहेगा. 7 जिस किसी राष्ट्र के द्वारा वे उत्पीड़ित किए जाएँगे मैं उसे दण्ड दूँगा,’ ‘इसके बाद वे वहाँ से निकल आएंगे तथा इसी स्थान पर मेरी आराधना करेंगे.’ 8 परमेश्वर ने अब्राहाम के साथ ख़तना की वाचा स्थापित की. जब अब्राहाम के पुत्र इसहाक का जन्म हुआ, तो आठवें दिन उनका ख़तना किया गया. इसहाक के पुत्र थे याक़ोब और याक़ोब से बारह कुलपिता उत्पन्न हुए.
9 “जलन के कारण कुलपिताओं ने योसेफ़ को मिस्र देश में बेच दिया किन्तु परमेश्वर की कृपादृष्टि योसेफ़ पर बनी रही. 10 इसलिए परमेश्वर ने योसेफ़ को सभी यातनाओं से मुक्त कर उन्हें बुद्धि प्रदान की और मिस्र देश के राजा फ़रोह की कृपादृष्टि प्रदान की तथा फ़रोह ने उन्हें मिस्र देश और पूरे राजभवन पर अधिकारी बना दिया.
11 “तब सारे मिस्र और कनान देश में अकाल पड़ा जिससे हर जगह हाहाकार मच गया और हमारे पूर्वजों के सामने भोजन का अभाव हो गया. 12 किन्तु जब याक़ोब को यह मालूम हुआ कि मिस्र देश में अन्न उपलब्ध है, उन्होंने हमारे पूर्वजों को अन्न लेने वहाँ भेजा, जिनकी यह पहली मिस्र-यात्रा थी. 13 जब वे अन्न लेने वहाँ दूसरी बार गए, योसेफ़ ने स्वयं को अपने भाइयों पर प्रकट कर दिया, जिससे फ़रोह योसेफ़ के परिवार से परिचित हो गया. 14 तब योसेफ़ ने अपने पिता और सारे परिवार को, जिनकी संख्या पचहत्तर थी, मिस्र देश में बुला लिया. 15 तब याक़ोब मिस्र देश में बस गए और वहीं उनकी और हमारे पूर्वजों की मृत्यु हुई. 16 उनके अवशेष शकेम नगर लाए गए तथा उन्हें अब्राहाम द्वारा मोल ली गई कन्दरा-क़ब्र में रखा गया, जिसे अब्राहाम ने शकेम नगर के निवासी हामोर के पुत्रों को दाम देकर खरीदा था.
17 “जब परमेश्वर द्वारा अब्राहाम से की गई प्रतिज्ञा को पूरी करने का समय आया तब मिस्र देश में हमारे पूर्वजों की संख्या में कई गुणा वृद्धि हो चुकी थी. 18 उस समय मिस्र देश में एक अन्य फ़रोह का शासन था, जो योसेफ़ के विषय में कुछ भी नहीं जानता था. 19 उसने हमारे पूर्वजों के साथ चालाकी से बुरा व्यवहार किया और नवजात शिशुओं को नाश करने के लिए विवश किया कि एक भी शिशु बचा न रहे.
20 “इसी काल में मोशेह का जन्म हुआ. वह परमेश्वर की दृष्टि में चाहनेयोग्य थे. तीन माह तक उनका पालन-पोषण उनके पिता के ही परिवार में हुआ. 21 जब उनको छुपाए रखना असम्भव हो गया तब फ़रोह की पुत्री उन्हें ले गई. उसने उनका पालन-पोषण अपने पुत्र जैसे किया. 22 मिस्र देश की सारी विद्या में मोशेह को प्रशिक्षित किया गया. वह बातचीत और कर्तव्य पालन करने में प्रभावशाली थे.
23 “जब मोशेह लगभग चालीस वर्ष के हुए, उनके मन में अपने इस्राएली बन्धुओं से भेंट करने का विचार आया. 24 वहाँ उन्होंने एक इस्राएली के साथ अन्याय से भरा व्यवहार होते देख उसकी रक्षा की तथा सताए जाने वाले के बदले में मिस्रवासी की हत्या कर दी. 25 उनका विचार यह था कि उनके इस काम के द्वारा इस्राएली यह समझ जाएँगे कि परमेश्वर स्वयं उन्हीं के द्वारा इस्राएलियों को मुक्त करा रहे हैं किन्तु ऐसा हुआ नहीं. 26 दूसरे दिन जब उन्होंने आपस में लड़ते हुए दो इस्राएलियों के मध्य यह कहते हुए मेल-मिलाप का प्रयास किया, ‘तुम भाई-भाई हो, क्यों एक दूसरे को आहत करना चाह रहे हो?’
27 “उस अन्याय करने वाले इस्राएली ने मोशेह को धक्का देते हुए कहा, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्यायी ठहराया है? 28 कहीं तुम्हारा मतलब कल उस मिस्री जैसे मेरी भी हत्या का तो नहीं है? बोलो!’ 29 यह सुन मोशेह वहाँ से भाग खड़े हुए और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगे. वहाँ उनके दो पुत्र उत्पन्न हुए.
30 “चालीस वर्ष व्यतीत होने पर सीनय पर्वत के जंगल में एक जलती हुई कँटीली झाड़ी की ज्वाला में उन्हें एक स्वर्गदूत दिखाई दिया. 31 इस दृश्य ने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया. जब वह इसे नज़दीकी से देखने के उद्देश्य से झाड़ी के पास गए तो परमेश्वर ने उनसे कहा: 32 ‘मैं तुम्हारे पूर्वजों के पिता अर्थात् अब्राहाम, इसहाक तथा याक़ोब का परमेश्वर हूँ.’ मोशेह भय से कांपने लगे और ऊपर आँख उठाने का साहस न कर सके.
33 “प्रभु ने मोशेह से कहा, ‘अपने पैरों से जूतियाँ उतार दो क्योंकि जिस जगह पर तुम खड़े हो वह पवित्र जगह है. 34 मिस्र देश में मेरी प्रजा पर हो रहा अत्याचार मैंने अच्छी तरह से देखा है. मैंने उनका कराहना भी सुना है. मैं उन्हें मुक्त कराने नीचे उतर आया हूँ. सुनो, मैं तुम्हें मिस्र देश भेजूँगा.’
35 “यह वही मोशेह हैं, जिन्हें इस्राएलियों ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था, ‘किसने तुम्हें हम पर राजा और न्याय करनेवाला ठहराया है?’ परमेश्वर ने उन्हीं को उस स्वर्गदूत द्वारा, जो झाड़ी में उन्हें दिखाई दिया था, राजा तथा छुड़ानेवाला ठहराकर भेज दिया. 36 यह वही मोशेह थे, जिन्होंने उनका नायक होकर उन्हें बाहर निकाला और मिस्र देश, लाल सागर तथा चालीस वर्ष जंगल में अद्भुत चिह्न दिखाते हुए उनका मार्गदर्शन किया.
37 “यही थे वह मोशेह, जिन्होंने इस्राएल की सन्तान के सामने यह घोषणा पहले से ही की थी, ‘तुम्हारे ही बन्धुओं में से परमेश्वर मेरे ही समान एक भविष्यद्वक्ता को उठाएंगे.’ 38 यह वही हैं, जो जंगल में इस्राएली समुदाय में उस स्वर्गदूत के साथ मौजूद थे, जिसने उनसे सीनय पर्वत पर बातें कीं और जो हमारे पूर्वजों के साथ थे तथा मोशेह ने तुम्हें सौंप देने के लिए जिनसे जीवित वचन प्राप्त किए.
39 “हमारे पूर्वज उनके आज्ञापालन के इच्छुक नहीं थे. वे मन ही मन मिस्र देश की कामना करने लगे. 40 वे हारोन से कहते रहे, ‘हमारे आगे-आगे जाने के लिए देवताओं को स्थापित करो. इस मोशेह की, जो हमें मिस्र साम्राज्य से बाहर लेकर आया है, कौन जाने क्या हुआ!’ 41 तब उन्होंने बछड़े की एक मूर्ति बनाई, उसे बलि चढ़ाई तथा अपने हाथों के कामों पर उत्सव मनाने लगे. 42 इससे परमेश्वर ने उनसे मुँह मोड़कर उन्हें नक्षत्रों की उपासना करने के लिए छोड़ दिया, जैसा भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख में लिखा है:
“‘इस्राएलवंशियों क्या तुमने जंगल
में चालीस वर्ष मुझे ही बलि तथा, भेंटें नहीं चढ़ाईं?
43 तुमने देवता मोलेक की वेदी की स्थापना की,
अपने देवता रेफ़ान के तारे को ऊँचा किया
और उन्हीं की मूर्तियों को आराधना के लिए स्थापित किया.
इसलिए मैं तुम्हें बाबेल से दूर’ निकाल ले जाऊँगा.
44 “जंगल में गवाही का तम्बू हमारे पूर्वजों के पास था. इसका निर्माण ठीक-ठीक परमेश्वर द्वारा मोशेह को दिए गए निर्देश के अनुसार किया गया था, जिसका आकार स्वयं मोशेह देख चुके थे. 45 हमारे पूर्वज इस गवाही के तम्बू को योशुआ के नेतृत्व में अपने साथ उस भूमि पर ले आए, जिसे उन्होंने अपने अधिकार में ले लिया था और जहाँ से परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से राष्ट्रों को निकाल दिया था. ऐसा दाविद के समय तक रहा. 46 दाविद पर परमेश्वर की कृपादृष्टि थी. दाविद ने उनसे याक़ोब के परमेश्वर के लिए एक निवास स्थान बनाने की आज्ञा चाही. 47 किन्तु इस भवन का निर्माण शलोमोन द्वारा किया गया.
48 “सच तो यह है कि, परमप्रधान परमेश्वर मनुष्य के हाथ से बने भवन में वास नहीं करते. भविष्यद्वक्ता की घोषणा है: 49 परमेश्वर का कहना है,
“‘स्वर्ग मेरा सिंहासन
तथा पृथ्वी मेरे पैरों की चौकी है.
किस प्रकार का घर बनाओगे तुम मेरे लिए?
या कहाँ होगा मेरा विश्राम स्थान?
50 क्या ये सभी मेरे ही हाथों की रचना नहीं?’
51 “आप, जो हठीले हृदय और कान के ख़तना रहित लोग हैं, हमेशा पवित्रात्मा का विरोध करते रहते हैं. आप ठीक वही कर रहे हैं, जो आपके पूर्वजों ने किया. 52 क्या कभी भी कोई ऐसा भविष्यद्वक्ता हुआ है, जिसे आपके पूर्वजों ने सताया न हो? यहाँ तक कि उन्होंने तो उन भविष्यद्वक्ताओं की हत्या भी कर दी जिन्होंने उस धर्मी जन के आगमन की पहले से ही घोषणा की थी. यहाँ उसी की हत्या करके आप लोग विश्वासघाती और हत्यारे बन गए हैं. 53 आप वही हैं जिन्हें स्वर्गदूतों द्वारा प्रभावशाली व्यवस्था सौंपी गई थी, फिर भी आपने उसका पालन नहीं किया.”
स्तेफ़ानॉस का पथराव—शाऊल भी एक उत्पीड़क
54 यह सुन सारे सुननेवाले तिलमिला उठे और स्तेफ़ानॉस पर दाँत पीसने लगे.
55 किन्तु पवित्रात्मा से भरकर स्तेफ़ानॉस ने जब अपनी दृष्टि स्वर्ग की ओर उठाई, उन्होंने परमेश्वर की महिमा को और मसीह येशु को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े हुए देखा. 56 स्तेफ़ानॉस ने सुननेवालों को सम्बोधित करते हुए कहा, “वह देखिए! मुझे स्वर्ग खुला हुआ तथा मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं.”
57 यह सुनते ही सुननेवालों ने चीखते हुए अपने कानों पर हाथ रख लिए. फिर वे गुस्से में स्तेफ़ानॉस पर एक साथ टूट पड़े. 58 उन्होंने स्तेफ़ानॉस को पकड़ा और घसीटते हुए नगर के बाहर ले गए और वहाँ उन्होंने पथराव करके उनकी हत्या कर दी. इस समय उन्होंने अपने बाहरी कपड़े शाऊल नामक युवक के पास रख छोड़े थे.
59 जब वे स्तेफ़ानॉस का पथराव कर रहे थे, स्तेफ़ानॉस ने प्रभु से इस प्रकार प्रार्थना की, “प्रभु येशु, मेरी आत्मा को स्वीकार कीजिए.” 60 तब उन्होंने घुटने टेककर ऊँचे शब्द में यह कहा, “प्रभु, इन्हें इस पाप का दोषी न ठहराना.” यह कहते हुए स्तेफ़ानॉस लंबी नींद में सो गए.
8 स्तेफ़ानॉस की हत्या में पूरी तरह शाऊल सहमत था.
कलीसिया की सताहट और बिखराव
उसी दिन से येरूशालेम नगर की कलीसियाओं पर घोर सताहट शुरु हो गयी, जिसके फलस्वरूप प्रेरितों के अलावा सभी शिष्य यहूदिया तथा शोमरोन के क्षेत्रों में बिखर गए. 2 कुछ श्रद्धालु व्यक्तियों ने स्तेफ़ानॉस के शव की अंत्येष्टि की तथा उनके लिए गहरा शोक मनाया. 3 शाऊल कलीसिया को सता रहा था; वह घरों में घुस, स्त्री-पुरुषों को घसीट कर कारागार में डाल रहा था.
दीकन फ़िलिप्पॉस शोमरोन नगर में
4 वे, जो यहाँ-वहाँ बिखर गए थे, शुभसन्देश सुनाने लगे. 5 फ़िलिप्पॉस शोमरोन के एक नगर में जाकर मसीह के विषय में शिक्षा देने लगे. 6 फ़िलिप्पॉस के अद्भुत चिह्नों को देख भीड़ एक मन होकर उनके प्रवचन सुनने लगी. 7 अनेक दुष्टात्माओं के सताए हुओं में से प्रेत ऊँचे शब्द में चिल्लाते हुए बाहर आ रहे थे. अनेक अपंग और लकवे के पीड़ित भी स्वस्थ हो रहे थे. 8 नगर में आनन्द की लहर दौड़ गई थी.
शिमोन टोनहा
9 उसी नगर में शिमोन नामक एक व्यक्ति था, जिसने शोमरोन राष्ट्र को जादू-टोने के द्वारा चकित कर रखा था. वह अपनी महानता का दावा करता था. 10 छोटे-बड़े सभी ने यह कहकर उसका लोहा मान रखा था: “यही है वह, जिसे परमेश्वर की महाशक्ति कहा जाता है.” 11 उसके इन चमत्कारों से सभी अत्यन्त प्रभावित थे क्योंकि उसने उन्हें बहुत दिनों से अपनी जादूई विद्या से चकित किया हुआ था. 12 किन्तु जब लोगों ने परमेश्वर के राज्य और मसीह येशु के नाम के विषय में फ़िलिप्पॉस का सन्देश सुन कर विश्वास किया, स्त्री और पुरुष दोनों ही ने बपतिस्मा लिया. 13 स्वयं शिमोन ने भी विश्वास किया, बपतिस्मा लिया और फ़िलिप्पॉस का शिष्य बन गया. वह अद्भुत चिह्न और सामर्थ्य से भरे महान कामों को देख कर हैरान था.
14 जब येरूशालेम नगर में प्रेरितों को यह मालूम हुआ कि शोमरोन नगर ने परमेश्वर के वचन को स्वीकार कर लिया है, उन्होंने पेतरॉस तथा योहन को वहाँ भेज दिया. 15 वहाँ पहुँच कर उन्होंने उनके लिए प्रार्थना की कि वे पवित्रात्मा प्राप्त करें 16 क्योंकि वहाँ अब तक किसी पर भी पवित्रात्मा नहीं उतरा था. उन्होंने प्रभु येशु के नाम में बपतिस्मा मात्र ही लिया था. 17 तब प्रेरितों ने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्रात्मा प्राप्त किया.
18 जब शिमोन ने यह देखा कि प्रेरितों के मात्र हाथ रखने से पवित्रात्मा प्राप्ति सम्भव है, उसने प्रेरितों को यह कहते हुए धन देना चाहा, 19 “मुझे भी यह अधिकार प्रदान कर दीजिए कि मैं जिस किसी पर हाथ रखूँ उसे पवित्रात्मा प्राप्त हो जाए.”
20 किन्तु पेतरॉस ने उससे कहा, “सर्वनाश हो तेरा और तेरे धन का! क्योंकि तूने परमेश्वर का वरदान धन से प्राप्त करना चाहा. 21 इस सेवा में तेरा न कोई भाग है न कोई हिस्सेदारी, क्योंकि तेरा हृदय परमेश्वर के सामने सच्चा नहीं है. 22 इसलिए सही यह होगा कि तू अपनी दुर्वृत्ति से पश्चाताप करे और प्रार्थना करे कि यदि सम्भव हो तो प्रभु तेरी इस बुराई को क्षमा करें, 23 क्योंकि मुझे यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि तू कड़वाहट से भरा हुआ और पूरी तरह पाप में जकड़ा हुआ है.”
24 यह सुन टोनहे शिमोन ने उनसे विनती की “आप ही प्रभु से मेरे लिए प्रार्थना कीजिए कि आपने जो कुछ कहा है, उसमें से कुछ भी मुझ पर असर न करने पाए.”
25 पेतरॉस तथा योहन परमेश्वर के वचन की शिक्षा और गवाही देते हुए येरूशालेम लौट गए. वे शोमरोन क्षेत्र के अनेक गाँवों में ईश्वरीय सुसमाचार सुनाते गए.
दीकन फ़िलिप्पॉस द्वारा वित्तमंत्री का बपतिस्मा
26 प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फ़िलिप्पॉस से कहा, “उठो, दक्षिण दिशा की ओर उस मार्ग पर जाओ, जो येरूशालेम से अज्ज़ाह नगर को जाता है.” यह जंगल का मार्ग है. 27 फ़िलिप्पॉस इस आज्ञा के अनुसार चल पड़े. मार्ग में उनकी भेंट एक खोजे से हुई, जो इथियोपिया की रानी कन्दाके की राज्यसभा में खजाँची था. वह आराधना के लिए येरूशालेम आया हुआ था. 28 वह स्वदेश लौटते समय अपने रथ में बैठे हुए भविष्यद्वक्ता यशायाह का लेख पढ़ रहा था. 29 पवित्रात्मा ने फ़िलिप्पॉस को आज्ञा दी, “आगे बढ़ो और रथ के साथ-साथ चलते जाओ.”
30 फ़िलिप्पॉस दौड़कर रथ के पास पहुँचे. उन्होंने उस व्यक्ति को भविष्यद्वक्ता यशायाह के ग्रन्थ से पढ़ते हुए सुना तो उससे प्रश्न किया, “आप जो पढ़ रहे हैं, क्या उसे समझ रहे हैं?”
31 “भला मैं इसे कैसे समझ सकता हूँ जब तक कोई मुझे ये सब न समझाए?” वित्तमंत्री ने उत्तर दिया. इसलिए उसने फ़िलिप्पॉस से रथ में बैठने की विनती की.
32 वित्तमंत्री जो भाग पढ़ रहा था, वह यह था:
उन्हें वध के लिए ठहराई हुई भेड़ के समान ले जाया गया.
जैसे ऊन कतरनेवाले के सामने मेमना शान्त रहता है,
वैसे ही उन्होंने भी अपना मुख न खोला.
33 अपनी विनम्रता के कारण वह न्याय से दूर रह गए.
कौन उनके वंशजों का वर्णन करेगा?
क्योंकि पृथ्वी पर से उनका जीवन समाप्त कर दिया गया.
34 खोजे ने फ़िलिप्पॉस से विनती की, “कृपया मुझे बताएं, भविष्यद्वक्ता यह किसका वर्णन कर रहे हैं—अपना या किसी और का?” 35 तब फ़िलिप्पॉस ने पवित्रशास्त्र के उसी भाग से प्रारम्भ कर मसीह येशु के विषय में ईश्वरीय सुसमाचार स्पष्ट किया.
36 जब वे मार्ग में ही थे, एक जलाशय को देख खजाँची ने फ़िलिप्पॉस से पूछा, “यह देखिए, जल! मेरे बपतिस्मा लेने में क्या कोई बाधा है?” 37 फ़िलिप्पॉस ने उत्तर दिया, “यदि आप सारे हृदय से विश्वास करते हैं तो आप बपतिस्मा ले सकते हैं.” खोजे ने कहा, “मैं विश्वास करता हूँ कि मसीह येशु ही परमेश्वर के पुत्र हैं.” 38 तब फ़िलिप्पॉस ने रथ रोकने की आज्ञा दी और स्वयं फ़िलिप्पॉस व खोजे दोनों जल में उतर गए और फ़िलिप्पॉस ने उसे बपतिस्मा दिया. 39 जब वे दोनों जल से बाहर आए, सहसा फ़िलिप्पॉस प्रभु के आत्मा के द्वारा वहाँ से उठा लिए गए. वह खोजे को दोबारा दिखाई न दिए. आनन्द से भरकर खोजा स्वदेश लौट गया, 40 जबकि फ़िलिप्पॉस अज़ोतॉस नगर में देखे गए. कयसरिया नगर पहुँचते हुए वह मार्ग पर सभी नगरों में ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करते गए.
शाऊल का परिवर्तन
9 इस समय शाऊल पर प्रभु के शिष्यों को धमकाने तथा उनकी हत्या करने की धुन छायी हुई थी. वह महायाजक के पास गया 2 और उनसे दमिश्क नगर के यहूदी सभागृहों के लिए इस उद्धेश्य के अधिकार पत्रों की विनती की कि यदि उसे इस मत के शिष्य—स्त्री या पुरुष—मिलें तो उन्हें बन्दी बना कर येरूशालेम ले आए.
3 जब वह दमिश्क नगर के पास पहुँचा, एकाएक उसके चारों ओर स्वर्ग से एक बिजली कौन्ध गई, 4 वह भूमि पर गिर पड़ा और उसने स्वयं को सम्बोधित करता हुआ एक शब्द सुना: “शाऊल! शाऊल! तुम मुझे क्यों सता रहे हो?”
5 इसके उत्तर में उसने कहा, “प्रभु! आप कौन हैं?”
प्रभु ने उत्तर दिया, “मैं येशु हूँ, जिसे तुम सता रहे हो 6 किन्तु अब उठो, नगर में जाओ और तुम्हें क्या करना है, तुम्हें बता दिया जाएगा.”
7 शाऊल के सहयात्री अवाक खड़े थे. उन्हें शब्द तो अवश्य सुनाई दे रहा था किन्तु कोई दिखाई नहीं दे रहा था. 8 तब शाऊल भूमि पर से उठा. यद्यपि उसकी आँखें तो खुली थीं, वह कुछ भी देख नहीं पा रहा था. इसलिए उसका हाथ पकड़ कर वे उसे दमिश्क नगर में ले गए. 9 तीन दिन तक वह अंधा रहा. उसने न कुछ खाया और न कुछ पिया.
10 दमिश्क में हननयाह नामक व्यक्ति मसीह येशु के एक शिष्य थे. उनसे प्रभु ने दर्शन में कहा.
“हननयाह!”
“क्या आज्ञा है, प्रभु?” उन्होंने उत्तर दिया.
11 प्रभु ने उनसे कहा, “सीधा नामक गली पर जा कर यहूदाह के घर में तारस्यॉसवासी शाऊल के विषय में पूछो, जो प्रार्थना कर रहा है. 12 उसने दर्शन में देखा है कि हननयाह नामक एक व्यक्ति ने आकर उस पर हाथ रखे कि वह दोबारा देखने लगें.”
13 हननयाह ने सन्देह व्यक्त किया, “किन्तु प्रभु! मैंने इस व्यक्ति के विषय में अनेकों से सुन रखा है कि उसने येरूशालेम में आपके पवित्र लोगों का कितना बुरा किया है 14 और यहाँ भी वह प्रधान पुरोहितों से यह अधिकार पत्र लेकर आया है कि उन सभी को बन्दी बनाकर ले जाए, जो आपके शिष्य हैं.”
15 किन्तु प्रभु ने हननयाह से कहा, “तुम जाओ! वह मेरा चुना हुआ जन है, जो अन्यजातियों, राजाओं तथा इस्राएलियों के सामने मेरे नाम का प्रचार करेगा. 16 मैं उसे यह अहसास दिलाऊँगा कि उसे मेरे लिए कितना कष्ट उठाना होगा.”
17 हननयाह ने उस घर में जाकर शाऊल पर अपने हाथ रखे और कहा, “भाई शाऊल, प्रभु मसीह येशु ने, जिन्होंने तुम्हें यहाँ आते हुए मार्ग में दर्शन दिया, मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि तुम्हें दोबारा आँखों की रोशनी मिल जाए और तुम पवित्रात्मा से भर जाओ.” 18 तुरन्त ही उसकी आँखों पर से पपड़ी-जैसी गिरी और वह दोबारा देखने लगा, वह उठा और उसे बपतिस्मा दिया गया. 19 भोजन के बाद उसके शरीर में बल लौट आया. वह कुछ दिन दमिश्क नगर के शिष्यों के साथ ही रहा.
दमिश्क नगर में शाऊल का उद्सम्बोधन
20 शाऊल ने बिना देर किए यहूदी सभागृहों में यह शिक्षा देनी शुरु कर दी, “मसीह येशु ही परमेश्वर-पुत्र हैं.” 21 उनके सुननेवाले चकित हो यह विचार करते थे, “क्या यह वही नहीं जिसने येरूशालेम में उनका बुरा किया, जो मसीह येशु के विश्वासी थे और वह यहाँ भी इसी उद्देश्य से आया था कि उन्हें बन्दी बना कर प्रधान पुरोहितों के सामने प्रस्तुत करे?” 22 किन्तु शाऊल सामर्थी होते चले गए और दमिश्क के यहूदियों के सामने यह प्रमाणित करते हुए कि येशु ही मसीह हैं, उन्हें निरुत्तर करते रहे.
23 कुछ समय बीतने के बाद यहूदियों ने उनकी हत्या की योजना की 24 किन्तु शाऊल को उनकी इस योजना के बारे में मालूम हो गया. शाऊल की हत्या के उद्देश्य से उन्होंने नगर-द्वार पर रात-दिन चौकसी कड़ी कर दी 25 किन्तु रात में शिष्यों ने उन्हें टोकरे में बैठा कर नगर की शहरपनाह से नीचे उतार दिया.
शाऊल का येरूशालेम प्रवास
26 येरूशालेम पहुँच कर शाऊल ने मसीह येशु के शिष्यों में शामिल होने का प्रयास किया किन्तु वे सब उनसे भयभीत थे क्योंकि वे विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि शाऊल भी अब वास्तव में मसीह येशु के शिष्य हो गए हैं 27 परन्तु बारनबास उन्हें प्रेरितों के पास ले गए और उन्हें स्पष्ट बताया कि मार्ग में किस प्रकार शाऊल को प्रभु का दर्शन प्राप्त हुआ और प्रभु ने उनसे बातचीत की तथा कैसे उन्होंने दमिश्क नगर में मसीह येशु के नाम का प्रचार निडरता से किया है.
28 इसलिए शाऊल येरूशालेम में प्रेरितों के साथ निधड़क होकर रहने लगे तथा मसीह येशु के नाम का प्रचार निडरता से करने लगे. 29 वह यूनानी भाषा के यहूदियों से बातचीत और वाद-विवाद करते थे जबकि वे भी उनकी हत्या की कोशिश कर रहे थे. 30 जब अन्य शिष्यों को इसके विषय में मालूम हुआ, वे उन्हें कयसरिया नगर ले गए जहाँ से उन्होंने उन्हें तारस्यॉस नगर भेज दिया.
31 सारे यहूदिया प्रदेश, गलील प्रदेश और शोमरोन प्रदेश में प्रभु में श्रद्धा के कारण कलीसिया में शान्ति का विकास-विस्तार हो रहा था. पवित्रात्मा के प्रोत्साहन के कारण उनकी संख्या बढ़ती जा रही थी.
पेतरॉस द्वारा लकवे के पीड़ित को चंगाई
32 पेतरॉस इन सभी क्षेत्रों में यात्रा करते हुए लुद्दा नामक स्थान के संतों के बीच पहुँचे. 33 वहाँ उनकी भेंट ऐनियास नाम के व्यक्ति से हुई, जो आठ वर्ष से लकवे से पीड़ित था. 34 पेतरॉस ने उससे कहा, “ऐनियास, मसीह येशु के नाम में चंगे हो जाओ, उठो और अपना बिछौना सम्भालो.” वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ. 35 उसे चंगा हुआ देखकर सभी लुद्दा नगर तथा शारोन नगरवासियों ने प्रभु में विश्वास किया.
36 योप्पा नगर में तबीथा नामक एक शिष्या थी. तबीथा नाम का यूनानी अनुवाद है दोरकस. वह बहुत ही भली, कृपालु तथा परोपकारी स्त्री थी और उदारतापूर्वक दान दिया करती थी. 37 किसी रोग से उसकी मृत्यु हो गई. स्नान के बाद उसे ऊपरी कमरे में लिटा दिया गया था. 38 लुद्दा नगर योप्पा नगर के पास है. शिष्यों ने पेतरॉस के विषय में सुन रखा था, इसलिए लोगों ने दो व्यक्तियों को इस विनती के साथ पेतरॉस के पास भेजा, “कृपया बिना देर किए यहाँ आने का कष्ट करें.”
39 पेतरॉस उठकर उनके साथ चल दिए. उन्हें उस ऊपरी कक्ष में ले जाया गया. वहाँ सभी विधवाएँ उन्हें घेर कर रोने लगी. उन्होंने पेतरॉस को वे सब वस्त्र दिखाए, जो दोरकस ने अपने जीवनकाल में बनाए थे 40 मगर पेतरॉस ने उन सभी को कक्ष से बाहर भेज दिया. तब उन्होंने घुटने टेककर प्रार्थना की और फिर शव की ओर मुँह कर के आज्ञा दी, “तबीथा! उठो!” उस स्त्री ने अपनी आँखें खोल दीं और पेतरॉस को देख वह उठ बैठी. 41 पेतरॉस ने हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और शिष्यों और विधवाओं को वहाँ बुलाकर जीवित दोरकस उनके सामने प्रस्तुत कर दी. 42 सारे योप्पा में यह घटना सबको मालूम हो गई. अनेकों ने प्रभु में विश्वास किया. 43 पेतरॉस वहाँ अनेक दिन शिमोन नामक व्यक्ति के यहाँ ठहरे रहे, जो व्यवसाय से चमड़े का काम करता था.
रोमी सेनापति कॉरनेलियॉस के घर पर पेतरॉस
10 कयसरिया नगर में कॉरनेलियॉस नामक एक व्यक्ति थे, जो इतालियन नामक सैन्य दल के सेनापति थे. 2 वह परमेश्वर पर विश्वास रखनेवाले व्यक्ति थे. वह और उनका परिवार, सभी श्रद्धालु थे. वह यहूदियों को उदार मन से दान देते तथा परमेश्वर से निरन्तर प्रार्थना करते रहते थे.
3 दिन के लगभग नवें घण्टे में उन्होंने एक दर्शन में स्पष्ट देखा कि परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने उनके पास आकर उनसे कहा, “कॉरनेलियॉस!”
4 भयभीत कॉरनेलियॉस ने स्वर्गदूत की ओर एकटक देखते हुए प्रश्न किया, “क्या आज्ञा है, प्रभु?”
स्वर्गदूत ने स्पष्ट किया, “परमेश्वर द्वारा तुम्हारी प्रार्थनाएँ तथा तुम्हारे दान याद किए गए हैं. 5 इसलिए अपने सेवक योप्पा नगर भेज कर शिमोन नामक व्यक्ति को बुलवा लो. वह पेतरॉस भी कहलाते हैं. 6 इस समय वह शिमोन नामक चर्मशोधक के यहाँ अतिथि हैं, जिसका घर समुद्र के किनारे पर है.”
7 स्वर्गदूत के जाते ही कॉरनेलियॉस ने अपने दो सेवकों तथा उनकी निरन्तर सेवा के लिए ठहराए हुए एक भक्त सैनिक को बुलवाया 8 तथा उन्हें सारी स्थिति के बारे में बताते हुए योप्पा नगर भेज दिया.
9 ये लोग दूसरे दिन छठे घण्टे के लगभग योप्पा नगर के पास पहुँचे. उसी समय पेतरॉस घर की खुली छत पर प्रार्थना करने गए थे. 10 वहाँ उन्हें भूख लगी और कुछ खाने की इच्छा बहुत बढ़ गई. जब भोजन तैयार किया ही जा रहा था, पेतरॉस ध्यानमग्न हो गए. 11 उन्होंने स्वर्ग को खुला देखा जहाँ से एक विशाल चादर जैसी वस्तु चारों कोनों से नीचे उतारी जा रही थी. 12 इसमें पृथ्वी के सभी प्रकार के चौपाए, रेंगते हुए जन्तु तथा पक्षी थे. 13 तब उन्हें एक शब्द सुनाई दिया, “उठो, पेतरॉस! मारो और खाओ!”
14 पेतरॉस ने उत्तर दिया, “कतई नहीं प्रभु! क्योंकि मैंने कभी भी कोई अपवित्र तथा अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है.”
15 उन्हें दूसरी बार शब्द सुनाई दिया, “जिन वस्तुओं को स्वयं परमेश्वर ने शुद्ध कर दिया है उन्हें अशुद्ध मत समझो.”
16 तीन बार दोहराने के बाद तुरन्त ही वह वस्तु स्वर्ग में उठा ली गई.
17 पेतरॉस अभी इसी दुविधा में थे कि इस दर्शन का अर्थ क्या हो सकता है, कॉरनेलियॉस द्वारा भेजे गए व्यक्ति पूछताछ करते हुए शिमोन के द्वार पर आ पहुँचे. 18 उन्होंने पुकार कर पूछा, “क्या शिमोन, जिनका नाम पेतरॉस भी है, यहीं ठहरे हुए हैं?”
19 पेतरॉस अभी भी उसी दर्शन पर विचार कर रहे थे कि पवित्रात्मा ने उनसे कहा, “सुनो! तीन व्यक्ति तुम्हें खोजते हुए यहाँ आए हैं. 20 निस्संकोच उनके साथ चले जाओ क्योंकि स्वयं मैंने उन्हें तुम्हारे पास भेजा है.”
21 पेतरॉस नीचे गए और उनसे कहा, “तुम जिसे खोज रहे हो, वह मैं हूँ. क्या कारण है तुम्हारे यहाँ आने का?”
22 उन्होंने उत्तर दिया, “हमें सेनापति कॉरनेलियॉस ने आपके पास भेजा है. वह सच्चाई पर चलनेवाले, श्रद्धालु तथा सभी यहूदी समाज में सम्मानित हैं. उन्हें एक पवित्र स्वर्गदूत की ओर से यह निर्देश मिला है कि वह आपको आमन्त्रित कर सहपरिवार आप से वचन सुनें.” 23 पेतरॉस ने उन्हें अपने अतिथि होने का आमन्त्रण दिया. अगले दिन पेतरॉस उनके साथ चल दिए. योप्पा नगर के कुछ विश्वासी भाई भी उनके साथ हो लिए.
24 दूसरे दिन वे कयसरिया नगर पहुँचे. कॉरनेलियॉस उन्हीं की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने अपने सम्बन्धियों और घनिष्ठ मित्रों को आमन्त्रित किया हुआ था. 25 जैसे ही पेतरॉस ने उनके निवास में प्रवेश किया, कॉरनेलियॉस ने उनके चरणों में गिर कर उनकी स्तुति की 26 किन्तु पेतरॉस ने उन्हें उठाते हुए कहा, “उठिए! मैं भी मात्र मनुष्य हूँ.”
27 उनसे बातचीत करते हुए पेतरॉस ने भीतर प्रवेश किया, जहाँ उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा पाया. 28 उन्हें सम्बोधित करते हुए पेतरॉस ने कहा, “आप सब यह तो समझते ही हैं कि एक यहूदी के लिए किसी अन्यजाति के साथ सम्बन्ध रखना या उसके घर मिलने जाना यहूदी नियमों के विरुद्ध है किन्तु स्वयं परमेश्वर ने मुझ पर यह प्रकट किया है कि मैं किसी भी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न मानूँ. 29 यही कारण है कि जब आपने मुझे आमन्त्रित किया मैं यहाँ बिना किसी आपत्ति के चला आया. इसलिए अब मैं जानना चाहता हूँ कि आपने मुझे यहाँ आमन्त्रित क्यों किया है?”
30 कॉरनेलियॉस ने उन्हें उत्तर दिया, “चार दिन पूर्व नवें घण्टे मैं अपने घर में प्रार्थना कर रहा था कि मैंने देखा कि मेरे सामने उजले कपड़ों में एक व्यक्ति खड़ा हुआ है. 31 उसने मुझे सम्बोधित करके कहा, ‘कॉरनेलियॉस, तुम्हारी प्रार्थना सुन ली गई है और तुम्हारे द्वारा दिए गए दान परमेश्वर ने याद किए हैं. 32 इसलिए अब किसी को योप्पा नगर भेजकर समुद्र के किनारे पर शिमोन चमड़ेवाले के यहाँ ठहरे शिमोन को, जिन्हें पेतरॉस नाम से जाना जाता है, बुलवा लो.’ 33 मैंने तुरन्त आपको बुलवाने के लिए अपने सेवक भेजे और आपने यहाँ आने की कृपा की है. हम सब यहाँ इसलिए उपस्थित हैं कि आप से वह सब सुनें जिसे सुनाने की आज्ञा आपको प्रभु की ओर से प्राप्त हुई है.”
कॉरनेलियॉस परिवार से पेतरॉस का उपदेश
34 पेतरॉस ने उनसे कहा: “अब मैं यह अच्छी तरह से समझ गया हूँ कि परमेश्वर किसी के भी पक्षधर नहीं हैं. 35 हर एक राष्ट्र में उस व्यक्ति पर परमेश्वर की कृपादृष्टि होती है, जो परमेश्वर में श्रद्धा रखता तथा वैसा ही स्वभाव रखता है, जो उनकी दृष्टि में सही है. 36 इस्राएल राष्ट्र के लिए परमेश्वर द्वारा भेजे गए सन्देश के विषय में तो आपको मालूम ही है. परमेश्वर ने मसीह येशु के द्वारा—जो सबके प्रभु हैं—हमें इस्राएलियों में शान्ति के ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करने भेजा. 37 आप सबको मालूम ही है कि गलील प्रदेश में योहन द्वारा बपतिस्मा की घोषणा से शुरु होकर सारे यहूदिया प्रदेश में क्या-क्या हुआ है, 38 कैसे परमेश्वर ने पवित्रात्मा तथा सामर्थ्य से नाज़रेथवासी मसीह येशु का अभिषेक किया, कैसे वह भलाई करते रहे और उन्हें स्वस्थ करते रहे, जो शैतान द्वारा सताए हुए थे क्योंकि परमेश्वर उनके साथ थे.
39 “चाहे यहूदिया प्रदेश में या येरूशालेम में जो कुछ वह करते रहे हम उसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं. उन्हीं को उन्होंने काठ पर लटका कर मार डाला. 40 उन्हीं मसीह येशु को परमेश्वर ने तीसरे दिन मरे हुओं में से दोबारा जीवित कर दिया और उन्हें प्रकट भी किया. 41 सब पर नहीं परन्तु सिर्फ उन साक्ष्यों पर, जो इसके लिए परमेश्वर द्वारा ही पहले से तय थे अर्थात् हम, जिन्होंने उनके मरे हुओं में से जीवित होने के बाद उनके साथ भोजन और संगति की. 42 उन्होंने हमें आज्ञा दी कि हम हर जगह प्रचार करें और इस बात की सच्चाई से गवाही दें कि यही हैं वह, जिन्हें स्वयं परमेश्वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है. 43 उनके विषय में सभी भविष्यद्वक्ताओं की यह गवाही है कि उन्हीं के नाम के द्वारा हर एक व्यक्ति, जो उनमें विश्वास करता है, पाप-क्षमा प्राप्त करता है.”
अन्यजाति समूह का पहिला बपतिस्मा
44 जब पेतरॉस यह कह ही रहे थे, इस प्रवचन के हर एक सुननेवाले पर पवित्रात्मा उतर गए. 45 पेतरॉस के साथ यहाँ आए मसीह के ख़तना किए हुए विश्वासी यह देखकर चकित रह गए कि अन्यजातियों पर भी पवित्रात्मा उतरे हैं 46 क्योंकि वे उन्हें अन्य भाषाओं में भाषण करते और परमेश्वर का धन्यवाद करते सुन रहे थे. इस पर पेतरॉस ने प्रश्न किया, 47 “कौन इनके जल-बपतिस्मा पर आपत्ति उठा सकता है क्योंकि इन्होंने ठीक हमारे ही समान पवित्रात्मा प्राप्त किया है?” 48 तब पेतरॉस ने उन्हें आज्ञा दी कि वे मसीह येशु के नाम में बपतिस्मा लें. पेतरॉस से उन्होंने कुछ दिन और अपने साथ रहने की विनती की.
पेतरॉस द्वारा अपने स्वभाव का स्पष्टीकरण
11 सारे यहूदिया प्रदेश में प्रेरितों और शिष्यों तक यह समाचार पहुँच गया कि अन्यजातियों ने भी परमेश्वर के वचन-सन्देश को ग्रहण कर लिया है. 2 परिणामस्वरूप येरूशालेम पहुँचने पर ख़तना किए हुए शिष्यों ने पेतरॉस को आड़े हाथों लिया, 3 “आप वहाँ खतनारहितों के अतिथि होकर रहे तथा आपने उनके साथ भोजन भी किया!”
4 इसलिए पेतरॉस ने उन्हें क्रमानुसार समझाना शुरु किया, 5 “जब मैं योप्पा नगर में प्रार्थना कर रहा था, तन्मयावस्था में मैंने दर्शन में एक चादर जैसी वस्तु को चारों कोनों से लटके हुए स्वर्ग से नीचे उतरते देखा. वह वस्तु मेरे एकदम पास आ गई. 6 उसे ध्यान से देखने पर मैंने पाया कि उसमें पृथ्वी पर के सभी चौपाये, जंगली पशु, रेंगते जन्तु तथा आकाश के पक्षी थे. 7 उसी समय मुझे यह शब्द सुनाई दिया, ‘उठो, पेतरॉस, मारो और खाओ.’
8 “मैंने उत्तर दिया, ‘बिलकुल नहीं प्रभु! क्योंकि मैंने कभी भी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मुँह में नहीं डाली.’
9 “स्वर्ग से दोबारा यह शब्द सुनाई दिया, ‘जिसे परमेश्वर ने शुद्ध घोषित कर दिया है तुम उसे अशुद्ध मत समझो.’ 10 तीन बार दोहराने के बाद वह सब स्वर्ग में उठा लिया गया.
11 “ठीक उसी समय तीन व्यक्ति उस घर के सामने आ खड़े हुए, जहाँ मैं ठहरा हुआ था. वे कयसरिया नगर से मेरे लिए भेजे गए थे. 12 पवित्रात्मा ने मुझे आज्ञा दी कि मैं बिना किसी आपत्ति के उनके साथ चला जाऊँ. मेरे साथ ये छः शिष्य भी वहाँ गए थे. हम उस व्यक्ति के घर में गए. 13 उसने हमें बताया कि किस प्रकार उसने अपने घर में उस स्वर्गदूत को देखा, जिसने उसे आज्ञा दी थी कि योप्पा नगर से शिमोन अर्थात् पेतरॉस को आमन्त्रित किया जाए, 14 जो उन्हें वह सन्देश देंगे जिसके द्वारा उसका तथा उसके सारे परिवार को उद्धार प्राप्त होगा.
15 “जब मैंने प्रवचन शुरु किया उन पर भी पवित्रात्मा उतरे—ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार वह शुरुआत में हम पर उतरे 16 थे—तब मुझे प्रभु के ये शब्द याद आए, ‘निःसन्देह योहन जल में बपतिस्मा देता रहा किन्तु तुम्हें पवित्रात्मा में बपतिस्मा दिया जाएगा.’ 17 इसलिए जब प्रभु मसीह येशु में विश्वास करने पर परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया है, जो हमें दिया था, तब मैं कौन था, जो परमेश्वर के काम में रुकावट उत्पन्न करता?”
18 यह सुनने के बाद इसके उत्तर में वे कुछ भी न कह पाए परन्तु इन शब्दों में परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे, “इसका मतलब तो यह हुआ कि जीवन पाने के लिए परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी पश्चाताप की ओर उभारा है.”
अन्तियोख़ नगर में कलीसिया की नींव
19 वे शिष्य, जो स्तेफ़ानॉस के सताहट के फलस्वरूप शुरुआत में तितर-बितर हो गए थे, फ़ॉयनिके, कुप्रास तथा अन्तियोख़ नगरों में जा पहुँचे थे. ये यहूदियों के अतिरिक्त अन्य किसी को भी सन्देश नहीं सुनाते थे 20 किन्तु कुछ कुप्रास तथा कुरेनेवासी अन्तियोख़ नगरों में आकर यूनानियों को भी मसीह येशु के विषय में सुसमाचार देने लगे. 21 उन पर प्रभु की कृपादृष्टि थी. बड़ी संख्या में लोगों ने विश्वास कर प्रभु को ग्रहण किया.
22 यह समाचार येरूशालेम की कलीसिया में भी पहुँचा. इसलिए उन्होंने बारनबास को अन्तियोख़ नगर भेजा. 23 वहाँ पहुँच कर जब बारनबास ने परमेश्वर के अनुग्रह के प्रमाण देखे तो वह बहुत आनन्दित हुए और उन्होंने उन्हें पूरी लगन के साथ प्रभु में स्थिर बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया. 24 बारनबास भले, पवित्रात्मा से भरे हुए और विश्वास में परिपूर्ण व्यक्ति थे. बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभु के पास लाए गए.
25 इसलिए बारनबास को तारस्यॉस नगर जाकर शाऊल को खोजना सही लगा. 26 शाऊल के मिल जाने पर वह उन्हें लेकर अन्तियोख़ नगर आ गए. वहाँ कलीसिया में एक वर्ष तक रह कर दोनों ने अनेक लोगों को शिक्षा दी. अन्तियोख़ नगर में ही सबसे पहले मसीह येशु के शिष्य मसीही कहलाए.
बारनबास तथा शाऊल द्वारा येरूशालेम का प्रतिनिधित्व
27 इन्ही दिनों में कुछ भविष्यद्वक्ता येरूशालेम से अन्तियोख़ आए. 28 उन्हीं में से अगाबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता ने पवित्रात्मा की प्रेरणा से यह संकेत दिया कि सारी पृथ्वी पर अकाल पड़ने पर है—यह कयसर क्लॉदियॉस के शासनकाल की घटना है. 29 इसलिए शिष्यों ने यहूदिया प्रदेश के मसीह के विश्वासियों के लिए अपनी सामर्थ के अनुसार सहायता देने का निश्चय किया. 30 अपने इस निश्चय के अनुसार उन्होंने दानराशि बारनबास और शाऊल के द्वारा पुरनियों को भेज दी.
पेतरॉस का बन्दी बनाया जाना तथा उनकी अद्भुत छुटकारा
12 उसी समय राजा हेरोदेस ने कलीसिया के कुछ लोगों को सताने के उद्धेश्य से बन्दी बना लिया 2 और तलवार से योहन के भाई याक़ोब की हत्या करवा दी. 3 जब उसने यह देखा कि उसके ऐसा करने से यहूदी प्रसन्न होते हैं, उसने पेतरॉस को भी बन्दी बनाने का निश्चय किया. यह अख़मीरी रोटी के पर्व का अवसर था. 4 पेतरॉस को बन्दी बना कर उसने उन पर चार-चार सैनिकों के चार दलों का पहरा लगा दिया कि फ़सह पर्व समाप्त हो जाने पर वह उन पर मुकद्दमा चलाए.
5 पेतरॉस को कारागार में रखा गया किन्तु कलीसिया उनके लिए एक मन से प्रार्थना कर रही थी.
6 उन पर मुकद्दमा चलाए जाने से एक रात पहले पेतरॉस दो सैनिकों के मध्य बेड़ियों से बँधे सोए हुए थे. 7 प्रभु का एक स्वर्गदूत एकाएक वहाँ प्रकट हुआ और वह कमरा ज्योति से भर गया. स्वर्गदूत ने पेतरॉस को थपथपा कर जगाया और कहा, “जल्दी उठिए!” तत्काल ही पेतरॉस की हथकड़ियाँ गिर पड़ीं.
8 स्वर्गदूत ने पेतरॉस से कहा, “वस्त्र और जूतियाँ पहन लीजिए” पेतरॉस ने ऐसा ही किया. तब स्वर्गदूत ने उन्हें आज्ञा दी, “अब ऊपरी कपड़ा ओढ़ कर मेरे पीछे-पीछे आ जाइए.” 9 पेतरॉस उसके पीछे कारागार से बाहर आ गए किन्तु वह यह समझ नहीं पा रहे थे कि जो कुछ स्वर्गदूत द्वारा किया जा रहा था, वह सच्चाई थी या सिर्फ़ सपना. 10 जब वे पहिले और दूसरे पहरे को पार करके उस लोहे के दरवाज़े पर पहुँचे, जो नगर में खुलता है, वह द्वार अपने आप खुल गया और वे बाहर निकल गए. जब वे गली पार कर चुके तो अचानक स्वर्गदूत उन्हें छोड़ कर चला गया.
11 तब पेतरॉस की सुधबुध लौटी और वह कह उठे, “अब मुझे सच्चाई का अहसास हो रहा है कि प्रभु ने ही अपने स्वर्गदूत को भेजकर मुझे हेरोदेस से और यहूदी लोगों की सारी उम्मीदों से छुड़ा लिया है.”
12 यह जानकर वह योहन अर्थात् मारकास की माता मरियम के घर पहुँचे, जहाँ अनेक शिष्य इकट्ठा होकर प्रार्थना कर रहे थे. 13 उनके खटखटाने पर रोदा नामक दासी द्वार पर आई. 14 पेतरॉस का शब्द पहचान कर, आनन्द में द्वार खोले बिना ही उसने अंदर जाकर बताया कि पेतरॉस बाहर द्वार पर खड़े हैं.
15 वे उससे कहने लगे, “तेरी तो मति मारी गई है!” किन्तु जब वह अपनी बात पर अटल रही तो वे कहने लगे, “वह पेतरॉस का स्वर्गदूत होगा.”
16 उधर पेतरॉस द्वार खटखटाते रहे. आखिरकार जब उन्होंने द्वार खोला, वे पेतरॉस को देखकर हक्का-बक्का रह गए. 17 पेतरॉस ने हाथ से शान्त रहने का संकेत देते हुए उन्हें बताया कि प्रभु ने किस प्रकार उन्हें कारागार से बाहर निकाला. पेतरॉस ने उनसे कहा कि वे याक़ोब और अन्य शिष्यों को इस विषय में बता दें. तब वह स्वयं दूसरी जगह चले गए.
18 अगले दिन सुबह सैनिकों में बड़ी खलबली मच गई कि पेतरॉस का क्या हुआ? 19 हेरोदेस ने उनकी बहुत खोज करवाई और उन्हें कहीं भी न पा कर उसने पहरेदारों की जांच की और उन सबके लिए मृत्युदण्ड का आदेश दे दिया और स्वयं कुछ समय के लिए यहूदिया प्रदेश से कयसरिया नगर चला गया.
सतानेवाले की मृत्यु
20 हेरोदेस त्सोर और त्सीदोनवासियों से बहुत नाराज़ था. ये लोग राजा के घर की देखभाल करने वाले ब्लास्तॉस की सहानुभूति प्राप्त कर एकमत हो कर मेल-मिलाप का प्रस्ताव लेकर राजा के पास आए थे क्योंकि अनाज की पूर्ति के लिए वे राजा के क्षेत्र पर ही निर्भर थे. 21 हेरोदेस ने नियत दिन अपने राजसी वस्त्र धारण कर सिंहासन पर विराजमान हो प्रजा को सम्बोधित करना प्रारम्भ किया. 22 भीड़ चिल्लाती रही, “यह मानव का नहीं, देवता का शब्द है.” 23 उसी क्षण एक स्वर्गदूत ने हेरोदेस पर वार किया क्योंकि उसने परमेश्वर को महिमा नहीं दी थी. उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और उसकी मृत्यु हो गई.
24 प्रभु का वचन बढ़ता और फैलता चला गया.
25 बारनबास और शाऊल येरूशालेम में अपनी सेवा समाप्त कर वहाँ से लौट गए. उन्होंने योहन को, जो मारकास नाम से भी प्रसिद्ध हैं, अपने साथ ले लिया था.
बारनबास तथा पौलॉस की सेवा का उद्देश्य
येरूशालेम महासभा. सेवा कार्य के लिए भेजा जाना
13 अन्तियोख़ नगर की कलीसिया में अनेक भविष्यद्वक्ता और शिक्षक थे: बारनबास, सिमियॉन, जिनका उपनाम निगेर भी था, कुरेनी लुकियॉस, मनाहेन, जिसका पालन-पोषण राज्य के चौथाई भाग के राजा हेरोदेस के साथ हुआ था तथा शाऊल. 2 जब ये लोग प्रभु की आराधना और उपवास कर रहे थे, पवित्रात्मा ने उनसे कहा, “बारनबास तथा शाऊल को उस सेवा के लिए समर्पित करो, जिसके लिए मैंने उनको बुलाया है.” 3 इसलिए जब वे उपवास और प्रार्थना कर चुके, उन्होंने बारनबास तथा शाऊल पर हाथ रखे और उन्हें इस सेवा के लिए भेज दिया.
कुभॉस: एलिमॉस टोनहा
4 पवित्रात्मा द्वारा भेजे गए वे सेल्युकिया नगर गए तथा वहाँ से जलमार्ग से कुप्रास नगर गए. 5 वहाँ से सालामिस नगर पहुँच कर उन्होंने यहूदियों के सभागृह में परमेश्वर के सन्देश का प्रचार किया. सहायक के रूप में योहन भी उनके साथ थे.
6 जब वे सारे द्वीप को घूम कर पाफ़ॉस नगर पहुँचे, जहाँ उनकी भेंट बार-येशु नामक एक यहूदी व्यक्ति से हुई, जो जादूगर तथा झूठा भविष्यद्वक्ता था. 7 वह राज्यपाल सेरगियॉस पौलॉस का सहयोगी था. सेरगियॉस पौलॉस बुद्धिमान व्यक्ति था. उसने बारनबास तथा शाऊल को बुलवा कर उनसे परमेश्वर के वचन को सुनने की अभिलाषा व्यक्त की 8 किन्तु जादूगर एलिमॉस—जिसके नाम का ही अर्थ है जादूगर—उनका विरोध करता रहा. उसका प्रयास था राज्यपाल को परमेश्वर के वचन में विश्वास करने से रोकना, 9 किन्तु शाऊल ने, जिन्हें पौलॉस नाम से भी जाना जाता है, पवित्रात्मा से भरकर उसे एकटक देखते हुए कहा, 10 “ओ सारे छल और कपट से ओत-प्रोत शैतान के कपूत! सारे धर्म के बैरी! क्या तू प्रभु की सच्चाई को भ्रष्ट करने के प्रयासों को नहीं छोड़ेगा? 11 देख ले, तुझ पर प्रभु का प्रहार हुआ है. तू अंधा हो जाएगा और कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी न देख सकेगा.” उसी क्षण उस पर धुन्धलापन और अन्धकार छा गया. वह यहाँ-वहाँ टटोलने लगा कि कोई हाथ पकड़ कर उसकी सहायता करे. 12 इस घटना को देख राज्यपाल ने प्रभु में विश्वास किया. प्रभु की शिक्षाओं ने उसे चकित कर दिया था.
पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ में पौलॉस
13 पौलॉस और उनके साथियों ने पाफ़ॉस नगर से समुद्री यात्रा शुरु की और वे पम्फ़ूलिया प्रदेश के पेरगे नगर में जा पहुँचे. योहन उन्हें वहीं छोड़कर येरूशालेम लौट गए. 14 तब वे पेरगे से होते हुए पिसिदिया प्रदेश के अन्तियोख़ नगर पहुँचे और शब्बाथ पर यहूदी सभागृह में जाकर बैठ गए. 15 जब व्यवस्था तथा भविष्यद्वक्ताओं के ग्रंथों का पढ़ना समाप्त हो चुका, सभागृह के अधिकारियों ने उनसे कहा, “प्रियजन, यदि आप में से किसी के पास लोगों के प्रोत्साहन के लिए कोई वचन है तो कृपा कर वह उसे यहाँ प्रस्तुत करे.”
यहूदियों के सामने पौलॉस द्वारा भाषण
16 इस पर पौलॉस ने हाथ से संकेत करते हुए खड़े होकर कहा. “इस्राएलवासियो तथा परमेश्वर के श्रद्धालुओ, सुनो! 17 इस्राएल के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुना तथा मिस्र देश में उनके घर की अवधि में उन्हें एक फलवन्त राष्ट्र बनाया और प्रभु ही अपने बाहुबल से उन्हें उस देश से बाहर निकाल लाए; 18 इसके बाद जंगल में वह लगभग चालीस वर्ष तक उनके प्रति सहनशील बने रहे 19 और उन्होंने कनान देश की सात जातियों को नाश कर उनकी भूमि अपने लोगों को मीरास में दे दी. 20 इस सारी प्रक्रिया में लगभग चार सौ पचास वर्ष लगे.
“इसके बाद परमेश्वर उनके लिए भविष्यद्वक्ता शमुएल के आने तक न्यायाधीश ठहराते रहे. 21 फिर इस्राएल ने अपने लिए राजा की विनती की. इसलिए परमेश्वर ने उन्हें बिन्यामीन के वंश से कीश का पुत्र शाऊल दे दिया, जो चालीस वर्ष तक उनका राजा रहा. 22 परमेश्वर ने शाऊल को पद से हटा कर उसके स्थान पर दाविद को राजा बनाया जिनके विषय में उन्होंने स्वयं कहा था कि यिशै का पुत्र दाविद मेरे मन के अनुसार व्यक्ति है. वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा.
23 “उन्हीं के वंश से, अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार, परमेश्वर ने इस्राएल के लिए एक उद्धारकर्ता मसीह येशु की उत्पत्ति की. 24 मसीह येशु के आने के पहले योहन ने सारी इस्राएली प्रजा में पश्चाताप के बपतिस्मे का प्रचार किया. 25 अपनी तय की हुई सेवा का कार्य पूरा करते हुए योहन घोषणा करते रहे, ‘क्या है मेरे विषय में आपका विश्वास? मैं वह नहीं हूँ. यह समझ लीजिए: मेरे बाद एक आ रहे हैं. मैं जिनकी जूती का बन्ध खोलने योग्य तक नहीं हूँ.’
26 “अब्राहाम की सन्तान, मेरे प्रियजन तथा आप के बीच, जो परमेश्वर के श्रद्धालु हैं, सुनें कि यही उद्धार का सन्देश हमारे लिए भेजा गया है. 27 येरूशालेमवासियों तथा उनके शासकों ने न तो मसीह येशु को पहचाना और न ही भविष्यद्वक्ताओं की आवाज़ को, जिनका पढ़ना हर एक शब्बाथ पर किया जाता है और जिनकी पूर्ति उन्होंने मसीह को दण्ड देकर की, 28 हालांकि उन्हें मार डालने का उनके सामने कोई भी आधार नहीं था—उन्होंने पिलातॉस से उनके मृत्युदण्ड की माँग की. 29 जब उनके विषय में की गई सारी भविष्यद्वाणियों को वे लोग पूरा कर चुके, उन्हें क्रूस से उतार कर क़ब्र की गुफ़ा में रख दिया गया 30 किन्तु परमेश्वर ने उन्हें मरे हुओं में से दोबारा जीवित कर दिया. 31 अनेक दिन तक वह स्वयं को उनके सामने साक्षात प्रकट करते रहे, जो उनके साथ गलील प्रदेश से येरूशालेम आए हुए थे और जो आज तक इन लोगों के सामने उनके गवाह हैं.
32 “हम आपके सामने हमारे पूर्वजों से की गई प्रतिज्ञा का ईश्वरीय सुसमाचार ला रहे हैं 33 कि परमेश्वर ने हमारी सन्तान के लिए मसीह येशु को मरे हुओं में से जीवित कर अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा कर दिया है—जैसा कि भजन संहिता दो में लिखा है:
“‘तुम मेरे पुत्र हो;
आज मैंने तुम्हें जन्म दिया है.’
34 परमेश्वर ने उन्हें कभी न सड़ने के लिए मरे हुओं में से जीवित किया. यह सच्चाई इन शब्दों में बयान की गई है,
“‘मैं तुम्हें दाविद की पवित्र तथा अटल आशीषें प्रदान करूँगा.’
35 एक अन्य भजन में कहा गया है:
“‘आप अपने पवित्र जन को सड़ने न देंगे.’
36 “दाविद अपने जीवनकाल में परमेश्वर के उद्धेश्य को पूरा करके हमेशा के लिए सो गए और अपने पूर्वजों में मिल गए और उनका शरीर सड़ भी गया. 37 किन्तु वह, जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित किया, सड़ने नहीं पाया.
38 “इसलिए प्रियजन, सही यह है कि आप यह समझ लें कि आपके लिए इन्हीं के द्वारा पाप-क्षमा की घोषणा की जाती है. 39 इन पापों से मुक्त करने में मोशेह की व्यवस्था हमेशा असफल रही है. हर एक, जो विश्वास करता है, वह सभी पापों से मुक्त किया जाता है. 40 इसलिए इस विषय में सावधान रहो कि कहीं भविष्यद्वक्ताओं का यह कथन तुम पर लागू न हो जाए:
41 “‘अरे ओ निन्दा करनेवालों!
देखो, चकित हो और मर मिटो!
क्योंकि मैं तुम्हारे सामने कुछ ऐसा करने पर हूँ
जिस पर तुम कभी विश्वास न करोगे,
हाँ, किसी के द्वारा स्पष्ट करने पर भी नहीं.’”
42 जब पौलॉस और बारनबास यहूदी सभागृह से बाहर निकल रहे थे, लोगों ने उनसे विनती की कि वे आनेवाले शब्बाथ पर भी इसी विषय पर आगे प्रवचन दें. 43 जब सभा समाप्त हुई अनेक यहूदी और यहूदीमत में से आए हुए नए विश्वासी पौलॉस तथा बारनबास के साथ हो लिए. पौलॉस तथा बारनबास ने उनसे परमेश्वर के अनुग्रह में स्थिर रहने की विनती की.
पौलॉस और बारनबास का अन्यजातियों के लिए भाषण
44 अगले शब्बाथ पर लगभग सारा नगर परमेश्वर का वचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा. 45 उस बड़ी भीड़ को देख यहूदी जलन से भर गए तथा पौलॉस द्वारा पेश किए गए विचारों का विरोध करते हुए उनकी घोर निन्दा करने लगे. 46 किन्तु पौलॉस तथा बारनबास ने निडरता से कहा: “यह ज़रूरी था कि परमेश्वर का वचन सबसे पहिले आपके सामने स्पष्ट किया जाता. अब, जबकि आप लोगों ने इसे नकार दिया है और यह करते हुए स्वयं को अनन्त जीवन के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है, हम अपना ध्यान अब अन्यजातियों की ओर केन्द्रित करेंगे, 47 क्योंकि हमारे लिए परमेश्वर की आज्ञा है:
“‘मैंने तुमको अन्यजातियों के लिए एक ज्योति के रूप में चुना है,
कि तुम्हारे द्वारा सारी पृथ्वी पर उद्धार लाया जाए.’”
48 यह सुन कर अन्यजाति आनन्द में प्रभु के वचन की प्रशंसा करने लगे तथा अनन्त जीवन के लिए पहले से ठहराए गए सुननेवालों ने इस पर विश्वास किया.
49 सारे क्षेत्र में प्रभु का वचन-सन्देश फैलता चला गया. 50 किन्तु यहूदियों ने नगर की भली, श्रद्धालु स्त्रियों तथा ऊँचे पद पर बैठे व्यक्तियों को भड़का दिया और पौलॉस और बारनबास के विरुद्ध उपद्रव करवा कर उन्हें अपने क्षेत्र की सीमा से निकाल दिया. 51 पौलॉस और बारनबास उनके प्रति विरोध प्रकट करते हुए अपने पैरों की धूलि झाड़ते हुए इकोनियॉन नगर की ओर चले गए. 52 प्रभु के शिष्य आनन्द और पवित्रात्मा से भरते चले गए.
इकोनियॉन नगर में ईश्वरीय सुसमाचार का भाषण
14 इकोनियॉन नगर में पौलॉस और बारनबास यहूदी सभागृहों में गए. वहाँ उनका प्रवचन इतना प्रभावशाली रहा कि बड़ी संख्या में यहूदियों और यूनानियों ने विश्वास किया. 2 किन्तु जिन यहूदियों ने विश्वास नहीं किया था, उन्होंने अन्यजातियों को भड़का दिया तथा उनके मनों में इनके विरुद्ध ज़हर भर दिया. 3 वहाँ उन्होंने प्रभु पर आश्रित हो, निडरता से सन्देश देते हुए काफ़ी समय बिताया. प्रभु उनके द्वारा किए जा रहे अद्भुत चिह्नों के माध्यम से अपने अनुग्रह के सन्देश को साबित कर रहे थे. 4 वहाँ के नागरिकों में फूट पड़ गई थी. कुछ यहूदियों के पक्ष में थे तो कुछ प्रेरितों के. 5 यह मालूम होने पर कि शासकों के सहयोग से यहूदियों और अन्यजातियों द्वारा उन्हें अपमानित कर उनका पथराव करने की योजना बनाई जा रही है, 6 वे लुकाओनिया, लुस्त्रा तथा दरबे नगरों और उनके उपनगरों की ओर चले गए 7 और वहाँ ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करने लगे.
अपंग को चंगाई
8 लुस्त्रा नगर में एक व्यक्ति था, जो जन्म से अपंग था और कभी चल-फिर ही न सका था. 9 वह पौलॉस का प्रवचन सुन रहा था. पौलॉस उसको ध्यान से देख रहा था और यह पाकर कि उसमें स्वस्थ होने का विश्वास है. 10 पौलॉस ने ऊँचे शब्द में उसे आज्ञा दी, “अपने पैरों पर सीधे खड़े हो जाओ!” उसी क्षण वह व्यक्ति उछल कर खड़ा हो गया और चलने लगा.
11 जब पौलॉस द्वारा किए गए इस काम को लोगों ने देखा वे लुकाओनियाई भाषा में चिल्लाने लगे, “देवता हमारे मध्य मानव रूप में उतर आए हैं.” 12 उन्होंने बारनबास को ज़्यूस नाम से सम्बोधित किया तथा पौलॉस को हरमेस नाम से क्योंकि वह प्रधान प्रचारक थे. 13 नगर के बाहर ज़्यूस का मन्दिर था. ज़्यूस का याजक बैल तथा पुष्पहार लिए हुए नगर फ़ाटक पर आ गया क्योंकि वह भीड़ के साथ बलि चढ़ाना चाह रहा था.
14 यह मालूम होने पर प्रेरित पौलॉस व बारनबास अपने कपड़े फाड़ कर, यह चिल्लाते हुए भीड़ की ओर लपके, 15 “प्रियजन, तुम यह सब क्यों कर रहे हो! हम भी तुम्हारे समान मनुष्य हैं. हम तुम्हारे लिए यह ईश्वरीय सुसमाचार लाए हैं कि तुम इन व्यर्थ की परम्पराओं को त्यागकर जीवित परमेश्वर की ओर मन फिराओ, जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी तथा समुद्र और इनमें रहनेवाले सभी जीवों को बनाया है. 16 हालांकि उन्होंने पिछली सभी पीढ़ियों को उनकी अपनी मान्यताओं के अनुसार व्यवहार करने दिया 17 तौभी उन्होंने स्वयं अपने विषय में गवाह स्पष्ट रखा—वह भलाई करते हुए आकाश से वर्षा तथा ऋतुओं के अनुसार हमें उपज प्रदान करते रहे. वह पर्याप्त भोजन और आनन्द प्रदान करते हुए हमारे मनों को तृप्त करते रहे हैं.” 18 उनके इतनी सफ़ाई देने के बाद भी भीड़ को उनके लिए बलि भेंट चढ़ाने से बड़ी कठिनाई से रोका जा सका.
काम में बाधा
19 तब कुछ यहूदी अन्तियोख़ तथा इकोनियॉन नगरों से वहाँ आ पहुँचे. भीड़ को अपने पक्ष में करके उन्होंने पौलॉस का पथराव किया तथा उन्हें मरा हुआ समझ घसीट कर नगर के बाहर छोड़ आए. 20 किन्तु जब शिष्य उनके आसपास इकट्ठा हुए, वह उठ खड़े हुए और नगर में लौट गए. अगले दिन वह बारनबास के साथ वहाँ से दरबे नगर को चले गए.
21 उन्होंने उस नगर में ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार किया और अनेक शिष्य बनाए. इसके बाद वे लुस्त्रा और इकोनियॉन नगर होते हुए अन्तियोख़ नगर लौट गए. 22 वे शिष्यों को दृढ़ करते और प्रोत्साहित करते हुए यह शिक्षा देते रहे कि उनका परमेश्वर के राज्य में प्रवेश हेतु इस विश्वास में स्थिर रहना तथा अनेक विपत्तियों को सहना ज़रूरी है. 23 पौलॉस और बारनबास हर एक कलीसिया में उपवास और प्रार्थना के साथ प्राचीनों को चुना करते तथा उन्हें उन्हीं प्रभु के हाथों में सौंप देते थे जिन प्रभु में उन्होंने विश्वास किया था. 24 पिसिदिया क्षेत्र में से जाते हुए वे पम्फ़ूलिया नगर में आए. 25 वहाँ से पेरगे नगर में वचन सुनाकर वे अट्टालिया नगर गए.
26 वहाँ से जलमार्ग द्वारा वे अन्तियोख़ नगर पहुँचे, जहाँ से उन्हें परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपकर उस काम के लिए भेजा गया था, जिसे वे अब पूरा कर लौट आए थे. 27 वहाँ पहुँच कर उन्होंने सारी कलीसिया को इकट्ठा किया और सबके सामने उन सभी कामों का वर्णन किया, जो परमेश्वर द्वारा उनके माध्यम से पूरे किए गए थे और यह भी कि किस प्रकार परमेश्वर ने अन्यजातियों के लिए विश्वास का द्वार खोल दिया है. 28 वहाँ वे शिष्यों के बीच लंबे समय तक रहे.
अन्तियोख़ नगर में मतभेद
15 कुछ व्यक्ति यहूदिया प्रदेश से अन्तियोख़ नगर आ कर प्रभु के शिष्यों को यह शिक्षा देने लगे, “मोशेह की व्यवस्था के अनुसार यदि तुम्हारा ख़तना न हो तो तुम्हारा उद्धार असम्भव है.” 2 इस विषय में पौलॉस और बारनबास का उनके साथ गहरा मतभेद हो गया और उनमें उग्र विवाद छिड़ गया. तब एकमत होकर यह निश्चय किया गया कि पौलॉस और बारनबास को कुछ अन्य शिष्यों के साथ इस विषय पर विचार-विमर्श के उद्देश्य से प्रेरितों और पुरनियों के पास येरूशालेम भेज दिया जाए. 3 कलीसिया ने उन्हें विदा किया. तब वे फ़ॉयनिके तथा शोमरोन प्रदेशों से होते हुए आगे बढ़े और वहाँ भी अन्यजातियों द्वारा मसीह को स्वीकार किए जाने का विस्तृत वर्णन करते गए जिससे सभी शिष्यों में अपार हर्ष की लहर दौड़ गई. 4 उनके येरूशालेम पहुँचने पर कलीसिया, प्रेरितों तथा पुरनियों ने उनका स्वागत किया. पौलॉस और बारनबास ने उन्हें उन सभी कामों का विवरण दिया, जो परमेश्वर ने उनके माध्यम से किए थे.
येरूशालेम नगर में मतभेद
5 किन्तु फ़रीसी सम्प्रदाय से निकल कर आए कुछ विश्वासी विरोध में कहने लगे, “आवश्यक है कि अन्यजातियों का ख़तना हो और उन्हें मोशेह की व्यवस्था का पालन करने का निर्देश दिया जाए.”
6 प्रेरित तथा प्राचीन इस विषय पर विचार-विमर्श के उद्देश्य से इकट्ठा हुए. 7 एक लम्बे विचार-विमर्श के बाद पेतरॉस खड़े हुए और उन्होंने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा.
पेतरॉस का भाषण
“प्रियजन, आपको यह मालूम ही है कि कुछ समय पहले परमेश्वर ने यह सही समझा कि अन्यजाति मेरे द्वारा ईश्वरीय सुसमाचार सुनें और विश्वास करें. 8 मनों को जाँचनेवाले परमेश्वर ने ठीक हमारे जैसे उन्हें भी पवित्रात्मा प्रदान करके इसकी गवाही दी. 9 उन्होंने उनके हृदय विश्वास द्वारा शुद्ध करके हमारे और उनके बीच कोई भेद न रहने दिया. 10 इसलिए अब तुम लोग इन शिष्यों की गर्दन पर वह जुआ रख कर परमेश्वर को क्यों परख रहे हो, जिसे न तो हम और न हमारे पूर्वज ही उठा पाए? 11 हमारा विश्वास तो यह है कि प्रभु मसीह येशु के अनुग्रह के द्वारा हमारा उद्धार ठीक वैसे ही हुआ है जैसे उनका.”
12 बारनबास और पौलॉस के भाषण को सभा के सभी सदस्य चुपचाप सुन रहे थे कि परमेश्वर ने किस प्रकार उनके माध्यम से अन्यजातियों के बीच अद्भुत चिह्न दिखाए हैं.
याक़ोब का भाषण
13 उनके भाषण के खत्म होने पर याक़ोब ने सभा को सम्बोधित किया, “प्रियजन, मेरा विचार यह है: 14 शिमोन ने इस बात की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है कि प्रारम्भ में परमेश्वर ने किस प्रकार अन्यजातियों में से अपने लिए प्रजा का निर्माण करने में रुचि प्रकट की है. 15 भविष्यद्वक्ताओं के अभिलेख भी इसका समर्थन करते हैं, जैसा कि लिखा है:
16 “‘इन घटनाओं के बाद मैं लौट आऊँगा
और दाविद के ध्वस्त मण्डप को दोबारा बनाऊँगा.
और खण्डहरों को फिर खड़ा करूँगा,
17 जिससे शेष मानवजाति परमेश्वर को पा सके,
तथा वे सभी अन्यजाति भी,
जिन पर मेरे नाम की छाप लगी है.’
18 यह उन्हीं प्रभु की आवाज़ है, जो पुरातन काल से इन बातों को प्रकट करते आए हैं.”
19 “इसलिए मेरा फैसला यह है, कि हम उन अन्यजातियों के लिए कोई कठिनाई उत्पन्न न करें, जो परमेश्वर की ओर फिर रहे हैं. 20 परन्तु अच्छा यह होगा कि हम उन्हें यह आज्ञा लिख भेजें कि वे मूर्तियों की अशुद्धता से खुद को बचाए रखें, वेश्यागामी तथा गला घोंट कर मारे गए पशुओं के माँस से दूर रहें और लहू का सेवन न करें. 21 याद रहे: यह मोशेह के उसी व्यवस्था के अनुरूप है जिसका वाचन पूर्वकाल से हर एक शब्बाथ पर यहूदी सभागृहों में किया जाता है.”
प्रेरितों का अभिलेख
22 इसलिए सारी कलीसिया के साथ प्रेरितों और पुरनियों को यह सही लगा कि अपने ही बीच से कुछ व्यक्तियों को चुन कर पौलॉस तथा बारनबास के साथ अन्तियोख़ नगर भेज दिया जाए. उन्होंने इसके लिए यहूदाह, जिसे बार-सब्बास नाम से भी जाना जाता है तथा सीलास को चुन लिया. ये उनके बीच प्रधान माने जाते थे. 23 उनके हाथ से भेजा पत्र यह था:
प्रेरितों, पुरनियों तथा भाइयों की ओर से अन्तियोख़,
सीरिया तथा किलिकिया प्रदेश के मसीह के अन्यजाति विश्वासियों को नमस्कार.
24 हमें यह मालूम हुआ है कि हमारे ही मध्य से कुछ बाहरी व्यक्तियों ने अपनी बातों के द्वारा तुम्हारे मनों को विचलित कर दिया है. 25 अतः हमने एकमत से हमारे प्रिय मित्र बारनबास तथा पौलॉस के साथ कुछ व्यक्तियों को तुम्हारे पास भेजना सही समझा. 26 ये वे हैं, जिन्होंने हमारे प्रभु मसीह येशु के लिए अपने प्राणों का जोखिम उठाया है. 27 इसलिए हम यहूदाह और सीलास को तुम्हारे पास भेज रहे हैं कि तुम स्वयं उन्हीं के मुख से इस विषय को सुन सको 28 क्योंकि पवित्रात्मा तथा स्वयं हमें यह सही लगा कि इन आवश्यक बातों के अलावा तुम पर और कोई बोझ न लादा जाए: 29 मूर्तियों को चढ़ाए गए भोजन, लहू, गला घोंट कर मारे गए जीवों के माँस के सेवन से तथा वेश्यागामी से परे रहो. यही तुम्हारे लिए उत्तम है.
आगे शुभ.
30 वहाँ से निकल कर वे अन्तियोख़ नगर पहुँचे और उन्होंने वहाँ कलीसिया को इकट्ठा कर वह पत्र उन्हें सौंप दिया. 31 पत्र के पढ़े जाने पर उसके उत्साह बढ़ानेवाले सन्देश से वे बहुत आनन्दित हुए. 32 यहूदाह तथा सीलास ने, जो स्वयं भविष्यद्वक्ता थे, तत्वपूर्ण बातों के द्वारा शिष्यों को प्रोत्साहित और स्थिर किया. 33 उनके कुछ समय वहाँ ठहरने के बाद उन्होंने उन्हें दोबारा शान्तिपूर्वक उन्हीं के पास भेज दिया, जिन्होंने उन्हें यहाँ भेजा था. 34 किन्तु सीलास को वहीं ठहरे रहना सही लगा. 35 पौलॉस और बारनबास अन्तियोख़ नगर में ही अन्य अनेकों के साथ प्रभु के वचन की शिक्षा देते तथा प्रचार करते रहे.
पौलॉस तथा बारनबास का अलग होना
36 कुछ दिन बाद पौलॉस ने बारनबास से कहा, “आइए, हम ऐसे हर एक नगर में जाएँ जिसमें हमने प्रभु के वचन का प्रचार किया है और वहाँ शिष्यों की आत्मिक स्थिति का जायज़ा लें.” 37 बारनबास की इच्छा थी कि वह योहन को, जिनका उपनाम मारकास भी था, अपने साथ ले चलें 38 किन्तु पौलॉस बलपूर्वक कहते रहे कि उन्हें साथ न लिया जाए क्योंकि वह पम्फ़ूलिया नगर में उनका साथ और काम अधूरा छोड़ चले गए थे. 39 इस विषय को ले कर उनमें ऐसा कठोर विवाद हुआ कि वे एक दूसरे से अलग हो गए. बारनबास मारकास को ले कर कुभॉस नगर चले गए. 40 शिष्यों द्वारा प्रभु के अनुग्रह में सौंपे जा कर पौलॉस ने सीलास को साथ ले यात्रा प्रारम्भ की.
41 वे सीरिया तथा किलिकिया प्रदेशों से होते हुए कलीसियाओं को स्थिर करते आगे बढ़ते गए.
16 वह दरबे और लुस्त्रा नगर भी गए. वहाँ तिमोथियॉस नामक एक शिष्य थे जिनकी माता यहूदी मसीही शिष्या परन्तु पिता यूनानी थे. 2 तिमोथियॉस इकोनियॉन और लुस्त्रा नगरों के शिष्यों में सम्मानित थे. 3 पौलॉस की इच्छा तिमोथियॉस को अपने साथी के रूप में साथ रखने की थी इसलिए पौलॉस ने उनका ख़तना किया क्योंकि वहाँ के यहूदी यह जानते थे कि तिमोथियॉस के पिता यूनानी हैं. 4 वे नगर-नगर यात्रा करते हुए शिष्यों को वे सभी आज्ञा सौंपते जाते थे, जो येरूशालेम में प्रेरितों और पुरनियों द्वारा ठहराई गयी थी. 5 इसलिए कलीसिया प्रतिदिन विश्वास में स्थिर होती गईं तथा उनकी संख्या में प्रतिदिन बढ़ोतरी होती गई.
आसिया प्रदेश में प्रवेश
6 वे फ़्रिजिया तथा गलातिया क्षेत्रों में से होते हुए आगे बढ़ गए. पवित्रात्मा की आज्ञा थी कि वे आसिया क्षेत्र में परमेश्वर के वचन का प्रचार न करें 7 किन्तु मूसिया नगर पहुँचने पर उन्होंने बिथुनिया नगर जाने का विचार किया किन्तु मसीह येशु के आत्मा ने उन्हें इसकी आज्ञा नहीं दी. 8 इसलिए मूसिया नगर से निकल कर वे त्रोऑस नगर पहुँचे. 9 रात में पौलॉस ने एक दर्शन देखा: एक मकेदोनियावासी उनसे दुःखी शब्द में विनती कर रहा था, “मकेदोनिया क्षेत्र में आकर हमारी सहायता कीजिए!” 10 पौलॉस द्वारा इस दर्शन देखते ही हमने तुरन्त यह जानकर कि परमेश्वर का बुलावा है मकेदोनिया क्षेत्र जाने की योजना बनाई कि हम उनके बीच ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करें.
फ़िलिप्पॉय नगर में पौलॉस
11 त्रोऑस नगर से हम सीधे जलमार्ग द्वारा सामोथ्रेसिया नगर पहुँचे और दूसरे दिन नियापोलिस नगर 12 और वहाँ से फ़िलिप्पॉय नगर, जो मकेदोनिया प्रदेश का एक प्रधान नगर तथा रोमी बस्ती है. हम यहाँ कुछ दिन ठहर गए.
13 शब्बाथ पर हम नगर द्वार से निकल कर प्रार्थना के लिए निर्धारित स्थान की खोज में नदी-तट पर चले गए. हम वहाँ इकट्ठी हुई स्त्रियों से वार्तालाप करते हुए बैठ गए. 14 वहाँ थुआतेइरा नगर निवासी लुदिया नामक एक स्त्री थी, जो परमेश्वर की आराधक थी. वह बैंगनी रंग के वस्त्रों की व्यापारी थी. उसने हमारा वार्तालाप सुना और प्रभु ने पौलॉस द्वारा दी जा रही शिक्षा के प्रति उसका हृदय खोल दिया. 15 जब उसने और उसके रिश्तेदारों ने बपतिस्मा ले लिया तब उसने हमको अपने यहाँ आमन्त्रित करते हुए कहा, “यदि आप यह मानते हैं कि मैं प्रभु के प्रति विश्वासयोग्य हूँ, तो आ कर मेरे घर में रहिए.” उसने हमें विनती स्वीकार करने पर विवश कर दिया.
पौलॉस और सीलास बन्दीगृह में
16 एक दिन प्रार्थना स्थल की ओर जाते हुए मार्ग में हमारी भेंट एक युवा दासी से हुई, जिसमें एक ऐसी दुष्टात्मा थी, जिसकी सहायता से वह भविष्य प्रकट कर देती थी. वह अपने स्वामियों की बहुत आय का साधन बन गई थी. 17 यह दासी पौलॉस और हमारे पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुए चलने लगी, “ये लोग परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो तुम पर उद्धार का मार्ग प्रकट कर रहे हैं.” 18 अनेक दिनों तक वह यही करती रही. अन्त में झुंझला कर पौलॉस पीछे मुड़े और उसके अंदर समाई दुष्टात्मा से बोले, “मसीह येशु के नाम में मैं तुझे आज्ञा देता हूँ, निकल जा उसमें से!” तुरन्त ही वह दुष्टात्मा उसे छोड़ कर चली गई.
19 जब उसके स्वामियों को यह मालूम हुआ कि उनकी आय की आशा जाती रही, वे पौलॉस और सीलास को पकड़ कर नगर चौक में प्रधान न्यायाधीशों के सामने ले गए 20 और उनसे कहने लगे, “इन यहूदियों ने नगर में उत्पात मचा रखा है. 21 ये लोग ऐसी प्रथाओं का प्रचार कर रहे हैं जिन्हें स्वीकार करना या पालन करना हम रोमी नागरिकों के लिए बिलकुल ठीक नहीं है.” 22 इस पर सारी भीड़ उनके विरुद्ध हो गई और प्रधान हाकिमों ने उनके वस्त्र फाड़ डाले और उन्हें बेंत लगाने की आज्ञा दी. 23 उन पर अनेक कठोर प्रहारों के बाद उन्हें कारागार में डाल दिया गया और कारागार-शासक को उन्हें कठोर सुरक्षा में रखने का निर्देश दिया. 24 इस आदेश पर कारागार-शासक ने उन्हें भीतरी कक्ष में डालकर उनके पैरों को लकड़ी की बेड़ियों में जकड़ दिया.
पौलॉस और सीलास का अद्भुत रीति से मुक्त होना
25 लगभग आधी रात के समय पौलॉस और सीलास प्रार्थना कर रहे थे तथा परमेश्वर की स्तुति में भजन गा रहे थे. उनके साथी कैदी उनकी सुन रहे थे. 26 अचानक ऐसा बड़ा भूकम्प आया कि कारागार की नींव हिल गई, तुरन्त सभी द्वार खुल गए और सभी बन्दियों की बेड़ियाँ टूट गईं. 27 नींद से जागने पर कारागार-शासक ने सभी द्वार खुले पाए. यह सोच कर कि सारे कैदी भाग चुके हैं, वह तलवार से अपने प्राणों का अन्त करने जा ही रहा था 28 कि पौलॉस ने ऊँचे शब्द में उससे कहा, “स्वयं को कोई हानि न पहुंचाइए, हम सब यहीं हैं!”
29 कारागार-शासक रोशनी का इंतज़ाम करने के लिए आज्ञा देते हुए भीतर दौड़ गया और भय से काँपते हुए पौलॉस और सीलास के चरणों में गिर पड़ा. 30 इसके बाद उन्हें बाहर लाकर उसने उनसे प्रश्न किया, “श्रीमन, मुझे क्या करना चाहिए कि मुझे उद्धार प्राप्त हो?”
31 उन्होंने उत्तर दिया, “प्रभु मसीह येशु में विश्वास कीजिए, आपको उद्धार प्राप्त होगा—आपको तथा आपके परिवार को.” 32 तब उन्होंने कारागार-शासक और उसके सारे परिवार को प्रभु के वचन की शिक्षा दी. 33 कारागार-शासक ने रात में उसी समय उनके घावों को धोया. बिना देर किए उसने और उसके परिवार ने बपतिस्मा लिया. 34 इसके बाद वह उन्हें अपने घर ले आया और उन्हें भोजन कराया. परमेश्वर में सपरिवार विश्वास कर के वे सभी बहुत आनन्दित थे.
35 अगले दिन प्रधान हाकिमों ने अपने अधिकारियों द्वारा यह आज्ञा भेजी, “उन व्यक्तियों को छोड़ दो.” 36 कारागार-शासक ने इस आज्ञा की सूचना पौलॉस को देते हुए कहा, “प्रधान न्यायाधीशों ने आपको छोड़ देने की आज्ञा दी है. इसलिए आप शान्तिपूर्वक यहाँ से विदा हो सकते हैं.”
37 पौलॉस ने उन्हें उत्तर दिया, “उन्होंने हमें बिना किसी मुकद्दमे के सबके सामने पिटवाया, जबकि हम रोमी नागरिक हैं, फिर हमें कारागार में भी डाल दिया और अब वे हमें चुपचाप बाहर भेजना चाह रहे हैं! बिलकुल नहीं! स्वयं उन्हीं को यहाँ आने दीजिए, वे ही हमें यहाँ से बाहर छोड़ देंगे.”
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