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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
याक़ोब 3:13 - 3 योहन 15

वास्तविक ज्ञान

13 कौन है तुम्हारे बीच ज्ञानी और समझदार? वह इसे अपने उत्तम स्वभाव और कामों के द्वारा ज्ञान उत्पन्न करने वाली नम्रता सहित प्रकट करे. 14 यदि तुम्हारा हृदय कड़वी जलन और स्वार्थपूर्ण इच्छाओं से भरा हुआ है तो इसका घमण्ड़ करते हुए झूठ को सच बना कर प्रस्तुत तो मत करो. 15 ऐसा ज्ञान ईश्वरीय नहीं परन्तु सांसारिक, स्वाभाविक और शैतानी है 16 क्योंकि जहाँ जलन तथा स्वार्थी इच्छाओं का ड़ेरा है, वहाँ अव्यवस्था तथा सब प्रकार की दुष्टता होती है.

17 इसके विपरीत ईश्वरीय ज्ञान सबसे पहिले शुद्ध और फिर शान्ति फैलानेवाला, कोमल, विवेकशील, भले काम व दया से भरा हुआ, निष्पक्ष तथा कपट रहित होता है. 18 मेल-मिलाप कराने वाला व्यक्ति शान्ति के बीज बोने के द्वारा धार्मिकता की उपज इकट्ठा करते है.

मसीह के विश्वासियों में एकता का अभाव

तुम्हारे बीच लड़ाई व झगड़े का कारण क्या है? क्या तुम्हारे सुख-विलास ही नहीं, जो तुम्हारे अंगों से लड़ते रहते हैं? तुम इच्छा तो करते हो किन्तु प्राप्त नहीं कर पाते इसलिए हत्या कर देते हो. जलन के कारण तुम लड़ाई व झगड़े करते हो क्योंकि तुम प्राप्त नहीं कर पाते. तुम्हें प्राप्त नहीं होता क्योंकि तुम माँगते नहीं. तुम माँगते हो फिर भी तुम्हें प्राप्त नहीं होता क्योंकि माँगने के पीछे तुम्हारा उद्धेश्य ही बुरी इच्छा से होता है—कि तुम उसे भोग-विलास में उड़ा दो.

अरे विश्वासघातियो! क्या तुम्हें यह मालूम नहीं कि संसार से मित्रता परमेश्वर से शत्रुता है? इसलिए उसने, जो संसार की मित्रता से बंधा हुआ है, अपने आप को परमेश्वर का शत्रु बना लिया है. कहीं तुम यह तो नहीं सोच रहे कि पवित्रशास्त्र का यह कथन अर्थहीन है: वह आत्मा, जिनको उन्होंने हमारे भीतर बसाया है, बड़ी लालसा से हमारे लिए कामना करते हैं? वह और अधिक अनुग्रह देते हैं, इसलिए लिखा है:

परमेश्वर घमण्ड़ियों के विरुद्ध रहते
    और दीनों को अनुग्रह देते हैं.

इसलिए परमेश्वर के आधीन रहो, शैतान का विरोध करो तो वह तुम्हारे सामने से भाग खड़ा होगा. परमेश्वर के पास आओ तो वह तुम्हारे पास आएंगे. पापियो! अपने हाथ स्वच्छ करो. तुम, जो दुचित्ते हो, अपने हृदय शुद्ध करो. आँसू बहाते हुए शोक तथा विलाप करो कि तुम्हारी हँसी रोने में तथा तुम्हारा आनन्द उदासी में बदल जाए. 10 स्वयं को प्रभु के सामने दीन बनाओ तो वह तुमको शिरोमणि करेंगे.

11 प्रियजन, एक-दूसरे की निन्दा मत करो. जो साथी विश्वासी की निन्दा करता फिरता या उस पर दोष लगाता फिरता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है. यदि तुम व्यवस्था का विरोध करते हो, तुम व्यवस्था के पालन करने वाले नहीं, सिर्फ उसके आलोचक बन जाते हो. 12 व्यवस्था देनेवाला और न्यायाध्यक्ष एक ही हैं—वह, जिनमें रक्षा करने का सामर्थ्य है और नाश करने का भी. तुम कौन होते हो जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाते हो?

धनवानों तथा घमण्ड़ियों के लिए चेतावनी

13 अब तुम, सुनो, जो यह कहते हो, “आज या कल हम अमुक नगर को जाएँगे और वहाँ एक वर्ष रहकर धन कमाएंगे”, 14 जबकि सच तो यह है कि तुम्हें तो अपने आनेवाले कल के जीवन के विषय में भी कुछ मालूम नहीं है, तुम तो सिर्फ वह भाप हो, जो क्षण भर के लिए दिखाई देती है और फिर लुप्त हो जाती है. सुनो! 15 तुम्हारा इस प्रकार कहना सही होगा: “यदि प्रभु की इच्छा हो, तो हम जीवित रहेंगे तथा यह या वह काम करेंगे.” 16 परन्तु तुम अपने अहंकार में घमण्ड़ कर रहे हो. यह घमण्ड़ पाप से भरा है. 17 भलाई करना जानते हुए उसको न करना पाप है.

सम्पन्न अत्याचारी

अब तुम, जो धनी हो, सुनो! तुम लोग अपने पास आ रही विपत्तियों पर रोओ और करुण आवाज़ में सहायता की पुकार करो. तुम्हारी सम्पत्ति गल चुकीं तथा तुम्हारे वस्त्रों में कीड़े पड़ गए हैं. तुम्हारे सोने और चांदी के आभूषण के रंग उड़ गए हैं. यही उड़ी रंगत तुम्हारे विरुद्ध गवाह होगी और तुम्हारे शरीर को आग के समान राख कर देगी. यह युग का अन्त है और तुम धन पर धन इकट्ठा कर रहे हो! वे मज़दूर, जिन्होंने तुम्हारे खेत काटे थे, उनका रोका गया वेतन तुम्हारे विरुद्ध पुकार-पुकार कर गवाही दे रहा है. उन मज़दूरों की दोहाई, जिन्होंने तुम्हारी उपज इकट्ठा की, स्वर्गीय सेनाओं के प्रभु के कानों तक पहुँच चुकी है. पृथ्वी पर तुम्हारा जीवन बहुत आरामदायक रहा है तथा यहाँ तुमने भोग-विलास का जीवन जिया है और हृदय की अभिलाषाओं की निरन्तर पूर्ति से तुम ऐसे मोटे-ताज़े हो गए हो, जैसे बलि-पशु. तुमने धर्मी व्यक्ति को तिरस्कार कर उसकी हत्या कर दी, जबकि वह तुम्हारा सामना नहीं कर रहा था.

अन्तिम उपदेश

इसलिए प्रियजन, प्रभु के दोबारा आगमन तक धीरज रखो. एक किसान, जब तक प्रारम्भिक और अन्तिम वृष्टि न हो जाए, अपनी कीमती उपज के लिए कैसे धीरज के साथ प्रतीक्षा करता रहता है! तुम भी धीरज रखो, अपने हृदय को दृढ़ बनाए रखो क्योंकि प्रभु का दूसरा आगमन नज़दीक है. प्रियजन, एक-दूसरे पर दोष न लगाओ कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए. वास्तव में न्यायाध्यक्ष द्वार पर आ पहुँचे हैं.

10 प्रियजन, उन भविष्यद्वक्ताओं को अपना आदर्श समझो, जिन्होंने प्रभु के नाम में बातें करते हुए कष्ट सहे है और धीरज बनाए रहे. 11 वे सब, जो धीरज के साथ सहते हैं, हमारी दृष्टि में प्रशंसनीय हैं. तुमने अय्योब की सहनशीलता के विषय में सुना ही है और इस विषय में प्रभु के उद्धेश्य की पूर्ति से परिचित भी हो कि प्रभु करुणामय और दया के भण्ड़ार हैं.

12 प्रियजन, इन सब से अधिक महत्वपूर्ण है कि तुम सौगन्ध ही न खाओ, न तो स्वर्ग की और न ही पृथ्वी की और न ही कोई अन्य सौगन्ध. इसके विपरीत तुम्हारी “हाँ” का मतलब हाँ हो तथा “न” का न, जिससे तुम दण्ड के भागी न बनो.

विश्वास से भरी विनती

13 यदि तुममें से कोई मुसीबत में है, तो वह प्रार्थना करे; यदि आनन्दित है, तो वह स्तुति गीत गाए. 14 यदि तुम में कोई दुर्बल है, तो वह कलीसिया के पुरनियों को बुलाए और वे प्रभु के नाम में उस पर तेल मलते हुए उसके लिए प्रार्थना करें. 15 विश्वास से भरी विनती के द्वारा रोगी दोबारा स्वस्थ हो जाएगा—प्रभु उसे स्वास्थ्य प्रदान करेंगे. यदि उसने पाप किए हैं, वे भी क्षमा कर दिए जाएँगे. 16 सही है कि तुम सब एक-दूसरे के सामने अपने पाप स्वीकार करो तथा एक दूसरे के लिए प्रार्थना करो, जिससे तुम दोबारा स्वस्थ हो जाओ. धर्मी व्यक्ति की प्रार्थना प्रभावशाली तथा परिणाममूलक होती है. 17 भविष्यद्वक्ता एलिय्याह हमारे ही समान मनुष्य थे. उन्होंने भक्ति के साथ प्रार्थना की कि वर्षा न हो और पृथ्वी पर तीन वर्ष छः महीने तक वर्षा नहीं हुई. 18 तब उन्होंने वर्षा के लिए प्रार्थना की और आकाश से मूसलाधार वृष्टि हुई तथा पृथ्वी से उपज उत्पन्न हुई.

19 मेरे प्रियजन, याद रखो, यदि तुम में से कोई भी सच्चाई से भटक जाए और तुम में से कोई उसे दोबारा वापस ले आए 20 तब वह, जो भटके हुए पापी को फेर लाता है, उसके प्राण को मृत्यु से बचाता और उसके अनेक पापों पर पर्दा डाल देता है.

मसीह येशु के प्रेरित पेतरॉस की ओर से उन सभी को,

जो चुने हुए, प्रवासियों समान पोन्तॉस, गलातिया, कप्पादोकिया, आसिया तथा बिथुनिया प्रदेशों में तितर-बितर होकर निवास कर रहे हैं, तथा पिता परमेश्वर के भविष्य के ज्ञान के अनुसार, पवित्रात्मा के पवित्र करने के द्वारा प्रभु के लिए अलग किए गए हैं कि वे मसीह येशु के आज्ञाकारी हों तथा उनके लहू का छिड़काव लें:

तुम्हें अनुग्रह व शान्ति बहुतायत से प्राप्त हो.

भविष्य की आशा

स्तुति के योग्य हैं हमारे प्रभु मसीह येशु के पिता और परमेश्वर, जिन्होंने अपनी महान कृपा के अनुसार हमें मसीह येशु के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा जीवित आशा में नया जन्म प्रदान किया है कि हम उस मीरास को प्राप्त करें, जो अविनाशी, निर्मल तथा अजर है, जो तुम्हारे लिए, जो विश्वास के माध्यम से परमेश्वर के सामर्थ के द्वारा युग के अन्त में प्रकट होने के लिए ठहराए हुए उद्धार के लिए सुरक्षित रखे गए हो, स्वर्ग में आरक्षित है. इसके प्रति आशा तुम्हारे अतीव आनन्द का आधार है यद्यपि इस समय थोड़े समय के लिए तुम्हें अनेक प्रकार की परीक्षाएं सहना ज़रूरी हो गया है कि मसीह येशु के दोबारा आगमन के अवसर पर तुम्हारे विश्वास के प्रमाण का परिणाम प्रशंसा, गौरव और सम्मान में देखा जा सके. तुम्हारा यह विश्वास नाशमान सोने से कहीं अधिक कीमती है—यद्यपि इसे आग में परखा जाता है. हालांकि तुमने प्रभु को नहीं देखा है फिर भी उनसे प्रेम करते हो; और तुम उन्हें इस समय नहीं देख रहे, फिर भी तुम उनमें विश्वास करते हो और ऐसे आनन्द से, जो वर्णन से बाहर है विभोर हो, जो ईश्वरीय महिमा से भरा है, जिसे तुमने अपने विश्वास के परिणामस्वरूप प्राप्त किया है—तुम्हारी आत्मा का उद्धार.

10 इसी उद्धार के सम्बन्ध में भविष्यद्वक्ताओं ने अपनी भविष्यवाणियों में तुम्हारे आने वाले अनुग्रह की प्राप्ति के विषय में खोज और छानबीन की. 11 उनकी खोज का विषय था उनमें बसा हुआ मसीह के आत्मा द्वारा पहले से बताई गई मसीह की सताहटों तथा उनके बाद उनकी महिमा का संकेत किस व्यक्ति तथा किस काल की ओर था. 12 उन पर यह प्रकट कर दिया गया था कि यह सब उनके जीवनकाल में नहीं परन्तु वर्षों बाद तुम्हारे जीवनकाल में सम्पन्न होगा. अब तुम तक यही ईश्वरीय सुसमाचार उनके द्वारा लाया गया है, जिन्होंने स्वर्ग से भेजे गए पवित्रात्मा द्वारा प्रचार क्षमता प्राप्त की थी. स्वर्गदूत तक इनकी एक झलक पाने के लिए लालायित रहते हैं.

प्रभु के लिए अलग किए जाने की बुलाहट

13 इसलिए मानसिक रूप से कमर कस लो, सचेत रहो और अपनी आशा पूरी तरह उस अनुग्रह पर केन्द्रित करो, जो मसीह येशु के प्रकट होने पर तुम्हें प्रदान किया जाएगा. 14 परमेश्वर की आज्ञाकारी सन्तान होने के कारण उन अभिलाषाओं को तृप्त न करो, तुम पहले अज्ञानतावश जिनके अधीन थे. 15 अपने पवित्र बुलानेवाले के समान तुम स्वयं अपने सारे स्वभाव में पवित्र हो जाओ 16 क्योंकि लिखा है: चाहने योग्य है तुम्हारा पवित्र होना, क्योंकि मैं पवित्र हूँ.

17 यदि तुम उन्हें पिता कहते हो, जो मनुष्यों के कामों के आधार पर बिना पक्षपात के निर्णय करते हैं तो तुम पृथ्वी पर अपने रहने का समय उन्हीं के भय में बिताओ, 18 इस अहसास के साथ कि पूर्वजों से चली आ रही तुम्हारे निकम्मे चाल-चलन से तुम्हारी छुटकारा नाशमान सोने-चांदी के द्वारा नहीं, 19 परन्तु मसीह के बहुमूल्य लहू से हुआ है—निर्दोष और निष्कलंक मेमने के लहू से. 20 यद्यपि वह सृष्टि के पहले से ही चुने हुए थे किन्तु इन अन्तिम दिनों में तुम्हारे लिए प्रकट हुए हैं. 21 तुम, जो प्रभु द्वारा परमेश्वर में विश्वास करते हो, जिन्होंने उन्हें मरे हुओं में से जीवित कर महिमित किया, जिसके परिणामस्वरूप तुम्हारा विश्वास और आशा परमेश्वर में है.

22 इसलिए कि तुमने उस सच्चाई की आज्ञा मानने के द्वारा अपनी आत्मा को निश्छल भाईचारे के लिए पवित्र कर लिया है, अब तुम में आपस में उत्तम हार्दिक प्रेम ही देखा जाए. 23 तुम्हारा नया जन्म नाशमान नहीं परन्तु अनन्त जीवन तत्व अर्थात् परमेश्वर के जीवित और सदा ठहरने वाले वचन के द्वारा हुआ है 24 क्योंकि

सभी मनुष्य घास के समान
    तथा उनकी शोभा जंगली फ़ूलों के समान है;
घास मुरझा जाती तथा फ़ूल झड़ जाता है;
25     परन्तु प्रभु का वचन युगानुयुग बना रहता है

यही है वह वचन, जो तुम्हें सुनाया गया था.

इसलिए सब प्रकार का बैरभाव, सारे छल, कपट, ड़ाह तथा सारी निन्दा को दूर करते हुए वचन के निर्मल दूध के लिए तुम्हारी लालसा नवजात शिशुओं के समान हो कि तुम उसके द्वारा उद्धार पाने के लिए बढ़ते जाओ अब तुम ने यह चखकर जान लिया है कि प्रभु कृपानिधान हैं.

नई याजकता

अब तुम उनके पास आए हो, जो जीवित पत्थर हैं, जो मनुष्यों द्वारा त्यागा हुआ किन्तु परमेश्वर के लिए बहुमूल्य और प्रतिष्ठित हैं. तुम भी जीवित पत्थरों के समान पवित्र पौरोहित्य के लिए एक आत्मिक भवन बनते जा रहे हो कि मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर को भानेवाली आत्मिक बलि भेंट करो. पवित्रशास्त्र का लेख है:

“देखो, मैं त्सियोन में एक उत्तम पत्थर; एक बहुमूल्य कोने के पत्थर की स्थापना कर रहा हूँ.
वह, जो उनमें विश्वास करता है,
    कभी भी लज्जित न होगा.”

इसलिए तुम्हारे लिए, जो विश्वासी हो, वह बहुमूल्य हैं; किन्तु अविश्वासियों के लिए:

वही पत्थर, जो राजमिस्त्रियों द्वारा नकार दिया गया था,
    कोने का सिरा बन गया.

तथा

वह पत्थर जिससे ठोकर लगती है,
    वह चट्टान,
    जो उनके पतन का कारण है.

वे लड़खड़ाते इसलिए हैं कि वे वचन को नहीं मानते हैं और यही दण्ड उनके लिये परमेश्वर द्वारा ठहराया गया है.

किन्तु तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजक, पवित्र राष्ट्र तथा परमेश्वर की अपनी प्रजा हो कि तुम उनकी सर्वश्रेष्ठता की घोषणा कर सको, जिन्होंने अन्धकार में से तुम्हारा बुलावा अपनी अद्भुत ज्योति में किया है. 10 एक समय था जब तुम प्रजा ही न थे, किन्तु अब परमेश्वर की प्रजा हो; तुम कृपा से वंचित थे परन्तु अब तुम उनके कृपापात्र हो गए हो.

विनम्रता व समर्पण निर्देश: अन्यजातियों के प्रति

11 प्रियजन, मैं तुम्हारे परदेशी और यात्री होने के कारण तुमसे विनती करता हूँ कि तुम शारीरिक अभिलाषाओं से बचे रहो, जो आत्मा के विरुद्ध युद्ध करते हैं. 12 अन्यजातियों में अपना चाल-चलन भला रखो, जिससे कि जिस विषय में वे तुम्हें कुकर्मी मानते हुए तुम्हारी निन्दा करते हैं, तुम्हारे भले कामों को देख कर उस आगमन दिवस पर परमेश्वर की वन्दना करें.

13 प्रभु के लिए मनुष्य द्वारा चुने हुए हर एक शासक के अधीन रहो: चाहे राजा के, जो सर्वोच्च अधिकारी है 14 या राज्यपालों के, जो कुकर्मियों को दण्ड देने परन्तु सुकर्मियों की सराहना के लिए चुने गए हैं, 15 क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यही है कि तुम अपने सच्चे चरित्र के द्वारा उन मूर्खों का मुख बन्द करो, जो बेबुनियादी बातें करते रहते हैं. 16 तुम्हारा स्वभाव स्वतन्त्र व्यक्तियों के समान तो हो किन्तु तुम अपनी स्वतन्त्रता का प्रयोग बुराई पर पर्दा डालने के लिए नहीं परन्तु परमेश्वर के सेवकों के रूप में ही करो. 17 सभी का सम्मान करो, साथी विश्वासियों के समुदाय से प्रेम करो; परमेश्वर के प्रति श्रद्धाभाव रखो और राजा का सम्मान करो.

18 सेवको, पूरे आदर भाव में अपने स्वामियों के अधीन रहो; भले और हितैषी स्वामियों के ही नहीं परन्तु बुरे स्वामियों के भी. 19 यदि कोई परमेश्वर के प्रति विवेकशीलता के कारण क्लेश भोगता है और अन्यायपूर्ण रीति से सताया जाता है, वह प्रशंसनीय है. 20 भला इसमें प्रशंसनीय क्या है कि तुमने अपराध किया, उसके लिए सताए गए और उसे धीरज के साथ सहते रहे? परन्तु यदि तुमने वह किया, जो उचित है और उसके लिए धीरज के साथ दुःख सहे तो तुम परमेश्वर के कृपापात्र हो. 21 इसी के लिए तुम बुलाए गए हो क्योंकि मसीह ने भी तुम्हारे लिए दुःख सहे और एक आदर्श छोड़ गए कि तुम उनके पद-चिह्नों पर चलो.

22 “न उन्होंने कोई पाप किया और न उनके मुख से
    छल का कोई शब्द निकला”

23 जब उनकी उल्लाहना की जा रही थी, उन्होंने इसके उत्तर में उल्लाहना नहीं की; दुःख सहते हुए भी, उन्होंने धमकी नहीं दी; परन्तु स्वयं को परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया, जो धार्मिकता से न्याय करते हैं. 24 मसीह ने काठ पर स्वयं अपने शरीर में हमारे पाप उठा लिए कि हम पाप के लिए मरकर तथा धार्मिकता के लिए जीवित हो जाएँ. उनके घावों के द्वारा तुम्हारी चंगाई हुई है. 25 तुम लगातार भेड़ों के समान भटक रहे थे किन्तु अब अपने चरवाहे व अपनी आत्मा के रखवाले के पास लौट आए हो.

पत्नियो, अपने-अपने पति के अधीन रहो, जिससे कि यदि उनमें से कोई परमेश्वर के वचन के प्रति आज्ञा न माननेवाले हों तो वे तुम्हारे कुछ कहे बिना ही अपनी-अपनी पत्नियों के स्वभाव के द्वारा विश्वास में शामिल किए जा सकें, क्योंकि वे तुम्हारे पवित्र तथा अच्छे स्वभाव को देखते रहते हैं. तुम्हारा सौन्दर्य सिर्फ दिखावटी न हो, जैसे बाल संवारना, सोने के गहने व वस्त्रों से सजना; परन्तु तुम्हारा भीतरी व्यक्तित्व नम्रता व मन की दीनता जैसे अविनाशी गुणों से सजा हुआ हो, जो परमेश्वर की दृष्टि में बहुमूल्य हैं. पूर्वकाल में पवित्र स्त्रियाँ, जिनकी भक्ति परमेश्वर में थी, अपने पति के अधीन रहते हुए इसी रीति से श्रृंगार करती थीं. साराह अब्राहाम को स्वामी सम्बोधित करते हुए उनकी आज्ञाकारी रहीं. यदि तुम निड़र होकर वही करती हो, जो उचित है, तो तुम उनकी सन्तान हो गई हो.

तुम, जो पति हो, इसी प्रकार अपनी-अपनी पत्नी के साथ सम्वेदनशील होकर रहो क्योंकि वह नारी है—निर्बल पात्र. जीवन के अनुग्रह के संगी वारिस के रूप में उसे सम्मान दो कि किसी रीति से तुम्हारी प्रार्थनाएँ रुक न जाएं.

भाईचारे के प्रति

अन्ततः:, तुम सब हृदय में मैत्री भाव बनाए रखो; सहानुभूति रखो; आपस में प्रेम रखो, करुणामय और नम्र बनो; बुराई का बदला बुराई से तथा निन्दा का उत्तर निन्दा से न दो; परन्तु इसके विपरीत, उन्हें आशीष ही दो क्योंकि इसी के लिए तुम बुलाए गए हो कि तुम्हें मीरास में आशीष प्राप्त हो, 10 क्योंकि लिखा है:

“वह, जो जीवन से प्रेम करना और भले दिन देखना चाहे,
    अपनी जीभ को बुराई से,
    अपने होठों को छल की बातों से बचाए रखे;
11 तथा बुराई से अलग होकर
    भलाई करे; वह शान्ति को खोजे और उसका पालन करे.
12 क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि धर्मियों पर
    तथा उनके कान उनकी विनती पर लगे रहते हैं
परन्तु वह बुराई करनेवालों से दूर रहते हैं.”

13 यदि तुम में भलाई की धुन है तो तुम्हें हानि कौन पहुंचाएगा? 14 परन्तु यदि तुम वास्तव में धार्मिकता के कारण कष्ट सहते हो, तो तुम आशीषित हो. उनकी धमकियों से न तो डरो और न घबराओ. 15 मसीह को अपने हृदय में प्रभु के रूप में बसा लो. तुम्हारे अन्दर बसी हुई आशा के प्रति जिज्ञासु हर एक व्यक्ति को उत्तर देने के लिए हमेशा तैयार रहो 16 किन्तु विनम्रता और सम्मान के साथ. अपना विवेक शुद्ध रखो कि जिन विषयों में वे, जो मसीह में तुम्हारे उत्तम स्वभाव की निन्दा करते हैं, लज्जित हों. 17 भलाई के कामों के लिए दुःख सहना अच्छा है—यदि यही परमेश्वर की इच्छा है—इसकी बजाय कि बुराई के लिए दुःख सहा जाए.

18 मसीह ने भी पापों के लिए एक ही बार प्राणों को दे दिया—एक धर्मी ने सभी अधर्मियों के लिए—कि वह तुम्हें परमेश्वर तक ले जाएँ. उनकी शारीरिक मृत्यु तो हुई किन्तु परमेश्वर की आत्मा के द्वारा वह जीवित किए गए. 19 उन्होंने आत्मा ही में जाकर कैदी आत्माओं के सामने प्रचार किया. 20 ये उस युग की आज्ञा न मानने वाली आत्माएँ थीं, जब नोहा द्वारा जलयान निर्माण के समय परमेश्वर धीरज के साथ प्रतीक्षा करते रहे थे. उस जलयान में केवल कुछ ही व्यक्ति—कुल आठ—प्रलयकारी जल से सुरक्षित रखे गए थे. 21 उसके अनुसार जलयान में उनका प्रवेश बपतिस्मा का दृष्टान्त है, जो अब तुम्हें भी सुरक्षित रखता है. बपतिस्मा का अर्थ शरीर की मलिनता से स्वच्छ करना नहीं परन्तु मसीह येशु के पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर के प्रति शुद्ध विवेक से प्रतिज्ञा है. 22 मसीह येशु स्वर्ग में जाकर परमेश्वर की दायीं ओर बैठ गए और सारे स्वर्गदूतों, अधिकारियों तथा शक्तियों को उनके अधीन कर दिया गया.

इसलिए कि मसीह ने शरीर में दुःख सहा, तुम स्वयं भी वैसी ही मनसा धारण कर लो, क्योंकि जिस किसी ने शरीर में दुःख सहा है, उसने पाप को त्याग दिया है. इसलिए अब से तुम्हारा शेष शारीरिक जीवन मानवीय लालसाओं को पूरा करने में नहीं परन्तु परमेश्वर की इच्छा के नियन्त्रण में व्यतीत हो. काफ़ी था वह समय, जो तुम अन्यजातियों के समान इन लालसाओं को पूरा करने में बिता चुके: कामुकता, वासना, मद्यव्यसन, मद्यपान उत्सव, रंगरेलियाँ तथा घृणित मूर्तिपूजन. अब वे अचम्भा करते हैं कि तुम उसी व्यभिचारिता की अधिकता में उनका साथ नहीं दे रहे इसलिए अब वे तुम्हारी बुराई कर रहे हैं. अपने कामों का लेखा वे उन्हें देंगे, जो जीवितों और मरे हुओं के न्याय के लिए तैयार हैं. इसी उद्धेश्य से ईश्वरीय सुसमाचार उन्हें भी सुनाया जा चुका है, जो अब मरे हुए हैं कि वे मनुष्यों के न्याय के अनुसार शरीर में तो दण्डित किए जाएँ किन्तु अपनी आत्मा में परमेश्वर की इच्छानुसार जीवित रह सकें.

अन्य निर्देश

संसार का अन्त पास है इसलिए तुम प्रार्थना के लिए संयम और सचेत भाव धारण करो. सबसे उत्तम तो यह है कि आपस में उत्तम प्रेम रखो क्योंकि प्रेम अनगिनत पापों पर पर्दा डाल देता है. बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे का अतिथि-सत्कार करो. 10 हर एक ने परमेश्वर द्वारा विशेष क्षमता प्राप्त की है इसलिए वह परमेश्वर के असीम अनुग्रह के उत्तम भण्ड़ारी के रूप में एक दूसरे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए उसका प्रयोग करे. 11 यदि कोई प्रवचन करे, तो इस भाव में, मानो वह स्वयं परमेश्वर का वचन हो; यदि कोई सेवा करे, तो ऐसी सामर्थ से, जैसा परमेश्वर प्रदान करते हैं कि सभी कामों में मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद हो, जिनका साम्राज्य और महिमा सदा-सर्वदा है. आमेन.

12 प्रियो, उस अग्नि रूपी परीक्षा से चकित न हो, जो तुम्हें परखने के उद्धेश्य से तुम पर आएगी, मानो कुछ अनोखी घटना घट रही है, 13 परन्तु जब तुम मसीह के दुःखों में सहभागी होते हो, आनन्दित होते रहो कि मसीह येशु की महिमा के प्रकट होने पर तुम्हारा आनन्द उत्तम विजय आनन्द हो जाए. 14 यदि मसीह के कारण तुम्हारी निन्दा की जाती है तो तुम आशीषित हो क्योंकि तुम पर परमेश्वर की महिमा का आत्मा छिपा है. 15 तुममें से कोई भी किसी भी रीति से हत्यारे, चोर, दुराचारी या हस्तक्षेपी के रूप में यातना न भोगे; 16 परन्तु यदि कोई विश्वासी होने के कारण दुःख भोगे, वह इसे लज्जा की बात न समझे परन्तु मसीह की महिमा के कारण परमेश्वर की स्तुति करे. 17 परमेश्वर के न्याय के प्रारम्भ होने का समय आ गया है, जो परमेश्वर की सन्तान से प्रारम्भ होगा और यदि यह सबसे पहिले हमसे प्रारम्भ होता है तो उनका अन्त क्या होगा, जो परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार को नहीं मानते हैं?

18 “यदि धर्मी का ही उद्धार कठिन होता है
    तो भक्तिहीन व पापी का क्या होगा?”

19 इसलिए वे भी, जो परमेश्वर की इच्छानुसार दुःख सहते हैं, अपनी आत्मा विश्वासयोग्य सृजनहार को सौंप दें, और भले काम करते रहें.

प्राचीन

इसलिए मैं, एक सह-प्राचीन होकर, जो मसीह येशु के दुःखों का प्रत्यक्ष गवाह तथा उस महिमा का सहभागी हूँ, जो भविष्य में प्रकट होने पर है, तुम्हारे पुरनियों से विनती कर रहा हूँ कि वे परमेश्वर की इच्छा में परमेश्वर के झुण्ड़ की देखरेख करें—दबाव में नहीं परन्तु अपनी इच्छा के अनुसार; अनुचित लाभ की दृष्टि से नहीं परन्तु शुद्ध सेवाभाव में, अपने झुण्ड़ पर प्रभुता दिखाकर नहीं परन्तु उनके लिए एक आदर्श बन कर; क्योंकि प्रधान चरवाहे के प्रकट होने पर तुम महिमा का अविनाशी मुकुट प्राप्त करोगे.

विनीत भावना

इसी प्रकार युवाओ, तुम प्राचीनों के अधीन रहो तथा तुम सभी एकदूसरे के प्रति दीनता की भावना धारण करो क्योंकि

“परमेश्वर घमण्ड़ियों का विरोध करते हैं
    परन्तु दीनों के पक्ष में रहते हैं.”

इसलिए परमेश्वर के सामर्थी हाथों के नीचे स्वयं को दीन बनाए रखो कि वह तुम्हें सही समय पर बढ़ाएं. अपनी सारी चिन्ता का बोझ परमेश्वर पर डाल दो क्योंकि वह तुम्हारा ध्यान रखते हैं.

धीरज रखो, सावधान रहो. तुम्हारा विरोधी शैतान गरजते हुए सिंह जैसे इस खोज में फिरता रहता है कि किसको फाड़ खाए. विश्वास में स्थिर रहकर उसका सामना करो क्योंकि तुम जानते हो कि इस संसार में साथी विश्वासी इसी प्रकार दुःख भोग रहे हैं.

10 जब तुम थोड़े समय के लिए दुःख भोग चुके होगे तब सारे अनुग्रह के परमेश्वर, जिन्होंने तुम्हें मसीह में अपनी अनन्त काल की महिमा में आमन्त्रित किया है, स्वयं तुम्हें सिद्ध, स्थिर, मजबूत तथा प्रतिष्ठित करेंगे. 11 उनका साम्राज्य सदा-सर्वदा हो, आमेन.

समापन सन्देश तथा आशीर्वचन

12 सिलवानॉस की सहायता से, जिसे मैं एक विश्वासयोग्य भाई मानता हूँ, मैंने तुम्हें प्रोत्साहित तथा आश्वस्त करते हुए संक्षेप में लिखा है कि यही परमेश्वर का वास्तविक अनुग्रह है. तुम इसी में स्थिर रहो. 13 तुम्हें उसकी शुभकामनाएँ, जो बाबेल में है, जिसे तुम्हारे ही साथ चुन कर अलग किया गया है और उसी प्रकार मेरे पुत्र मारकास की भी. 14 प्रेम के चुम्बन के द्वारा एकदूसरे को नमस्कार करो.

तुम सभी को, जो मसीह में हैं, शान्ति!

मसीह येशु के दास तथा प्रेरित शिमोन पेतरॉस की ओर से उन्हें,

जिन्होंने हमारे परमेश्वर तथा उद्धारकर्ता मसीह येशु की धार्मिकता के द्वारा हमारे समान बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है:

तुम्हें हमारे परमेश्वर तथा प्रभु मसीह येशु के सम्पूर्ण ज्ञान में अनुग्रह तथा शान्ति बहुतायत में प्राप्त हो.

मसीही जीवनशैली के लिए प्रोत्साहन

जिन्होंने हमारी बुलाहट स्वयं अपने प्रताप और परम उत्तमता के द्वारा की है. उनके ईश्वरीय सामर्थ ने उनके सत्य ज्ञान में हमें जीवन और भक्ति से संबंधित सभी कुछ दे दिया है. क्योंकि इन्हीं के द्वारा उन्होंने हमें अपनी विशाल और बहुमूल्य प्रतिज्ञाएँ प्रदान की हैं कि तुम संसार में बसी हुई कामासक्ति से[a] प्रेरित भ्रष्टाचार से मुक्त हो ईश्वरीय स्वभाव में सहभागी हो जाओ.

इसीलिए तुम हर सम्भव कोशिश करते हुए अपने विश्वास में नैतिक सदगुण, नैतिक सदगुण में ज्ञान, अपने ज्ञान में आत्मसंयम, आत्मसंयम में धीरज, धीरज में भक्ति, भक्ति में भाईचारा तथा भाईचारे में निस्स्वार्थ प्रेम में बढ़ते जाओ. यदि तुम में ये गुण मौजूद हैं और यदि तुम में इनका विकास हो रहा है तब इनके कारण तुम हमारे प्रभु मसीह येशु के सम्पूर्ण ज्ञान में न तो निकम्मे होगे और न ही निष्फल; जिस व्यक्ति में ये गुण मौजूद नहीं हैं, वह अंधा है या धुंधला देखता है क्योंकि वह अपने पिछले पापों से शुद्ध होने को भुला चुका है.

10 इसलिए, प्रियजन, अपनी बुलाहट तथा चुन लिए जाने को साबित करने के लिए भली-भांति प्रयास करते रहो. यदि तुम ऐसा करते रहोगे तो कभी भी मार्ग से न भटकोगे. 11 इस प्रकार हमारे प्रभु तथा उद्धारकर्ता मसीह येशु के अनन्त काल के राज्य में तुम्हारे प्रवेश पर तुम्हारा भव्य स्वागत होगा.

प्रेरितों की गवाही

12 हालांकि तुम इन विषयों से अच्छी तरह से परिचित हो और उस सच्चाई में बने रहते हो तौभी मैं तुम्हें इन बातों की याद दिलाने के लिए हमेशा उत्सुक रहूँगा. 13 जब तक मैं इस शरीर-रूपी ड़ेरे में हूँ, तुम्हें याद दिलाते हुए सावधान रखना सही समझता हूँ. 14 मैं यह जानता हूँ कि मेरे देह छोड़ने का समय बहुत नज़दीक है. परमेश्वर करें कि ठीक वैसा ही हो जैसा हमारे प्रभु मसीह येशु ने मुझ पर प्रकाशित किया है. 15 मैं हर संभव कोशिश करूँगा कि मेरे जाने के बाद भी तुम इन बातों को याद रख सको.

16 जब हमने तुम पर हमारे प्रभु मसीह येशु की सामर्थ और दूसरे आगमन के सत्य प्रकाशित किए, हमने कोई चतुराई से गढ़ी गई कहानियों का सहारा नहीं लिया था—हम स्वयं उनके प्रताप के प्रत्यक्षदर्शी थे. 17 जब मसीह येशु ने पिता परमेश्वर से आदर और महिमा प्राप्त की, प्रतापमय महिमा ने उन्हें सम्बोधित करते हुए यह पुकारा, “यह मेरा प्रिय पुत्र है—मेरा अत्यन्त प्रिय—जिससे मैं प्रसन्न हूँ.” 18 उनके साथ जब हम पवित्र पर्वत पर थे, स्वर्ग से उद्भूत इस शब्द को हमने स्वयं सुना.

भविष्यवाणी की महानता

19 इसलिए भविष्यद्वक्ताओं का वचन और अधिक विश्वसनीय हो गया है. उस पर तुम्हारा ध्यान केन्द्रित करना ठीक वैसे ही भला है जैसे जलते हुए दीपक पर ध्यान केन्द्रित करना—जब तक पौ नहीं फटती और तुम्हारे हृदयों में भोर का तारा उदित नहीं होता. 20 किन्तु सबसे पहिले यह समझ लो कि पवित्रशास्त्र की कोई भी भविष्यवाणी स्वयं भविष्यद्वक्ताओं का अपना विचार नहीं है, 21 क्योंकि कोई भी भविष्यवाणी मनुष्य की इच्छा के आदेश से मुँह से नहीं निकलती, परन्तु भविष्यद्वक्ता पवित्रात्मा से उत्तेजित किए जा कर परमेश्वर की ओर से घोषणा किया करते थे.

झूठे शिक्षक

झूठे भविष्यद्वक्ता इस्राएल राष्ट्र में भी उठे थे, ठीक इसी प्रकार तुम्हारे बीच भी झूठे शिक्षक उठेंगे. वे उन स्वामी को, जिन्होंने उन्हें मोल लिया है, अस्वीकार करते हुए गुप्त रूप से विनाशकारी पाखण्ड़ों का उद्घाटन करेंगे. इनके द्वारा वे स्वयं अपने ऊपर शीघ्र, अचानक विनाश ले आएंगे. अनेक लोग उनके अनुसार लुचपन के स्वभाव का अनुसरण करेंगे. उनके कारण सच का मार्ग निन्दित हो जाएगा. वे लालच के कारण तुम्हें अपनी झूठी गढ़ी हुई बातों में फँसा कर तुमसे अनुचित लाभ उठाएंगे. उनके लिए पहले से तय किया न्याय-दण्ड न तो निष्क्रिय हुआ है और न ही उनका विनाश सोया हुआ है.

जब परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को भी क्षमा नहीं किया, जिन्होंने पाप किया था परन्तु उन्हें न्याय के लिए पाताल के अन्धेरे गड्ढों में धकेल रखा है; जब उन्होंने प्राचीन संसार को भी नहीं छोड़ा परन्तु पानी की बाढ़ द्वारा अधर्मियों के संसार का नाश किया—धार्मिकता के प्रचारक नोहा तथा सात अन्य के अतिरिक्त; यदि उन्होंने सोदोम और अमोराह नगरों को भस्म कर विनाशकारी दण्ड दिया कि वे आनेवाले कुकर्मियों के लिए उदाहरण बन जाएँ; यदि परमेश्वर ने अधर्मियों के अशुद्ध चाल-चलन से बहुत दुःखी धर्मी लोत का उद्धार किया, जो उन लोगों के बीच निवास करते हुए, उनका अधर्म का स्वभाव देख व सुन दिन-प्रतिदिन अपनी धर्मी अन्तरात्मा में तीव्र यातना सहते थे, तो यह स्पष्ट है कि परमेश्वर यह जानते हैं कि धर्मियों को किस प्रकार परीक्षा से निकाला जाए तथा यह भी कि किस प्रकार अधर्मियों को न्याय के दिन पर दण्डित किए जाने के लिए संभाल कर रखा जाए, 10 विशेष रूप से उन्हें, जो कामुकता की अशुद्ध अभिलाषाओं में लीन रहते तथा प्रभुता को तुच्छ समझते हैं.

ये ढ़ीठ तथा घमण्ड़ी व्यक्ति तेजोमय स्वर्गीय प्राणियों तक की निन्दा करने का दुस्साहस कर बैठते हैं, 11 जबकि स्वर्गदूत तक, जो इनसे कहीं अधिक शक्तिशाली और समर्थ हैं, प्रभु के सामने उन पर भला-बुरा कहकर दोष नहीं लगाते. 12 ये व्यक्ति उन निर्बुद्धि पशुओं के समान हैं, जिनका जन्म ही ऐसे प्राणियों के रूप में हुआ है कि इन्हें पकड़ कर इनका वध किया जाए. ये उन विषयों की उल्लाहना करते हैं, जिनका इन्हें कोई ज्ञान नहीं. ये भी इन्हीं पशुओं के समान नाश हो जाएँगे.

13 इन्हें बुरे कामों का बुरा फल मिलेगा. दिन में भोग-विलास इनके लिए आनन्द का साधन है. ये वे घोर कलंक हैं, जो तुम्हारे प्रेम-भोजों में घुसकर अपने छलावे का आनन्द लेते हैं. 14 इनकी आँखें व्यभिचार से भरी हुई हैं और ये पाप करने से नहीं चूकते. ये चंचल व्यक्तियों को लुभाते हैं, इनके हृदय में लालच भरा है, ये शापित सन्तान हैं. 15 बिओर के पुत्र बालाम के समान, जिसने अधर्म से कमाए हुए धन का लालच किया, ये भी सच्चाई का मार्ग को छोड़कर भटक गए. 16 उसे अपने अपराधों के लिए फटकार भी पड़ी—एक गूँगे गधे ने मनुष्य के शब्द में बातें कर उस भविष्यद्वक्ता के बावलेपन को रोका.

17 ये सूखे कुएँ तथा आँधी द्वारा उड़ाई धुन्ध हैं, जिनके लिए घना अन्धेरा ठहराया गया है. 18 ये घमण्ड़ भरी व्यर्थ की बातों से उन लोगों को कामुकता की शारीरिक अभिलाषाओं में लुभाते हैं, जो मार्ग से भटके लोगों में से बाल-बाल बच कर निकल आए हैं. 19 ये उनसे स्वतन्त्रता की प्रतिज्ञा तो करते हैं, जबकि स्वयं विनाश के दास हैं. मनुष्य उसी का दास बन जाता है, जिससे वह हार जाता है. 20 यदि वे मसीह येशु हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता के सारे ज्ञान के द्वारा संसार की मलिनता से छूटकर निकलने के बाद दोबारा उसी में फँसकर कर उसी के अधीन हो गए हैं, तो यह स्पष्ट है कि उनकी वर्तमान स्थिति पिछली स्थिति से बदतर हो चुकी है. 21 उत्तम तो यही होता कि उन्हें धार्मिकता के मार्ग का अहसास ही न हुआ होता बजाय इसके कि वह उसे जानने के बाद जो पवित्र आज्ञा उन्हें सौंपी गई थी उस से मुँह मोड़ते. 22 उनका स्वभाव इस कहावत को सच साबित करता है, “कुत्ता अपनी ही उल्टी की ओर लौटता है,” तथा “नहाई हुई सूअरिया कीचड़ में लोटने लौट जाती है.”

पत्र का उद्देश्य

प्रियजन, मेरी ओर से यह तुम्हें दूसरा पत्र है. इन दोनों पत्रों के द्वारा मैं तुम्हें दोबारा याद दिलाते हुए तुम्हारे निर्मल मन को छलकाना चाहता हूँ: यह तुम्हारे लिए ज़रूरी है कि तुम पवित्र भविष्यद्वक्ताओं द्वारा पहले से कही बातों तथा प्रेरितों के माध्यम से दिए गए हमारे प्रभु व उद्धारकर्ता के आदेशों को याद करो.

सबसे पहिले, तुम्हारे लिए यह समझ लेना ज़रूरी है कि अन्तिम दिनों में अपनी ही वासनाओं द्वारा नियन्त्रित ठट्ठा करनेवालों का आगमन होगा, जो ठट्ठा करते हुए यह कहेंगे: “क्या हुआ प्रभु के दूसरे आगमन की प्रतिज्ञा का? पूर्वजों की मृत्यु से अब तक सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा सृष्टि के प्रारम्भ से था.” जब वे जानबूझकर यह भूल जाते हैं कि प्राचीन काल में परमेश्वर के शब्द मात्र द्वारा आकाशमण्डल अस्तित्व में आया तथा शब्द ही के द्वारा जल में से, जल के द्वारा ही पृथ्वी की रचना हुई. यह उनके ठट्ठे का ही परिणाम था कि उस समय का संसार जल की बाढ़ के द्वारा नाश किया गया. इसी शब्द के द्वारा वर्तमान आकाशमण्डल तथा पृथ्वी अग्नि के लिए रखे गए तथा न्याय के दिन पर अधर्मियों के नाश के लिए सुरक्षित रखे जा रहे है.

किन्तु प्रियजन, इस बात को कभी भूलने न देना कि प्रभु के सामने एक दिन एक हज़ार वर्ष और हज़ार वर्ष एक दिन के बराबर हैं. प्रभु अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करने में देर नहीं करते जैसा कुछ लोगों का विचार है. वह तुम्हारे प्रति धीरज धरते हैं और नहीं चाहते कि किसी का भी विनाश हो परन्तु यह कि सभी को पाप से मन फिराने का सुअवसर प्राप्त हो.

10 प्रभु का दिन चोर के समान अचानक से आएगा, जिसमें आकाशमण्डल गड़गड़ाहट की तेज़ आवाज़ करते हुए नष्ट हो जाएगा, तत्व बहुत ही गरम होकर पिघल जाएँगे तथा पृथ्वी और उस पर किए गए सभी काम प्रकट हो जाएँगे.

11 जब इन सभी वस्तुओं का इस रीति से नाश होना निश्चित है तो पवित्र चाल-चलन तथा भक्ति में तुम्हारा किस प्रकार के व्यक्ति होना सही है, 12 जब तुम परमेश्वर के दिन के लिए ऐसी लालसा में इंतज़ार कर रहे हो, मानो उसे गति प्रदान कर रहे हो तो इस बात के प्रकाश में जब आकाशमण्डल आग से नाश कर दिया जाएगा तथा तेज़ गर्मी के कारण तत्व पिघल जाएँगे 13 प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार हम नए आकाश और नई पृथ्वी की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जहाँ धार्मिकता का वास है.

14 इसलिए प्रियजन, जब तुम उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हो, कोशिश करो कि प्रभु की दृष्टि में निष्कलंक तथा निर्दोष पाए जाओ तथा तुममें उनकी शान्ति का वास हो. 15 हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो—ठीक जैसे हमारे प्रिय भाई पौलॉस ने उन्हें दिए गए ज्ञान के अनुसार तुम्हें लिखा है, 16 जैसे उन्होंने अपने सभी पत्रों में भी इन्हीं विषयों का वर्णन किया है, जिनमें से कुछ विषय समझने में कठिन हैं, जिन्हें अस्थिर तथा अनपढ़ लोग बिगाड़ देते हैं—जैसा कि वे शेष पवित्रशास्त्र के साथ भी करते हैं; जिससे वे स्वयं अपना ही विनाश कर लेते हैं.

17 इसलिए प्रियजन, यह सब पहले से जानते हुए सचेत रहो. ऐसा न हो कि अधर्मियों की गलत शिक्षा में बहककर स्थिरता से तुम गिर न जाओ. 18 हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता मसीह येशु के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते जाओ. उनकी महिमा अब भी और युगानुयुग होती रहे. आमेन.

जीवनदायी शब्द

जीवन देने वाले उस वचन के विषय में, जो आदि से था, जिसे हमने सुना, जिसे हमने अपनी आँखों से देखा, ध्यान से देखा और जिसको हमने छुआ. जब यह जीवन प्रकट हुआ, तब हमने उसे देखा और अब हम उसके गवाह हैं. हम तुम्हें उसी अनन्त जीवन का सन्देश सुना रहे हैं, जो पिता के साथ था और जो हम पर प्रकट किया गया. हमारे समाचार का विषय वही है, जिसे हमने देखा और सुना है. यह हम तुम्हें भी सुना रहे हैं कि हमारे साथ तुम्हारी भी संगति हो. वास्तव में हमारी यह संगति पिता और उनके पुत्र मसीह येशु के साथ है. यह सब हमने इसलिए लिखा है कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए.

ज्योति में स्वभाव

यही है वह समाचार, जो हमने उनसे सुना और अब हम तुम्हें सुनाते हैं: परमेश्वर ज्योति हैं. अन्धकार उनमें ज़रा सा भी नहीं. यदि हम यह दावा करते हैं कि हमारी उनके साथ संगति है और फिर भी हम अन्धकार में चलते हैं तो हम झूठे हैं और सच पर नहीं चलते. किन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं, जैसे वह स्वयं ज्योति में हैं, तो हमारी संगति आपसी है और उनके पुत्र मसीह येशु का लहू हमें सभी पापों से शुद्ध कर देता है.

यदि हम पापहीन होने का दावा करते हैं, तो हमने स्वयं को धोखे में रखा है और सच हममें है ही नहीं. यदि हम अपने पापों को स्वीकार करें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने तथा हमें सभी अधर्मों से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी हैं. 10 यदि हम यह दावा करते हैं कि हमने पाप किया ही नहीं तो हम परमेश्वर को झूठा ठहराते हैं तथा उनके वचन का हमारे अन्दर वास है ही नहीं.

मेरे बच्चों, मैं यह सब तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो किन्तु यदि किसी से पाप हो ही जाए तो पिता के पास हमारे लिए एक सहायक है मसीह येशु, जो धर्मी हैं. वही हमारे पापों के लिए प्रायश्चित-बलि हैं—मात्र हमारे ही पापों के लिए नहीं परन्तु सारे संसार के पापों के लिए.

दूसरी ज़रूरत: आदेशों का पालन

परमेश्वर के आदेशों का पालन करना इस बात का प्रमाण है कि हमने परमेश्वर को जान लिया है. वह, जो यह कहता तो रहता है, “मैं परमेश्वर को जानता हूँ”, किन्तु उनके आदेशों और आज्ञाओं के पालन नहीं करता, झूठा है और उसमें सच है ही नहीं परन्तु जो कोई उनकी आज्ञा का पालन करता है, उसमें परमेश्वर का प्रेम वास्तव में सिद्धता तक पहुँचा दिया गया है. परमेश्वर में हमारे स्थिर बने रहने का प्रमाण यह है: जो कोई यह दावा करता है कि वह मसीह येशु में स्थिर है, तो वह उन्हीं के समान चाल-चलन भी करे.

प्रियजन, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं परन्तु वही आज्ञा लिख रहा हूँ, जो प्रारम्भ ही से थी; यह वही समाचार है, जो तुम सुन चुके हो. फिर भी मैं तुम्हें एक नईं आज्ञा लिख रहा हूँ, जो मसीह में सच था तथा तुममें भी सच है. अन्धकार मिट रहा है तथा वास्तविक ज्योति चमकी है.

वह, जो यह दावा करता है कि वह ज्योति में है, फिर भी अपने भाई से घृणा करता है, अब तक अन्धकार में है. 10 जो साथी विश्वासी से प्रेम करता है, उसका वास ज्योति में है, तथा उसमें ऐसा कुछ भी नहीं जिससे वह ठोकर खाए. 11 परन्तु वह, जो साथी विश्वासी से घृणा करता है, अन्धकार में है, अन्धकार में ही चलता है तथा नहीं जानता कि वह किस दिशा में बढ़ रहा है क्योंकि अन्धकार ने उसे अंधा बना दिया है.

तीसरी ज़रूरत: संसार में मन न लगाना

12 बच्चों, यह सब मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि मसीह येशु के नाम के लिए
    तुम्हारे पाप-क्षमा किए गए हैं.
13 तुम्हें, जो पिता हो,
    मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो, जो आदि से हैं.
    तुम्हें, जो युवा हो, इसलिए कि तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.
14 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, तुम्हें इसलिए कि तुम पिता को जानते हो.
तुम्हें, जो पिता हो, मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो,
जो आदि से हैं.
    तुम्हें, जो नौजवान हो, इसलिए कि तुम बलवन्त हो,
    तुम में परमेश्वर के शब्द का वास है
    और तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.

संसार से प्रेम मत करो

15 न तो संसार से प्रेम रखो और न ही सांसारिक वस्तुओं से. यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, उसमें पिता का प्रेम होता ही नहीं. 16 वह सब, जो संसार में समाया हुआ है—शरीर की अभिलाषा, आँखों की लालसा तथा जीवनशैली का घमण्ड़—पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार की ओर से है. 17 संसार अपनी अभिलाषाओं के साथ मिट रहा है, किन्तु वह, जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है, सर्वदा बना रहता है.

चौथी ज़रूरत: मसीह-विरोधियों से सावधानी

18 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, यह अन्तिम समय है और ठीक जैसा तुमने सुना ही है कि मसीह-विरोधी प्रकट होने पर है, इस समय भी अनेक मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह अन्तिम समय है. 19 वे हमारे बीच ही से बाहर चले गए—वास्तव में वे हमारे थे ही नहीं—यदि वे हमारे होते तो हमें छोड़ कर न जाते. उनका हमें छोड़ कर जाना ही यह स्पष्ट कर देता है कि उनमें से कोई भी हमारा न था 20 किन्तु तुम्हारा अभिषेक उन पवित्र मसीह येशु से है, इसका तुम्हें अहसास भी है.

21 मेरा यह सब लिखने का उद्धेश्य यह नहीं कि तुम सच्चाई से अनजान हो परन्तु यह कि तुम इससे परिचित हो. किसी भी झूठ का जन्म सच से नहीं होता. 22 झूठा कौन है, सिवाय उसके, जो येशु के मसीह होने की बात को अस्वीकार करता है? यही मसीह-विरोधी है, जो पिता और पुत्र को अस्वीकार करता है. 23 हर एक, जो पुत्र को अस्वीकार करता है, पिता भी उसके नहीं हो सकते. जो पुत्र का अंगीकार करता है, पिता परमेश्वर भी उसके हैं. 24 इसका ध्यान रखो कि तुम में वही शिक्षा स्थिर रहे, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है. यदि वह शिक्षा, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है, तुम में स्थिर है तो तुम भी पुत्र और पिता में बने रहोगे. 25 अनन्त जीवन ही उनके द्वारा हमसे की गई प्रतिज्ञा है. 26 यह सब मैंने तुम्हें उनके विषय में लिखा है, जो तुम्हें मार्ग से भटकाने का प्रयास कर रहे हैं.

27 तुम्हारी स्थिति में प्रभु के द्वारा किया गया वह अभिषेक का तुममें स्थिर होने के प्रभाव से यह ज़रूरी ही नहीं कि कोई तुम्हें शिक्षा दे. उनके द्वारा किया गया अभिषेक ही तुम्हें सभी विषयों की शिक्षा देता है. यह शिक्षा सच है, झूठ नहीं. ठीक जैसी शिक्षा तुम्हें दी गई है, तुम उसी के अनुसार मसीह में स्थिर बने रहो.

परमेश्वर में स्थिर रहना

28 बच्चों, उनमें स्थिर रहो कि जब वह प्रकट हों तो हम निड़र पाए जाएँ तथा उनके आगमन पर हमें लज्जित न होना पड़े. 29 यदि तुम्हें यह अहसास है कि वह धर्मी हैं तो यह जान लो कि हर एक धर्मी व्यक्ति भी उन्हीं से उत्पन्न हुआ है.

परमेश्वर की सन्तान की जीवनशैली

विचार तो करो कि कैसा अथाह है हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं; जो वास्तव में हम हैं. संसार ने परमेश्वर को नहीं पहचाना इसलिए वह हमें भी नहीं पहचानता. प्रियजन, अब हम परमेश्वर की सन्तान हैं और अब तक यह प्रकट नहीं किया गया है कि भविष्य में हम क्या बन जाएँगे किन्तु हम यह अवश्य जानते हैं कि जब वह प्रकट होंगे तो हम उनके समान होंगे तथा उन्हें वैसा ही देखेंगे ठीक जैसे वह हैं. हर एक व्यक्ति, जिसने उनसे यह आशा रखी है, स्वयं को वैसा ही पवित्र रखता है, जैसे वह पवित्र हैं.

पाप में लीन हरेक व्यक्ति व्यवस्था भंग करने का दोषी है—वास्तव में व्यवस्था भंग करना ही पाप है. तुम जानते हो कि मसीह येशु का प्रकट होना इसीलिए हुआ कि वह पापों को हर ले जाएँ. उनमें पाप ज़रा-सा भी नहीं. कोई भी व्यक्ति, जो उनमें बना रहता है, पाप नहीं करता रहता; पाप में लीन व्यक्ति ने न तो उन्हें देखा है और न ही उन्हें जाना है.

परमेश्वर व शैतान की सन्तान में अन्तर

प्रियजन, कोई तुम्हें मार्ग से भटकाने न पाए. धर्मी वही है, जिसका चाल-चलन खरा है ठीक जैसे मसीह येशु धर्मी हैं. पाप में लीन हर एक व्यक्ति शैतान से है क्योंकि शैतान प्रारम्भ ही से पाप करता रहा है. परमेश्वर-पुत्र का प्रकट होना इसीलिए हुआ कि वह शैतान के कामों का नाश कर दें. परमेश्वर से उत्पन्न कोई भी व्यक्ति पाप में लीन नहीं रहता क्योंकि परमेश्वर का मूल तत्व उसमें बना रहता है. उसमें पाप करते रहने की क्षमता नहीं रह जाती क्योंकि वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है.

10 परमेश्वर की सन्तान व शैतान की सन्तान की पहचान इसी से हो जाती है: कोई भी व्यक्ति, जिसका जीवन धर्मी नहीं है, परमेश्वर से नहीं है और न ही वह, जिसे अपने भाई से प्रेम नहीं है.

आपस में प्रेम करो

11 तुमने आरम्भ ही से यह सन्देश सुना है कि हम में आपस में प्रेम हो; 12 हम काइन जैसे न हों, जो उस दुष्ट से था और जिसने अपने भाई की हत्या कर दी. उसने अपने भाई की हत्या किसलिए की? इसलिए कि उसके काम बुरे तथा उसके भाई के काम धार्मिकता के थे. 13 यदि संसार तुमसे घृणा करता है, तो, प्रियजन, चकित न हो. 14 हम जानते हैं कि हम मृत्यु के अधिकार से निकल कर जीवन में प्रवेश कर चुके हैं, क्योंकि हम में आपस में प्रेम है; वह, जिसमें प्रेम नहीं, मृत्यु के अधिकार में ही है. 15 हर एक, जो साथी विश्वासी से घृणा करता है, हत्यारा है. तुम्हें यह मालूम है कि किसी भी हत्यारे में अनन्त जीवन मौजूद नहीं रहता.

16 प्रेम क्या है यह हमने इस प्रकार जाना: मसीह येशु ने हमारे लिए प्राणों का त्याग कर दिया. इसलिए हमारा भी एक-दूसरे के लिए अपने प्राणों का त्याग करना सही है. 17 जो कोई संसार की संपत्ति के होते हुए भी साथी विश्वासी की ज़रूरत की अनदेखी करता है, तो कैसे कहा जा सकता है कि उसमें परमेश्वर का प्रेम मौजूद है?

प्रेम करने की विधि

18 प्रियजन, हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति वचन व मौखिक नहीं परन्तु कामों और सच्चाई में हो. 19 इसी के द्वारा हमें ढ़ांढ़स मिलता है कि हम उसी सत्य के हैं. इसी के द्वारा हम परमेश्वर के सामने उन सभी विषयों में आश्वस्त हो सकेंगे. 20 जब कभी हमारा अन्तर्मन हम पर आरोप लगाता रहता है; क्योंकि परमेश्वर हमारे हृदय से बड़े हैं, वह सर्वज्ञानी हैं.

21 इसलिए प्रियजन, यदि हमारा मन हम पर आरोप न लगाए तो हम परमेश्वर के सामने निड़र बने रहते हैं 22 तथा हम उनसे जो भी विनती करते हैं, उनसे प्राप्त करते हैं क्योंकि हम उनके आदेशों का पालन करते हैं तथा उनकी इच्छा के अनुसार स्वभाव करते हैं. 23 यह परमेश्वर की आज्ञा है कि हम उनके पुत्र मसीह येशु में विश्वास करें तथा हम में आपस में प्रेम हो जैसा उन्होंने हमें आज्ञा दी है. 24 वह, जो उनके आदेशों का पालन करता है, उनमें स्थिर है और उसके भीतर उनका वास है. इसका अहसास हमें उन्हीं पवित्रात्मा द्वारा होता है, जिन्हें परमेश्वर ने हमें दिया है.

आत्माओं को परखना

प्रियजन, हर एक आत्मा का विश्वास न करो परन्तु आत्माओं को परख कर देखो कि वे परमेश्वर की ओर से हैं भी या नहीं, क्योंकि संसार में अनेक झूठे भविष्यद्वक्ता पवित्रात्मा के वक्ता होने का दावा करते हुए कार्य कर रहे हैं. परमेश्वर के आत्मा को तुम इस प्रकार पहचान सकते हो: ऐसी हर एक आत्मा, जो परमेश्वर की ओर से है, यह स्वीकार करती है कि मसीह येशु का नीचे उतरना मनुष्य के शरीर में हुआ. ऐसी हर एक आत्मा, जो मसीह येशु को स्वीकार नहीं करती परमेश्वर की ओर से नहीं है. यह मसीह-विरोधी की आत्मा है, जिसके विषय में तुमने सुना था कि वह आने पर है और अब तो वह संसार में आ ही चुकी है.

प्रियजन, तुम परमेश्वर के हो. तुमने झूठे भविष्यद्वक्ताओं को हराया है; श्रेष्ठ वह हैं, जो तुम्हारे अन्दर में हैं, बजाय उसके जो संसार में है. वे संसार के हैं इसलिए उनकी बातचीत के विषय भी सांसारिक ही होते हैं तथा संसार उनकी बातों पर मन लगाता है. हम परमेश्वर की ओर से हैं. वे जो परमेश्वर को जानते है, हमारी सुनते हैं. जो परमेश्वर का नहीं है, वह हमारी नहीं सुनता. इसी से हम सच के आत्मा तथा असच के आत्मा की पहचान कर सकते हैं.

सच्चा प्रेम

प्रियजन, हम में आपस में प्रेम रहे: प्रेम परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है. हर एक, जिसमें प्रेम है, परमेश्वर से जन्मा है तथा उन्हें जानता है. वह जिसमें प्रेम नहीं, परमेश्वर से अनजान है क्योंकि परमेश्वर प्रेम हैं. हम में परमेश्वर का प्रेम इस प्रकार प्रकट हुआ: परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा कि हम उनके द्वारा जीवन प्राप्त करें. 10 प्रेम वस्तुत: यह है: परमेश्वर ने हमारे प्रति अपने प्रेम के कारण अपने पुत्र को हमारे पापों के लिए प्रायश्चित-बलि होने के लिए भेज दिया—यह नहीं कि हमने परमेश्वर से प्रेम किया है. 11 प्रियजन, यदि हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम इतना अधिक है तो सही है कि हम में भी आपस में प्रेम हो. 12 परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा. यदि हम में आपस में प्रेम है तो हमारे भीतर परमेश्वर का वास है तथा उनके प्रेम ने हम में पूरी सिद्धता प्राप्त कर ली है.

13 हमें यह अहसास होता है कि हमारा उनमें और उनका हम में वास है क्योंकि उन्होंने हमें अपना आत्मा दिया है. 14 हमने यह देखा है और हम इसके गवाह हैं कि पिता ने पुत्र को संसार का उद्धारकर्ता होने के लिए भेज दिया. 15 जो कोई यह स्वीकार करता है कि मसीह येशु परमेश्वर-पुत्र हैं, परमेश्वर का उसमें और उसका परमेश्वर में वास है. 16 हमने अपने प्रति परमेश्वर के प्रेम को जान लिया और उसमें विश्वास किया है. परमेश्वर प्रेम हैं. वह, जो प्रेम में स्थिर है, परमेश्वर में बना रहता है तथा स्वयं परमेश्वर उसमें बना रहता हैं. 17 तब हमें न्याय के दिन के सन्दर्भ में निर्भयता प्राप्त हो जाती है क्योंकि संसार में हमारा स्वभाव मसीह के स्वभाव के समान हो गया है, परिणामस्वरूप हमारा आपसी प्रेम सिद्धता की स्थिति में पहुँच जाता है.

18 इस प्रेम में भय का कोई भाग नहीं होता क्योंकि सिद्ध प्रेम भय को निकाल फेंकता है. भय का सम्बन्ध दण्ड से है और उसने, जो भयभीत है प्रेम में यथार्थ सम्पन्नता प्राप्त नहीं की.

19 हम में प्रेमभाव इसलिए है कि पहले उन्होंने हमसे प्रेम किया है. 20 यदि कोई दावा करे, “मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ” परन्तु साथी विश्वासी से घृणा करे, वह झूठा है, क्योंकि जिसने साथी विश्वासी को देखा है और उससे प्रेम नहीं करता तो वह परमेश्वर से, जिन्हें उसने देखा ही नहीं, प्रेम कर ही नहीं सकता, 21 यह आज्ञा हमें उन्हीं से प्राप्त हुई है कि वह, जो परमेश्वर से प्रेम करता है, साथी विश्वासी से भी प्रेम करे.

परमेश्वर-पुत्र में विश्वास द्वारा प्रेम

हर एक, जिसका विश्वास यह है कि येशु ही मसीह हैं, वह परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है तथा हर एक जिसे पिता से प्रेम है, उसे उससे भी प्रेम है, जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है. परमेश्वर की सन्तान से हमारे प्रेम की पुष्टि परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम और उनकी आज्ञाओं का पालन करने के द्वारा होती है. परमेश्वर के आदेशों का पालन करना ही परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम का प्रमाण है. उनकी आज्ञा बोझिल नहीं हैं.

जो परमेश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह संसार पर जयवन्त है. वह विजय, जो संसार पर जयवन्त है, यह है: हमारा विश्वास. कौन है वह, जो संसार पर जयवन्त होता है? क्या वही नहीं, जिसका यह विश्वास है कि मसीह येशु ही परमेश्वर-पुत्र हैं?

यह वही हैं, जो जल व लहू के द्वारा प्रकट हुए मसीह येशु. उनका आगमन न केवल जल से परन्तु जल तथा लहू से हुआ इसके साक्षी पवित्रात्मा हैं क्योंकि पवित्रात्मा ही वह सच हैं सच तो यह है कि गवाह तीन हैं: पवित्रात्मा, जल तथा लहू. ये तीनों एकमत हैं. यदि हम मनुष्यों की गवाही स्वीकार कर लेते हैं, परमेश्वर की गवाही तो उससे श्रेष्ठ है क्योंकि यह परमेश्वर की गवाही है, जो उन्होंने अपने पुत्र के विषय में दी है. 10 जो कोई परमेश्वर-पुत्र में विश्वास करता है, उसमें यही गवाही भीतर छिपी है. जिसका विश्वास परमेश्वर में नहीं है, उसने उन्हें झूठा ठहरा दिया है क्योंकि उसने परमेश्वर के अपने पुत्र के विषय में दी गई उस गवाही में विश्वास नहीं किया.

11 वह साक्ष्य यह है: परमेश्वर ने हमें अनन्त जीवन दिया है. यह जीवन उनके पुत्र में बसा है. 12 जिसमें पुत्र का वास है, उसमें जीवन है, जिसमें परमेश्वर का पुत्र नहीं, उसमें जीवन भी नहीं.

13 मैंने तुम्हें यह सब इसलिए लिखा है कि तुम, जो परमेश्वर के पुत्र की प्रधानता में विश्वास करते हो, यह जान लो कि अनन्त काल का जीवन तुम्हारा है.

पापियों के लिए प्रार्थना

14 परमेश्वर के विषय में हमारा विश्वास यह है: जब हम उनकी इच्छा के अनुसार कोई विनती करते हैं, वह उसे सुनते हैं. 15 जब हम यह जानते हैं कि वह हमारी हर एक विनती को सुनते हैं, तब हम यह भी जानते हैं कि उनसे की गई हमारी विनती पूरी हो चुकी है.

16 यदि कोई साथी विश्वासी को ऐसा पाप करते हुए देखे, जिसका परिणाम मृत्यु न हो, वह उसके लिए प्रार्थना करे और उसके लिए परमेश्वर उन लोगों को जीवन प्रदान करेंगे, जिन्होंने ऐसा पाप किया है, जिसका परिणाम मृत्यु नहीं है. एक पाप ऐसा है जिसका परिणाम मृत्यु है. इस स्थिति के लिए प्रार्थना करने के लिए मैं नहीं कह रहा. 17 हर एक अधर्म पाप है किन्तु एक पाप ऐसा भी है जिसका परिणाम मृत्यु नहीं है.

18 हम इस बात से परिचित हैं कि कोई भी, जो परमेश्वर से जन्मा है, पाप करता नहीं रहता परन्तु परमेश्वर के पुत्र उसे सुरक्षित रखते हैं तथा वह दुष्ट उसे छू तक नहीं सकता. 19 हम जानते हैं कि हम परमेश्वर से हैं और सारा संसार उस दुष्ट के वश में है. 20 हम इस सच से परिचित हैं कि परमेश्वर के पुत्र आए तथा हमें समझ दी कि हम उन्हें, जो सच हैं, जानें. हम उनमें स्थिर रहते हैं, जो सच हैं अर्थात् उनके पुत्र मसीह येशु. यही वास्तविक परमेश्वर और अनन्त काल का जीवन हैं.

21 बच्चों, स्वयं को मूर्तियों से बचाए रखो.

प्राचीन की ओर से चुनी हुई महिला और उसकी सन्तान को, जिनसे मुझे वास्तव में प्रेम है—न केवल मुझे परन्तु उन सबको भी जिन्होंने सच को जान लिया है. यह उस सच के लिए है, जिसका हमारे भीतर वास है तथा जो हमेशा-हमेशा हमारे साथ रहेगा.

परमेश्वर पिता और मसीह येशु की ओर से, जो पिता के पुत्र हैं, अनुग्रह, कृपा और शान्ति हमारे साथ सच तथा प्रेम में बनी रहेगी.

तुम्हारी सन्तान में अनेक का सच्चाई में स्वभाव देखना मेरे लिए बहुत ही खुशी का विषय है. यह ठीक वैसा ही है जैसा हमारे लिए पिता की आज्ञा है.

हे स्त्री, मेरी तुमसे विनती है: हम में आपस में प्रेम हो. यह मैं तुम्हें किसी नई आज्ञा के रूप में नहीं लिख रहा हूँ परन्तु यह वही आज्ञा है, जो हमें प्रारम्भ ही से दी गई है. प्रेम यही है कि हम उनकी आज्ञा के अनुसार स्वभाव करें. यह वही आज्ञा है, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है, ज़रूरी है कि तुम उसका पालन करो.

संसार में अनेक धूर्त निकल पड़े हैं, जो मसीह येशु के शरीर धारण करने को नकारते हैं. ऐसा व्यक्ति धूर्त है और मसीह विरोधी भी. अपने प्रति सावधान रहो, कहीं तुम हमारी उपलब्धियों को खो न बैठो, परन्तु तुम्हें सारे पुरस्कार प्राप्त हो. हर एक, जो भटक कर दूर निकल जाता है और मसीह की शिक्षा में स्थिर नहीं रहता, उसमें परमेश्वर नहीं; तथा जो शिक्षा में स्थिर रहता है, उसने पिता तथा पुत्र दोनों ही को प्राप्त कर लिया है. 10 यदि कोई तुम्हारे पास आकर यह शिक्षा नहीं देता, तुम न तो उसका अतिथि-सत्कार करो, न ही उसको नमस्कार करो; 11 क्योंकि जो उसको नमस्कार करता है, वह उसकी बुराई में भागीदार हो जाता है.

12 हालांकि लिखने योग्य अनेक विषय हैं किन्तु मैं स्याही व लेखन-पत्रक इस्तेमाल नहीं करना चाहता; परन्तु मेरी आशा है कि मैं तुम्हारे पास आऊँगा तथा आमने-सामने तुमसे बातचीत करूँगा कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए.

13 तुम्हारी चुनी हुई बहन की सन्तान तुम्हें नमस्कार करती है.

प्राचीन की ओर से प्रिय गायॉस को, जिससे मुझे वास्तव में प्रेम है.

प्रियजन, मेरी कामना है कि जिस प्रकार तुम अपनी आत्मा में उन्नत हो, ठीक वैसे ही अन्य क्षेत्रों में भी उन्नत होते जाओ और स्वस्थ रहो.

मुझसे भेंट करने आए साथी विश्वासियों द्वारा सच्चाई में तुम्हारी स्थिरता का विवरण अर्थात् सत्य में तुम्हारे स्वभाव के विषय में सुन कर मुझे बहुत ही खुशी हुई. मेरे लिए इससे बढ़कर और कोई आनन्द नहीं कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बालकों का स्वभाव सच्चाई के अनुसार है.

प्रियजन, जो कुछ तुम साथी विश्वासियों, विशेष रूप से परदेशी साथी विश्वासियों की भलाई में कर रहे हो, तुम्हारी सच्चाई का सबूत है. वे कलीसिया के सामने तुम्हारे प्रेम के गवाह हैं. सही यह है कि तुम उन्हें इसी भाव में विदा करो, जो परमेश्वर को ग्रहण योग्य हो, क्योंकि उन्होंने अन्यजातियों से बिना कोई सहायता स्वीकार किए प्रभु के लिए काम प्रारम्भ किया था. इसलिए सही है कि हम ऐसे व्यक्तियों का सत्कार करें कि हम उस सत्य के सहकर्मी हो जाएँ.

दिओत्रिफ़ेस के विषय में चिन्ता

मैंने कलीसिया को पत्र लिखा था परन्तु दिओत्रिफ़ेस, जो उनमें हमेशा ही अगुवा बनना चाहता है, हमारी नहीं मानता. 10 इसी कारण जब मैं वहाँ आऊँगा तो तुम्हारे सामने उसके द्वारा किए गए सभी कामों को स्पष्ट कर दूँगा अर्थात् सारे बुरे-बुरे शब्दों का प्रयोग करते हुए हम पर लगाए गए आरोपों का. इतना ही नहीं, वह न तो स्वयं उपदेशकों को स्वीकार करता है और न ही कलीसिया के सदस्यों को ऐसा करने देता है, जो ऐसा करने के इच्छुक हैं. वस्तुत: उन्हें वह कलीसिया से बाहर कर देता है.

11 प्रियजन, बुराई का नहीं परन्तु भलाई का अनुसरण करो क्योंकि भला करने वाला परमेश्वर का है; जो बुराई करने वाला है उसने परमेश्वर को नहीं देखा. 12 सभी देमेत्रियॉस की प्रशंसा करते हैं. स्वयं सच उसका गवाह है. हम भी उसके गवाह हैं और तुम यह जानते हो कि हमारी गवाही सच है.

उपसंहार

13 हालांकि लिखने योग्य अनेक विषय हैं किन्तु मैं स्याही और लेखनी इस्तेमाल नहीं करना चाहता. 14 मेरी आशा है कि मैं तुमसे बहुत जल्द भेंट कर आमने-सामने आपस में बातचीत करूँगा.

15 तुम्हें शान्ति मिले. तुम्हें मित्रों का नमस्कार. व्यक्तिगत रूप से हर एक मित्र को नमस्कार करना.

Saral Hindi Bible (SHB)

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